Thursday, April 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--167

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--167

मॉडलिंग


बात कुछ और आगे बढती , तब तक उपर के कमरे से आकाशवाणी हो गयी ,

गुड्डी की।

"जल्दी आ टाइम नहीं है अर्जेंट मेसेज है , तुरंत। "

और ये लडकिया न ,ये शोला बदन कब मुड़ के चल दें पता नहीं।

और वही हुआ ,

वो सारंग नयनी , शोख हिरणी की तरह छलांगे मारते उपर चल दी , गुड्डी के पास।


घंटे भर के करीब मैं अकेले बैठा रहा

और जब दोनों नीचे आयीं तो बस


एक साथ दो बिजलियाँ गिर गयीं।


कहर की लाख निगाह की जरूरत क्या है,
लुत्फ की इक निगाहे नाज न जीने देगी।



इतनी टाइट जींस , कोई सोच नहीं सकता और ऊपर से एकदम लो कट ,

मेरी निगाह पहले रंजी को देखती ललचाती रहीं ,

और वो भी पूरे 360 ० मुड़ कर हर कोण से उसने कैट वाक् की तरह नजारा दिखाया , ख़ास तौर से पिछवाड़े का।

और जंगबहादुर की हालत ख़राब हो गयी।

नितम्बो के क्लीवेज और पूरी गोलाइयाँ साफ दिख रही थीं और उसकी पतली से रेड गोल्डन थांग भी।

बस भारी भारी नितम्बो पर चिपके हुयी थी जींस , सेकंड स्किन की तरह।

और सबसे खतरनाक बात , नितम्बों के बीच की दरार साफ दिख रही थी.
जैसे दो बड़े बड़े आधे कटे तरबूज हों ,

और मुझे दिखा के जो उसने अपने चूतड़ मटकाए , मन तो बस यही कह रहा था की यही पटक के पेल दूँ।


और उस स्किन टाइट लो कट जींस के साथ आलमोस्ट व्हाइट शियर टॉप जो रंजी की खूब गहरी नाभी के बहुत पहले खत्म हो जाता था।

उसकी पतली कमरिया , उसपे एक सुनहली पतली सी चेन , पान ऐसा चिकना गोरा पेट , सब कुछ दिल लूट रहा था , साफ दिख रहा था।

बस उसके कातिल जोबन ढके थे और वो भी बस ढके थे , छिपे नहीं थे।

उनका कटाव , उभार , ३२ सी साइज , ठीक मुट्ठी में आ जाएँ , कड़ापन सब कुछ झलक रहा था , और अंदर की हाफ कप , पुश अप ब्रा भी दिख रही थी। लेकिन जान मार रही थी , बरछी की तरह उसकी टॉप फाड़ते , मटर के दाने की तरह निपल।


आग लगा रही थी , आग।

और गुड्डी भी बस सेम टू सेम।

"हे किधर निकल रही है तुम दोनों की सवारी , फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया की नहीं पहले से। " सवाल मैंने रंजी से किया

"पिटोगे तुम , वो भी जोर से " वो बोली और एक हाथ लगा भी दिया।

लेकिन बताया गुड्डी ने वो भी अपना मोबाइल आगे कर के , जिसमे एक मेसज था।

और उसका सार संक्षेप ये था की , उन दोनों को एक कम्पटीशन में बुलाया गया था , एक तरह का एमेच्योर टीनेजर्स का कम्टीशन था , अल्ट्रा लो कट जींस का , और टॉप का। होली के पहले वाले दिन दोनों गयी थी एक फोटो शूट में , और बाजार लूट के आ गयी थीं। ड्रेसेज , कॉम्प्लीटेरी मेकअप , गिफ्ट कूपन और भी क्या जीत के आई थीं दोनों। रंजी को अगले राउंड के लिए भी सेलेक्ट कर लिया गया था। उसी का मेसेज था , उन के दो फैशन फोटोग्राफर्स और मेल मॉडल्स आ रहे हैं। फोटोग्राफर्स के नाम देख के ही मैं पहचान गया , वो एक दारु कंपनी के बिकिनी वाले कैलेण्डर , हॉट मॉडल्स की शूटिंग करते थे।

ढाई बजे तक दोनों को वहां पहुंचना था , और अगर आज जंग जीत लिया तो बस चांदी ही चांदी।


" क्या देख रहे हो तेरा ही माल है ' हंस के गुड्डी बोली।

मोबाइल गुड्डी को वापस देते , रंजी की ओर ललचाई नजर से देखते मैं बोला ,

" बस सोच रहा हूँ , ये इसके अंदर घुसी कैसी होगी। या तो पैदा इसी के साथ हुयी होगी और फिर , … "

"तुम भी न ,… " रंजी कुछ शोख अदा से कुछ लजाते शर्माते बोली।

" अरे सिम्पल यार , तुम भी न , एक बार मैं उतार देती हूँ , फिर पहन के दिखा देना। " गुड्डी छुटकी ननदिया को छेड़ने , तंग करने का मौक़ा क्यों छोड़ती।

जब तक रंजी सम्हले सम्हले , गुड्डी के हाथ रंजी के जींस के हुक पे थे।

और रंजी के पीछे मैं खड़ा ,मेरे हाथ रंजी की पतली कलाई पे।

जब तक रंजी सम्हले , गुड्डी ने जैसे किसी बलखाती नागिन की केंचुल उतरे ,जींस ,उसके नितम्बों के नीचे सरका दी।

" इतने से काम चल जाएगा या और भी नीचे सरकाउं ," गुड्डी मुस्कराती बोली।

रंजी के हाथ मेंरे कब्ज़े में थे और निगाहें , बस उसके भरे भरे , गदराये नितम्बो पर चिपकी थी , सिर्फ एक छोटी सी लाल , सुनहली थांग। एक सुनहली पतली राशि सी पट्टी , पिछवाड़े की दरार के बीच खोयी हुयी थी और आगे मुश्किल से दो इंच से भी छोटी लाल रंग की लेसी पट्टी , जो मुश्किल से लाल मुनिया ढकती थी।

रंजी ने बात बदलने के लिए गुड्डी के हाथ में डब्बे के बारे में पुछा।  


खेल खिलौने




रंजी ने बात बदलने के लिए गुड्डी के हाथ में डब्बे के बारे में पुछा।

भाभी ने जो अलमारी ," बच्चियों के लिए नहीं ' चिप्पी लगा कर इन छोरियों के लिए मना किया था , उसी में से एक को गुड्डी ने लूट लिया था और उसमें ढेर सारे खेल खिलौने मिले , और ये डब्बा उसी का हिस्सा था।

" अरे मेरी प्यारी मुनिया , सिर्फ दिखाउंगी क्यों , इस्तेमाल कर के इसके मजे भी दिलवाऊँगी। " गुड्डी ने शैतानी अदा से कहा और डिब्बा खोलते ही जो चीज निकली तो पहचान गया लेकिन रंजी की कुछ समझ में नहीं आया ,

बेन वा बाल्स , लेकिन विद अ डिफरेंस।



बेन वा बाल्स वैसे तो कई बार अलग अलग बाल्स होती हैं , केजेल एक्सरसाइज और सेक्सुअल इन्जवायमेंट के लिए।

लेकिन इसमें तीन बाल्स थीं , और तीनो अलग साइज की और एक गोल्डन थ्रेड में जुडी और सबसे अंत में उसके बेस पे एक ' रिट्राइवर ' की तरह था जो एक पतले बट प्लग की तरह भी इस्तेमाल हो सकता था। एक बात और ये थी की नॉर्मली बेन वा बाल्स खोखली होतीं हैं और उनके अंदर वजन होता है , जिससे योनि के अंदर वो वजन के शिफ्ट होने से हिलता डुलता है , लेकिन ये वाइब्रेटर की तरह वाइब्रेटर की वैजाइना के अंदर वाइब्रेट हो सकती थी और उसका रिमोट इस समय गुड्डी के हाथ में था।

तीनो बाल अबोनाइट की तरह थीं एकदम काली। पहली बाल का डायमीटर एक इंच , दूसरी का पौने दो इंच था और तीसरी काफी बड़ी थी , शायद उसको अंदर लेना ऑप्शनल होगा और वो भोंसड़ी वालियों के लिए डिजाइन की गयी होगी। करीब ढाई पौने तीन इंच चौड़ी , मेरे सुपाड़े के बराबर रही होगी। और उसके बाद दो इंच का गोल्डन थ्रेड और फिर वो बट प्लग सा , जिसका इस्तेमाल इन बाल्स को बाहर निकालने के लिए किया जाता था।

" हे इसका करते क्या हैं " रंजी बहुत क्यूरियस थी।

" बताती हूँ जरा पहले अपनी टाँगे फैला , " गुड्डी ने मुझे आँख मारते हुए , उससे बोला।

मैंने अपनी टाँगे रंजी की टांगों के बीच फंसा रखी थी और गुड्डी का इशारा मिलते ही मैंने जोर से रंजी की टाँगे पूरी फैला दी और गुड्डी ने भी साथ साथ थांग का हुक खोल दिया। अब लाल मुनिया खुली फुदक रही थी।


गुड्डी की उँगलियों से बचना मुश्किल था , और जब तक रंजी सम्हले सम्हले , गुड्डी ने उसकी पुत्तियों को बाएं हाथ की ऊँगली से फैलाया और दायें हाथ से , छोटी बाल रंजी की चूत में पुश कर दी। जैसे कोई गौरेया अपनी चियारी चोंच में चारा घोंट ले , बस वैसे रंजी की चूत ने गटक ली।

गुड्डी ने मुझे ऐसे देखा जैसे कह रही हो देख ये तेरा मॉल कित्ता छिनार है।

चूत तो रंजी की एकदम टाइट थी , बिचारी कल रात तो उसकी नथ उतरी थी , इसलिए अब इस बाल के बाहर निकलने का खतरा नहीं था।

गुड्डी ने आराम से मंझली बाल पे लूब लगाया , , अंगूठे और तरजनी से फुद्दी फैलाई और पूरे जोर के साथ उसे भी अंदर ठेल दी।

बिचारी रंजी चीख रही थी , सिसक रही थी , लेकिन उसकी सुनने वाला कौन था।

गुड्डी पूरी ताकत से पुश कर रही थी।

मैंने उसकी टाँगे फैला रखी थीं और जोर से उसकी कलाई दबोच रखी थी। वो एक सूत भी नहीं हिल डुल सकती थी।

दो चार मिनट पुश करने से वो पौने दो इंच वाली बाल भी उसकी चूत ने घोंट लिया।


और अब बेन वा बाल्स ने अपना जादू दिखाना शुरू कर दिया।

वो उसकी कसी प्रेम गली में इधर उधर मस्ती से झूम रही थी। मखमली दीवारों को रगड़ रही थी , और जैसे चूत के अंदर हलके से चींटियाँ काटें बस उसी तरह ,


और थोड़ी देर में ही रंजी ने सिसकियाँ भरनी शुरू कर दी।

मस्ती से उसकी आँखे बंद हो गयी थीं।


गुड्डी दुष्ट , उसने अब वाइब्रेटर भी आन कर दिया हालांकि स्पीड ज्यादा नहीं थी लेकिन रंजी को पागल करने के लिए काफी था।


गुड्डी ने अब आखिरी सबसे बड़ी ढाई इंच डायमीटर वाली काली भारी बाल की ओर इशारा किया लेकिन मैंने तुरंत आँखों ही आँखों में बरज दिया ,


बहुत बड़ी है नहीं जायेगी।

लेकिन गुड्डी जिद करती रही , और अंत मुझसे बोला फुसफुसा के ,

" निहुरा साल्ली को '

और मैंने रंजी को जबरन निहुरा दिया।

बस उसके खुले हुए चूतड़ मेरी आँखों के सामने थे , ठीक जंगबहादुर से सटे.
मस्त गोल गोल गुदाज भरे भरे नितम्ब ,

कल जहाँ सिर्फ मुश्किल से पतली सी दरार दिख रही थी , अब वहां एक छोटा सा , बहुत छोटा सा हलका खुला छेद साफ दिख रहा था।

और बस जंगबहादुर बौरा गए , कब मेरी शार्ट नीचे सरकी , कब छेद पे मोटा सुपाड़ा सटा। पता नहीं।

और मुझे लगा जो गुड्डी ने मन्त्र का असर बताया था वो एकदम सही थी , मन्त्र पूरी तरह जागृत हो गया था।

माल देखने के बाद मैं न नाता देखूंगा , न रिश्ता ,

न जगह , न मौका

बस मार दूंगा चौका।

रंजी की टाँगे पूरी तरह खुली हुयी थीं।

गुलाबी परी दो बेन वा बाल्स घोंट चुकी थी।

गुड्डी ने इशारा किया और अब पीछे के साथ आगे का भी मोर्चा मैंने सम्हाला।

मेरे दायें और बाएं हाथ के अंगूठों ने पूरी ताकत से रंजी की फुद्दी फैला दी ,

पिछवाड़े , सुपाड़े के जोर ने कुछ उसका ध्यान भी बाँट दिया था।

ढाई इंच की काली चौड़ी , भारी बेन वा बाल आधी अटकी थी।
मेरी उँगलियों ने भी गुड्डी की उँगलियों के साथ पूरी ताकत से अंदर ठेला

और गप्प से वो अंदर चला गया। पूरा का पूरा।

ऊँगली उसको अंदर ठेले हुए थी। 


मस्त पिछवाड़ा



और गप्प से वो अंदर चला गया। पूरा का पूरा।

ऊँगली उसको अंदर ठेले हुए थी।

और जब तक उस धक्के से रंजी उबरे , मंत्र का जोर था या पता नहीं , १० बनारसी सांडों का जोर मेरे अंदर आ गया था।

और दूसरे धक्के में ही सुपाड़ा अंदर।

गुड्डी ने जो जेल बेन वा बाल्स पे लगाया था , वही सुपाड़े से लेकर लंड के बेस तक अच्छी तरह चुपड़ दिया।
चपचप लंड गांड में घुस गया , और तीसरे धक्के में गांड का छल्ला भी पार था।

रंजी लाख चूतड़ पटके , अब बिना गांड मरवाये कोई छुटकारा नहीं था।
मंतर का असर साफ लग रहा था।

एकदम पत्थर की तरह कड़ा , जैसे मजमे वाले बोलते हैं , खम्भे पर मारो तो टन्न बोलेगा , दीवार में छेद कर देगा , बस एकदम उसी तरह।

और उसी के साथ जोश और मस्ती मेरे सर पे सवार थी , जो जब तक मैंने झड़ूंगा नहीं , तब तक उतरने वाली नहीं थी।

लेकिन उसका असर रंजी पे कोई कम नहीं था।

और ये बात गुड्डी ने आज सुबह मुझे बता दी थी की मंतर का असर , जिसपर मंतर जगाया जाएगा ,उसपर भी बहुत ज्यादा होगा , शायद मुझसे भी ज्यादा।

फायदा ये होगा --------१. वो चाहे कित्ती बार चुदे , कितने भी मोटे औजार से ,उसकी ललमुनिया एकदम कुँवारी कच्ची कसी ,कली की तरह ही टाइट रहेगी। और हर बार मर्द को उत्ता ही जोर लगाना पड़ेगा , उत्ता ही मजा मिलेगा जितना पहली बार सील तोड़ते समय मिलता है। और यह असर उसके पिछवाड़े भी रहेगा।
चिरयौवना।

२. और यह असर उसकी पूरी देहयष्टि पर होगी , खासतौर से उसके उरोज कितनी भी दबवावे ,मसलवावे , उसी तरह कड़े , गदराये रहेंगे जो बिना ब्रा के भी पूरी तरह शेप में रहें।

.३. रंजी को किसी भी कंट्रासेप्टिव की , कंडोम , पिल , आई यु डी की जरूरत नहीं पड़ेगी और हर बार मर्द भले ही सीधे उसकी बच्चेदानी में झड़े , गाभिन होने का कोई खतरा नहीं था . हाँ सात आठ साल बाद जब वो पच्चीस की हो जायेगी तब , और उसके लिए भी खास गर्भाधान मन्त्र था , जिसका प्रयोग उसे और उसके साथ सम्भोगरत पुरुष को एक विशेष नक्षत्र में करना पड़ेगा , तभी वो गर्भवती हो सकेगी।

४ सम्भोग के समय , वह उतना ही पार्टिसिपेट करेगी , बल्कि उससे ज्यादा ही जितना कोई मर्द करेगा। और उतने ही मजे लेकर।

लेकिन कुछ और बातें थी , जिसे फायदा माने या न माने कहना मुश्किल है।

पहली बात तो ये है की उसकी ललमुनिया हरदम चुहचुहाती रहेगी , मन करता रहेगा की कोई लम्बा मोटा मिल जाए। और दूसरी बात ये है की वो जो भी अगर उसके साथ करना चाहेगा , नॉर्मली वो मना नहीं करेगी और खूब मजे ले ले कर मजे लेगी।

और आगे पीछे दोनों ओर घोंटने के बाद भी उसके मजे में कोई कमी नहीं थी।ये बात नहीं थी की उसे दर्द नहीं होगा , दर्द होगा लेकिन मजा भी खूब आएगा और वो मजे ले ले के चुदवायेगी , मरवाएगी।


और इस समय यही हो रहा था , मैं हचक हचक के उसकी कसी मस्त गांड मार रहा था ,दिन दहाड़े।

वो कभी चीखती ,कभी सिसकती।

गांड के छल्ले को रगड़ता, दरेररता , फाड़ता , मेरा मोटा सुपाड़ा गांड में घुस रहा था।

थोड़ी देर तक तो मैं आधे लंड से चोदता रहा लेकिन तभी गुड्डी ने एक शरारत की , उसने रंजी की चूत में घुसे बेन वा बाल्स का वाइब्रेटर आन कर दिया।


बस , तीनो बॉल्स उसी चूत में उछल कूद मचाने लगी , चूत के अंदर रगड़ घिस होने लगी।

और वो एकदम झड़ने के कगार पे पहुँच गयी।


आह से आहा तक ,


और मैंने फिर आलमोस्ट सुपाड़े तक लंड बाहर निकाला , जोर से उसकी कमरिया पकड़ी और एक धक्के में पूरा ९ इंच अंदर ठेल दिया।

उईइइइइइइइइइइइइइइ मरीईईईईईईईईईईईई जान गयीईई ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह फट गईईईईईईई,


रंजी की चीख पूरे घर में गूँज रही थी , लेकिन मुझे जैसे मैंने पहले कहा अब किसी की परवाह नहीं थी , और एक के बाद

हचाक हचाक , सटासट सटासट ,

१० -१५ फुल स्पीड ,धक्कों के बाद ही मैं रुका

और फिर धक्को की स्पीड कुछ हलकी की , मजे ले ले कर हलके हलके रगड़ते हुए मैं पेल रहा था।

एक गजब की गूई फीलिंग , अब लंड पे मुझे होने लगी ,

जैसे लग रहा था मक्खन ही मक्खन भरा हो , क्या मजा आ रहा था।

चाहे चूत हो या गांड ,

चाहे लड़का हो या लड़की


पहली बार की चुदाई तो रास्ता बनाने के लिए ही होती है।

मजा तो दोनों को दूसरे बार में ही आता है।

और वो मजा अब मुझे आ रहा था , रंजी की कसर मसर , मस्त गांड मारने का।


जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो वो जबरदस्त मुस्करा रही थी।

और मुझे समझ में आ गया , उस गूई फीलिंग का राज ,

क्यों लग रहा था मुझे आज गांड में मक्खन का मजा।

जो सुबह गुड्डी ने इसरार करके , थोड़े प्यार से थोड़ी जबरदस्ती उसे आधी कड़ाही बेसन का हलुवा जो खिला दिया था। एकदम अंदर तक भरा ,

और इसलिए मूसल अब सटासट जा रहा था , अंदर बाहर।

और फिर दो तिहाई लंड करीब छ इंच अंदर घुसेड़े , मैंने लंड पकड़ के गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया , क्या मजा आ रहा था जैसे किसी ग्वालिन को दही मथने में आता होगा , उस तरह रंजी की गांड मैं मथ रहा था खूब मजे ले लेकर।


और अब रंजी भी खूब मस्ती से गांड मरवा रही थी।
 
और अब रंजी भी खूब मस्ती से गांड मरवा रही थी।

उसकी गांड लंड को कभी जोर से भींच लेती , सिकोड़ लेती और कभी वो मेरे धक्के के जवाब में जोर से पीछे की ओर , अपने चूतड़ उचकाकर धक्के मारती।
जब मेरा लंड गोल गोल घूम के रुक जाता तो वो अपने नितम्ब गोल गोल घुमाने लगती।
हम दोनों मस्ती में चूर थे।

और फिर गुड्डी क्यों बख्शती , उसने रंजी की चूत में धंसे बेन वा बाल्स का वायब्रेटर फुल स्पीड में आन कर दिया , नतीजा वही हुआ जो होना था।

रंजी झड़ने के कगार पे आ गयी , सिसक सिसक के उसकी हालत ख़राब थी। लेकिन अबकी गुड्डी ने न रिमोट बंद किया , न स्पीड धीमे।

और वो दो चार बार जोर जोर से झड़ी। जब उसका झड़ना शुरू हो जाता तो मैं धक्के लगाना बंद कर देता और गुड्डी बी रिमोट आपफ कर देती। लेकिन कुछ देर बाद हम दोनों चालू हो जाते।


और जब रंजी पांचवी बार झड़ी , तो इतनी जोर जोर से उसकी गांड मेरे लंड को निचोड़ रही थी , दबोच रही थी , साथ साथ मैं भी ,

मेरी भी आँखे बंद हो गयी थी , बस दोनों हाथों से उसके नितम्बो को मैंने जोर से ऊपर उठा रखा था , और लिंग एकदम जड़ तक अंदर धंसा।

पता नहीं मैं कब तक झड़ता रहा ,गिरता रहा उसी गांड में और जब मेरी निगाह खुली तो गुड्डी इशारा कर रही थी , बस उसी तरह चूतड़ उठाये रहूँ , गांड में धँसाये रहूँ।

गुड्डी मेरी ओर आई और उसके इशारे पे जैसे ही मैंने लंड बाहर किया , उसने बेन वा बाल्स के धागे के दूसरे सिरे पे लगे बट प्लग को उसकी गांड में ठूंस दिया।

अब मेरी सारी मलाई उसकी गांड से बाहर नहीं निकल सकती थी।

जैसे ही हम अलग हुयी हम सबकी निगाह घडी पे पड़ी और सबकी चीख एक साथ निकल गयी।

आडिशन में सिर्फ ४० मिनट बचे थे , और बीस -पच्चीस मिनट तो वहां पहुँचने में लगते। कम से कम १० मिनट पहले पहुंचने के लिए मेसेज था।

गुड्डी ने समझाया कोई नहीं , बस पांच मिनट लगेंगे लेकिन अब सफाई वफाई नहीं , मैंने और गुड्डी ने मिल के उसे थांग पहनाई , बेन वा बाल्स अंदर ही थीं ,

जींस तो वैसे ही घुटने तक ही उतरी थी , खीच तान के उसे भी ऊपर कर के हुक बंद कर दिया।


गुड्डी उसका मेकअप ठीक करने में लग गयी और मैं उसके कपडे।

१० मिनट के अंदर वो रेड़ी थी।



" हे चलेंगे कैसे , इसको बोलें छोड़ने के लिए " गुड्डी ने मेरी ओर इशारा किया।

लेकिन रंजी भी , अपनी ऐक्टिवा की चाभी उसने लहराई , "अरे है न मेरी धन्नो , चल न। और इनको आराम करने दे , रात अभी बाकी है , बात अभी बाकी है , आज तेरी कुटवाउंगी। '"

और थोड़ी देर में दोनों उड़न छू।

बस मैं बैठे रंजी के बारे में सोच रहा था की कही देर न हो जाये।

लेकिन आधे घंटे के पहले ही रंजी का स्माइली भरा मेसेज आ गया। दोनों पहुँच गयीं।

फिर एक गुड्डी का मेसेज था और अबकी मैं बिना स्माइल किये नहीं रह सका।

थोड़ी देर तक मैं सर्फ करता रहा लेकिन मन मेरा गुड्डी और रंजी में ही लगा था।

बस यही सोच रहा था की कल हम तीनो इस समय बनारस के रास्ते पे होंगे।

और चंदा भाभी ने जो वायदा किया है , 'रंगपंचमी में रंजी की दुर्गत करने की ' और जो गुड्डी /रीत ने अड्वान्स बुकिंग करा रखी है उसकी ,

क्या होगा रंजी के साथ बनारस में।


और यही सोचते सोचते मैं सो गया ,
 

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