Friday, December 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI भिखारी की हवस-9

FUN-MAZA-MASTI


 भिखारी की हवस-9
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अब आगे
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 भूरे सिंह के अचानक चले जाने के बाद कुछ देर तक तो नेहा वही पानी मे खड़ी रही......इतना मज़ा आ रहा था ...और अचानक भूरे कहीं चला गया...आज तो अगर गंगू घर पर होता तो उसके उपर चड़कर वो उसके लंड को अपने अंदर ले लेती...इतनी आग लगी हुई थी उसके अंदर..

वो ऐसे ही बिना कपड़े बदले अपना भीगा बदन लिए अपने झोपडे की तरफ चल दी...वो किसी रोबोट की तरह चले जा रही थी...उसके मन मे उथल पुथल मची हुई थी..जो ऐसे मिटने वाली नही थी...उसे अपनी चूत पर चींटियां सी रेंगती महसूस हो रही थी..ऐसा तो उसके साथ आजतक नही हुआ था...अगर हुआ भी होगा तो उसे याद नही, वैसे भी उसकी यादाश्त खोए सिर्फ़ एक हफ़्ता ही तो हुआ था.

तभी उसे याद आया की वो खाने के लिए पैसे भी लाई है...भूख भी लगने लगी थी उसको..वो जैसे किसी सपने से एकदम से बाहर आई..और जब उसे ये एहसास हुआ की वो पूरी गीली है और उसके कपड़े उसके बदन से चिपक कर पारदर्शी लुक दे रहे हैं और आने जाने वाले सभी लोग उसके बदन को आँखे फाड़े देख रहे हैं..उसने जल्दी से अपने साथ लाया हुआ टावल अपने उपर लपेट लिया..

सामने ही उसको एक हलवाई की दुकान दिख गयी..वो वहाँ पहुँची और देखने लगी की क्या मिल सकता है उसके पास ..पर वहाँ कुछ सुखी मिठाइयों के अलावा कुछ नही था..एक मोटा सा आदमी गल्ले पर बैठा था.

नेहा : "भाई साहब, कुछ खाने के लिए नही है क्या आपके पास...''

उसने उसे उपर से नीचे तक देखा और बोला : "बस जी, अभी तैयारी कर रहा हू, आलू पूरी का नाश्ता बनाते हैं हम...थोड़ी ही देर मे पूरी निकालने वाला हू..''

वो पूरी भीगी हुई थी और उसके अंदर से पानी टपक रहा था..उसकी हालत देखकर वो हलवाई बोला : "तू गंगू की लुगाई है ना ...?''

नेहा ने हाँ मे सिर हिला दिया..

हलवाई : "तू जा...मैं अपने लड़के के हाथ भिजवाता हू तेरे लिए आलू पूरी..''

नेहा वहां से चली गयी..अब उसको सच मे काफ़ी तेज भूख लगी थी..भूख के मारे उसके जबड़े खींच रहे थे..

पर पहले उसने अपने कपड़े बदलने की सोची, उसने दरवाजा बंद कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर सूखने के लिए टाँग दिए..उसका नंगा संगमरमरी बदन चमक रहा था...वो दीवार पर लगे छोटे से शीशे मे अपनी बड़ी-2 छातियाँ देखकर मुस्कुरा दी...आख़िर उसको देखकर ही तो ज़्यादातर मर्द खुश होते हैं..और गंगू भी तो उस दिन कैसे रज्जो की चुदाई करते हुए उसके मुम्मे चूस रहा था...दबा रहा था...और वो भी कितनी आनंदविभोर हो रही थी उनको दबवाते हुए..

गंगू और रज्जो की चुदाई के बारे मे सोचते ही उसके अंदर एक अजीब सी लहर दौड़ गयी...उसके हाथ अपने आप अपने स्तनों के उपर चले गये और उसने उन्हे पूरी ताक़त से दबा दिया..

''अहह सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स ...''

वो खुद ही सीत्कार उठी अपने आप को दबाकर..गोरे-2 मुम्मों पर उसकी उंगलियों के निशान छप गये,पर मज़ा भी काफ़ी मिला उसको..ऐसा लगा की अंदर की नसों मे जो हल्का दर्द हो रहा था उनको राहत मिल गयी है ..

फिर उसके हाथ अपने आप अपनी चूत की तरफ खिसकने लगे..क्योंकि वहां तो ज्यादा तकलीफ हो रही थी उसको इस वक़्त ..........

पर तभी बाहर का दरवाजा खड़का...वो फिर से अपने सपने से बाहर निकली..कौन हो सकता है इस वक़्त ....वो पूरी नंगी खड़ी थी.

उसने दरवाजे के पास जाकर पूछा : "कौन है ...''

बाहर से किसी बच्चे की आवाज़ आई .. ''जी मैं केशव....रामलाल हलवाई के यहा से आया हू...उन्होने नाश्ता भिजवाया है..''

उसने अपने बदन पर जल्दी से टावल लपेट लिया...और दरवाजा खोल दिया, ये सोचकर की हलवाई की दुकान पर काम करने वाला कोई बच्चा होगा..

पर उसके कद को देखकर वो हैरान रह गयी...वो तो गंगू से भी लंबा था..उमर होगी करीब 18 के आस पास ...एक बनियान और पुराना सा पायजामा पहना हुआ था..जो जगह -2 से फटा हुआ था.

वो एकदम से अंदर आ गया,और सीधा किचन वाली जगह पर पहुँचकर उसने अपने हाथ मे पकड़ी थाली रख दी..

केशव : "गंगू भाई ने पहले भी कई बार नाश्ता मँगवाया है हमारी दुकान से...और पिछली बार की थाली अभी तक वापिस भी नही की...पिताजी वो भी मंगवा रहे हैं..''

वो रामलाल हलवाई का लड़का था. चेहरे और आवाज से बिल्कुल बच्चा ही था पर कद-काठी से पता चलता था की वो जवानी की दहलीज पर खड़ा है..



 उसको तो जैसे कोई फ़र्क ही नही पड़ा था नेहा को केवल टावल मे खड़ा देखकर..वो अपनी ही मस्ती मे इधर उधर देखता हुआ प्लेट ढूँढने लगा..

नेहा को पता था की वो प्लेट कहा है, वो अंदर वाले हिस्से मे आई और एक अलमारी खोलकर उसमे से प्लेट निकाल कर दे दी..

प्लेट देते हुए नेहा के हाथ केशव के हाथों से छू गये...और वो सिहर उठी...वो पहले से ही गर्म थी..मर्द का स्पर्श ऐसी अवस्था मे औरत को और उत्तेजित कर देता है..वही हाल नेहा का भी हुआ..उसकी नज़र एकदम से केशव के लंड वाले हिस्से पर चली गयी...वहाँ बिल्कुल शांति थी..वो थोड़ा और आगे आई...और केशव की आँखों मे आँखे डालकर बोली : "अभी थोड़ी देर रुक जा,मैं नाश्ता कर लू..फिर तू ये थाली भी साथ ही लेकर चले जाना, वरना ये भी पिछली बार की तरह यहीं पड़ी रहेगी...''

नेहा को अपने इतने पास देखकर केशव सकपका सा गया..उसने आज तक किसी लड़की को छुआ तक नही था...सारा दिन दुकान पर काम करते रहने की वजह से उसका कोई ऐसा दोस्त भी नही था जो उसे सेक्स के बारे मे सोचने के लिए उकसाता..यानी उसकी कोई बुरी संगत नही थी...

पर औरत का शरीर होता ही ऐसा है..समझ ना होते हुए भी सामने वाला उसके जाल मे फँस जाता है...नेहा ने जो टावल बाँधा हुआ था, वो उसके बड़े-2 मुम्मो को पूरी तरह से ढक नही पा रहा था..उसके उभरे हुए मुम्मे देखकर केशव की हालत भी खराब होने लगी...और उसके लंड मे कड़ापन आने लगा..

वो नेहा की बात मानकर वहीं ज़मीन पर बैठ गया..और नेहा नाश्ता करने लगी..

अब उसका ध्यान आलू पूरी से ज़्यादा केशव के केले पर था..जो धीरे-2 खड़ा होकर उसके पायजामे मे उभर रहा था..

भूख तेज थी, इसलिए नाश्ता जल्दी ही ख़त्म हो गया.

अब थी असली काम करने की बारी...नेहा ने पहले से ही सोच लिया था की आज जो भी हो जाए, वो मज़े लेकर ही रहेगी...गंगू के आने तक का वेट वो नही कर सकती थी..

जैसे ही केशव प्लेट लेने के लिए आगे आया..नेहा ने ज़ोर से साँस ली और उसकी छातियाँ फूल कर और बाहर निकल आई...और उसके साथ ही उसके टावल की गाँठ भी खुल गयी...और एक ही पल मे उसका टावल नीचे पड़ा था...और वो पूरी नंगी होकर केशव के सामने खड़ी थी.

केशव तो अपनी आँखे झपकाना भूल गया...उसने नारी का ये रूप तो आजतक नही देखा था...उसका मुँह खुल गया और होंठ सूख गये...

नेहा बड़ी ही अदा से मटकती हुई उसके पास आई और बोली : "ऐसे क्या देख रहा है रे ...कभी लड़की नही देखी क्या..''

उसने ना मे सिर हिला दिया..

नेहा समझ गयी की उसे सेक्स के बारे मे कोई ज्ञान नही है...वैसे पता तो उसको भी नही था ज़्यादा...उसने तो सिर्फ़ एक बार ही गंगू और रज्जो की चुदाई देखी थी...पर जिस तरह भूरे ने उसकी चूत की रगदाई की थी वो उसे बहुत अच्छा लगा था...उसने सोचा की चलो आज यही करवा लेती हू इस केशव से...अगर मौका मिला तो आगे भी करवा लेगी..

वो धीरे-2 चलती हुई उसके पास पहुँची और केशव के काँपते हुए हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर रख दिए..

अब इतना तो केशव भी जानता था की मुम्मो को कैसे हेंडल करते हैं...उनके उपर हाथ लगते ही उसकी उंगलियों ने अपनी पकड़ बना ली और उन्हे ज़ोर से दबा दिया...

''अहह ..... सस्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स .....उम्म्म्ममममममममम''

वही दर्दनाशक अहसास मिला नेहा को और वो किसी बेल की भाँति केशव के बदन से लिपट गयी...

बेचारा अबोध सा केशव , अपनी किस्मत पर उसे अभी तक विश्वास नही हो रहा था...ऐसी सुंदर लड़की उसके गले से लिपटी खड़ी है और वो भी पूरी नंगी...उसने उसकी गांड के उपर अपने पंजे जमाए और उसे हवा मे उठा लिया...

बिल्कुल फूल जैसा था उसका बदन...इतनी हल्की थी वो ..

नेहा तो अभी नहा कर आई थी..पर केशव सुबह से तो क्या ,शायद पिछले कई दिनों से नहाया नही था...झुग्गी मे रहने वाले लोग शायद ऐसे ही होते हैं...उसके शरीर की दुर्गंध काफ़ी ज्यादा थी, पर नेहा के सिर पर उत्तेजना का जो नशा चड़ा हुआ था उसके आगे उसे वो दुर्गंध भी खुश्बू के जैसी लग रही थी..

उसने अगले ही पल केशव के होंठों पर हमला बोल दिया...और उसे नोचने कचोटने लगी...ऐसे जैसे कोई जंगली बिल्ली अपने शिकार के साथ करती है..

केशव के लिए तो ये सब नया था...पहली बार जो था उसके साथ...पर किसी लड़की के साथ ऐसे मज़े मिलते है, ये एहसास उसे आज ही हुआ था..

नेहा के हाथ सीधा उसके लंड के उपर जा चिपके...और उसकी लंबाई नापकर वो भी हैरान रह गयी...गंगू के जितना तो नही था..पर काफ़ी लंबा था वो भी..

वो झटके से नीचे बैठी और उसने केशव का पायजामा नीचे खिसका दिया..उसका लंड एकदम से उसके सामने खड़ा होकर फुफ्कारने लगा...और बिना कुछ सोचे उसने उसे अपने मुँह के अंदर ले लिया...

केशव बेचारे ने तो आज तक मूठ भी नही मारी थी...उसके लंड के टोपे की खाल अभी तक चिपकी हुई थी...इसलिए वो पूर तरह से पीछे भी नही हो रही थी...बल्कि उसे वहाँ तकलीफ़ होने लगी..दर्द होने लगा..


 नेहा को लगा की शायद वो ही कुछ ग़लत कर रही है...उसके लिए भी तो ये पहला मौका था किसी के लंड को चूसने का..उसने केशव के लंड को मुँह से निकाल दिया..उसके लंड की खाल पीछे तक नही जा पा रही थी..

पर अगर ऐसा ही रहा तो वो अपनी प्यास कैसे बुझाएगी..तभी उसे गंगू का किया हुआ एक और कारनामा याद आ गया, जब उसने रज्जो की चूत को अपने होंठों से चूसा था तो रज्जो किस तरह से मज़े ले-लेकर चीखे मार रही थी..

वो झट से चारपाई पर लेट गयी और केशव को अपनी चूत के उपर झुका लिया..वो बेचारा आँखे फाड़े उसका चेहरा देखने लगा...की करना क्या है..

नेहा : "चल,जल्दी से यहा अपने होंठ रख दे..और यहाँ चाट...''

केशव उस वक़्त ऐसी हालत मे नही था की उसे मना कर सके...उसने वैसा ही किया...और उसके मोटे-2 हलवाई वाले होंठ अपनी चूत पर लगते ही उसकी चूत पर रेंग रही चींटियाँ गायब सी होने लगी...और वो मज़े से दोहरी होकर उसके बाल पकड़ कर अपनी चूत पर रगड़ने लगी.

''आआयययययीीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई ....................... सस्स्स्स्स्स्स्सि ईईईईईईईईईईईईईईई .................. ऊऊहह''

ऐसे मज़े की तो उसने कल्पना भी नही की थी..हाथ लगाने का अलग ही असर था पर किसी के गीले होंठ ऐसा मज़ा दे सकते हैं, ये उसे आज ही पता चला..

नेहा की चूत मे उबाल सा आने लगा..उसे अंदर से महसूस होने लगा की उसे अब जीभ के बदले कुछ और ही चाहिए अपने अंदर...और उसने अपनी पूरी ताक़त लगा कर केशव को अपने उपर खींच लिया...और उसकी कमर पर अपनी टांगे लपेट कर उसके लंड को अपनी चूत के उपर रगड़ने लगी..

केशव बेचारा पहले से ही अपने लंड पर हुए हमले से कराह रहा था..उसकी आग उगलती चूत की तपन और हल्के बालों की चुभन उससे बर्दाश्त नही हुई और वो वापिस खिसक कर नीचे आ गया..

एक अनाड़ी से अपनी पहली चुदाई करवाने मे कितना नुकसान है ये अब नेहा को समझ आ रहा था...उसकी आग तो वो शांत कर ही नही सकता था..क्यो ना उपर के ही मज़े लेकर अभी के लिए शांति पहुँचा ले वो..

और उसने फिर से उसे नीचे खदेड़ दिया..और इस बार केशव को उसने नीचे लिटा दिया..और खुद उछलकर उसके उपर जा चढ़ी ...

ये लगभग वही वक़्त था जब दूसरी तरफ गंगू मुम्मैत ख़ान की चुदाई करने मे लगा हुआ था..

नेहा ने केशव के शरीर पर बैठकर उपर खिसकना शुरू किया...वो जहाँ-2 से होकर उपर जाती जा रही थी, उसकी चूत से निकल रही चाशनी अपने निशान पीछे छोड़ती जा रही थी..केशव का पूरा शरीर उसकी मिठास मे नहा कर मीठा हो गया.

और जब अंत मे वो उसके मुँह तक पहुँची तो अपनी आँखो के ठीक सामने केशव को ताजमहल नाचता हुआ महसूस हुआ...इतनी सुंदर चूत और वो भी बिन चुदी , वो उसकी सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध सा हो गया...और अपने आप ही उसकी लपलपाती हुई जीभ निकल कर उसके इस्तकबाल के लिए निकल पड़ी..और जैसे ही उसकी रस बरसाती चूत ने उसके मुँह को छुआ, ऐसी आवाज़ आई जैसे ठन्डे पानी में गर्म लोहा रख दिया हो ....सर्र्र्र्र्र्रररई की आवाज़ के साथ नेहा ने अपनी चूत को उसके मुँह के उपर झोंक दिया..

''अहह ......उम्म्म्ममममममममममममममममममम...... एसस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स....''

नेहा के मुँह से तेज हुंकार सी निकलने लगी...गर्म साँसे इतनी तेज़ी से वो बाहर फेंक रही थी की केशव के चेहरे तक टकरा रही थी वो...और फिर नेहा ने केशव के बाल पकड़ कर अपनी पकड़ मजबूत करी और उसके मुँह पर किसी कुशल घुड़सवार की तरहा घुड़सवारी करने लगी...आगे-पीछे घिस्से लगाते हुए वो अपनी चूत के होंठों को उसके मोटे और खुरदुरे होंठों पर रगड़ने लगी....

और फिर एक जोरदार तूफान आया नेहा के अंदर....ठीक वैसा ही जैसा अस्तबल मे आया था, उस घोड़े के लंड को पकड़कर...बल्कि उससे भी ज़्यादा भयंकर...और उसने अपने अंदर का सारा मीठा और गाड़ा रस केशव के मुँह मे भर दिया...

हलवाई होने के नाते केशव ने एक से बड़कर एक मिठाइयाँ खाई थी...पर ऐसी मिठास उसने आज तक नही चखी थी...वो लॅप-लॅप करते हुए सारी चाशनी पी गया उसकी..

नेहा भी निढाल सी होकर उसके उपर गिर पड़ी...नेहा का मांसल शरीर केशव को बहुत अच्छा लग रहा था...पर वो मन ही मन अपनी नासमझी को भी कोस रहा था, क्योंकि उसे पता था की असली काम जो होना चाहिए था वो कर नही पाया...उसका लंड क्यो इतना दर्द करने लगा...इसका कोई इलाज जल्द ही ढूँढना पड़ेगा...

नेहा उठी और उसने अपने कपड़े पहन लिए,केशव को भी उसने जाने के लिए कह दिया, वो अपने बर्तन उठा कर चलता बना...

आज के लिए तो नेहा ने अपने आप को शांत कर लिया था...पर ज़्यादा दिनों तक वो अपनी चूत की प्यास को ऐसे ही नही बुझाना चाहती थी...इसके लिए अब उसको किसी ना किसी का लंड चाहिए ही था...फिर वो अब चाहे गंगू का हो या भूरे का...

उसने सोच लिया की पहला मौका मिलते ही वो अपनी प्यास बुझवाकर ही रहेगी.







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