Thursday, January 31, 2013

कुँवारी छबीली -4

कुँवारी छबीली -4

गतान्क से आगे..................
बहुत देर तक हम शर्म से सर झुकाए बैठे रहे. फिर मैने हिम्मत की ओर आगे
बढ़ कर छबिलि को गले से लगा लिया. "छबिलि, ऐसा कुछ नही है हम तुम्हे जैसा
सोच रही हो वैसे नही मानते है तुम तो मेरी पहली मुहब्बत हो मैं तुम्हारे
साथ ऐसा कैसे कर सकता हू ओर मैं तो तुम्हे किसी ओर के साथ बाँटने का सोच
कर ही डर जाता हू चाहे वो दूसरा आदमी तुम्हारा पति ही क्यू ना हो. मैं
तुम्हे रसिया के साथ बिल्कुल नही बाँटना चाहता. रसिया का उस दिन तुम्हारे
सामने मूतना ओर कमरे मे आना एक संयोग हो सकता है ओर अगर उसने जान बूझकर
भी किया है तो इसमे मैं सामिल नही हू". मैने रसिये को चुप रहने का इशारा
किया की तुम बीच मे मत बोल पड़ना जो जैसा कह रहा हू कहने ओर करने दो. "उस
दिन रसिया तुम्हे भोगना चाहता था पर मैं तो इस बात के लिए राज़ी नही था
ना. ओर रसिया तुम्हे हाथ भी नही लगाएगा. ओर अगर तुम मुझसे भी संबंध ना
रखना चाहो तो भी तुम आज़ाद हो ना रखो संबंध पर अपने आप को ख़त्म करने
जैसा ख़याल दिल मे भी मत लाना वरना मैं तुम्हारे साथ जान दे दूँगा. जहाँ
तक तुम्हारे पति की बीमारी का सवाल है तो मैं उसे ठीक कर्वाऊंगा.
च्चबिली मेरी बाते सुन कर मुझसे चिपक गई. ओर चुप चाप रोती रही.

बहुत देर तक छबिलि रोती रही. मैने उसे चुप करने की कोशिश नही की क्यूंकी
इस समय उसका रोना ही ठीक था. आज रो लेने से उसके दिल का गुबार निकल जाएगा
वरना वो गुस्से मे कुछ भी कर सकती है. बस वो मेरे सीने से लगी रोती रही
ओर मैं उसके बालों मे हाथ फिरता रहा जिससे उसको इस बात का एहसास रहे की
मैं उसके साथ हू वो इस मझधहार मे अकेली नही है.

रोने से धीरे धीरे उसका गुस्सा आंशुओं के साथ बह गया. अब वो कुछ शांत लग रही थी.

उसने अपना मूह उठाया. ओर जैसे ही उसे रसिया नज़र आया उसने एक बार को मूह
फेर लिया पर फिर अपने ज़ज्बात काबू मे रखते हुए बोली कारण क्या तुम कुछ
देर के लिए बाहर जा सकते हो. रसिया भी स्थिति को समझ रहा थॉ ओ चुप चाप
बाहर चला गया.

अब छबिलि ने मेरी तरफ देखा ओर बोली "छैल थे मन्ने खराब कर दी. थे मन्ने
इत्ति गिरेडी समझ ली के. की मैं थन्सु तो चुड़वऊंगी ही ही थारे दोस्तान
सू भी चूदबा लगूंगी. मैं थन्सु प्यार कियो है ईं कारण थॅंको नंबर आयो है
नही तो मैं ऐइयाँ कोनी फिसलती. थे तो मानने उऊन दिन भा गया था जद थे
म्हारे घर किराए का मकान देखन वास्ते आया था. ओर ऊहि कारण रयो की मैं
पिच्छला किरायेदार ने भगा कर थाने उनकी जगा मकान दे दियो. पर यार यो काई
है थे अपने दोस्त ने भी ले आया. खैर ले आया तो कोई बात कोनी पर अन म्हेरे
सथे इन्वॉल्व भी करना चा राइया हो. या तो ग़लत बात है. थे म्हरी इज़्ज़त
दो कोड़ी की समझली."

"ना छबिलि ऐसी कोई बात नही है" माने उसे सफाई दी "वो हमेशा से ही मेरे
साथ रह रहा है जब से हम इस शहर मे आए है. उसे अलग से नही बुलाया है. वो
तो उसकी आदत है यहाँ वहाँ मूह मारने की तो जब भी उसका कोई जुगाड़ लग जाता
है तो वो उस जुगाड़ के घर पर ही रहने लगता है जब तक की उस जुगाड़ का पति
ना आ जाए. तो इस कारण ये एक हफ्ते गायब था. मुझे क्या पता था की वो आते
ही तुझे अपनी तरफ आक्रिस्ट करने के लिए तुझे लाउडा दिखाएगा. ओर मुझे ये
भी नही पता था की जब दोपहर मे हम दोनो चुदाई कर रहे थे तो वो हमे देख रहा
था. वो तो अचानक जब वो कमरे मे घुस गया तब मेरी उस पर नज़र पड़ी"

"पन थारो दोस्त थारे साथ भी दागा करे है के"

अरे उसने अपना पुराना आइडिया लगा दिया था यहा भी. उसने सोचा की लड़की फँस
जाए तो बुरा क्या है. वैसे भी तू एकदम कंटीली नार है. कोई भी फँस सकता
है.

अच्छा या बात है. थे क्यामे फाँसया?

अरे मैं भी तो तेरे रूप जाल मे फँस कर रह गया हू. अब तू ऐसी बाते करती है
तो दिल बहुत दुख़्ता है.

वो सब तो ठीक है पर अब मैं एक फ़ैसलो कारियो है, की अब मैं म्हारे पति के
साथ ही रहूंगी थारी तरफ नज़र भी उथकि कोनी देखूनली.

तो तेरी सेक्षुयल डिज़ाइर्स का क्या होगा छबिलि.

"इनमे थे मारी मदद करो. मानने मारे मर्द रो इलाज कारवानो है. पर ये तो
मानने ही कोनी. थे मारे साथ चलोगा तो ये मना कोनी कर पनवेला.कोई ना कोई
बहाने से आंको इलाज कारानो है मनने. या तो थे भी जानो हो की थारे साथ
म्हरी जिंदगी तो चाले कोनी."

इलाज तो मैं करवा दूँगा पर एक बात बताओ क्या तुम मुझे कभी नही मिलॉगी. ओर
अगर मैं तुमसे शादी करना चाहू तो तुम्हे क्या एतराज है.

ना छैल, अब सब ख़तम है. थे अगर म्हाने थोड़ी भी चाहो हो तो थाने मेरी
हेल्प करनी पदेलि. ओर शादी तो आपन कोनी कर सका. थे म्हारा दोस्त रॉवोला
जिंदगी भर. ओर बाकी रैही चुदाई की बात तो जुगाड़ कर द्*यंगी थारो भी.

अच्छा

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च्चबिली ने बाहर खड़े करण को आवाज़ दी "रसिया ज़रा अंदर आओ"

रसिया अंदर आ गया तो च्चबिली ने कहा "बैठो" रसिया बैठ गया "देखो रसिया
ऐसा है की तुम मुझ पर जो वार आजमा रहे हो मैं उन सब को पसंद नही करती इस
लिए अब प्लीज़ मेरे सामने इस तरह की हरकतें बंद कर देना. मैं भावनाओ मे
बह गई थी वरना मैं सायड परवेज़ के साथ भी इस तरह की हरकत नही करती. तो
आपसे रिक्वेस्ट है की आप यहाँ पर सलीनता से रहे. ओर मेरी तरफ ध्यान ना ही
दें तो अच्छा ही. समझ गये आप मैं क्या कहना चाह रही हू"

मैं तो बहुत पहले ही समझ गया था जब ये हंगामा शुरू हुआ. मेरी ग़लती हो गई
जो मैने आपको सिड्यूस करने की कोशिश की. आप मेरी तरफ से बेफ़िक़र रहिए.
ऐसी कोई हरकत नही होगी. पर मैने आप दोनो की बातें बाहर से सुनी है ओर
मुझे राजस्थानी कम ही समझ आती है पर आप ने जो कुछ कहा उसका भावार्थ समझ
गया हू. आप जिस तरह पहले रह रहे थे वैसे रहे ना तो आपको कोई तकलीफ़ होगी
ना ही मेरे दोस्त को. मुझे तो इस बात का दुख है की मेरे कारण मेरे दोस्त
को तकलीफ़ हो रही है. बाकी रही आपके पति के इलाज की बात तो वो मैं
कार्ओौनगा. मैं संजीवनी मेडिकल कॉलेज मे म्बबस थर्ड एअर का स्टूडेंट हू.
वहाँ पर सभी प्रोफेस्सर्स से मेरी दोस्ती सी है. आप कभी भी आ सकती है.

छॅबिली ने रसिया से इतने सुलझे हुए जवाब की आशा नही की थी क्यूंकी वो समझ
रही थी की रसिया चवँनी छाप टाइप का लड़का होगा ओर उसकी सोच चूत से सुरू
हो कर चूत पर ही ख़तम हो जाती होगी. पर ये तो बहुत अच्छा लड़का निकला. ओर
मेडिकल स्टूडेंट भी है चलो उसके पति का प्रॉपर इलाज भी हो जाएगा.

छबिली का पति दो दिन बाद वापस आ गया वापस आने पर उसने पाया की छॅबिली का
व्यवहार उसके प्रतिपूरी तरह से बदला हुआ है वो उससे बहुत प्यार से पेश आ
रही है. ओर उसकी हर बात मान रही है. वो उससे पुचहता है की क्या बात है तू
आज इतना प्यार क्यू लूटा रही है. पर च्चबिली उसे केवल देख कर मुश्कुरा
देती है. शाम को खाना खाने के बाद च्चबिली अपने पति के पास आती है ओर
कहती है "मैं थाने एक बात कऊन अगर थे मानो तो."

"हाँ बोल छबिलि, तेरी बात ना मनुन्गो तो कीं की मनुन्गो"

"थे काल म्हारे सागे अस्पताल चलो, मैं थारो पूरो इलाज कारानो चाऊं हू,
इता दिन होग्या आपान ने एक सागे रहता पर थन्सु काम कोनी होवे ओर थे इन गम
मैं दारू पीनी भी सुरू कर दी. आपन एक बारी दाक्दर बाबू ने दिखा कर तो
आवाँ."

"बिँसु कोई फयडो होतो दिखे है के तनने"

"होसी फाय्दो भी होसी थे मारे सागे चालो तो सरी"

"ठीक है तू कवे है तो चल चालसयू, कद चाल्नो है"

"काल सुबह ही चाल स्यां"

ये बातें करके च्चबिली ओर उसका पति सोने लगे च्चबिली ओर परवेज़ के लॅंड
की बहुत याद आ रही थी पर वो सब्र कर रही थी की अब तो उसका पति ही ठीक हो
जाएगा तो उसे परवेज़ के लंड की ज़रूरत ही नही पड़ेगी. ओर जब उसकी चूत मे
ज़्यादा ही गर्मी आने लगी तो उसने अपने घाघरे को अपनी टाँगों की तरफ से
थोडा थोडा उठाया ओर कमर तक उपर कर लिया पर बेड पर वैसे ही लेती रही. पास
मे ही उसका पति सो रहा था. उसे आज जिस तरह से उसके पति ने उससे प्यार से
बातें की थी उसे अपने पति पर बहुत प्यार आ रहा था बस उसका पति उसकी चूत
की गर्मी का कोई इलाज करने मे अभी सक्षम नही था. उसने अपने पति की तरफ
करवट ली ओर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए अपने के हाथ को अपनी चूत पर
फिरने लगी. पहले चूत के बाहरी होठों के उपर से हाथ फिरती रही फिर उसने
अपनी चूत की फांकों को थोडा सा खोला ओर अपनी एक उंगली को चूत एक अंदर
वाले हॉट्तो पर फिराना शुरू कर दिया.

अब तो उसकी हालत ओर भी खराब होने लगी थी उसकी अब इच्छा हो रही थी की जब
तक उसका पति ठीक ना हो जाए तब तक वो परवेज़ से जा कर चुड़वा ले पर फिर
उसने अपने आप पर जब्त किया ओर उंगली को अपनी चूत के अंदर डाल का अंदर
बाहर करने लगी इस तरह उसे कुछ कुछ चुदाई का सा अहसास होने लगा था उंगली
ओर लंड मे बहुत फ़र्क होता है पर कुछ तो मज़ा उंगली भी दे ही रही थी साथ
साथ वो अपने पति को देखती जा रही थी ओर एक दो बार उसके चेहरे को चूम भी
चुकी थी ओर वो अपनी पति से चुदाई का सोच सोच कर ही अपनी चूत मे उंगली कर
रही ती जैसे उसे उसका पति खूब ज़ोर झोर से चोद रहा है. ओर इस एहसास के
साथ वो कुछ ही देर मे छूट गई. ओर ढेर सारा कमरश छ्चोड़ दिया. उसका घाघरा
नीचे से गीला हो गया था क्यूंकी उसने सामने से तो घाघरा उपर कर लिया था
पर पीछे से उपर नही किया था. ओर आज उसकी चुदाई की इच्छा भी बहुत हो रही
थी इस कारण उसकी चूत ने रस भी बहुत ज़्यादा छ्चोड़ा था.

उसने झट पास मे पड़े एक कपड़े को उठाया पर ये तो उसके पति का कुर्ता था.
उसने खुरते को वापास फेंका ओर फिर इधर उधर देखा छूट को पोंच्छने के लिए
कोई कपड़ा उसे नज़र नही आया तो उसने सोचा की उसका घाघरा भी नीचे से गीला
हो चुका है ओर अब इसमे नींद तो आएगी नही तो चलो इसे उतार कर इससे ही
पोंच्छ लेती हू. ये सोचते हुए उसने घाघरे का नाडा खोल दिया नाडा खुलते ही
घाघरा उसके पैरों मे पड़ा था. उसने घाघरे को उठाया ओर उससे अपनी चूत को
पोंच्छने लगी. चूत पोंच्छने के दौरान वो नीचे से पूरी तरह नंगी थी
क्यूंकी चड्डी तो वो पहनती ही नही थी घाघरे के नीचे. नंगे बदन पर रात को
चल रही हवा के झोंके लग रहे थे जिस कारण उसे बहुत अच्छा एहसास हो रहा था.
पर इस अहसास ने उसकी जवानी के एहसास को फिर एक बार जगा दिया था क्यूंकी
उंगली ही तो की थी लॅंड थोड़े ही डाला था.

जब उससे नही रहा गया तो वो ऐसे ही बाहर घूमने चली आई उसने सोचा के बाहर
एक तो अंधेरा है बाहर की लाइट बंद है ओर दूसरा रात बहुत ज़्यादा हो गई है
इस कारण परवेज़ ओर कारण तो सो गये होंगे.

बाहर आ कर छबिली इधर उधर घूमने लगी परवेज़ के कमरे की लाइट अभी तक जल रही
थी तो क्या परवेज़ अभी तक जाग रहा है. पुराना इश्क़ फिर से करवटें लेने
लगा था. ओर वो अपने आप को रोक नही सकी ओर उसके कदम परवेज़ के कमरे की तरफ
बढ़ चली. कमरे की खिड़की की किनारी से कमरे मे झाँक कर देखने लगी जहाँ से
रोशनी बाहर आ रही थी. पर अंदर तो कारण अकेला सो रहा था. परवेज़ तो कमरे
मे कही भी नही था. ये कहाँ गया उसने वहाँ से सारे कमरे को देख लिया. पर
परवेज़ कहीं नज़र नही आया. उसने दूसरी खिड़की की तरफ रुख़ किया जहाँ पर
खिड़की बंद नही थी. खिड़की के पास पहुँच कर उसने पूरे कमरे का मुआयना
किया एक चारपाई पर कारण पेट के बाल लेता हुआ था ओर खर्राटे ले रहा था. पर
परवेज़ कही नही था. तो क्या परवेज़ कमरे मे नही था. कहाँ गया परवेज़.
इतने मे उसे श्श्कारी की आवाज़ आई सस्स्स्शह हाए छबिलि क्या करूँ तेरे
बिना मेरा क्या होगा मेरी जान मैं तो मर ही जौंगा हाए छबिलि तेरी मस्त
चूत के बिना मैं कैसे रहूँगा आजा छॅबिली आजा एक बार तेरी चूत मे अपना
लॅंड डाल डू तुझे मस्ती से चोद डालु तुझे.
छबिलि को अब परवेज़ की आवाज़ तो सुनाई दे रही थी पर उसे परवेज़ कही नज़र
नही आया. यहाँ वहाँ नार दौड़ने पर उसे अहसास हुआ की परवेज़ तो खिड़की के
पास ही बने बाथरूम से आ रही थी. तो क्या परवेज़ उसके नाम की मूठ मार रहा
था. परवेज़ की शीष्कारी की आवाज़े अभी भी बाथरूम से आ रही थी छबिलि की
चूत मे से इन आवाज़ों को सुन कर पानी टपकने लगा था जो धीरे धीरे उसकी
जांघों पर फिसलता हुआ नीचे की तरफ चलने लगा था कुच्छ ही देर के बाद उसे
इस बात का एहसास हुआ तो उसने नीचे की तरफ देखा ओर जब उसकी नज़र अपनी नंगी
चूत पर गई तो उसे ध्यान आया की वो तो नीचे से एकदम नंगी है ओर नंगी ही
बाहर चली आई थी. अब उसकी चूत उससे विद्रोह करने लगी थी पर उसने अपने आप
को काबू मे किया ओर वो झट से वापस आ गई ओर भागती हुई अपने कमरे मे चली गई
ओर उसने झट से वहाँ पड़े एक कमरे मे पड़े कपड़े से अपनी चोट को पोंच्छा
ओर जा कर अपने पति से चिपक कर सो गई.
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सुबह वो ओर उसका पति नहा धो कर तय्यार हो गये अस्पताल जाने के लिए ओर फिर
छबिलि परवेज़ के रूम की तरफ चली उसे बुलाने के लिए तो परवेज़ उसे बाहर ही
बैठा मिल गया उसका चहरा एकदम उतरा हाउ था जैसे वो अपने ही जनाज़े को कंधा
दे कर आ रा हो. उसने परवेज़ को आवाज़ दी पर उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया
नही आई तो वो थोड़ी आयेज बढ़ी ओर फिर से आवाज़ दी पर परवेज़ पर कोई असर
नही था वो उसके पास गई ओर उसके कंधे को झकझोड़ कर उसे बुलाया तो वो एयेए
है कौन है. कह कर उसकी तरफ देखने लगा. चबिली आज उसकी आँखों मे देखने की
ताब नही ला पा रही थी उसने परवेज़ को कहा चलो हम लोग तय्यार है तो परवेज़
भी उसकी तरफ नही देख रहा था उसने कहा चलो ओर खड़ा हो गया पर उसकी चल मे
कही कोई गर्मजोशी नही थी बस जैसे अपने आप को घसीट रहा हो. धीरे धीरे उनके
पीछे पीछे चलता हुआ बाहर आ गया. तभी छबिलि को जैसे कुछ ध्यान आया "अरे ये
कारण कहाँ है."
हाई! सयद वो तो अंदर ही है. परवेज़ बोला
अरे उसे अंदर क्यू छ्चोड़ दिया वोही तो कह रहा था की डॉक्टर उसका दोस्त
है. उसे ले कर आओ. जाओ ना परवेज़ अंदर चल पड़ा रसिया को बुलाने के लिए.
बाहर छबिलि का पति उससे कहता है की तुमने मेरी कमी की बात इन सबको बता दी?
अरे नही मैने इनको कुच्छ नही बताया है मैने तो इनको कहा है की तुम आजकल
बहुत कमजोर हो गये हो काम मे दिल नही लगता है ओर डॉक्टर्स को दिखाया तो
फयडा नही हुआ तो कारण ने कहा की उसकी पहचान बड़े अस्पताल के बड़े डॉक्टर
से है वो इलाज करवा देगा. मैं कोई पागल हू क्या जो ये बात इनको बतौँगी
मुझे तुम्हारी इजात की कोई परवाह नही है क्या. छबिलि ने सॉफ झूठ बोला. पर
उसका पति भी तो इसी झूठ से संत्ुस्त होता सच से कहा संत्ुस्त होने वाला
था वो.
इतनी देर मे रसिया ओर परवेज़ दोनो बाहर आते हुए नज़र आए. फिर उनलोगो ने
टॅक्सी की ओर अस्पताल की तरफ चल दिए.
अस्पताल पहुँच कर रसिया एकदम बिज़ी हो गया उसने छबिलि के पति का इलाज
करवाने के लिए डॉकटर को दिखाया उसके द्वारा लिखी गई सारे जाँचे करवा ली
ओर फिर से उसे ले कर डॉक्टर के पास आ गया.

डॉकटर रिपोर्ट ले कर बहुत देर तक उनका मुआयना करता रहा फिर उसने रसिया से
कहा ज़रा डॉकटर सक्सेना को बुला कर ले आओ तो. कुछ ही देर मे दा. सक्सेना
भी आ गये अब दोनो डॉकटर बहुत देर तक रिपोर्ट्स को ले कर आपस मे पता नही
क्या बातें करते रहे उसके बाद उन्होने छबिलि ओर उसके पति को अंदर बुलाया
मैं ओर रसिया भी साथ मे अंदर जाने लगे तो डॉकटर ने हम दोनो को रोक दिया
ओर बोले की तुम लोग ज़रा भरा इंतजार करो हमे इन दोनो से कुच्छ ज़रूरी बात
करनी है. मैं रसिया को ओर रसिया मुझे प्रश्नवचक नज़रों से देखते रहे.
दोनो को ही जवाब नही मिल रहा था की हमे बाहर क्यू रोका है. फिर मैने कहा
की हो सकता है की छबिलि ओर उसके पति को इलाज समझा रहे होंगे इस कारण हमे
बाहर रोका है की उन्हे शर्म ना आए इलाज सीखने मे.
पर हमे अपने प्रश्न का जवाब जल्द ही मिल गया. छबिलि अपने पति के साथ
डॉकटर के चेंबेर से बाहर आ रही थी उसका ओर उसके पति का चेहरा उतरा हुआ
था. छबिलि की तो आँखों से आंशु बह रहे थे. जैसे ही बाहर आए तो हम उनकी
तरफ लपके. जैसे ही छबिलि की नज़र मुझ पर पड़ी वो भाग कर मुझसे लिपट गई ओर
ज़ोर ज़ोर से रोने लग. "परवेज़ मेरा सब कुछ लूट गया ऑर मैं जिंदा कैसे
रहूंगी." मुझे उस एक सेंटेन्स मे ही सारी बात समझ मे आ गई की क्या हो गया
है मैने उसके सर पर हाथ फेरा की चुप ओ जाओ सब ठीक हो जाएगा.
क्या ठीक हो जाएगा पता है डॉक्टर्स ने क्या कहा है. छबिलि कुच्छ कहना चाह
रही थी पर उसके पति ने उसे चुप करा दिया पर आज छबिलि बहुत उदास थी सारे
रास्ते वो रोटी रही .
मैने भी उससे ज़्यादा कुच्छ पुछ्ने की कोशिश नही की ना ही रसिया कुछ बोल
रहा था. जबकि रसिया को चुप करना बहुत ही मुश्किल काम है. १५ मिनिट के
सफ़तर के बाद हम घर आ गये. मैने ओर छबिली के पति ने छबिलि को सहारा दे कर
उसके बेडरूम तक पहुँचाया ओर फिर मैं रसिया के स्थ अपने कमरे मे आ गये.
मैने रसिया से कहा की यार ऐसा कर कुछ चाय तो बना कर भेज दे उन लोगों को
छबिली को तो बहुत आघात पहुँचा है वो तो बना नही पाएगी ओर दुख मे पता नही
वो कुछ खा पाएँगे या नही. आज रसिया एकदम चुप छाप था उसने इस तरह की कोई
आस नही की थी ना ही मैने की थी हम दोनो ही छबिलि की हालत देख कर बहुत
दुखी थे. रसिया चुप छाप उठा ओर चाय बनाने लगा. चाय बनाने के बाद उसने कहा
परवेज़ तू चाय ले कर चला जा मुझसे नही जया जाएगा.
नही यार वो मुझसे बहुत आत्तेच है मैं नही जा पाऊँगा मैं उसकी आँखों का
सामना नही कर पाऊँगा. तुम ही दे आओ यार प्लीज़
ठीक है मैं दे आता हू. ओर रसिया चाय ले कर चला गया. एक मिनिट मे ही दे कर
वो वापस आ गया.
क्या हुआ इतनी जल्दी कैसे आ गया तू वापस. चाय नही दे कर आया
चाय तो दे आया हू पर मुझसे छबिलि की हालत देखी नही जा रही है. वो बहुत
दुखी है ओर लगातार रो रही है. मुझसे तो वहाँ रुका नही गया. इसलिए मैं
फटाफट भाग आआया.
"खैर अब अपन कर भी क्या सकते है". मैने कहा. "अरे यार छबिलि की एक ननद है
संगीता, जिसके साथ वो मुझे मार्केट मे मिली थी जब उसने मकान के लिए मुझे
हाँ कहा था साथ मे सास भी थी पर मुझे इसकी ननद संगीता समझदार लगी, हम ऐसा
नही कर सकते क्या की संगीता को बुला लें जिससे वो इसे इस दुख के दौर से
बाहर निकालने मे सहायता कर सके."
यार आइडिया तो अच्छा है पर ये भी तो हो सकता है की जिस तरह अभी ये अपने
पति से एकदम विरक्त है तो उसे जुड़े हर व्यक्ति से वो नफ़रत करती हो ओर
उससे भी नाराज़ हो कर मुझे कुच्छ भला बुरा ना कह दे. रसिया ने अपनी राय
रखी.
तुम्हारी बात ठीक है पर हमारे पास ओर कोई ऑप्षन भी तो नही है. मैं इसके
पति से बात करता हू संगीता को बुलाने के लिए.
मैं छबिलि के बेड रूम की तरफ चल दिया. ओर वहाँ जा कर मैने छबिलि की पति
को आवाज़ दी "नरेन्द्र, ज़रा बाहर तो आना"
वो बाहर चला आया "हाँ बोलो, क्या बात है."
तुम्हारी बीवी की तबीयत खराब है तुम एक काम करो उसकी ननद को बुला लो, जो
ये अपना दिल हल्का कर सके"
ठीक कहते हो तुम परवेज़, मुझे संगीता को बुला हिलेना चाहिए मुझसे तो इसका
रोना देखा नही जा रहा है..
ना तो नरेन्द्र ने मुझे कुच्छ बताया ना मैने पुचछा की डॉक्टेर ने क्या
कहा. मैं परदा पड़ा ही रहने दिया. कई बार ये बहुत अच्छा रहता है की कुछ
चीज़े छुपि ही रहें.
तुम अभी चले जाओ ओर संगीता को बुला लाओ.
"ठीक है" कह कर नरेन्द्र मोटर साइकल उठा कर निकल गया.
क्रमशः....................


कुँवारी छबीली -1
कुँवारी छबीली -2
कुँवारी छबीली -3
कुँवारी छबीली -4
कुँवारी छबीली -5
कुँवारी छबीली -6
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raj sharma

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