FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--65
मैं: मगर क्या? Oh No..No..No… ये सब मेरी शादी का चक्कर तो नहीं?
भौजी कुछ नहीं बोलीं बस उनकी आँख से आंसूं की एक बूँद छलक के बाहर आई और बहती हुई उनके कानों तक चली गई|
मैं: मैं अभी पिताजी से बात करता हूँ|
भौजी: (सुबकते हुए) नहीं... प्लीज आपको ....
मैं: आपको पता है ना क्या होने जा रहा है और आप मुझे कसम देके रोक रहे हो?
भौजी: ये कभी न कभी तो होना ही था ना!
मैं: कभी होना था...अभी नहीं!
भौजी: क्या कहोगे पिताजी से? की मैं अपनी भौजी से प्यार करता हूँ और उनसे शादी करना चाहता हूँ|
मैं: हाँ
भौजी: और उसका अंजाम जानते हो ना?
मैं: हाँ ... वो हमें अलग कर देंगे|
भौजी: यही चाहते हो?
मैं: नहीं... पर अगर मैं उनसे सच नहीं बोल सकता तो कम से कम उन्हें कुछ सालों के लिए टाल अवश्य सकता हूँ| प्लीज मुझे अपनी कसम मत देना...आप नहीं जानते वो लड़की भी मुझसे शादी नहीं करना चाहती|
भौजी: क्या?
मैं: हाँ.. अयोध्या जाने से एक दिन पहले हम ठाकुर साहब के घर मिले थे और तब बातों-बातों में मुझे शक हुआ की कहीं यहाँ मेरे रिश्ते की आत तो नहीं चल रही और अपना शक मिटाने के लिए मैंने सुनीता से पूछा तो उसने मुहे कहा की वो ये शादी कतई नहीं करेगी|
भौजी मेरी बात से कुछ संतुष्ट दिखीं .... और मैंने ये सोचा की अभी मामला गर्म है और ऐसे में अगर मैंने हथोड़ा मारा तो कहीं बात बिगड़ ना जाये और वैसे भी मेरा मकसद था की पहले भौजी खाना खाएं क्योंकि व पेट से हैं| शायद भौजी को पता था की मैं उन्हें खाने के लिए अवश्य बोलने आऊंगा इसलिए उन्होंने पहले से ही खाना परोसा हुआ था जो खिड़की पर ढक के रखा हुआ था| मैंने थाली उठाई और उन्हें खाना खिलने लगा|भौजी ने मुझे भी खाना अपने हाथ से खिलाया और हुमा खाना खत्म होने ही जा रहा था की वहाँ नेहा और सुनीता आ गए|
सुनीता: हम्म्म … I knew there was something between you guys!
भौजी: Maybe you’re right. There’s something between us but that depends on who’s commenting on it. If you’re jealous you’ll call it an extra marital affair and you’ll go out screaming that these two are in relationship. But if you’re a true friend, which I think you’re then for you we’re just Good Friends!
भौजी की बात सुन के सुनीता एकदम से अवाक खड़ी उन्हें और मुझे घूरती रही| शायद उसने ये उम्मीद नहीं की थी की जो स्त्री साडी पहनती है और पहनावे में बिलकुल गाँव की गावरान लगती है वो इतनी फर्राटे दार अंग्रेजी कैसे बोल लेती है?
सुनीता: क्या आपने इन्हें अंग्रेजी बोलना.....
मैं: (उसकी बात काटते हुए) नहीं .. ये दसवीं तक पढ़ीं हैं उसके आगे नहीं पढ़ पाईं क्योंकि इनकी पढ़ाई छुड़ा दी गई|
सुनीता: भाभी I gotta say, I’m impressed!
भौजी: Thank You!
सुनीता: मैं वादा करती हूँ ये बात किसी को पता नहीं चलेगी|
भौजी: Appreciated !!!
खेर बात खत्म हुई और कुछ देर बाद सुनीता अपने घर चली गई|
शाम के पांच बजे ...और आज चाय रसिका भाभी ने बनाई थी| अब चूँकि मैं उनके हाथ का बना कुछ भी नहीं खाता था तो जब वो चाय लेके आईं तो भौजी का गुस्सा जिसे मैंने अपने प्यार से दबा रखा था फुट ही पड़ा;
भौजी: (गरजते हुए) तू....
मैं: (उनकी बात बीच में काटते हुए) प्लीज शांत हो जाओ .... आपको मेरी कसम!
भौजी: निकल जा और ले जा ये चाय... इन्होने अपनी कसम दे दी वरना आज तेरी खेर नहीं थी|
मैं कुछ नहीं बोला और सर झुका के बैठा हुआ था|
भौजी: आप क्यों सर खुका के बैठे हो?
मैं: मैं एक अच्छा पति नहीं साबित हो सका|
भौजी: क्या? ये आप क्या कह रहे हो?
मैं: मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपको खुश रखूँ ... पर मेरी वजह से तो आप और तनाव में घिरते जा रहे हो|
भौजी: नहीं .... नहीं... ऐसा कुछ नहीं है| आप ने तो सच बता के मेरा भरोसा कायम रखा है|
मैं: खेर छोडो इस बात को... क्योंकि आप कभी भी नहीं मानोगे|
भौजी: इसलिए नहीं मानती क्योंकि आप गलत कह रहे हो| मेरी नजर में आप सबसे बेस्ट Father हो! नेहा आपका खून नहीं फिर भी उसे आप अपने बच्चे के जैसा ही चाहते हो!
मैं: ओह प्लीज! अब मेरा गुणगान बंद करो| मैं उसे प्यार करता हूँ पर शायद आपसे कम|
भौजी: आपको नहीं पता की आपकी इन्हीं आदतों से लोग मेरी किस्मत पर जलने लगते हैं|
मैं: ऐसा कौन है जो आपसे जलता है| सिवाय रसिका भाभी के!!!
भौजी: मेरी अपनी बहन शगुन! उसे हमारे बारे में ज्यादा तो नहीं पता पर हाँ जितना कुछ भी उसे भाई से पता चला उससे वो जली हुई है और उसे कहीं-कहीं बड़ा मजा भी आया|
मैं: तो आपको मेरे जरिये लोगों को जलाने में बड़ा मजा आता है?
भौजी: हाँ कभी-कभी!!! ही..ही..ही... लोगों को लगता है की कोई मुझे इतना प्यार करता है...
आग भौजी के कुछ कहने से पहले ही मैंने उनके होठों को चूम लिया|
भौजी: उम्म्म ...
मैं: अच्छा बस! अब मुझे पिताजी से बात करने जाने दो|
भौजी: प्लीज सम्भल के बात करना! कुछ ऐसा-वैसा मत बोलना.... और अगर वो जोर दें तो बात मन लेना!
मैं: वो तो नहीं हो सकता|
भौजी मुँह बनाने लगीं और मैं बाहर आके पिताजी को ढूंढने लगा| पिताजी भूसे वाले कमरे के बाहर चारपाई पे अकेले बैठे थे| मैं उनके पास पहुँचा और उनका चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था| मन तो नहीं किया की उनकी ख़ुशी उनसे छें लूँ पर मैं भौजी के साथ धोका नहीं करना चाहता था| पता नहीं क्यों पर मेरे दिमाग में बस यही बात चल रही थी| हालाँकि हमारे रिश्ते की परिभाषा ही इतनी अनोखी है की उसे सुनने वाला उसका कुछ अलग ही मतलब निकलेगा| जब मैं पिताजी के सामने चुप-चाप खड़ा अपने विचारों में गुम था तो पिताजी ने स्वयं ही मुझसे पूछा;
पिताजी: अरे भई लाड-साहब .. आओ-आओ बैठो!
मैं: जी आपसे कुछ पूछना था|
पिताजी: यही ना की आज सुनीता आई थी और..... (पिताजी ने बात अधूरी छोड़ दी)
मैं: जी... क्या आप लोग मेरी शादी की सोच रहे हैं?
पिताजी: हाँ बेटा... ठाकुर साहब ने तुम्हारी बड़ी तारीफ सुनी है और उन्होंने ही ये रिश्ता भेजा है| उस दिन जब तुम आये थे तब उन्होंने हमें इसी बात के लिए बुलाया था|
मैं: पर आप जानते हैं ना की मैं अभी और पढ़ना चाहता हूँ|
पिताजी: हाँ बेटा...और सुनीता भई अभी और पढ़ना चाहती है| ठाकुर साहब का कहना है की अभी रोका कर देते हैं! शादी जब दोनों की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तब करेंगे|
मैं: पर आप जानते हैं की सुनीता भी शादी नहीं करना चाहती|
पिताजी: क्या?
मैं: जी... उस दिन मुझे शक हो गया था इसलिए मैंने सोचा की एक बार सुनीता से पूछूं की उसके मन में क्या है? कहीं वो भी तो माधुरी जैसी नहीं!
पिताजी: पर ठाकुर साहब ने तो हमें ये कहा की सुनीता इस शादी के लिए तैयार है और जबतक मानु हाँ नहीं कहता शादी नहीं होगी|
मैं: पिताजी...अब आप ही सोचिये की ये हमारे साथ ये दोहरा मापदंड क्यों अपना रहे हैं! उनकी खुद की लड़की शादी के लिए तैयार नहीं है और वो उसके साथ जबरदस्ती कर रहे हैं| और आप ये बताइये की आप उनके घर क्यों गए रिश्ते के लिए?
पिताजी: बेटा उन्होंने हमें एक खेत बेचने के लिए बुलाया था| बातों-बातों में उन्होंने शादी की बात छेड़ दी| पर हमने साफ़ कह दिया की लड़का अभी पढ़ रहा है और उसकी मर्जी के खिलाफ हम कुछ नहीं कर सकते| हालाँकि वो कह रहे थे की लड़का आपका है और ऐसे में मेरी मर्जी चलेगी पर इन दिनों में जो कुछ हुआ उससे हमें यकीन हैं की तुम कोई गलत फैसला नहीं करोगे| खेर हम घर में बात करते हैं इस मुद्दे पे|
प्याजी इतना कह के बड़के दादा को ढूंढते हुए खेतों की ओर चले गए|
मैंने अपनी तरफ से सारी बातें साफ़ कर दीं थीं और अब मन चैन की रहत ले सकता था परन्तु कहीं तो कुछ था जो अभी भी सही नहीं था..भौजी अब भी उतनी खुश नहीं थीं जितना मैं उन्हें पिछले कुछ दिनों से देख रहा था| आखिर किस की नजर लग गई थी हमारे प्यार को? ऐसा क्या करूँ की वो पहले की तरह खुश रहे?
रात होने लगी थी और भौजी रात्रि भोज का प्रबनध करने में लगीं थीं| खाना बन गया र जब खाने की बारी आई तो हालांकि मेरा मन नहीं था खाने का परन्तु पिताजी के दबाव में भोजन करने बैठ ही गया| जब भोजन के दौरान सुनीता और मेरी शादी के मसले पर ही बात चल रही थी| आखरी फैसला ये हुआ की अबकी बार ठाकुर साहब यहाँ आएंगे और सारी बातें साफ़ करेंगे जिसमें सुनीता का मर्ज़ी शामिल होगी| आखरी फ़ासिला मुझ पे छोड़ा गया की जैसा मैं ठीक समझूँगा वही होगा| भोजन करके उठा तो दिल ने कहा की भौजी खाना नहीं खानेवाली और हुआ भी यही| मैं भोजन के उपरान्त तख़्त पे बैठ हुआ था और नेहा मेरे पास ही बैठी हुई थी| भौजी सब का खाना परोस के चली गईं, जब अम्मा ने उनसे खाने को कहा तो उन्होंने कह दिया की वो बाद में खा लेंगी| आखिर मुझे उनको कैसे भी खाना खिलाना था तो मैं ही उनके पास उनके घर में गया;
मैं: तो मलिकाय हुस्न .. आज खाना नहीं खाना है? (मैंने माहोल को थोड़ा हल्का करना चाहा|)
भौजी: भूख नहीं है!
मैं: अब आप क्यों दुखी हो? मैं शादी नहीं कर रहा!
भौजी: आज नहीं तो कल तो होगी ही!
मैं: कल की चिंता में आप अपना आज खराब करना चाहते हो? कम से कम हम आज तो खुश हैं...
भौजी: पर कल का क्या?
मैं: अगर आपको कल की ही चिंता करनी थी तो क्यों नजदीक आय मेरे? आप जानते थे न की हमारे रिश्ते में हम कल के बारे में नहीं सोच सकते? क्यों आने दिया मुझे खुद के इतना नजदीक की आपके खाना ना खाने से मुझपे क़यामत टूट पड़ी है|
मेरी बातें उन्हें चुभी अवश्य होंगी पर भौजी कुछ नहीं बोलीं और ना ही रोईं|
मैं: ठीक है...जैसी आपकी मर्जी हो वैसा करो... पर हाँ ये याद रखना की एक जिंदगी और भी आपसे जुडी है!
मैं
जानता था की अगर मैंने इन्हें कसम से बाँध भी दिया तो भी ये बेमन से खाना
तो खा लेंगी पर इनके चेहरे पे वो ख़ुशी कभी नहीं आएगी जो मैं देखना चाहता
था| पर दिल कह रहा था की भौजी खाना खा लेंगी! मैं बाहर आया और अम्मा से
कहा;
मैं: अम्मा...आप खाना परोस दो! मैं रख आता हूँ अगर मन किया तो खा लेंगी|
बड़की अम्मा: मुन्ना... तुम बोलो उसे वो जर्रूर मान जाएगी| तुम्हारी बात नहीं टालेगी!
मैं: जानता हूँ अम्मा पर मुझे नहीं पता की आखिर उन्हें दुःख क्या है? और मेरे कहने से वो खाना खा लेंगी पर खुश नहीं रहेंगी! और इस समय उनका खुश रहना ज्यादा जर्रुरी है|
मैंने थाली को ढका और उनके कमरे में स्टूल के ऊपर रख दिया और चुप-चाप वापस आ गया| नेहा को कहानी सुनाई और वो सो गई... पर मैं सो ना सका| करवटें बदलता रहा पर दिल को चैन कहाँ?
हार के मैं उठ के बैठ गया और गंभीर मुद्रा में सर झुका के सोचने लगा| दिमाग में केवल भौजी की तस्वीर थी…. वही उदास तस्वीर!!! करीब दस बजे भौजी के घर का दरवाजा खुला और भौजी बाहर निकलीं ... उनके हाथ में थाली थी... को अब खाली थी| मतलब कम से कम उन्होंने खाना तो खा लिया था| भौजी थाली रख के मेरे पास आईं;
भौजी: मैंने खाना खा लिया!
मैं: Good !
भौजी: अब आप क्यों उदास हो?
मैं: "बाहार ने फूल से पूछा की; तू क्यों खामोश है? जवाब में फूल ने बाहार से कहा क्योंकि फ़िज़ा उदास है!"
मेरी इस बात का मतलब भौजी समझ चुकीं थी की मेरी उदासी का कारन उनका उदास रहना है| भौजी खड़ी होक मुझे देखती रहीं और फिर मेरा हाथ पकड़ के अंदर घर में ले आईं और दरवाजा बंद कर दिया|
मैं: अम्मा...आप खाना परोस दो! मैं रख आता हूँ अगर मन किया तो खा लेंगी|
बड़की अम्मा: मुन्ना... तुम बोलो उसे वो जर्रूर मान जाएगी| तुम्हारी बात नहीं टालेगी!
मैं: जानता हूँ अम्मा पर मुझे नहीं पता की आखिर उन्हें दुःख क्या है? और मेरे कहने से वो खाना खा लेंगी पर खुश नहीं रहेंगी! और इस समय उनका खुश रहना ज्यादा जर्रुरी है|
मैंने थाली को ढका और उनके कमरे में स्टूल के ऊपर रख दिया और चुप-चाप वापस आ गया| नेहा को कहानी सुनाई और वो सो गई... पर मैं सो ना सका| करवटें बदलता रहा पर दिल को चैन कहाँ?
हार के मैं उठ के बैठ गया और गंभीर मुद्रा में सर झुका के सोचने लगा| दिमाग में केवल भौजी की तस्वीर थी…. वही उदास तस्वीर!!! करीब दस बजे भौजी के घर का दरवाजा खुला और भौजी बाहर निकलीं ... उनके हाथ में थाली थी... को अब खाली थी| मतलब कम से कम उन्होंने खाना तो खा लिया था| भौजी थाली रख के मेरे पास आईं;
भौजी: मैंने खाना खा लिया!
मैं: Good !
भौजी: अब आप क्यों उदास हो?
मैं: "बाहार ने फूल से पूछा की; तू क्यों खामोश है? जवाब में फूल ने बाहार से कहा क्योंकि फ़िज़ा उदास है!"
मेरी इस बात का मतलब भौजी समझ चुकीं थी की मेरी उदासी का कारन उनका उदास रहना है| भौजी खड़ी होक मुझे देखती रहीं और फिर मेरा हाथ पकड़ के अंदर घर में ले आईं और दरवाजा बंद कर दिया|
भौजी: जानू.... आप मुझसे इतना प्यार क्यों करते हो! मेरे खाना ना खाने से...खामोश रहने से आप उखड क्यों जाते हो?
मैं: मैं खुद नहीं जानता की मैं आपको इतना टूट के क्यों प्यार करता हूँ!
मैंने अपनी बाहें फैला के उन्हें गले लगना चाहा और भौजी भी मुझसे लिपट के मेरे सीने में सिमट गईं| उनके गले लगने से जो एहसास हुआ उसे व्यक्त करना संभव नहीं है| पर हाँ एक संतुष्टि अवश्य मिलीं की अब उनके मन में कोई चिंता या द्वेष नहीं है|मैंने उनके सर को चूमा और उन्हें खुद से अलग किया और लेटने को कहा| भौजी लेट गईं और मैं भी उनकी बगल में लेट गया| उन्होंने फिर से मेरे दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे लिपट के बोलीं;
भौजी: कल रात जब मेरा मन खराब था तो आपने मेरा ख़याल रखा था... हालाँकि मेरी उदासी का कारन आप नहीं थे पर फिर भी आपने मेरा ख़याल रखा| पर आज मैं आपकी वजह से उदास नहीं थी बस इस वजह से उदास थी की मैं आपको खो दूँगी... पर आपका कहना की हमें कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्या इसका मतलब ये है की आपकी शादी के बाद भी आप मुझे उतना ही प्यार करोगे जितना अभी करते हो?
मैं: अगर शादी के बाद भी मैं आपको उतना ही प्यार करूँगा तो क्या ये उस लड़की से धोका नहीं होगा? फिर भला मुझ में और चन्दर भैया क्या फर्क रह जायेगा? हाँ मेरे दिल में जो आपके लिए जगह है वो हमेशा बरक़रार रहेगी| मैं जितना प्यार नेहा से करता हूँ हमेशा करूँगा पर आप और मैं तब उतना नजदीक नहीं होंगे जितना अभी हैं|
भौजी: आपकी ईमानदारी मुझे पसंद आई... और सच कहूँ तो मुझे आपसे इसी जवाब की अपेक्षा थी|
मैं भौजी के बालों में हाथ फिरा रहा था और मुझे ऐसा लगा जैसे वो सो गईं हों| इसलिए मैंने धीरे से अपना हाथ उनके सर के नीचे से निकाला| जब मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरी बांह पकड़ ली और बोलीं;
भौजी: जा रहे हो?
मैं: हाँ....
भौजी: आप कुछ भूल नहीं रहे?
मैं: याद है!
उनका इशारा Good Night Kiss से था| मैंने उनके होठों को चूमा और उठने लगा|
भौजी: नहीं ये नहीं .... और भी कुछ था!
मैं: क्या?
भौजी: अगर आप मेरी उदासी का इलाज कर सकते हो तो मैं क्यों नहीं?
मैं: पर मैं उदास नहीं हूँ|
भौजी: खाओ अपने बच्चे की कसम|
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ अपनी कोख पे रख दिया| मैं जूठी कसम नहीं खा सकता था इसलिए चुप था| मेरी उदासी का कारन शादी था| मैं इस बात को भूल ही गया था की शादी के बाद में उस लड़की के साथ कैसे एडजस्ट करूँगा? कैसे भूल पाउँगा की भौजी अब भी मेरा इन्तेजार कर रहीं हैं? भले ही वो मुंह से ना बोलें पर मैं तो जानता ही हूँ की उनका मन क्या चाहता है? इसका एक मात्र इलाज था की मैं उन्हें भगा के ले जाऊँ! पर क्या मैं उनकी और नेहा की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूँ? और उस बच्चे का क्या जो अभी इस दुनिया में आने वाला है?
मैं: हाँ मैं उदास हूँ!
मैंने हाथ भौजी की कोख से उठाया और मैंने बहुत कोशिश की कि मैं अपनी ये उधेड़-बुन उनसे छुपा सकूँ इसलिए मैंने उन्हें जूठ बोल दिया की आज मेरे उदास रहने का कारन, आपके चेहरे पे वो मुस्कान का ना होना है जो पहले हुआ करती थी|
भौजी: अब आपकी उदासी का कारन मैं हूँ तो मेरा फ़र्ज़ है की मैं आपका ख़याल रखूं|
मैं: नहीं... उसकी जर्रूरत नहीं है| आपकी एक मुस्कान मेरी दासी गायब करने के लिए काफी है|
भौजी: क्यों जर्रूरत नहीं? आप मेरी इतनी चिंता करते हो... मेरे लिए इतना कुछ करते हो तो क्या मेरा मन यहीं करता की मैं भी आपको उतना ही प्यार दूँ|
मैं: पर मैंने कब कहा की...
भौजी: (बीच में बात काटते हुए... और अपना पूरा हक़ जताते हुए) पर वर कुछ नहीं| मैंने आपसे आपकी इज्जाजत नहीं माँगी है| चलिए आप मेरे पास लेटिए?
मैं अब और क्या कहता.... लेट गया उनकी बगल में और जानता था की आगे वो क्या करने वाली हैं|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
No comments:
Post a Comment