Thursday, January 31, 2013

कुँवारी छबीली -3

कुँवारी छबीली -3

गतान्क से आगे..................
मैने नशे की कुच्छ गोली रसिया के हाथों मँगवाई ओर शाम का इंतजार करने लगा.
शाम को छबिलि जब मेरे साथ छेद्खनि कर रही थी तो मैने उसे कहा एक ग्लास ले
कर आ वो ग्लास ले कर आई तो मैने उसे वो गोली दी. "या कीं काम की गोली है"
"कुच्छ नही ये सेक्स बढ़ने की गोली है. लेले"
"मेरे तो अइया ही भोत सेक्स च्देड़ॉ है थे चॉवो तो मन्ने सारी रात चोदो.
बैयाँ भी दिन मा मैं जद थन्सु चूदबा चाह री थी तब थॅंका लापाड़िया यार आ
गया. इब गोली छ्चोड़ो ओर मन्ने चोद दो".
तू गोली तो खा एक गोली मैं खा चुका हू. फिर अगर तू नही खाएगी तो तेरे को
तो मज़ा आ जाएगा ओर मैं रह जौंगा ओर हो सकता है के फिर मैं तेरी चूत ही
फाड़ डालु.
"ना बाबा ना चूत मत फाड़ ज्यो. फेर मैं ताँको लंडो काइयान्म ल्यूणगी"
"तू ले तो गोली" फिर देख मज़ा.
मेरे ज़्यादा इन्सिस्ट करने पर उसने गोली खा ली. मैने उसे पकड़ लिया ओर
उसे अपनी जांघों पर बिता लिया ओर उसके चूनचे मसालने शुरू कर दिए. बार बार
अपनी गर्दन पीछे को फैंक रही थी. ओर अपने हाथों से मेरी पीठ को मसल रही
थी.
मैने देखा की रसिया दरवाजे की ओट मैं खड़ा हुआ है ओर हमे ही देख रहा है
पर च्चबिली की उसकी तरफ पीठ थी इस कारण वो उसे देख नही पा रही थी. मैने
उसे अपने पास करते हुए उसके मूह को नज़दीक किया ओर उसे फ्रेंच किस करने
लगा. वो इस मामले मे एकदम ट्रेंड थी ओर बहुत अच्छा फ्रेंच किस करती थी.
अब वो एकदम गरम हो चुकी थी उसने मेरे कपड़े उतार कर फैंकने शुरू कर दिए
थी उसकी इन सब हरकतों के कारण मेरा लॅंड खड़ा हो गया था जिसका उसे पूरा
पूरा एहसास था ओर अब उसने मेरे लॅंड पर अपना हाथ फिरना सुरू कर दिया था.
हाथ फिरने के कारण लॅंड लगभग एक इंचो र बढ़ गया था.
वो मेरी गोदी से अलग हुई ओर उसके मेरी पंद का हुक खोल दिया उर पंद को
निकालने लगी. फिर वो अंडरवेर के तरफ़ बढ़ी ओर उंदर्वेर के नीचे जाते ही
मेरा लॅंड आज़ाद हो गया. वो लॅंड को चूसना चाह रही थी पर मुझे पीछे नंगा
खड़ा रसिया नज़र आ रहा था जो हमे देख कर अपना लॅंड सहला रहा था.
मैने उसकी ब्लाउस की डोरी खींच दी. आज उसने बॅक लेस वाला ब्लाउस पहना था
या कह सकते है की टॉप ही था. डोरी खलते ही टॉप खुल कर उसकी गोदी मे जा
गिरा ओर उसके दोनो संतरे एकदम से आज़ाद हो गये "अरे यो के कर्यो, थे तो
म्हाने नंगी कर दी. म्हरी दोनु च्चातियाँ ने थे उघड़ी कर दी इब मैं के
करू कथे जाउ". मैने उसे हंसते हुए जवाब दिया "यहाँ कौन है जिससे तू अपनी
चूंचिया च्छुपाना चाह रही है. मैं तो तेरी हुँचियों को देख भी चुका हू ओर
चूस भी चुका हू. मुझे उनका रस पीने मे बहुत मज़ा आता है पर अभी मुझे
रसिया की दर्शन के लिए ओर भी कुच्छ करना ढा. मैने उसके घागरे का नाडा
खींच डाला. उसका घांगरा नीचे गिर गया ओर एकदम चिकनी चूत मेरे सामने थी.
"अरे बा रे या के करी थे. नाड़ो क्यू खोलयो थे तो मन्ने पूरी नंगी कर दी
म्हारो भोसड़ो तो पूरो खुलकी दिख ग्यो थाने" ये कहते हुए उसने अपनी चूत
पर अपना हाथ रखने की कोशिश की पर मैने ना उसे चूत पर हाथ रखने दिया ना
उसे गांद पर हाथ रखने दिया. उसके मस्त गांद देख कर रसिया की हालत खराब हो
गई थी ओर वो छबिलि की गांद देख देख कर ताबड़तोड़ लंड को हिलाए जा रहा था.
अब मैं नीचे झुका ओर उसकी चूत पर उंगली फिराई तो देखा की उसकी चूत एकदम
चू रही थी ओर भट्टी की तरह गरम हो रही थी. "थे के चेक करो हो अब तरसाओ मत
थारो लंड म्हरी चूत मे डाल के चोद डालो फाड़ गेरो म्हरी चूत ने या भोत
तंग करे है मन्ने. जल्दी सी बाड दययो इम्मे लॅंड. छ्हैल थे के सोचबा ने
लगगया. डालो नि"
अब मुझसे भी राका नही गया ओर मैने उसकी चूत मे लॅंड पेल दिया ओर छोड़ना
सुरू कर दिया हर झटके के साथ "आअहह आअहह हन ओर ज़ोर सू चोदो भंवर जी" की
आवाज़ आ रही थी ओर मैं इसी जोश मे उसे चोदे जा रहा था रसिया अब तक अपना
पानी निकल कर आराम कर रहा था ओर हमारी चुदाई देख रहा था. अभी कुच्छ टाइम
उसे आराम भी चाहिए था इस कारण वो सोच रहा था की मैं अपनी चुदाई पूरी कर
लू फिर वो लगे.
कुच्छ देर मे मेरा पानी उबाल खाने लगा. ओर फिर छबिलि की गरम चूत के कारण
मैं ओर रुक नही पाया ओर मेरा पानी उसकी चूत मे निकालने लगा तभी रसिया बोल
पड़ा अरे तुम लोग ये क्या कर रहे हो. साले परवेज़ तो ये गुल खिलता है तू
यहाँ पर.
च्चबीई को पता नही था की रसिया पीच्चे च्छूपा हुआ सब देख रहा था इस कारण
वो चौंक गई ओर मैने भी चौकने का नाटक करने लगा. मेरा पानी तो निकल ही
चुका था तो मैने अपना लंड उसकी चूत मे से लॅंड बाहर निकल लिया. जैसे ही
लॅंड बाहर निकाला उसकी चूत से विर्य टपकने लगा.
तो ये काम कर रहे थे. ओर साले निकल लिया पानी.
अब तो इसके पति को पूरी बात बतौँगा की तेरी ओरात मेरे यार के साथ चुदति है.
प्लीज़ थे अइयाँ मति करो, म्हारो आदमी मन्ने मार नखेलो"
मैने भी कहा यार रसिया क्यू हंगामा कर रहा है. करने दे ना तेरे बाप का
क्या जा रहा है.
तो फिर मुझे भी करने दे.
ये सुनते ही छबिलि की आँखों मे चमक आ गई पर उसने हमे दिखाया नही. " मैं
ऐइयाँ ना कर सकु"
"सेयेल तू मेरी जान पर बुरी नज़र रखता है." मैने कहा
अबे तू मुझे समझा रहा है. तू भी तो किसी ओर के माल पर हाथ सॉफ कर रहा है
अब ओ मुझे करने दे नही तो मैं बतौँगा.
बता ना मेरी तरफ से मुझे कोई फ़र्क़ नही पड़ता.
"अरे ना बताइजे बाने, मन्ने मार नखे ला बॉ" थे चाओ बो काम म्हारे साथ कर
ल्यो पर म्हारे बने मत बताइजयो"
रसिया ने मेरी तरफ आख मारी

कहने को तो च्चामिया ने सहमति दे दी की कुच्छ भी कर लो पर उसके पति को मत
बताना. पर दिल ही दिल मे वो घबरा रही थी की वो किस दलदल मे फँस गई है. एक
तो वो पहले ही ग़लत काम कर रही है परवेज़ से चुद्व कर उपर से एक ओर
मुसीबत आ गई है.
अब वो अपने आप को कोष रही थी की किस घड़ी मे वो परवेज़ की तरफ अकरास्ट हो
गई जिस के कारण वो इतना नीचे गिर गई की अपने पति से धोखा करते हुए वो गैर
मर्द से चुद्व भी रही है ओर अब वो अपने पति से ज़्यादा उस गैर मर्द से
प्यार रकति है. ओर हर वक़्त इस फिराक़ मे रहती है की किसी तरह उसके पति
उससे डोर रहे ओर वो परवेज़ से चुद सके खुल कर. जिसमे उसके पति के नपुंसक
होने ओर उसकी दारू का भी बहुत बड़ा हाथ था. वो अब अपने घर के कामो मे लग
गई ओर साथ ही उसका दिमाग़ हर समय इसी उधेड़बुन मे लगा हुआ था की उसने ये
क्या कर दिया है. अब उसमे ओर एक रंडी मे क्या फ़र्क़ रह गया है. अगर वो
हर किसी के सामने अपनी चूत फैला कर लेट जाएगी तो. उसे इस बात पर अफ़सोस
हो रहा था की परवेज़ अपने दोस्त को यहाँ क्यू ले कर आया. पर परवेज़ ओर
रसिया तो हॅमेसा ही साथ रहे है. तो रसिया को तो आना ही था पर सू तो ख़याल
रखना चाहिए था. रसिया ने उसे लोडा क्या दिखा दिया उसकी चूत मे खुजली चलने
लगी. ओर उसने आव देखा ना ताव ओर भाग कर परवेज़ के लॅंड पर बैठ गई ओर बिना
ये देखे की दरवाजा बंद है या नही वो उसके लॅंड की सवारी करने लगी थी.
पर एक बात उसके दिमाग़ मे रह रह कर खटक रही थी की परवेज़ का दोस्त रसिया
उन दोनो को देख कर इतना नाराज़ क्यू दिख रहा था अगर वो परवेज़ का दोस्त
है तो उसे इस बात पर खुश होना चाहिए था की उसके दोस्त को भी चोद्ने के
लिए एक चूत मिल गई है जिसे वो जब चाहे तब चोद सकता है.
पर रसिया तो जैसे कुच्छ ओर ही चाहता था. वो तो ऐसे दिखा रहा था जैसे वो
उसके पति का दोस्त है. कही वो उसे जान बुझ कर तो दलदल मे नही धकेल रहा
है. ओर ये भी तो हो सकता है की परवेज़ प्र रसिया दोनो ही मिले हुए हो.
उसे रसिया से छुड़वाने मे. पर परवेज़ को इससे क्या मिलने वाला था. हो
सकता है रसिया ने उसे कोई लालच दिया हो.
वैसे इस बात की कोई गॅरेंटी नही थी की रसिया उसे चोद देगा तो भी वो उसके
पति को नही बताएगा. हो सकता है उसे चॉड्नी के बहाने वो कोई सबूत इकतहा
करने लगे ओर उसके आधार पर वो उसे ओर चोद्ने को कहे.
अब च्चबिली दोनो से ही नही चुड्ना चाहती थी. क्यूंकी उसने अब ये फ़ैसला
कर लिया था की वो अपने पति के साथ इही खुश रहे गी चाहे उसका पति कैसा भी
क्यू ना हो.
आख़िर उसने फ़ैसला किया ओर फिर परवेज़ को आवाज़ दी. "परवेज़! परवेज़!"
थोड़ी देर मे मैं उसके सामने हाज़िर था. क्या बात है च्चबिली. मैने देखा
उसकी आँखों से आंशु तपाक रहे थे. ओर उसका सारा चेहरा आसुओं से भरा हुआ
था.
क्या बात है तुम इतनी उदास क्यू हो.
"नही ऐइयाँ ही बुला लियो (कुच्छ नही है ऐसे ही)." फिर सुने दुबारा कहा
"एक बात बताओगा"
हन बोलो ना क्या पूच्छना है
रसिया तरो खास दोस्त है ना (रसिया तुम्हारा खास दोस्त है ना).
"हन!" ये कहते हुए मेरा दिल बैठा जा रहा था मुझे लगने लगा था की उसे
रसिया का लॅंड बहुत पसंद आ गया है अब वो रसिया से चुद्वन चाहती है. पर
मैने खूब हिम्मत करके पूचछा "क्यू क्या बात है"
थे आज जानकार मानने छोड़ता बख़त दरवाजो खुलयो छ्चोड़यो तो ना (तुमने आज
जान बूझकर मुझे छोड़ते वक़्त दरवाजा खुला छ्चोड़ा था ना).
नही च्चबिली ऐसा नही है. मैने सफाई देनी चाही.
म्हंसु झूठ मति बोलो. थे कदे भी इत्ता लापरवाह कोनी हो सको चाहे आपन दोणू
ही घर मा एकला होआन पर थे दरवाजो बंद करो पन आज थे जानकार दरवाजो खुलयो
छ्चोड़यो (मुझसे झूठ मत बोलो. तुम कभी भी इतने लापरवाह नही होते हो चाहे
हम दोनो ही घर पर क्यू ना हो. पर आज तुमने जान बुझ कर दरवाजा खुला
छ्चोड़ा था.)
मेरा सर नीचे झुका हुआ था मैं उसकी तीखी नज़रों का सामना नही कर पा रहा था.
छबिलि का ये रूम मेरे लिए एकदम नया था आज तक वो हर वक़्त सेक्स के बारे
मे सोचने वाली लड़की के रूप मे ही मुझे नज़र आती थी पर आज उसकी बात सुन
कर मुझे खुद को गुनाह का एहसास होने लगा था लगने लगा था जैसे मैने बहुत
बड़ा गुनाह कर दिया हो एक लड़की को पाप के रास्ते पर धकेल कर. मैने छबिलि
को पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया ओर उसे चुप करवाने लगा. ओर कहने लगा की
इस सब का गुनहगार मैं हू. मैने ही तुम्हे इस रास्ते पर धकेला है मैं अगर
उस समय रुक जाता तो तू आज भी पति व्रता होती.
ये सुनते ही छबिलि को जैसे अचानक अपना पति याद आ गया ओर साथ ही उसे अपने
पति की हालत का भी एहसास हुआ.
ना थारी के ग़लती है थे तो म्हारी हेल्प ही तो करी है. ग़लती तो मेरी है
जो मैं ही खुद पर काबू कोनी रख सकी. ओर रखूं भी काइयां म्हारे पति देव
मैं तो दाना ही कोनी. बी को तो खड़ो ही कोनी होवे. ना तो थारी ग़लती है
ना म्हरी ग़लती है उपरवालो म्हरी किस्मत मे या ही लिखी है की म्हारे पति
को सुख कोनी मानने तो सुख ढूँढ़नो ही पॅड्सी.
ये कह कर वो रोने लगी ओर मैं उसे चूप करवाने लगा.
बहुत देर तक रोने के बाद वो मेरी बाहों मे ही सो गई. मैने कुच्छ देर तक
तो उसे अपनी गोदी मे सुलाए रखा फिर उसे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. ओर
बाहर आ गया. बाहर आते ही रसिया मिल गया.
क्या हुआ भाई. क्यू रो रही है.
तेरे कारण रो रही है.साले तू इसे छोड़ना चाहता है ना. तो ये अपनी मजबूरी
पर रो रही है.
आबे मैने उसे कब मजबूर किया.
अरे यार उसे तो उपर वाले ने बजबूर कर रखा है.
उसका पति नपुंसक है वो उसे चोद नही सकता. इस कारण ही वो मेरे पास आई थी.
ओर मुझसे चुड गई. वो जितने दिन हो सके केवल मुझसे ही चुड्ना चाहती थी पर
तू बीच मे आ गया ओर उसे चोद्ने के लिए अट्टरक्त करने लगा ओर फिर मजबूर भी
करने की कोशिश की. तो वो बेचारी अपनी किस्मत पर रो रही थी की उपर वाले ने
क्या किस्मत बनाई है. पति चोद नही सकता ओर बिना चुदे रह नही सकती.
आबे फिलोसफी छोड़ ओर बता वो मुझसे चुदेगि या नही.
पता नही
कुच्छ तो पता होगा.
कह नही सकते अभी तू उसे परेसान मत कर ना ही उसे धमकना वो अभी मेंटली ठीक
नही है. उसे कुच्छ आराम करने दे वो खुद जो भी फ़ैसला करेगी वो हमे मंजूर
होना चाहिए.
ठीक है भाई. जैसी तेरी मर्ज़ी.
ये कह कर हम दोनो भी अपने कमरे मे चले गये ओर सोने का उपक्रम करने लगे.
गर्मियों की दिन चल रहे थे इस कारण दिन मे बहुत गर्मी हो जाती थी ओर
राजस्थान मे दिन मे लोग दोपहर के टाइम बाहर नही निकलते है ज़्यादातर सोते
है या वैसे ही आराम करते है. हमने भी कुच्छ देर आराम करने का फ़ैसला
किया.
कुच्छ देर आराम करने के बाद मेरी नींद बाहर से आ रही आवाज़ो से खुली.
बाहर आ कर देखा तो छबिलि कुच्छ कर मार रही थी. मैने गौर किया की अब उसके
चेहरे पर किसी तरह की उदासी नही है. वो एकदम शांत है जैसे उसने कोई
फ़ैसला कर लिये हो. उसने मेरी तरफ मूड कर देखा ओर मुस्कुराइ

कैसी हो छबिलि.
ठीक हू.
बहुत देर तक सोई आज तो.
हाँ तबीयत कुछ ठीक नही लग रही थी, रसिया कहाँ है.
क्यू क्या बात है.
कुछ खास बात नही है. पर मैं तुम दोनो से एक बात करना चाहती थी.
बोलो फिर.
ना दोनो से. एक से नही.
रसिया तो मार्केट गया है कहे तो बुलवा लू. मैने मोबाइल निकालते हुए कहा.
बुला लो. कहना साथ मे कॉंडोम भी ले कर आए.
क्या?
जो कहा है वो करो. ओ क.
ठीक है. ओर मैने अपने मोबाइल से रसिया को फोन लगाया ओर उसे वापस बुला लिया.
१० मिनिट मे रसिया घर पर था. हम दोनो छबिलि के कमरे मे गये.
छबिलि कमरे मे लेती हुई थी. जब हम दोनो कमरे मे गये तो छबिलि लेती हुई थी
वो उठ कर खड़ी हो गई ओर हम दोनो के लिए बैठने के लिए जगह बनाई ओर चाय
बनाने चली गई.
रसिया मुझे देख कर आँखों से सवाल कर रहा था की क्या बात है यहाँ क्यू बुलाया है.
मैने अन्नाभिग्यता जाहिर की. मुझे सच मे मालूम नही था.
कुच्छ ही देर मे छबिलि चाय बना कर ले आई साथ ए कुछ स्नॅक्स भी थे हम सब
ने चाय ओर स्नॅक्स लेने सुरू कर दिए.
क्या बात है छबिली. आज हमे इस कमरे मे क्यू बुलाया है. मैने पूछा.
"वो सामने देख रहे हो" छबिली ने सामने अपने बेडरूम की तरफ इशारा किया.
"वहाँ मेरी सुहग्रात होनी थी जो हो ना सकी. पता है क्यू? क्यूंकी मेरे
पति का लिंग खड़ा नही होता. उन्होने बहुत कोशिश की की किसी तरह वो मुझे
खुश रख सके पर कोई भी लड़की खुश तभी रह सकती है जब उसका पति उसे शारीरिक
रूप से खुश रख सके. वो रोज मेरे लिए नये नये तोहफे ले कर आते थे मेरा दिल
बहलाने की कोशिस करते थे मेरा दिल बहलता भी था पर रात आते आते मुझे फिर
इसी बात का एहसास होने लग जाता था की मुझसे बदकिस्मत कोई लड़की नही हो
सकती जिसका पति उसे खुश नही कर सकता. गली की कुतिया भी अपनी गांद मतकाती
हुई मुझे इस बात का एहसास करवा देती थी की देख मैं भी खुश हू पर तू तो
मेरे बराबर भी नही है. इन दिनो मेरे पति ने भी अपनी कमी के एहसास के कारण
शर्राब पीनी शुरू कर दी थी. मेरे दिल को ये एहसास खाए जा रहा था की एक
दिन मेरे घर पर परवेज़ कमरे की तलाश मे आया. इसके खूबसूरत चेहरे ओर कद
काठी ने मेरे दिल को मोह लिया ओर जो कमरा मैने आजतक किसी को नही दिया था
वो इसे कमरा मैने इसे देने का निश्चय किया. ओर पति के विरोध के बावजूद वो
कमरा इसे दे दिया."
"अगले ही दिन जब मेरे पति ने शराब की बोतल को हाथ लगाया उसके साथ साथ
मुझे भी ये एहसास होने लगा की वो मेरे लिए नही बना है. मेरा दिमाग़ आपे
से बाहर हो गया ओर गुस्से मे मैं पता नही क्या क्या कर गई. ओर नतीजतन मैं
परवेज़ से चुद गई. पहली बार जब चूड़ी तो मुझे इस बात की बहुत आत्मग्लानि
महसूस हुई पर पता नही क्यू मैं अपने आप को रोक नही पाई ओर मैं पति से छुप
छुप कर परवेज़ के अंगों से खेलने लगी. मेरे तन बदन की जो आग छुपि हुई
पड़ी थी उस आग को परवेज़ ने ऐसी हवा दी थी की अब मुझे सेक्स के अलावा
कुच्छ नज़र ही नही आता था."


मैने अपने पति को भुला दिया था ओर मैं परवेज़ के साथ खुश थी. मैं उसके
साथ दुबारा सेक्स करना चाहती थी मुझे इसका मौका भी मिला जब मेरे पति ने
मुझसे कहा की उसे कुछ दिनो के लिए बाहर जाना है. कोई ओर ओरत होती तो वो
उदास होती की उसका पति उससे दूर जा रहा है पर मुझे इस बात से बेहद खुशी
हुई. मैने खुशी खुशी अपने पति को विदा किया क्यूंकी इसके बाद मुझे खुल कर
परवेज़ से सेक्स करने का मौका जो मिलने वाला था. पर तभी ना जाने कहाँ से
रसिया की एंट्री हो गई ओर वो भी उस वक़्त जब मैं परवेज़ से चूदने ही वाली
थी. मेरे तन बदन मे सेक्स की आग भरी पड़ी थी ओर परवेज़ उसे ठंडी करने ही
वाला था. जब मैं सेक्स के बीच मे रह गई तो मेरी चूत ओर ज़्यादा गीली हो
गई ओर मुझे हर हालत मे अपनी चूत मे एक लॅंड चाहिए था.
उसी समय सायद रसिया भी मेरी तरफ आक्रिस्ट हुआ ओर उसने मेरे साथ सेक्स
करने के सपने देखने सुरू कर दिए. पता नही उसने मेरे बारे मे क्या सोचा पर
अब वो मुझसे हर हाल मे सेक्स करना चाहता था ओर इस काम के लिए उसने मुझे
लंड दिखा कर उकसाने का प्रयत्न किया ओर मैं उसके जाल मे आने ही वाली थी.
की तभी मुझे परवेज़ नज़र आ गया ओर मैं सेक्स की चाह से भरी परवेज़ से चुद
गई. मैने उस समय ये भी नही देखा की दरवाजा बंद है या नही ओर रसिया हमे
देख रहा है या नही. मैने परवेज़ पर पूरा भरोसा किया. पर उसने इस बार मेरे
साथ धोखा किया था. उसने जान बुझ कर रसिया को हमारी रति क्रीड़ा देखने का
रास्ता दिया था सायद वो भी चाहता था की मैं रसिया से चुड़ू.
तुम दोनो ने ही मुझे रंडी समझ लिया था सायद तुम सोच रहे थे की मुझे लंड
की इतनी भूख है की तुम दोनो मुझे साथ मे भोग सकते हो या मैं हर किसी से
चूड़ने को तय्यार हो जाऊंगी.
रसिया तुझसे तो मैने कोई उमीद लगाई ही नही थी पर परवेज़ तूने मेरे भरोसे
को तोड़ा है. अब जबकि तुम मुझसे सेक्स करना चाहते हो ओर मुझसे सेक्स का
सही अर्थ ही तुमने बताया था तो परवेज़ अब तुम्हे हक़ है की तुम चाहो तो
खुद मुझसे सेक्स करो या किसी ओर के हवाले कर दो. आज जैसा तुम चाहोगे मैं
वैसा ही करूँगी क्यूंकी आज मेरे जीवन का आख़िरी दिन है आज मैं तुम्हारी
हू. पर मैं एक रंडी का जीवन नही जी सकती इस लिए मैं अपने जीवन को ख़त्म
कर रही हू. मैने अपने पति के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है. आओ जो मज़े
लेना चाहते हो ले लो अपने दोस्त को साथ लेना चाहते हो तो ले लो.
मेरी ओर रसिया दोनो की गर्दन शर्म से झुकी पड़ी थी. हमे सूझ नही रहा था
की क्या कहे. हम दोनो ही इस ओरत के गुनहगार थे. ये बेचारी तो अपना जीवन
किसी तरह काट ही रही थी हमने ही आ कर इसके जीवन मे आग लगाई थी.
क्रमशः....................

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