Saturday, March 14, 2015

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--5

FUN-MAZA-MASTI

 गुमराह पिता की हमराह बेटी--5

आखिर जयसिंह की किस्मत जवाब दे ही गई थी. वे लोग अपने हॉटेल रूम में लौट चुके थे और जयसिंह एक तकिया लेकर काउच पर अधलेटे हुए सोए पड़े थे. मनिका बेड पर अकेली कम्बल से अपने-आप को ढंके हुए थी. दोनों सोने का नाटक कर रहे थे पर नींद उनके आस-पास भी नहीं थी.
जयसिंह के मन में निराशा की उथल-पुथल मची हुई थी 'अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली मैंने...'
जयसिंह के मनिका से ब्रा-पैंटी लेने को कहते ही मनिका का बदन शॉक से अकड़ गया था. उसने एक क्षण रुकने के बाद मुड़ कर उनकी तरफ देखा था और जयसिंह उसकी नज़र से ही समझ गए थे कि उनके किए-धरे पर पानी फिर चुका है. उसकी आँखों में शर्म, गुस्से और नफरत का मिला-जुला सैलाब उमड़ रहा था. जयसिंह कुछ न बोल सके थे और मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई वहां से बाहर निकल गई थी.
जब वे बिल चुका कर मनिका के खरीदे सामान के साथ उसे ढूँढ़ते हुए वापस कार पार्किंग में पहुंचे तो पाया कि वह आकर कैब में बैठ चुकी है, उन्होंने ड्राईवर से डिक्की में सामान रखवाया था और चुपचाप कार में ड्राईवर के बगल में आगे की सीट पर बैठ उसे हॉटेल चलने को बोला था. हॉटेल पहुँच कर भी वे दोनों बिना कोई बात किए चलते हुए अपने कमरे तक आए, आज मनिका उनसे अलग होकर चल रही थी. जयसिंह ने कमरे में घुस कर अपने हाथों में उठाए शॉपिंग-बैग्स एक तरफ रखे ही थे कि मनिका का गुस्सा फट पड़ा था,
'बदतमीज़ी की भी कोई हद होती है!' मनिका ने ऊँची आवाज़ में कहा था. जयसिंह ने सीधे हो कर उसकी तरफ अपराधबोध से भरी नज़रों से देखा. 'आप होश में तो हो कि नहीं? क्या बके जा रहे थे वहाँ...आपको जरा भी शर्म नहीं आई मुझसे ऐसी बात कहते हुए पापा?' मनिका अब तैश में आ गई थी.
जयसिंह क्या जवाब देते. एक-एक कर उनके बनाए हवाई-महल उनके आस-पास ध्वस्त हो गिर रहे थे.
'आई एम् यौर डॉटर फॉर गॉड्स सेक! कोई अपनी बेटी से इस तरह...' मनिका आगे की बात कह न सकी थी और आगे बोली 'डोंट यू टॉक टू मी, आई एम् सिक् ऑफ़ यू...' और लगभग भागती हुई बाथरूम में घुस गई थी. उसकी आँखों में शर्म और गुस्से के आँसू थे.
जयसिंह बेड के पास हक्के-बक्के से खड़े थे.
मनिका ने बाथरूम में जा कर कुछ देर तक ठन्डे पानी से अपना मुहँ धोया, आज तक उसे इतनी शर्म और जिल्लत कभी महसूस नहीं हुई थी. उसने जब मुहँ धोने के बाद सामने लगे आईने में देखा था तो उसे अपना रंग उड़ा हुआ चेहरा नज़र आया, 'ओ गॉड. ये क्या हो रहा है मेरे साथ?' उसने धड़कते दिल से सोचा था, उसे एहसास हुआ कि जयसिंह की बदतमीजी के बाद से ही उसके दिल की धड़कने बढ़ी हुईं थी. 'पापा ऐसा कैसे कह सकते हैं कि लॉनजुरे चाहिए तो...अब कैसे उनके साथ कभी नॉर्मल हो सकूँगी मैं...शायद कभी नहीं...अभी तक तो वे भी कुछ बोले नहीं है बस चुप्पी साधे खड़े थे...वैसे भी कुछ बोलना बाकी तो रह नहीं गया है...'
बाहर जयसिंह भी अपनी हार को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रहे थे, उनकी अंतरात्मा भी एक बार फिर से सिर उठाने लगी थी, 'यह तो सब खेल चौपट हो गया. मेरी भी मत मारी गई थी जो मैंने संयम से काम नहीं लिया...लेकिन वैसे भी बुरे काम का अंत तो हमेशा बुरा ही होता आया है...अगर कहीं उसने घर पे यह बात जाहिर कर दी तो..?' जयसिंह को भी अब अपने किए को लेकर तरह-तरह की अनिश्चिताओं ने घेर लिया था 'पता नहीं क्या सोच कर मैंने ये कदम उठाए थे...मनिका और मेरे बीच ऐसा कुछ हो सकता है यह सोचना ही मेरी सबसे बड़ी गलती थी...अपने ही घर में आग लगा ली मैंने...साली की जवानी देख कर बहक गया यह भी नहीं सोचा कि कितनी बदनामी हो सकती है...' जयसिंह अपनी पराजय के बाद अब खुद पर ही दोष मढ़ रहे थे आखिर ये सब उन्हीं की हवस से उपजा था.
मनिका जब बाथरूम से बाहर निकली तो पाया कि जयसिंह तकिया लिए हुए काउच पर लेटे थे, उसके आने पर उन्होंने एक नज़र उठा उसे देखा था पर मनिका की हिकारत भरी नज़रों से अपनी नज़र नहीं मिला पाए और फिर से आँखें नीची कर लीं थी.
असल में जयसिंह द्वारा मनिका के लिए लेग्गिंग्स लेने के दौरान ही उसके मन में बेचैनी और असहजता जग चुकीं थी और उनके द्वारा कही अगली बात ने उसको भड़काने का काम कर दिया था. इस तरह जयसिंह ने अपनी इतने दिन की चालाकियों और जुगत लगा जीता हुआ मनिका का भरोसा दो पल में ही खो दिया था. जो मनिका कुछ घंटे पहले तक उनकी तारीफों के पुल बांधती नहीं थकती थी वह अब उनकी शक्ल देख कर भी खुश नहीं थी.
मनिका को भी जयसिंह के ऊपर भरोसा करने पर मिला विश्वासघात बेहद गहरा लगा था. उसने सपनों में भी नहीं सोचा था कि एक पिता अपनी जवान बेटी से इस तरह का निर्लज्ज व्यवहार कर सकता है.
अपने-अपने टूटे हुए सपने लिए वे दोनों ही देर तक जागते रहे थे पर आखिर सुबह होते-होते उनकी आँखें लग हीं गई.
अगली सुबह जयसिंह की जाग थोड़ी देर से खुली थी, रात भर काउच पर सोने की वजह से उनका शरीर को भी अच्छे से आराम नहीं मिल पाया था, उन्होंने बेड की तरफ देखा तो पाया कि मनिका अभी भी लेटी हुई थी. कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद जयसिंह धीरे से उठे, मनिका बेड पर जिस ओर करवट ले कर सो रही थी उसी तरफ उनका लगेज भी पड़ा था. जयसिंह दबे पाँव अपने सामान के पास गए और अपनी अटैची से अपने कपड़े निकालने लगे. जब वे अपने कपड़े ले कर वापस जाने लगे थे तो उनकी नज़र मनिका के चेहरे पर चली गई थी, उन्होंने देखा कि उसने जल्दी से अपनी आँखें मीचीं थी.
जयसिंह बिना कुछ बोले चुपचाप बाथरूम में घुस गए थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें या कहें. उनके जाने के बाद मनिका ने उठकर कमरे में रखी पानी की बोतल से पानी पिया था. वह भी, अपने और जयसिंह के बीच बढ़ी दूरियों का सामना कैसे करे, इस उलझन में थी. जयसिंह जल्दी ही नहा कर बाहर निकल आए थे. उन्होंने मनिका को बिस्तर में बैठे पाया, मनिका ने तय किया था कि वह पीछे नहीं हटेगी और इसीलिए अब वह सोई होने का नाटक नहीं कर रही थी.
जयसिंह बाथरूम से निकल कर आए ही थे कि कमरे में रखे फोन की घंटी बजने लगी. जयसिंह और मनिका के बीच एक तनाव भरा माहौल बन गया था, दोनों ही अपनी-अपनी जगह जड़वत् हो गए थे, कुछ देर जब फोन बजता रहा तो आखिर जयसिंह ने जा कर फोन उठाया,
'हैल्लो?' जयसिंह की आवाज़ भर्रा कर निकली थी.
फोन रिसेप्शन से था, उनकी कैब का ड्राईवर नीचे आ चुका था और उनका वेट कर रहा था. जयसिंह ने उनसे कहा कि अब उन्हें कैब की जरुरत नहीं रहेगी सो वे उनकी बुकिंग कैंसिल कर दें और फ़ोन रख दिया था. मनिका को उनकी बातों से समझ आ गया था कि फोन कहाँ से आया है.
जयसिंह ने फोन रख अपने पिछले दिन पहने कपड़े (रात वे बिना चेंज किए ही सो गए थे) समेट कर अपनी अटैची में रखे और फिर बिना एक बार भी मनिका की तरफ देखे कमरे से बाहर चले गए.
उनके चले जाने के बाद मनिका बेड से निकली थी और नहा धो कर अपनी ज़िन्दगी में आए इस तूफ़ान के बारे में सोचते हुए बेड पर पड़े-पड़े ही पूरा दिन बिताया था. बीच में भूख लग आने पर उसने रूम-सर्विस पर कॉल कर खाने के लिए एक दो चीज़ें ऑर्डर कीं थी पर जब वेटर खाना लेकर आया तो उसने थोड़ा सा खाकर छोड़ दिया था और वापस बेड पर जा लेटी थी. जयसिंह का सुबह से कोई अता-पता न था.
रात को होते-होते मनिका को नींद की झपकी आ गई थी जब उसे कमरे का गेट खुलने का आभास हुआ. मनिका ने कमरे की लाइट बुझा रखी थी, अँधेरे में किसी ने राह टटोलते हुए आ कर लाइट जलाई. जयसिंह ही थे.
मनिका ने बेड से सिर उठा कर उनींदी आँखों से उन्हें देखा और अजीब सा मुहँ बनाया, फिर वह उठ कर बैठ गई, जयसिंह एक बार फिर अपना पायजामा कुरता ले कर बाथरूम में घुस रहे थे.
'मुझे यहाँ एडमिशन नहीं लेना है.'
मनिका की आवाज़ सुन जयसिंह ठिठक कर खड़े हो गए थे.
'मुझे घर जाना है.' मनिका आगे बोली.
जयसिंह ने उसकी तरफ देखा, मनिका ने भी दो पल उनसे नज़र मिलाए रखी और घूरती रही. जयसिंह ने नज़र झुका ली,
'दो-चार दिन की बात है...इतने दिन से यहाँ हम आपके एडमिशन के लिए ही रुके हुए है. हमारे वहाँ वैसे भी कोई ढंग के कॉलेज नहीं है.' उन्होंने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा 'देख लो अगर रुकना है तो...नहीं फिर मैं कल टिकट्स करवा आऊँगा.' और वे बाथरूम में घुस गए.
मनिका ने पूरे दिन यही सोचते हूए बिताया था कि वह जयसिंह से वापस चल-चलने को कहेगी, उसे उनके भरोसे अब नहीं रहना है पर जयसिंह के सधे हुए जवाब में तर्क था और फिर बाड़मेर वापस जाने पर उसे घर पर ही रहना पड़ता जहाँ उनसे उसका रोज सामना होता, पर यह बात वह जयसिंह से नहीं कहना चाहती थी सो उनके बाथरूम से वापस बाहर निकल आने के बाद भी मनिका ने उनसे कुछ नहीं कहा था और बेड पर लेटी रही. जयसिंह ने भी और कुछ नहीं कहा और लाइट बुझा अपने काउच पर जा लेटे थे.
अगले दिन फिर सवेरे-सवेरे ही जयसिंह कमरे से नादारद हो गए. मनिका ने उन्हें उठ कर कमरे में खटर-पटर करते हुए सुना था और फिर उनके चले जाने और कमरे का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई थी. उनके जाते ही वह उठ गई थी.
मनिका की फिर वही दिनचर्या रही, उसने आज फिर खाना थोड़ा ही खाया था. उसके मन में रह-रह कर जयसिंह की बात आ जाती थी और उसके विचारों का चक्र फिर से शुरू हो जाता था. आखिर उसने दिल बहलाने के लिए उठकर टी.वी चालू किया और बैठी-बैठी चैनल बदलने लगी. कुछ देर बाद मनिका एक इंग्लिश मूवी चैनल जा कर रुक गई थी; उस पर एक कॉमेडी फिल्म चल रही थी. मनिका का पूरा ध्यान तो उसमें नहीं था पर फिर भी वह वही देखने लगी.
कुछ देर बाद फिल्म में एक सीन आया जिसमें एक परिवार बीच (समुद्र किनारे) पर पिकनिक मनाने जाता है. उस परिवार में माँ-पिता और उनके दो जवान बेटा-बेटी साथ होते हैं. बीच पर पहुँच कर वे अपनी पिकनिक एन्जॉय कर रहे होते हैं कि वहाँ पास ही एक और फैमिली आ जाती है और वे आपस में घुलने-मिलने लगते हैं. पहली फैमिली वाला आदमी एक-एक कर के दूसरी फैमिली से अपने परिवार का इंट्रोडक्शन करवा रहा होता है. जब वह अपनी बेटी का नाम लेता है तो वो वहाँ नहीं होती, सो वह आवाज़ लगा कर उसका नाम पुकारता है, इस पर उसकी बेटी उनकी वैन के पीछे से निकल कर आती है, उसने एक लाल बिकिनी पहनी होती है, उसे देख दूसरी फैमिली में दिखाए लड़के का मुहँ खुला रह जाता है, इस तरह वो सीन आगे बढ़ता रहता और फिल्म चलती रहती है जिसमे कुछ देर बाद दोनों परिवार एक साथ पिकनिक मना रहे होते हैं और कुछ हास्यपद घटनाएं घटती हैं.
मनिका का ध्यान उस सीन को देखने के बाद फिल्म से पूरा ही हट गया था. 'यह फोरेनरस (अंग्रेज) भी कितने पागल होते हैं...बेटी को बाप के सामने बिकिनी पहने दिखा दिया बताओ...' मनिका का दीमाग तो वैसे ही अपने पिता के व्यवहार से ख़राब हो रखा था, अब उसने जब फिल्म में ऐसा सीन देखा तो उसके मन में फिर ख्याल उठने लगे थे. 'कैसे वह लड़की आकर अपने माँ-बाप के सामने खड़ी हो गई थी और उसका बाप हँस-हँस कर उसका इंट्रोडक्शन और करवा रहा था...यहाँ तो मेरे पापा के...ओह यह मैं क्या सोचने लगी...नहीं बाहर ऐसा चलता होगा, गलती तो पापा की ही थी...पर ये अंग्रेज इतने फ्रैंक क्यूँ होते हैं? कोई कल्चर नहीं है क्या इनका, बेटी बाप के सामने अधनंगी खड़ी है बोलो...'(मनिका ने दो दिन से खाना ठीक से नहीं खाया था सो उसका तन और मन वैसे ही थोड़ा कम काम कर रहे थे. अब उसके विचलित मन में ऐसे विचार उठ रहे थे जिन पर वह चाह कर भी लगाम नहीं लगा पा रही थी) 'तुम भी तो कुछ दिन पहले पापा के साथ अधनंगी हो कर पड़ी थी...' मनिका के अंतर्मन ने उसे याद कराया था 'हाय ये मैं क्या...पर मैंने जान-बूझकर थोड़े ही किया था वो...' मनिका ने अपने आप को सफाई पेश करते हुए सोचा. 'और पापा ने मुझे कुछ बोला भी नहीं था क्यूँकी..? ये तो मैंने सोचा ही नहीं आई मीन उस वक़्त मुझे लगा था कि वे भी मुझे ऐसे देख कर एम्बैरेस होंगे बट...परसों उन्होंने कहा था कि वे एक पैरेंट की तरह मुझे रोक-टोक कर मेरा ट्रिप ख़राब नहीं करना चाहते...एंड उस मूवी में भी तो वो फैमिली पिकनिक पर जाती है...और उस लड़की को उसके घरवाले बिकिनी पहनने के लिए कुछ नहीं कहते...क्यूंकि बीच पर सब वही पहनते हैं और एन्जॉय करते हैं...पापा ने भी तो कहा था कि ही वांटेड मी टू एन्जॉय दिस हॉलिडे...' मनिका का दीमाग उसे अलग ही राह पर ले जाता जा रहा था.
वह अब बेड पर थोड़ा पीछे हो बेड-रेस्ट के साथ टेक लगा कर बैठ गई और टी.वी. ऑफ कर दिया, उसका मन और दिल दोनों बेचैन थे, 'हाओ केयरिंग ऑफ़ पापा टू ट्रीट मी लाइक दिस...और मैंने...मैंने क्या किया...उनके मुझे ब्रा-पैंटी लेने को कहने पर...हाँ तो गलती उन्हीं की तो थी...' मनिका कुछ देर गहरी सोच में डूबी रही 'पर क्या सच में? उन्होंने डायरेक्टली तो कुछ भी नहीं कहा था...वो तो उस कमीनी सेल्स-गर्ल ने अपनी सेल बढाने के चक्कर में बक दिया था...पर पापा ने भी तो...नहीं उन्होंने इतना ही तो कहा था कि...चाहिए तो ले लो..ओ गॉड कितना एम्बैरेसिंग था...हम्म...बट उन्हें उस सेक्शन में लेकर भी तो मैं ही गई थी...गलती मेरी भी तो है...' इन खुलासों से मनिका की बेचैनी बढती जा रही थी हालाँकि कुछ बातें उसने गलत एज्यूम (मान) कर लीं थी पर जयसिंह के इरादों पर शक करने का ख्याल अभी भी उसके मन में नहीं आया था. वह तो बस उनकी कही बात से खफा हो गई थी और अब उसे अपनी नाराजगी के पीछे के कारण भी कम होते नज़र आ रहे थे.
'तो क्या गुस्से में मैंने ओवर-रियेक्ट कर दिया है...पापा भी दो दिन से कितने अपसेट लग रहे हैं...पता नहीं कहाँ जाते होंगे? वे मेरे साथ इतने कूल-ली पेश आ रहे थे और मैंने इतनी सी बात का बतंगड़ बना दिया...दो दिन से हमारी बात भी नहीं हुई है...कल थोड़ी सी बात हुई थी जिसमें भी वे मुझे आप कह कर बुला रहे थे...ओह शिट...आई एम सच अ फूल...अब क्या करूँ...' मनिका ने समय देखा, रात के नौ बज रहे थे, पिछली रात जयसिंह ग्यारह बजे करीब लौट कर आए थे.
मनिका उठी और अपना तन और मन कुछ तरोताज़ा करने के लिए नहाने घुस गई. बाथरूम में मन ही मन वह अपने पापा से क्या कह उनके बीच हुई गलतफ़हमी को मिटाए इस उधेड़बुन में लग गई थी. अपने हाथों से अपना नंगा बदन सहलाते हुए उसने शावर चला ठन्डे पानी से नहाना शुरू किया, उसके चेहरे पर अब पहले सी उदासी नहीं थी.


***

जब जयसिंह उस रात कमरे में लौटे तो कमरे पाया कि कमरे की लाइट जल रही थी और मनिका सोई नहीं थी लेकिन बिस्तर पर बैठी हुई थी, एक तरफ मेज पर खाना रखा हुआ था. उन्होंने एक बार फिर अपने रात के कपड़े लिए थे और बाथरूम में चले गए, मनिका ने एक बार नज़र उठा कर उनकी तरफ देखा था पर कुछ बोली नहीं थी,
'धत्त...कैसे बात शुरू करूँ पापा से?' मनिका ने उनके बाथरूम में चले जाने पर अफ़सोस से सोचा, उनको देखते ही उसकी आवाज़ जैसे गले में ही अटक गई थी.
जयसिंह ने बाथरूम में जा कर अपने कपड़े उतार एक तरफ टाँगे और शावर में घुस पानी चलाने के लिए हाथ बढ़ाया था; और जड़वत रह गए. शावर के नल पर मनिका की ब्रा-पैंटी लटक रही थी, जयसिंह को मनाने के ख्यालों में डूबी मनिका अपने उतारे हुए अंतवस्त्र धो कर (तौलिए के नीचे छिपाकर) सुखाना भूल गई थी.
जयसिंह को जैसे खड़े-खड़े लकवा मार गया था और उनका चेहरा तमतमा कर गरम हो गया था.
लेकिन जयसिंह ने नज़र फेर ली और पीछे हट कर शावर का पर्दा लगा दिया, शावर में फर्श और पर्दे पर गिरे पानी से वे समझ गए थे की मनिका नहाई थी और शायद अपने अंतवस्त्र वहाँ भूल गई थी. वे मुड़े और नहाने के लिए बाथटब में बैठ कर पानी चला लिया. उन्होंने अपने लंड की तरफ एक नज़र देखा, उनका लंड बिल्कुल शांत था.
जब जयसिंह नहा कर बाहर निकले तो मनिका को अभी भी जगे हुए पाया, वे जा कर काउच पर बैठने लगे,
'पापा?' मनिका ने सधी हुई आवाज़ में कहा.
'जी..?' जयसिंह ने भी उसी लहजे में पूछा और मन में सोचा 'लगता है जो सोचा था वो आज ही करना पड़ेगा.'
'क्या हम बात कर सकते हैं?' मनिका ने बेड से थोड़ा उठते हुए कहा.
'आई एम सो सॉरी लवली...' जयसिंह ने सिर झुकाते हुए कहा.
दो दिन से जयसिंह अपने-आप से संघर्ष कर रहे थे. पहले तो उन्हें अपना प्लान बिगड़ जाने का बहुत अफ़सोस हुआ था लेकिन धीरे-धीरे उनकी अंतरात्मा ने उन्हें लताड़-लताड़ कर अपनी सोच पर शर्मिंदगी का एहसास दिला ही दिया था. आज वे अपने किए का पश्चाताप करने और मनिका से माफ़ी मांगने का सोच कर ही कमरे में आए थे पर मनिका की तरह उनसे भी पहले बात करने की हिम्मत नहीं हुई थी और वे बाथरूम में यह सोच कर घुस गए थे कि शायद उनके बाहर आने तक वह सो चुकी हो और उन्हें हिम्मत जुटाने के लिए कल सुबह तक का वक़्त और मिल जाए (और इसीलिए बाथरूम में पड़े उसके अंतवस्त्रों को देख वे उत्तेजित नहीं हुए थे). लेकिन अब मनिका के संबोधन ने उनके मन का गुबार निकाल दिया था,
मनिका का चेहरा भी लाल हो गया था.
'पता नहीं क्या सोच मैंने आपसे ऐसा कह दिया...आई एम रियली...' जयसिंह बोलते जा रहे थे.
'नो!' मनिका ने अपनी आवाज़ ऊँची कर कहा. जयसिंह ने उसकी इस प्रतिक्रिया पर अपना सिर उठाया और आगे कहने की कोशिश की, उन्हें लगा था की मनिका को उनके माफ़ी मांगने पर यकीन नहीं हुआ था, पर मनिका ने अपनी ऊँची आवाज़ से उनकी बात काट दी,
'पापा डोंट से सॉरी...माफ़ी तो मुझे आपसे माँगनी चाहिए. आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आफ्टर ऑल द थिंग्स यू डिड फॉर मी...मैंने आपकी एक बात पर ही इतना ओवर-रियेक्ट कर दिया. सो आई एम सॉरी पापा...प्लीज़ फोर्गिव मी..?' मनिका ने एक ही साँस में बोलते हुए उनसे मिन्नत की.
जयसिंह के कुछ समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने असमंजस भरी नज़रों से मनिका की आँखों में देखा और फिर कहने की कोशिश की,
'आपने ओवर-रियेक्ट नहीं किया था लवली. मैंने बात ही ऐसी कह दी थी के आप हर्ट हो गए. प्लीज़ लिसेन (सुनो) टू मी फॉर अ सेकंड.'
'नहीं पापा...मैं नहीं सुनूंगी...आपने मुझे हर्ट नहीं किया ओके? मैं ही आपको नहीं समझ सकी...आप ने मुझे एक फ्रेंड की तरह बल्कि उस से भी बढ़कर ट्रीट किया और इस ट्रिप पर इतना ख्याल रखा मेरा ताकि आई कैन एन्जॉय माय लाइफ जबकि आप मुझे वापस घर ले जा सकते थे...सबसे झूठ बोला सिर्फ मेरे लिए...और मैंने आपको एक छोटी सी बात के लिए इतना बुरा-बुरा कह दिया...सो आई शुड बी सेयिंग सॉरी...' मनिका जयसिंह की कोई बात सुनने को राज़ी नहीं थी.
'छोटी सी बात नहीं थी वो...' जयसिंह ने फिर कहने का प्रयास किया.
'पापा नो...डोंट से अ वर्ड...सिर्फ कपड़े लेने की ही तो बात थी...' मनिका ने फिर से उनकी बात काट दी. अब जयसिंह चुप हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक मनिका को यह क्या हो गया था और उसके तेवर बदल कैसे गए थे. वह ब्रा-पैंटी को अब सिर्फ कपड़े (ही तो थे) कह रही थी.
'पापा?' मनिका ने इस बार उन्हें दुलार कर कहा.
'लवली..?' जयसिंह ने उसकी बदली आवाज़ सुन सधी हुई सवालिया नज़र से उसे देखा.
'प्लीज़ बिलीव मीं...विश्वास करो मेरा, आई एम रियली सॉरी ना...आपकी कोई गलती नहीं थी.' मनिका उनके करीब आ खड़ी हो गई थी. बैठे हुए जयसिंह ने अपनी नज़र उठा उसकी आँखों में देखा और एक पल बाद धीमे से हाँ में हिला दिया.
'ओके लवली.' जयसिंह ने हौले से कहा.
मनिका ने उनकी बात सुन उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और मुस्का दी, जयसिंह ने भी धीमे से मुस्कुरा कर थोड़े संकोच के साथ उसका हाथ थाम लिया जिसपर मनिका आगे बढ़ उनकी गोद में बैठ गई.
'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू पापा...एंड आई एम रियली सॉरी.' मनिका ने प्यार से मुहँ बना कर उनसे अपनी माफ़ी का इज़हार एक बार फिर कर दिया 'प्लीज़ फोर्गिव मी?'
'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू टू डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा, पर मनिका ने उनके संबोधन पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी 'प्रॉमिस करो कि फिर मुझसे कभी नाराज़ नहीं होओगी.' उसका बर्ताव देख वे उसे अपने से सटाते हुए आगे बोले.
'आई प्रॉमिस पापा...' मनिका ने मुस्कुरा कर हाँ भर दी थी और उधर जयसिंह का लंड खुश हो एक बार फिर उछल कर खड़ा हो गया.

***

'खाना खाया आपने?' मनिका ने बड़े प्यार से जयसिंह से पूछा था. वह अभी भी उनकी गोद में बैठी थी.
जयसिंह से बातें करते हुए उसे आधे घंटे से ज्यादा हो गया था जिसमें वह एक-दो बार और उन्हें सॉरी बोल चुकी थी. जयसिंह ने जब उसे पूछा कि क्या वह सचमुच उनसे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं थी? तो उसने उन्हें बताया था कि किस तरह उसने रिएलाइज़ किया था कि वह गलत थी और उनसे माफ़ी मांगने के लिए ही लाइट ऑन कर बैठी थी. जयसिंह ने अपनी फिर से जगी हुई किस्मत को मन ही मन धन्यवाद दिया था 'अगर कहीं मैंने पहले माफ़ी मांग ली होती तो रांड हाथ से निकल जाती..' जयसिंह अपनी मन की आवाज़ को फिर से अँधेरे में धकेल चुके थे.
मनिका ने उन्हें वह फ़िल्म के सीन वाली बात नहीं बताई थी जिस से की उसका हृदय-परिवर्तन शुरू हुआ था, बल्कि ऐसे जताया कि उसे अपने-आप ही अपनी गलती का एहसास हो गया था. जयसिंह उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी बाते सुन अंदर ही अंदर आनंदित हो रहे थे. तभी मनिका को याद आया था कि उसने जयसिंह के लिए खाना भी ऑर्डर किया था जो वहाँ मेज पर रखा था और उसने उनसे वह सवाल पूछा था.
'नहीं खाया तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.
'मैंने आपके लिए ऑर्डर किया था पापा बट अब तक तो सब ठंडा हो चुका होगा.' मनिका ने खेद प्रकट किया.
'कोई बात नहीं. मुझे भूख नहीं है वैसे भी...' वे बोले और फिर मन में सोचा 'पर साली तूने मुझे तो गरम कर दिया है...'
'क्यूँ नहीं है?' मनिका ने फिर सवाल किया. अभी-अभी उनकी सुलह हुई होने के कारण वह जयसिंह को थोड़ा ज्यादा ही प्यार दिखा रही थी.
'आप जो वापस आ गयीं मेरे पास...' जयसिंह ने भी डायलाग दे मारा.
'हाहाहा...पापा मैं कोई खाने की चीज़ हूँ क्या?' मनिका ने हँसते हुए कहा.
जयसिंह ने कुछ ना कहते हुए उसे रहस्यमई अंदाज़ से मुस्का कर देखा भर था. वह भी मुस्का दी और आगे बोली,
'और ये आपने क्या मुझे आप-आप कहना शुरू कर दिया है, ऐसे मत बोलो मैं आपसे छोटी हूँ न...मुझे ऐसे फील हो रहा है जैसे मैं कोई आंटी हूँ.'
'हाहाहा अच्छा भई अब नहीं कहूँगा.' जयसिंह भी हंस पड़े और पूछा 'क्या तुमने खाया खाना?'
'नहीं पापा मुझे भी भूख नहीं लगी है.' मनिका ने उन्हीं का जवाब देते हुए कहा.
'क्यूँ?' जयसिंह ने भी सवाल कर दिया.
'आपसे बात करने की ख़ुशी से ही पेट भर गया.' उसने शरारत से कहा.
'हम्म तो ये बात है...' जयसिंह ने उसके गाल पर अपना दूसरा हाथ रख उसका चेहरा अपनी तरफ मोड़ कर कहा.
'हाँ पापा आई एक सो हैप्पी.' मनिका ने गहरी साँस भर के कहा था.
मनिका ने स्ट्रॉबेरी-फ्लेवर की लिप-ग्लॉस (एक तरह की लिपस्टिक) लगा रखी थी और उनके चेहरे इतने करीब थे की उन्हें उसके होठों की खुशबू आ रही थी जिसपर उनके लंड ने एक अंगड़ाई ली थी.
'पापा?' मनिका एक बार फिर सवाल करने से पहले बोली.
'ह्म्म्म...' जयसिंह उसके हिलते हुए गुलाबी होंठ देख मंत्रमुग्ध से बोले.
'आपको नींद नहीं आ रही?' उसने पूछा.
'तुम्हें आ रही लगती है...है ना?' जयसिंह मनिका के सवाल का आशय समझ गए थे.
'हाँ...आपको कैसे पता?' मनिका ने मानते हुए कहा.
'बस पता है...तुम्हारी जो बात है...' जयसिंह वापस अपनी फॉर्म में आ चुके थे.
'हाहा...दो दिन से अच्छे से नींद ही नहीं आई पापा...' मनिका बोली.
'क्यूँ?' जयसिंह ने फिर पूछा.
'आपको पता तो है...' मनिका ने उनकी तरफ भोली सी निगाहों से देख कर कहा.
'मुझे कैसे पता होगा?' जयसिंह ने अज्ञानता जाहिर की.
'आपसे लड़ाई कर ली थी इसलिए ना...' मनिका ने नज़र झुका अपना अपराध-बोध जाहिर किया.
जयसिंह ने भी उसे और नहीं सताया और कहा, 'चलो फिर सोते हैं.'
मनिका उनकी गोद से उतरते हुए बोली, 'ओके पापा' और बेड की तरफ चल दी. बेड पर चढ़ कर उसने देखा जयसिंह काउच पर ही सोने लगे हैं. 'पापा! आप क्या कर रहे हो?' मनिका ने बुरा सा मुहँ बनाते हुए कहा.
'अरे भई लवली अभी तुमने ही तो कहा सोने को..' जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट बिखेर दी.
'पापा...यहाँ आ जाओ चुपचाप और मुझे लवली मत बुलाया करो ना...' मनिका ने उनींदी हो कहा.
'सोने के लिए बुला रही हो या ऑर्डर दे रही हो?' जयसिंह टस से मस न होते हुए बोले 'प्यार से बुलाओगी तो आऊँगा.'
'जाओ मैं नहीं बुलाती.' मनिका ने भी नखरा दिखाया.
जयसिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें मूँद ली. मनिका कुछ पल उन्हें देखती रही फिर नखरा छोड़ मुस्काते हुए कहा,
'पापा?'
'हाँ मनिका?' जयसिंह ने झट से आँखें खोलते हुए कहा.
'पापा मेरे प्यारे पापा यहाँ बेड पर मेरे पास आ कर सो जाओ ना?' मनिका ने आँखे टिमटिमा कर कहा.
जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और जा कर मनिका के साथ बिस्तर में घुस गए. जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैंप जला दिया. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ करवट ले रखी थी. मनिका की आँखें अभी खुलीं थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थी, कमरे की उस मद्धम रौशनी में वे दोनों एक-दूसरे को निहारते हुए लेटे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया और वे हौले-हौले उसके हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.

No comments:

Raj-Sharma-Stories.com

Raj-Sharma-Stories.com

erotic_art_and_fentency Headline Animator