Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--147

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--147

 स्ट्रीट लाइट पहले ही गली के लड़को की निशाने बाजी प्रतियोगिता का शिकार हो चुकी।
……..
बस उंचे मकानी से झुक कर आती दबे पाँव , थोड़ी बहुत चांदनी थी।



गुड्डी ने हल्का सा टॉप ऊपर किया और मैं बस बेहोश नहीं हुआ।


नो ब्रा।

सीधे उसके गदराये ३२ सी के किशोर उभार ,

मेरे मजे की चिंता मुझसे ज्यादा गुड्डी को रहती थी। उसने मेरा सर झुकाया और मेरे होंठ सीधे उसके निपल पे।

और अब मेरे होंठ सील हो चुके थे।
यही नहीं गुड्डी ने अपने एक हाथ से मेरे सर को जोर से दबा भी रखा था ( उसका दूसरा हाथ तो जंगबहादुर को मुठियाने में बिजी था ).

मैं बोल नहीं सकता था और गुड्डी चुप नहीं हो रही थी।

वही एक राग, मम्मी की समधन उसकी सास और ,

" मानती हूँ मेरा मुन्ना बहुत सीधा है , भोला है शरमाता है , झिझकता है लेकिन जिम्मेदारी किसकी है तेरे मायकेवालियों की न ( जोर से मेरे गाल पे कचकचा के काटती वो बोली ) और फिर कहां , " अरे यार मुझे मालूम है तेरा मन करता है लेकिन , तो सब जिम्मेदारी मम्मी पे छोड़ दो न , पटाने का, सेट करने का काम उंनका और हचक कर सटासट ये काम तेरा। और वैसे भी अब तो मम्मी तुझे बिना मादर, …बनाये छोड़ने से रही। तो मजा लो न खुल के। "

१५ मिनट तक बस उसी थीम पे , और सामने सांड की मैथुन क्रिया , गनीमत है शायद उन्हें हम दोनों का ध्यान आ गया ( आखिर हम दोनों भी तो उसी काम के लिए बेचैन हो रहे थे और देख देख के और ,… )

और उस नई बछिया को रगड़ते , दरेरते वो बगल की पतली गली में ले गए।

और हम लोगो की गाडी वहां से फिर मेंन रोड पे गयी।

गुड्डी ने अपना टॉप ठीक किया और मैंने निगाह अब रोड पे की।

" जैसे वो बनारसी सांड रगड़ रगड़ के , गली में दौड़ा दौड़ा के दरेर रहा था , वैसे मेरी सास ननदों के साथ होगा , बगीचे में खेत में दौड़ा दौड़ा कर , पटक कर घसीट कर , बिना चुदे कोई बचने वाली नहीं है। " गुड्डी ने जोड़ा।

लेकिन फिर उसने अचानक रिकार्ड बदल दिया और मुझे डांटने पर उतर आई।

" मम्मी बहुत नाराज हैं तुमसे ". 

एकदम घबड़ा कर अपनी सबसे मीठी आवाज में मैं बोला , " क्यों मैंने तो उनकी हर शर्त मान ली "

"और कोई चारा था क्या बच्चू तेरे पास " गोल गोल आँख नचा कर गुड्डी बोली फिर मामला साफ किया , " छुटकी के लिए "
मेरी तो फट गयी।

बदमाशी तो छुटकी की ही थी , लेकिन थोड़ी बहुत तो मैंने भी , .

वो एकदम चिपक कर बैठी थी और ऊपर से सरकते सरकते आधी मेरी गोद में चढ़ गयी थी। हाँ हाथ उसके कंधे पे मैंने ही रखा था लेकिन खीच के अपने मस्त टिकोरों पे उसी ने दबाया था। एक दम टॉप को फाड़ते , छोटे छोटे लेकिन खूब कड़े।





हाँ फिर थोड़ी देर मैंने बस हलके से सहलाया था , और जब उसके मटर के दाने ऐसे निपल पे मेरी ऊँगली पड़ी , तो एक दम टन्न टना टन। कोई भी समझ जाता इसकी फुद्दी खूब गीली हो रही है। और ऊपर से जिस तरह वो मुझे देख के मुस्कराई , एकदम ग्रीन सिग्नल था।

मैंने भी बस अंगूठे और तरजनी के बीच दबाकर थोड़ा सा रोल कर दिया। और उसने जिस तरह दांत से होंठ काटे , हलकी सी सिसकी भरी और सबसे बढके अपने हाथ से मेरे हाथ को और जोर से दबा दिया और मेरे कान में फुसफुसाई , जीजू जरा जोर से पकड़ो न।

और मैंने मस्ती में आके थोड़ा जोर से दबा दिया। छुटकी का टॉप तो इतना खुला था उसके उभार , कटाव , गहराई सब दिख रही थी। और जब झुकती थी , तो पूरी गहराई दिखती थी। एक दो बार मैंने हलके से दबा दिया था , मुझे क्या मालूम था की मम्मी देख रही हैं।

मुश्किल से मेरे बोल फूटे।

" वो खुद ही मेरे गोद में चढ़ी जा रही थी। हाँ मेरा भी , एक दो बार हलके से हाथ लग गया होगा। चलो मानता हूँ की मैंने हलके से उसके उभार सहला दिए थे , लेकिन मुझे क्या मालूम था की मम्मी देख लेंगी। थोड़ी गलती मेरी थी लेकिन यार , "

मेरी बात गुड्डी ने काट कर मम्मी के गुस्सा होने का असली कारण बताया।

" इसीलिए तो नाराज थी वो , थोड़ी गलती क्यों की। ज्यादा क्यों नहीं की।


वो कह रही थी की हम लोगों के जीजू होते , तो खुद खींच कर पूरी तरह गोद में बिठा लेते। और सबसे ज्यादा इस बात से नाराज थीं की तुम कितने हलके से , रुई के फाहे जैसे डर डर के उसके टिकोरे छू रहे थे।

कह रही थी कैसे जीजू है , साली चिपकी है , और लौंडियों की तरह शरमाते , बस नाम रखने को छू रहे हैं। अरे जीजू हो , तो कचकचा के जोर जोर से दबाते। टॉप के अंदर हाथ डालकर दबाते , मसलते रगड़ते , आखिर सबसे छोटी साली है , जीजा का हक़ है उस पे। "

मैं कैसे कहता की मेरा भी मन तो यही कर रहा था। किस तरह रोक पाया अपने को मैं ही जानता हूँ।

गुड्डी थोड़ी देर चुप रही , फिर बोली ,

" मैंने मम्मी को बहुत समझाया , की थोड़े शर्मीले है , झिझकते हैं.

तो मम्मी और बिचक गयीं कहने लगीं की , मादरचोद सारी शरम लाज ससुराल में आती है , घर में माँ बहन के साथ गुल्ली डंडा खेलने में लाज नहीं आती और साली के साथ लाज लगती है।



वो तो छुटकी खुद आ गयी तेरे सपोर्ट में और कहने लगी ,
" मम्मी अरे रहने दो ,जीजू दो चार दिन रहेंगे न हमारे साथ सब शरम लिहाज छूट जायेगी। "

मेरे मुंह से निकल गया तो फिर , और गुड्डी ने बात आगे बढ़ाई।

" मम्मी तो बहुत गुस्सा थी। कह रही थी इतनी प्यारी छोटी साली , अरे मैं होती तो उसकी जगह तो खिंच के गोद में बिठा लेती , कस कस के टॉप के अंदर हाथ डाल के दबाती ,"

गुड्डी की बात काट के मैं बोला ,

" यार एक्सेक्ट्ली मन मेरा यार यही कह रहा था , उसके टिकोरे इत्ते प्यारे मस्त लग रहे थे। और उपर से टॉप खुला भी था , बस मन कर रहा था अंदर हाथ डाल के उसके मस्त कबूतरों को दबा लूँ , दबोच लूँ। कचकचा के उसके प्यारे प्यारे गाल काट लूँ। मेरे ख्याल मम्मी से एकदम मिलते जुलते हैं "

५०० ग्राम मक्खन मैंने एक साथ लगाया।

गुड्डी मुस्कराई और कचाक से जोर से मेरा गाल काट लिया। बोली ,

" मुन्ने बात तेरी ठीक है , तुम्हारे और मम्मी के ख्याल एकदम मिलते हैं , चाहे छुटकी के बारे में हों चाहे मम्मी की समधन के बारे में हो. लेकिन बस अमल करने में तुम थोड़ा हिचक जाते हो , लेकिन मम्मी ने फाइनल वार्निंग दे दी है की अगली बार अगर जरा भी शरमाए न तो उन्होंने कहा है की उनसे बुरा कोई न होगा। '

' आगे से नहीं हिचकूंगा ' . मैंने बोला।

" लाक किया जाय " गुड्डी हंस के बोली।

' एकदम , मम्मी की वार्निंग केबाद भी किस की हिम्मत होगी जो हिचके। " मैंने तुरंत हामी भरी।

" पक्का , लाक कर दिया जाय कंप्यूटर जी। छुटकी के बारे में भी और मम्मी की समधन के बारे में भी, । " गुड्डी ने हंस के जंगबहादुर को जोर से दबा दिया।

गुड्डी बात आगे बढाती की हम लोग पुलिस मेस के सामने थे।  

मैंने गाडी रोकी और गुड्डी ने जंगबहादुर को पैंट में वापस किया , बिना ज़िप्पर बंद किये।



पल भर में हम लोग मेरे रूम में थे।

दरवाजा गुड्डी ने घुसते ही बंद किया।

गेस उसका सही था , सामान चारो ओर बिखरा था , लेकिन गुड्डी ने खुली ज़िप से जंगबहादुर को बाहर निकाला , फर्श पर बैठी और अगले पल में सुपाड़ा उसके मुंह में।


गुड्डी को प्रायरिटी मालूम थी।
गुड्डी की जीभ सेकंड में ५० बार फ्लिक कर रही थी।

नाग जगाने के उसे सारे मंतर मालूम थे।


लेकिन नाग तो पहले ही फन फुफकार रहा था , सर उठाये खड़ा था।


लेकिन गुड्डी भी तो बनारस की संपेरिन थी।

कहाँ उंगली लगानी चाहिये , कहाँ मुट्ठी में दबोच लेना चहिये , सारी कलाएं मालुम थीं उसे।

लेकिन ५-७ मिनट के मुख चूषण के बाद न मुझसे रहा गया न उससे।

उसकी गुलाबी परी भी तो उड़ने के लिए बेताब थी।

और हम दोनों पलंग पे थे।

छितरे हुए सामानो के बीच , हमारे कपडे भी फैले थे।

सबसे पहले होंठों ने होंठों की सुधि ली , हाल चाल पूछी।

अपने ढंग से।

पहले तो होंठो ने होंठो को छुआ , पहल मेरे होंठों ने ही की। इतने दिनों को बिछोह , एक थिरकन ,हलकी सी फुरकन और फिर मेरे गुड्डी के होंठ गलबहियां लेकर चिपक गए।




कितनी बार मैंने उसको चूमा ,कितनी बार उसने मुझे पता नहीं।

फिर मेरे होंठों ने गुड्डी के किशोर रसीले होंठो को दबोच लिया और जोर जोर से चूसने लगे , जैसे सारा रस भौंरा गुलाब का एक दिन में ले लेगा। लेकिन उन गुलाब की पंखुड़ियों में कितना रस था , कितना स्वाद ये सिर्फ मुझे मालूम था।

और धीरे धीरे मेरी नदीदी जीभ ने उसके दोनों होंठों को फैलाया और उसके मखमली मुंह में सेंध लगा दी।

और गुड्डी क्यों पीछे रहती , वो उसे रस ले ले कर चूसने लगी।

मेरे हाथ क्यों पीछे रहते , दोनों हाथों में लड्डू थे। कभी सहलाते , कभी दुलराते लेकिन थोड़ी देर में दोनों अपनी असलियत पर आगये , जोर जोर से रगड़न मसलन , सुबह से गुड्डी के किशोर जोबन देख कर जो मन ललचा रहा था , बस वो साध पूरी करने का समय आ गया था। मस्ती से गुड्डी की चूंचियां भी पत्थर हो रही थीं। और निप्स एकदम कड़े।

और कुछ ही देर में हाथ का साथ देने होंठ भी उत्तर पड़े.


चुम्बन यात्रा गुड्डी के किशोर जोबन के बेस से शुरू हुयी और किसी अनुभवी पर्वतारोही की तरह मेरे होंठ हर पड़ाव पर चुम्बनो का , छोटी छोटी बाइट का झंडा गाड़ते थोड़ी देर में शिखर पर पहुँच गए। सुबह से उसके उभार देख देख मैं ललचा रहा था और अब मौका आ गया था।


गुड्डी के प्यारे रसीले , निपल मेरे होंठों के बीच थे , कभी मैं चुभलाते, कभी चूसता और कभी जोश में होश खो कर , जोर से काट लेता , और वो सिसक उठती। एक निपल मेरे होंठों के बीच चूसा जा रहा था तो दूसरा अंगूठे तरजनी के बीच ,रगड़ा मसला जा रहा था।

गुड्डी सिसक रही थी , उचक रही थी। मचल रही थी ,मस्ता रही थी।

वो अपने दोनों हाथों से जोर जोर से मेरा सर पकड़ कर अपने चूंचियों पे दबा रही थी। उसका एक हाथ मेरे पीठ को दबोचे था और नाख़ून जोर जोर से निशान बना रहे थे।

इससे ज्यादा ग्रीन सिग्नल और क्या मिलता

लेकिन उसने मुझे कम तड़पाया था क्या और मेरे होंठ भी बहुत प्यासे थे तो उन्होंने दोनों शिखरों से नीचे के रस कूप की ओर रुख किया। थोड़ी देर में ही मेरे हाथ उसके केले के तने ऐसी चिकनी रेशमी जांघो को फैलाये हुए थे।

जैसे गर्म तवे पर पानी की छींटे पड़ जायँ , बिलकुल वैसे ही हुआ जब मेरे होंठ गुड्डी के गर्म निचले होंठों से मिले।

वो पहले से ही गीली हो रही थी और होंठो के लगते ही वो उछल पड़ी।

ओह्ह्ह ,.... नहीई , उह्ह्ह , ओह्ह क्या करते हो।

लेकिन मुझे अच्छी तरह मालुम था की कब नहीं का मतलब हाँ होता है और मेरे होंठों ने पहले तो जोर से गुलाबी परी को चूमा और फिर जोर जोर से चूसने लगा। एक पैर गुड्डी का अब मेरे कंधे पे था , और एक हाथ उसके रसीले भगोष्ठों को रगड़ रहा था।

नहीईईईईईईई नहीईईईईईईईईई , अभी गुड्डी के मुंह से निकल रहा था लेकिन मेरे बाल पकड़ कर वो जोर जोर से मेरे होंठ अपनी चूत पर वह रगड़ रही थी।

मेरी उँगलियों ने चूत के गुलाबी द्वार को फैलाया और अब मेरी जीभ उस प्यारी सुरंग में उतर पड़ी।

कभी अंदर बाहर , कभी गोल गोल , जिस काम के लिए जंग बहादुर बेताब थे , वो काम अब मेरी जुबान कर रही थी। गुड्डी की चूत चोदने का काम ,

साथ मेंएक अंगूठा , उसकी क्लिट को जोर जोर से रगड़ रहा था , दबा रहा था और दूसरा हाथ अभी भी उसकी चूंची की रगड़ाई में लगा था। होंठ चूत चूसने में लगे थे।

ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उह्ह्ह्ह्ह नहीं …छोडो न ,

गुड्डी बार बार चूतड़ पटक रही थी।

दो बार वो झड़ने के कगार पे आगयी तो मैं रुका , लेकिन तीसरी बार जब उसकी देह कांपने लगी मैंने अपने होंठ हटा दिए , और



जंगबहादुर को वहां सटा दिया।

अंगूठे और ऊँगली ने मिल के दरवाजे को थोड़ा खोल दिया था और बाकी काम पहले धक्के ने कर दिया।


उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइ , गुड्डी के मुंह से चीख निकल गयी , लेकिन अभी तो सुपाड़ा भी ठीक से नहीं घुसा था।

गुड्डी को दोनों लम्बी टांगो को एक बार फिर मैंने कंधे पे सेट किया , जोर से उसकी पतली कमर को पकड़ के एक करारा धक्का मारा ,

इतने दिनों के विरह के बाद की बेताबी। धक्का कुछ ज्यादा ही तगड़ा था , सुपाड़ा के साथ आध लंड भी अंदर पैबस्त हो गया।

और जिस तरह रगड़ते दरेरते फाड़ते वो घुसा ,


गुड्डी जोर से चीख पड़ी , उसके लम्बे नाख़ून मेरे शोल्ड़र ब्लेड्स में धंस गए।


' साल्ले , क्या समझा रखा है , मेरी सास का भों , …'

और उसकी आगे की बात निकलने के पहले ही मेरे होंठो ने उसके होंठ सील कर दिए। 


मिलन का मजा



अब गुड्डी को भी मेरी आदत लग गयी थी , चुदाईके समय गाली का तड़का और गाली जीतनी हॉट हो उतना ही मजा।

थोड़ी देर चूंचियों को सहलाने के बाद मैंने लय मंद कर दी लेकिन धक्के जारी रहे और थोड़ी देर में गुड्डी चूतड़ उठा उठा कर मेरा साथ दे रही थी।
सटासट गपागप सटासट गपागप ,

कभी मैं गुड्डी के प्यारे गाल कचकचा के काट लेता था , तो कभी चूंचियों पे मेरे दांत के निशान उभर पड़ते थे , और गुड्डी कौन सी कम थी। वो मारे जोश के अपनी टेनिस बाल साइज की छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूंचियां मेरे सीने पे रगड़ देती थी , अपने नाखूनों से कभी मेरी पीठ पर तो कभी छाती पे जंगली बिल्ली की तरह नोच लेती थी। और उसकी सहेली भी इत्ते दिनों बाद अपने बालम से मिल रही थी। जोर जोर से वो उसे भींच लेती थी जैसे बिछुड़ने का उलाहना कर रही हो।

न मुझे जल्दी थी न उसे।

समय को हम दोनों ने ओट दे दी थी।

आज डबल जोश में लग रहे हो , उसने चिढ़ाया।

" एकदम , एक तो तुमसे मिलने की इतने दिनों बाद ," मैंने भी उसी तरह जवाब दिया।

" और दूसरा मन्त्र का , जबरदस्त असर हुआ है तुमपर " . गुड्डी ने बात पूरी की।

( बात गुड्डी की सोलहो आने सही थी। और क्रेडिट भी उसी की थी। रीत ने कार्लोस से सीख कर गुड्डी को बताया था , जिसका असर सिर्फ एक आदमी के ऊपर हो सकता था। और वो गुड्डी ने मुझे चुना और 'मन्त्र जगाने ' में भी तो , उसके लिए अक्षत यौवना कन्या चाहिए थी , वो भी कर्टसी गुड्डी ही पटी। और उसके तीनो छेद में, असर भी जबरदस्त हुआ। आधे घंटे तक तो मैं कितनी भी ताकत से पेलूं , कोई कुछ भी करे मैं स्खलित नहीं हो सकता था। और उसके बाद भी स्तम्भन की ये शक्ति थी की समझिए , इच्छा स्खलन )

एकदम जबरदस्त धक्का मारते बोला मैं।


लेकिन तबतक गुड्डी की निगाह जंगबहादुर पर पड़ गयी , उनका १/३ करीब ३ इंच अभी बाकी था।

और वो उबल पड़ी ,

" ये किसके लिए बचा रखा है , मेरी ननदो के लिए तो नहीं हो सकता। उन सबके लिए तो तेरे सामने मम्मी ने एक एक पे तीन की बुकिंग कर दी है। जरूर ये मेरी सा.… "

और एक बार फिर मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये , अगले ही पल मैंने उसे दुहरी कर दिया था। उसके गोल गोल गोरे गुदाज नितम्ब हवा में उठे थे।

मैंने अपना हलब्बी , एक बित्ते का कलाई सा मोटा लंड , आलमोस्ट सुपाड़े तक निकाला और फिर एक झटके में पूरा अंदर पेल दिया , सीधे गुड्डी की बच्चेदानी से टकराया। लेकिन बिना रुके मैंने फिर निकाला औॅर हचक कर पहले से भी तेज धक्का मारा। दरेरता ,रगड़ता , चीरता लंड उसकी चूत में जड़ तक घुस गया। पूरा ९ इंच अंदर था।

और फिर क्या तूफानी चुदायी चालु हुयी।


गुड्डी की आधी चूड़ियाँ चुरमुर चुरमुर करते टूट गयीं।


और ये बस शुरुआत थी।

मैंने उसे झुकाया , निहुराया और मेरी फेवरट डॉगी पोज में ,

जोर जोर से मैं चूंची दबाता , मसलता ,कभी उसके गोल मटोल चूतड़ों को दबोच लेता।

सटासट लंड अंदर बाहर हो रहा था।

जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ,


थोड़ी देर में पोज बदला और वो मेरी गोद में थी और लंड अभी भी पूरी तरह धंसा।


" कित्ते दिन बाद मिली , एक महीने से ज्यादा हो गए। " मैं बोला।
" मेरा भी बहुत मन करता था , " उदास वो बोली , फिर चहकी।
" चलो कुछ दिन बाद ही तो, मैं और तुम " उसने मेरा मन बहलाने की कोशिश की।

" कहाँ यार , २५ मई यानी एक महीने दस दिन आज से " मेरा मन इतनी जल्दी नहीं मानने वाला था।
" गलत " वो खिलखिलाई। " २५ नहीं २७। २५ को शादी है बुद्धू। विदाई तो २७ मई को होगी न। तब तक इन्तजार करना होगा। " गुड्डी से समझदार कोई नहीं।


" उसके बाद मैं तुम्हे एक दिन नहीं छोड़ूंगा , रोज , बिना नाग " मैंने कचकचा के उसके गाल काटते हुए अपना इरादा जाहिर किया।

मुझे धक्का दे के उसने गिरा दिया और अब वो मेरेऊपर थी।

उसकी फेवरिट पोज , विमेन आन टॉप वाली पोजीशन में।

लंड के ऊपर नीचे होते , अपने उरोजों को मेरे सीने से रगड़ती , जोर से मुझे चूम के गुड्डी बोली।

" गलत , मैं नहीं छोडूंगी एक दिन भी न तुम्हे न इसे" और जोर से अपनी कसी चूत में लंड भींचते हुए उसने अपना इरादा साफ किया।


कुछ दिर में फिर गाडी नाव पर थी।

मैं ऊपर वो नीचे। 
सुबह का सपना


कुछ दिर में फिर गाडी नाव पर थी।

मैं ऊपर वो नीचे।
लेकिन न मेरे धक्कों की रफ्तार धीमी पड़ी

और न गुड्डी का चूतड़ उचकाना।

हम दोनों एक दूसरे में गूथे हुए ,

दूध पानी की तरह मिले ,

एक देह एक प्राण

किनारे पर आ आ के वापस लौटते ,

लेकिन अब जो हालत थी , हम दोनों झड़ने के कगार पे थे। साँसे लम्बी हो रही थीं। देह पसीने से लथपथ और जोर जोर से एक दूसरे को भींच रहे थे।

तेज हवा में कांपते पत्ते की तरह , झाला बजाते सितार के तार की की तरह गुड्डी की देह काँप रही थी।

" सुन , हाँ बोल पक्की वाली

मैं गुड्डी की बात समझ गया

( गुड्डी की किसी गाँव की भाभी ने बताया था की झड़ते समय अगर युगल किसी बात के लिए हाँ बुलवाते हैं तो वो बात होकर रहती है। कई बार गुड्डी से मैंने भी हंकार भरवाई थी ऐन झड़ते वक्त , और कई बार गुड्डी ने मुझसे )


हाँ।

नहीं तीन बार बोल न। …गुड्डी बोली।

हाँ हाँ हाँ और हाँ मैंने जोर का धक्का मारते कहां , सीधे बच्चेदानी में।

ओह्ह हां ओआह हाँ बोल न गुड्डी झड़ने लगी थी और अब साथ में मैं भी , उसे भींचे हुए।

गुड्डी झड़ते हुए बोली , तुमने हाँ पहले बोल दिया है , मेरे सैयां का लंड मेरी सा,…

… मुझे सिर्फ अपने झड़ने का अहसास हो रहा था।





… …………।


उठो न , कब तक सोओगे , १२ बज गए हैं।

भाभी मुझे जोर जोर से जगा रही थीं। मैंने आँख खोली तो बगल में मंजू भी खड़ी थी , मंद मंद मुस्कराती।

उसे तो मेरे देर तक सोने का राज मालुम था।

" दो बार चाय ले के मंजू आई थी " भाभी ने मंजू की और इशारा किया लेकिन तुम तो, और ये सपने में हाँ हाँ किससे कर रहे थे।

मुझे याद आया गुड्डी की बात सपने की , और मैं मुस्करा के रह गया। लेकिन भाभी कहाँ छोड़ने वाली थी

" कोई अच्छा सपना रहा होगा , कोई बात नहीं सुबह का सपना जरूर सच होता है " चिढ़ाते हुए वो बोली।

" सपना तो कौनो मस्त था ,तबै ये हाल हुआ है "शार्ट फाड़ते , मेरे तन्नाये जंगबहादुर की ओर इशारा करके मंजू ने इशारा किया।


भाभी ने मुस्कान दबाई और मुझसे कहा की मैं जल्दी से फ्रेश हो जाऊं , वो चाय बना रही हैं।

निकलते निकलते वो बोलीं

" और , हाँ तुम्हारा फोन आधे घंटे में दो बार देर तक बज चुका है। "


मैंने उठा कर देखा , मम्मी का फोन था।

मेरी तो फट के हाथ में आ गयी। क्या क्या सुनना पड़ेगा। और साथ में सपने में उन्होंने जो जो बाते कही थीं।

ब्रश करते हुए मैंने दो बार फोन लगाया लेकिन इंगेज मिला।

वापस कमरे में लौटकर जब फिर ट्राई किया तो नंबर लगा और गाली और आशीष का मिश्रण एक साथ ,

मेरा कोई बहाना नहीं सुना गया की मैं देर तक सो रहा था इसलिए फोन नहीं उठाया।

" साल्ले , रात भर अपने कौन मायकेवाली के साथ कबड्डी खेल रहे थे की जो सबरे नींद नहीं खुली। इसीलिए होली मायके में मना रहे हो की ,,… "

मैंने बात बदलने की कोशिश की , सपना देख रहा था तो और पड़ी।

" क्या देख रहे थे सपने में बताओ , खैर जगने के पहले का सपना सोलहो आने सच्चा होगा। "
कुछ देर बाद मुद्दे पे आई। गुड्डी की बुआ की लड़की , जो गुड्डी से दो तीन साल बड़ी थी उसका कुछ काम था।

बुआ का नाम लेते ही मुझे फिर सपना याद आया। बुआ ने सपने में क्या क्या मुझसे ,…

काम ज्यादा झंझटिया नहीं था। गुड्डी की उस कजिन के पासपोर्ट का कुछ पुलिस वेरिफिकेशन फंसा था और उसी का दो दिन बाद का रिजर्वेशन का


मैंने मम्मी को मक्खन लगाया , वो भी ५०० ग्राम।

" अरे मेरी हिम्मत है साली के काम को न करूँ और वो भी आपके हुकुम के बाद "

वोजोर से हंसी और बोलीं , " मुझे मालूम था और तुमको मालूम है की मना करने के बाद क्या हालत होती तेरी। "

मैंने बात पलटी और बोला , " लेकिन सरकारी कर्मचारी हूँ , बिना थोड़ी बहुत रिश्वत के काम तो होगा नहीं। "

और वो और हंसी और बोली , " मुझसे लेगा की अपनी साली से "

मन तो हुआ कहूँ की दोनों से , लेकिन फिर इतनी गालियां पड़तीं , बोला " जिसका काम है उससे लूंगा , साली से , बोल दीजियेगा , मिलने पर सूद समेत लूंगा। "

" एकदम बोल दूंगी लेकिन शरमाते तुम्ही हो, तुम लेने में पीछे हट जाओगे , वो देने में नहीं हटेगी। "

तब तक भाभी आ गयी थीं और उन्होंने मेरे हाथ से फोन ले लिया और कुछ बातें करने लगीं।


मैं नहाने चला गया और लौटा तो भाभी ने पूछा अभी मंजू आलू के पराठे बना रही है ,नाश्ते में। खाने में क्या लोगे।

मैंने घडी की ओर देखा। एक बजने वाला था।

अरे भाभी , ब्रंच हो जाएगा। ब्रेकफास्ट लंच दोनों। मैंने जवाब दिया।

" हम लोग भी यही कर रहे हैं। तुम्हारे भैया भी थोड़ी देर पहले ही उठे हैं। मैं उनके लिए ले जा रही हूँ , हम दोनों ऊपर कमरे में कर लेंगे और तुम मंजू से ले लेना "


ऊपर से भैया की आवाज आयी और भाभी जल्दी जल्दी अपने कमरे की ओर सीढ़ी पर चढ़ के चल दीं।



मुझे मालुम था की नाश्ते और लंच के साथ भाभी का भी नाश्ता होना था साथ और वो एक घंटे तक नीचे नहीं उतरने वाली थीं।

मैं किचेन की ओर मुड़ गया जहाँ मंजू पराठे सेंक रही थीं।

मेरी निगाह मंजू के पिछवाड़े से चिपक के रह गयी। खूब गोल मटोल , बड़े बड़े, भरे भरे , गोल गुदाज। साडी एकदम चिपकी , दोनों गोलाइयों के बीच दरार में धंसी। साफ था उसने पेटीकोट नहीं पहन रखा था और झीनी पतली घिसी हुयी साडी उसके गदराये दो तरबूजों से , नितम्बो से एकदम चिपकी। 
  







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