Sunday, December 14, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--67


 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--67

 मन तो कह रहा था की कहीं और चल पर तभी बड़की अम्मा आ गेन और वो नाश्ते के लिए मुझे जोर दे के अपने साथ ले गईं| करीब पंद्रह मिनट बाद भौजी वहाँ आईं... उनकी आँखें नाम थीं...जैसे अभी-अभी रो के आईं हों| मैंने नाश्ते की प्लेट भौजी की ओर बढ़ा दी, क्योंकि मैं जानता था की वो मुझे कभी मना नहीं करेंगी| भौजी ने प्लेट ले ली और नास्ते के कुछ समय बाद, ठाकुर साहब ओर सुनीता दोनों चले गए| अब घर की बैठक में हिस्सा लेने की बारी थी| मैं जानता था की अब मुझे से सवाल जवाब किया जायेगा इसलिए मैं मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार था| एक चारपाई पे मैं बैठ था ओर मेरी ही बगल में अजय भैया ओर चन्दर भैया बैठ थे| दूसरी पे पिताजी ओर बड़के दादा| तीसरी चारपाई पे माँ, बड़की अम्मा ओर भौजी बैठ थे| हमेशा की तरह भौजी ने डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़ा हुआ था| रसिका भाभी को इस बैठक से कोई सरोकार नहीं था इसलिए उन्होंने इसमें हिस्सा लेने की नहीं सोची| इससे पहले की बात शुरू हो, वरुण को लेने रसिका भाभी के मायके से कोई आ गया था| जाने से पहले वरुण मुझसे मिलने आया, मुझसे गले मिला ओर "बाय चाचू" कह के चला गया| हैरानी की बात ये थी की उसने किसी और को कुछ नहीं कहा ओर ना ही उसके जाने से किसी को कोई फर्क पड़ा|

वरुण के जाने के बाद बैठक शुरू हुई!

पिताजी: बेटा हम तुम्हें डांटने-फटकारने के लिए यहाँ नहीं बैठे हैं| तुम ने जो किया अपनी समझ से किया और शायद ये सही फैसला भी था...

मैं: आपकी बात काटने के लिए क्षमा चाहता हूँ पिताजी पर मुझे आपको एक बात पे सफाई देनी है|

पिताजी: हाँ..हाँ बोलो

मैं: मेरा ये फैसला पक्षपाती था ... (ये सुन के भौजी की गर्दन झुक गई| शायद वो ये उम्मीद कर रहीं थीं की मैं आज सब सच कह दूँगा|)

मैं: वो इंसान है सुनीता! वो इस शादी के लिए कतई राजी नहीं थी| केवल अपने पिताजी के प्यार में विवश होकर हाँ कर रही थी| वो आगे और पढ़ना चाहती है...और उसके पिताजी दो साल में गोना करना चाहते हैं| इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए मैंने ना कहा|

मेरा निर्णय बदलने के लिए ये बात पूरी तरह सच नहीं थी, पर सच तो मैं बोल ही नहीं सकता था ना!!!

पिताजी: बेटा हमें तुम्हारे निर्णय पे कभी संदेह नहीं था|

बड़के दादा: रही शादी की बात तो आज नहीं तो कल ...शादी तो होगी ही|

बड़के दादा ने ये बात बड़े तरीके से बोली की सभी हँस पड़े...सिवाय मेरे और भौजी के! खेर बात ख़त्म हुई और सब अपने-अपने काम में लग गए| पर मुझे अब भी एक बात पिताजी से पूछनी थी की आखिर उनका मेरे प्रति व्यवहार ऐसे कैसे बदल गया| पिताजी के खेतों की तरफ जाते हुए दिखाई दिए;

मैं: पिताजी...आपसे कुछ पूछना था|

पिताजी: हाँ बोलो|

मैं: आज से पहले आपने कभी मुझे इतनी छूट नहीं दी की मैं अपनी मर्जी से फैसला कर सकूँ|

पिताजी: वो इसलिए बेटा की अब तुम बड़े हो गए हो...अब मैं तुम्हें बाँध के नहीं रख सकता| यदि ऐसी कोशिश भी की तो तुम नहीं मानोगे...... इसलिए अब मैं फैसले तुम पर छोड़ देता हूँ| अगर तुम कोई गलत फैसला लोगे तो मैं तुम्हें रोकूँगा अवश्य| समझे?

मैं: जी

पिताजी: मैं चलता हूँ...भाईसाहब (बड़के दादा) के साथ कहीं जाना है|

और पिताजी चले गए ...


 अब मैं अकेला रह गया था...इधर नेहा की स्कूल की घंटी बजी तो मैं उसे लेने चल दिया| मैं नेहा को ले कर घर आ रहा था| आज नेहा मेरी गोद में नहीं थी बल्कि मेरी ऊँगली पकड़ के चल रही थी| हम घर पहुंचे और मैं नेहा को सीधा भौजी के घर में ले गया| उसका बैग उतार के सही जगह रखा, फिर उसके कपडे बदले और उसके बाल बना रहा था| मेरी पीठ दरवाजे की तरफ थी और नेहा का मुँह मेरी तरफ था| अचानक नेहा हंसने लगी;

मैं: क्या हुआ नेहा? क्यों हँस रहे हो? (मैंने मुस्कुराते हुए पूछा)

तो नेहा ने अपने मुँह पे हाथ रख के अपनी हंसी रोकी| इतने में पीछे से आके किसी ने मेरी छाती पे अपने हाथ रखे और मुझसे चिपक गया| जब गर्दन पे गर्म सांस का एहसास हुआ तो पता चला की ये भौजी हैं|

भौजी: चलो खाना खा लो|

मैं: हम्म्म ...

भौजी: मेरे साथ खाना खाओगे या अकेले? (ये उन्होंने इसलिए पूछा था ताकि उन्हें ये पता चले की कहीं मैं उनसे नाराज तो नहीं|)

मैं: आपके साथ

भौजी: फिर आप यहीं रुको... मैं हमारा खाना यहीं ले आती हूँ| फिर मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी हैं|

भौजी खाना ले आईं और पहले मैंने नेहा को खिलाया और फिर हमने खाया|


 खाना खाने के पश्चात भौजी और मैं अलग-अलग चारपाई पे लेट गए| बात की शुरुवात भौजी ने की;

भौजी: क्या आपको मुझसे पहले कभी किसी से प्यार हुआ है?

मैं: आज ये सवाल क्यों?

भौजी: पता नहीं बस मन ने कहा...

मैं: हाँ हुआ है... एक बार नहीं तीन बार...पर मैं नहीं जानता की वो प्यार था या.... जब मैं L.K.G में था...तब मुझे एक लड़की बहुत अच्छी लगती थी| गुड़िया जैसी ... हमेशा मुस्कुराती हुई| मेरे जीवन का पहला kiss उसी के साथ था| Sliding वाले झूले के नीचे ... मैंने उसे पहली बार kiss किया था| उसके बाद जब मैं सातवीं में आया था तब हमारी क्लास में एक नई लड़की आई थी... गोल-मटोल सी थी और उस पे क्लास के सबसे कमीने तीन लड़के मरते थे| मैं तो उसके लिए जैसे पागल था...उसके आते ही मेरा ड्रेसिंग सेंस बदल गया| सुबह मैं बड़ा सज-धज के स्कूल जाता था...नहीं तो पहले जबरदस्ती स्कूल जाया करता था| पर उसके आने के बाद...कमीज एक दम इस्त्री की हुई..क्रीज वाली इस्त्री...शर्ट ढंग से अंदर की हुई, बालों में GEL !!! बालों को रोज अलग-अलग तरीके से बनता था... उसके घर के नंबर के लिए उसके दोस्त से सिफारिश की| पर उसकी दोस्त कामिनी निकली और उसे जा के साफ़ बता दिया| और जब उसने मेरी ओर पलट के देखा तो मेरी हालत खराब हो गई| उसकी सहेलियों को कितना मस्का लगाया...खिलाया-पिलाया... पर ना...आखिर एक दिन उसका नंबर मिल ही गया| मैं उसे फ़ोन करता पर कभी हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ| फिर एक दिन उसके साथ बैठने का मौका भी मिला पर कुछ नहीं बोल पाया...उसके सामने मेरी नानी मर जाती थी| फिर एक दिन पता चला की वो किसी और से प्यार करती है| दिल टूट गया ...पर कुछ समय बाद भूल गया! फिर जब दसवीं में था तो एक लड़की की तरफ आकर्षित हुआ...पर इससे पहले की उसे कुछ कह पाता...बोर्ड के पेपर से एक महीना बचा था...और वो आखरी दिन था जब मैंने उसे अपने सामने देखा था... उसके बाद एक महीने तक कोई बात नहीं..मैं तो शक्ल भी भूल गया था| बोर्ड के पेपरों के दौरान उससे मिला...पर कोई बात नहीं कह पाया| उसके बाद उसने स्कूल बदल लिया| उसके बाद कान पकडे की कभी प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूंगा| पर फिर आप मिले... और आगे आप जानते हो|

भौजी: पर इकरार तो पहले मैंने किया था ना?

मैं: इसी लिए तो मर मिटा आप पर!

कुछ देर चुप रहने के बाद भौजी बोलीं;

भौजी: आप अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ|

मैं: हाँ बोलो!


 भौजी: आज सुबह से मैं कुछ सोच रही थी... मैंने सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार किया है...जब शादी हुई तो मन में बहुत हसीं सपने थे, जैसे की हर लड़की के मन में होते हैं| पर सुहागरात में जब अपने ही पति के मुँह से अपनी ही बहन का नाम सुना तो....सारे सपने टूट के चकना चूर हो गए| पर उसके बाद हमारे बीच जो नजदीकियाँ आईं ... क्या वो गलत नहीं? नाजायज नहीं? मुझे में और आपके भैया में फर्क क्या रहा|

मैं: आपकी इस बात का जवाब मेरे पास तो नहीं...और अगर होता भी है तो...मेरे कहने से शायद उस बात के मायने बदल जाएँ! आपके सवाल का जवाब आपके ही पास है|

भौजी: वो कैसे?

मैं: आप मेरे कुछ सवालों का जवाब हाँ या ना में दो...और सोच समझ के देना|

भौजी: ठीक है|

मैं: सबसे पहले ये बताओ की आप मुझे उतना ही चाहते हो जितना आप ने शादी से पहले सोचा था की आप अपने पति से प्रेम करोगे?

भौजी: हाँ

मैं: आपके पति ने आपसे धोका किया ये जानने के बाद आपके दिल में आपके पति के प्रति कोई प्रेमभाव नहीं रहा?

भौजी: हाँ

मैं: अगला सवाल थोड़ा कष्ट दायक है, पर आपके मन की शंका दूर करने के लिए पूछ रहा हूँ वरना मैं आप पर पूरा भरोसा करता हूँ| क्या शादी से पहले आपने कभी भी किसी के साथ सम्भोग किया था?

भौजी: बिलकुल नहीं|

मैं: सबसे अहम सवाल...थोड़ा सोच समझ के जवाब देना.... अगर आपका पति आपके प्रति ईमानदार होता...मतलब उनका किसी भी स्त्री के साथ कोई भी शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध नहीं होता तो क्या फिर भी आप मुझसे प्यार करते? मेरे इतना नजदीक आते?

भौजी: (कुछ सोचते हुए) कभी नहीं!

मैं: अब मैं आपको इस सवाल जवाब का सार सुनाता हूँ| शादी से पहले आपके मन में कुछ सपने थे की आपका पति सिर्फ आपका होगा और किसी का नहीं .... परन्तु जब शादी के बाद सुहागरात में आपने अपने ही पति के मुँह से अपनी बहन का नाम सुना वो भी तब जब वो आपके साथ सम्भोग कर रहे थे तो आपका मन फ़ट गया| आप को वो प्यार नहीं मिला जिसकी आपने अपने पति के प्रति अपेक्षा की थी| शादी से पहले भी और शादी के बाद भी आपके मन में किसी और मर्द के प्रति कोई दुर्विचार नहीं आय| परन्तु मेरे प्रति आपके आकर्षण ने आपको हद्द पार करने पर विवश कर दिया और वो आकर्षण प्यार में तब्दील हो गया| केवल आपके लिए ही नहीं मेरे लिए भी...हमने शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये वो भी केवल प्रेम में पड़ कर| परन्तु उससे पहले जब आप मेरे गालों पे काटते थे तो मुझे वो एहसास बहुत अच्छा लगता था| उसके आलावा मेरे मन में कभी ही आपके साथ सम्भोग करने की इच्छा नहीं हुई...होती भी कैसे उस उम्र में मुझे इसके बारे में कुछ ज्ञान भी नहीं था| परन्तु जब आप हमारे घर दूसरी दफा आये और आपने अपने प्रेम का इजहार किया तब से...तब से मेरे मन में आपके प्रति ये गलत विचार आने लगे| जो की गलत था...मेरे मन में आपके प्रति समर्पण नहीं था| परन्तु मैंने कभी भी सपने में नहीं सोचा की मैं आपके साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती करूँ और आज तक मैंने कभी भी आपके साथ जबरदस्ती नहीं की जिसे कल रात आपने जिझक का नाम दे दिया था| पर कुछ महीना भर पहले जब हमने पहली बार सम्भोग किया तब...मेरे मन में ग्लानि होने लगी पर आपके प्यार ने मुझे उस ग्लानि से बहार निकला और मैंने खुद को आपके प्रति समर्पित कर दिया|

यदि अचन्देर भैया ने आपके साथ वो धोका नहीं किया होता...आपकी अपनी छोटी बहन के साथ वो सब नहीं किया होता तो आपका मेरे प्रति ये प्यार कभी नहीं पनपता| रही अनैतिकता की तो.... समाज में हमारे रिश्ते के बारे में कोई नहीं जानता| रसिका भाभी जानती हैं पर उनकेजैसे लोग जिनके खुद के अंदर वासना भरी है वो इसे अनैतिक ही कहेंगे, परन्तु अगर कोई सच्चा आशिक़ इस कहानी को सुनेगा तो वो इसे "प्रेम" ही मानेगा| क्योंकि प्यार किया नहीं जाता....उसके लिए दिमाग नहीं चाहिए... बस दिल चाहिए और जब दो दिल मिल जाते हैं तो उस संगम को ही एक दूसरे के प्रति "आत्मसमर्पण" कहा जाता है|

इस समय मेरी और आपकी हालत एक सामान है| हम दोनों ही नहीं चाहते की कोई तीसरा हमारे बीच आये और हम दोनों ही ये जानते हैं की एक समय आएगा जब कोई तीसरा बीच में होगा परन्तु तब....तब आपके पास मेरी एक याद होगी| (ये मैंने उनकी कोख पे हाथ रखते हुए कहा)
ये याद हम दोनों को आपस में जोड़े रखेगी|

भौजी की आँख में आंसूं छलक आये थे.. शायद उनको उनकी दुविधा का जवाब मिल गया था|मैंने उनके आंसूं पोछे और उनके होठों को चूमा|


 मैं: अच्छा अब बाबा मानु जी का प्रवचन समाप्त हुआ...अब आप हमें अदरक वाली चाय पिलायें अथवा बाबा जी क्रोधित हो जायेंगे और फिर वो क्या दंड देते हैं आपको पता है ना?

भौजी: ही..ही..ही.. जो आज्ञा बाबा जी! आपके दंड से बहुत डर लगता है! आप सारा दिन हमें तड़पाते हो और फिर रात में हमें बिना मांगे ही वरदान दे देते हो| इसलिए हम आपको अभी एक कड़क चाय पिलाते हैं|

इतना कह के भौजी चाय बनाने चलीं गईं और उनके मुख पे आई मुस्कराहट ने मेरी आधी चिंता दूर कर दी थी| मैंने नेहा को जगाया और उसकी किताब खुलवाई.... किताब में जितने चित्र थे सब पर उसने क्रेयॉन्स से निशाँ बना दिए थे| उन चित्रों को देख मुझे मेरे बचपन की बात याद आ गई और मैं हँस पड़ा| भौजी अंदर अदरक लेने आइन और मुझे हँसता हुआ देख मेरी ओर देख के मुस्कुराने लगीं|

भौजी: आप हँसते हुए कितने प्यार लगते हो! प्लीज ऐसे ही मुस्कुराते रहा करो|

मैं: मेरी हंसी आपसे जुडी है...आप अगर उदास रहोगे तो मैं कैसे मुस्कुरा सकता हूँ|

भौजी मेरी बात पे मुस्कुराईं और हाँ में सर हिलाके मेरी बात का मान रखा| बातें सामान्य हो गईं थी और अब कोई शिकवा नहीं था! चाय पीने के बाद मैं नेहा को साथ ले के बाग़ तक टहलने निकला| वहाँ पहुँच के देखा तो आग में आम के पेड़ थे और उनपे कच्चे आम लगे थे| मन किया की कुछ आम तोडूं और नेहा ने भी जिद्द की तो मैंने एक पत्थर का ढेला उठाया और मारा...पर निशाना नहीं लगा| फिर नेहा ने मारा...वो तो चार फुट भी नहीं गया और गिर गया| मैं हँस पड़ा...फिर मैंने नेहा से कहा की आप मिटटी के ढेले उठा के लाओ मैं मारता हूँ| नेहा एक-एक कर ढेले मुझे देती और मैं try करता| एक आध ढेला लग भी जाता परन्तु कमबख्त आप टूटता ही नहीं| मैंने देखा झाडी में एक डंडा पड़ा था, करीब आधे फुट का होगा| मैंने उसे घुमा के मार तो एक आम गिरा, नेहा उसे उठा लाइ| वो आम आधा पका हुआ था शायद इसीलिए टूट गया| मैंने उस आम को जेब में डाला और चूँकि कुछ अँधेरा हों लगा था तो हम वापस घर की ओर चलने लगे|


इतने में बाग़ से किसी ने मुझे पुकारा, ये सुनीता थी|

मैं: Hi ! कैसे हो आप?

सुनीता: ठीक हूँ...आपको शुक्रिया कहना था|

मैं: किस लिए?

सुनीता: आपके फैसले के लिए|

मैं: मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया...मैं भी यही चाहता था|

इतने में सुनीता ने एक थैली मेरी ओर बढ़ा दी|

मैं: ये क्या है?

सुनीता: आम हैं|

मैं: पर मुझे मिल गया...ये देखो (मैंने सुनीता को आम दिखाया)

सुनीता: हाँ..हाँ... मैंने आपका निशाना देखा है| अर्जुन की तरह निशाना लगाते हो!

मैं: तो आप छुप के मेरा निशाना देख रहे थे!

सुनीता: हाँ

मैं: पर आप यहाँ कर क्या रहे थे...I MEAN आप जो भी कर रहे थे मैंने उसमें आपको Disturb तो नहीं किया?

सुनीता: ये हमारा बगीचा है|

मैं: ओह सॉरी!

सुनीता: किस लिए?

मैं: बिना पूछे मैं यहाँ आम तोड़ रहा था|

सुनीता: यहाँ कोई कानून नहीं है| कोई भी तोड़ सकता है..वैसे भी हम दोस्त हैं तो आपको पूछने की भी कोई जर्रूरत नहीं थी| दरअसल मैं आपके घर ही आ रही थी ये आम देने, पिताजी ने भेजे हैं सब के लिए|

मैं: तो आप ही दे दो...

सुनीता: ठीक है...वैसे आप घर ही जा रहे हो ना?

मैं: हाँ क्यों?

सुनीता: रास्ते में बात करते हुए चलते?

मैं: Sure !


 मैंने नेहा को गोद में उठाया ओर उसे मेरे द्वारा तोडा हुआ आम दे दिया| नेहा से सब्र नहीं हुआ ओर वो उसे मुँह में भर के दाँतों से काटने लगी| जैसे ही उसने पहली Bite ली उसे जोरदार खटास का एहसास हुआ और वो मुँह बनाने लगी| जैसे किसी छोटे बच्चे को आप निम्बू चटा दो तो वो कैसे मुँह बनाने लगता है| नेहा को मुँह बनाते देख दोनों खिल-खिला के हंसने लगे| ये हंसी दोनों के लिए जर्रुरी थी क्योंकि सुनीता भी बहुत दबाव में थी| घर पहुँच के सुनीता ने बड़की अम्मा को आम दिए और सब बहुत खुश थे| फिर बड़की अम्मा ने भी गुड के लड्डू बनाये थे| तो उन्होंने वो लड्डू टिफ़िन में पैक कर के दिए| सुनीता ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौट गई और भौजी के मन में मेरे और सुनीता के बीच कुछ भी नहीं है ये देख के संतुष्टि हुई| ठाकुर साहब बुरे इंसान नहीं थे और ये बात उनके व्यवहार में साफ़ झलकती थी| कछ देर बाद पिताजी और बड़के दादा घर लौटे और उन्हें भी इस बात का पता चला और वो भी खुश थे की दोनों घरों के बीच कोई गलतफैमी या मन-मुटाव नहीं है| रात में सबने खाना खाया और सोने का समय था;

भौजी: आज मुझसे एक गलती हो गई|

मैं: क्या?

भौजी: आज मैंने आपको Good Morning Kiss नहीं दी|

मैं: (भौजी को छेड़ते हुए) आपने तो घोर पाप कर दिया! अब आपको क्या दंड दूँ?

भौजी: नहीं...नहीं... प्लीज| मैंने अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहती हूँ|

मैं: कैसे?

भौजी: आप थोड़ी देर बाद नेहा को लेने के लिए घर में आ जाना| वहीँ मैं प्रायश्चित करुँगी| ही..ही.. ही!!

मैं पंद्रह मिनट तक कुऐं के पास टहलता रहा फिर नेहा को आवाज देते हुए भौजी के घर में घुस गया| अंदर पहुंचा तो भौजी ने एक झटके में मेरा हाथ पकड़ के मुझे स्नान घर के पास खींच लिया|

मैं: क्या कर रहे हो?

मेरी पीठ दिवार से लगी हुई थी और भौजी मेरे ऊपर चढ़ी हुई थीं और वो मुझे बेतहाशा चूम रहीं थीं|

मैं: म्म्म्म....कोई आ जाएगा!

पर भौजी को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था| आखिर मैंने उनके जुड़े को अपने हाथ से खींचा और उनकी गर्दन पीछे की ओर तन गई ओर मैंने उनके गले पे अपने होंठ रख दिए| भौजी के मुँह से "स्स्स्स्स्स्स...अहह" की आवाज निकली| मैं किसी Vampire की तरह उनकी गार्डन पे अपने दाँत गड़ाए उन्हें चूम रहा था..काट रहा था...चूस रहा था| फिर मैंने उनके होठों पे अपने होंठ रख दिए और उनके होंठों को बारी-बारी चूसता रहा..चूमता रहा...ओर करीब पांच मिनट बाद अलग हुआ तो हम दोनों के होठों के बीच हमारे रस की एक पतली से तार लटक रही थी और जैसे ही हम दूर हुए वो तार और खीचने लगी और फिर चानक से टूट गई| एक हिस्सा भौजी के पास रह गया और एक मेरे पास|

मैं: बस! हो गया आपका प्रायश्चित| इसके आगे बाबा अपना कंट्रोल खो देंगे|

भौजी: तो किसने रोका है|

मैं: आज घर में सब मौजूद हैं| शायद आज कुछ नहीं होगा?

भौजी: फिर मैं आपसे नाराज हो जाऊँगी|

मैं: ऐसा जुल्म मत करो! देखते हैं.... ये बताओ की नेहा कहाँ है|

भौजी: भूसे वाले कमरे में अपनी तख्ती ढूंढ रही है|

मैं: क्या? पर वहाँ तख्ती रखी किसने?

भौजी: मैंने

मैं: पर क्यों?

भौजी: ताकि हमें कुछ समय अकेले मिल जाए|

मैं: आप बहुत शारती हो|

मैं बहार आया और नेहा को उसकी तख्ती ढूंढ के दी|


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