Sunday, December 14, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--68

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--68

 फिर उसे गोद में लेकर सोने लगा..पर बिना कहानी के उसे कहाँ नींद आती| मैंने उसे कहानी बना के सुना दी और वो मुझसे लिपट के सो गई| मेरी आँखें भी भारी हो रही थीं और मैं भी सो गया| रात के बारह बजे भौजी मेरे कान में खुसफुसाई;

भौजी: उठो ना...

मैं: नहीं...नेहा डर जाती है रात को| कल पक्का ....

भौजी: जानू उसे तो सुला दिया आपने पर मुझे कौन सुलायेगा?

मैं: आज कैसे भी एडजस्ट कर लो ...कल से आपको पहले सुलाऊँगा|

भौजी: हुँह... कट्टी!!!

मैं: अरे सुनो...

पर भौजी कुछ नहीं बोलीं और अंदर जाके दरवाजा अंदर से बंद कर लिया| ये पहली बार था की मैंने उन्हें नाराज किया था| हालाँकि उनका गुस्सा दिखावटी था पर मुझे नींद जोर से आई थी...मैं सो गया और जब सुबह आँख खुली तो मौसम बहुत रंगीन था| आज बारिश होना तो तय था, बादल गरज रहे थे और मिटटी की मीठी सी महक हवा में जादू बिखेर रही थी| मोर की आवाज गूंज रही थी... और आज घर में पकोड़े बनने की तैयार हो रही थी|




रात में नेहा चैन से सोई थी और उसे कोई डर नहीं लगा| अभी भी वो सो रही थी और मैंने भी उसे नहीं उठाया बस उसे गोद में ले के बड़े घर आ गया क्योंकि बारिश कभी भी हो सकती थी और ऊपर से ठंडी हवाओं से मौसम थोड़ा ठंडा हो गया था| मैंने नेहा को बड़े घर के बरामदे में लिटा दिया और एक हलकी सी चादर उस पे डाल दी| मैं उसी चारपाई पे बैठ गया और ठंडी-ठंडी हवा का आनंद लेने लगा| सुबह-सुबह ठंडी-ठंडी हवा का चेहरे को छूना बड़ा मन भावन एहसास था| इतने में भौजी आ गईं;

भौजी: चलिए नहा धो लीजिये?

मैं: जाता हूँ...पहले आप बताओ की रात कैसे गुजरी आपकी?

भौजी: जानते हुए भी पूछ रहे हो?

मैं: सॉरी यार ... आज से ध्यान रखूँगा|

भौजी: रहने दो! आप बस अपनी बच्ची का ख़याल रखो| (भौजी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा था|)

मैं: ठीक है|

भौजी: चलो नहा लो!

और भौजी नेहा को गोद में उठा के तैयार करने चलीं गईं| करीब पाँच मिनट हुए थे की बारिश शुरू हो गई| मेरे मन में एक ख्याल आया, मैं घर पे हूँ या बाहर...बारिश शुरू होते ही मेरा मन भीगने को करता है| ये ऐसा खींचाव है जिसे मैं चाह कर भी नहीं रोक पता और भीगता अवश्य हूँ| फिर चाहे कितनी ही डाँट पड़े| ये बात भौजी को नहीं पता थी..केवल माँ और पिताजी जानते थे| तो आज भी मेरा मन बारिश में भीगने को किया| मैं चारपाई से उठा और आँगन में खड़ा हो गया| मुँह ऊपर कर के आसमान से गिरती बारिश की बूंदों को देखने लगा| बारिश की बूंदें जब मुख पे गिरतीं तो बड़ा सकून मिलता| वही सकूँ जो धरती को तपने पे बारिश की बूंदों के गिरने से मिलता| मेरी पीठ प्रमुख दरवाजे की ओर थी, ओर भौजी वहाँ कड़ी मुझे देख रहीं थीं|



फिर वो बोलीं;

भौजी: जानू...सर्दी हो जाएगी..अंदर आ जाओ|

मैं कुछ नहीं बोला बस शारुख खान की तरह बाहें फैला दीं|  



इस पोज़ में आसमान की ओर मुख कर के खड़ा था और भौजी मुझे अंदर आने को कह रहीं थीं पर मैं जानबूझ के उनकी बात को अनसुना कर रहा था| तभी अचानक वो भी पीछे से आके मुझ से चिपक गईं| उनके हाथ ठीक मेरे निप्पलों पर था जो टी-शर्ट के भीगने के कारन ओर ठन्डे पानी के कारन खड़े हो गए थे और टी-शर्ट के ऊपर से दिखाई दे रहे थे| मैंने भौजी के हाथों पे अपने हाथ रख दिए| शायद हमें आसमान से कोई देख रहा था जो इस दृश्य को और रोमांटिक बनाने में अपनी पूरी कसर लगा रहा था इसीलिए तो उसेन बारिश और बी तेज कर दी और अब हर बूँद जब नंगे शरीर जैसे हाथ या मुख पे पड़ती तो एक मीठी सी चोट का एहसास दिलाती|

मैं: कैसा लग रहा है भीग के?

भौजी: आपके साथ ....भीगने में और भी मजा आ रहा है|

मैं: मुझे लगा की आप नेहा को तैयार कर रहे हो?

भौजी: पिताजी (मेरे) ने मन कर दिया है की बारिश में स्कूल नहीं जाना| तो मैं यहाँ आपको देखने आई थी...मुझे पता था की आप इस बारिश में भीगने का कोई मौका नहीं छोड़ोगे!

मैं: (मैं भौजी की ओर पलटा ओर उन्होंने मुझे अब भी अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था|) पर आपको कैसे पता की मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है?

भौजी: नहीं पता था.... बस मन ने कहा!

मैं: ये संजोग ओ नहीं हो सकता की हमारा मन हमें एक दूसरे की पसंद ना पसंद और यहाँ तक की मानसिक स्थिति भी बता देता है?

भौजी: शायद हम आत्मिक रूप से भी जुड़ चुके हैं?

मैं: (भौजी की आँखों में आँखें डालते हुए) सच?

भौजी ने आँख बंद कर के सर हिलाया ओर हाँ में जवाब दिया|

 अब तो माहोल बिलकुल रोमांटिक हो गया था और मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थम और उनके होंठ जिन पे बारिश की एक बूँद ठहर गई थी उन्हें चूम लिया| भौजी भी मेरे चुम्बन का जवाब देने लगीं और मेरे होठों को पीने लगीं| मैं एक पल के लिए रुका क्योंकि मुझे डर था की कहीं कोई आ न जाए|

मैं: दरवाजा तो बंद कर लो?

भौजी: बंद नहीं कर सकते वरना अगर कोई आ गया तो शक करेगा की ये दोनों दरवाजा बंद कर के क्या कर रहे हैं?

मैं: फिर ??? (मैंने भौजी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से छोड़ दिया)

भौजी: पर मैंने दोनों दरवाजे आपस में चिपका दिए हैं|

मैं: तो???

भौजी: Do Whatever you want to do? You don’t need my permission? और वैसे भी इतनी बारिश में कौन है जो भीगता हुआ यहाँ आये?

मैं: (भौजी के चेहरे पे आई बारिश की बूंदों को उँगलियों से हटते हुए) जान.. आप भूल रहे हो की छतरी नाम की एक चीज होती है जो भीगने से बचाती है!

भौजी: नहीं भूली जानू...पर छतरियाँ आपके कमरे में रखीं हैं तो अब यहाँ कौन आएगा भीगता हुआ?

मैं: हम्म्म...तो अब तो मौका भी है...दस्तूर भी...

ये कहते हुए मैंने उन्हें बाहों में भर लिया और उन्हें बरामदे में लगे खम्बे के सहारे खड़ा कर दिया| खम्बे की चौड़ाई तीन फुट थी और वो छत तक लम्बा था| खमब ठीक प्रमुख द्वार के सामने थे तो यदि उसकी आड़ में कोई खड़ा हो तो बाहर से कोई देख नहीं सकता की कौन खड़ा है और तो और बरामदे का वो खमबा आँगन के पास था... और हम उसके पास खड़े हो कर भी बारिश में भीग रहे थे क्योंकि अचानक हवा के चलने से पानी की बौछारें हवा के साथ बहती हुई टेढ़ी हो गईं थी और हमें भिगो रहीं थीं| बारिश में भीगे होेने के कारन भौजी की साडी, ब्लाउज, पेयिकत सब उनके जिस्म से चिपक गया था| ऊपर से उन्होंने अंदर ना ही ब्रा पहनी थी और ना ही पेंटी! उनके स्तन कपड़ों से चिपक के पूरा आकर ले चुके थे! इधर मेरे पजामे में जो उभार था वो और भी बड़ा हो रहा था| मैंने और देर ना करते हुए, भौजी बाईं टाँग को उठाया और उसे मोड़ के दिवार के साथ चिपका दिया| भौजी की साडी और पेटीकोट ऊपर उठा दिया और इधर भौजी ने मेरे पजामे का नाड़ा खोल दिया, परन्तु उसमें इलास्टिक भी लगी थी तो वो नीचे नहीं गिरा| भौजी ने पजामा थोड़ा नीहे खिसका के मेरे लंड को बहार निकला और अपनी योनि पे सेट किया| मैंने आगे बढ़ के हल्का सा Push किया और लंड धीरे-धीरे अंदर जाने लगा| परन्तु भौजी की योनि आज पनियाई हुई नक़हीं थी इसलिए अंदर काफी घर्षण था| उन्हें ज्यादा तकलीफ ना हो इसलिए मैंने कोई जल्दी नहीं दिखाई और धीरे-धीरे अंदर धकेलने लगा| भौजी को थोड़ी तो तकलीफ हो रही थी जिसके कारन वो अपने पंजों पर कड़ी हो गईं ताकि लंड को अंदर जाने से रोक सकें| इसलिए मैं रूक गया और भौजी के होठों को चूमने लगा और उनके स्तनों को हाथ से मसलने लगा| मेरी इस प्रतिक्रिया से उनकी सिसकारी फूटने लगी|

"स्स्स्स्स..अह्ह्ह्ह...जाणुउउउ...उम्म्म्म्म्म ....!" मैंने नीचे से हल्का सा और Push किया तो उनकी योनि में घर्षण कम हो चूका था और लंड आसानी से अंदर जा रहा था| अब मैं पंजों पे खड़ा हो गया ताकि लंड पूरी तरह से अंदर चला जाए और अपने शरीर का सारा भार उनके ऊपर डाल दिया|

भौज जोरों से सिसियाने लगीं थीं और उन्होंने अपने बाएं हाथ से मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द फंदा कास लिया और दायें हाथ से मेरी पीठ और कमर को सहला रहीं थी| मैंने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और भौजी के मुंह से सीत्कारियां फूटने लगीं| अचानक से भौजी ने अपने दाँत मेरी गार्डन में धंसा दिए और वो चरमोत्कर्ष पे पहुँच गईं और स्खलित हो गईं| उनके रास से उनकी पूरी योनि गीली हो चुकी थी और अब मेरे हर Push के साथ लंड फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था| अब तो फच-फच की आवाज आने लगी थी और अब मैं भी चरमोत्कर्ष पे पहुँच गया और झड़ने लगा| झड़ने के बाद दोनों निढाल हो चुके थे और हम उसी खम्भे के सहारे खड़े थे| जब दोनों सामान्य हुए तो मैंने भौजी को चूमना शुरू कर दिया ...उनके चेहरे पे जहाँ भी पानी की बूँद पड़ती मैं उसे चूम के पी जाता| फिर मैंने अपने लंड को बहार निकला जो अब शिथिल हो गया था और उसके निकलते ही भौजी के योनि में जो हमारा बचा-खुचा रस था वो उनकी जाँघों से होता हुआ बहने लगा और बहार आ गया| 

भौजी गर्दन झुका के उस रस को बहता हुआ देख रहीं थीं, तो मैंने उनके चेहरे को ठुड्डी से पकड़ा और ऊपर उठाया| भौजी की नजरें झुकी हुई थी और मैंने उनके होठों को kiss किया| फिर हम अलग हुए और मैं वापस जखुले आँगन में आ गया;

भौजी: बस?

मैं: नहीं ... अब मन Couple Dance करने का कर रहा है|

भौजी: (शरमाते हुए) पर मुझे नहीं आता Dance!

मैं: तो मुझे कौन सा आता है! मैंने TV में देखा है...एक आधे step आते हैं और आज तो बस मन कर रहा है की आपको बाँहों में लेके किसी Slow Track पे Couple Dance करूँ|

भौजी: पर Radio कहाँ है?

मैं: कोई बात नहीं बस मन में जो गाना आये उसे गुनगुनाते हैं|

मैंने भौजी को अपने पास बुलाया और उनसे नीचे दिखे गए चित्रों की तरह चिपक के धीरे-धीरे Couple Dance करने लगे|  


हम इसी तरह से करीब दस मिनट तक Dance करते रहे और जो गाना हम गन-गुना रहे थे वो था "मितवा"; कभी अलविदा न कहना फिल्म का| फिर मैंने भौजी को अपने दायें हाथ की ऊँगली पकड़ा के उन्हें गोल-गोल घुमाया...भौजी बिलकुल बेफिक्र हो के घूम रहीं थीं और ठीक दो मिनट बाद तालियों की आवाज आने लगी| पीछे मुड़ के देखा तो सब खड़े थे (बड़की अम्मा, पिताजी, चन्दर भैया, अजय भैया और माँ)...बारिश की रिम-झिम बूंदें अब भी गिर रहीं थीं| ताली बजाने की शुरुवात रसिका भाभी ने की थी! सबको सामने देख के हम बुरी तरह झेंप गए ऊपर से भौजी ने घूँघट भी नहीं काढ़ा था| भौजी तो अपना मुँह छुपा के सब के बीच से होती हुई भाग गईं और मुझे वहां सबके सामने अकेला छोड़ गईं| नेहा भागती हुई आई और मेरे पाँव में लिपट गई|

माँ ने मेरी ओर तौलिया फेंका;

माँ: (गुस्से में बोलीं) ये ले.. और कपडे बदल|

मैंने तौलिया लिया और नेहा को बरामदे में जाने के लिए बोला ओर अपने कमरे में घुस के खुद को पोंछा और कपडे बदल के आ गया|


बाहर बरामदे में सब बैठे थे और मैं भी वहीँ जाके खड़ा हो गया, खम्बे का सहारा ले के|

चन्दर भैया का तो मुँह सड़ा हुआ था, माँ भी गुस्से में थीं, पिताजी हालाँकि जानते थे की मैं बड़ा ही शांत सौभाव का हूँ पर उन्हें ये पता था की मैं भौजी को दोस्त मानता हूँ और उनके साथ बड़ा Open हूँ; बड़की अम्मा मुस्कुरा रहीं थी क्योंकि एक वो ही थीं जो की मेरी गलतियों पे पर्दा डाल दिया करती थीं और सब को चुप करा दिया करती थीं और अजय भैया, वो मेरे चंचल सौभाव के बारे में थोड़ा जानते थे और बैठे हुए मुस्कुरा रहे थे|

पिताजी: क्यों रे नालायक...ये क्या हो रहा था?

माँ: हाँ ... तुझे शर्म नहीं आती...अपनी भौजी के साथ बेशर्मी से नाच रहा था?

मैं: जी...नाच ही तो रहा था!

माँ: जुबान लड़ाता है?

पिताजी: लगता है कुछ ज्यादा ही छूट दे दी इसे?

बड़की अम्मा: अरे क्या हुआ? नाच ही तो रहा था...अपनी भौजी के साथ| थोड़ी दिल्लगी कर ली तो क्या हर्ज़ है? कम से कम बहु का मुँह तो खिला हुआ था, देखा नहीं आज कितना खुश थी और भूल गए सब...डॉक्टर साहिबा ने भी तो कहा था की उसे खुश रखें| आज है तो थोड़ा लाड-प्यार करता है...कल नहीं होगा तो?

मैंने सर झुका रखा था और बड़की अम्मा की बातें सुन रहा था पर जब उन्होंने कल नहीं होगा कहा तो मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई| इतने दिनों में मैं भूल ही गया की हमें वापस भी जाना है..और इस प्यार-मोहब्बत में एक महीने कैसे फुर्र हुआ पता ही नहीं चला| अब मेरी शक्ल पे जो बारह बजे थे वो सब देख सकते थे और पिताजी ने भी जब ये बारह बजे देखे तो उन्होंने घडी ही तोड़ डाली ये कह के;

पिताजी: जब से आया है तब से अपनी लाड़ली नेहा (जो भौजी के पास थी|) और अपनी भौजी के साथ घूम रहा है| हमारे पास बैठे तब तुझे पता चले की मैंने तेरे चन्दर भैया को पैसे दिए थे टिकट बुक करवाने के जब ये और अजय लुक्खनऊ जा रहे थे की वापसी में टिकट लेते आना|

अब मेरी हालत तो ऐसी थी जैसे ना साँस अंदर जाए ना बहार आये! अब अगर ये बात भौजी को पता चली तो वो रो-रो कर अपनी तबियत ख़राब कर लेंगी| पिछली बार जब मजाक किया था तो उन्होंने खाट पकड़ ली थी और अब तो सच में जा रहा हूँ तब तो..... अब मुझे कैसे भी ये बात उनसे आज के दिन तो छुपानी थी वरना आज जो वो थोड़ा हंसी-खेलीं हैं वो वापस गम में डूब जाएँगी| जब चन्दर भैया की ओर देखा तो लगा जैसे उनके मन में अंदर ही अदंर लड्डू फुट रहे हों| बड़ी मुश्किल से वो अपनी ख़ुशी छुपाये हुए थे! अब मुझे बहुत सोच-समझ के आजका दिन बिताना था वरना मेरे चेहरे पे उड़ रही हवाइयाँ भौजी को गम में डूबा देतीं|
 
 


 बड़की अम्मा: चलो मुन्ना...तुमहिं रविवार को जाना है..तब तक मैं तुम्हें तुम्हारी मन पसंद की साड़ी चीजें खिलाऊँगी| पर पहले पकोड़े खाने का समय है|

मैं: जी!

मैं सब के साथ रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे बैठा था...बस मन में एक ही बात खाय जा रही थी की चलो मैं खुद को जैसे-तैसे रोक लूँगा पर अगर कोई और उनके पास जाके उनसे ये कह दे की हम वापस जा रहे हैं तो? इसका बस एक ही तरीका था की मुझे साये की तरह आज उनके आस-पास रहना होगा|
खेर बड़की अम्मा ने पकोड़े बनाने शुरू किये और तेल की खुशबु पूरे घर में महक रही थी| पकोड़े बनने के बाद, गर्म-गम चाय....वाह बही वाह ! पर काश ....काश मैं ऐसा कह पाता! मैंने पनि पलटे में पकोड़े लिए और चाय की प्याली हाथ में पकडे भौजी के घर में घुस गया| भौजी कमरे में अपना मुँह छुपाये बैठी थीं| उन्हें इस तरह देख के मेरी हँसी छूट गई, मेरी हँसी सुन के भौजी ने अपने मुख से हाथ हटाया;

भौजी: जानू बड़ी हँसी आ रही है आपको? पहले तो खुद मुझे dance करने में फँसा दिया| अब घर वाले सब क्या कहते होंगे?

मैं: मैंने फँसा दिया? आप मुझे वहां सब के सामने अकेला छोड़ के भाग आये उसका क्या? (मैंने प्यारभरे लहजे में उनसे शिकायत की)

भौजी: हाय राम! क्या कहा सबने?

मैं: ये तो शुक्र है की बड़की अम्मा ने बात को संभाल लिया और इसे दिल्लगी का नाम दे दिया वरना तो....(मैंने बात अधूरी छोड़ दी)

भौजी: वैसे जानू...उन्होंने सच ही तो कहा| (भौजी ने आँख मारी)

मैं: हाँ... चलो अब ये पकोड़े खाओ|

भौजी: आप खाओ मैं और ले आती हूँ|

मैं: वहां सब बैठे हैं...अब भी जाओगे?

भौजी: हाय राम! ना बाबा ना...नेहा...सुन बीटा..जाके एक प्लेट में और पकोड़े ले आ फिर हम तीनों बैठ के खाते हैं|

नेहा बाहर भागी और एक दूसरी पलटे में और पकोड़े और एक गिलास में चाय ले आई| हम तीनों ने मजे से पकोड़े खाय और अब पलटे में आखरी पीस बचा था| हम तीनों ने एक साथ उस पे हाथ मारा और वो पकोड़ा नेहा के हाथ लगा तो हम दोनों मुँह बनाने लगे| पर वो बच्ची इतनी छोटी नहीं थी| उसने उस पकोड़े के तीन टुकड़े किये और एक मुझे दिया, एक नभौजी को और एक खुद खा गई| मैंने नेहा के सर पे हाथ फेरा और ये भी नहीं देखा की मेरे वाले टुकड़े में हरी मिर्च थी जो जैसे ही दांतों तले आई तो मेरी सीटी बज गई| मेरे मुँह से "सी..सी..सी..सी..सी.." की आवाज निकलने लगी और नेहा खिल-खिला के हँसने लगी| शुरू-शुरू में तो भौजी ने भी मेरी सी..सी..सी.. का मजा लिया पर जब उन्हें लगा की मुझे कुह ज्यादा ही तेज मिर्ची लगी है तो नाजाने उन्हें क्या सूझी और उन्होंने मेरे होठों को kiss कर लिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी| उनके मुख से मुझे गोभी के पकोड़ी की सुगंध आ रही थी और करीब दो मिनट की चुसाई के बाद मेरी मिर्ची कुछ कम हुई| नेहा तक-तक़ी लगाये हमें देख रही थी और हम जब अलग हुए तो भौजी और मैं फिर एक बार झेंप गए| फिर हमने चाय पी और मैं उठ के बाहर आ गया| मैं और नेहा आँगन में खेल रहे थे ...नेहा ने बोल फेंकी और मैंने कुछ ज्यादा ही तेज शॉट मारा और बोल हवा में ऊँची गई..तभी मुझे चन्दर भैया भौजी के घर की ओर जाते हुए दिखाई इये ओर मुझे लगा की कहीं वो भौजी से सब बता ना दे! मैं भी उनके पीछे-पीछे जाने लगा इतने में फिसलन होने के कारन नेहा गिर पड़ी| मैं उनके पीछे नहीं गया ओर नेहा को उठाने के लिए भागा| मैंने नेहा को तुरंत उठाया..उसकी फ्रॉक मिटटी से सन गई थी..मैंने उसे गोद में उठाया और चूँकि वो रो रही थी तो उसे थोड़ा पुचकारा और चुप कराया फिर मैंने भौजी के घर के बहार पहुसंह के रूक गया और अंदर की बात सुनने लगा;

चन्दर भैया: (टोंट मारते हुए) मुझे नहीं पाता था की तुम्हें नाचना बड़ा अच्छा लगता है? खेर कर लो ऐश जब तक.......

इससे पहले की वो आगे कछ बोलते मैंने दरवाजे पे जोरदार मुक्का मारा और धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गया|

मैं: उनकी कोई गलती नहीं है....मैंने उन्हें आँगन में खींच था जिससे वो भीग गईं|

चन्दर भैया ने मेरी ओर देखा ओर उनकी नजरों में चुभन साफ़ महसूस हो रही थी| अब तो मेरे और चन्दर भैया के बीच रिश्ते ऐसे थे जैसे की कभी रूस ओर अमेरिका के बीच थे| अंग्रेजी में जिसे Cold War कहते हैं| दोनों में से जो भी पहले हमला करे...जवाब देने को सामने वाल पूरी तरह से तैयार था| भैया कुछ नहीं बोले और चले गए और मैंने फ़ौरन बात घुमा दी और भौजी से नेहा के कपडे बदलने को कहा;

भौजी: अरे आप दोनों मिटटी में खेल के आरहे हो क्या?

मैं: वो हम क्रिकेट खेल रहे थे और बोल लेने को नेहा भागी और फिसल गई|

भौजी: पर आपको इसे गोद में लेने की क्या जरुरत थी? खामखा आपने अपने कपडे भी गंदे कर लिए|

मैं: आप हो ना ...

भौजी ने अपने निचले होंठ को काटा और बोलीं;

भौजी: हाँ..हाँ.. मैं तो हूँ ही आपके लिए!

जवाब में मैंने भौजी को आँख मारी और अपने कपडे बदलने चला गया|




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