Monday, April 6, 2015

FUN-MAZA-MASTI मेरी बीती जिंदगी की कहानी --2

FUN-MAZA-MASTI


 मेरी बीती जिंदगी की कहानी --2


 मुझे तब पता चला की सीमा की माँ उसकी सगी माँ नहीं थी बल्कि वो अपनी सौतेली माँ के हाथों पाली गयी थी...मैंने उससे उसकी सगी माँ के बारे में नहीं पुचा...न जाने क्यों मुझे उस समय लगा की मेरा चुप रहना ही ठीक है.....सीमा भी अपने पैर मोड़ कर घुटने पर सर झुका के बैठी हुई थी...बहुत देर तक कोई बात नहीं की हमने...लेकिन हम दोनों ही जाग रहे थे.......यह रात इतनी लम्बी थी की कटने का नाम ही नहीं ले रही थी.....काफी देर के बाद सीमा की आवाज सुनाई दी...
सीमा – सुनिए मुझे पेशाब करना है.
मैं – कहाँ?
सीमा – मुझे क्या पता...इसीलिए तो आपसे कह रही हूँ.
मैं – मुझसे क्यों कह रही हो. मैं क्या कर सकता हूँ इसमें.
सीमा – अरे मैं अकेली कहाँ जाउंगी..यहाँ कहीं ऐसी जगह भी नहीं दिख रही की जिसके पीछे......आप कुछ कीजिये न.
मैं – मेरे करने से तुम्हारा काम नहीं होगा. तुम्हें खुद ही करना होगा. मैं क्या करूँ?
सीमा – आप जरा जा के कहीं देखिये न कोई जगह ऐसी...
मैं – ठीक है. कैसी जगह देखनी है ?
सीमा – ओफ्फ ओ आपसे तो कुछ कहना ही बेकार है.....आप बैग ले लीजिये और मेरे साथ चलिए....
मैं बैग ले के उसके पीछे चल दिया....बस अड्डे पर इस समय बहुत ही कम लोग जाग रहे थे..जिनकी दुन्कानें खुली हुई थी वो भी लेते हुए थे और किसी ग्राहक के आने पर ही उठाते थे.....हमें एक कोने में एक बस खड़ी दिखी...उसके पीछे अँधेरा था....सीमा और मैं उसी बस के पीछे आ गए....मैं तो बैग ले के खड़ा था बस...सीमा ने ही चरों तरफ फिर से नज़र दौडाई..और जब उसे इत्मिनान हो गया तो उसने अपनी साड़ी उठानी शुरू की....मैं भी वहीँ खड़ा था और सीमा को देख रहा था...सीमा ने साड़ी घुटनों तक उठा ली थी और तभी उसने मुझे देखा और पाया की मैं उसे ही देख रहा हूँ....उसे तुरंत मुझे कहा की यहाँ क्या देख रहे हो उधर मुड जाओ........मैं तुरंत पीछे मुड गया....कुछ देर में मुझे एक सीटी जैसी आवाज सुनाई दी.....मैं यह जनता था की सीमा पीछे क्या कर रही है...मुझे उस तरफ मुड के नहीं देखना चाहिए...लेकिन इस आवाज ने तो जादू जैसा कर दिया था....मैं न चाहते हुए भी पीछे मुड गया....सीमा अपने घुटने मोड़ के उकडू बैठी हुई थी और उसका सर नीचे झुका हुआ था..वो नीचे देख रही थी..मैंने उसे इस हालत में बैठे हुए देखा और मेरा ध्यान जैसे ही नीचे की ओर जाने को हुआ सीमा ने उपर देख लिया....एक पल के लिए हमारी नजरें मिली....सीमा को एहसास हुआ की मैं कहाँ देख रहा हूँ और मुझे एहसास हुआ की सीमा ने मुझे देख लिया है......लगभग एक ही साथ मैं वापस पीछे मुदा और सीमा उठ कर खड़ी हो गयी..........कुछ देर तक न उसने मुझसे कुछ कहा न मैंने उससे..हालाँकि मैं डर गया था की अब सीमा बहुत नाराज होगी.............हम लोग वापस उसी जगह पर आ के बैठ गए...कुछ देर चुप रहने के बाद सीमा बोली...
सीमा – आप पीछे क्यों मुड़े थे?
मैं – पता नहीं. गलती हो गयी.
सीमा – हाँ गलती तो हो गयी. लेकिन जब मैंने कहा था की मत मुड़ना तो फिर क्यों मुड़े?
मैं – वो सीटी जैसी आवाज सुनाई दे रही थी वो बहुत अच्छी लग रही थी...उसे ही सुनने के लिए मुड गया था...
सीमा – वैसे तो बड़े भोले बनते हैं लेकिन इन सब बातों में बड़ा दिमाग चलता है आपका.
मैं – माफ़ी मांग तो रहा हूँ....आगे से नहीं करूँगा ऐसा.
सीमा – मैं नाराज नहीं हो रही हूँ. माफ़ी मांगने की जरुरत नहीं है......
उसके बाद हमारे बीच कोई बात नहीं हुई....हम दोनों ही इस कोशिश में थे की सुबह होने के पहले तक जागना नहीं है...और फिर धीरे धीरे रौशनी होने लगी.....और फिर रौशनी के साथ साथ पेट में गुड गुड भी होने लगी....फिर ख्याल आया की एक ये मुसीबत भी तो है.....इसका क्या करें......शायद सीमा का भी वही हाल था...गाँव में रहने वालों की दिनचर्या कुछ ऐसी होती है की वो सुबह जल्दी ही उठ के अपना पेट साफ़ कर लेते हैं.....लेकिन यहाँ तो वो संभव नहीं था..गाँव में तो खुले में काम चल जाता है लेकिन यहाँ तो कहीं कुछ खुला था नहीं....हम लोग एकदम सांस रोके बैठे रहे वहीँ बहुत देर तक..इस उम्मीद में की पेट कुछ देर में शांत हो जायेगा..लेकिन ऐसा हुआ नहीं...आखिरकार सीमा ने ही कहा की यहीं बस अड्डे पर सुलभ शौचालय है...वहां चलते हैं..हम वहां गए तो पता चला की वहां जाने के लिए पैसे देने पड़ते हैं....एक तो हमारे पास वैसे भी पैसे नहीं थे..उपर से पैसे देकर पेट साफ़ करने का ख्याल कुछ विचित्र ही लग रहा था...फिर भी मरता क्या न करता..सो वो भी किया.....और फिर वापस अपनी जगह पर आ के बैठ गए.......न सीमा जानती थी और ना ही मैं की हमें आगे क्या करना है...



आज का समय
मैंने अपनी पूरी तयारी कर ली थी.....लाइट बंद लैपटॉप चालू...लैपटॉप पर मीनू की नंगी पिक्स को मैएँ स्लाईड शो में लगा दिया था....और अपने लंड की सेवा करना शुरू कर दिया था......मैंने मीनू को कॉल किया लेकिन दो रिंग जाते ही उसने कॉल काट दिया.मैं समझ गया की अभी वो कहीं होगी जहाँ वो बात नहीं कर सकती है...मैंने दोबारा कॉल नहीं किया....सामने स्क्रीन पर उसी की पिक्स को देखते देखते अब मुझे लंड में थोडा सा तनाव महसूस होने लगा था...की तभी मेरे एक मेनेजर का कॉल आ गया..मैं उसे कल के काम के बारे में निर्देश दे रहा था की तभी बीप बजी...मैंने अपने फ़ोन की स्क्रीन पर देखा तो पाया की मीनू का कॉल वेटिंग पर था....अपने मेनेजर को सब कुछ समझा के मैंने कॉल रखा और फिर मीनू को कॉल किया....इस बार कॉल एक ही रिंग में उठ गया...
मीनू – प्रणाम जीजू
मैं – खुश रहो बेटा. कहा थी तुम? बिज़ी थी कहीं?
मीनू – जी. वो सबके साथ बैठ के खाना खा रही थी इसलिए आपका कॉल नहीं उठा पाई.
मैं – कोई बात नहीं. घर पर सब कैसे हैं?
मीनू – यहाँ सब ठीक हैं जीजू. मेरे पेपर चल रहे हैं न....
मैं – अच्चा तुम्हारे भी पेपर चल रहे हैं....फिर तो आजकल बहुत पढ़ती होगी.
मीनू – जी. पढना तो पड़ता ही है न. आप कहिये न आपने कैसे कॉल किया आज.
मैं – अरे कुछ खास नहीं...बस ऐसे ही...लैपटॉप पर तुम्हारी पिक्स देख रहा था तो सोचा की तुम्हारा हाल भी पूछ लूं..
मीनू – ओह गॉड...मतलब आपने उस मूड में मुझे कॉल किया था?
मैंने – हाँ. क्यों?
मीनू – तो फिर मैंने जब अप्पको कॉल बेक किया तो मेरा कॉल वेटिंग में क्यों था?
मैं – मैं अपने मेनेजर से बात कर रहा था.
मीनू – झूठ...इस मूड में आप अपने मेनेजर से बात कर ही नहीं सकते. सच सच बताईये आप किस्से बात कर रहे थे? मेरा वेट क्यों नहीं किया?
मैं – तुम्हारा ही वेट कर रहा था और सच में अपने मेनेजर से ही बात कर रहा था...
मीनू – झूठ बोल रहे हो......मा-द-र-चो-द
(मीनू को पता था की गन्दी भाषा मुझे बहुत मजा देती है )



 मैं – मादरचोद मैं नहीं मादरचोद तेरा बाप.
मीनू – हाँ वो तो होगा है. उसने मेरी माँ को नहीं चोदा होता तो मैं कैसे पैदा होती...
( शायद मीनू भी पहले से ही गरम हो के बैठी थी....आम तौर पर कुछ देर बात करने के बाद हम लोग धीरे धीरे चुदाई की बात पर आते थे..लेकिन आज तो वो सीधे ही शुरू होने को तैयार थी..मैंने भी सोचा की ठीक ही है..समय भी बचेगा...)
मैं – मादरचोद अपने माँ को चोद के बनते हैं. तेरी माँ को नहीं बल्कि अपनी माँ को यानी तेरी दादी को चोदने वाला आदमी है तेरा बाप.
मीनू – मेरी दादी को? हा हा हा हा...उस बुढ़िया को तो मेरे दादा ने भी नहीं चोदा होगा.
मैं – वो हमेशा से इतनी बुढ़िया नहीं रही होगी..अपनी जवानी में तो वो भी टंच माल रही होगी...जरा सोच जिस चूत से तेरे बाप जैसी चुदक्कड़ औलाद निकली है वो कितनी बड़ी चुदैल रही होगी..
मीनू – अच्चा जी....तो आज मेरी नहीं बल्कि मेरी दादी की लेनी है आपको....वो इतनी ही अच्छी लगी हो तो कहो तो उसी को दे देती हूँ फ़ोन...फिर घुस जाना उसी के अन्दर....
मैं – हाँ हाँ तेरी दादी क्या मैं तो तेरी माँ के अन्दर भी घुस जाऊं....तू मौका तो दे...
मीनू – मुझसे क्या मौका मांग रहे हो आप....जिसके अन्दर घुसना है उससे मौका मानगो न..
मैं – सच मीनू दिलवा दे न अपनी माँ की एक बार..जितना कहेगी उतना पैसा दूंगा..तुझे भी और तेरी माँ को भी...
मीनू – कितनों को चोद के आपका पेट भरेगा जीजू आप कितने बड़े बहनचोद हो...
मैं – बहनचोद होगा तेरा .....
(मुझे याद आया की मीनू का कोई भाई नहीं है..इसलिए मैंने बात पूरी नहीं की ....लेकिन मीनू के समझ में तो आ ही गया था...)
मीनू – हाँ हाँ बोलो न आगे...रुक क्यों गए...बोलो की बहनचोद तो मेरा भाई है...आपको तो पता है न जीजू की मेरा कोई भाई नहीं है..और भगवन का शुक्र मनाओ आप की मेरा कोई भाई नहीं है..अगर होता तो मैं उसे ही देती अपनी चूत....आपके पास नहीं आती...मेरा भाई मेरी उम्र का होता हमेशा मेरे साथ होता..कितना मजा आता मुझे....आप तो मुझे कितने कितने दिन याद ही नहीं करते..और वो तो मेरी दिन रात सेवा करता....
मैं – चल चल ज्यादा नाटक मत कर.. तू अपने भाई को देती तो तुझे ये महंगे महंगे गिफ्ट कौन देता....बोल?
मीनू – गिफ्ट तो मेरे जीजू जी देते...ऐसा थोड़ी न की मैं सिर्फ अपनी भाई से चुदती..मैं तो आपसे भी चुदती..और आपसे खूब सारा गिफ्ट लेती...
मैं – तू अपनी माँ से भी बड़ी रंडी है...
मीनू – वो तो मैं हूँ...अच्छा सुनो..गिफ्ट से याद आया...मुझे अगले हफ्ते अपने दोस्तों के साथ एक ट्रिप पर जाना है..कुछ पैसे चाहिए....
मैं – कितनी बार कहा है की पैसों की बात अपनी दीदी से किया कर....कितने चाहिए?
मीनू – ज्यादा नहीं बस दस हजार..
मैं – ठीक है ले लेना उससे..लेकिन पहले दस हजार के लायक कुछ काम तो कर..इतनी देर से मेरा लंड ठीक से तन के खड़ा भी नहीं हुआ...चल जरा जल्दी से मजा तो दे मेरे लंड को...
मीनू – नहीं जीजू . प्लीस आज नहीं...पीरियड भी चल रहा है और पेपर भी चल रहे हैं....आज जाने दो...मैं जैसे ही अपनी पार्टी से फ्री होउंगी अगले हफ्ते वैसे ही आपको पूरा मजा दूँगी...
मैं – तो क्या अभी के पैसे अडवांस में ले रही है>/
मीनू – हाँ जीजू....प्लीस दे दो न.....बहुत जरुरत है. मैंने सब दोस्तों से वादा कर लिया है....
मैं – तू अपनी दीदी से बात करना. वो चाहेगी तो दे देगी. तुझे पता है मैं इस बारे में कुछ नहीं कहता....
अब तक इतना तो पता चल ही गया था की आज रात मुझे मजा नहीं मिलने वाला है......मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं....वैसे भी कल सुबह जल्दी जाना है साईट पर..तो आज सो ही लेते हैं चैन से...मीनू को मैंने सीमा से बात करने को कह दिया था..मुझे पता था की सीमा उसे इतनी आसानी से पैसे नहीं देगी...सीमा ऐसे मौकों पर बहुत फायदा उठती है.....वो क्या क्या करवाएगी ये तो मुझे तब ही पता चलेगा जब अगली बार सीमा से फुर्सत में बात होगी......अपने आधे ताने लंड को उसके हाल पर ही छोड़ कर मैं सो गया....


दिन शुरू हो चूका था...बस अड्डे पर धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी थी...लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे..और हम लोग वहीँ एक किनारे एक कोने में छुपे हुए से बैठे थे...आते जाते लोगों को देख रहे थे...दोपहर आते आते पेट ने एक बार फिर आतंक मचाना शुरू कर दिया था..मारे भूख के कुछ समझ नहीं आ रहा था.....हमारे पास पैसे बस उतने ही थे जितने भैया ने हमें घर से निकालते समय दिए थे...उसमे से भी पिचली रात का खाना खाने में 40 रुपये चले गए थे....वैसे तो हमने सिर्फ दाल रोटी ही खायी थी लेकिन दो लोग जिनकी खाने की आदत गाँव वाली हो..वो शहर में कम भी खाते हैं तो भी दस दस रोटी तो खा ही जाते हैं.....पैसे कम सही लेकिन फिर भी पेट को यह सब कुछ समझ में नहीं आता न..उसे तो भूख लगनी ही है....बहुत देर तक हम लोगों ने अपने आप पर काबू रखने की कोशिश की..लेकिन फिर हम दोनों की ही हिम्मत टूट गयी..हम लोग फिर से उसी होटल में गए जहाँ रात का खाना खाया था..लेकिन इस बार आधा आधा पेट खा के उठ गए..मन तो बहुत था की और खा लेन...लें यह भी ख्याल था की अभी तो खा लेंगे पर आगे क्या होगा...जब पैसे ख़त्म हो जायेंगे तब क्या खायेंगे......खाना खा के हम फिर से एक किनारे बैठ गए....अभी तक बस अड्डे के कुछ दुकानदारों ने हम पर गौर कर लिया था की यह दो लड़का लड़की कल से यहाँ बैठे हुए हैं...उनकी नज़रों में तो हम लड़का लड़की ही थे....मैं न सही पर सीमा तो सच में अभी छोटी सी लड़की ही थी....शायद उन दुकान वालों को कुछ गलत भी लगा होगा लेकिन किसी ने हमसे कुछ कहा नहीं...दिन ऐसे ही बीत गया....शाम भी हो गयी और रात ने दस्तक देनी शुरू कर दी.............
सीमा – हम कितने दिन ऐसे ही रहेंगे?
मैं – मुझे नहीं पता....
सीमा – तो किसे पता होगा ? शादी कर के तो आप लाये थे मुझे...घर से गौना कर के आप लाये थे...शहर आप लाये थे...अब आपको नहीं पता होगा तो किसे पता होगा?
मैं – वो तो जैसा घर वालों ने किया वैसा वैसा मैंने किया. अब मुझे क्या पता की आगे क्या करना है..
सीमा – क्या आपको इस बात का एहसास है की इस तरह सड़क पर पड़े रहना अच्छी बात नहीं है.
मैं – हाँ वो तो मैं जनता हूँ.
सीमा – जानते हो? सच में जानते हो? सच में आपको इस बात का एहसास है की यह कितना गलत है.
मैं – हाँ यह अच्चा नहीं है. हम घर में होते तो अच्चा होता..लेकिन इसमें इतना बड़ा पहाड़ भी नहीं टूट रहा है कोई...
सीमा – आप जानते हैं मैं एक लड़की हूँ?
मैं – यह कैसा सवाल है?
सीमा – तो और क्या कहूँ? आपको पता है किसी भी लड़की को अपने बारे में कितना डर लगता है? उसे हमेशा किसी ऐसे आदमी की जरुरत होती है जो उसका साथी बन सके. उसका साथ दे सके. उसे हर खतरे से बचा सके.
मैं – यहाँ तुम्हें कौन सा खतरा है?
सीमा – इसीलिए तो मैं कह रही हूँ की क्या आपको कुछ पता भी है की लड़की की जिंदगी कैसी होती है? उसे क्या क्या करना होता है? क्या क्या वो सहती है? कुछ जानते हैं आप?
मई – नहीं जनता. सच में नहीं जनता.
सीमा – आप जानते हैं आप मेरे पति है. मैं आपकी पत्नी हूँ. मेरी हर जिम्मेदारी आपके उपर है. मेरा रहन सहन सब कुछ आप के उपर है...मेरी इज्जत आपके हाथ में है...मेरे लिए तो सब कुछ आप ही हैं...लेकिन क्या इस बात का आपको एहसास है या इसमें भी आप यही बहाना बना देंगे की आपने तो यह सब कभी सीखा ही नहीं...
मैं – मैं कोई बहाना नहीं बना रहा हूँ. मैंने सही में नहीं सीखा. किसी ने मुझे बताया नहीं.  


इसके पहले जब भी सीमा ने मुझसे बात की थी तो वो हमेशा ही बहुत ही धीमी और कोमल आवाज में बोलती थी..लेकिन आज शुरू से ही उसकी आवाज में एक खीझ थी....उस समय तो मुझे समझ नहीं आया की इसकी वजह क्या है..लेकिन अब सोचता हूँ तो साफ़ पता चलता है की इसकी वजह क्या थी....सच में बहुत ही गंभीर हालत थी वो....इस तरह एक लड़की का बस अड्डे पर दिन रत बैठे रहना...लोग न जाने क्या क्या सोच सकते थे...बहुत कुछ बुरा हो सकता था..लेकिन तब मेरी अकल ने इतना साथ नहीं दिया था मेरा...उस समय तो मुझे ऐसा लग रहा था की मैं भी तो इसी बस अड्डे पर हूँ..मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है फिर यह क्यों इतना नाटक कर रही है..बल्कि इसे तो खुश होना चाहिए की पुरे पैसे उसी के पास हैं....भैया ने जो पैसे दिए वो मैंने उसे दे दिए थे.....हम लोग काफी देर तक चुप बैठे रहे....मजे की बात यह की उस उम्र में भी जबकि हमारे बीच कोई बहुत गहरा रिश्ता अभी तक कायम नहीं हुआ था..उस समय में भी हमारी तुनक इतनी ज्यादा थी की उस छोटी सी बहस के बाद न वो मुझसे कुछ कहना चाहती थी और न ही मैं बात करना चाहता था....दोनों जिद पर अड़े हुए थे की नहीं बोलेंगे....शाम तो कब की बीत ही चुकी थी..अब रात भी गहरी होने लगी थी..और धीरे धिरे दुकानें बंद होने लगी थी.....मुझे लगा की काश सीमा कुछ बोल दे..नहीं तो हम सही समय पर खाना नहीं खा पाएंगे..फिर तो सारी रात कुछ नहीं मिलेगा...मन मिन्नत मांग रहा था लेकिन तुनकमिजाजी भी थी की वो बोले तो बोले मैं पहले नहीं बोलूँगा.........फिर सीमा ही बोली......और मैंने कोई बहस नहीं की..मैं तो इन्तेजार ही कर रहा था..हम लोग गए और फिर से उसी होटल में वही दाल रोटी खा के लौट आये....खाना खाते हुए सीमा ने ये जरुर कह दिया था की पेट भर के खा लेना.रात में भूख लगी तो दिक्कत होगी......हम दोनों ने ही पेट भर के खाना खा लिया......और फिर जैसे जैसे रत घिरने लगी.....दुकाने बंद होने लगीं..और भीड़ कम होने लगी....
सीमा – अब हमारे पास सिर्फ १०० रुपये और बचे हैं बस....कल और परसों का खाना हो जायेगा..लेकिन उसके बाद हम क्या करेंगे....
मैं – तुम तो मेरी समझ जानती ही हो.....मैं मानता हूँ की मुझे बहुत सारी बातें नहीं पता है...लेकिन तुम तो सब जानती हो न..तुम ही बताओ..
सीमा – आप ऐसे क्यों बोल रहे हैं?
मैं – कैसे बोल रहा हूँ?
सीमा – ताना मार रहे हैं...गुस्से में बोल रहे हैं..मेरी किसी बात से नाराज हैं?
मैं – नाराज नहीं हूँ. लेकिन तुम्हारा बार बार मुझे मूर्ख कहना बुरा लगता है....
सीमा – मैं अपनी ख़ुशी के लिए तो नहीं कहती न ऐसा....मैं भी क्या करूँ...जब तक अपने बाप के घर में थी तो उनके ऊपर बोझ थी...उस जगह से बाहर निकली..शादी हुई तो सोचा की अब सब कुछ अच्छा होगा..कोई मेरा भी ख्याल रखेगा..लेकिन यहाँ तो वैसा कुछ भी नहीं है..बल्कि हम तो बेघर हैं...
मैं – तुम अकेली बेघर नहीं हो . मैं भी तो बेघर हूँ..मैं तुम्हें बस अड्डे पर रख कर खुद तो किसी और जगह नहीं रह रहा न..तुम सड़क पर हो तो मैं भी सड़क पर हूँ......
सीमा – हाँ. यह बात सच है. फिर भी मन में दुःख तो होता है न...
मैं – हाँ. मुझे भी होता है....अब तुम ही बताओ की हम क्या करें....
सीमा – सुनिए...जो भी करना है हमें ही करना है न...आपको और मुझे एक दुसरे का साथ देना होगा..नहीं तो हमारी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी...
मैं – अभी और भी कुछ बचा है क्या बर्बाद होने के लिए? इससे ज्यादा बर्बाद क्या होंगे?
सीमा – देखिये मुझे ऐसी बातें नहीं पसंद....आप मेहनती हैं...मैं समझदार हूँ..अगर हम दोनों एक दुसरे का साथ देन तो हम अपने लिए कुछ न कुछ कर ही लेंगे... 



मैं – ठीक है...लेकिन सोचने का काम तुम्हरा है.....तुम ही सोचो...तुम ही बताओ...जो तुम कहोगी मैं वो सब कुछ करूँगा....
सीमा – ठीक है...मैं ही कुछ सोचती हूँ....
हम लोग बहुत देर तक वहीँ बैठे रहे...उसी शांति में...शांति नहीं बल्कि उसे सन्नाटा कहिये....जिस तरफ हम बैठे थे वहां कोई और नहीं था...दूर कहीं कहीं खम्बे के बल्ब जल रहे थे..बहुत हलकी हलकी रौशनी थी....और कुछ देर बाद....
सीमा - सुनिए कल हम लोग जिस जगह गए थे वो याद है आपको?
मैं – कब गए थे? कौन सी जगह?
सीमा – वो.......गए थे न...रात में.....मुझे पे...पेशाब करने जाना है...
मैं – अच्चा...तो ऐसे कहो न...मुझे नहीं पता की हम कहाँ गए थे..शायद उस कोने में गए थे...
सीमा – लेकिन आज तो वहां कुछ लोग दिख रहे हैं...आज वह नहीं जा सकते...
मैं – यहीं कर लो न...यहाँ तो अँधेरा भी है और कोई है भी नहीं...
सीमा – यहाँ तो हमें पूरी रात बैठना है.बदबू आएगी. यहाँ नहीं. आप कोई जगह खोजिये.
मैं – इतनी रात में मैं घुमुंगा तो जो कोई भी देखेगा वो सोचेगा की चोरी करने आया है. यहीं ठीक है. यहां हमें कोई नहीं देख रहा. तुम यही कर लो.
सीमा – रहने दीजिये. मैं ऐसे ही ठीक हूँ. यहाँ नहीं करनी मुझे.
मैं – ठीक है मत करो. मुझे तो करनी है और मैं तो करूँगा.
सीमा – छी आप कितने गंदे हैं. यहाँ मत कीजिये. सारी रत बदबू आएगी.
मैं – मैं नहीं रोक सकता. मैं तो करूँगा.
सीमा – तो थोडा उस तरफ हो जाईये. थोडा दूर जा के कीजिये...
( मैं थोडा और पीछे चला गया और मैं कुरता अपने मुंह में दबा के अपने पैजामे का नाडा खोला..)
सीमा – ऐसे नहीं. बैठ के कीजिये.
मैं – क्या बैठ के कीजिये?? मुझसे नहीं बनता. मैं तो खड़े खड़े ही करूँगा.
सीमा – आपकी धार के छींटे उड़ेंगे. इधर उधर जायेगा सब कुछ. इसलिए कह रही हूँ बैठ के कीजिये.
मैं – मैंने कभी बैठ के नहीं की. मुझसे नहीं बनता.
सीमा – जैसे हम लोग करते है न वैसे कीजिये.
मैं – मुझे क्या पता तुम लोग कैसे करते हो.
सीमा – अच्छा? झूठे. कल तो बड़ा ध्यान से देख रहे थे....


 मैं – मुझसे सच में नहीं बनता. सिखा दो तुम.
सीमा – मैं आपको यह सब सिखौंगी क्या? आप पागल तो नहीं हो गए हैं?
मैं – तुम नहीं सीखोगी तो किस्से जा के पुचुं? या तो सिखा दो या मैं खड़े खड़े करूँगा. मुझसे और नहीं रोका जा रहा अब.
सीमा – ठीक है.....देखिये.......कैसे बताऊँ...सबसे पहले तो उकडू बैठ जाईये...जैसे जब पेट साफ करने बैठते हैं न वैसे...अरे बाबा कपडे नीचे तो कर लीजिये न पहले......हाँ ठीक है..अब बैठ जाईये...हाँ बस..इतनी सी तो बात है...अब बैठे बैठे कर लीजिये. इससे आपकी धार फैलेगी नहीं और बहेगी नहीं.
मैं – लेकिन ऐसे में तो मेरी धार मेरे ही उपर आ जाएगी...यह देखो न यह तो ऊपर है...
( बहुत देर से पेशाब रोके रहने के कारन मेरा लंड कड़क हो चूका था और इस स्थिति में बैठने की वजह से वो उपर की तरफ हो गया था...अगर मैं करता तो धार सीधा मेरे उपर ही गिरती....)
सीमा – क्या?
मैं – देखो न..यह तो ऊपर की ओर है...इससे तो निकल के मेरे ऊपर आएगा...
सीमा – ओफ्फ ओ...कहाँ फंस गयी मैं...अरे तो उसे नीचे दबा दीजिये न....जरा सा काम है और उसके लिए आप इतने नाटक कर रहे हैं...उसे अपने हाथ से नीचे दबा लीजिये और फिर कीजिये. और न बने तो जैसे करना हो वैसे कीजिये...मैं भी कितनी मूर्ख हूँ जो आपको यह सब समझा रही हूँ..खुद को तो लाज शर्म है नहीं मुझे भी अपने जैसा बनाये दे रहे हैं....आज के बाद मुझसे ये सब मत पूछियेगा..जैसे करना हो वैसे कीजियेगा..आप कोई दूध पीते बच्चे हैं क्या जो आपको पकड़ पकड़ के ये सब करवाया जाये...हाय राम ये कहाँ फंसा दिया मुझे....
( वो लगातार बोले जा रही थी और मैं कब का फारिग हो चूका था........उसकी बात सुन के मुझे बुरा नहीं लगा...बल्कि कुछ अच्चा अच्चा लग रहा था..क्या लग रहा था यह नहीं पता...पर ऐसा मन कर रहा था की ऐसा हमेशा लगता रहे...यह जो भावना मन में जागी थी यह बहुत मजेदार थी........मैं वापस आ के सीमा के बगल में बैठ गया....)
सीमा – हाथ धोया?
मैं – अब हाथ क्यों धोना है? पेशाब ही तो किया है. इसमें हाथ धोने की क्या जरुरत है?
सीमा – हे प्रभु.....अरे हाथ गन्दा हुआ न....हाथ से ही दबाये थे न....हाथ क्यों नहीं धोया? यह भी कोई बताने की बात है? छी.....आपको गन्दा नहीं लगता...
मैं – बड़ी आई तुम सफाई करने वाली...हमें नहाये दो दिन हो गए हैं....तुम तो फिर बेकार में ही मुझे हड़काती हो...
सीमा – ठीक है..जैसा आपको अच्छा लगे....
मैं – तुम क्यों ऐसे रोक के बैठी हुई हो...जाओ तुम भी कर लो.....
सीमा – ठीक है. लेकिन ख़बरदार जो आज आपने मुड के देखा तो...
मैं – मुझे सीटी सुनाई देगी तो मैं तो देखूंगा ही..और फिर अभी तुमने भी तो मुझे देखा.
सीमा – मैं आपको देख नहीं रही थी. आपको बता रही थी की कैसे करना है. मुझे कोइ शौक नहीं ये सब देखने का.
मैं – तो मैं भी सीखने के लिए ही देखूंगा. तुम करना और मैं देख के सीख लूँगा की कैसे करना है. नहीं तो तुम्हें हर बार मुझे ये चीज बतानी पड़ेगी.
सीमा – वैसे तो आप बड़े भोले बनते हैं लेकिन इन सब बातों में तो दिमाग भी तेज चलता है और जुबान भी.....वैसे किसी और बात पर तो आपके मुंह से आवाज नहीं निकलती.....
मैं – मैं तो तुम्हारी ही सहूलियत के लिए कह रहा था. एक बार मुझे देख के सीखने दो या फिर मुझे रोज रोज यह बताओ की कैसे करना है...
सीमा – कभी कभी मुझे लगता है आप बहुत चालू हो और जानबूझ के सब नाटक करते हो..
मैं – नहीं सीमा. ऐसा नहीं है. मुझे देखना अच्चा लगता है..
सीमा – क्यों अच्छा लगता है? इसमें अच्छा लगने वाली कौन सी चीज है? ये सब किसी को अच्चा नहीं लगता. ऐसा कोई नहीं देखता किसी को कुछ करते हुए.
मैं – मैं भी किसी और को थोड़ी न देख रहा हूँ..तुम्हें ही तो बस देख रहा हूँ...
सीमा – किसी और को देखना भी नहीं वरना बहुत पिटाई पड़ेगी....
हमारे बीच ये सब बातें बहुत ही सामान्य ढंग से हो रही थी...उसमे किसी प्रकार की वासना या हवस शामिल नहीं थी...हाँ मुझे उस समय ये सब कह के और कर के अच्चा लग रहा था लेकिन उससे ज्यादा कुछ करने का ख्याल नहीं था.....सीमा कुछ देर में उठी और पीछे की तरफ चल दी..मैं भी उसे साथ हो लिया...वो मुझे देख के रुक गयी और मुझे वापस लौट जाने का इशारा किया..मैंने मना कर दिया....जहाँ तक मुझे समझ में आ रहा था सीमा इस सब से नाराज नहीं थी...उसे मेरी हरकत बुरी भी नहीं लग रही थी...उसे ये सब बहुत अजीब लग रहा था इसलिए वो थोडा झिझक रही थी...अगर उसे बुरा लग रहा होता तो वो मुझे मना कर देती और मैं जरुर रुक जाता...लेकिन न उसने मना किया और ना ही मैं रुका.....सीमा कुछ दूर चल के रुकी और उसने चरों तरफ देखा....फिर इत्मिनान से उसने अपनी साडी उठानी शुरू की...मैं एकटक उसे देख रहा था....और जैसे जैसे उसकी साडी उपर आ रही थी वैसे वैसे मेरी नज़र उसके चेहरे से नीचे उतर रही थी...साडी ऊपर उठ रही थी और मेरी नाराज उसके बदन से नीचे फिसल रही थी....साडी अपनी आधी जाँघों तक उठा के ही आज वो नीचे बैठ गयी.....मैंने कुछ कहा नहीं..पर मुझे याद था की कल जब वो बैठी थी तो उसने साडी एकदम ऊपर कमर तक उठायी थी....लेकिन आज उसने ऐसा नहीं किया..मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था..वो बैठी भी ऐसे की उसने अपनी उठाई हुई साडी को अपने सामने कर लिया.......मुझे कुछ देर में वही सीटी की आवाज सुनाई दी...लेकिन आज वो सीटी नहीं बल्कि कुछ अलग आवाज थी..जैसे कहीं तेजी से कोई नल खुला हो........मैं उसके सामने कोई विचित्र हरकत नहीं करना चाहता था इसलिए खुद पर काबू रख के खड़ा रहा....मन तो बहुत हो रहा था की जा के उसकी साडी ऊपर उठा के ठीक से देखूं.........सीमा अपनी जगह पर वापस कड़ी हुई...अपनी साडी ठीक की और मेरी तरफ देख के बहुत हंसी....मुझे चिढ़ा भी रही थी......’देख लिया कैसे करते हैं? देख लिया सब कुछ? अब कल से तो नहीं पूछोगे न? ‘......वो कहती जा रही थी और हंसती जा रही थी......इतने दिनों में शायद पहला मौका था जब हम किसी बात पर हँसे थे.......हम वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गए..और बारी बारी से सोने का फैसला किया............अगले दिन से सीमा ने मेरे लिए जो कुछ सोचा था मैं उसी हिसाब से काम करने को तैयार था....




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