Tuesday, March 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--135

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--135               




आधा बनारस जग रहा था , उसे सुलाने का।

मैंने दूबे भाभी को फोन किया। और जब ये बताया की रीत ठीक है , और करन भी उसके पास है तो एक गहरी साँस ली उन्होंने और मुझे बहुत असीसा।

गूंजा , चंदा भाभी , सब जगे बैठे थे।

दूबे भाभी ने मुझसे कहा की मैं सो जाऊं , और वो भी अब सोने जा रही हैं।

फेलू दा और कार्लोस , शतरंज की चौदहवीं बाजी खेल रहे थे , और अब डी बी ( धुरंधर भाटवडेकर ) भी वहां आ गए थे।

और उन तीनो को मैंने पूरी बात बताई।

बिना किसी क़तर ब्योंत के।

और उन लोगो ने भी उस के बाद शतरंज की बिसात उठा दी और अपने अपने घर चल दिए।


एन पी भी परेशान था , उसे भी मैंने सब बात बताई। वो पकड़ धकड़ आपरेशन में लगा हुआ था लेकिन मन उसका चिंतित था। उसे भी थोड़ा सुकून हुआ।


जब सारे फोन खत्म हुए , मैंने कंप्यूटर क्लॉक पर नजर डाली।



३. ४५।




मैंने एक बार फिर मेल ,मेसेज चेक किये। मेरे हैकर फ्रेंड्स के कुछ मेसेज थे।

क्लाउड सरवर से मैने लॉग आफ किया। एक एक करके सारे कंप्यूटर बंद किये और सबको एक मेसेज कर दिया की मैं सोने जा रहा हूँ। अगले सात घंटों तक आफ लाइन रहूँगा।

फोन साइलेंट मोड पर किया और कुर्सी पर निढाल लेट गया।


नींद आँखों से कोसों दुर थी।

बार बार रीत का चेहरा ध्यान में अ रहा था , डांस करती , होली खेलती , मुझे चिढ़ाती , छेड़ती , और हॉस्पिटल के बेड पर लेती सफेद चेहरा , पाइपें लगी


कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

मैंने शरीर ढीला छोड़ दिया था। 

हम भोर के दिए हैं ,


आज पूरा आपरेशन खतम हो चूका था , बनारस , बड़ौदा , बॉम्बे , हर जगह रीत ,

अस्पताल के बिस्तर पर बेहोश लेटी रीत।

दिमाग , मन , तन सब ने काम करना बंद कर दिया था। मैं थक कर चूर हो गया था। इतने दिनों का टेंशन , दबाव् , थकान सब एक साथ , शरीर पर मन पर आ गए थे।


बस मैं सांस जैसे ले रहा होऊं। कुर्सी से उठकर बिस्तर पर जाने की न हिम्मत थी , न इच्छा , न ताकत।

पास के एक बैंक के चौकीदार ने घण्टा बजाया, टन , टन ,टन टन।

चार बज चुके थे।

और घंटे की आखिरी आवाज के साथ बत्ती चली गयी।


पावर कट , इस शहर के लिए कोई अनोखी चीज नहीं थी।

कुछ पल मैं कुर्सी पर उसी तरह बैठा रहा , आँखे आधी बंद आधी खुली।

लेकिन तभी मैंने हलकी ,बहुत हलकी पदचाप की आवाज सुनी।

और आँखे खुल गयीं।

हवा के झटके से दरवाजा थोड़ा सा खुल गया था।

और अधखुले दरवाजे से हलकी बहुत हलकी , एक रौशनी की लौ दिख रही थी। चलती फिरती। और जैसे किसी ने हथेली से उसे छुपा रखा हो।

मेरे थके शरीर ,दिमाग ने कुछ भी रिएक्ट करने से इंकार कर दिया।


मैंने आँख फिर बंद कर ली , लेकिन जब आँख खुली , तो वो लौ दरवाजे से थोड़ी दूर पर थी।

कोई था।

लबादा सा ओढ़े , चेहरा ढंका। वैसे भी उस घटाटोप अँधेरे में कुछ दिखना मुश्किल था।

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

मेरे थके दिमाग ने साथ देना बंद कर दिया था।


जो होना है हो जाय।

मैंने फिर आँखे भींच ली।

पदचाप की आवाज थोड़ी तेज हो गयी , लेकिन मैं आँखे भींचे रहा।

और तभी मेरी गरदन पर कुछ उँगलियों का अहसास हुआ


मंजू थी।

भाभी रात में दो बजे के करीब पड़ोस में रतजगे से वापिस आ गयी थी और ऊपर चली गयी थीं। अब उनके सुबह आठ बजे से पहले नीचे उतरने का सवाल नहीं था , ' उधार ' चुकता करना था, भैया का।

मंजू ने मेरे कमरे में बत्ती जलती देखी , तो उसे लगा की मैं काम में बीजी हूँ , दरवाजा भी खुला था मेरे कमरे का।

उसके पहले भी एक बार वो देख करचली गयी थी।

आज घर में नीचे कोई था भी नहीं , गुड्डी रंजी के साथ थी , और शीला भाभी चली गयीं थीं।

मंजू पांच साढ़े पांच बजे आती थी , बरतन और बाकी सब काम निपटाने।

चार बजे जब बत्ती चली गयी , तो वो मोमबत्ती जलाकर मेरे कमरे की और आई।

हवा बहुत तेज चल रही थी , उसने अपने आँचल की आड़ में मोमबत्ती को कर लिया था। इसलिए बस चलती फिरती लौ ही दिख रही थी।


मैं कुर्सी पर बहुत थका निढाल पड़ा था। आँखे बंद , शरीर ढीला। इतने दिनों का टेंशन अब खत्म हुआ था।


मंजू मुझे पकड़ के कुर्सी से ,आलमोस्ट उठा के बिस्तर पे ले आई और लिटा दिया। फिर टी शर्ट बनियान भी उतार दी , सिर्फ बारमुड़ा छोड़ा।

कुछ देर बाद वो लौटी तो एक छोटी सी कटोरी में तेल गरम कर ले आई थी और एक ग्लास में गाढ़ा दूध।
 




मैं बस हलकी हलकी आँखे खोल कर देख रहा था। और मेरे सामने उन्होंने अपनी साडी उतार दी और मेरे बरमूडा के ऊपर से लपेट के बरमूडा नीचे खिंच दिया , और बोलीं लपेट लो लुंगी की तरह वरना तुम्हारा , हॉफ पैंट खराब हो जाएगा।


मैं अभी भी थकान में डूबा था।
तेल में कुछ पड़ा भी था , जिसकी महक मेरी नाक में भर रही थी।

" लाला , पलट जाओ , पेट के बल ' हलके से वो बोलीं और खुद मुझे पेट के बल कर दिया।

मंजू भाभी की साडी तो मैंने लपेट ली थी , वो सिर्फ पेटीकोट में थी और वो भी सरक कर उनकी चिकनी , भरी भरी गदराई जाँघों के ऊपरी हिस्से तक सरक गया था।

उन्होंने मेरे पैर का तलवा अपनी मांसल रेशमी जांघ के ऊपर रखा , और पहले अंगूठे , फिर बारी बारी से बाकी उँगलियों को जोर जोर से खींचा। फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठों से जोर जोर एक पैर के तलवे के किनारे किनारे ऊपर से नीचे तक वो बार बार दबाने लगी। मुझे लगा जैसे सारी थकान मंजू की उँगलियों से होके निकलती जा रही थी।
और फिर यही दुसरे पैर के तलवे के साथ। सारी थकान धीरे धीरे कर पिघल रही थी। लेकिन तभी मंजू ने ऐसा कुछ किया , की एक नया एक नया जोश , नयी ऊर्जा मेरे शरीर में दौड़ने लगी। मंजू ने दोनों पैरों के तलवे के सेंटर के थोड़ा उपर , दोनों मसल्स पैड के बीच में तीस सेकेण्ड तक एक साथ जोर से दबाया , फिर दो बार क्लॉक वाइज और दो बार एंटी क्लॉक वाइज अंगूठे को पूरी ताकत से दबाते हुए घुमाया। और उसके बाद दोनों हाथ मेरे पैर के टखनों तक पहुँच गए और वहां भी पहले हल्के हलके सहलाते हुए , टखने के पीछे की ओर ऐंकल बोन के नीचे एक झटके से जोर से दबा दिया।

मेरी आँखे खुल गयी। यहाँ तक की जंगबहादुर भी सुगबुगाने लगे। मैंने मुड कर , मुस्करा कर मंजू को देखा।

वो भी मुस्कराई लेकिन इशारा किया , की मैं आँखे बंद कर लूँ और मैंने आँखे बंद कर ली।

उसने कटोरी का गुनगुना तेल अपने हाथ में लगाया। और मेरे पैरों को अपनी जाँघों पे एक बार फिर से सेट किया।

अबकी पेटीकोट थोड़ा ऊपर और सरक गया था और मेरे पैर करीब करीब खुली जाँघों संधिस्थल पर पहुँच गए थे।

पहले पैर फिर टखनों पर उसकी तेल चिकनी उँगलियों ने डीप , हार्ड मसाज करना शुरू कर दिया। बीच बीच में एक एक मसल्स पकड़ कर वो पुल करती तो मेरी हलकी चीख निकल जाती , लेकिन वो रुकने वाली नहीं थी। उसने हलके हलके पहले अपने हाथों से मुक्को कीतरह टखनों पर ,और जाँघों के निचले हिस्से परमारा , दबाया।

मेरी थकान एकदम खत्म हो गयी थी।

लेकिन मंजू का काम अभी खतम नहीं हुआ था। उसने मुझे कमर पकड़ कर थोड़ा उठाया , उसकी साडी जो मैंने लुंगी की तरह पहन रखी थी उसने उसे ऊपर कर दिया और अब बस वो एक पतले छल्ले की तरह मेरे कमर में फँसी थी।

मेरे नितम्ब पूरी तरह नंगे थे।


और मंजू ने भी पोजीशन बदल दी थी.

उसका पेटीकोट भी अब बस एक छल्ले की तरह , कमर पे सिमट गया था।

वो मेरे घुटने से थोड़ा और ऊपर आ कर , मेरे दोनों ओर अपनी टाँगे फैलाके बैठ गयी थी , और झुकी हुयी थी। 

तेल मालिश



मोमबत्ती की हलकी झिलमिलाती रौशनी में , उसके 38 डी डी चोली फाड़ जोबन साफ साफ झलक रहे थे।
,
पहले नितम्ब के निचले हिस्से पे जबरदस्त मालिश की , सीधे नितम्बो पे , जैसे कोई ख़ास प्वाइंट हो वहां , दो दो उँगलियों से बार बार दबाया और उसका असर भी हुआ जोरदार. मेरे पूरे देह में में जोश भर गया , एकदम सनसनी सी , और जंग बहादुर कुनमुनाने लगे।


लेकिन मंजू कहाँ रुकने वाली थी , उसने दोनों हथेलियों पर तेल मला और फिर सीधे मेरे नितम्बों पे , कसर मसर जोर जोर से तेल मालिश शुरू होगयी। थकान का कहीं पता नहीं रहा ,

और उसके बाद मंजू ने जो किया , उससे रही सही तन्द्रा भी खत्म हो गयी।

उसके तगड़े हाथ सीधे मेरे शोल्डर मसल्स पे थे , और वो जोर से डीप मसाज कर रही थी। कुछ तेल का जादू कुछ उसकी उँगलियों का कमाल , सारी थकान गायब।

और फिर वो मेरी बैक बोन के दोनों और कभी मसाज करती , कभी हाथ की मुक्की बना हलके हलके मारती , एक एक मस्लस पुलकरती।

लेकिन उन्होंने खेल तमाशा तब शुरू किया , जब उनकी उंगलिया मेरे बैक के बेस पे पहुंची। फिर तो , दोनों हाथों से एक साथ , बाकी हाथ सिर्फ सपोर्ट दे रहे थे और दोनों अंगूठे से वो एक साथ मूलाधार चक्र के स्थान पर दबा रही थी।

और जंगबहादुर एकदम चैतन्य हो गए।

मुस्कराते हुए मंजू ने मेरे सर के नीचे की तकिया मेरे पेट के नीचे लगा दी , जिससे जंगबहादुर को अब सांस लेने की कुछ जगह मिल गयी।

मंजू ने एकबार फिर दोनों हाथों में तेल लगाया और मेरे दोनों उठे हुए नितम्बो की तेल मालिश शूरु करदी।



कभी वह उन्हें जोरजोर से दबाती , कभी पिंच कर लेती तो कभी बस सिर्फ हथेलियों से सहलाती , और फिर अचानक उसने मेरे दोनों नितम्बो को , अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से फैला दिया। मैं कुछ बोलता , उसके पहले ही मुझे छेड़ती वो हंस के बोली ,

" अरे लाला , डरो मत। गांड नहीं मारूंगी। बचा के रखना इसको। ये काम तो ससुराल में तुम्हारी सास,और सलहज करेंगी। लेकिन गांड तुम्हारी है मस्त , जैसी तेरी बहना ,रंजी की कसी कसी चूत है , एकदम वैसी। मस्त माल। "




फिर उसने एक अंगूठे और तरजनी से , पिछवाड़े के छेद को खोल के रखा और दूसरे हाथ से कटोरी का तेल बूँद बूँद , बैक बोन के निचले हिस्से पर , दोनों नितम्बो की दरारों के बीच टपकाना शुरू किया।

बहता हुआ वो पिछवाड़े की दरार तक पहुंचा , और मंजू ने अपनी तरजनी से वो तेल मेरी गांड की दरार में मलना शुरू किया।

मस्ती से मेरी आँखे बंद हो रही थी।  

और मंजू ने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ ,मुझे थोड़ा और ऊपर उठाया। दोनों नितम्ब हवा में हलके से उठे थे। फिर नीचे तकिया एडजस्ट कर , एक हाथ से गांड का छेद फैलाया और दूसरे हाथ से कटोरी से तेल की बूंदे , सीधे अंदर

टप टप टप टप।

गुनगुना , गरमाया तेल सरकता हुआ जैसे अंदर पहुंच रहा था मेरी हालत मस्ती से ख़राब हो रही थी।

और फिर अगले ही पल उसने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरे दोनों चुत्तड पकड़े और कस के उन्हें आपस में भींच दिया और दोनों कोएक दूसरे से रगड़ने लगी।



एक दो बूँद टपक कर तने पूरी तरह खड़े , पगलाए जंगबहादुर पर भी गिरा , और मंजू ने इतनी देर में पहली बार अपने हाथ से पकड़ का उसे हलके से भींच दिया।

मुझे बटन खुलने की आवाज सुनाई पड़ी।

" लाला , तेरे सर में लग रहा होगा न (सर की तकिया पेट के नीचे थी ) , लो ये लगा लो। "

मंजू ने बोला और उसका ब्लाउज मेंरे सर के नीचे था।

उसके ब्रा विहीन ब्लाउज ने छलकते भरे भरे , कड़े कड़े दूध के मटकों को देखने के लिए तो मैं हमेशा बैचैन रहता था , लेकिन मैंने जैसे ही आँखे मोड़ी।

आँखे बंद , वो बोली।

और मैंने आँखे बंद कर ली।


अगले ही पल मेरा बाड़ी मसाज शुरू हो गया , बल्कि बूब्स मसाज।

और मैं पागल हो रहा था।

मंजू की मस्त रसीली गदराई चूंचियां , जिन्हे ब्लाउज के अंदर बंद देख कर मेरी हालत ख़राब हो जाती थी , वो आज एक दम मुक्त , आजाद ,…

और सबसे पहले उसके निपल्स ने , सिर्फ निपल्स ने मेरे पीठ को छुआ , सहलाया।

और मैं सिहर गया , गनगना गया।

फिर उसके 38 डी डी साइज के उरोज मेरी पीठ को सहलाते मसलते , रगड़ते बहुत हलके हलके नीचे की और सरक रहे थे।

सिर्फ उरोज , उसकी देह का कोई और हिस्सा मेरी देह को नहीं छू रहा था।

हाँ उसके हाथ जोर जोर से मेरे चूतड़ मसल रहे थे और वो अपनी तेल लगी ऊँगली,ऊपर नीचे गांड की दरार में रगड़ रही थी , चिढ़ा रही।

" लाला बचा के रखे हो न , घबड़ाओ मत। ससुराल में तुम्हारी बहनो के साथ तुम्हारी भी सील टूटेगी , तुम्हारी सास के हाथ , और जहाँ दो चार बार ससुराल गए न , फिर तो उतनी चौड़ी हो जायेगी , जीतनी चार बच्चो की माँ का भोंसड़ा नहीं होता। "

और ये बोलते हुए गच्च से उसने तरजनी की टिप अंदर पेल दी।

कभी गोल गोल घुमाती , तो कभी अंदर बाहर।

और कुछ देर में मेरे नितम्बो पर वो अपनी चूंचियां रगड़ रही थी। कभी हलके से सहलाती तो कभी जोर से रगड़ देती।

यही नहीं , गांड के छेद पर ऊँगली की जगह , उसकी मुंह ने ले ली थी।

पहले तो उसने हलके से लिककिया , चूमा , फिर दोनों होठो को गांड के छेद पर लगा कर वो जोर जोर से सक करने लगी। और साथ में उसकी लम्बी रसीली जुबान गांड को नीचे से ऊपर तक चाट रही थी।

दोनों हाथों से उसने चूतड़ फैलाकर गांड में थोड़ी जीभ की टिप अंदर भी घुसाई।

मेरी बस जान नहीं निकल रही थी।

मैंने पढ़ा था , ब्ल्यू फिल्मों में ऐस लिकिंग , देखी भी थी पर ,… ये मजा आएगा सोच नहीं सकता था। लंड चुसाई से भी ज्यादा।
मंजू भाभी के अंदर कौन कौन से गुन छिपे होंगे मैं सोच नहीं सकता था।

दोनों हाथों से उन्होंने चूतड़ को फैला रखा था और अब जुबान उनकी , किसी छोटे लेकिन शरारती लंड की तरह , अंदर बाहर हो रही थी। और साथ में गोल गोल गांड के अंदर घूम रही थी।

मस्ती से मैं कमर उचका रहा था। पेट के बल लेटा , इससे ज्यादा कुछ करना भी मुश्किल था।

मंजू को मेरे जंगबहादुर की दशा पर कुछ दया आई और उस ने एक मुट्ठी में कस के उसे भींच लिया और एक झटके में खच्च से चमड़ा नीचे खींच लिया जैसे बेताब दुलहा , दुलहन का घूँघट खोल दे। और पहाड़ी आलू ऐसा बड़ा गुस्साया , सुपाड़ा बाहर निकल आया।


पल भर के लिए मंजू का ध्यान उधर ही हो गया। वो नाखून से मखमली सुपाड़े को खरोंचने लगी , और अंगूठे को 'पी हॉल ' पर रगड़ रही थीं।


और उसके बाद मंजू भौजी ने जो किया वो मैं सोच भी नहीं सकता था। सिर्फ कहानियों में कभी सुना था , वो भी डायलॉग में।
 







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