Thursday, April 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--165

 FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--165

 बाहर रात की कालिख थोड़ी कम हो गयी थी ,.

अचानक लेफ्टिनेंट जनरल गुल मुस्कराये और सजी बाजी दूसरी ओर जा के खड़े होगये और बोले

" जो तुम कह रहे हो और मैं सोच रहा हूँ , वो एकदम सही है अगर हम गेम को गेम के रूल्स से खेलें। लेकिन हम गेम के रूल्स मानते ही कब हैं। मान लो , जीत की ख़ुशी में पल भर के लिए उसका ध्यान हट जाय और फिर ,… हम कोई ऐसा जाबिर मुहरा जो अभी गेम में न हो वो स्ट्रैटजिकली रख दें तो , "


और उन्होंने अपने हाथ में छुपा एक मुहरा बोर्ड पर रख दिया ,

" अब तो गेम का नक्शा ही बदल गया ,हमारी फतह अब यकीनन होगी। " खुश होके जुनेद बोला।




बाहर अब अँधेरा काफी कम हो गया था ,लेफ्टिनेंट जनरल गुल ने दोनों से जाने को कहा।

और खुद बाजी देखते हुए सोचते रहे ,कौन हो सकता है ये मोहरा।
कुछ देर बैठ कर ढलती हुयी रात वो बाहर देखते रहे , और उन्होंने फैसला कर लिया।


वो अपनी स्टडी में थे।

तीन ऐड उन्होंने पोस्ट किये , अलग अलग आईपी एड्ड्रेस से ,

एक लोकान्तो पर " मेल लुकिंग फॉर मेल "

एक ई बे पर एक पुरानी किताब के सेल का

और एक क्रेग लिस्ट पर पर्सनल कालम में


अगर चार घंटे के बीच तीनो का जवाब आ जाता है तो इसका मतलब कांटेक्ट हो गया।

जवाब दो घंटे के अंदर ही आ गया। हाँ में।

अपनी सेफ खोल कर उन्होंने एक कोड बुक निकाली और केमैन आइलैंड में एक बैैंक को नेट पर पैसे ट्रांसफर कर दिए। अबकी सारे पैसे अड्वान्स देने थे।


और ये अकाउंट भी सेमी सरकारी था।


अगला कदम था ,उसे फोटो पहुंचाने का। और डिटेल देने का।


वो कदम सबसे आसान था , एक मेट्रिमोनियल साइट उन्होंने खोली , दूल्हा दुलहन और उस पर उस लड़के की फोटो उन्होंने पोस्ट कर दी।

और साथ में डिटेल भी।

आधे घंटे के पहले ही प्रपोजल आ गया।

लड़की की जगह कैटरिना कैफ का फोटो था।

इसका मतलब डील पक्की।

उसे डिटेल भी मिल गया था , पैसा भी।

उन्होंने ट्रिगर दबा दिया था , बस अब गोली लगने की देर थी। और उस पिस्तौल की गोली आज तक चुकी नहीं थी।

सुबह हो गयी थी , ,
अब वह निश्चिन्त थे।
फिर सोने चले गए।

उस समय वहां साढ़े सात बज रहे थे।






समोसे वाली



और यहाँ ८ बज रहे थे , हलवाई कीदुकान पे अभी अभी बड़ी कड़ाही में समोसे तलने के लिए डाले गए थे और दूसरे चूल्हे पे गरम गरम लाल लाल जलेबी निकाली जा रही थी।

दूकान पर भीड़ थी लेकिन ज्यादा नहीं।
दुलहा दुल्हन के कालम में जिसकी फोटो छपी थी , वो लड़का , वही अपने आनंद बाबू इन सबसे अनजान समोसे की दूकान पे खड़े थे।
आनंद बाबू की एक निगाह , गरम छनते समोसों पर लगी थी और दूसरी सड़क पर थी।

और सबका इंतजार सफल हुआ।
कड़ाही से तो समोसे निकलने में अभी देर थी , लेकिन सामने से ;समोसे वाली; दिखाई पड़ी और जोर से एक सामूहिक आह निकल पड़ी जिसमें सबसे तेज आह हलवाई की थी।

'समोसे वाले ' के समोसों के पूरे कालोनी वाले दीवाने थे और सबसे बढकर , वो हलवाई।

सबकी निगाह उस पर बाद में पड़ी , उसके समोसों पर पहले , और उसने जान बुझ के खुद अपनी निगाह वहीँ डाली , सामने के निगाहों को देख के हलकी सी मुस्कराई उसकी निगाह आंनद बाबू से टकराई और मुस्कान डेढ़ इंच और लम्बी हो गयी। 

उनकी निगाह भी सबकी तरह उसके समोसे पे चिपके दुलरा सहला रहे थे।

दरेरते रगड़ते मुस्कराते भीड़ के बीच ठेलते वो सीधे आनंद बाबू से चिपक कर खड़ी हो गयी।

बाकी दुनिया को ये क्या मालूम , जिस समोसे के लिए वो लार टपका रहे हैं , होली के दिन उन्हें जम के आनंद बाबू ने कस के रगड़ा मसला है और काटा चूसा है।

साथ में बोनस में नीचे वाली रसमलाई भी।

कनखियों में दुआ सलाम हुआ और फुसफुसा के मैं बोला ,

" हे क्या हाल है "
वो मुस्कराई और चिपक गयी और उसी तरह फुसफुसा के बोली ,

" मारूंगी , अभी तक दर्द हो रहा है "

आनंद बाबू की उँगलियाँ मौके का फायदा उठाकर समोसे को हलके से छू रही थीं।

" थोड़ा सा और दबवा लो , न दर्द खत्म हो जाएगा। " हलके से मैं बोला ,

"मुझसे पूछ के दबाया था क्या , पहले "खिस्स से हंस के वो बोली।

इस से बढ़ कर नेवता कौन लौंडिया देती।

मैं बोला , " बिना पूंछे धँसाया भी तो था , नीचे कहो तो फिर ठेल दू। "

"धत्त , चला नहीं जा रहा है अब तक , तुम लगते सीधे हो , हो बड़े बदमाश। " मुस्करा के वो शोख बोली।

साल्ली एकदम पटाखा मॉल थी , और अब जब होली में भाभियों ने जम के रगड़ दिया , और मैंने भी हचक के पेल दिया , तो जैसे गरम तवे पे पानी के कोई दू चार बूंदे डाल दे बस उसी तरह छनछना रही थी।

और आज मजा पूरे मोहल्ले वाले भी ले रहे थे , जिस तरह वो समोसे उचका रही थी।

Uske उसके आने के पहले सब की निगाह कड़ाही में गरम गरम छनते समोसों पर थी।

और अब वो उसके फ्राक फाड़ते समोसों पर चिपक गयी थी।
सबके खूंटे फड़फड़ा रहे थे , तड़प रहे थे।

खड़क सिंह के खड़कने से खड़कती हैं खिड़कियां।

खिड़कियों के खड़कने से खड़कते हैं खड़क सिंह।


बस वही हाल हो रहा था ,


खड़क सिंह के खड़कती हैं खिड़कियां।

खिड़कियों के खड़कने से खड़कते हैं खड़क सिंह।

बस वही हाल हो रहा था ,

और वो खुद समोसे दोने में लेकर मुझसे चिपकी हुयी थी।


लड़कियों का यही हाल है , पहले शरमायेंगी , गुस्सायेंगी , फिर चीखेंगी चिल्लाएँगी। और सब कुछ अनसुनी कर के एक बार हचक के खूंटा ठेल दो , तो बस खुश खुद ललचाती ,खूंटे के आस पास चक्कर काटेंगी।

और होली के दिन ,कर्टसी रीतू भाभी जो मैंने जबरन उसकी उसकी चुनमुनिया फाड़ दी थी ,जहाँ अभी बाल भी ठीक से नहीं आये थे। बस उसके बाद से जो उसको जंगबहादुर का स्वाद लगा ,तो सोनचिरैया , लार ही टपका रही थी।

और बतरस के साथ मौका पा कर मेरी उँगलियाँ भी फ्राक के ऊपर से समोसों का स्वाद चख रही थी।

आज जरा भी बुरा नहीं लग रहा था की समोसों के तलने में इतना टाइम क्यों लग रहा है।



और आधे घण्टे बाद जो मैं लौटा समोसे जलेबी ले कर , वो भी साथ थी और रास्ते में एक सांकरी गली में , मेरे दोनों हाथ तो फंसे थे ,समोसे जलेबी में , होंठों ने जम कर उसके समोसों और होंठों की जलेबी का स्वाद ले लिया।


जब तक मैं घर में पहुंचा , पूरा सन्नाटा। किचेन में समोसे जलेबी रख कर जो मैं ऊपर गया ,भाभी के कमरे में जहाँ रात में मैं गुड्डी और रंजी थे , दबे पाँव।


और वहां रंजी और गुड्डी ,दोनों घोड़े , हाथी ऊंट , जो कुछ भी बेचा जा सकता था ,बेच कर सो रही थी.एक दूसरे की बाँहों में।

कल रात का रतजगा सिर्फ मेरा थोड़े ही था उन दोनों का भी था और उसकी पिछली रात भी दोनों ने जिया और दिया के साथ मस्ती की थी।

मैंने दोनों को सोने दिया और वापस किचेन में लौट आया।

पे बैक टाइम , और किचेन में मैं लग गया ब्रेकफास्ट बनाने में।


.......



क्या बनाउ इस उधेड़बुन में लगा था।

मेरे आँखों के सामने रात का सीन बार बार आ रहा था , कित्ता दर्द हुआ होगा बिचारी रंजी , कैसे लेकिन उसने बर्दाश्त किया , मुझे कुछ भी बुरा भला नहीं कहा।

अचानक मुझे याद आया रंजी की फेवरिट डिश ,बेसन का हलवा।

और फिर मुझे वो भी याद आया की जब चंदा भाभी और भाभी , रंजी के बारे में बात कर उसे चिढ़ा रही थी और चंदा भाभी ने बोला था की आने दो उस रंडी छिनार को , दोनों टाइम झान्टो के छन्ने से छानकर , सुनहला शरबत पिलाऊंगी , उसी समय बेसन के हलवे की भी ,


ढूंढने पर किचेन में मुझे सब कुछ मिल गया , बेसन , देशी घी , चीनी दूध , ड्राई फ्रूट्स।

दो तीन कटोरी बेसन मैंने खूब भूना , देशी घी में और फिर कुछ याद कर के थोड़ा घी और ऊपर से डाल दिया , फिर गाढ़ा दूध , चीनी और बाद में क्सिमिश , कटे हुए काजू और बादाम ऊपर से।

इसके बाद फिर मैंने चाय चढ़ा दी और टेबल लगाने में लग गया।

चाय बनने के बाद मैं ऊपर से दोनों को जगाने गया।

दोनों उठ गयी थी और मुझे देखते ही गुड्डी बोली , यार एक कप गरम चाय मिल जाती ,

रंजी तो और , मुस्करा के बोली , "सिर्फ चाय या चाय वाय। इत्ते सस्ते में मत छोड़ना। "


"चाय भी मिलेगी और वाय भी पहले नीचे तो चलो " मैंने दोनों को खींच कर पलंग से उठाया।


रंजी बेबी डाल में थी और गुड्डी मेरा शार्ट और एक लम्बी शर्ट पहने।


और टेबल देख कर दोनों की चीख एक साथ निकल गयी।

चाय के साथ , जलेबी , समोसे और गरमागरम बेसन का हलवा।

मेरा फेवरिट , रंजी जोर से हलवे को देख के बोली।

गुड्डी कोई छेड़ने का मौका क्यों छोड़ती , बोली।

" एक रात में ही तय कर लिया , लगता है बहुत मजा आया कल रात , चल ये तेरा फेवरिट है तो कम फेवरिट कितने हैं , गिना न। "
,
" कमीनी , हरामन सबको अपने जैसा समझती है , अरे मैं हलवे के बारे में बात कर रही थी , भैया ने क्या मस्त हलवा बनाया है , मेरी फेवरिट डिश है। " रंजी ने जोर से एक धौल गुड्डी की पीठ पे मारते हुए कहा ,और धस्स से दोनों साथ साथ बैठ गयीं।

मैं सामने बैठा।

रंजी ने ऊँगली से ही सीधे हलवा निकाल के थोड़ा सा चखा और उसके चेहरे पे १००० वाट का बल्ब जल गया , ख़ुशी का और फिर उसने बाकी हलवा अपनी ऊँगली से मेरे मुंह में डाल दिया।

घी में डूबा , बढ़िया मीठा।


गुड्डी ने भी सीधे ऊँगली डाल के चखा और हंस के बोली , लगता है और कुछ नहीं तो किचेन का काम तेरी मायकेवालियोंं ने बढ़िया सिखाया है , लेकिन ससुराल वालियों का होगा।

" अरी नदिदयों हाथ क्यों लगा रही हो देता हूँ न ," और मैंने दोनों की प्लेट में हलवा निकाल दिया।

भोली बनकर रंजी ने गुड्डी से पूछा , " क्यों अब ऊँगली का इस्तेमाल हमें नहीं करना चाहिए। "

उसी मुद्रा में गुड्डी बोली ," एक दम नहीं आखिर ये छ फिट का मर्द क्यों सामने बैठा है। इसके रहते हुए ऊँगली का इस्तेमाल क्यों करेंगे। "


और साथ में गुड्डी ने थोड़ा और हलवा , रंजी की प्लेट में डाल दिया और उसकी देखादेखी , मैंने भी।

रंजी के लाख ना ना करने पर भी , हम दोनों उससे प्लेट खत्म करवा के माने।

" अरे रात भर तेरा हलवा बनाया तो अब इनका बनाया हलवा तो तुझे खाना ही चाहिए " गुड्डी बोली।

" देख घी किता पड़ा है " मैने भी टुकड़ा लगाया।
" और क्या बस डालने की देर है , सट्ट से अंदर चला जाएगा पूरा। "


डबल मीनिंग डायलॉग का कोई मौका गुड्डी भला छोड़ सकती थी। और अब उसके अंदर चंदा भाभी की आत्मा घुस गयी थी और वैसे वो थी भी बनारस की गुड की डली।

" ऊपर वाले मुंह से नहीं खायेगी तो नीचे वाले मुंह से घोंटना पड़ेगा , और वैसे भी तेरे भैया कम सैयां ने कल रात वो रास्ता भी अच्छी तरह खोल दिया है , बस आसानी जायेगा। अब आगे तेरी मर्जी तू किधर से घोटना चाहती है। "

गुड्डी के आगे बड़े बड़े हार मान जाते हैं।

पूरा दो कटोरी हलवा जबरन उसने रंजी को उदरस्थ करवाया।

( गुड्डी कहती है मेरा बल्ब थोड़ा देर से जलता है , और ये बात भी मुझे बाद में समझ में आई की रंजी को वो ठूंस ठूंस कर क्यों खिलवा रही थी। )

और उसके बाद जलेबी और समोसे भी।

सवा दस बजे के बाद उन्होंने नाश्ता खत्म किया।
 


एक रात और, घर हमारे हवाले


सवा दस बजे के बाद उन्होंने नाश्ता खत्म किया।

प्लेट मैं ही किचेन में ले गया , टेबल खाली की।

लेकिन उसके बाद दोनों ने किचेन पर कर कब्जा कर लिया और मुझे वहां से बाहर खदेड़ दिया गया।

नो इंट्री अगले ढाई घंटो तक , मैं अपने कमरे में रहूँ।

मन मसोस कर मैं अपने कमरे में वापस आ गया।
मीनल को मैंने फोन घुमाया।

रीत और करन वहां पहुँचने वाले ही थे। आधे घंटे पहले उनका शिप हजीरा पहुँच चुका था। उसने बोला रीत एकदम ठीक है। और अगले २४ घंटे तक वो दोनों मिल के करन की ऐसी की तैसी करने वाली थीं। कल ११ बजे सूरत से बनारस की स्पेशल फ्लाइट रीत और करन बनारस जाने वाले थे। और वो बड़ौदा वापस लौट जायेगी।

मैंने हिसाब लगाया।

वो दोनों , हम लोगों के थोड़ा पहले बनारस पहुँच जाएंगे। पहुँच जाएंगे। हम लोग भी खाना खा के निकलेंगे , २-३ बजे तक तो शाम होने तक बनारस , मैं , रंजी और गुड्डी।

मैंने फोन रखा ही था की चहकती हुयी गुड्डी और रंजी कमरे में दाखिल हो गयीं , तुम्हारी भाभी का फोन कहते हुए मुझे फोन पकड़ा दिया।


भाभी ये बोल के गयी थीं की वो कल आ जाएंगी , मैंने सोचा बस ये बताने के लिए वो फोन कर रही होंगी की वो चलने वाली हैं और अब हम लोगों की आजादी मुश्किल से एक दो घंटे की और है। लेकिन गुड्डी रंजी के चेहरे पर जिस तरह शरारत नाच रही थी , उससे साफ लग रहा था की बात कुछ और है।


मुश्किल से दोनों हंसी दबा पा रही थीं।

और फोन का स्पीकर ऑन था।

" क्यों ये दोनों मिल के तुझे तंग तो नहीं कर रही हैं। " भाभी ने खिलखिलाते हुए पूछा और जवाब उचक कर रंजी ने दिया ,

" आपके देवर के लिए हम दोनों किचेन में पिसे जा रहे हैं और ये अपने कमरे में आराम से बैठे पता नहीं क्या क्या लैपटॉप पे देख रहे हैं। "

" अच्छा चलो , सुनो , हम लोगों को एक रात और यहाँ रुकना पड़ रहा है , मैंने तो लाख मना किया की कल तुम लोग बनारस चले जाओगे लेकिन भैया न , और उनकी भी मज़बूरी , उनके दोस्त पीछे पड़े हैं सबकी वाइफ रुक रही हैं तो मैंने कुछ पक्का करने के पहले सोचा एक बार तुमसे पूछ लूँ। '

मेरे तो चेहरे पे वो चमक आई की मैं बता नहीं सकता , लेकिन कुछ मुंह तो बनाना था।

" भाभी ये दोनों तो आप जानती हैं , लेकिन आप की बात भी ठीक है। मैंने मैनेज कर लूंगा किसी तरह , लेकिन हम लोगों को कल शाम के पहले ही बनारस पहुंचना होगा , इसलिए ,… " मैंने बोला।

फोन पर पीछे से भैया की आवाज सुनाई दे रही थी , उन्हें बुलाते हुए।

और भाभी ने फोन काट दिया ये कह के , " ठीक है हम लोग सुबह ही निकल लेंगे , ९-१० तक पहुँच जाएंगे। "

और जैसे ही मैंने फोन बंद किया , हंसी के फवारे छूट रहे थे ,रंजी और गुड्डी के।


"मन मन भावे मूड हिलावे " गुड्डी बोल रही थी। "सोच तो रहे होगे की किसी तरह एक रात और मिल जाए ये मस्त माल और ऊपर से नखड़ा बना रहे थे।'

रंजी कुछ झेंप गयी और किचेन में वापस चली गयी।

" असली तो मजा आज आएगा , अब मंतर भी जग गया है और ताला भी खुल गया है , आगे का भी पीछे का भी। अब लेना साल्ली की हचक कर। उसकी चूत में भी चींटे काट रहे होंगे। लेकिन मंतर की शर्त याद है ना , आज बारह बजे तक नो एंट्री और उसके बाद खुला खेल। "

और गुड्डी भी किचेन में।


जंगबहादुर कसमसा रहे थे लेकिन अभी तो डेढ़ घंटे बाकी थे १२ बजने में।

और मैंने एक बार फिर कंप्यूटर की ओर रुख किया।
और मैं क्या करता , फिर कंप्यूटर से लस लिया
। 

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