Sunday, December 14, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--72

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--72

 मैं: अरे अम्मा..मुझे बुला लिया होता मैं खाना ले आता...आपने क्यों तकलीफ की?

बड़की अम्मा: मुन्ना तकलीफ कैसी...वासी भी अभी जर्रुरी ये है की तुम बहु का ध्यान रखो| एक तुम ही तो हो जिसकी बात वो मानती है| अच्छा ये बताओ की आखिर ऐसी कौन सी बात है की तुम रसिका के हाथ का कुछ भी खाना पसंद नहीं करते?

मैं: जी वो....

मेरी झिझक जायज थी...भला मैं अमा से सेक्स सम्बन्धी बात कैसे कह सकता था!

बड़की अम्मा: बेटा...मुझ से कुछ भी छुपाने की जर्रूरत नहीं है| मैं सब जानती हूँ...ये भी की तुम्हारा अपनी भौजी के प्रति लगाव बहुत ज्यादा है... पर मुझे नहीं लगता की तुम इस लगाव का कोई गलत फायदा उठाते हो! जो की एक बहित बड़ी बात है... तुम्हारी भौजी भी तुम्हें बहुत प्यार करती है...इतना जितना मैंने उसकी आँखों में अपने पति के लिए भी नहीं देखा| और शादी के बाद वो क्या बात है जिसके कारन इसका मन अपने ही पति से उखड गया...शायद मैं उसका वो कारन भी जानती हूँ| आखिर है वो नालायक मेरा ही बेटा...शादी से पहले उसकी हरकतें क्या थीं ये मैं अच्छे से जानती हूँ... मैंने सोचा की शादी के बाअद वो सुधर जायेगा...पर नहीं! तुमने गौर किया होगा की वो बार-बार अपने मां के यहाँ जाता है.... उसके पीछे जो कारन है वो ये की उसका वहाँ किसी लड़की के साथ.... (अम्मा कह्ते-कह्ते रूक गईं) जानती हूँ ये सब कहना किसी भी माँ के लिए कितना शर्मनाक है पर तुम अब छोटे नहीं हो! तुम्हारे दिल में जितना तुम्हारी भौजी के लिए प्यार है...उसे ये समाज सही नहीं मानता| पर चूँकि ये बात दबी हुई है...और ये सब मेरे ही बेटी की करनी के कारन हुआ है....तो मैं किसी को भी हमारे खानदान पे कीचड़ नहीं उछलने दूँगी| तो अब ये सब जानने के बाद भी...क्या तुम मुझसे वो बात छुपाना चाहते हो?

मैं: अम्मा वो....जब भौजी अपने मायके शादी में शामिल होने गईं थीं तबसे रसिका भाभी मेरे पीछे पड़ीं थीं....वो चाहती थीं की मैं उनके साथ हमबिस्तर हो जाऊं....पर मैंने माना कर दिया...उसके बाद आये दिन वो मुझे अकेला पा के कभी मेरे वहाँ (लंड) पे हाथ लगातीं तो कभी मुझे चूमने की गन्दी कोशिश करती रहतीं| गुस्से में दो-तीन बात मैंने उन्हें थप्पड़ भी मारे पर वो नहीं मानी...इसलिए मैं अपने कमरे में दरवाजा बंद कर के सोता था और मुझे उनसे इतनी नफरत हो गई की मैं उनके हाथ की बनी रसोई टक नहीं खाई...इसीलिए तो मैं बीमार पड़ गया था और भौजी ने डॉक्टर को बुलाया था|

बड़की अम्मा: (अपना माथा पीटते हुए) हाय दैय्या! ये छिनाल !!! पूरा घर बर्बाद कर के रहेगी| खेर चिंता मत करो बेटा...ये रसोई उसने नहीं मैंने पकाई है| आराम से खाओ और अपनी भौजी का ध्यान रखना|

अम्मा उठ के चलीं गईं और मैंने पहल करते हुए पहला कौर भौजी को खिलाया| भौजी ने फिर दूसरा कौर मुझे खिलाया...पर अभी बी कुछ था जो नहीं था! भौजी मुस्कुरा जर्रूर रहीं थीं पर वो ख़ुशी..कहीं न कहीं गायब थी| खेर हमने खाना खाया और कुछ देर आँगन में टहलने के बाद भौजी चारपाई पर लेट गईं| मैं उनके बालों में हाथ फेरने लगा;

मैं: क्या बात है जान? अब भी नाराज हो मुझसे?

भौजी: नहीं तो...आपसे नाराज हो के मैं कहाँ जाऊँगी?

मैं: तो फिर आप मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे? क्यों ये जूठी हंसी-हंस रहे हो? क्यों अंदर ही अंदर घुट रहे हो? निकाल दो बाहर जो भी चीज आप को खाय जा रही है? आप हल्का महसूस करोगे!

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस चुप-चाप मुझे देखती रहीं| मैं भी उनकी आँखों में आँखें डाले अपने सवाल का जवाब ढूंढने लगा| फिर उन्होंने मेरा हाथ थामा और बोलीं;

भौजी: आप रात भर इसीलिए नहीं सोये न की आप आज ये बात मुझे कैसे कहोगे?

मैं: हाँ

भौजी: तो वो चारपाई यहीं बिछा लो और मेरे पास लेट जाओ|

मैं उठ के चारपाई लेने जा ही रहा था कीमुझे याद आया की नेहा का स्कूल खत्म हुए आधा घंटा होने को आया था और हम दोनों में से किसी को भी याद नहीं आया की उसे स्कूल से लाना भी है|


 मैं: आप लेटो मैं अभी आया...बस दो मिनट!

भौजी: पर आप जा कहा रहे हो?

मैं: बस अभी आया ...

और मैं इतना कहते हुए तेजी से बहार की ओर भागा| स्कूल करीब पांच मिनट की दूर पे था और मुझे नेहा अकेली कड़ी दिखाई दी| मैं तेजी से उसकी ओर भगा| मैंने उसे झट से गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला;

मैं: I'm Sorry !!! बेटा मैं भूल गया था की आपके स्कूल की छुट्टी हो गई है| प्लीज मुझे माफ़ कर दो!

नेहा: कोई बात नहीं पापा!

मैं: Awwww मेरा बच्चा....चलो अब मेरे साथ भागो...मैं पहले आपको चिप्स दिलाता हूँ ...

हम दोनों तेजी से भागे और पहले मैंने उसे चिप्स का पकेट दिलाया और दस मिनट में हम भौजी के पास पहुँच गए| भौजी परेशान हो के बैठी हुईं थीं| जैसे ही उन्होंने नेहा को देखा तो उन्हें याद आय की आज उसे स्कूल से लाने के बारे में हम दोनों भूल गए| भौजी ने अपनी दोनों बाहें खोल दी और उसे गले लगने का आमंत्रण दिया| नेहा मेरी गोद से उतरी और जाके उनके गले लग गई| भौजी के बेचैन मन को जैसे ठंडक पहुंची|

भौजी: Sorry बेटा आज मुझे याद ही नहीं रहा की तुझे स्कूल से लाना भी है| Sorry !!!

नेहा: (चिप्स खाते हुए) कोई बात नहीं मम्मी ....देखो पापा ने मुझे चिप्स का बड़ा पैकेट दिलाया| लो (ऐसा कहते हुए उसने एक टुकड़ा भौजी के मुंह में डाला)

भौजी: तो इसलिए आप इतनी तेज भागे थे?

मैं: हाँ...Sorry मैं नेहा को स्कूल से लाना भूल गया|

भौजी: गलती मेरी है...आपकी नहीं...मेरी वजह से आप....

आगे भौजी कुछ बोल पाती इससे पहले नेहा ने अपना सवाल दाग दिया;

नेहा: मम्मी...आप की तबियत खराब है? आप बीमार हो?

भौजी: हाँ बेटा...इसीलिए आपके पापा आपको लाना भूल गए|

नेहा: क्या हुआ मम्मी आपको?

भौजी: बेटा आपके पापा...

मैंने भौजी की बात काट दी क्योंकि मैं नहीं चाहता था की वो बच्ची भी रोने लगे वो भी अभी...जब उसने कुछ खाया-पीया नहीं|

मैं: बेटा पहले आप कुछ खा लो फिर बैठ के बात करते हैं|

भौजी ने भी मेरी बात में हामी भरी|

भौजी: आप आराम करो...मैं इसे खाना खिला देती हूँ|

मैं: नहीं...आप आराम करो| मैं हूँ ना?

भौजी: पर Monday से तो मुझे ही करना है ...तो अभी क्यों नहीं|

मैं: क्योंकि अभी मैं यहाँ मौजूद हूँ|

मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके कपडे बदल के उसे खाना खिलाया और वापस भौजी के पास ले आया| भौजी सो चुकीं थीं पर उनके चेहरे पर आँसूं की लकीर बन चुकी थी| माँ-पिताजी कुछ रिश्तेदारों से मिलने सुबह ही चले गए थे और अब उनके भी आने का समय हो गया था|


 मैंने नेहा को साथ वाली चारपाई पे लिटा दिया और उसे पुचकारके सुला दिया| जब माँ और पिताजी आये तो उन्होंने मुझे भौजी और नेहा के पास बैठे देखा और इससे पहले की वो अपना सवालों से मेरे ऊपर बौछार करते बड़की अम्मा भागी-भागी वहाँ आईं और उन्हीने बिना कुछ कहे इशारे से अपने साथ ले गईं| कुछ देर बाद तीनों अंदर आये और माँ ने मुझे इशारे से अपने और पिताजी के पास बुलाया|

माँ: बेटा मैंने कहा था ना की तुझे अपनी भौजी और नेहा से दूरी बनानी होगी वरना जाते समय वो बहुत उदास होंगे...उनका दिल टूट जायेगा?

मैं: जी

माँ: फिर भी .... अब कैसे संभालेगा तू उन्हें? आज जो हुआ उसके बाद तो ...पता नहीं कैसे हम जायेंगे? या फिर यहीं बस्ने का इरादा है?

मैं: जी ... (मेरे पास शब्द नहीं थे उन्हें कहने के लिए)

बड़की अम्मा: देखो ...लड़का समझदार है...और बहु भी! रही बात नेहा की तो वो एक आध दिन में भूल जाएगी!

माँ: दीदी...आपने इसे बड़ी शय दी है|

पिताजी: देखो भाभी अगर उस दिन भी बहु का ये हाल हुआ तो? वो भी ऐसे समय पे जब बहु माँ बनने वाली है!

बड़की अम्मा: कुछ नहीं होगा..लड़का समझदार है...ये समझा लेगा| जा बेटा तू अंदर जा और सो ले थोड़ा...कल रात से जाग रहा है|

मैं बिना कुछ कहे अंदर आ गया पर सोया नहीं... नींद ही नहीं थी आँखों में| सर झुका के हाथ रखे हुए मैं Sunday के बारे में सोचने लगा| कल रात को मैं आसमान में देखते हुए अपनी परेशानी का हल ढूंढ रहा था..और आज जमीन को देखते हुए फिर से अपनी परेशानी का हल ढूंढ रहा था| वाह क्या बात है? जब आसमान ने तेरी परेशानी का हल नहीं दिया तो जमीन क्या हल देगी तेरी परेशानियों का? अभी मैं इस उधेड़-बुन में लगा था की भौजी उठ गईं;

भौजी: आप सोये नहीं? कब तक इस तरह खुद को कष्ट देते रहोगे?

मैं: जब तक आप एक Smile नहीं देते! (मैंने सोचा की शायद माहोल को थोड़ा हल्का करूँ)

भौजी: Smile ??? आप Sunday को "जा" रहे हो..... "वापस" आ नहीं रहे जो हँसूँ...मुस्कुराऊँ?

मेरा सर फिर से झुक गया...

भौजी: आपने मुझे नेहा को कुछ बताने क्यों नहीं दिया?

मैं: वो बेचारी स्कूल से थकी-हारी आई थी...खाली पेट...ऐसे में आप उसे ये खबर देते तो वो रोने लगती| जब वो उठेगी तो मैं उसे सब बता दूँगा|

भौजी: हम्म्म्म... आप सो जाओ ...थकान आपके चेहरे से झलक रही है|

मैं: नहीं... मैं Sunday को "जा" रहा हूँ..... "वापस" आ नहीं रहा जो चैन से सो जाऊँ|

मैंने फिर से उन्हें हँसाने के लिए उन्हीं की बात उन पे डाल दी...पर हाय रे मेरी किस्मत! भौजी वैसी की वैसी!

मैं: वैसे एक बात तो बताना ...आपको ये खबर दी किसने की मैं Sunday को जा रहा हूँ?

भौजी: रसिका ने....

मैं: और Exactly क्या कहा उसने? (आज मैं इतने गुस्से में था की आज रसिका भाभी के लिए मैंने "उसने" शब्द का प्रयोग किया|)

भौजी ने आगे जो मुझे बताया वो मैं आपके समक्ष डायलाग के रूप में रख रहा हूँ|



भौजी सब्जी काट रहीं थीं तभी वहाँ रसिका भाभी आ गईं और उनसे बोलीं;

रसिका भाभी: दीदी... आप बड़े खुश लग रहे हो? आपको मानु जी के जाने का जरा भी गम नहीं?

भौजी: क्या बकवास कर रही है तू! वो कहीं नहीं जा रहे!

रसिका भाभी: हाय...उन्होंने आपको कुछ नहीं बताया? सारा घर जानता है की काका-काकी रविवार को जा रहे हैं| आपको नहीं बताया उन्होंने?

भौजी: देख...मेरा दिमाग तेरी वजह से बहुत खराब है...मुझे मजबूर मत कर वरना इसी हंसिए से तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूँगी!

रसिका भाभी: कर देना...पर एक बार उनसे पूछ तो लो?

भौजी: हाँ...और मैं जानती हूँ की तू जूठ बोल रही है...और वापस आके तेरी चमड़ी उधेड़ दूँगी|

रसिका भाभी: अरे अब वो तुम से प्यार नहीं करते! वरना अपने जाने की बात तुम से क्यों छुपाते? यहाँ तक की अम्मा को भी माना कर दिया की आप भौजी से कुछ ना कहना! वो आपके बिना बातये जाना च्चहते थे..ये तो मैं मुर्ख निकली जिसने आपको अपना समझा और सब बता दिया और आप मुझे ही धमकी दे रहे हो! पछताओगे...बहुत पछताओगे!!!

भौजी की सारी बातें सुनने के बाद ...मेरे तन बदन में आग लग गई और अब ये आग रसिका भाभी को भस्म करने के बाद ही बुझती|

मैं: मैं अभी आया (मैंने गुस्सा दिखाते हुए कहा)

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैं: बस अभी आया..और आपको मेरी कसम है जो आप यहाँ से हिले भी तो!

भौजी: नहीं रुको...

मैं बिना कुछ कहे वहाँ से चला आया| पाँव पटकते हुए मैं छप्पर के नीचे जा पहुँचा और रसिका भाभी को देख के जो अंदर गुस्से की आग थी वो और भड़क उठी| माँ-पिताजी उस वक़्त हमारे खेत में जो आम का पेड़ था वहाँ बैठ हुए थे| मैं गरजते हुए बोला;



मैं: रसिका!!! पड़ गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा दी ना तूने आग? .... तूने...तूने ही आग लगाई है मेरी जिंदगी में! क्या खुजली मची थी तुझे जो तूने भौजी को मेरे जाने की बात बताई?

मेरी ऊँची आवाज सुन के सब से पहले बड़की अम्मा भागी आईं;

बड़की अम्मा: क्या हुआ मुन्ना? क्यों आग बबूला हो रहे हो?



मैं: अम्मा...इसी औरत ने भौजी को मेरे जाने की बात बताई ...और आज उनकी जो हालत है वो इसी के कारन है? आज सुबह जब आप चाय बना रहे थे और मैं आपसे बात कर रहा था तब ये छप्पर के नीचे छुपी हमारी बातें सुन रही थी...और सब जानते हुए भी इसिने आग लगाईं?

रसिका भाभी: अम्मा...आप बताओ की भला मैं क्यों आग क्यों लगाऊँगी?

बड़की अम्मा: XXXX (अम्मा ने उन्हें गाली देते हुए कहा) मैं सब जानती हूँ की तूने हमारी गैर-हाजरी में क्या-क्या किया?

रसिका भाभी: और ये...ये भी कोई दूध के धुले नहीं हैं...ये भी तो अपनी भौजी के साथ....

आगे वो कुछ बोल पाती इससे पहले ही अम्मा ने उसके गाल पे एक तमाचा जड़ दिया और रसिका भाभी का रोना छूट गया|

बड़की अम्मा: चुप कर XXX (अम्मा ने फिर से उन्हें गाली दी) खुद को बचाने के लिए मुन्ना पे इल्जाम लगाती है! तू तो है ही XXXX शादी से पहले मुंह कला किया और अब भी.....छी..छी... निकल जा यहाँ से!

अब ये शोर-गुल सुन पिताजी और माँ भी आ गए और उन्होंने मेरे हाथ में डंडा देखा जो मैंने आते वक़्त उठा लिया था...ये सोच के की आज तो मैं रसिका की छिताई करूँगा| उन्हें लगा की मैंने भाभी पे हाथ उठाया है| पिताजी तेजी से मेरी तरफ आये और बिना कुछ सुने मेरे गाल पे एक तमाचा जड़ दिया| तमाचा इतनी तेज था की उनकी उँगलियाँ मेरे गाल पे छाप गेन और होंठ काटने से दो बूँद खून बह निकला|

 आज पहली बार था की पिताजी ने मुझे थप्पड़ से नवाजा और मैं रोया नहीं...बल्कि मेरी आँखों में अब भी वही गुस्सा था|

पिताजी: यही संस्कार दिए हैं मैंने? अब तू अपने से बड़ों पे हाथ उठायगा?

मैं: ये इसी लायक है!

पिताजी ने एक और तमाचा रसीद किया;

पिताजी: इस बदतम्मीजे से बात करेगा अपने बड़ों से?

बड़की अम्मा: मुन्ना (पिताजी) ये क्या कर रहे हो? जवान लड़के पे हाथ उठा रहे हो? मानु बेटा तो जा ...मैं बात करती हूँ|

अब भी मेरे अंदर का गुस्सा शांत नहीं हुआ और अब भी वो डंडा मेरे हाथ में ही था| मन तो किया की रसिका को ये डंडा रसीद कर ही दूँ पर पिताजी के संस्कार हमारे बीच में आ गए| मैंने पिताजी को अपना गुस्सा जाहिर करते हुए डंडे को अपने पैर के घुटने से मोड़ के तोड़ दिया और ये देख के पिताजी और भी क्रोधित हो गए और मुझे मारने को लपके, तभी अम्मा और माँ ने मिल के उन्हें रोक लिया| मैं वापस बड़े घर आ गया, जब भौजी ने मेरे दोनों गाल लाल एखे और होठों पे खून तो वो व्याकुल हो गईं;

भौजी: क्यों?....

उन्होंने अपनी बाहें खोल के अपने पास बुलया, मैं जाके उनके गले से लग गया| चलो इसी बहाने कुछ तो बोलीं वो पर ये क्या मेरे होठों पे लगा खून देख उनकी आँखें छलक आईं|

मैं: Hey ! मुझे कुछ नहीं हुआ? I'm Fine ! देखो?

भौजी ने मेरे लाल गालों पे हाथ रखा और बोलीं;

भौजी: क्या हुआ? आपकी ये हालत कैसे हुई?

मैं: उसे सबक सिखाने गया था ...पिताजी आ गए और...

आगे मुझे बोलने की कोई जर्रूरत ही नहीं थी| भौजी ने अपनी साडी के पल्लू से खून पोछा और बोलीं;

भौजी: अब तो मुझे अपनी कसम से मुक्त कर दो?

मैं: क्यों? कहाँ जाना है आपको?

भौजी: First Aid बॉक्स लेने|

मैं: कोई जर्रूरत नहीं.... आप मेरे पास बैठो..ये तो छोटा सा जख्म है...ठीक हो जायगा|

पर नजाने अब भी भौजी का मन उदास था...बाहर से उनके चेहरे पे मुझे दिखाने के लिए मुस्कराहट थी पर अंदर से....अंदर से वो दुखी थीं| हम दोनों चारपाई पे बैठे थे पर खामोश थे...तभी वहाँ अजय भैया आ गए| मुझे नहीं पता की उनहीं कुछ मालूम पड़ा या नहीं ...पर वो आये और भौजी का हाल-चाल पूछा और दस मिनट बाद जाने लगे| मैंने उनहीं रोक और बहार ले जा कर उनसे बोला;

मैं: भैया...आप तो जानते ही हो की उनका मन खराब है| मैं सोच रहा था अगर आप बाजार से कुछ खाने को ले आओ तो....शायद उनका मन कुछ बल जाए|

अजय भैया: हाँ-हाँ बोला...क्या लाऊँ?

मैं: मेरे और उनके लिए दही-भल्ले, नेहा के लिए टिक्की और बाकी सब से पूछ लो वो क्या खाएंगे| और पैसे पिताजी से ले लेना...

अजय भैया: ठीक है मानु भैया ...मैं अभी ले आता हूँ|

मैं वापस आके भौजी के पास बैठ गया; पर भौजी ने कुछ नहीं पूछा| आधे घंटे तक बरामदे में खामोशी छाई रही| पंद्रह मिनट और बीते और नेहा उठ गई, अभी वो आँखें मल रही थी की भौजी ने उसे पुकारा, और मैं उठ के उसकी चारपाई पे बैठ गया;

भौजी: नेहा ..बेटा इधर आओ|

नेहा उठ के उनके पास अपनी आँख मलते-मलते चली गई|

भौजी; बैठो बेटा.... मुझे आप को एक बात बतानी है|

मैं: नहीं...अभी नहीं....

भौजी: क्यों?

मैं: कहा ना अभी नहीं...अभी-अभी उठी है... कुछ खा लेने दो उसे|

भौजी: आप क्यों व्यर्थ में समय गँवा रहे हो.... !!!

मैं: नेहा...बेटा मेरे पास आओ!

भौजी उसे जाने नहीं दे रही थी...पर नेहा छटपटाने लगी और मेरे पास आ गई| इतने में अजय भैया चाट ले के आ गए| चाट देख के नेहा खुच हो गई, भैया ने एक प्लेट भौजी को दी;

अजय भैया: लो भाभी...चाट खाओ...देखो मूड एक दम फ्रेश हो जायेगा|

भौजी: नहीं भैया...मन नहीं है|

मैं: क्यों मन नहीं है? ठीक है...मैं भी नहीं खाऊँगा...

तभी अचानक से नेहा बोल पड़ी;

नेहा: मैं भी नहीं खाऊँगी!

जिस भोलेपन से उसने कहा था, उसको ऐसा कहते देख अजय भैया की हँसी छत गई पर हम दोनों अब भी एक दूसरे की आँखों इन देखते हुए सवाल-जवाब कर रहे थे| ऐसा लग रहा था मानो भौजी पूछना चाहती हों की आखिर मैं ये सब क्यों कर रहा हूँ? जब मुझे जाना ही है...तो मैं उन्हें क्यों हँसाना चाहता हूँ, क्यों नहीं मैं उनहीं रोता हुआ छोड़ जाता? और मेरी आँखें जव्वाब ये दे रहीं थी की ...मैं वापस आऊँगा... उन्हें अकेला नहीं छोड़ अहा..ना उनकी जिंदगी से कहीं जा रहा हूँ| ये तो बस भूगोलिक फासला है...मन तो मेरा उनके पास ही रहेगा ना!


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