Sunday, January 18, 2015

FUN-MAZA-MASTI एक कली की कहानी--1

FUN-MAZA-MASTI

 एक कली की कहानी--1

 कमल एक बहुत ही नार्मल सा लड़का था जिसे बस एक चीज़ में ही इंटरेस्ट था और वो था काम यानी के सेक्स. अभी तक वो स्ट्रगल ही कर रहा था, उसकी अभी तक नौकरी नहीं लगी थी और न ही उसने परमानेंटली यह dicide ही किया था की उसे अंतिमतः क्या करना है. sex से उसका रिश्ता तो बहुत पुराना था लेकिन अगम्यागम काम संबंधों के बारे में उसे पता इधर ही कुछ सालों से चला था. इन्टरनेट से उसने ढेर सारी कहानिया पढ़ीं. और दिन ब दिन उसकी दिलचस्पी काम और वो भी अपनों के साथ करने में, बढ़ रही थी. यह जो कहानी है वो उसी वक़्त की है जब वो एकदम अधैर्यवान हो गया था और उसने कामुकता और संतुष्टि की एक नयी इबारत ही लिख दी फिर. यही कहानी मैं आज आपलोगों को सुनाने जा रहा हूँ. तो ध्यान से सुनते रहिये.
कहते हैं की गांजा पी लेने से sex करने का बहुत मन करने लगता है और लंड हर वक़्त बस खड़ा ही रहता है. कमल को भी किसी ने इस मुआ गांजे की लत लगा दी. अब वो दिन रात बस गांजा पीते रहता और अपना लंड खरा किये हुए रहता. साथ में कहानियाँ थीं ही. उसका दिन बड़े मज़े से कट रहा था.

अब आते हैं कहानी और उसकी घटना पे. एक बार हुआ यूँ कि उसकी मौसेरी बहिन रति जो की गाँव में बयाही थी वो आई कमल के घर कुछ दिनों के लिए. वो अपने साथ अपनी XXX साल की बेटी चुचिता को भी साथ में लेते आई. गर्मी के दिन थे और आपको तो पता ही है की लंड को कितनी गर्मी लगती है. यह गर्मी अब कमल से बर्दास्त नहीं हो रही थी और वो जल्दी से जल्दी इस गर्मी को बस दूर करना चाहता था. उसके लिए तीन कुँए तो तुरंत ही उपलब्ध थे- रोसी, रति और......


रति, जैसा नाम वैसी ही काया, उसके रूप की क्या खूब थी माया. अरे मत पूछो मेरे यार, उसका जो हुस्न था न क्या मिसाल दूं उसकी, बस मस्त था, जबरदस्त था और है भी आज तक वो वैसे के वैसे. मेरे जिंदगी का एक ऐसा पन्ना जो खुद एक किताब के बराबर था. वो मेरी मौसेरी बहिन थी. बचपन में जब भी कभी हम मिलते थे उसके घर पे, मेरे घर पे, मामा के घर पे या मौसी के घर पे तो बस बवाल मच जाता था. हमारी जोड़ी क्या खूब जोड़ी थी -- वो बड़ी मैं छोटा, उसकी चूचियां बड़ी, मेरा बौल बड़ा, उसकी चूत गहरी मेरा लंड लम्बा एकदम तुम्बु का खम्भा,. मतलब हम दोनों थे बस एक दुसरे के भाई बहिन होते हुए भी. जब भी हम खेलते लगता जैसे वही खेल हम खेल रहे हों, भले चुदाई नहीं करते थे हम लेकिन जो करते थे वो चुदाई से कम न हुआ करती थी गुरु. लुका छिपी के खेल में जब हम साथ छिपते थे तो जैसे हम अर्धनारीश्वर बन जाते थे, बेल की तरह एक दुसरे से लिपटे पाए जाते थे. यह उस वक़्त की बात है जब हम सातवीं में पढ़ते थे और वो आठवीं में. उस वक़्त उसके अन्दर एक मादा का जन्म हो रहा था और मेरे अन्दर एक पुरुष का. एकदम सर्वोत्तम जोड़, बेजोड़ मेल.. हमारी जननांगों में वो शुरू शुरू वाली थिरकन, एक अजीब सी कम्पन बस शुरू ही हुई थी. एक बार की बात है. हम वही लुका छिपी खेल रहे थे. मैं और रति साथ में छिपे थे. कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया था और कमरे में पूरी तरह से अँधेरा कर दिया था. अब रति एक कोने में जा के कड़ी हो गयी और उसकी पीठ जो है वो दीवार के अपोजिट थी. मैं भी पीछे से जा के उस से सट के खड़ा हो गया. मेरा लुंड उसके पीछे चिपका हुआ था. लेकिन हुआ कुछ नहीं. फिर अचानक से धराम धराम की बाहर से आवाज़ आने लगी. मैं डर गया साथ में रति भी. और जैसे ही वो थोडा पीछे हुई मेरे से चिपकने के लिए- उसके निम्बू मेरे हाथों में आ गए. बड़ी टाइट और साथ में बहुत सॉफ्ट थी वो निम्बुएँ. मैंने कस के दबा दिया दोनों निम्बुओं को. उसकी तो जैसे चीख ही निकल जाती अगर मैं अपने मुह को उसके मुह तक न ले जाता. उसके कान में बोला की हल्ला मत कर तब जा कर वो कण्ट्रोल में आई. और अब मैं मज़ा ले रहा था उस अजीब सी चीज़ का जो क्या मजेदार चीज़ थी यारों. बॉल की तरह हाथों में ले कर में करामात पे करामात किये जा रहा था और उसके परिणाम स्वरुप मेरा लंड, उसकी चूत और उसके लब, तीनो हरकत में आ गए थे. सी सी सी करती रही वो और मैं दूध दुहता रहा. उस पुच-पुच को दबाने में, रगड़ने में, गारने में और दुहने में इतना आनंद आ रहा था की जैसे मैं बस वही करने के लिए ही हूँ. मेरे हाथ जब उसके निप्पलों से लगे तो वो तो एक कील के माफिक खड़ा हो गया. अब मैं भी कील को जड़ से निकालने पे तुल गया. मैं खूब उसके निप्पलों को ऐंठने लगा, मीसने लगा और रगड़ने लगा. आज भी वो रगड़ न मैं भूला हूँ न ही वो भूली है. लिटरली उसकी घुन्दियों से दूध निकलने लगा था और वो घुन्डियाँ इतनी चिपचिपी और स्लीपेरी हो गयी थी की मेरा हात और मेरी उंगलियाँ खूब स्मूथ तरीके से काम कर रही थीं उसकी घुन्दियों और चुन्चियों पे. और फिर नदी क्या बाढ़ आ गयी गुरु जिसमें मैं और रति डूब गए एक नया जन्म लेने के लिए, एक नए संसार को देखने के लिए जिसके रचईता हम दोनों थे.

बाढ़ के बाद हम दोनों अपनी साँसें संभालते रहे और साथ ही साथ एक दुसरे से चिपके रहे. फिर कुछ मिनटों के बाद मैं उस से अलग हुआ. तब तक जो और दुसरे लोग भी खेल रहे थे वो हमें ढूंढते ढूंढते परेशान हो कर अपने अपने घर वापिस चले गए. इस वक़्त हम दोनों मेरे घर पे थे. इस घटना के बाद एक-दो सालों तक तो फिर ऐसा मौका नहीं नसीब हुआ हमें क्यूँ की हम अपनी पढाई में मशगूल थे और हमारा घर एक दुसरे से दूर था. हम दोनों फिर तब मिले जब उसकी टेंथ बोर्ड के एग्जाम थे. मैं उस दौरान उसके घर पे ही गया हुआ था क्योंकि मेरे एग्जाम जनुअरी में ही ख़त्म हो गए थे इस बार ताकि हमें टेंथ क्लास के लिए ज्यादा समय मिले. उसके घर में बहुत से कमरे थे but मैं और रति तो साथ रहना चाहते थे सो रति ने ही अपने पापा से कहा की कमल उसी के साथ रहेगा जिस से उसके एग्जाम्स में हेल्प हो जाए. अब क्या था- एक तरफ उसके पापा मम्मी चुदाई करते रहते थे और दूसरी ओर हम दोनों प्यार की पींगे बढ़ा रहे थे. दुनिया जहाँ की कोई खबर न थी हमें हम तो बस खुद में खोये थे. रोज़ रात को हम पढने बैठते but थोडा पढ़ते तो थोडा रोमांस भी करते. किसी न किसी बहाने एक दुसरे को छूने की कोशिश करते रहते. एक रात को जब हम पढ़ रहे थे तो बस अचानक से मैंने उसकी उंगलियाँ टच की और पकड़े रहा. फिर उँगलियों की गुथम-गुट होने लगी. वैसे ही धीरे धीरे हमारे शरीर की भी गुत्थम कला शुरू हो गयी. हम इतने जोश में आ गए की बस चुम्बन की परिणिति आ गयी. एक प्यारा सा चुम्बन, एकदम काम रहित स्नेह युक्त. माय गॉड वो क्या रोमांटिक सीन था. वो मेरे ऊपर, हमारी टांगें एक दुसरे से लड़ी हुईं, उसका मुह मेरे मुह पे, उसकी चुंचियां मुझ में धंसी हुईं और मेरा डेविड उसकी रोमा के ठीक नीचे 90 डिग्री के कोण पे. और वो किस्स हो ही गया. हमारा प्यार जो इन कुछ सालों में एक दुसरे की कमी की वजह से प्यासा था वो हरहरा गया, भूखे को स्वादिष्ट आम मिल गया .... लेकिन यहाँ पे डेविड रोमा को किस्स करते करते रह ही गया. न रहता तो सब कुछ वहीँ न हो जाता. बात आगे कैसे बढती. 

हम दोनों कुछ पल को बस वैसे ही किस्स करते रहे लेकिन अस्मूच जैसा कुछ नहीं था. वो तो बस एक सिंपल सा प्यार वाला किस्स था. थोड़ी देर बाद जब हमें स्थिति का आभास हुआ तो हम मुस्कुराने लगे और एक दुसरे से अलग हुए. थोड़ी देर पढाई की फिर सो गए. रति को एग्जाम दिलवाने मैं ही ले के जाता था. उसका सेंटर उसके घर से कोई 30 किलोमीटर दूर था. हम ऑटो से या फिर बस या फिर रेलगाड़ी जो भी मिल जाए उस से चले जाते थे. उस दिन ऑटो में हम जा रहे थे सेंटर. हम दोनों पीछे बैठे थे साथ में. मुझे कुछ हुआ और मैंने उसका लेफ्ट वाला हाथ अपने हाथों में ले लिया. और उसकी उँगलियों से खेलने लगा. वो मुझे घूर घूर कर देख रही थी. फिर मैं उसके हाथ में गुदगुदी करने लगा तो वो हंसने लगी. इसी तरह हम सेंटर न जाने कब पहुँच गए. वो जब एग्जाम देने जा रही थी तो वो मेरे पास आई और उसने मुझे किस्स करने को बोला. मैंने कहा की यहाँ इतने लोग हैं. तो वो मुझे एक जगह ले के गयी जहाँ कोई नहीं था. वो जगह स्कूल के पीछे थी. मैंने उसे उसके फोरहेड पे किस्स किया. और जैसे ही मैं किस्स ख़त्म करने वाला था वैसे ही मुझे उसके लाल लाल होंठ निमंत्रण देने लगे. मुझे ज्यादा तो अनुमान न था फ्रेंच किस्स का लेकिन मैंने अपने लब उसके लबों पे रख ही दिए. उसने मेरी गर्दन में हाथ दाल दिए और मैं उसे कुछ देर तक यों ही किस्स करता रहा और उसके लिप्स को चूसता रहा. पर वो कुछ नहीं कर रही थी वैसा. फिर वो एग्जाम देने गयी. लास्ट वाले दिन हमें कोई ऑटो नहीं मिल रही थी और न ही कोई बस, तो हम रेलगाड़ी से जाने को हुए. जब स्टेशन पर पहुंचे तो वहां पता चला की बस और ऑटो की स्ट्राइक थी इस वजह से सब रेल से ही सफ़र करने वाले थे. इसलिए भीड़ काफी ज्यादा थी. रति और मुझे बहुत डर लगने लगा की कहीं हम इस भीड़ में चंप कर मर न जाएँ. but मैंने हिम्मत न हारी और किसी तरह उसे ले कर के भरी हुई गाडी में चढ़ गया. मैंने उसे भीड़ से बचाने के लिए अपने आगे कर लिया और उसके अगल-बगल अपने हाथ फैला दिए. और वो खुद को सिक्योर फील करने लगी. कुछ सेकंड्स के बाद ट्रेन चलने लगी. और जब ट्रेन ने स्पीड पकड़ी तो वो डब्बा जिस में हम दोनों थे खूब हिछ्कोले खाने लगी. इस वजह से उसके निचे वाले गद्दे मेरे तरफ बार बार आने लगे और मेरी कमर भी उसकी तरफ लपलपाने लगी. इस से हुआ यह की हम दोनों को करंट लगने लगा अपोजिट चार्ज का. मेरा डेविड खड़ा होने लगा और कुछ स्पंदन भी करने लगा. जब मुझ से न रहा गया तो मैंने एक हाथ से ऊपर के एक डंडे को पकड़ा और अपना राईट हैण्ड ले जा कर उसके पेट पे एकदम नाभि के ऊपर रख कर उसे अपने आगे सटा लिया. मेरा डेविड ठीक उसके गद्दों के बीच समा गया और उसकी खाल ऊपर निचे होने लगी. इस वक़्त तक तो रति धीरे धीरे सीस्कारी मारने लगी थी और मैं उसकी नाभि में ऊँगली घुसाने लगा था. स्टेशन आ रहे थे स्टेशन जा रहे थे but लोग उतर नहीं सिर्फ और सिर्फ चढ़ रहे थे क्यूंकि ज्यादातर विद्यार्थी ही थे. और सब के सब मशगूल पढने या कुछ याद करने में थे. इसलिए किसी का ध्यान हमारी तरफ न जा रहा था. मेरा मुह और नाक एकदम रति के सर के पास थे. उसके बालों से मस्त खुशबू आ रही थी जो मुझे पागल कर रही थी. इसी पागलपन में मैंने उसके एक कान को अपने मुह में ले लिया और उसे चूसने, दबाने और काटने लगा. इस से वो रिरियाने लगी और आऊँ आऊँ करने लगी. निचे उसके गद्दे जम्पिंग बॉल की तरह वायब्रेट कर रहे थे और साथ में मेरा डेविड भी. धीरे धीरे और तेज़ी से कभी कभी हम अपने चरम पे पहुँच रहे थे. फिर पहले मैं और फिर वो दोनों वहीँ पे ढेर हो गयी. तब तक हमारा स्टेशन आ गया था. ढेर होने की वजह से मेरी चड्डी और उसकी पैन्टी दोनों गीले हो चुके थे. गाडी से उतरने के तुरंत बाद हम दोनों टॉयलेट में गए और सब कुछ साफ़ सुथरा किया. फिर बाहर आ गए और वो सीधे एग्जाम देने चली गयी.. फिर जब वो एग्जाम दे के आई तो हम खाना खाने गए. सुबह में सब कुछ इस तरीके से हुआ था की हम कुछ भी बात न कर पाए थे. तो अभी अच्छा मौका था बात करने का और एक दुसरे को एक्साइट करने का.  









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