Saturday, January 10, 2015

बीवी का मायका-18 end

FUN-MAZA-MASTI

 बीवी का मायका-18


 उसने मेरी गर्दन में बाहें डाल दीं और चुप चाप मेरी बाहों में पड़ा रहा. उसे मैंने अपने बेड पर ओंधा पटक दिया और फ़िर उसपर चढ़ बैठा. अपनी पैंटी निकाली पर उसके कपड़े निकालने के चक्कर में नहीं पड़ा. बस साड़ी ऊपर सरकाई और लौड़ा गाड़ दिया उन गोरे चिकने चूतड़ों के बीच. ललित किसी आधे पके सेब जैसा रसीला लग रहा था. अब मैं जिस सैडिस्टिक मूड में था, उसमें धीरे धीरे हौले हौले डालने का सवाल ही नहीं था जैसा शान्ताबाई की मदद से ललित की गांड पहली बार मारते वक्त मैंने किया था.

लंड पहली बार में ही सुपाड़े समेत आधा अंदर हो गया. ललित तड़पा, शायद चीख भी पड़ता पर उसने अपने होंठ दांतों तले दबाकर अपनी चीख दबा ली. शायद उस शरम लगी होगी कि जवान युवक होते हुए भी वह लड़की की तरह चिल्लाने वाला था. मैंने दूसरे धक्के में लंड जड़ तक उतार दिया और फ़िर अपने इस मीठे मतवाले फ़ीस्ट में जुट गया जिसके लिये इतनी देर से मैं प्यासा था.

मैंने लगातार दो बार ललित की गांड मारी. बिना कोई परवाह किये उसकी जवानी को भोगा. पहले पहले वह थोड़ा हिल डुल रहा था पर बाद में चुपचाप पड़ा पड़ा सहन करता रहा. बस बीच में मेरे लंड के स्ट्रोक कभी ज्यादा जोर से पड़ने लगते तो हल्के से कराह देता. पहली बार ही मैंने कम से कम बीस पच्चीस मिनिट उसको चोदा होगा, लगता है कि अगर लंड ज्यादा देर खड़ा रहे तो जैसे झड़ना ही भूल जाता है.

स्खलित होने के बाद भी मैं उसपर पड़ा रहा, उसे छोड़ा नहीं, बस पटापट उसका सिर अपनी ओर घुमा घुमा कर चुम्मे लेता रहा. आधे घंटे में मेरा लंड फ़िर तन्ना कर उसकी चुदी हुई गांड में अपने आप उतर गया, और मैंने उसे फ़िर दूसरी बार चोद डाला.

रात को नींद में भी मैंने उसे चिपटाये रखा, बीच बीच में उसे नीचे गद्दी जैसा लेकर उसपर सो जाता था. सुबह नींद खुली, तो लंड फ़िर कस के खड़ा था, जैसे उसे पागलपन का दौर पड़ रहा हो. ललित बेचारा गहरी नींद सोया था. एक बार उसपर दया आई, लगा कि अब छोड़ दूं पर फ़िर नजर दिन की रोशनी में दमकती उसकी गोरी गोरी गांड पर पड़ी, उसकी साड़ी नींद में फ़िर ऊपर हो गयी थी. इतनी लाजवाब मिठाई थी कि मेरा मन फ़िर डोल गया. उसे हौले से पट लिटा कर मैं उसके बदन के दोनों ओर घुटने टेक कर बैठ गया और फ़िर सुपाड़ा उसके गुदा पर रखकर अंदर कर दिया. मख्खन की बची खुची लेयर इतनी थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर घुस गया. जब तक उसकी नींद खुलती, मेरा पूरा लंड अंदर हो गया था.

"ओह जीजाजी ... दुखता है प्लीज़ ..." ललित कराह कर बोला पर मैंने ध्यान नहीं दिया. उसने एक दो बार और कहा पर मैं इतनी मस्ती में था कि बिना परवा किये उसपर चड़ कर उसके बदन को अपने हाथों पैरों में जकड़कर हचक हचक कर उसकी गांड मारता रहा. मैं मूड में हूं यह देखकर वह भी बस चुपचाप पड़ा रहा.

उस सुबह की चुदाई में जो मिठास थी, याने मेरे लिये, वो सबसे ज्यादा थी. लंड में अजीब से जिद पैदा हो गयी थी, कुछ भी करके यह आनंद लूटना है यह जिद. वह चुदाई दस एक मिनिट चली होगी पर उसकी फ़ीलिंग बहुत इंटेंस थी.

मुझे फ़िर नींद लग गयी. सो कर उठा तो नौ बज गये थे. ललित पहले ही उठ गया था, शायद नहा भी लिया था. मैंने चाय बनाई. वह आया और चुपचाप चाय पीने लगा.

मैंने उसे पास खींचकर कहा "सॉरी यार"

"सॉरी क्यों जीजाजी?" उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा.

"जरा ज्यादा ही मसल डाला मैंने तेरे को. अब क्या करूं, तेरा जोबन ऐसा निखर आया था कि रहा ही नहीं गया. वो क्या है, कभी कभी टेस्टी मिठाई धीरे धीरे खाकर मजा नहीं आता, बकाबक खाने का मन होता है. वैसा ही हुआ. अब नहीं करूंगा, कल काफ़ी जी भर के जीमा है मैंने" ललित के गाल को सहला कर मैंने कहा.

वो चुप था, बस थोड़ा मुस्करा दिया.

"तेरे को दर्द तो हुआ होगा, वैसे ठीक है ना, सच में फाड़ तो नहीं दी मैंने तेरी?"

"करीब करीब फाड़ ही दी जीजाजी, असल में कल रात को मेरे को पता चला कि गांड फटना याने क्या है. पर जीजाजी .... मजा भी आ रहा था ... बहुत अच्छा लग रहा था .... और फ़िर मैंने भी तो आप की मारी ना दो बार."

"हां यार ... वैसे मुझे नहीं लगा था कि तू यह भी करेगा"

"वो क्या है जीजाजी, वहां घर में कोई नहीं मारने देता, ना मां, ना मीनल भाभी, लीना दीदी या राधाबाई से तो पूछते भी डर लगता है ... इसलिये ...."

"इसलिये मेरे पर हाथ साफ़ कर लिया, तू दिखता है उतना सीधा नहीं है ललित" मैंने उसका कान पकड़कर कहा.

"और जीजाजी ... जब आप इतनी कस के मार रहे थे ... आपका सांड जैसा खड़ा हो गया था, तब मुझे ये भी लगा कि मुझे देख कर आप का इतना खड़ा हो गया ... याने मस्ती भर गयी नस नस में. अगर सच में लड़की होता तो पूरा कुरबान हो जाता अगर आप ऐसे चोदते मेरे को"



 उत्तरार्ध



इस बात को अब हफ़्ता हो गया है. ललित कल ही वापस चला गया. लीना तीन चार दिन और रहेगी वहां, शायद छोटे भाई के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिला अब तक इसलिये.

पिछले हफ़्ते में हमने क्या रंगरेलियां मनाईं, हिसाब नहीं. पर अधिकतर शान्ताबाई के साथ, हम तीनों ने मिलकर, मैं, ललित और शान्ताबाई. शान्ताबाई रोज लंच टाइम में आती थीं और शाम को आठ बजे जाती थीं, मेरे ऑफ़िस से लौटने के दो घंटे बाद. ललित को सब से ज्यादा मजा आया होगा, दोपहर शाम और रात को लगातार चुदाई.

वैसे उसे बेट से मुक्त कर दिया मैंने. एक ऐपल का लैपटॉप भी ला दिया. बंदा खुश हो गया. और उसके ये लड़की के कपड़े दिन भर पहनना भी कम कर दिया. मैं नहीं चाहता कि वो लड़की ही बन जाये, आखिर उसका भी फ़र्ज़ बनता है अपनी मां और भाभी के प्रति, खासकर जब उसका बड़ा भाई हेमन्त यहां नहीं है. और उसकी गांड मारना भी मैंने कम कर दिया. साले को लत ना पड़ जाये, मैं चाहता हूं कि वह ऐसा ही जवान मस्ताना नौजवान लड़का बन कर रहे, और बस कभी कभी मुझे साली का सुख दे दिया करे.


दो महने बाद


लीना के आने के बाद हमारी यहां की जिंदगी फ़िर से शुरू हो गयी. मुझे लगा था वैसे लीना ने मेरे और ललित के बारे में ज्यादा नहीं पूछा कि तुम लोगों ने यहां अकेले में क्या हंगामा किया. शायद उसे ललित ने बता दिया होगा या वो समझ गयी होगी. वैसे उसका मूड अब बहुत अच्छा है. करीब करीन तीन हफ़्ते मां के यहां रहकर उसे मन चाहा आरम और सुख मिला होगा. मीनल भाभी और राधाबाई ने भी खूब लाड़ किया होगा.

अब खास बात यह है जल्दी ही हमारे लाइफ़ में बड़े चेन्जेस आने वाले हैं.

हेमन्त को दो साल के लिये कैनेडा जाना है. वह मीनल और अपनी बच्ची को लेकर अगले ही महने जाने वाला है. जाते वक्त यहां हमारे यहां हफ़्ते भर रहने वाला है. लीना ने अभी से मुझे हिंट कर दिया है कि अब बड़ा भाई दो साल नहीं मिलेगा इसलिये वह पूरा हफ़्ता ज्यादातर उसके साथ बिताना चाहेगी. फ़िर मुझे यह भी बोली, कि मैं चिंता ना करूं, मैं बोर नहीं होऊंगा, मीनल भाभी को बंबई घूमना है, सो मैं घुमा दूं, और टाइम पास करने में उसकी सहायता करू. अब मीनल के साथ एक हफ़्ता करीब करीब अकेले में मिलना याने इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है.

पर उससे भी बड़ी खुशी की बात जल्दी ही पता चली. हेमन्त और मीनल अब नहीं रहेंगे इसलिये लीना ने डिसाइड किया है कि उसकी मां और छोटे भाई का वहां उसके मायके वाले घर में अकेले रहने का कोई मतलब नहीं है. इसलिये मार्च के बाद जब ललित के फ़ाइनल एग्ज़ाम हो जायेंगे, ताईजी और ललित यहां हमारे यहां आकर रहेंगे. ललित को यहां के कॉलेज में एडमिशन मिल जायेगा. हमारा घर भी बड़ा है, चार बेडरूम का, कोई परेशानी नहीं होगी. वैसे अगर एक बेडरूम का भी होता तो कोई परेशानी नहीं होती, मुझे नहीं लगता किसी भी रात में एक से ज्यादा बेडरूम यूज़ होगा.

शान्ताबाई के काम पर क्या असर पड़ेगा, यह सवाल है. पर लीना को नहीं लगता कि कोई प्रॉब्लम होगा. ललित की तो पहचान है ही शान्ताबाई से, रहीं मांजी, उनकी भी जल्दी हो जायेगी. जैसे वहां राधाबाई, वैसे यहां शान्ताबाई.

राधाबाई नहीं आने वाली हैं, वे शायद अपने गांव लौट जायेंगी, अपने भाई और उसकी बीवी के यहां. जाने के पहले वे दो हफ़्ते के लिये यहां आने वाली हैं. मजा आयेगा. खास कर मुझे देखना है कि उनमें और शान्ताबाई में कैसी जमती है. वैसे दोनों करीब करीन बहनें ही लगती हैं, राधाबाई बड़ी बहन, उमर में बड़ी और बदन से भी बड़ी. उनकी जुगलबंदी अगर जम जाये और देखने मिले तो इससे अच्छी कोई ब्ल्यू फ़िल्म हो ही नहीं सकती.

ललित आ रहा है इससे अब इस मस्ती वाली जिंदगी में थोड़ी धार आ जायेगी. यहां उसके साथ दस दिन जो धमचौकड़ी की वो रिपीट करने का मेरा इरादा नहीं है. उस वक्त तो ऐसा था जैसे पहली बार कोई तीखा चटपटा पकवान खाया हो. अब यह पकवान बस कभी कभी खाने में ही मजा है यह तय है, और वह भी जरा छिपा कर, कभी सबसे नजर बचाकर एकाध दो घंटे अकेले में मिलें तब.

वैसे एक बात है, जो मुझे ज्यादा एक्साइटिंग लग रही है. उन भाई बहन की इतनी जमती है कि ललित का ज्यादा समय लीना के साथ ही जाने वाला है, और शान्ताबाई भी उसे छोड़ेगी नहीं, उसके तो दिल में उतर गया है ललित. अब अगर ये तीनों आपस में बिज़ी हों तो ताईजी के साथ, लीना की मां के साथ मुझे ज्यादा समय बिताने का मौका मिलेगा, ऐसी मेरी आशा है. उनपर तो मैं मर मिटा हूं, क्या ब्यूटी है, क्या मुलायम बदन है, क्या स्वीट नेचर है, मेरा तो इश्क हो गया है उनसे, पर लीना से संभालकर ही करना पड़ेगा.

मुझे खास इन्टरेस्ट है अब उनकी गोरी गुदाज गांड में. अब तक अछूती है, लीना के वीटो के बाद मैंने भी उन तीन दिनों में ट्राइ नहीं किया, पर अब अगर साथ रहेंगी तो मेरी मिन्नत पर जरूर ध्यान देंगी ये आशा है. और अब भी मेरा प्लान है कि उनको कोकण दर्शन पर ले जाऊंगा, अकेले. दो चार रातें होटल में गुजरेंगी, उन रातों में सिर्फ़ वे और मैं ...



--- समाप्त ---








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