Saturday, March 14, 2015

FUN-MAZA-MASTI गुमराह पिता की हमराह बेटी--2

FUN-MAZA-MASTI

 गुमराह पिता की हमराह बेटी--2

मनिका के कहने पर वे दोनों हॉटेल के रेस्टोरेंट में खाना खाने गए थे. जयसिंह ने मनिका से ही ऑर्डर करने को कहा और जब मनिका ने मेन्यु में लिखे महंगे रेट्स का जिक्र किया तो उन्होंने उसे पैसों की चिंता न करने को कहा. मनिका उनकी बात सुन खिल उठी और बोली,
'पापा सच मेरी फ्रेंड्स सही कहती हैं. आप सबसे अच्छे पापा हो.'
'हाह...अरे हम डिनर ही तो कर रहे हैं. तुम्हारी फ्रेंड्स के घरवाले क्या उन्हें खाना नहीं खिलाते क्या?' जयसिंह ने मजाकिया लहजे में कहा.
'ओहो पापा...कम से कम फाइव स्टार रेस्टोरेंट्स में तो नहीं खिलाते हैं. आप को तो बस मेरी बात काटनी होती है.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा.
'तो मैं कौनसा तुम्हें यहाँ रोज़-रोज़ लाया करता हूँ.' जयसिंह मनिका से ठिठोली करने के अंदाज़ में बोले.
'हा...पापा कितने खराब हो आप.' मनिका ने झूठी नाराजगी दिखाई, 'देख लेना जब मेरा यहाँ एडमिशन हो जाएगा ना और आप डेल्ही आया करोगे तो मैं यहीं पे खाना खाया करूँगी.' मनिका ने आँखें मटकाते हुए हक़ जताया.
'हाहाहा...अरे भई ठीक है अब आज के लिए तो कुछ ऑर्डर कर दो.' जयसिंह हँसते हुए बोले.
जब मनिका ने ऑर्डर कर दिया, वे दोनों वैसे ही बैठे बतियाने लगे. जयसिंह मनिका के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे और बात-बात में उसकी टांग खींच रहे थे, मनिका भी हँसते हुए उनका साथ दे रही थी और मन ही मन अपने पिता के इस मजाकिया और खुशनुमा अंदाज़ को देख-देख हैरान भी थी. कुछ देर बाद उनका डिनर आ गया, मनिका ने रीअलाइज़ किया की उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी, उन्होंने से सुबह के ब्रेकफास्ट के बाद ट्रेन में थोड़े से स्नैक्स ही खाए थे. दोनों बाप-बेटी खाना खाने में तल्लीन हो गए. मनिका जो पहली बार इतनी महंगी जगह खाना खाने आई थी, को खाना बहुत अच्छा लगा और वह मन में प्रार्थना कर रही थी कि उसका एडमिशन दिल्ली में ही हो जाए.
जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने आइसक्रीम ऑर्डर कर दी और जब वेटर बिल ले कर आया तो उन्होंने उसे पाँच सौ रुपए की टिप दे डाली, मनिका उनके अंदाज़ से पूरी तरह से इम्प्रेस हो गई थी. वे दोनों अब उठ कर अपने कमरे में लौट आए.
'पापा द फ़ूड हेयर इस ऑसम.' मनिका ने कमरे में आ कर बेड पर गिरते हुए कहा, 'मेरा तो टम्मी (पेट) फुल हो गया है.'
'हम्म...' जयसिंह अपने सूटकेस से पायजामा-कुरता निकाल रहे थे, 'तुम थक गई हो तो सो जाओ, मैं जरा नहा कर आता हूँ.' उन्होंने कहा.
'ओह नहीं पापा...आई मीन थक तो गई हूँ बट मैं भी शावर लेके नाईट-ड्रेस पहनूँगी, यू गो फर्स्ट एनीवे.'
जयसिंह अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गए. अंदर पहुँच उन्होंने अपने कपड़े उतारे और अपने कसमसाते लंड को आज़ाद कर राहत की साँस ली, उन्होंने शावर ऑन किया और ठन्डे पानी की फुहार से नहाते हुए मनिका के जवान जिस्म की कल्पना करते हुए अपना लंड सहलाने लगे. 'ओह मनिका...साली कमीनी कुतिया...क्या पटाखा जवानी है साली की, बजाने का मज़ा ही आ जाए जिसको...आह्ह...' जयसिंह सोच-सोच कर उत्तेजित हो रहे थे. उनका लंड उनके हाथ में हिलोरे ले रहा था, उन्हें महसूस हुआ की वे झड़ने वाले हैं, ऐसा होते ही उन्होंने एकदम से अपने लंड को सहलाना बंद कर दिया और शांत होने की कोशिश करने लगे. उनके मन में एक विचार कौंधा था कि अगर अभी वे स्खलित हो जाते हैं तो मनिका को लेकर उनके तन-मन में लगी आग, कुछ पल के लिए ही सही, बुझ जाएगी (जैसा कि आम-तौर पर सेक्स करने और हस्तमैथुन के बाद मर्द महसूस करते हैं) और वे यह नहीं चाहते थे. उन्होंने तय किया की वे अपने प्लान के सफल होने से पहले अपने तन की आग को शांत नहीं करेंगे, 'और अगर प्लान फेल हो गया, तब तो जिंदगी भर हाथ में लेके हिलाना ही पड़ेगा.' फिर उन्होंने नाटकीय अंदाज़ में मन ही मन सोचा और नहाने लगे.
बाहर बेड पर लेटी मनिका अपने पापा के नहा कर आने का वेट कर रही थी. वह बहुत खुश थी, 'ओह गॉड कितना एक्साईटिंग दिन था आज का, पहली बार मेट्रो-सिटी में आई हूँ आज मैं...एंड होपफुली अब यहीं रहूँगी, कितना कुछ है यहाँ घूमने-फिरने को और शौपिंग करने को...वैसे मम्मी ने ठीक ही कहा था सुबह, ऐसे ही पैसे बर्बाद कर डाले मैंने वहाँ शौपिंग करके इस से अच्छा होता कि यहाँ से कर लेती...हम्म कोई बात नहीं पापा से थोड़े और पैसे माँग लूंगी वैसे भी वे कह रहे थे कि मैं पैसों की फ़िक्र न करूँ...हीहाहा...' मनिका मन ही मन सोच खिलखिलाई, 'और पापा कितने अमेजिंग हैं...कितने फनी और स्वीट...और बुरे भी कैसे मेरी लेग-पुलिंग कर रहे थे आज...ओह नहीं-नहीं वे बुरे नहीं है...और गॉड हम मेरियट में रुके हैं...वेट टिल आई टेल माय फ्रेंड्स अबाउट इट...सब जल मरेंगी...हाहाहा...' तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, मनिका उठ बैठी, जयसिंह नहा कर बाहर निकल आए थे.
'चलो मनिका तुम भी नहा आओ जल्दी से फिर बिस्तर में घुसते हैं.' जयसिंह बेड के पास आते हुए बोले, 'थक गए आज तो सफ़र करके, आई एम सो स्लीपी.'
'येस पापा.' मनिका उठते हुए बोली. लेकिन जयसिंह की कही 'बिस्तर में घुसने' वाली बात मनिका के अंतर्मन में कहीं बहुत हल्की सी एक आहट कर गई थी पर मनिका का ध्यान इस ओर नहीं गया.
मनिका ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में घुस गई. बाथरूम में घुस मनिका ने अपने कपड़े उतारे व शावर ऑन कर नहाने लगी. नहाते-नहाते उसने अपने अंतवस्त्र भी खोल दिए व धो कर एक तरफ रख दिए थे. उनके रूम की तरह वहाँ का बाथरूम भी बहुत शानदार था, उसमें तरह-तरह के शैम्पू और साबुनें रखीं थी और शावर में पानी आने के लिए भी कई सेटिंग्स थी, मनिका मजे से नहाती रही और फिर एक बार सोचने लगी कि दिल्ली आ कर उसे कितना मजा आ रहा था.
कुछ देर बाद जब मनिका नहा चुकी थी, उसने पास की रैक पर रखे तौलिए की तरफ हाथ बढाया और अपना तरोताजा हुआ जिस्म पोंछने लगी. तौलिया बेहद नरम था और मनिका का बदन वैसे ही नहाने के बाद थोड़ा सेंसिटिव हो गया था सो तौलिये के नर्म रोंओं के स्पर्श से उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गए व उसकी जवान छाती के गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो गए. मनिका को वो एहसास बहुत भा रहा था और वह कुछ देर तक वैसे ही उस नर्म तौलिए से अपने बदन को सहलाती खड़ी रही. फिर उसने तौलिया एक ओर रखा और अपने धोए हुए अन्तवस्त्रों की तरफ हाथ बढ़ाया और उस एक पल में उसका सारा मजा फुर्र हो गया. 'ओह गॉड...' उसके मुहँ से खौफ भरी आह निकली.


***

जयसिंह ने रूम में एक ओर रखे काउच पर बैठ टी.वी. ऑन कर लिया था. परन्तु उनका ध्यान कहीं और ही लगा था. एक बार फिर उनके मन में उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ गूंजने लगी थी, 'ये शायद मैं ठीक नहीं कर रहा...मनिका मेरी बेटी है, मेरा दीमाग ख़राब हो गया है जो मैं उस के बारे में ऐसे गंदे विचार मन में ला रहा हूँ...पर क्या करूँ जब वह सामने आती है तो दिलो-दीमाग काबू से बाहर हो जाते हैं...साली की गांड...ओह मैं फिर वही सोचने लगा हूँ...कुछ समझ नहीं आ रहा, इतने सालों से मनिका घर में मेरी आँखों के सामने ही तो बड़ी हुई है पर अचानक एक दिन में ही मेरी बुद्धि कैसे भ्रष्ट हो गई समझ नहीं आता...पर घर में साली मेरे सामने छोटी-छोटी कच्छियाँ पहन कर भी तो नहीं आई...ओह्ह फिर वही अनर्थ सोच...' जयसिंह बुरी तरह से विचलित हो उठे. तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला, जयसिंह की नज़र उनकी इजाजत के बिना ही उस ओर उठ गईं. इस बार आह निकलने की बारी जयसिंह की थी.
मनिका ने जैसे ही अपने अंतवस्त्र उठाए थे उसे एहसास हुआ कि उसके पास नहाने के बाद पहनने को ब्रा और पैंटी नहीं थी क्यूंकि वह रात में अंतवस्त्र नहीं पहना करती थी और घर पर तो वह अपने रूम में सोया करती थी, इसी के चलते वह सिर्फ अपनी नाईट-ड्रेस निकाल लाई थी. नाईट-ड्रेस का ख्याल आते ही मनिका पर एक और गाज गिरी थी और उसके मुहँ से वह आह निकल गई थी. मनिका नाईट-ड्रेस भी वही निकाल लाई थी जो वह अपने कमरे में पहना करती थी, शॉर्ट्स और टी-शर्ट. ऊपर से उसकी शॉर्ट्स भी कुछ ज्यादा ही छोटी थी (उसने वह एक हॉलीवुड फिल्म में हीरोइन को पहने देख खरीदी थी) और वे उसके नितम्बों को बमुश्किल ढंकती थी और तो और उसकी टी-शर्ट भी टी-शर्ट कम और गंजी ज्यादा थी जिसका कपड़ा भी बिलकुल झीना था. मनिका का दिल जोरों का धड़क रहा था. उसे एक पल के लिए कुछ समझ नहीं आया कि वह कैसे ऐसे कपड़ो में अपने पापा के सामने जाएगी.
कुछ पल इसी तरह जड़वत खड़ी रहने के बाद मनिका ने एक राहत भरी साँस ली, उसे ख्याल आया कि वह अपने पहले वाले कपड़े ही वापस पहन कर बाहर जा सकती है, हालाँकि उसके पास अंदर से पहनने के लिए अंतवस्त्र तो फिर भी नहीं थे. उसका दिल फिर भी कुछ शांत हुआ और वह अपनी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट लेने के लिए मुड़ी, एक बार फिर उसका दिल धक् से रह गया. मनिका ने शावर से नहाते वक़्त कपड़े पास में ही टांग दिए थे और नहाते हुए मस्ती में उसने इतनी उछल-कूद मचाई थी कि उसकी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट पूरी तरह से भीग चुकी थी. मनिका रुआंसी हो उठी. अब उसके पास कोई चारा नहीं बचा था सिवाय वह छोटी सी नाईट-ड्रेस पहन बाहर जाने के.
मनिका ने धड़कते दिल से अपनी शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहनी और बाथरूम में लगे शीशे में देखा. उसकी साँसें और तेज़ चलने लगीं, उसे एहसास हुआ कि उसकी शॉर्ट्स छोटी नहीं बहुत छोटी थीं, उसके दोनों गोल-मटोल नितम्ब शॉर्ट्स के नीचे से बाहर निकले हुए थे, उसने शॉर्ट्स को खींच कर कुछ नीचे कर उन्हें ढंकने का प्रयास किया परन्तु वो कपड़ा ही थोड़ा स्ट्रेचेब्ल था और कुछ ही पल में फिर से खिंच कर ऊपर हो जस का तस हो गया. ऊपर पहनी गन्जी का भी वही हाल था. एक तो वह सिर्फ उसकी नाभी तक आती थी और दूसरा उसके झीने कपड़े में से उसका वक्ष उभर कर साफ़ दिखाई पड़ रहा था जिस पर उसके दोनों निप्पल बटन से प्रतीत हो रहे थे. मनिका का सिर घूम गया, वह अपने आप को ध्यान न रखने के लिए कोस रही थी. विडंबना की बात यह थी की उसकी माँ संचिता ने भी उसे सुबह इसी बात के लिए टोका था.
किसी तरह मनिका ने बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई और मन ही मन प्रार्थना की के उसके पिता सो चुके हों. लेकिन अभी वह बाहर निकलने को तैयार हुई ही थी कि उसके सामने एक और मुसीबत आ खड़ी हुई. उसने वहाँ धो कर रखे अपने अंतवस्त्र अभी तक नहीं उठाए थे, उनका ख्याल आते ही वह फिर उपह्पोह में फंस गई. अपनी थोंग-पैंटी और उसी से मेल खाती महीन सी ब्रा को सुखाने के लिए बाथरूम के आलावा उसके पास कोई जगह नहीं थी और बाथरूम वह अपने पिता के साथ शेयर कर रही थी, 'अगर पापा यह देख लेंगे तो पता नहीं क्या सोचेंगे...हाय...मैं भी कैसी गधी हूँ...पहले ये सब क्यूँ नहीं सोचा मैंने?' मगर अब क्या हो सकता था मनिका ने अपनी ब्रा-पैंटी वहाँ लगे एक तार पर डाली और उन्हें एक तौलिए से ढँक दिया.

***

जैसे ही जयसिंह ने अपनी नज़रें उठा कर बाथरूम से बाहर आई मनिका की तरफ देखा उनका कलेजा जैसे मुहँ में आ गया. काउच बाथरूम के गेट के बिलकुल सामने रखा हुआ था, बाहर निकलती मनिका उन्हें सामने बैठा देख ठिठक कर खड़ी हो गई और अपने हाथ अपनी छाती के सामने फोल्ड कर लिए, वह शर्म से मरी जा रही थी, उसने अपने-आप में सिमटते हुए अपना एक पैर दूसरे पैर पर रख लिया था और नज़रें नीची किए खड़ी रही.
जयसिंह के लिए यह सब मानो स्लो-मोशन में चल रहा था. मनिका को इस तरह अधनंगी देख उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ उड़नछू हो चुकी थी, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था. मनिका के पहने नाम मात्र के कपड़ों में से झलकते उसके जिस्म ने जयसिंह के दीमाग के फ्यूज उड़ा कर रख दिए थे. अब मनिका ने सकुचा कर अपने सूटकेस की तरफ कदम बढ़ाए, जयसिंह की तन्द्रा भी टूट चुकी थी. असल में यह सब एक पल में ही घट चुका था, जयसिंह को अब मनिका का अधो-भाग नज़र आ रहा था, उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झांकते नितम्बों को देख उनके लंड की नसें फटने को हो आईं थी, 'ये मनिका तो साली मेनका निकली..' उन्होंने मन में सोचा. मगर इस सब के बावजूद भी उनका अपनी सोच पर पूरा काबू था, मनिका के हाव-भाव देखते ही वे समझ गए थे कि चाहे जो भी कारण हो मनिका ने ये कपड़े जान-बूझकर तो नहीं पहने थे, 'जिसका मतलब है कि वह अब कपड़े बदलने की कोशिश करेगी...ओह शिट ये मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता...' जयसिंह ये सोचते ही उठ खड़े हुए और बाथरूम में घुसते हुए मनिका से बोले,
'मनिका!'
'जी पापा..?' मनिका उनके संबोधन से उचक गई थी और उसने सहमी सी आवाज़ में पूछा.
'तुम जरा टी.वी ऑफ करके बेड में बैठो. मैं टॉयलेट जा कर आता हूँ.' जयसिंह ने कहा.
'जी...' मनिका ने छोटा सा जवाब दिया.
बाथरूम में जयसिंह का दीमाग तेजी से दौड़ रहा था, 'आखिर क्यूँ मनिका ने ऐसे कपड़े पहन लिए थे?' उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था पर उनका एक काम बन गया था, 'थैंक गॉड मैंने मनिका को देख चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिए वरना खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ जाता.' उन्होंने अपने फड़फड़ाते लंड को मसल कर शांत करते हुए सोचा. जयसिंह जानते थे कि लड़की उसे देखने वाले की नज़र से ही उसकी नीयत भांपने में माहिर होती है और उन्होंने बड़ी ही चालाकी से मनिका को यह एहसास नहीं होने दिया था. जयसिंह ने जाने-अनजाने में ही बेहद दिमागी चाल चल डाली थी, उन्होंने मनिका को एक पल देखने के बाद ही ऐसा व्यक्त किया था जैसे सब नार्मल हो, अगर उन्होंने अपने चेहरे पर अपनी असली फीलिंग्स जाहिर कर दी होती तो मनिका जो अभी सिर्फ उनके सामने असहज थी, उनसे सतर्क हो जाती.
उधर बाहर कमरे में मनिका घबराई सी खड़ी थी. उसने सोचा था कि वह जल्दी से दूसरे कपड़े लेकर चेंज कर लेगी लेकिन जयसिंह को इस तरह बिलकुल अपने सामने पा उसकी घिग्गी बंध गई थी और अब उसके पिता बाथरूम में घुस गए थे. मनिका ने जयसिंह के कहे अनुसार टी.वी ऑफ कर दिया था और जा कर बेड के पास खड़ी हो गई थी, सामने उसका सूटकेस खुला हुआ था वह समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे? एक बार तो उसने सोचा के, 'जब तक पापा बाथरूम में है मैं ड्रेस बदल लेती हूँ.' पर अगले ही पल उसे एहसास हुआ की, 'अगर पापा बीच में बाहर निकल आए तो मैं नंगी पकड़ी जाऊँगी.' मनिका सिहर उठी.
जब उसके कुछ देर वेट करने के बावजूद जयसिंह बाथरूम से नहीं निकले तो मनिका, जो अपने अधनंगेपन के एहसास से बहुत विचलित हो रही थी, ने तय किया कि अभी वह बेड में घुस कम्बल ओढ़ कर अपना बदन ढांप लेगी, 'और सुबह पापा के उठने से पहले ही उठ कर जल्दी से कपड़े बदल लूंगी.' उसने अपना सूटकेस बंद कर एक तरफ रखा और बिस्तर में घुस गई, 'पर ये क्या?...ये ब्लैंकेट तो डबल-बेड का है...' मनिका बिस्तर में सिर्फ एक ही कम्बल पा चकरा गई. उसे क्या पता था की जयसिंह ने रूम एक कपल के लिए बुक कराया था.
'पापा!' कुछ देर बाद जब जयसिंह बाथरूम से फाइनली बाहर आए तो मनिका ने कहा, उसके स्वर में कुछ चिंता थी.
'क्या हुआ मनिका? सोई नहीं तुम?' जयसिंह ने बनावटी हैरानी और कंसर्न व्यक्त कर पूछा. मनिका अपने-आप को पूरी तरह कम्बल से ढंके हुए थी.
'पापा यहाँ सिर्फ एक ही ब्लैंकेट है!' मनिका ने थोड़ा पैनिक हुई आवाज़ में कहा.
'हाँ तो डबल बेड का होगा न?' जयसिंह ने बिलकुल आश्चर्य नहीं जताया था.
''जी.' मनिका हौले से बोली.
'हाँ तो फिर क्या दिक्कत है?' जयसिंह ने इस बार बनावटी आश्चर्य दिखा पूछा.
'जी...क...कुछ नहीं मुझे लगा...कि कम से कम दो ब्लैंकेटस मिलते होंगे सो...' मनिका से आगे कुछ कहते नहीं बना था. 'क्या मुझे पापा के साथ ब्लैंकेट शेयर करना पड़ेगा...ओह गॉड.' उसने मन में सोचा और झेंप गई.
'हाहाहा पहली बार जब मैं यहाँ आया था तब मुझे भी लगा था कि ये एक कम्बल देना भूल गए हैं पर फिर पता चला इन रूम्स में यही डबल-बेड वाला एक ब्लैंकेट होता है.' जयसिंह ने हँस कर मनिका का दिल कुछ हल्का करने और उसे सहज करने के इरादे से बताया. 'हद होती है मतलब दस हज़ार रूपए एक दिन का रेंट और उसमे इंसान को सिर्फ एक कम्बल मिलता है...' उन्होंने मुस्कुरा कर आगे कहा.
'हैं!?' मनिका चौंकी, 'पापा इस रूम का रेंट टेन थाउजेंड रुपीस है? मनिका एक पल के लिए अपनी लाज-शर्म और चिंता भूल गई थी.
'अरे भई भूल गई? फाइव स्टार है ये...' जयसिंह फिर से मुस्काए.
'ओह गॉड पापा, फिर भी इतना कॉस्टली?' मनिका बोली.
'मनिका मैंने कहा न तुम खर्चे की चिंता मत करो, जस्ट एन्जॉय.' जयसिंह बिस्तर पर आते हुए बोले.
उन्हें बिस्तर पर आते देख एक पल के लिए मनिका ने कम्बल अपनी ओर खींच लिया था, वे समझ गए की वह अभी भी शरमा रही थी, और करती भी क्या? सो उन्होंने एक बार फिर हँस कर उसका डर कम करने के उद्देश्य से कहा,
'थैंक गॉड आज तुम हो मेरे साथ नहीं पिछली बार तो मीटिंग से यहाँ आते वक्त मेरे बिज़नस पार्टनर का एक रिश्तेदार साथ में टंग आया था. इमैजिन उसके साथ एक कम्बल में सोना पड़ा था, ऊपर से उसने शराब पी रखी थी. सारी रात सो नहीं पाया था मैं.'
इस बार मनिका भी हँस पड़ी, 'ओह शिट पापा...हाहाहा'
जयसिंह अब मनिका के साथ कम्बल में घुस चुके थे. मनिका भी थोड़ा सहज होने लगी थी क्यूंकि अब उसका बदन ढंका हुआ था और जयसिंह ने भी उसे उसकी अधनंगी स्थिति का एहसास अभी तक नहीं दिलाया था. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर बेड-साइड से रूम की लाइट ऑफ कर दी और पास की टेबल पर रखा नाईट-लैंप जला दिया.
'चलो मनिका थक गईं होगी तुम भी...' जयसिंह मनिका की तरफ पलट कर बोले, 'गुड नाईट.'
'गुड नाईट पापा.' मनिका ने नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में मुस्कुरा कर कहा, 'स्वीट ड्रीम्स टू.'
जयसिंह ने अब मनिका की तरफ करवट ली और हाथ बढ़ा कर एक पल के लिए उसके गाल पर रख सहलाते हुए बोले,
'अच्छे से सोना. टुमॉरो इज़ योर बिग डे.'
मनिका एक पल के लिए थोड़ा चौंक गई थी पर जयसिंह की बात सुन वह भी मुस्कुरा दी, वे तो बस उसके इंटरव्यू के लिए उसका हौंसला बढ़ा रहे थे. मनिका ने आँखें बंद कर लीं, अगले सुबह के लिए उसके मन में उत्साह भी था और उसे इंटरव्यू के लिए थोड़ी चिंता भी हो रही थी, यही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई.
उन्हें सोए हुए करीब आधा घंटा हुआ था. जयसिंह ने धीरे से आँखें खोली, मनिका जयसिंह से दूसरी तरफ करवट लिए सो रही थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे उठ बैठे, परन्तु मनिका पहली की भाँती ही सोती रही, उन्होंने हौले से मनिका के तन से कम्बल खींचा, मनिका ने फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, अब उन्होंने धीरे-धीरे कम्बल नीचे करते हुए मनिका को पूरी तरह उघाड़ दिया.
नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में भी मनिका की पूरी तरह नंगी दूध सी सफ़ेद जांघें चमक रहीं थी, वह अपने पाँव थोड़ा मोड़ कर लेटी हुई थी जिससे उसकी शॉर्ट्स और थोड़ी ऊपर हो कर उसके नितम्बों के बीच की दरार में फँस गई थी. जयसिंह को तो जैसे अलीबाबा का खजाना मिल गया था. वे कुछ देर वैसे ही उसे निहारते रहे पर फिर उनसे रहा न गया. उन्होंने हाथ बढाया और मनिका की शॉर्ट्स हो खींच कर मनिका के गोल-मटोल कूल्हे लघभग पूरे ही बाहर निकल दिए और उसके एक कूल्हे पर हौले से चपत लगा दी. मनिका अभी भी बेखबर सोती रही, जयसिंह भी इस से ज्यादा हिमाकत न कर सके और अपनी बेटी की मोटी नंगी गांड को निहारते-निहारते कब उनकी आँख लग गई उन्हें पता भी न चला.

***

किसी के बोलने की आवाजें सुन मनिका की आँख खुली, सुबह हो चुकी थी, वह अभी भी उनींदी सी लेटी थी कि उसे कहीं दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई. अचानक मनिका को अपने दिल्ली के एक हॉटेल में अपने पिता के साथ होने की बात का एहसास हुआ, अगले ही पल उसे पिछली रात को पहने अपने कपड़े भी याद आ गए और साथ ही उन्हें सुबह जल्दी उठ कर बदलने का फैसला भी. मनिका की नींद एक पल में ही उड़ चुकी थी, उसने हाथ झटक कर रात को ओढ़े अपने कम्बल को टटोलने की कोशिश की, लेकिन कम्बल वहाँ नहीं था. अपने नंगेपन के एहसास ने मनिका को झकझोर के रख दिया, उसके बदन को जैसे लकवा मार गया था. धीरे-धीरे उसे अपने पहने कपड़ों की अस्त-व्यस्त स्थिति का अंदाजा होता चला जा रहा था, उसकी टी-शर्ट लघभग पूरी तरह से ऊपर हो रखी थी, गनीमत थी कि उसकी छाती अभी भी ढंकी हुई थी और उसके शॉर्ट्स उसके बम्स (नितम्ब) के बीच इकठ्ठे हो गए थे और उसके बम्स और थाईज़ (जांघें) पूरी तरह नंगे थे; उसे बेड पर बैठे उसके पिता जयसिंह की मौजूदगी का भी भान हुआ.
मनिका के हाथ झटकने के साथ ही जयसिंह अलर्ट हो गए थे. उसका मुहँ दूसरी तरफ था सो वे बेफिक्र उसका नंगा बदन ताड़ रहे थे, उन्होंने देखा की अचानक मनिका की नंगी टांगों और गांड पर दाने से उभर आए थे. उनका लंड जो पहले ही खड़ा था यह देखने के बाद बेकाबू हो गया, 'आह तो उठ ही गई रंडी.' उनका मन खिल उठा. असल में मनिका के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए थे और वे समझ गए की मनिका को अपने नंगेपन का एहसास हो चुका है. जयसिंह कब से उसके उठने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि उसकी बदहवास प्रतिक्रिया देख सकें. उन्होंने देखा कि मनिका ने हौले से अपना हाथ अपनी नंगी गांड पर सरकाया था और वह अपनी शॉर्ट्स को नीचे कर अपने नंगे नितम्बों को ढंकने की कोशिश कर रही थी, इतना तो उनके लिए काफी था,
'उठ गई मनिका?' वे बोल पड़े.
मनिका को जैसे बिजली का झटका लगा था, वह एकदम से उठ बैठी और शर्म भरी नज़रों से एक पल अपने पिता की तरफ देखा.
जयसिंह बेड पर बैठे थे, उनके एक हाथ में चाय का कप था और दूसरे से उन्होंने उस दिन का अखबार खोल रखा था. उनकी नज़रें मिली, जयसिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. मनिका एक पल से ज्यादा उनसे नज़रें मिलाए न रख सकी.
'नींद खुल गई या अभी और सोना है?' जयसिंह ने प्यार भरे लहजे में मनिका से फिर पूछा.
'नहीं पापा...' मनिका ने धीमे से कहा.
'अच्छे से नींद आ तो गई थी न? कभी-कभी नई जगह पर नींद नहीं आया करती.' जयसिंह उसी लहजे में बात करते रहे जैसे उन्हें मनिका की बहुत फ़िक्र थी.
'नहीं पापा आ गई थी.' मनिका सकुचाते हुए बोली और एक नज़र उनकी ओर देखा. उसने पाया की उनका ध्यान तो अखबार में लगा था. 'आप अभी किस से बात कर रहे थे?' मनिका ने थोड़ी हिम्मत कर पूछा.
'अरे तुम उठी हुई थीं तब?' जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, 'रूम-सर्विस से चाय ऑर्डर की थी वही लेकर आया था लड़का. तुम कुछ बोली ही नहीं तो मुझे लगा नींद में हो नहीं तो तुम्हारे लिए भी कुछ जूस-वूस ऑर्डर कर देते साथ के साथ, जस्ट अभी-अभी ही तो गया है वो.' उन्होंने आगे बताया.
मनिका का चेहरा शर्म से लाल टमाटर सा हो चुका था, 'ओह गॉड, ओह गॉड, ओह गॉड...रूम-सर्विस वाले ने भी मुझे इस तरह नंगी पड़े देख लिया...हे भगवान् उसने क्या सोचा होगा..? पर पापा ने रूम बुक कराते हुए बताया तो होगा कि हम बाप-बेटी हैं...लेकिन ये बात रूम-सर्विस वाले को क्या पता होगी...ओह शिट...और मेरा कम्बल भी...' मनिका ने देखा कि कम्बल उसके पैरों के पास पड़ा था, 'नींद में मैंने कम्बल भी हटा दिया...शिट.' उसने एक बार फिर जयसिंह को नजरें चुरा कर देखा, उनका ध्यान अभी भी अखबार में ही लगा था. मनिका के विचलित मन में एक पल के लिए विचार आया, 'क्या पापा ने मेरा कम्बल...? ओह गॉड नहीं ये मैं क्या सोच रही हूँ पापा ऐसा थोड़े ही करेंगे. मैंने ऐसी गन्दी बात सोच भी कैसे ली...छि.' लेकिन उस विचार के पूरा होने से पहले ही मनिका ने अपने आप को धिक्कार शर्मिंदगी से सिर झुका लिया था.
अब मनिका अपनी इस एम्बैरेसिंग सिचुएशन से निकलने की राह ढूंढने लगी, 'जब तक पापा का ध्यान न्यूज़पेपर में लगा है. मैं जल्दी से उठ कर बाथरूम में घुस सकती हूँ...पर अगर पापा ने मेरी तरफ देख लिया तो..? ये मुयी शॉर्ट्स भी पूरी तरह से ऊपर हो गईं है.' मनिका कुछ देर इसी उधेड़बुन में बैठी रही पर उसे और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. सो आखिर उसने धीरे से जयसिंह को संबोधित किया,
'पापा?'
'हूँ?' जयसिंह ने भी डिसइंट्रेस्टेड सी प्रतिक्रिया दी और मनिका की आँखों में आँखें डाल उसके आगे बोलने का इंतज़ार करने लगे.
'वो मैं...मैं कह रही थी कि मैं एक बार बाथ ले लेती हूँ फिर कुछ ऑर्डर कर देंगे.' मनिका अटकते हुए बोली.
'ओके. जैसी आपकी इच्छा.' जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा.
'हेहे पापा.' मनिका भी थोड़ा झेंप के हँस दी. जयसिंह फिर से अखबार पढ़ने में तल्लीन हो गए थे.
मनिका धीरे से बिस्तर से उतर कर अपने सामान की ओर बढ़ी. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, 'क्या पापा ने पीछे से मेरी तरफ देखा होगा?' यह सोच उसके बदन में जैसे बुखार सा आ गया और वह थोड़ा लड़खड़ा उठी. उसने अपना सूटकेस खोला और एक जीन्स और टॉप-निकाल लिया, उसने एक जोड़ी ब्रा-पैंटी भी निकाल कर उनके बीच यह सोच रख ली कि 'क्या पता रात वाले अंडरगारमेंट्स सूखे होंगे कि नहीं?' जब वह अपनी सभी चीज़ें ले चुकी थी तो उसने कनखियों से एक बार जयसिंह की तरफ नज़र दौडाई, वे अभी भी अखबार ही पढ़ रहे थे. मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई बाथरूम में जा घुसी.

***

मनिका के बाथरूम में घुसने तक जयसिंह अपनी पूरी इच्छाशक्ति से अखबार में नज़र गड़ाए बैठे रहे थे. उसके जाते ही उन्होंने अखबार एक ओर फेंका और अपने कसमसाते लंड को, जो की आजकल हर वक्त खड़ा ही रहता था, दबा कर एक बार फिर काबू में लाने की कोशिश करने लगे, 'हे भगवान् जाने कब शांति मिलेगी मेरे इस बेचारे औजार को...' जयसिंह ने तड़प कर आह भरी. 'आज उस रांड का इंटरव्यू भी है और अभी साली नहाने गई है पता नहीं आज क्या रूप धर के बाहर निकलेगी...ओह इंटरव्यू से याद आया साली कुतिया के कॉलेज फ़ोन कर अपॉइंटमेंट भी तो लेनी है.' सो जयसिंह ने पास पड़े अपने मोबाइल से मनिका के कॉलेज का नंबर डायल किया.
'हैल्लो?' जयसिंह ने फोन उठाने की आवाज़ सुन कहा 'एमिटी यूनिवर्सिटी?'
'येस सर, गुड मॉर्निंग.' सामने से आवाज़ आई.
'येस, सो आई वास् कॉलिंग टू मेक एन अपॉइंटमेंट फॉर माय डॉटर फॉर एडमिशन इन द एम्.बी.ए. कोर्स.' जयसिंह ने कहा.
'ओके सर, मे आई क्नॉ हर नेम प्लीज़?'
'येस...अह...मनिका सिंह.'
'थैंक्यू सर. सो व्हेन वुड यॉर डॉटर बी एबल टू कम फॉर द इंटरव्यू?'
जयसिंह कुछ समझे नहीं, इंटरव्यू तो आज ही था न?, 'व्हॉट डू यू मीन?' उन्होंने पूछा.
'वेल सर, इंटरव्यूज नेक्स्ट 15 डेज तक चलेंगें सो योर डॉटर कैन गेट एन अपॉइंटमेंट फॉर एनी ऑफ़ द डेज, जैसा उनको कॉन्वेनिएन्ट लगे.'
'ओह.' जयसिंह का मन यह सुन नाच उठा था. उन्होंने मन ही मन अपनी किस्मत को धन्यवाद दिया और बोले, 'तो आप ऐसा करो हमें लास्ट डे की ही अपॉइंटमेंट दे दो. मेरी डॉटर कह रही है कि उसे अभी थोड़ा और प्रिपरेशन करना है...हेहे.'
'स्युर सर कोई प्रॉब्लम नहीं है.'
उधर बाथरूम में मनिका के मन में अलग ही उथल-पुथल मची हुई थी, 'ये कैसा अनर्थ हो गया. सोचा था सवेरे जल्दी उठ जाऊँगी पर आँख ही नहीं खुली, ऊपर से पापा और उठे हुए थे...वे तो वैसे भी रोज जल्दी ही उठ जाते हैं...शिट मैं ये जानते हुए भी पता नहीं कैसे भूल गई?..उन्होंने मुझे सोते हुए देखा तो होगा ही, हाय राम...' यह सोचते हुए मनिका की कंपकंपी छूट गई. मनिका ने आज शावर ऑन नहीं किया था और बाथटब में बैठ कर नहा रही थी, 'और तो और वह रूम-सर्विस वाला वेटर भी मुझे इस तरह आधी से ज्यादा नंगी देख गया...हाय...और पापा मेरे पास बैठे थे...क्या सोचा होगा उसने हमारे बारे में..?' मनिका इस से आगे नहीं सोच पाई और अपनी आँखें भींच ली. उसे बहुत बुरा फील हो रहा था. अब वह धीरे-धीरे अपने बदन पर साबुन लगा नहाने लगी. परंतु कुछ क्षणों में ही उसके विचारों की धार एक बार फिर से बहने लगी, 'पर पापा ने मुझे इस तरह देख कर भी रिएक्ट नहीं किया...वो तो बिलकुल नॉर्मली बिहेव कर रहे हैं...पर बेचारे कहें भी तो क्या, मैं उनकी बेटी हूँ, मुझे ऐसे देख कर शायद उन्हें भी शर्म आ रही हो...हाँ तभी तो वे मेरी तरफ न देख अखबार में नज़र गड़ाए बैठे थे...और जब मैंने उनसे बात करी थी तो उन्होंने सिर्फ मेरे चेहरे पर ही अपनी आँखें फोकस कर रखीं थी...हाय...ही इज़ सो नाइस.' मनिका ने मन ही मन जयसिंह की सराहना करते हुए सोचा. 'ये तो पापा हैं जो मुझे कुछ नहीं कहते...अगर मम्मी को पता चल जाए इस बात का तो...तूफ़ान खड़ा कर दें वो तो...थैंक गॉड इट्स ओनली मी एंड पापा...अब से मैं जब तक पापा के साथ हूँ अपने रहने-पहनने का पूरा ख्याल रखूँगी.' मनिका ने सोचा और उठ खड़ी हुई, वह नहा चुकी थी.
जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को अभी भी बेड पर ही बैठे पाया, इस बार मनिका पूरे कपड़ों में थी और उसने बाथरूम में से अपने अंतःवस्त्र भी ले लिए थे. उसे देख जयसिंह मुस्कुराए और बेड से उठते हुए बोले,
'नहा ली मनिका?'
'जी पापा.' मनिका ने हौले से मुस्का कर कहा. पूरे कपड़े पहने होने की वजह से उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था.
'तो फिर अब मुझे यह बताओ कि तुम्हारे इंटरव्यू के कॉल लैटर में क्या लिखा हुआ था?' जयसिंह ने पूछा.
मनिका उनके सवाल से थोड़ा कंफ्यूज हो गई,
'क्यूँ पापा? उसमें तो बस यही लिखा था कि इंटरव्यूज फॉर एम.बी.ए. कोर्स बिगिन्स फ्रॉम...' मनिका बोल ही रही थी कि जयसिंह ने उसकी बात बीच में ही काट दी,
'मतलब उसमें लिखा था -बिगिन्स फ्रॉम- ना की -ऑन- दिस डेट? क्यूंकि अभी मैंने तुम्हारे कॉलेज से अपॉइंटमेंट के लिए बात करी थी और उन्होंने कहा है कि इंटरव्यू पन्द्रह दिन चलेंगे और गेस व्हाट? आपका इंटरव्यू लास्ट डे को है.' जयसिंह ने मनिका से नज़र मिलाई.
'ओह शिट.' मनिका ने साँस भरी.
'हाँ वही.' जयसिंह मुस्कुरा कर बोले.
'पापा! आपको मजाक सूझ रहा है, अब मतलब हमें फिफ्टीन डेज के बाद फिर से आना पड़ेगा.' मनिका सीरियस होते हुए बोली 'हमने फ़ालतू इतना खर्चा भी कर दिया है...रुकिए मैं कॉलेज फ़ोन करके पूछती हूँ कि क्या वो मेरा इंटरव्यू पहले अरेंज कर सकते हैं.'
'मैं वो भी पूछ चुका हूँ और उन्होंने कहा है कि इट्स नॉट पॉसिबल.' जयसिंह ने कहा.
'ओह.' मनिका का मूड पूरा ऑफ़ हो गया था 'तो अब हमें वापस ही जाना पड़ेगा मतलब.'
'हाँ वो भी कर सकते हैं.' जयसिंह ने उसे स्माइल दी 'या फिर...' और इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी.
'हैं? क्या बोल रहे हो पापा आप..? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा.' जयसिंह की गोल-गोल बातों से मनिका की कंफ्यूजन बढ़ गई थी.
'अरे भई या फिर हम यहीं तुम्हारा इंटरव्यू हो जाने तक वेट कर सकते हैं.' जयसिंह ने कहा.




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