Tuesday, September 1, 2015

FUN-MAZA-MASTI पराया पिया प्यारा लगे--1

FUN-MAZA-MASTI


पराया पिया प्यारा लगे--1




हमारे पड़ोस में ही, एक नेपाली परिवार रहता था।
बाहदुर, 30 साल का एक दुबला सा नेपाली और उसकी 28 साल की बीवी मिष्टी।
उनके कोई औलाद नहीं, पर मियाँ बीवी अपने आप में बहुत खुश हैं और दोनों ही बहुत मिलनसार हैं।
बाहदुर सरकारी नौकरी में है और महीने में, 20 दिन तो वह राजधानी में ही रहता है।
हम जब उनके पड़ोस में आए तो नीरू का मिष्टी से परिचय हुआ और मिष्टी हमारी मुनिया से बहुत प्यार करने लग गई, जो उस समय साल भर की रही होगी।
धीरे धीरे, नीरू और मिष्टी पक्की सहेलियाँ बन गई।
मैं उसे, मिष्टी भाभी कह के बुलाता था।
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वह, अक्सर हमारे घर आती रहती थी और मैं उससे नीरू की मौजूदगी में भी दो-अर्थी मज़ाक कर लिया करता था।
वह, कभी बुरा नहीं मानी और हँसती रहती थी।
मिष्टी भाभी, बिल्कुल गोरी चिट्टी और भरे बदन की मस्त औरत थी।
जैसे पहाड़ी जातियों में होता है, एक दम गोल चेहरा, कद कुछ नाटा, और जवान अंगों में पूरा उभार।
मैं हमेशा कल्पना किया करता था की मिष्टी भाभी को जम के चोदूँ और मिष्टी मेरी भी, मेरी बीवी जैसी दोस्त बन जाय और उन दोनों औरतों को एक साथ चोदूँ।
आख़िर, मुझे मौका मिल ही गया।
मेरे ऑफीस से खबर आई की मुझे अगले ही दिन, काठमांडू जाना है।
मैं शाम को घर पहुंचा।
उस समय घर में, मिष्टी भाभी भी मौजूद थी।
मैंने उन दोनों के सामने ही, यह बता दिया की मुझे 3–4 दिनों के लिए काठमांडू जाना है और कल की नाइट बस से मैं काठमांडू जाऊंगा..!
मिष्टी भाभी, थोड़ी देर में ही अपने घर चली गई।
आज की रात, मैंने नीरू को जम के चोदा और उसने भी मस्त होके चुदवाया, क्योंकि आने वाले तीन चार दिन, हमें अलग रहना था।
दूसरे दिन, मैं ऑफीस से दोपहर में ही आ गया।
घर पहुँचने पर, नीरू बोली तुम्हारे लिए, एक बहुत ही बड़ी खुशख़बरी है..! बोलो, क्या इनाम दोगे..! ??
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मैं अरे, पहले यह तो बताओ की वह खुशख़बरी क्या है..! ??
नीरू तो सुनो, दिल थाम के..! तुम्हारे साथ, मिष्टी भी काठमांडू जाना चाहती है..! उसका हज़्बेंड, वहाँ बीमार है और वह उसे देखने जाना चाहती है..! और हाँ, तुम्हारे साथ ही वापस भी आएगी..!
मेरा मन तो बल्लियों उछलने लगा पर मैं अपनी खुशी को छिपाते हुए बोला इसमें, खुश खबरी वाली क्या बात है..! ठीक है, तुम्हारी सहेली है और पड़ोसी है तो उसे मैं वहाँ उसके हज़्बेंड के पास पहुंचा दूँगा..! तुम भी खुश, तुम्हारी सहेली भी खुश और उसका पति भी खुश..! जो वहाँ बैठा, मुट्ठी मार रहा होगा..! पर मुझे क्या मिलेगा..!
नीरू नौटंकी तो देखो, जनाब की..! अब आ के मुझे मत बोलना की तुम्हें भी वहाँ जा के मूठ मारनी पड़ी..! बंदोबस्त करके, तुम्हारे साथ भेज रही हूँ..! वो हँसती हुई बोली।
मेरा अभी उसे कुछ करने का मूड हो ही रहा था की दरवाजे की घंटी बजी।
नीरू ने दरवाजा खोला तो मिष्टी भाभी थी।
वह अंदर आई और मुझे देख बोली क्यों, कहीं में ग़लत टाइम पर तो नहीं आ गई..! ??
खैर, हमारी बस रात के ठीक 9 बजे चली।
11 बजने तक, बस की सारी बत्तियाँ बुझा दी गई और बस पहाड़ी रास्ते पर हिचकोले खाती, काठमांडू की तरफ बढ़ रही थी।
मिष्टी भाभी, बिल्कुल मेरे बगल वाली सीट पर बैठी हुई थी।
जब बस को झटका लगता तो हम दोनों के शरीर, आपस में रगड़ खा जाते।
इसका नतीज़ा यह हुआ की मैं उत्तेजना से भर गया और मेरा लण्ड पैंट में, एकदम खड़ा हो गया था।
फिर, मिष्टी भाभी को नींद आने लगी और कुछ देर बाद, उसका सिर नींद में मेरे कंधे पर टिक गया।
उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ, मेरी कोहनी से टकरा रही थी।
मैंने भी कोहनी का दबाव, उसकी चूचियों पर बढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन, वह वैसे ही बिना हीले डुले सोई रही, इससे मेरी हिम्मत और बढ़ी।
मैंने अपने हाथ, एक दूसरे से क्रॉस कर लिए और एक हाथ से उसके बूब को हल्के से पकड़ लिया।
वह, वैसे ही सोई रही।
अब तो मेरी और हिम्मत बढ़ गई और मैंने उसकी चूची पर हाथ का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया और जब उसकी कोई हरकत नहीं देखी तो मैं उसकी चूची को दबाने लगा।
बस में अंधेरा था और केवल बस के चलने की ही घड़ घड़..! की आवाज़ आ रही थी।
मेरा लण्ड पैंट फाड़ के बाहर आने के लिए, मचल रहा था।
बड़ी मुश्किल से उसे कस के दबा के, काबू में किए हुए था।
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मिष्टी भाभी, मेरे कंधे पर अपना सर रखे चुप चाप सोई हुई थी।
मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने हाथ उसकी ब्लाउज में सरका दिया और उसकी भारी चूची को कस के पकड़ लिया।
फिर उसे जैसे ही कस के दबाया, मिष्टी बोल पड़ी इतने ज़ोर से मत दबाइए..! दुख़्ता है..!
मैं तो यह सुनते ही, खिल उठा और अपनी इस खुशी को अपने आप तक नहीं रख सका और मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
उसने भी, एक हाथ मेरी पैंट पर मेरे लण्ड पर रख दिया और उसे पैंट पर से हल्के हल्के दबाने लगी।
मैंने नीचे झुक के, उसकी साड़ी थोड़ी उँची उठा ली और हाथ भीतर डाल दिया।
मेरा हाथ नंगी चूत से टकराया औरमैं झूम उठा की भाभी भी मज़ा लेने की तैयारी करके ही आई है।
जैसे ही मैंने चूत में उंगली डालनी चाही, उसने साड़ी पर से मेरे हाथ को रोक दिया और बोली ऐसे नहीं, कोई देख लेगा..!
तब उसने सीट के नीचे रखी, अपनी बैग खोली और उसमें से एक चादर निकाल ली और उसे लपेट के ओढ़ ली।
मैंने फिर उसकी चूची पर हाथ रख दिया और उसे ब्लाउज पर से दबाने लगा तो वह फिर बोली ब्लाउज का हुक खोल कर, ठीक से करो..! ज़्यादा मज़ा आएगा..!
मैंने उसकी ब्लाउज के हुक खोल दिए, अंदर ब्रा भी नहीं थी।
चूची फुदक के, बाहर आ गई।
इस बीच, उसने वह चादर मेरे ऊपर भी लपेट दी।
अब हम दोनों एक चादर में लिपटे हुए थे और भीतर हम क्या हरकत कर रहे हैं, बाहर से उसका कुछ भी पता नहीं चल रहा था।
फिर, उसने मेरी पैंट की चैन खोल दी और चड्डी को एक और कर के, लण्ड को आज़ाद कर लिया।
इसके बाद, वह जैसे बहुत नींद में हो और सोना चाहती हो.. वैसे कुछ अंदाज़ में, पाँव सीट से बाहर कर सो गई.. लेकिन, वह कुछ ऐसे अंदाज़ में सोई की उसे मेरे लण्ड को मुख में लेने में कोई कठिनाई नहीं हुई..
जिसे, वह अगले आधे घंटे तक चूसती रही। जब तक की मैं उसके मुख में नहीं झड़ा।
मेरे रस को वह, पूरा का पूरा गटक गई।
फिर मैंने भी उसकी चूत में उंगली करके, उसकी आग ठंडी की और हम दोनों चादर में लिपटे ही सो गये।
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भोर में चार बजे, हमारी बस काठमांडू पहुँच गई।
मैंने उससे पूछा मिष्टी भाभी, किसी लॉज में चलते हैं..! थोड़ा आराम करने के बाद, अपने हज़्बेंड के पास चली जाना..!
वह मेरी बात कहते ही, मान गई।
मैंने एक अच्छे होटल में, डबल बेड वाला कमरा लिया।
कमरे में पहुँचते ही, वह बाथरूम में भागी और जैसे ही दरवाजा बंद करने को हुई मैं भी दरवाजे पर पहुँच गया और उसके साथ साथ, बाथरूम में घुस गया।
वह हड़बड़ा के बोली क्या है..! मुझे पेशाब करना है, बाहर जाओ..!
मैं नहीं जानेमन, तुम मुतो..! मैं तुम्हें मूतते हुए, देखना चाहता हूँ..!
बस की रात भर की यात्रा से, वह पूरी मुतासी थी और फ़ौरन अपनी साड़ी, पेटिकोट सहित अपनी कमर तक उँची की और मेरी तरफ अपनी गोल गोरी गाण्ड कर के बैठ गई और बहुत ही तेज़ी के साथ सर र र र सर र र र..! करके मूतने लगी।




मैं एक दम गरम हो उठा और जैसे ही हम दोनों कमरे में आए, मैंने उसकी साड़ी उतार दी, फिर ब्लाउज खोला और उसका पेटिकोट भी खोल दिया।
ब्रा और पैंटी तो उसने पहले से ही नहीं पहन रखी थी और मेरे सपनों की रानी मिष्टी भाभी, अब मेरे सामने बिल्कुल नंगी थी।
मैंने जैसे ही उसकी चूची पकड़ी, वह बोल पड़ी पहले, अपने कपडे तो उतार दो..!
मैं भी फ़ौरन, पूरा नंगा हो गया।
अब मैंने मिष्टी भाभी को चित लेटा दिया और मैं उसके मुख के दोनों तरफ घुटने मोड़ कर बैठ, उसकी चूत पर झुक गया।
अब मेरा लण्ड उसके मुख के सामने था और मेरे चेहरे के ठीक सामने, उसकी खुली चूत मुझे दावत दे रही थी।
उसने मेरा लण्ड, मुख में ले लिया और इधर, मैं उसकी माल पुए सी चूत पूरी जीभ भीतर घुसा कर, चाटने लगा।
हम दोनों ही, काम वासना में पुरे व्याकुल थे।
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तभी, वह बोली चूसना चाटना बाद में, पहले इसे भीतर डाल के मुझे चोदो..! बस से ही, तुमने मुझे पागल कर रखा है..!
मैं इतना सुनते ही, उसकी टाँगों के बीच आ गया और उस की चूत के गुलाबी छेद में अपना 8 इंच का लण्ड, एक ही झटके में पूरा पेल दिया।
तभी वह बोली इतने ज़ोर से, पेलोगे तो मेरी चूत फट जाएगी..! मेरे पति को, शक हो जाएगा..! ज़रा प्यार से, धीरे धीरे चोदो..! मैं कोई भाग थोड़े ही रही हूँ..!
मैं मिष्टी भाभी, मैं तुम्हें चोदने का सपना बहुत दिनों से देख रहा था..! लेकिन, डरता था की कहीं तुम नाराज़ ना हो जाओ..!
मिष्टी नहीं, ऐसी बात नहीं है..! मैं तो खुद तुम से चुदवाने को बहुत व्याकुल रहती हूँ..! तुम्हारी बीवी ने बताया था की तुम लगातार घंटो तक, चूत में लण्ड डाल कर हिलाते रहते हो..! तुम्हारे एक बार झड़ने तक, वो चार पाँच बार झड़ जाती है..! मेरा पति तो चुदाई के मामले में बीमार है, चूत में लौड़ा डाला नहीं की झड़ गया..! मैं तो तड़पति रह जाती हूँ..! तुम्हारी बीवी, बड़ी भाग्यशाली है के उसे तुम जैसा चुड़क्कड़ पति मिला..! आज, मेरी चूत की प्यास पूरी तरह मिटा दो..!
मैं बोला घबराओ नहीं..! आज तो मैं तुम्हारे चूत का वो हाल बनाऊंगा की तुम जिंदगी भर मुझे याद रखोगी..!
मिष्टी बातें, मत बनाओ..! अब ज़रा, ज़ोर ज़ोर से मेरी चूत को चोदो..! पेलो, अपना लण्ड पुरे ज़ोर से..!
मैंने भी चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी।
अब मेरा लण्ड एक पिस्टन की तरह, उसकी चूत से अंदर बाहर हो रहा था।
मिष्टी हाँ!! और ज़ोर से..! ऐसे ही, धक्के मारो..! मैं आ रही हूँ..! हाय!! मेरे राजा..! आज, मेरी चूत का गरमी उतार दो..! मैं बहुत दिनों से प्यासी हूँ..!
मैं जीतने ज़ोर से उसे चोदता, वह उतनी ही तड़प तड़प के और माँग रही थी।
वो हाँ!! और ज़ोर से चोदो..! मेरी चूत फाड़ डालो..! चोदो और चोदो..! चोदते रहो..! हाय!! पेलो ना..! और कस के पेलो, अपना लण्ड..! हाँ..! पूरा लण्ड डाल कर चोदो..! हाय मैं गई..! ओह..! ओहआ आ आ आ आ आ आ आ..! और धीरे धीरे, वह सुस्त पड़ गई।
पर मैं उसकी रस से भरी चूत में वैसे ही, फ़च्छ.. फ़च्छ.. कर के लण्ड पेल रहा था।
उसके रस से, चूत बहुत चिकनी हो चुकी थी और मेरा लण्ड बार बार स्लिप हो रहा था।
तब मैंने अपना लण्ड, उसकी गाण्ड के छेद से टीका दिया।
मिष्टी हाय!! गाण्ड में मत पेलो..! बहुत दुखेगा..!
मैं मिष्टी भाभी..! प्लीज़, एक बार जी भर के अपनी गाण्ड मार लेने दो..! मैंने बहुत कोशिश किया, लेकिन मेरी बीवी मुझे अपनी गाण्ड नहीं मारने देती..!
मिष्टी मुझे मालूम है..!
मैं क्या, तुम लोग ऐसी बातें करती हो..!
मिष्टी हाँ!! हम लोग और भी बहुत कुछ करते हैं..!
मैं सही में..! पहले गाण्ड मारने दो, फिर बातें बताना..!
मेरा लण्ड और उसकी गाण्ड, दोनों चूत के रस से चिकनी थी और मुझे उसकी गाण्ड में लण्ड पेलने में ज़्यादा परेशानी नहीं हुई।
फिर, जैसे मैंने उसकी चूत मारी, वैसे ही गाण्ड भी मारी और लगभग 15 मिनट बाद, मैं उसकी गाण्ड में झड़ गया।
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गाण्ड मारने के बाद, मैंने पूछा अब बताओ, तुम को कैसे मालूम की मैं अपने बीवी की गाण्ड मारना चाहता हूँ..! और वो मुझे अपनी गाण्ड नहीं मारने देती..!
मिष्टी एक दिन, तुम कहीं बाहर गये थे..! मेरा पति भी नहीं था..! मुझे अकेले सोने में डर लग रहा था, इसलिए उस दिन मैं सोने के लिए तुम्हारे घर गई थी..!
रात में नीरू के हाथों का दबाव अपनी चूची पर पा कर, मेरी नींद खुल गई और मैं बोली अरे..! ये क्या कर रही हो..! ??
वो कुछ नहीं..! मैं सोच रही हूँ की मेरा पति तुम्हें चोदने का ख्वाब क्यों देखता है..! जब भी वो मुझे चोदता है तो अक्सर तुम्हारी बातें करता रहता है..!
मैं तो क्या देखा..! ??
वो अभी तो सिर्फ़ चूची छुई है..! अब तुम्हारी चूत देखूँगी..!
और उसने मेरा पेटिकोट खोलना शुरू कर दिया।
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साड़ी तो मैं पहले ही खोल कर सोई थी, और पैंटी भी नहीं पहनी थी।
फिर उसने मेरा ब्लाउज और ब्रा भी खोल दिया।
अब नीरू, मेरी चूचियों को बारी बारी से चूसने और मसलने लगी।







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