Friday, January 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI बीवी का मायका-11

FUN-MAZA-MASTI

 बीवी का मायका-11

ललित मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया और मेरा लंड अपनी दो मुठ्ठियों में पकड़ लिया. "कितना लंबा है जीजाजी, दो मुठ्ठियों में भी पूरा नहीं आता, सुपाड़ा ऊपर से झांक रहा है. मेरा तो बस एक मुठ्ठी में ही ..."

मैंने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया. "ललिता रानी .... अब भूल मत कि तू लड़की है ... क्यों बार बार ललित के माइंडसेट में आ जाती है? जैसी भी है, तू बड़ी प्यारी है"

ललित ने एक दो बार लंड को ऊपर नीचे करके मुठियाया और फ़िर उसके सुपाड़े पर उंगली फिराने लगा. "कितना सिल्किश है जीजाजी ... एकदम चिकना ...और इतना फूला हुआ"

"तभी तो तेरी दीदी मेरे जैसे इन्सान को भी अपने साथ बहुत कुछ करने देती है नहीं तो मेरी क्या बिसात है तेरी दीदी के आगे!"

"नहीं जीजाजी, आप कितने हैंडसम हैं, नहीं तो दीदी शादी के छह महने के बाद घर आती? वो भी बार बार बुलाने पर? ये नसें कितनी फूल गयी हैं जीजाजी!" सुपाड़े के साथ साथ अब ललित उंगली से मेरे लंड के डंडे पर उभर आयी नसें ट्रेस कर रहा था.

मेरे लंड से खेलते खेलते उसने जब अनजाने में अपनी जीभ अपने गुलाबी होंठों पर फ़िरायी तो मैं समझ गया कि साला चूसने के मूड में था, चूसने को मरा जा रहा था पर हिम्मत नहीं हो रही थी. उसके वो नरम होंठ देखकर मैं भी कल्पना कर रहा था कि वे होंठ अगर मेरे लंड के इर्द गिर्द जमे हों तो? लंड और तन गया.

"कितना सख्त है जीजाजी ... जैसे कच्चा गाजर ..." उसकी हथेली अब फ़िर से मेरे सुपाड़े पर फ़िर रही थी.

मुझे भी अब लगने लगा था कि मस्ती ज्यादा देर मैं नहीं सह पाऊंगा. ललित के विग के बालों में से उंगलियां चलाते मैं बोला "तूने खाया है क्या कभी कच्चा गाजर?"

वो शरमा कर नहीं बोला. फ़िर मुझे पूछा "दीदी इसको कैसे चूसती है जीजाजी? याने जैसा मेरे को कर रही थी मुझे लिटा कर या ..."

"अरे उसके पास बहुत तरीके हैं. कभी लिटा कर, कभी मेरे बाजू में लेटकर, कभी मेरे सामने नीचे जमीन पर बैठकर ... पर बहुत देर इस डंडे से खेल खेलने का मजा लेना हो तो वो मेरी गोद में सिर रखकर लेट जाती है और घंटे घंटे खेलती है" कहते ही मुझे लगा कि गलती कर दी, यह नहीं बताना था. अब अगर ये सेक्सी छोकरा ... छोकरी वैसे कर बैठे तो? मैं घंटे भर रुकने के बिलकुल मूड में नहीं था.

पर अब पछताना बेकार था क्योंकि ललित ने मेरी बात मान ली थी. बिना और कुछ कहे वह मेरी जांघ पर सिर रखकर सो गया. फ़िर उसने लंड पकड़कर अपने गाल पर रगड़ना शुरू कर दिया. उसके नरम नरम गोरे गालों पर सुपाड़े के घिसे जाने से मुझे ऐसा हो गया कि पकड़कर उसके मुंह में पेल दूं. पर मैंने किसी तरह सब्र बनाये रखा.

अब ललित के भी सब्र का बांध टूट गया था, शर्म वगैरह भी पूरी खतम हो गयी थी. उसने लंड को पकड़कर जीभ से उसकी नोक पर थोड़ा गुदगुदाया. जैसे टेस्ट देख रहा हो. फ़िर चाटने लगा. उसकी जीभ मेरे सुपाड़े की तनी चमड़ी पर चलनी थी कि मेरी सिर घूमने लगा. सहन नहीं हो रहा था, लीना भी ऐसा करती है और मुझे आदत हो गयी है पर यहां ये चिकना लड़का था, लड़की नहीं और सिर्फ़ इस बात में निहित निषिद्ध यौन संबंध एक ऐसी शराब थी जो दिमाग में चढ़नी ही थी.

"ओह लीना रानी ... मेरी लीना .... मेरा मतलब है ललिता डार्लिंग ... मुझे अब मार ही डालोगी ..." फ़िर झुक कर ललित का गाल चूम कर मैंने कहा "एक पल को भूल ही गया था कि तू है ... वैसे अब जरा देख ललिता ... लंड थरथरा रहा है ना?"

"हां जीजाजी"

"याने अब ज्यादा देर नहीं है ... लंड को इस तरह से मस्ताने के बाद या तो उसे चूस लेना चाहिये या चुदवा लेना चाहिये" मैंने उसकी ब्रा मसलते हुए कहा.

"दीदी क्या करती है जीजाजी?"

"इस हद तक आकर तो वो चूस लेती है क्योंकि इसके बाद ज्यादा देर चुदवाना पॉसिबल नहीं है. आखिर मैं भी इन्सान हूं मेरी रानी, कोई साधु वाधु नहीं हूं कि सहता रहूं. अब तू क्या करेगी ललिता जान ... तू ही डिसाइड कर"

ललित शायद पहले ही डिसाइड कर चुका था, क्योंकि चुदवाने का ऑप्शन तो था नहीं, याने मेरे लिये था पर वो बेचारा क्या चुदवाये, कैसे चुदवाये, चूत तो थी नहीं, उसके पास बस एक ही चीज थी चुदवाने के लिये, और ये पक्का था कि वह खुद उसको ऑफ़र नहीं करेगा.

उसने मुंह बाया और मेरा सुपाड़ा मुंह में भर लिया. थोड़ा चूसा और फ़िर मुंह से निकाल दिया. उसके मुंह में सुपाड़ा जाना था कि मेरी नस नस में खुमार सा भर गया. इसलिये सुपाड़ा जब उसने निकाला तो बड़ी झल्लाहट हुई. पर मैंने प्यार से पूछा "क्या हुआ रानी? अच्छा नहीं लगा?"

"बहुत रसीला है जीजाजी, बड़ी चेरी जैसा पर ... कहीं आप को मेरे दांत ना लग जायें?" मेरी ओर देख कर ललित बोला.

"अरे तू क्यों चिंता करती है ललिता जान? नहीं लगेंगे, दुनिया में तू पहला ... पहली नहीं है जिसने लंड चूसा है. मुझे आदत है, लीना तो क्या क्या करती है इसके साथ चूसते वक्त!"

"जीजाजी ... दीदी ... मां ... भाभी जब मेरा चूसती हैं तो पूरा निगल लेती हैं, कभी थूकती नहीं ... वो अच्छा लगता होगा उनको? ... " उसको वीर्य निगलने का थोड़ा टेन्शन था. मैंने सोचा कि अभी तो समझाना जरूरी है नहीं तो बिचक गया तो मेरी के.एल.डी हो जायेगी, इतना सब करने के बाद मुठ्ठ मारनी पड़ेगी. अब तो मुझे ऐसा लग रहा था कि सीधे जबरदस्ती अपना लौड़ा उसके हलक में उतार दूं और पटक पटक कर उसका प्यारा सा मुंह चोद डालूं.

"अब ये मैं क्या बताऊं डार्लिंग ... हां ये सब मस्त चूसती हैं जैसे चासनी पी रही हों, अब अच्छा ही लगता होगा. पर तू चिंता मत कर डार्लिंग, मैं तेरे को बता दूंगा, तू तुरंत मुंह से बाहर निकाल लेना"

उसे दूसरी बार नहीं कहना पड़ा. झट से उसने मुंह खोला और मेरा पूरा सुपाड़ा मुंह में लेकर चूसने लगा.

मैंने उसके गाल सहलाये और हौले हौले आगे पीछे होने लगा, उसके मुंह में लंड पेलने लगा. फ़िर ललित का हाथ मेरे लंड की डंडे पर रखकर उसकी मुठ्ठी बंद की और उसका हाथ आगे पीछे किया. वह समझ गया कि मैं क्या चाहता हूं. सुपाड़ा चूसते चूसते वह मेरी मुठ्ठ मारने लगा.

अब रुकना मेरे लिये मुश्किल था, मैं रुकना भी नहीं चाहता था, ललित का गीला कोमल मुंह और उसकी लपलपाती जीभ - इस कॉम्बिनेशन को झेलना अब मुश्किल था. मैं जल्दी ही झड़ने की कगार पर आ गया, पर मैंने उससे कुछ नहीं कहा, बल्कि जैसे ही मैं झड़ा और मेरे मुंह से एक सिसकी निकली, मैंने कस के उसका सिर अपने पेट पर दबा लिया और लंड उसके मुंह में और अंदर पेलकर सीधा उसके मुंह में अपनी फ़ुहारें छोड़ने लगा.


बेचारा ललित एकदम हड़बड़ा सा गया. मेरे झड़ने का पता उसे तब चला जब उसके मुंह में गरम चिपचिपी फ़ुहार छूटने लगी. उसने अपना सिर हटाने की कोशिश की पर मैं कस के पकड़ा हुआ था. आखिर उसने हार कर अपनी कोशिश छोड़ दे और चुपचाप निगलने लगा. मैं बस ’आह’ ’आह’ ’आह मेरी डार्लिंग ललिता’ ’आह’ कहता हुआ ऐसे दिखा रहा था जैसे मुझे इस नशे में पता ही ना हो कि क्या हो रहा है.

ललित को पूरी मलाई खिलाने के बाद ही मैंने उसका सिर छोड़ा. आंखें खोल कर उसकी ओर देखा और फ़िर बोला "सॉरी ललित ... मेरा मतलब है ललिता ... क्या चूसा है तूने ... लीना भी इतना मस्त नहीं चूसती, मेरा कंट्रोल ही नहीं रहा"

ललित बेचारा उठकर बैठ गया. अब भी कुछ वीर्य उसके मुंह में था पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि निगल जाये या थूक दे. जिस तरह से वह मेरी मेरी ओर देख रहा था, मैं समझ गया कि सोच रहा है कि थूक डालूंगा तो जीजाजी माइंड कर लेंगे. इसलिये चुपचाप निगल गया.

"सॉरी मेरी जान ... सॉरी ... तुझे शायद अच्छा नहीं लग रहा टेस्ट. वो लीना का क्या है कि झड़ने के बाद भी चूसती रहती है, बूंद बूंद निचोड़ लेती है, तेरी मां और भाभी भी वही करती है, इसलिये मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि तेरी पहली बार है. अब नहीं करूंगा"

"नहीं जीजाजी, कोई बात नहीं, चूसने में बहुत मजा आ रहा था मेरे को. वैसे टेस्ट बुरा नहीं है, खारा खारा सा है" ललित ने जीभ मुंह में घुमाते हुए कहा. "कितना चिपचिपा है, लेई जैसा, तालू पर चिपक सा गया है.

"तू ऐसा कर, जा कुल्ला कर आ, तेरी पहली बार है"

ललित जाकर कुल्ला कर आया. जब मेरे पास बैठा तो मैंने उसे फ़िर से बांहों में ले लिया. बांहों में भरके उसे कस के भींचा और पटापट उसके चुंबन लेने लगा. बेचारा फ़िर थोड़ा शरमा सा गया. वैसे चूमा चाटी जनाब को अच्छी लग रही थी और जब मैं थोड़ा रुकता. तो ललित मेरे चुम्मे लेने लगता.

"अगर तू सोच रही है ललिता कि इतना लाड़ क्यों आ रहा है मुझे, तो मुझे लीना पर भी आता है जब वह मुझे ऐसा सुख देती है. अब ललिता ... नहीं थोड़ी देर को अब ललित कहूंगा तेरे को, यार न जाने क्या हो गया है मुझे ... मालूम है कि तू लड़का है फ़िर भी तेरे पर मरने सा लगा हूं. शायद तुझमें दोनों की, मर्दों और औरतों की, सबसे मीठी, सबसे मतवाली खूबियां हैं. अब ये बता कि मेरे साथ सोयेगा या अकेले? मेरे बेडरूम में मेरे बेड पर सोने में अटपटा लगेगा तेरे को तो रहने दे. वैसे इतने दिनों में पहली बार लीना नहीं है और अकेले सोने की मेरी आदत ही खतम हो गयी है."

ललित ने तुरंत हां कह दिया. उसे बांहों में भींचते वक्त अब मुझे उसके सख्त लंड का आभास हो रहा था जो पैंटी के अंदर ही खड़ा होकर मेरे पेट पर चुभ रहा था. मुझे ललित पर थोड़ा तरस भी आया, वो बेचारा कितनी देर से मस्ताया हुआ था पर मैंने उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया था.

"ऐसा करो ललित कि अब ये ब्रा और पैंटी निकाल दो. सोते समय कोई शर्त नहीं, अपने नेचरल अंदाज में आराम से सो." वह मेरे बेडरूम में गया और मैंने घर में एक बार सब चेक करके लाइट ऑफ़ किये, दरवाजा ठीक से लगाया और अपना ब्रीफ़ निकालकर वहीं सोफ़े पर डाल दिया. जब पूरा नंगा होकर मैं अपने बेडरूम में आया, तो ऊपर की लाइट ऑफ़ थी. टेबल लैंप की धीमी रोशनी ललित के नंगे बदन पर पड़ रही थी. वह थोड़ा दुबक कर बेड पर एक तरफ़ लेटा हुआ था, लंड एकदम तन कर खड़ा था. मुझे देख कर थोड़ा और सरक गया. सरकते वक्त मुझे उसकी गोरी सपाट पीठ और थोड़े छोटे पर भरे हुए कसे कसे गोरे चिकने नितंब दिखे.

अब यह बताने की जरूरत नहीं कि मैं गांड का कितना दीवाना हूं. लीना की गांड पर तो मरता हूं, इतने गुदाज मांसल और फूले हुए एकदम गोल नितंब हैं उसके कि मेरा बस चले तो चौबीस घंटे उनसे चिपका रहूं. लीना को यह मालूम है इसलिये रेशन कर रखा है. मुझे महने में दो तीन बार से ज्यादा गांड नहीं मारने देती. अब गांड की इतनी प्यास होने पर जब मैंने अपनी ससुराल में सासू मां और मीनल के भरे भरे चूतड़ देखे थे तो दिल बाग बाग हो गया था, कि कुछ तो मौका मिलेगा. वहां मेरी सच में के.एल.डी हुई जब लीना ने वीटो लगा दिया. तब सामूहिक चुदाई के दौरान ललित के गोरे कसे चूतड़ देख कर भी मेरे मन में आया था कि यार यही मिल जायें मारने को. अब जब ललित मेरे सामने असहाय अकेला था, तो इससे अच्छा मौका नहीं था. पर मैंने सोचा कि जल्दबाजी करूंगा तो कहीं सब किये कराये पर पानी ना फिर जाये. आखिर मुझे अपने इस चिकने खूबसूरत साले को फांसना था तो वो लंबे समय के लिये, एक रात के लिये नहीं. इसलिये आज की रात इस चिड़िया को और फंसाने में ज्यादा फायदा था.



यही सब सोच कर मैं उसपर झपटने के बजाय धीरे से पलंग पर बैठ गया "ललित राजा, ये अच्छा हुआ कि तू यहां सो रहा है नहीं तो सच में अकेले सोने में मुझे बड़ा अजीब सा लगता. वैसे वहां घर में किस के साथ सोता है तू" मैंने उसके बाजू में लेटते हुए पूछा.

’अक्सर तो हम सब एक साथ ही सोते हैं जीजाजी, मां के बेडरूम में उस बड़े वाले पलंग पर. कभी कभी जब हेमन्त भैया मीनल भाभी के साथ उनके बेडरूम में सोते हैं तो मैं मां के साथ सोता हूं. कभी कभी मां हेमन्त भैया को बुला लेती है अपने कमरे में सोने को, तब मैं भाभी के कमरे में सो जाता हूं. और जब भैया बाहर होते हैं टूर पर तो मैं, मां और भाभी साथ सोते हैं"

"वो राधाबाई नहीं सोतीं वहां?" उसे पास खींचकर चिपटाते हुए मैंने पूछा.

"नहीं जीजाजी, वे बस दिन में आती हैं. वो तो अच्छा है, अगर रात को रहें तो हम सब से अपने मन का करा लेंगी, हम लोगों को कोई मौका ही नहीं मिलेगा अपने मन की करने का"

उसका चेहरा अब बिलकुल मेरे सामने था. उसने विग निकाल दिया था फ़िर भी उसके चेहरे पर एक गजब की मिठास थी जैसी लीना के चेहरे में है. मैंने उसके होंठ अपने होंठों में दबाये और चुंबन लेने लगा. जल्द ही ये चुंबन प्रखर हो गये. दांतों में दबा दबा कर मैंने उसके वे कोमल होंठ चूसे. उसकी जीभ चूसी और खुद अपनी जीभ उसके मुंह में घुसेड़ी. अब ललित मेरी जीभ चूसते चूसते धक्के मार रहा था, उसका लंड मेरे पेट को कस के दबा रहा था. मैंने सोचा कि यह ठीक नहीं है, उस बेचारे ने मुझे इतने सुखद स्खलन का आनंद दिया है तो उसको भी सुख देना मेरी ड्यूटी है.

मैंने चुंबन तोड़ा तो तो जोर से सांसें लेता हुआ वह बोला "आप सॉलिड किसिंग करते हैं जीजाजी"

"क्यों, और कोई नहीं किस करता तेरे को ऐसे? इतना क्यूट लड़का है तू"

"भाभी करती है ऐसे कई बार. कभी कभी मां करती है"

मैंने उसे पलट कर दूसरी करवट पर लेटने को कहा. "अब जरा ऐसे चिपक मेरे को, मुझे सहूलियत होगी" मैंने उसे पीछे से आगोश में ले लिया. मेरा लंड अब फ़िर से खड़ा होकर उसके नितंबों के बीच की लकीर में आड़ा धंसा हुआ था. उसका छरहरा बदन बांहों में लेकर ऐसे ही लग रहा था जैसे किसी कमसिन कन्या को भींचे हुए हूं. एक हाथ से मैंने उसका लंड पकड़ा और सहलाने लगा. जरा छोटा था पर एकदम रसीले गन्ने जैसा था. मैंने उसका सुपाड़ा मुठ्ठी में भरकर दबाया और फ़िर अपने खास तरीके से उसकी मुठ्ठ मारने लगा, जैसा मुझे खुद पसंद है.

"आह ... ओह ... क्या मस्त करते हैं आप जीजाजी!" ललित ने सिहरकर कहा. जवाब में मैंने उसकी गर्दन पीछे से चूमना शुरू कर दी. लीना के बाल उठाकर मैं जब उसकी गर्दन ऐसे चूमता हूं तो कितनी भी थकी हो या मूड में न हो, फ़िर भी पांच मिनिट में गरमा जाती है. ललित का लंड भी अब मेरी मुठ्ठी में उछल कूद कर रहा था. दिख भी एकदम रसीला रहा था. गोरा डंडा और लाल लाल चेरी. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं ये करूंगा पर एक तो ललित का रूप और दूसरे उसने मुझे जो सुख दिया था उसके उत्तर में उसे सुख देने की चाह!

"ललित राजा, अब मेरी सुनो. इसके बाद का रूल यह है कि मैं कुछ भी करूं, तुम बस पड़े रहोगे ऐसे ही सीधे. न हाथ लगाओगे, न धक्के मारोगे. ठीक है?" उसके लंड को सहलाते हुए मैंने कहा. उसने हां कहा, अब तो वो ऐसी हालत में था कि मैं कुछ भी कहता तो मान लेता.

उसे सीधा लिटा कर मैं उसके लंड पर टूट पड़ा. उसको चूमा, सुपाड़ा थोड़ी देर चूसा, फ़िर जीभ से चारों और से चाटा. ललित गर्दन दायें बायें करने लगा, साले को सहन नहीं हो रहा था. "जीजाजी प्लीज़ ... कैसा तो भी होता है"

"अब कैसा भी तो होता है इसका मतलब मैं क्या समझूं यार? तू तो ऐसे तड़प रहा है जैसे आज तक किसीने तेरा लंड नहीं चूसा हो. घर में तो सब जुटे रहते हैं ना इसपर, तेरी दीदी, भाभी, मां, राधाबाई ... फ़िर?"

"पर आप करते हैं तो सच में रहा नहीं जाता जीजाजी ... ओह .. आह ... जीजाजी प्लीज़"

पर मैं तंग करता रहा. अब मेरा भी मूड बन गया था, एक तो पहली बार लंड चूस रहा था, और किस्मत से वह भी ऐसा रसीला खूबसूरत लंड. मन आया वैसे किया, कुछ एक्सपेरिमेंट भी किये. हां ललित को बहुत देर झड़ने नहीं दिया. ललित आखिर कराहने लगा "जीजाजी ... प्लीज़ ... दिस इज़ नॉट फ़ेयर ... इतना क्यों तंग कर रहे हैं?"

"तेरी दीदी मुझे सताती है उसका बदला ले रहा हूं, ऐसा ही समझ ले. मालूम है कि कभी जब तेरी दीदी दुष्ट मूड में होती है तो मेरा क्या हालत करती है? मेरे हाथ पैर बांध कर मुझे कैसे कैसे सताती है? अब उससे तो मैं झगड़ नहीं सकता, पर उसका बदला तुझपर निकालने का मौका मिला है तो क्यों न निकालूं? बहन का बदला भाई से! यही गनीमत समझ ले कि मैंने तेरी मुश्क नहीं बांधी"

काफ़ी देर ये खेल चलता रहा. आखिर अखिर में बेचारी की बुरी हालत हो गयी, लंड सूज कर लाल हो गया, मैंने खुद को मन ही मन शाबाशी दी कि उसकी ऐसी हालत करने में मैं कामयाब हुआ था. आखिर में उसने मेरा सिर पकड़ा, कस के अपने पेट पर दबाया और मेरे मुंह में लंड पूरा पेल कर धक्के मारने लगा. मैं चुपचाप पड़ा रहा कि देखें क्या करता है. आखिर आखिर में तो मुझे नीचे करके उसने मेरे मुंह को चोद ही डाला. जब झड़ा तब भी मैं चुपचाप पड़ा रहा, बिना झिझके उसका वीर्य निगल गया. उसकी बात सच थी, खारा कसैला सा स्वाद था पर मुझे खराब नहीं लगा, शायद इसलिये कि अब मेरा लंड भी फ़िर से पूरा तन कर खड़ा हो गया था.

आखिर जब ललित मुझपर से हट कर लस्त होकर लेट गया तो मैंने उसकी छाती सहलाकर कहा "रूल तोड़ दिया तूने ललित, ये अच्छा नहीं किया. इसकी पेनाल्टी पड़ेगी तेरे को"

"सॉरी जीजाजी" ललित बोला. पर उसकी आंखों में चमक थी "आप ने सब पी लिया जीजाजी?"

मैंने कहा "हां, वो तो चखना ही था. जवानी की क्रीम है आखिर, कौन छोड़ेगा! मजा आया तेरे को?"

"हां जीजाजी, बहुत मस्त, इतना मजा तो मां और दीदी के चूसने में भी नहीं आता" ललित मुझसे चिपक कर बोला.

"ठीक है, तो उसकी कीमत दे दे अब मेरे को. बोल, इसको कैसे खुश करेगा?" अपना तन्नाया लंड उसे दिखा कर मैंने पूछा.

वो चुप रहा. सोच रहा था कि क्या करूं. वैसे शायद खुशी खुशी वो मुझे एक बार और चूस डालता, पर उसके कुछ कहने के पहले की मैंने कहा "अब तो चोद ही डालता हूं तेरे को, उसके बिना ये दिल की आग नहीं ठंडी नहीं होगी मेरी"

बेचारा घबरा गया. मेरे उछलते लंड को देखकर उसकी हालत ये सोच कर ही खराब हो गयी होगी कि ये गांड में गया तो फाड़ ही देगा. पर बेचारा बोला कुछ नहीं, शायद मैं सच में मारता तो वो चुपचाप गांड मरवा लेता.

पर अपने उस चिकने लाड़ले साले को ऐसे दुखाने की मेरी इच्छा नहीं थी, वो भी पहली रात में.

"घबरा गया ना? डरपोक कहीं का, चल ये टांगें जरा फैला और करवट पर लेट जा" उसकी जांघों के बीच मैंने पीछे से लंड घुसेड़ा और कहा "अब चिपका ले टांगें और पकड़ मेरे लंड को उनके बीच. तुझे क्या लगा कि मैं तेरी गांड मारने वाला हूं. ऐसी ड्राइ फ़किंग नहीं देखी कभी? लीना भी करवाती है कई बार"

उसे पीछे से कस के भींच कर मैं अपना लंड उसकी जांघों के बीच पेलने लगा. उसकी जान में जान आयी. "थैन्क यू जीजाजी ... वैसे आप जो कहेंगे वो मैं करूंगा जीजाजी" मुड़ कर मेरी ओर देखते हुए ललित बोला. अपनी जांघों के बीच से निकले लंड के सुपाड़े को उसने अब अपनी हथेली में पकड़ लिया था और जिस लय में मैं उसकी जांघें चोद रहा था, उसी लय में वह मेरी मुठ्ठ भी मार रहा था.

उसका सिर अपनी ओर मोड़ कर उसके चुम्मे लेते हुए मैंने उसकी जांघें चोद दीं. एक मिनिट में मेरे वीर्य की फुहार ने उसकी जांघें भिगो दीं. बड़ा सुकून मिला, आने वाले स्वर्ग सुख का थोड़ा टेस्ट भी मिल गया.

बाद में टॉवेल से उनको पोछता हुआ ललित बोला "जीजाजी ... ये वेस्ट हो गया"

"याने?" मैंने पूछा.

"याने आप कहते तो मैं आप को फ़िर से एक बार चूस लेता" ललित बोला.

"आह हा ... याने स्वाद अब पसंद आ गया है मेरी ललिता रानी को. अब मुझे क्या मालूम था, पिछली बार तो ऐसा मुंह बनाया था तूने ... खैर आगे याद रखूंगा. और ये मत समझ कि आज छूट गयी वैसे हमेशा बचती रहेगी. तुझे चोदे बिना वापस नहीं भेजूंगा ललिता डार्लिंग. चल लाइट ऑफ़ कर और सो जा अब"

पांच मिनिट बाद मुझे महसूस हुआ कि ललित सरककर मेरे पास आया और पीछे से मुझे चिपक गया.

"क्या हुआ ललित?" मैंने पूछा.

"कुछ नहीं जीजाजी, आज बहुत मजा आया, इतना कभी नहीं आया था. थैंक यू जीजाजी ... और .. और .. आइ लव यू जीजाजी"

मैं मन ही मन मुस्कराया और आंखें बंद कर लीं. आज एक से एक मीठी बातें हुई थीं, खूबसूरत कमसिन लड़की जैसे जवान साले के साथ सेक्स किया, उसे खुश किया और खास कर अपनी बीवी के छोटे भाई को इतना आनंद दिया, इसका मुझे काफ़ी संतोष था.
 





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