Saturday, January 10, 2015

FUN-MAZA-MASTI बीवी का मायका-14

FUN-MAZA-MASTI

 बीवी का मायका-14


दो मिनिट में शान्ताबाई बाहर आयीं. थोड़ी अपसेट लग रही थीं. "ये क्या चल रहा है भैयाजी? कौन है वो लड़का जो अंदर सोया है? मुए ने लीना बाई की बॉडी और चड्डी भी पहन रखी है लगता है"

मुझे हंसी आ गयी पर किसी तरह से मैंने उसे दबाते हुए कहा "कहां शान्ताबाई? लीना ही तो है. आपने चेहरा नहीं देखा?"

"इतना बड़ा तंबू बना है उसकी चड्डी में और तुम कहते हो लड़की है. मैं सब समझती हूं कि क्या चल रहा है." शान्ताबाई ने कमर पर हाथ रखकर कहा. लीना से छिपाकर मैं कुछ लफ़ड़ा कर रहा हूं, और वो भी एक जवान लड़के के साथ, यह विचार उसे सहन नहीं हो रहा था.

"शांत हो जाओ मेरी प्यारी शान्ताबाई. वो लीना का भाई है, मेरे साथ बंबई घूमने आया है. लीना वहीं है अपने मायके. मेरे को लगा कि तुम अपने आप समझ जाओगी"

वे थोड़ा नरम पड़ीं, फ़िर बोलीं "ऐसे औरतों की अंगिया क्यों पहने है? अजीब लड़का है, वैसे लंड तो अच्छा खासा लगता है, कितनी जम के खड़ा था नींद में. मैंने हाथ लगाया तो जाग गया, फ़िर घबरा गया कि ये कौन औरत अंदर बेडरूम में है"

मैंने उन्हें ललित की फ़ेतिश के बारे में समझाया. वैसे वे होशियार हैं, एक मिनिट में सब समझ गयीं. हंसकर बोलीं "बस इतनी सी बात है ये कुछ हजम नहीं होता भैयाजी. माना उस छोकरे को ये पहनने की आदत है पर इधर आप दोनों अकेले घर में, वो छोकरा सोते वक्त भी वो सब पहने ... ब्रा व्रा ... मस्ती चल रही है लगता है बाई की पीठ पीछे. याने आप को भी लौंडेबाजी का शौक चढ़ ही गया"

"अब शान्ताबाई ... क्या कहूं .... वो इतना सुन्दर छोकरा है और हूबहू लीना जैसा लगता है. ऊपर से उसका ये औरतों के कपड़े पहनने का शौक, अब अगर उसको लीना समझकर मेरा मन डोल जाता है तो बुरा क्या है? और भले लौंडेबाजी हो, अगर दिल आ गया तो बुरा क्या है? आप नहीं करतीं लीना के साथ लौंडीबाजी? साली नहीं है तो साले को साली समझा तो इसमें क्या गैर है?"

इस बात पर शान्ताबाई मुंह पर आंचल रखकर हंसने लगी. फ़िर बोली "भैयाजी, मैं चलती हूं, लगता है मैं फालतू ही आ गयी. आप की रंग रेलियां चलने दो, जब लीना बाई आ जायेगी तो मेरे को बता देना"

"अरे नहीं शान्ताबाई, मुझे आपकी जरूरत है, आपकी मदद के बिना ये काम नहीं होगा, बड़ी नाजुक जगह आकर मामला अटक गया है"

"आप दो जवान मर्द ... आपको मेरी क्या जरूरत होगी भैयाजी"

मैंने धीरे धीरे सब समझाया कि कैसे पिछले चार दिनों में ललित -ललिता के साथ सब तो कर लिया मैंने पर अब तक चोद नहीं पाया उसके घबराने की वजह से. फ़िर बोला "याद है शान्ताबाई, एक दिन आपने कैसी मदद की थी? वेसेलीन नहीं था और लीना जरा ऐसे रूठे चिढ़े मूड में ही थी?"

उस दिन असल में ये हुआ था कि मेरा जम के मूड था लीना की गांड मारने का. शादी के बाद उसने बस एक बार मुझसे मरवाई थी. मैं वैसे हठ नहीं करता पर दो दिन से लीना जैसी टाइट जीन पहनकर घूम रही थी, उसके गोल मटोल चूतड़ एकदम लंड को पागल कर गये थे. अब संयोग ऐसा कि वेसेलीन की बॉटल नहीं मिल रही थी. लीना वैसे भी इस बात से दूर भागती थी, अब तो बहाना मिल गया था. इस बात पर मैं उसे मना रहा था, वो शान्ताबाई ने काम करते करते सुन लिया था. फ़िर उन्होंने मदद की, और उस दिन लीना को दुखा भी कम, और काफ़ी मजा भी आया.

"हां भैयाजी, अच्छी तरह याद है" मुंह चढ़ा कर शान्ताबाई बोली "मैंने ठंडा मख्खन लाकर दिया था फ़्रिज से और फ़िर बाई को अपने ऊपर लेकर सोई थी उसको दिलासा देने को. आप मर्द लोग भी कैसे गांड के पीछे पड़ जाते हैं ये देखकर मेरे को तो बड़ी हैरत होती है. इतनी गरम रसीली रेशमी चूत से क्या आप का मन नहीं भरता?"

"अब कैसे समझाऊं शान्ताबाई, बस समझ लो किसी वजह से दिल जुड़ गये हैं मेरे और ललित के. रही गांड की बात, लीना की मैं नहीं मारता क्या? उतनी ही खूबसूरत ललित की गांड है. आखिर मिठाई तो मिठाई है. और वह भी मिठाई चखाने को एकदम तैयार है, जरा घबरा रहा है बस."

"ठीक है ठीक है भैयाजी, मैं समझ गयी, चलो मैं तैयार कर लूंगी उसको, अब जरा अंदर चलो और उसे समझाओ, मुझे देख कर नींद से जागते ही घबरा गया बेचारा" शान्ताबाई बोली.

मैं उनके साथ अंदर गया. जाते जाते बोली "बस एक घंटा लगेगा मुझे, उस छोकरे को भी फुसला लूंगी और आप के लिये तैयार रखूंगी"


मैं अंदर गया. ललित पलंग पर बैठा था. आधी नींद में था. पर अब अचानक शान्ताबाई के आने से जरा परेशान लग रहा था. मैंने उसके पास बैठ कर कहा "ललिता डार्लिंग - यह है शान्ताबाई, बस जैसे वहां राधाबाई हैं वैसे ही समझ लो." सुनकर ललित जरा आश्वस्त सा होता दिखा.

"फिर ठीक है जीजाजी, नहीं तो क्या धक्का लगा मेरे को - नींद खुली और .... ये बैठी थीं यहां ... मेरा पकड़कर ..."

"अरे मैंने ही उन्हें अंदर भेजा था कि लीना सोई है अंदर. सोचा जरा मजाक कर लूं. वैसे शान्ताबाई बहुत लाड़ दुलार करती हैं लीना दीदी के" मैंने ललित को समझाया.

"तू मत टेन्सन ले बेटे." ललित के बाजू में बैठ कर उसके गालों को सहलाती शान्ताबाई बोलीं. अब तक लगता है वे भी फिदा हो गयी थीं ललित पर. छोकरे की जवानी ही ऐसी थी. "ये तेरे जीजाजी जरा ऐसे ही मजाकिया हैं. अब उठो. दस बजने को आये, तुम लोगों ने नाश्ता भी नहीं किया होगा, मैं बनाती हूं. उसके बाद नहा धो लो. भैयाजी - आप जाकर अपना काम करो, मैं उपमा बनाती हूं. ललित बेटा, जरा मुंह धो लो और आकर मुझे थोड़ी मदद करो"

बीस मिनिट बाद शान्ताबाईने बुलाया. मैं डाइनिंग रूम में गया तो देखा कि शान्ताबाई चम्मच से ललित को उपमा खिला रही थीं. ललित भी आराम से खा रहा था. लगता है इतनी सी देर में ही शान्ताबाई का वशीकरण मंत्र चल चुका था.

"बहुत अच्छा उपमा है मौसी, एकदम सॉफ़्ट और टेस्टी. आप दोसे भी बनाती हो क्या?" ललित बोला. याने अब पहली बार मिली शान्ताबाई बीस मिनिट में मौसी बन गयी थी.

"खाओगे? वो भी बना दूंगी, चलो अब जल्दी जल्दी इतना और खा लो और नहाने चलो, मैं तुमको नहला देती हूं. भैयाजी, नाश्ता करके आप भी नहा वहा लो"

मैं खाने लगा. उधर ललित बोला "अब मैं बच्चा थोड़े ही हूं मौसी कि ..."

"जानती हूं मेरे लाल" उसके अब भी आधे खड़े लंड को पकड़कर शान्ताबाई बोलीं "तभी तो कह रही हूं, अब बच्चों को नहलाने में मेरा क्या फायदा?"

"करवा ले करवा ले मौसी से नहाने का करम. ये मुझे और लीना को भी कभी कभी नहला देती हैं." मैंने ललित को कहा.

शान्ताबाई ने ने बचा हुआ उपमा ललित को खिलाया और फ़िर हाथ पकड़कर खींच कर ले गयीं. ललित बेचारा अभी भी जरा परेशान था. शान्ताबाई के पीछे जाते वक्त मुड़ कर मेरी ओर देखा जैसे कह रहा हो कि बचा लो जीजाजी, पर मैंने बस उसे आंख मार दी.

नाश्ता खतम करके मैंने भी आराम से नहाया, बदन पोछा और थोड़ी देर तक ईमेल देखीं. आधे घंटे के बाद बेडरूम में दाखिल हुआ.

शान्ताबाई एकदम नंगी बिस्तर पर पड़ी हुई थीं. उनके जरा गीले से बालों से लग रहा था कि उन्होंने भी नहा लिया था. उनकी मोटी मोटी टांगें फैली हुई थीं और उनके बीच ललित झुक कर मजे से उनकी चूत चाट रहा था. इतना मग्न था कि मेरे आने का पता भी उसको नहीं चला.

ललित को देखकर मैं दंग रह गया. शान्ताबाई ने एकदम खास सजाया था उसको. याने था वही ब्रा और पैंटी में पर क्या पैंटी थी! काली, छोटी सी और एकदम तंग. लीना ने शायद हनीमून पर पहनी वाली थी. ललित के आधे से ज्यादा गोरे गोरे चूतड़ नंगे थे. और ऊपर से उस पैंटी में पीछे से एक छेद था, बड़ा सावधानी से जैसे किसी ने ठीक गुदा के ऊपर एक दो इंच का छेद कर दिया था. उसमें से ललित का लाल गुलाबी गुदा दिख रहा था. पहले मैं अचंभे में पड़ गया कि ये क्या चक्कर है, फ़िर देखा तो शायद शान्ताबाई ने उसपर हल्की लिपस्टिक से चूत जैसी बना दी थी.

ब्रा गुलाबी रंग की थी. लगता है कहीं अंदर से ढूंढ कर निकाली थी. और विग वही था पर शोल्डर लेंग्थ बालों को पीछे से एक जरा सी चोटी में क्लिप से बांध दिया था जिससे ललित का रूप ही बदल गया था.

शान्ताबाई लेटे लेटे ललित के सिर को पकड़कर अपनी चूत पर दबाये हुए थीं और मस्ती में गुनगुना रही थीं. "बहुत अच्छे बेटे ... बहुत अच्छे मेरे लाल ... कितना प्यार से चाटता है राजा मेरी चूत को ... तेरी दीदी की याद आ गयी ... लीना बाई भी एक बार शुरू होती हैं तो घंटे घंटे सिर दिये रहती हैं मेरी टांगों में ..."

मुझे देखकर बोलीं "भैयाजी, आपने ये नहीं बताया कि हमारा ललित बेटा चूत का कितना दीवाना है. बाथरूम में मेरी बुर देखी तो सीधे उसके पीछे ही पड़ गया. यहां भी देखो कैसे चूस रहा है. कहता है कि पूरा रस निचोड़ कर ही उठूंगा"

ललित उनकी बुर में से मुंह निकाल कर बोला "तुम्हारा रस तो खतम ही नहीं होता मौसी ... अब चोदने दो ना, जैसा तुमने वायदा किया था."

उसके सिर को कस के वापस अपनी जांघों के बीच खोंसते हुए शान्ताबाई बोलीं "पहले अपना काम तो पूरा कर, फ़िर वायदे की बात कर. तुमने कहा था ना कि एक एक बूंद निचोड़ लूंगा मौसी, तो पहले निचोड़. और आप भैयाजी, ऐसे क्यों खड़े हो? आओ ना यहां" अपने बाजू में बिस्तर को थपथपा कर वे बोलीं.

मैं जाकर उनके पास बैठ गया. उन्होंने मेरा सिर नीचे खींच कर कस के मेरा चुंबन लिया, दो तीन मिनिट शान्ताबाई से चूमा चाटी करने में गये, उनके चूमने के अंदाज से ही लगता था कि कितनी गरमा गयी थीं वे. मैंने उनकी मांसल चूंचियां एक दो मिनिट मसलीं और फ़िर उनके निपल एक एक करने चूसने लगा.

"आह ... हाय ... आज कितने दिनों के बाद दो मर्द मेरे से लगे हैं .... और चूसो भैयाजी ... आह अरे कितने जोर से काटते हो ... दुखता है ना" सिसककर वे बोलीं पर मैंने निपल चबाना चालू रखा. उन्होंने मेरा सिर अपनी छाती पर दबा लिया और बोलीं "वैसे ये लौंडा लाखों में एक है भैयाजी ... इतना चिकना लौंडा नहीं देखा ... ये इसके चूतड़ देखो, लीना बाई की बराबरी के हैं ... और लंड भी कोई कम नहीं है भैयाजी ... एकदम कड़क गाजर जैसा ..."

मैं ललित के नितंबों पर हाथ फेरने लगा. अब मेरा लंड कस के तन्ना गया था. मुंह में पानी आ रहा था तंग काली पैंटी में से आधी दिखती उस गोरी गोरी गांड को देख कर, असल में लीना की गांड मारे भी तीन चार हफ़्ते हो गये थे और मेरा लंड बेचारा गांड को तरस गया था. मैंने ललित के पेट के नीचे हाथ डालकर टटोला तो उसका भी हाल बुरा था, लंड एकदम तना हुआ था. मैं ललित के चूतड़ मसलने लगा.

"शान्ताबाई ... अब नहीं रहा जाता" मैंने उनकी ओर देख कर कहा. वे बोलीं "तो चख लो ना मिठाई, ऐसे दूर से क्या ललचा रहे हो"


मैंने झुक कर ललित के नितंबों को चूम लिया. कब से यह करने की इच्छा थी मेरी. उसके बदन में सिरहन सी दौड़ गयी. मैंने पैंटी के छेद में से उसके नरम नरम छेद को थोड़ा सहलाया और उंगली की टिप उसमें फंसा दी. उसका छेद कस सा गया. शान्ताबाई ने देख लिया और मुस्कराने लगीं "ललित ... याने हमारी ललिता रानी अभी कुआरी है भैयाजी, ऐसे बिचके तो कोई नयी बात नहीं. पर अब चोद ही लो, क्यों ललिता ... ललित बेटा ... चुदवा ही ले अब अपने जीजाजी से"

"दुखेगा मौसी?" ललित थोड़े कपते स्वर में बोला.

"बिलकुल दुखेगा, आखिर तेरे जीजाजी का सोंटा है, कोई जरा सी लुल्ली थोड़े है. पर इतना मर्द का बच्चा तू, ऐसे क्या डरता है? इससे तो लड़कियां बहादुर होती हैं, एक बार दिल आये, तो जैसे कहो, जिस छेद में कहो, चुदवा लेती हैं. और मैं हूं ना बेटा. भैयाजी, आप जरा वो डिब्बा इधर करो"

पलंग के पास के स्टैंड पर एक स्टील का डिब्बा रखा था. मैंने उसे खोला तो देखा अंदर मख्खन है, घर में बना चिकना ठंडा मख्खन. शान्ताबाई मुस्करायीं, मुझे याद आ गया कि कैसे उन्होंने उस दिन मख्खन लगवाकर लीना की गांड मुझसे मरवाई थी.

"अब ऊपर आ जा मेरे राजा बेटा. ऐसा लेट मेरे पर" कहकर उन्होंने ललित को अपने ऊपर लिटा लिया. ललित उन्हें बेतहाशा चूमता हुआ उनकी चूत में लंड घुसेड़ने की कोशिश करने लगा. "अभी रुक राजा ... जरा तेरे जीजाजी को भी तो तैयार होने दे ... आप ऐसे इधर आओ भैयाजी"

शान्ताबाई ने हथेली पर मख्खन का एक लौंदा लिया और मेरे लंड पर चुपड़ने लगी. बोली "आप लोग क्यों वेसलीन के पीछे पड़ते हो मेरे पल्ले नहीं पड़ता. अरे मख्खन इतना चिकना है, वो भी घर का मख्खन, इससे अच्छी क्रीम नहीं मिलेगी दुनिया में चोदने के लिये, और चूमा चाटी के दौरान मुंह में चला जाये तो भी अच्छा लगता है, वो वेसलीन तो कड़वा कड़वा रहता है" अपनी मुठ्ठी ऊपर नीचे करके पूरे लंड को एकदम चिकना कर दिया. इतना मजा आ रहा था कि लगा कि ऐसे ही मुठ्ठ मरवा लूं उनसे. उन्होंने उंगली पर थोड़ा और मख्खन लेकर मेरे सुपाड़े पर लगाया और फ़िर हथेली चाटने लगीं "अब आप खुद ही लगा लो ललिता रानी के छेद में. जरा ठीक से लगाना, चिकना कर लेना"

मैंने उंगली पर मख्खन लिया और ललित के गुदा में चुपड़ने लगा. उसने फ़िर गुदा सिकोड़ लिया, लगता है अनजाने में वो अपने कौमार्य को - वर्जिनिटी को बचाने की कोशिश कर रहा था. मैंने शान्ताबाई की ओर देखा और आंखों आंखों में गुज़ारिश की कि आप मदद करो, ये तो गांड भी नहीं खोल रहा है. वे उंगली में मख्खन लेकर ललित की गांड में लगाने लगीं. बोलीं "अब छेद तो ढीला करो ललिता रानी - मेरी उंगली ही नहीं जा रही है तो जीजाजी का ये मूसल कैसे जायेगा! मरवाना है ना? चुदवाना है?" ललित के मुंडी हिला कर हां कहा. "फ़िर छेद ढीला कर अच्छे बच्चे -- बच्ची जैसे" मुझे उन्होंने आंखों आंखों में इशारा किया और फ़िर हाथ मिला कर अलग किये. मैं समझ गया कि वे मेरे को ललित के चूतड़ पकड़कर चौड़े करने को कह रही हैं.

मैंने वो मुलायम चूतड़ फैलाये और शान्ताबाई उंगली उसके गुदा पर उंगली रखकर दबाने लगीं. अब उनकी उंगली अंदर धंसने लगी. कई बार उन्होंने मख्खन लेकर छेद में लगाया और उंगली अंदर तक आधी घुसाई. जिस तरह से ललित का गुलाबी छेद चौड़ा होकर उंगली को अंदर ले रहा था, मेरा पागलपन पढ़ रहा था. क्या टाइट कुआरा छेद था! मन में बस यही था कि आज पटक पटक कर चोदूंगा भले फट जाये.

उधर गांड में उंगली करवाने से ललित महाराज भी मस्ता रहे थे, बार बार धक्के मारकर शान्ताबाई की चूत छेदने की कोशिश कर रहे थे. शान्ताबाई ने भी उसको कस के पकड़ रखा था "ऐसे उतावले ना हो मेरे राजा ... धक्के मत मार अभी ... तेरे जीजाजी को चढ़ जाने दे एक बार ... फ़िर तू भी मन भरके चोद लेना. मजा आयेगा. तू मेरे को चोदेगा और तेरे जीजाजी तेरे को चोदेंगे. चलिये, आ जाइये भैयाजी"

पर ललित से रुका नहीं जा रहा था, वह शान्ताबाई से चिपटा जा रहा था और उनकी बुर में लंड डालने की भरसक कोशिश कर रहा था. देख कर उसपर तरस खाकर शान्ताबाई ने अपनी चूत खोल ली और अगले ही पल ललितने अपना लंड पेल दिया. फ़िर चहक कर बोला "कितनी टाइट चूत है मौसी ... आह .. ओह"

शान्ताबाई की बुर सच में इतनी टाइट है कि लगता है जैसे किसी एकदम जवान लड़की की हो. प्रकृति का यह चमत्कार ही है कि इतने मांसल खाये पिये बदन के साथ ऐसी सकरी चूत उनको मिली हो.

ललित अब तक सपासप चोदने लगा था. शान्ताबाई ने उसको अपने हाथों पैरों में कसकर उसके धक्के बंद किये और बोलीं "अब जरा रुक मेरे राजा ... इतना उतावला ना हो ... तेरे को अकेले अकेले ये मजा नहीं करने दूंगी मैं ... अपने जीजाजी को भी अंदर डाल लेने दे, फ़िर तुम दोनों चोदना एक साथ. चलिये भैयाजी, अब देरी मत कीजिये"




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