Sunday, December 14, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--71

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--71

 सारी रात उल्लू की तरह जागता रहा...सोचता रहा की कैसे...आखिर कैसे उनसे ये कहूँगा! घडी देखि तो तीन बज रहे थे...और नींद थी की आने का नाम नहीं ले रही थी| धीरे-धीरे घडी की सुइयाँ चलती हुई ...टिक.टिक ..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक..टिक.. आखिर चार बजे और मैं उठ गया| बड़के दादा अब तक उठ जाते हैं और मुझे इतनी जल्दी उठा देख के मेरे पास आये, मैंने उनके पाँव हाथ लगाये;

बड़के दादा: जीते रहो मुन्ना...अभी तो चार बजे हैं, इतनी जल्दी क्यों उठ गए? एक घंटा और सो लो!

मैं: नहीं दादा...नहा धो के फ्रेश हो जाता हूँ|

बड़के दादा: शाबाश बेटे... जाओ नहा धो लो!

बड़की अम्मा ने हमें बातें करते देखा तो वो भी मेरे पास आईं और मैंने उनके भी पाँव हाथ लागए;

बड़की अम्मा: खुश रहो .... पर मुन्ना इतनी जल्दी काहे उठ गए?

मैं: जी आज आँख जल्दी खुल गई|

हालाँकि मेरी शक्ल कुछ और कह रही थी| अब जो इंसान रात भर सो न सका हो उसके चेहरे पे कुछ तो निशान बन ही जाते हैं और ये बात बड़की अम्मा भलीं-भाँती समझ चुकीं थी पर चूँकि वहाँ बड़के दादा भी थे, इसलिए कुछ नहीं बोलीं| मैं उठा...नहा-धो के तैयार हो गया और तब तक पांच बज चुके थे| घर में सब उठ चुके थे, सिवाय नेहा के! भौजी ने जब मुझे तैयार देखा तो खुद को पूछने से रोक नहीं पाईं;

भौजी: आप इतनी जल्दी उठ गए.... ? रात भर सोये नहीं थे क्या?

मैं: नहीं यार...आँख थोड़ा जल्दी खुल गई|

भौजी: सुबह-सुबह जूठ मत बोलो...नेहा ने सोने नहीं दिया होगा| नींद में उसे होश नहीं रहता ....लात मारी होगी इस लिए आप जल्दी उठ गए|

मैं: ना यार...ऐसा कुछ नहीं हुआ| सच में नींद जल्दी खुल गई थी!

तभी वहाँ पिताजी और माँ भी आ गए और उन्हें आता देख भौजी ने फ़ट से घूँघट काढ लिया और दोनों के पाँव छुए|

पिताजी: अरे मानु की माँ...लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!

माँ: हाँ... वरना ये लाड-साहब तो छः बजे के पहले बिस्तर नहीं छोड़ते थे पर जब से गाँव आएं हैं जल्दी उठने लगे हैं और आज तो हद्द ही हो गई? कितने बजे उठे हो जनाब?

मेरे जवाब देने से पहले ही वहाँ बड़की अम्मा आ गईं;

बड़की अम्मा: सुबह चार बजे!

पिताजी: हैं? क्या बात है लाड-साहब? रात में नींद नहीं आई क्या?

मैं: जी वो आँख जल्दी खुल गई| (मुझे दर था की कहीं बड़की आम कुछ कह नादें, इसलिए मैंने बात घुमाना ठीक समझा) अम्मा...चाय बन गई?

बड़की अम्मा भी उम्र में बड़ी थीं और सब समझती भी थीं इसलिए उन्होंने जान के कुछ नहीं कहा और मुझे अपने साथ रसोई घर ले गईं और मुझे सामने बैठा के चाय बंनाने लगीं|


 बड़की अम्मा: मुन्ना...सच-सच कहो....तुम रात भर सोये नहीं ना?

मैं: जी नहीं...

बड़की अम्मा: क्यों? (चाय में चीनी डालते हुए)

मैं: जी...रात भर सोच रहा था की उन्हें कैसे बताऊँगा की हम रविवार को जा रहे हैं? (मुझे छप्पर के नीचे कोई खड़ा हुआ दिखाई दिया, पर जब मैंने पास जाके देखा तो वहाँ कोई नहीं था|)

बड़की अम्मा: तो बेटा मैं बता देती हूँ|

मैं: जी मैं नहीं चाहता की उनका दिल टूटे! और खासकर ऐसे मौके पर जब वो माँ बनने वालीं हैं|

आगे बात हो पाती इसे पहले ही भौजी वहाँ आ गईं और मैंने अम्मा को इशारे से बात ख़त्म करने को कहा| मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने अम्मा के सामने ही मेरा हाथ पकड़ लिया!

भौजी: कहाँ जा रहे हो आप?

मैं: नेहा को उठाने|

भौजी: वो उठ गई है और तैयार हो रही है| आप बैठो...वैसे भी उसने रात भर सोने नहीं दिया आपको|

एक बार को तो मन हुआ की उन्हें अभी सब बता दूँ पर सुयभ-सुबह ऐसी खबर देना जिससे वो टूट जाएं ...मुझे ठीक नहीं लगा| हम दोनों तख़्त पे बैठ गए और जब चाय बनी तो भौजी ने सब को चाय दी और फिर अपनी और मेरी चाय लेके मेरे पास बैठ गईं| अम्मा भी अपनी चाय की प्याली ले के बड़के दादा के साथ बैठ के बातें करने लगीं और जाते-जाते मुझे इशारा कर गईं की मैं भौजी को सब अभी बता दूँ| पर मैंने ऐसा नहीं किया ...अब तो भौजी को भी लगने लगा था की मैं उनसे कुछ छुपा रहा हूँ|

भौजी: जानू...क्या बात है? आप मुझसे क्या छुपा रहे हो?

मैं: कुछ भी तो नहीं...मैं आपसे नाराज हूँ! (मैंने बात पूरी तरह से बदल दी)

भौजी: क्यों?

मैं: आजकी Good Morning Kiss नहीं दी आपने इसलिए!

भौजी: अभी दे देती हूँ!

मैं: सब के सामने?

भौजी: हाँ तो... ?

मैं: यहाँ नहीं... बाद में दे देना|

इतने में नेहा तैयार हो के आगई और मेरे गाल पे kiss किया और फिर उसके दूध पीने के बाद मैं उसे लेके स्कूल चल दिया| स्कूल छोड़ के आया तो देखा की भौजी नहा धो के तैयार हो गईं थीं और सब्जी काटने बैठी थीं, मुझे बड़की अम्मा भी खेत से आती हुई दिखाई दीं और उन्होंने दूर से ही इशारा करते हुए पूछा की क्या हुआ? मैंने गर्दन हिला के कुछ नहीं का जवाब दिया| मतलब मैंने अब तक भौजी को कुछ नहीं बताया था| मैं भौजी के सामने से गुजरा पर उनसे नजरें चुराता हुआ बड़े घर के आँगन में बैठ गया| मैं चारपाई पे सर झुका के बैठा था और मेरे ठीक सामने घर का द्वार था|


 करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी पाँव पटकती हुईं आई और जब मैंने उनके मुख को देखा तो उनकी आँखों से आँसूं छलछला रहे थे और बात साफ़ हो गई की किसी ने उनसे सब कह दिया है|

भौजी: (मेरी आँखों में देखते हुए) क्यों.....आखिर क्यों इतनी बड़ी बात छुपाई मुझे से? क्यों? सब जानते हुए ....आपने मुझे कुछ नहीं बताया... क्यों? आपको सब पहले से ही पता था ना....? क्यों मुझे उस शोक से बहार निकला...पड़े रहने देते मुझे उसी दुक में की आपकी शादी हो रही है.... उस दुःख में थोड़ा और दुःख जुड़ जाता ना...बस...सह लेती पर ...पहले खुद आपने मुझे उस दुःख से निकला ये कह के की भविष्य के बारे में मत सोचो और ....फिर इस नए दुःख का पहाड़ मुझे पे गिरा दिया!!!

मेरा सर झुक गया.... पर भौजी के अंदर जो गुबार था वो कम नहीं हुआ और उन्होंने सवालों की झड़ी लगा दी और मुझे बोलने का कोई अवसर ही नहीं दिया|

भौजी: मुझे ...बिना बताये चले जाना चाहते थे? क्यों....क्यों नहीं बताया की आप मुझे छोड़ के जाना चाहते हो? मन भार गया क्या मुझसे? Answer ME!!! O समझी.....इसीलिए कल आपको इतना प्यार आ रहा था मुझ पे! है ना? क्योंकि मुझे छोड़ के जा रहे हो? मैं ही पागल थी......जो आपको अपना समझ बैठी!!! आप....आप मुझसे जरा भी प्यार नहीं करते..... बस खेल रहे थे मेरे साथ...मेरे जज्बातों का मजाक उड़ा रहे थे! और मैं पागल ...आपको अपना जीवन साथ समझ बैठी! हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मुझे बस दग़ा ही मिला हर बार...पहले आपके भाई से....फिर आप से.... जाओ...नहीं रोकूंगी मैं आपको! और वैसे भी मेरे रोकने से आप कौन सा रूक जाओगे!


मैंने भौजी के आँसूं पोछने चाहे पर उन्होंने मुझे खुद को छूने तक नहीं दिया और पीछे हटते हुए कह दिया की;

भौजी: कोई जर्रूरत नहीं मुझे छूने की!

मैं: पर ...

भौजी बिना बात सुने पाँव पटक के जाने लगीं तो मैंने उन्हें रुकने के लिए पुकारा;

मैं: प्लीज मेरी बात तो सुन लो!

पर भौजी नहीं रुकीं! वो पाँव पटकते हुए तीन कदम आगे चलीं होंगी की उन्हें चक्कर आ गया और वो गिरने को हुईं..मैंने भाग के उन्हें अपनी बाँहों का सहारा देते हुए संभाला| भौजी बेहोश हो गईं थीं और उनकी ये हालत देख मेरी फ़ट गई! मैंने उन्हें अपनी गोद में उठाया और बरामदे में चारपाई पर लिटाया| मैं भौजी के गाल थप-थपाने लगा ...पर कोई असर नहीं...मैंने उनके सीने पे सर रखा की उनकी दिल की धड़कन सुनने लगा| दिल अब भी धड़क रहा था...मैंने फिर से उनके गाल को थप-तपाया पर वो कुछ नहीं बोलीं...मैं उन्हें पुकारता रहा पर कुछ असर नहीं हुआ| मैं उनके हथेली को छू के देखने लगा की कहीं वो ठंडी तो नहीं पड़ रही...फिर वो अब भी गर्म थी| फिर भी मैं तेजी से उनकी हथेलियाँ रगड़ने लगा| अब आखरी उपचार था C.P.R. पर फिर दिम्माग में बिजली से कौंधी और मैं स्नान घर भाग और वहाँ से एक लोटे में पानी ले कर आया और फिर कुछ छींटें भौजी के मुख पर मारी| पर भौजी के मुख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी| मैंने दुबारा छीटें मारी ...अब भी कुछ नहीं...तीसरी बार छीटें मारे तब जाके भौजी की पलकें हिलीं और मेरी जान में जान आई!

भौजी ने आहिस्ते से आँखें खोलीं …
मैं: (मेरी सांसें तेज-तेज थीं और धड़कनें बेकाबू थी) आप ठीक तो हो ना?

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख में आँसू छलछला उठे|

मैं: प्लीज मेरी बात सुन लो ...बस एक बार...उसके बाद आपका जो भी फैसला हो ग मुझे मंजूर है!

भौजी बोलीं कुछ नहीं बस दुरी ओर मुंह फेर लिया....


 और मैंने उनके सामने सारा सच खोल के रख दिया;

मैं: मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ...आपके लिए जान दे सकता हूँ| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे जाने के प्लान के बारे मैं कुछ नहीं पता था| कल जब सब ने हमें Dance करते हुए देह लिया और आप मुझे अकेला छोड़ के चले गए तब बातों-बातों में पिताजी से पता चला की हमें Sunday को जान है| उन्होंने चन्दर भैया को लखनऊ जाते समय टिकट लाने के लिए पैसे दिए थे| मैं सच कह रहा हूँ की मुझे इस बारे में पहले से कुछ नहीं पता था| कल मैंने आपको इसीलिए नहीं बताय क्योंकि मैं नहीं चाहता था की जिस दुःख से मैंने आपको एक दीं पहले बहार निकला था वापस आपको उसी दुःख में झोंक दूँ| कल आप कितना खुश थे...मेरा मन आपको कल के दीं दुःख के सागर में नहीं धकेलना चाहता था | इसीलिए माने कल के दीं आपसे ये बात छुपाई... मैं आज खुद आपको ये सब बताने वाल था| पर नाज़ां आपने किस्से ये सब सुन लिया? मैंने तो बड़की अम्मा तक को ये बात कहने से रोक दिया था जब आप चाय बना रहे थे| मैं सच कह रहा हूँ ...प्लीज मेरी बात का यकीन करो|

पर मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा ... उन्होंने अब तक मेरी और नहीं देखा था| मैंने हार मान ली...ज्योंकी अब मेरे पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे मैं भौजी को अपनी बात का यकीन दिल सकूँ| इधर मेरा मन मुझे अंदर से कचोट रहा था! तभी वहाँ बड़की अम्मा की आवाज आई;

बड़की अम्मा: मुन्ना सही कह रहा है बहु?

मैंने और भौजी ने पलट के देखा तो द्वार पे अम्मा खडीन थी और उन्होंने मेरी सारी बातें सुन ली थीं|

बड़की अम्मा: आज सुबह जब मैं चाय बना रही थी तो मैंने मुन्ना से कहा था की तुम्हें सब बता दे ...पर ये कहने लगा की चूँकि तुम पेट से हो और ऐसे में ये खबर तुम्हें और दुःख देगी| एक नहीं सुबह से दो बार मैंने इसे कहा पर नहीं, इसने तुम से कुछ नहीं कहा ... यहाँ तक की मैंने कहा की मैं ही बता देती हूँ पर इसने माना कर दिया कहने लगा की अगर भौजी का दिल टूटना ही है तो मेरे हाथ से ही टूटे तो अच्छा है!

भौजी ने जब ये सुना तो वो उठ के बैठ गईं और अम्मा के सामने मुझसे लिपट के रोने लगीं| मैंने उनके बालों में हाथ फिराया और उनहीं चुप कराने की कोशिश करने लगा पर भौजी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था|

भौजी: I'm sorry ! मैंने आपको गलत समझा!

मैं: Its alright ! मैं समझ सकता हूँ की आप पर क्या बीती होगी! अब आप चुप हो जाओ...

बड़की अम्मा: हाँ बहु...चुप हो जाओ!

भौजी चुप हो गईं पर मैं जानता था की ये उन्होंने सिर्फ अम्मा को दिखाने के लिए रोना बंद किया है|

भौजी: (सुबकते हुए) मैं ...खाना बनती हूँ|

मैं: नहीं.... आप खाना नहीं बनाओगे! अम्मा अभिओ-अभी ये बेहोश हो गईं थीं और मेरी जान निकल गई थी|

बड़की अम्मा: हाय राम! मुन्ना...तुम डॉक्टर को बुला दो|

भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ|

बड़की अम्मा: पर बहु...

भौजी: प्लीज अम्मा...अगर मुझे तबियत ठीक नहीं लगी तो मैं आपको खुद बता दूँगी| (मेरी ओर देखते हुए उन्होंने अपनी कोख पे हाथ रखा ओर बोलीं) मेरे लिए भी ये बच्चा उतना ही जर्रुरी है जितना आप सब के लिए!

बड़की अम्मा: (आश्वस्त होते हुए) ठीक है बहु .... मैं रसिका को कह देती हूँ| वो खाना बना लाएगी|

भौजी: नहीं अम्मा...मैं अब ठीक हूँ....

मैं: मैंने कह दिया ना...आप खाना नहीं बनाओगे| (मैंने हक़ जताते हुए कहा)

बड़की अम्मा: हाँ बहु....आराम करो

भौजी: पर ये उसकी हाथ की रसोई छुएंगे भी नहीं!

मैं: नहीं मैं खा लूँगा

बड़की अम्मा: क्यों भला? क्या उसके हाथ का खाना तुम्हें पसंद नहीं?

मैं: वो अम्मा मैं आपको बाद में बता दूँगा.. . आप रसिका भाभी से कह दो वो खाना पका लें|

बड़की अम्मा: बेटा अगर उसके हाथ का खाना पसंद नहीं तो मैं बना देती हूँ?

मैं: नहीं अम्मा...ऐसी कोई बात नहीं...मैं बाद में आपको सब डिटेल ...मतलब विस्तार से में बता दूँगा|

बड़की अम्मा: ठीक है!

अब बरामदे में केवल मैं ओर भौजी ही थे| भौजी लेटी हुईं थीं और मैं उनकी बहल में बैठा हुआ था|


 भौजी सिसकते हुए बोलीं;

भौजी: मैं आप पर इल्जाम पे इल्जाम लगाती रही पर आपने कुछ नहीं कहा?

मैं: आपने मौका ही नहीं दिया कुछ कहने का?

भौजी: I’m Terribly Sorry !

मैं: It’s okay! आज Friday है ..ता आज और कल दोनों दिन मैं आपके साथ रहूँगा...24 घंटे!

भौजी: सच?

मैं: बिलकुल सच? पर मेरी आपसे एक इल्तिजा है?

भौजी: हाँ बोलिए?

मैं: Sunday को आप एक बूँद आँसू नहीं गिराओगे?

भौजी ने हाँ में गर्दन हिला दी|

मैं: चलो अब मुस्कुराओ?

भौजी ने हलकी सी मुस्कान दी...जो मैं जानता था की नकली है पर कम से कम वो मेरी बात तो मान रहीं थीं| बाहर से वो पूरी कोशिश कर रहें थीं की सहज दिखें पर अंदर ही अंदर घुट रहीं थीं! जो की अच्छी बात नहीं थी! मुझे उन्हें उनकी घुटन से आजाद करना था...चाहे जो भी बन पड़े! दोपहर का खान बनने तक मैं भौजी के पास बैठ रहा और भौजी बहुत कम बोल यहीं थीं...जो बात मैंने नोट की वो थी की अब वो मुझे टक-टकी बांधे देख रहीं थीं...

मैं: क्या हुआ जान? ...कुछ बोलते क्यों नहीं...कुछ बात छेड़ो? बस मुझे देखे जा रहे हो?

भौजी: क्या बोलूं...अब तो अलफ़ाज़ ही कम पड़ने लगे हैं मेरी बदनसीबी सुनाने के लिए! बस सोचती हूँ की आपको इसी तरह देखती रहूँ और अपनी आँखों में बसा लूँ| नजाने फिर कब मौका मिले आपसे मिलने का?

मैं: ऐसा क्यों कहते हो? अभी पूरी जिंदगी पड़ी है... और मैं कौन सा विदेश जा रहा हूँ? बस एक दिन ही तो लगता है यहाँ पहुँचने में? जब मन करेगा आजाया करूँगा?

भौजी: (अपनी वही नकली मुस्कराहट झलकते हुए) नहीं आ पाओगे....

मैं: आपको ऐसा क्यों लगता है?

इतने में वहाँ अम्मा हम दोनों का खाना एक ही थाली में परोस लाईं|




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