Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--136

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--136
 मंजू की एक खूब मोटी मोटी चूंची मेरे चूतड़ों के बीच थी , और एक हाथ से पकड़ के वो उसे चूतड़ की दरार में रगड़ रही थीं , और फिर जोर का धक्का आर के एक इंच निपल अंदर ,

" क्यों लाला मजा आरहा है , चूंची से गांड मरवाने में . घबड़ाओ मत , ससुराल में तेरी सास इसके लिए भी पक्का इंतजाम करके रखेंगी , जैसे तुम्हारी बहनों और मायके वालियों के लिए लम्बा लम्बा , मोटा मोटा , … एक बार स्वाद लग गया ना तो तुम भी , …"

दो तीन मिनट तक इसी तरह मेरी रगड़ाई करने के बाद उन्होंने मुझे पलट कर पीठ के बल कर दिया।

अब तक मैं सारी लड़ाई , डर , हादसे भूल चूका था। मेरे तन मन सब से थकान , तन्द्रा , सब उत्तर चुकी थी। सिर्फ एक नशा था , मंजू के जोबन का।
और मंजू के मस्त गदराये , अनावृत्त जोबन मेरी आँख के सामने थे।

मेरी गोद में बैठी , मुझे ललचाती , दिखाती वो अपने दोनों जोबन सहला रही थी , हलके हलके मसल रही थी , निपल पुल कर रही थी।

" क्यों लाला , चाहिए ' मुस्करा के आँख मार के , उसने पुछा।

और जैसे ही मैं लपका , उसने धक्का मार के मुझे फिर पलंग पर गिरा दिया , पीठ के बल और अपने हाथ से मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर , मेरे सर के नीचे दबा दिया।

" मिलेगा , मिलेगा लाला , लेकिन पहले ये वाला दुद्धू पियो " और उसने स्टूल पर रखा दूध का ग्लास मेरे होंठों पे लगा दिया। और जब तक मैं समझूँ , एक तिहाई ग्लास मेरे पेट में। और ग्लास भी दूध का , पंजाबी लस्सी के साइज का , पूरे हाथ भर का।

पता नहीं क्या क्या दूध में पड़ा था। चार पेग शराब का नशा एक बारगी हो गया और साथ में जैसे आधा दर्जन वियाग्रा की गोलियां भी हों। मेरा तन्नाया , बौराया लिंग , पत्थर का हो गया। पूरे देह में एक नशा , एक खुमार , बस मन कर रहा था की , …


मंजू भाभी , मेरी हालत देख कर मुस्करा रही थीं।

दूध में खूब गाढ़ी मलाई भी पड़ी थी , एकदम थक्केदार।

उन्होंने उसे ऊँगली से निकाल के अपने खड़े , कड़े निपल पर मुझे दिखा लपेटा और आँख नचाकर , मुस्कराकर बोलीं ,

" क्यों लाला , चाहिए " और मेरे कुछ कहने के पहले ही उनके निपल मेरे होंठों पे रगड़ रहे थे।

और मैं भी चुहुक चुहुक कर उनके निपल चूस रहा था।

वो बहुत प्यार से मेरे बाल में उंगली फेर रही थीं , मेरा चेहरा सहला रही थीं।

कुछ देर बाद उन्होंने फिर दूध का ग्लास मेरे हाथ में पकड़ा दिया और अबकी खुद मैं आधा डकार गया।

मेरे हाथ से ग्लास ले के उन्होंने स्टूल पे रख दिया और मेरे और पास आके अपने पेटीकोट की तरफ इशारा करके बोलीं ,

" अरे लाला को तो मैंने असली खजाना दिखाया नहीं और उसका सब कुछ देख लिया। मन हो तो नाड़ा खोलो। "

और जैसे ही मैंने साये के नाड़े की ओर हाथ बढ़ाया , मंजू ने मेरा हाथ रोक दिया और आँख नचा के बोली ,

" लाला ये बताओ , माना अपनी बहनो का बहुत खोला होगा , उस साल्ली रंजी का स्कर्ट , फ्राक , लेकिन साया तो कोई बड़ी उम्र की ही , तो किसके साथ की थी प्रैक्टिस , कहीं , …… "

और उसकी बात पूरी होने के पहले एक झटके में मैंने नाड़ा खोल दिया।

सरसरा कर साया उनके कदमो पर गिर पड़ा।

केले के तने ऐसी चिकनी जांघो , के बीच काली झुरमुट में छिपा , गुलाबी जन्नत का दरवाजा दिख रहा था , मुझे ललचा रहा था , बुला रहा था।

लेकिन जब तक मैं कुछ करता , मंजू एक बार फिर मेरे पैरों के बीच थी और वहीँ से उसने आँखों से इशारा किया की मैं चुपचाप लेटा रहूँ।

अपने दोनों तेल लगे हाथों के बीच पकड़ कर , मथानी की तरह थोड़ी देर मेरे पगलाए ,बौराये लिंग को मंजू ने मथा। और साथ ही झुक कर मेरे मोटे सुपाड़े को भी अपने गुलाबी रसीले होंठों के बीच चूसा , चुभलाया।

मुझे लगा अब मुख मैथुन शुरू होगा।

लेकिन मंजू तो मंजू थी, तड़पाने में एक्सपर्ट। 

मुझे लगा अब मुख मैथुन शुरू होगा।

लेकिन मंजू तो मंजू थी, तड़पाने में एक्सपर्ट।

कुछ ही पल में उसने सुपाड़े को आजाद कर दिया।

कुतुबमीनार की तरह मेरा खम्भा खड़ा था।

मंजू की अनुभवी , खेली खायी जीभ ने ऊपर से नीचे तक लपड़ लपड़ मेरे मस्ताये बित्ते भर के तन्नाये लंड को चाटना शुरू कर दिया।

और नीचे पहुंच कर किसी नदीदी की तरह , एक झटके में उसने मेरे एक बाल्स को मुंह में गपक लिया और जैसे कोई गुलाबजामुन चूसे।

और उसकी दुष्ट उँगलियों ने मेरे बाल्स और पिछवाड़े के बीच की जगह को स्क्रैच करना शुरू कर दिया। लेकिन सिर्फ शुरआत थी , जल्द ही ऊँगली पिछवाड़े के छेड़ पहुँच गयी और करना शुरू कर दिया।


मैं उचक रहा था मचक रहा था सिसक रहा था।

और उसके बाद मंजू ने वो किया जो मेरी कब से फैंटेसी थी।

टिट फक .

जब मैं होली में घर आया था , और मंजू के गदराये , भरे भरे चोली फाड़ते जोबन को देखा था , तभी से मेरा मन करता था , की कितना मजा आएगा इन मस्त चूंचीयों के बीच लंड डाल कर चोदने में।

गच्चा गच , सटा सट, गच्चा गच , सटा सट।

ब्रा वो पहनती नहीं थी , ब्लाउज भी एक दम टाइट , कसा कसा , झीना , और ऊपर से मुझे देख के उसका आँचल ढलक ही जाता था। होली में खुल के उसके जोबन का मजा मिला , ब्लाउज के ऊपर से भी , ब्लाउज के अंदर से भी। ऐसी मस्त चूंचियां सिर्फ सपने में देखने को मिलती हैं , इतनी बड़ी बड़ी भारी भारी होने के बाद भी , बिना ब्रा के सपोर्ट के भी वो हरदम तनी रहती थीं।


और आज वो खुद ,

मंजू ने मुझे आँख के इशारे से मना किया की मैं हिलूं भी नहीं ,

और फिर अपने दोनों उरोजो के बीच उसने मेरे मोटे बालिश्त भर के खड़े लंड को दबोच लिया।

और लम्बे लंड का फायदा ये था की , उसकी बड़ी बड़ी चूंचियों में दबने पर भी सुपाड़ा पूरी तरह बाहर था।

मंजू ने प्यार से मुझे देखा और जबरदस्त आँख मारी और उसके साथ ही अपने दोनों हाथों से , दोनों उभारों कोपकड़ के मेरे लंड पर , कसर मसर कसर मसर करने लगी।


कुछ देर धीमे धीमे चोदने के बाद , मंजू के हाथों की रफ्तार बढ़ गयी। उसके हाथों में कुहनी तक पहनी हुयी लाल चूड़ियाँ , खन खन कर रही थीं। उसकी 38 डी डी चूंचियों ने इतनी जोर से लंड को भींच रखा था , की लग रहा लंड किसी कुँवारी , किशोरी की अनचुदी गांड में दरेरता, रगड़ता जा रहा है।

और साथ में मंजू के नदीदे होंठ और शरारती जुबान भी मैंदान में आ गए।


वो अपनी लम्बी जुबान निकाल के कभी झट से सुपाड़े को चाट लेती तो कभी जीभ की टिप सुपाड़े के 'पी होल ' में डाल के सुरसुरी करने लगती।

मैं गिनगिना जाता , पगला जाता।

और वो जवाब में कभी अपने नाखुनो से मेरे निपल्स स्क्रैच कर लेती तो , कभी तरजनी की टिप में पिछवाड़े के छेद में पेल देती।

अपनी दोनों गद्दर चूंचियों से मेरे लंड को चोदते , उसके रसीले होंठ मेरे बड़े फूले गुलाबी सुपाड़े को गड़प कर लेते और वो पूरी ताकत से चोदने के साथ चूसने भी लगती।

मैं अपना कंट्रोल खो रहा था। मैं नीचे से ही अपनी कमर उचका उचका के उसकी रसभरी चूंचियों को चोदने लगा।


जैसे विपरीत रति में कोई केलि कला की पारंगत , मेरे ऊपर चढ़ी मुझे चोद रही हो और मैं धक्के का जवाब धक्के से दे रहा होऊं।

१० -१५ मिनट तक जोर जोर से वो मुझे चूंचियों से चोदती रही।

मैं दो तीन बार झड़ने के कगार पर आचुका था लेकिन वो मुझे झड़ने नहीं दे रही थी।

जिन चूंचियों को मैं देखने को , छूने को तड़पता था , आज मेरा जंगबहादुर उसके मजे ले रहा था।

अब सब कुछ भूल कर मंजू अपने गदराये जोबन से मुझे चोद रही थी और मैं कमर उठा उठा के उसकी चूंचियों को चोद रहा था।

और तभी उसने वो किया जो मैं सोच भी नहीं सकता था ,  


एक झटके में उसने अपनी ऊँगली मेरी गांड में पेल दी। पूरी।

और अबकी उसकी ऊँगली किसी और इरादे से घुसी थी।

मंजू भी न उसे पिछवाड़े की एनाटॉमी का पूरा ज्ञान था ,

और यही अंतर होता है एक किशोरी और प्रौढ़ा में।

अखरोट के साइज की प्रोस्ट्रेट ग्लैंड , ब्लैडर के ठीक नीचे होती है। और लिंग के जड़ के एकदम पास। वीर्य का स्त्रोत होने के साथ , यह पुरुष के लिए ' महा आनंद ' का स्रोत भी होती है। जैसे महिलाओं के योनि के अंदर जी प्वाइंट होता है

उसी तरह प्रोस्ट्रेट के पीछे , पी प्वाइंट होता है , चरम सुख का श्रोत। झड़ते समय जो मजा आता है , उससे भी सौ गुना ज्यादा , और देर तक जैसे रुक रुक कर बार बार बादल बरसें बस , वैसे ही।

और उस पी प्वाइंट को छूने का , प्रोस्ट्रेट मसाज का सिर्फ एक ही रास्ता है , गुदा के अंदर से।

सिर्फ एक पतली सी त्वचा की झिल्ली , बीच में होती है। हाँ लोकेशन का सही अंदाज रहना जरूरी है , और ये आनंद एक अनुभवी , खेली खायी , मजे ली हुयी प्रौढ़ा ही दे सकती है।

प्रोस्ट्रेट के लोब्स बहुत संवेदनशील होते हैं। और एक प्रौढ़ा , उसे गुदा की दीवाल से छू कर , सहला कर , दबा कर , रगड़ कर तरह तरह की आनंद तरंग की लहर पैदा कर सकता है। और इसके साथ ही गुदा की दीवालों पर भी असंख्य नर्व एंडिंग्स होती है जो मजे का संचार करती है। और साथ में लिंग की जड़ भी वहीँ होती है।

तीनो का मिलाजुला आनंद अद्भुत होता है। शब्दातीत।





और मंजू से बढ़कर मजे देने वाली कौन हो सकती थी।

उसकी मंझली ऊँगली मेरी गांड में धंसी थी।

मेरा लंड उसकी चूंचियों के बीच दबा था लेकिन चूंची चुदाई की रफ्तार उसने थोड़ी हलकी कर दी थी।

कुछ देर तक मंजू की उंगली मेरी गांड में घूमती टहलती रही जैसे कुछ ढूंढ रही हो। उसने ऊँगली को थोड़ा ऊपर की ओर बेंट कर रखा था और हलके हल्केदबा रही थी।

मिल गया उसे 'वो ' .

गांड के करीब दो इंच अंदर , अखरोट के आकार का , बहुत हलका सा उभरा और उसने बहुत धीरे से दबाया।


मस्ती से मेरी सिसकी निकल गयी।

वो रुक गयी।

उसने अपनी मस्त भारी भारी चूंचियों से चुदाई की रफ्तार तेज की और उसी ताल पे उसकी उंगली भी गांड में वहीँ 'उसे 'दबाने लगी। पहले हलके हलके फिर जोर जोर से।

मजे की जो संगीत सरिता झर रही थी , उसके आगे मैने बस सरेंडर कर दिया।

कभी उसकी ऊँगली अंदर खुरच देती , तो कभी रगड़ देती।
साथ में उसके होंठ जोरजोर से मेरे सुपाड़े को चाट रहे थे , चूस रहे थे।

मैं जब झड़ने के कगार पर पहुँच जाता तो जोर से पीछे से ' उसे ' दबा कर मेरा झड़ना रोक देती।


मैं मजे से तड़प रहा था , लेकिन अब रुकना मुश्किल हो रहा था।

मंजू को भी मालूम था और उसने अब आधे से ज्यादा लंड अपने मुंह में ले लिया।

चूंचियों की मांसल सुरंग में लंड तेजी से रगड़ते , दरेरते अंदर जा रहा था और साथ में ही अब बिना रुके मंजू की ऊँगली मेरे गांड में ' वहां ' रगड़ रही थी , खुरच रही थी , टैप कर रही थी , दबा रही थी।


मैं झड़ने लगा , बिना रुके


एक बार , दो बार तीन बार ,

मंजू की उँगलियों के हाथ में जैसे कोई जादू की बटन हो।

पहले तो सब कुछ उसके प्यासे मुंह ने घोंट लिया और मुझे दिखा के वो सब घोंट गयी।

लेकिन मेरे लंड से तो जैसे सावन भादों की दूधिया झड़ी बरस रही थी।

मंजू ने फिर एक पिचकारी की तरह उसे अपनी रस की कटोरियों की ओर किया और थोड़ी ही देर में उसके गोरे गोरे जोबन , दूधिया , थक्केदार गाढ़ी मलाई से ढक गए थे।

मैं निढाल पड़ा था , थक कर जैसे किसी ने सारा रस निचोड़ लिया हो।

और जंगबहादुर भी।

लेकिन मैं आधी खुली आँखों से मंजू को देख रहा था।

वो भी आके मेरे बगल में लेट गयी , और मुझे अपनी ओर देख के मुस्कराने लगी।

मुझे दिखाते हुए उसने दो उँगलियों से मेरी सारी मलाई अपनी चूंचियों पर मल ली और दो थक्के , दोनों निपल पर लगा लिए।

मंजू ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर प्यार से लगायी और मैंने चाट लिया।

मुड़ कर मैंने मंजू को अपनी बाँहो में भर लिया , जोर से भींच लिया।

और मुझ से भी जोर से मंजू ने मुझे अपनी बाँहो में भींच लिया।

कब तक हम दोनों ऐसे पड़े रहे पता नहीं। 

बाहर मेरे आँगन में झांकती आम के पेड़ों की डालियों से चाँद नीचे उतर रहा था।
रात की कालिमा कम होकर धुंधलके में बदल रही थी।

प्रत्युषा , के छोटे छोटे कदमो की पदचाप सुनाई दे रही थी , और तब तक अचानक लाइट आ गयी।

और हम दोनों ने आँखे खोल दी।

और साथ मुस्करा दिए।

मंजू ने अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ के अपने इरादों का संकेत दे दिया।
जंगबहादुर एक बार फिर कुनमुनाने लगे थे।
और अबकी पहल मैंने की।

जोर से मैंने मंजू को बाँहों में भींच लिया। मेरा एक हाथ उसकी केले के पत्ते की तरह चिकनी पीठ पर था , और दूसरा उसके भारी भारी नितम्बो पर।

हमारे होंठ आपस में उलझ गए थे , मेरी चौड़ी छाती उसके गदराये जोबन को दबा , कुचल रही थी।

रात की धुंधलाती कालिख अभी भी हमें लपेटे थी।

सुबह होने में अभी देर थी ,

और भाभी साढ़े आठ के पहले नीचे उतरेंगी नहीं , ये हम दोनों को मालूम था।

मेरा हाथ उसकी पीठ को सहला रहा था , उसे अपनी ओर खींच रहा था ,और दूसरा हाथ , नितम्बो पर कभी भींचता , कभी दबोचता। कभी उसकी दरारों के बीच ऊँगली घुमाता , टहलाता।

मंजू ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर कोपकड़ के अपनी ओर खींच लिया। और अब फिर हमला उसकी ओर से था।

उसकी जीभ मेरे मुंह के अंदर घुस गयी थी और मेरे मुंह के हर कोने में घूम टहल रही थी।

और मेरे मुंह ने उसकी जीभ को जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया।

मंजू के पैर मेरे ऊपर चढ़े हुए थे। उसकीफैली खुली मखमली जांघे मेरी जांघो को रगड़ रही थी , बुला रही थी , चैलेन्ज दे रही थी , हो जाए फिर।
उसकी मुनिया मेरे अब पूरी तरह जागे जंगबहादुर से गले मिल रही थी रगड़ रही थी।


बात कुछ और आगे बढे उसके पहले , मंजू ने मुझे उठँगे बैठा दिया और दूध का ग्लास एक बार फिरमेरे होंठों पे , करीब आधा बचा था पूरा खाली होने के बाद ही उसने हटाया। और जीभ निकाल के मेरे होंठों में लगी मलाई को साफ किया।

पहले उसने बत्ती बंद की और फिर हलके धक्के से मुझे वापस पलंग पर धकेल कर लिटा दिया।

मंजू के होंठ एक बार मेरे होंठों पर चिपके थे।लेकिन उसकी बाकी देह मुझसे अलग थी और मैं आँखे बंद किये पीठ के बल लेटा था।


और चुम्बन यात्रा फिर शूरु हो गयी , मेरे होंठों से पहले ठुड्डी , फिर गले की गहराई और सीने पे आके ठहर गयी। 

और चुम्बन यात्रा फिर शूरु हो गयी , मेरे होंठों से पहले ठुड्डी , फिर गले की गहराई और सीने पे आके ठहर गयी।


ढेर सारे चुम्बन मेरी छाती पर बरसे।

फिर उसकी जुबान मेरे निपल के चारों ओर चक्कर काटने शुरू कर दिए , जैसे नयी जवान होती लड़की के घर के चारो ओर मुहल्ले के लड़के चक्कर काटना शुरू कर देते हैं।

और फिर अचानक बाज की तरह झपट कर उसके होंठों ने निपल को कैद कर लिया.


कुछ देर तक मंजू चुभलाती , चूसती रही , फिर उसकी जीभ भी मैदान में आ गयी। निपल फ्लिक करने लगी।
साथ में दूसरे निपल को उसकी शैतान उंगलियापुल कर रही थीं।

और अचानक , उसके दाँतो ने एक निप्स को बाइट कर लिया।

मेरी जोर की चीख निकल पड़ी।

हंस के उसने दूसरे निपल को भी नाखून से स्क्रेच कर लिया। जोर से।

मेरी दुबारा चीख निकल पड़ी। बहोत जोर से।

और उसके होंठ , मेरे निपल छोड़ नीचे की ओर उतर पड़े।

थोड़ी देर मेरी नाभि से छेड़ खानी के बाद , अब जंगबहादुर का नंबर था , जो मस्ती से पागल हो रहे थे।

लेकिन मंजू भी न , उसकी जीभ ने क़ुतुब मीनार की तरह खड़े , जंगबहादुर की बस परिक्रमा की , उसके बेस को चूमा चाटा और फिर सीधे बाल्स को सक करने लगी।


जोश के मारे मैं उठने लगा , लेकिन धक्का मार के उसने फिर मुझे लिटा दिया।

और जोर जोर से जांघ के ऊपरी हिस्से पे चूमने लगी।

मैं गिनगिना रहा था , सिसक रहा था।

मंजू को दया आगयी लेकिन बस थोड़ी सी।

वो मेरे ऊपर आ गयी , अधखड़ी सी। उसकी झान्टो से थोड़ी छुपी , थोड़ी दिखती बुर मेरे , खुले प्यासे , गुस्साए सुपाड़े से बस इंच भर ऊपर रही होगी।

वो मुझे ललचाती रही , चिढ़ाती रहे।

उसके दोनों हाथ मेरे कंधे पे थे और फिर चूत मुख , मेरे सुपाड़े से रगड़ने लगा।

मुझसे नहीं रहा गया अब और मैं बोल पड़ा , " भौजी दो न , बहुत मन , डाल दो ,ओह्ह्ह "


मुझसे नहीं रहा गया अब और मैं बोल पड़ा , " भौजी दो न , बहुत मन , डाल दो ,ओह्ह्ह "

" अभी लो लाला " और मेरे कंधो को पकड़ के एक करारा धक्का उसने मारा जैसे कोई तगड़ा मर्द किसी , कुँवारी किशोरी की कच्ची सील तोड़ रहा हो।

और पूरा का पूरा सुपाड़ा एक बार में मंजू की बुर में था।

जैसे होंठ सुपाड़ा चूम , चाट रहा हो , उसकी बुर उसी तरह मेंरे सुपाड़े को जोर जोर से भींच रही थी दबा रही थी।

मैंने नीचे से कमर उचकाने की कोशिश की लेकिन उसकी आँखों ने मना कर दिया और धीमे धीमे , सरकती , सहलाती उसकी कसी मखमली बुर ने मेरे बालिश्त भर का लंड अंदर घोंट लिया.
और उस के साथ मंजू के खेल तमाशे भी।

वो झुक कर कभी झट से मुझे चूम लेती और मैं चूमने की कोशिश करता तो अपना चेहरा हटा लेती।

वो कभी मेरे सीने से गदराये जोबन रगड़ देती और जो मैं अपने हाथों से उसके रसीले जोबन को पकड़ने की कोशिश करती तो वो उठ कर हाथों की पहुँच से दूर निकल जाती।

वो ऊपर
मैं नीचे

विपरीत रति शुरू हो चुकी थी।

परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रनधीर।

बाजत कटि की किंकनी , मौन रहत मनजीर।


मुझे लगा मंजू , हचक हचक धक्के लगाएगी। मेरा लिंग जड़ तक उसकी योनि में घुसा था।

लेकिन कुछ देर तक तो वो यूँ ही मेरे ऊपर बैठी रही , मेरा पूरा बित्ते भर का लंड अपनी बुर में घुसेड़े ,दबोचे।

फिर सावन के झूले की तरह उसने धीरे धीरे पेंग शुरू की , आगे पीछे , आगे पीछे।

बिना एक सूत भी ऊपर नीचे हुए , और धीरे धीरे पेंग की रफ्तार बढ़ती गयी।

और उसके बाद जो हुआ , बस पूछिये मत।

जैसे कोई अपनी कुंडली में जकड ले बस , मंजू की बुर ने मेरे लंड को उसके बेस पर जोर से कसना , सिकोड़ना शुरू किया और धीरे धीरे एक लहर की तरह , पहले मेरा सुपाड़ा , फिर और ऊपर और अंत में लंड की जड़ तक , उस जकड़न में फँस गए। वो जोर जोर से दबा रही थी , निचोड़ रही थी। एक पल के लिए ढीला करती और फिर उसके बुर की कसी कसी मांसपेशियां , मेरे लंड को मरोड़ना शुरू कर देती।

और जब वो रुकी तो फिर धक्के शुरू हो गए।

मंजू , आलमोस्ट सुपाड़े तक लंड बाहर निकाल लेती , मेरी कमर को पकड़ के फिर वो जोरदार धक्का मारती की कोई मर्द भी क्या मारेगा , और झटके में लंड अंदर।

अब मैं भी उसका साथ दे रहा था , जैसे ही वो अपनी कमरिया ऊपर करती , जोर से चूतड़ उठा के , सटाक से मैं लंड मंजू की बुर में पेल देता।

और जब मैं कमर नीची करता तो धक्का लगाती।

बीच बीच में कमर फिरकी की तरह वो घुमाती और उसकी बुर , जैसे कोई नवेली जोबन की मदमाती , ग्वालन दही मथे , मेरे लंड की मथानी को घुमाती , दबोचती।

साथ में मेरे हाथ अब खुल केउसके जोबन दबा रहे थे।

मंजू के जोबन का मैं हरदम से दीवाना था।

गेंहुआ रंग , न ज्यादा गोरा , न सांवला। गठी हुयी देह , कसी कसी पिंडलियाँ , दीर्घ नितम्बा , हरदम कसमसाते और चोली फाड़ जोबन , देख कर हाथ में खुजली मचती।
कभी मैं कस के उसकी मस्त चूंची दबाता , मसलता , तो कभी निपल पिंच कर देता।

और साथ में धक्के पे धक्का ,


मेरी और उसकी आँखों में कुछ बातें हुईं , कुछ करार हुआ और मैंने जोर से अपने पैर उसके पीठ पे बांधे और मंजू ने अपने हाथ मेरी कमर में।
पल भर में हम दोनों ने पलटा खाया और ,


अब गाडी नाव पर थी।

मैं ऊपर और वो नीचे।


लंड एक सूत भी बाहर नहीं हुआ।

और फिर क्या कोई धुनिया रुई धुनेगा।


मैंने सारे तकिये , मंजू की गांड के नीचे लगाये , उसे दुहरा किया , उसकी लम्बी टाँगे मोड़ कर।

और फिर सटासट सटासट , गपागप गपागप ,

सटासट सटासट , गपागप गपागप ,


कुछ देर में मंजू ने भी धक्के का जवाब धक्के से देना शुरू कर दिया।

दोनो ओर बराबर के पहलवान थे।

जबरदस्त रगड़ा रगड़ी , हचक के चुदाई।

और भोर की ललाई की पहली किरन , जब अमराई से झाँक रही थी।

हम दोनों एक साथ झड़े , झड़ते ही रहे , सावन भादों की झड़ी की तरह।

और फिर करवट हो एक दूसरे की बाँहो में वैसे ही सो गए।

भोर सबको जगाती है।

उसे मालुम था की मैं कितना जगा हूँ , थका हूँ।

और वो मुझे थपकी दे के सुला रही थी।

गहरी नींद , खूब गहरी नींद सोया मैं।
 
 
 
 
 

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