Wednesday, December 3, 2014

FUN-MAZA-MASTI पापा प्लीज........12

FUN-MAZA-MASTI

 पापा प्लीज........12

रिंकी कुछ ही देर में सारा माजरा समझ गई... और वो अपने पूरे शरीर को सांप की तरह टेढ़ी मेढ़ी करती मुस्कुराते हुई हौले से पुष्पा की तरफ बढ़ने लगी... कालिया भी शर्म से भर गया था... वो उठा और रिंकी की तरफ मुक्का दिखाते हुए बाहर निकल गया....

कालिया के जाते ही रिंकी बेड पर जम्प लगाती हुई पुष्पा को दबोच लुढ़क गई जो कि दूसरी तरफ मुंह किए मुस्कुरा रही थी... रिंकी हंसती ढ़ेर सारे सवाल पूछने लगी पर पुष्पा बस मुस्कुराती रही मुंह छिपाती हुई... कोई जवाब ना पा रिंकी कुछ सोची और अपने होंठ पुष्पा के होंठ पर रख रसपान करने लगी...

कुछ ही पल में पुष्पा शर्म से थोड़े परे हुई तो रिंकी बस होंठ को छोड़ थोड़ी ऊपर हुई और पूछी,"क्यों मैडम, ये चक्कर है कोई या इसने जबरदस्ती की है..?" पुष्पा उसकी बात अपनी आँखें खोल जवाब दी,"आपको क्या लगता है.."

रिंकी,"आपके हाव-भाव से तो जबरदस्ती नहीं लगती है फिर भी आपसे सुनना चाहती हूँ... " जवाब देती हुई रिंकी मुस्कुरा पड़ी... पुष्पा भी उसकी बात सुन मुस्कुराए बिना ना रह सकी और बोली,"चक्कर....ऽ आई लव कालिया..." और पुष्पा अपनी आँखे शरारत से नचा दी...

रिंकी सुनते ही अपने एक हाथ से पुष्पा की एक चुची जकड़ी और जोर से रगड़ते हुए बोली,"साली लंड देखते ही मुझसे कट्टी कर ली... अब तो तू नहीं बचने वाली..." इस रगड़ से पुष्पा हिनहिना गई और उसकी गूँज पूरे कमरे में गूंज पड़ी पर रिंकी को अब कोई फिक्र नहीं थी...

पुष्पा,"उफ्फ्फ्फ.... प्लीज यार धीरे करो ना...काफी दर्द हो रही है... लग रहा कि फट के खून निकल जाएगी..." पुष्पा कराहती हुई बोली जिस पर रिंकी तपाक से बोली,"बेबी, अब तो ये दर्द बरदाश्त करना सीख लो... लंड वाले ऐसी चीख सुनते ही जोश से भर जाते हैं और तुम्हें और दर्द देंगे... समझी कुछ..."

पुष्पा उफ्फ्फ करती हुई बोली,"तुम कितना गंदा गंदा बोलती हो... " तभी से रिंकी अपनी दूसरी हाथ नीचे बढ़ा सलवार के ऊपर से ही पुष्पा की बूर पर रख दबाती हुई बोली,"लंड और बूर को उसके नाम से ना कहूँ तो क्या कहूँ..." पुष्पा रिंकी की इस हरकत से चिहुंक गई और तुरंत रिंकी के हाथ को हटाने की कोशिश की पर रिंकी के हाथ तो मानो जम गई हो...

कुछ देर तक दोनों बल प्रयोग करती रही... आखिरकार रिंकी बोली,"प्लीज यार,करने दे ना... लंड चख लेगी एक बार फिर तो हाथ लगेगी नहीं देगी और मैं भी जाने वाली हूँ कल..." रिंकी की बात सुनते ही पुष्पा शांत पड़ गई और उदास सी हो बोली,"फिर मैं कैसे रहूँगी अकेली..."

"क्यों, तुम्हारे मिस्टर साहब तो हैं ना... और अभी की तरह कोई डिस्टर्ब भी नहीं करेगा...24 घंटे पैक रहना..." रिंकी शरारत भरी शब्दों से पुष्पा की उदासी दूर करनी चाही पर कर ना पाई... पुष्पा अंदर से रो रही थी अपने इस नई दोस्त से बिछड़ने की सोच...

रिंकी पुष्पा को यूं देख धीरे से बोली,"हे... क्या हुआ... मैं तुम्हें कभी नहीं भूल सकती यार... मैं अपना नं० दे दूँगी... तुम घर जाते ही कॉल करना... मैं भागी आ जाऊंगी...प्रॉमिश.. अब ऐसे मुंह मत बनाओ और जल्दी से चटनी खिला दो..."

रिंकी की बात सुनते ही पुष्पा हल्की सी मुस्कुरा पड़ी और अगले ही पल उसकी बाँहे रिंकी के गर्दन को दबाती हुई अपनी तरफ खींच ली... पुष्पा की हिचक अब बस नाम मात्र की रह गई थी जिस वजह से बेड की चरमराहट साफ सुनाई दे रही थी...

कुछ देर तक किस करने के बाद रिंकी जबरदस्ती अलग हुई और पुष्पा के ऊपर से हट उसे उठाने लगी... पुष्पा रिंकी की तरफ कामुकता की नजरों से देखे जा रही थी... अगले ही पल रिंकी पुष्पा की कमर से उसकी ड्रेस (समीज) को ऊपर की तरफ उठाने लगी...

पुष्पा एक बार भी ना नुकुर ना की औरउसे निकालने दी... चंद मिनटों में ही पुष्पा सिर्फ ब्रॉ में बैठी बस रिंकी की आँखों में खोई थी... वो टॉपलेस में आज पहली बार किसी और के सामने हुई थी... अगर वो अपनी तरफ नजर करती तो शर्म से लाल हो जाती पर वो तो रिंकी को देखी जा रही थी...

फिर रिंकी बगल से सरक कर सीधे पैर कर बैठी पुष्पा के दोनो जांघो पर दोनों तरफ पैर कर बैठ गई और बैठने के साथ ही पुष्पा की पाजामी(सलवार) के नाड़े को खोल दी... और फिर पुष्पा की तरफ हल्की झुकती हुई अपने दोनों हाथ उसकी पीठ तक ले गई...

और पुष्पा के माथे को चूमती हुई ब्रॉ की हुक खोल दी... पुष्पा को मालूम हुई या नहीं पता नहीं... पर वो मस्ती में काफी डूबी लग रही थी... रिंकी पुष्पा को पीछे की तरफ धक्के दे दी जिससे पुष्पा धम्म से पीछे गिर पड़ी और साथ में रिंकी भी पुष्पा के ऊपर चादर बन कर सो गई...

रिंकी एक बार फिर पुष्पा को स्मूच करने लगी और पुष्पा भी लालायित हो खुद को रिंकी के हवाले कर चुकी थी.. दो मिनट के ही स्मूच के बाद रिंकीअपने होंठ को नीचे बढ़ाने लगी जहाँ उसके दोनों हाथ पुष्पा की दोनों चुचियों को ब्रॉ के ऊपर से ही ढ़के थी...हर किस हर बाइट पर पुष्पा रिंकी के सर को दबा कर सहलाने लग जाती....

रिंकी कुछ ही पलों में पुष्पा के उभारों को भिंगों रही थी... ऐसी सुडौल वक्ष देख रिंकी के मुंह से पानी खुद-ब-खुद बह रही थी...पुष्पा अब रिंकी को जोर से दबाती हुई "आहहहह...रिंकीईईई...और तेज चूसोऽ काट लो ना प्लीज.." पुष्पा की मादक आवाज सुनते ही रिंकी अगले ही पल हाथ से ब्रॉ को हाथों से खींच दी....

पुष्पा को नंगी चुची पर रिंकी के दांत महसूस होते ही कराह उठी...उसने रिंकी के सर को जोरों से जकड़ चुची पर दबा दी... ऐसा करते देख रिंकी अपनें मुंह में निप्पल घुसेड़ ली और हल्की दांत गड़ाते हुए खींचने लगी और दूसरी निप्पल को अंगूठे से मसलने लगी... पुष्पा तो हवा में उड़ने लगी... वो समझ ही नहीं पा रही थी क्या करूँ...

इतनी अधिक उत्तेजना में रिंकी को रोकना चाहती थी ताकि वो रिलैक्स हो पर शरीर रिंकी को अलग नहीं करने देती थी... इसी चुसम-चुसाई में पुष्पा अचानक से चीख पड़ी और रिंकी की पीठ को नोंचती हुई झड़ने लगी... नाखून के दर्द से रिंकी भी कराह उठी पर वो स्खलन से भली भांति वाकिफ थी तो वो समझ सकती थी पुष्पा की हालत...

झड़ने के पश्चात पुष्पा बेजान सी निढ़ाल हो हांफने लगी...रिंकी उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम चुम्मी की बरसात कर दी... अचानक रिंकी की दिमाग कौंधी और वो झट से उठ गई...पुष्पा अभी भी आँखें बंद की बिना ब्रॉ की पड़ी थी.... चुची से ऊपर पूरी रिंकी की थूक से गीली थी जो चमक रही थी...

रिंकी तेजी से गेट तक आई और गेट लॉक कर दी जो कि खुली थी अब तक... गेट लॉक कर वापस आ बेड पर चढ़ी और अपनी ब्रा को खोल नीचे फेक दी...फिर अपनी चुची को दोनों हाथों से पकड़ किस की और मुस्कुराते हुए इस तरह लेटी कि उसकी चुची सीधी पुष्पा के मुंह पर जा लगी...

पुष्पा अपने मुँह पर नरम नरम चुची का एहसास पाते ही मुस्कुरा पड़ी और बंद आँखों से ही अपने मुँह खोल दी... अगले ही पल रिंकी अपनी निप्पल उसके मुँह में घुसेड़ दी और लद गई... जिससे चुची काफी अंदर तक धंस गई पर पुष्पा निप्पल को बिना छोड़े अपनी सांस रोक हल्के दांतो से काटने लगी...

और पुष्पा अपने दूसरे हाथ बढ़ा रिंकी की दूसरी चुची को सहलाने लगी... रिंकी को तो इन सबकी आदत थी पर पुष्पा जैसी लड़की की सोच वो कामोत्तेजना से भर गई और वो पुष्पा के सर को अपने चुचियों पर जोर से रगड़ने लगी... पुष्पा रिंकी के ऐसे बर्ताव से सिहर गई...

वो कसमसा गई और खुद को अलग करने की सोची ऐसे दरिंदगी से पर रिंकी भला छोड़ती तब ना... जब कुछ नहीं सूझी तो वो भी वहशीपन की सोच अपने मुँह को पूरा खोली और जितनी चुची आ सकती थी अंदर की और जोर से काट ली...साथ ही दूसरी चुची को भी जोर से रगड़ दी...

अब तो रिंकी किसी शिकार की तरह छटपटाने लगी और जोर से आहें भरने लगी पर छूटने की कोशिश तनिक भी नहीं की... और फिर रिंकी की पकड़ ढ़ीली पड़ते ही पुष्पा रिंकी को बेड तरफ गिरा खुद उसके ऊपर आ गई और रिंकी को नीचे दबा जोर जोर से रगड़ने लगी...

रिंकी इसी की आदी थी जिससे वो तुरंत गर्म हो गई और अपने एक हाथ नीचे अपनी बूर पर रख पेंटी के ऊपर से ही रगड़ने लगी... पुष्पा अब और जोर से रिंकी की प्यास को शांत करने की कोशिश करने लगी... कुछ ही पलों में रिंकी काफी गर्म हो गई और इस गर्मी से उसकी पूरी पैंटी भींग गई...

तभी अचानक रिंकी पुष्पा को पुनः नीचे की और झटके से उट गई और तेजी से पुष्पा की कमर के पास गई और बिजली की रफ्तार से खुली सलवार को पकड़ नीचे सरका दी... इस दरम्यान पुष्पा भी गरम हो गई थी तो वो भी अपनी गांड़ को ऊपर कर नंगी हो गई...

अगली वार रिंकी ने पुष्पा की गीली पेंटी पर की और अपने दांत को पेंटी के ऊपर से ही बूर पर रख हल्की हल्की बाइट करने लगी... पुष्पा के लिए तो हर अनुभव बिल्कुल नई थी... वो इसे सहज नहीं ले सकी और बैठते हुए रिंकी के सर को पकड़ दबी चीख से हटाने लगी पर रिंकी तो किसी चुंबक की तरह चिपक गई थी...

पुष्पा की ताकत को कम करने के लिए रिंकी ने अपने हाथ पुष्पा की तरफ कर उसकी चुची को पकड़ ली और सख्त-कड़क चुची को मसल कर ढ़ीली करने लगी... इस दोहरे वार को पुष्पा सहन नहीं कर पाई और इससे रिंकी फायदे में रही कि पुष्पा कू ताकत कमजोर पड़ गई...

बस इसी मौके का फायदा रिंकी ने उठाई और दूसरे हाथ घुसा पुष्पा की पेंटी खींच दी... पेंटी सरकते ही रिंकी की होंठ सीधी पुष्पा की नाजुक अनछुई बूर पड़ चिपक गई जो ना जाने कब से रो रही थी... सेकेंड भर में ही रिंकी का चेहरा पानी से भींग गया...

पुष्पा तो मानो इतनी में ही बेहोश हो गई और वो पीछे धम्म से गिर गई... रिंकी ताजे बूर की ताजी रस चपड़ चपड़ कर चाटने लग गई... वो अपनी जीभ अंदर करना चाहती थी पर उसकी जीभ में इतनी ताकत नहीं थी कि बंद बूर की छेद को खोल सके...

रिंकी की जीभ लगातार हार रही थी... पुष्पा उत्तेजना से तड़प कर अपने सर को पटकने लग गई थी जल बिन मछली की तरह... पुष्पा की ऑछटपटाहट से रिंकी को कभी कभी दिक्कत भी हो जाती थी....

रिंकी पुष्पा को काबू करने के लिए तुरंत 6-9 पोज में हो गई और अपने जांघों से पुष्पा के सर को कैद कर ली... पुष्पा के नाक में रिंकी की बूर की सुगंध पाते ही पुष्पा मदहोश हो गई और कुछ शांत हो सूंघने लगी....

रिंकी इधर अब पुष्पा की बूर की फांक को उंगली से हटा जीभ अंदर करने की कोशिश करने लगी... जब बात नहीं बनी तो उसने अपनी अंगुली बूर के मुहाने पर रख दबा दी...
रिंकी की आधी उंगली गप्प से अंदर घुस गई पर पुष्पा इतने में ही चीख पड़ी और पुष्पा की कमर को कस के पकड़ ली....

इस दरम्यान पुष्पा को रिंकी की बूर की रस सीधी मुंह में चली गई... पुष्पा पानी के स्वाद से थोड़ी बिदक गई पर नीचे हो रहे हमले उसे भुना दिए... रिंकी पुष्पा की स्थिति देख कुछ देर तक अपनी उंगली यूं ही शांत रखी रही... कुछ ही पल में रिंकी को अपनी पेंटी पर पुष्पा की जीभ महसूस हुई...

रिंकी को हरी झंडी मिल गई... रिंकी अपनी अंगुली को हल्के पर ताकत से खींचनी पड़ी और फिर जब अंगुली बाहर निकलने को हुई तो वापस पूरी ताकत से...खच्च्चाकऽ...पुष्पा एक बार उछल पड़ी और इस बार वो उछलने के साथ ही रिंकी की बूर को पूरे मुंह में भर ली...रिंकी अपनी पूरी अंगुली अंदर कर दी थी...

फिर रिंकी अपनी बूर पर हुए हमले से कराह उठी और वो किसी तरह खुद पर काबू कर पुष्पा की बूर को जीभ से खुरेदने लगी... रिंकी ऐसे जीभ चला रही थी मानो पुष्पा की बूर में अंगुली नहीं कोई लंड हो... बिल्कुल अपने अंदाज में चटकारे ले पुष्पा को मस्त कर रही थी...

पुष्पा अब बर्दाश्त करने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थी और उसने अपनी अंगुली रिंकी रिंकी की पेंटी में फंसाई और सराक से पीछे की तरफ कर दी जिससे रिंकी भी पूरी नंगी हो हो गई.... टप्प.... रिंकी की बूर से टप्प की आवाज करती पानी की बूंद सीधी पुष्पा की होंठों पर पड़ी...

पुष्पा बूर के रस से अनजान थी पर सुगंध मिलते ही वो तो पागल हो गई थी अब... उसने छिपकली की तरह जीभ बाहर की और अपने होंठों पर पड़ी पानी को चट कर गई और फिर रिंकी की बूर को अपने होंठों से सटा अपनी प्यास मिटाने लगी...

जहां एक तरफ रिंकी कितनी मेहनत से पुष्पा की बूर में सिर्फ अपनी एक अंगुली डाल पाई थी, वहीं उसकी बूर में पुष्पा की पूरी की पूरी मुंह नाक घुस जा रही थी... पुष्पा तो होटल की तैयार खाना खाने में मग्न थी पर असली आनंद तो खुद बना कर खाने में थी जो कि रिंकी कर रही थी...

रिंकी अब अपनी अंगुली धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी थी... और अंगुली जब बाहर निकलती तो अपनी जीभ अंगुली में चिपका कर पूरी रस गटक कर जाती... पुष्पा इसी अंगुली की चुदाई में ही इतनी गरम हो गई थी कि कभी सोची भी नहीं थी बूर चाटने की वो आज बिना कहे कर रही थी...

करीब दस मिनट की इस चुदाई चुसाई के बाद दोनों एक साथ अकड़ी और दोनों एक दूसरी की बूर को लपक के मुंह में भर झड़ने लगी...जितनी संभव हो सकी दोनों पानी गटक ली बाकी बची से बिस्तर को गीली होने दी.... और एक दूसरे से हट दोनों नंगी अपनी उखड़ी सांसों व थकान पर काबू करने की कोशिश करने लगी...


फिर रिंकी पुष्पा को उठाई और हल्की-फुल्की शरारती बातें करती हुई बाथरूम ले गई और दोनों फ्रेश हो गई... पुष्पा की ड्रेस एक बार फिर गंदी हो गई तो मजबूरन रिंकी की ही ड्रेस पहननी पड़ी... पर इस बार पुष्पा बिना ना नुकर के बिकनी पहन ली... पर वो रूम से बाहर नहीं निकली...

उधर शहर में एस.पी. जब फिरौती की बात सुना तो उसका खून खौल गया पर बोल कुछ नहीं सका... उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था... कहावत है ना जब मुसीबत अपने सर पे आती है ना तो महसूस होती है कि मुसीबत क्या बला है? दूसरे की मुसीबत तो मजाक ही लगती है पहले...

खैर, वैसे एस.पी. अपनी बेटी की वापसी के लिए वैसे तो भरकस प्रयास कर चुका था... रात भर नींद हराम कर एस.पी. सोचता रहा... सुबह पैसे पहुंचाने की जगह और आखिरी समय दोनों सुनने जो थे... और ये बात खुलेआम हुई थी तो पूरे शहर में आग लगी थी कि अब देखते हैं ना ये एस.पी. कितना इमानदार है...

मतलब और समय तो गलत कामों के लिए हर वक्त कहता था कि फिरौती,घूस ये सब अपराध को बढ़ावा देना है... अब अपनी बेटी के लिए क्या करते हैं सबके लिए खास खबर बन रही थी...

सुबह से ही एस.पी. के घर कुछ मीडिया वाले आ धमके थे... आखिर क्यों ना आए, ऐसी धांसू न्यूज से उनके चैनल की टी.आर.पी. जो बढ़ रही थी... एस.पी. जल्दी तैयार हो बाहर निकला और घर के लॉन में कुर्सी लगा बैठ गया जहाँ पहले से कुछ बड़े ऑफिसर,नेता,पुलिस इस केस को हल करने के लिए मंथन कर रहे थे....

पर असली जिम्मेदारी तो खुद एस.पी. की थी... आखिर वो एक बाप भी था... एस.पी. के आते ही वहाँ सन्नाटा पसर गया... कोई कुछ बोल नहीं रहा था... हर कोशिश तो नाकाम हो गई थी... अब कहने के लिए कुछ बचा भी नहीं था...

अचानक सबके रोंगटे खड़े हो गए जब एस.पी. के फोन घनघनाने लगी... एस.पी. गौर से देखने लगा स्क्रीन पर... अनजान नम्बर था... उसने कॉल रिसीव करने के साथ ही लॉउडस्पीकर ऑन कर दी...

एस.पी. के हेलो कहते ही उधर से आवाज आई,"आज शाम 5 बजे शहर के...." वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि एस.पी. बीच में ही गुस्से से गरजते हुए बोला,"अबे तेरी मां की.... तू किधर है ये बता फिर देखना... साले मां की साड़ी में छुप के बैठा रहता है..."

"एक बाप की औलाद है तो सामने आ..." एस.पी. अपना गुस्सा निकालना शुरू ही किया था कि उधर से ठहाके के साथ हंसी गूँज पड़ी... ये देख सब आश्चर्य से भर गए कि ये क्या कर रहे हैं... ऐसे बर्ताव से हानि उस बेचारी लड़की को हो सकती है जो अभी ठीक से जिंदगी देखी भी नहीं है...

हंसी के बाद आवाज आई,"अबे गाली किसे सुना रहा है एस.पी... मैं तो इसी शहर में हूँ पर तेरी बेटी किधर है वो बता भी दूँ ना तो तू कुछ नहीं उखाड़ पाएगा...जानता है क्यों...?"

एस.पी. के बोलने के लिए उसने कुछ पल के अपनी आवाज रोक दी पर एस.पी. कुछ बोला नहीं... बस कान लगा हर एक बात को सुन रहा था...

"..क्योंकि कोई उसका पता जानता ही नहीं है... हा... हा... हा..." अपनी बात कह उसने एक बार फिर हंस दिया... एस.पी. का तो पारा एक बार फिर चढ़ गया...

एस.पी.,"बहन के लौड़े, तू बोल तो पहले फिर तुम सबको की गांड़ में मिर्चि लगा के डंडे ना घुसेड़ा तो कहना...." एस.पी. की बात सुनते ही वो बोल पड़ा,"रत्ना.... नाम सुना है या नहीं... इसी के पास है तुम्हारी बेटी... जा जाके ले आ अपनी बेटी... तू मिर्ची लगाने के बाद मेरी गांड़ सुलगाएगा मैं बिना मिर्ची के ही सुलगा दिया...ही...ही...ही...."

रत्ना का नाम सुनते ही सबके पसीने छूट गए... इसके नाम और कारनामे तो सब जानते थे पर कोई इसे ढ़ूंढ़ नहीं पाया था कि ये है कहाँ... एस.पी. तो बूत बन के रह गया था... उसके मुँह से आवाज निकलनी ही बंद हो गई थी... क्योंकि सिर्फ रत्ना का ही पता लगाने में सब असमर्थ था तो वो क्या कर सकता था...

"हाँ तो एस.पी. साब, जल्दी बोलिए एड्रेस बताऊं या फिर..."इतना कहते ही वो चुप हो गया क्योंकि पुलिस सायरन एस.पी. के फोन पर भी सुनाई दे रही थी... एस.पी. पूरी तैयारी कर चुका था पर उसे ये मालूम भी नहीं था कि उसे कुछ मिलने वाला नहीं है....

उधर से हंसी के साथ आवाज आई,"एस.पी. साब, आप तो मुझे फंसा दिए जी... आपके रिश्तेदार घेर लिए हैं मुझे... वैसे रत्ना का पता मुझे भी नहीं पता पर आप तो मानोगे नहीं... अब ससुराल तो जाना ही पड़ेगा जहाँ आप किस्त दर किस्त मेरी सेवा करोगे... तो उससे बेहतर एकमुश्त ही रहेगी...और हां अब आपकी बेटी शायद ही वापस आएगी...जिंदा या मुर्दा.... गुड बाय.."

बात खत्म होते ही धांय की आवाज आई और उस आदमी की कराह एस.पी. के फोन में गूँज उठी... एस.पी. के साथ साथ सब चौंक के खड़े हो गए...

उसी पल वहीं बैठे एक ऑफिसर के फोन पर मैसेज आया कि इसने गोली मार कर खुदकुशी कर ली... वो बस सुन के रह गया... सब खेल तो वो सुन ही रहा था... एस.पी. असहनीय अंदरूनी दर्द से लिप्त चुपचाप अंदर की तरफ रूख हो लिया... किसी के पास कुछ पूछने कहने की थी ही नहीं...

धीरे धीरे सब अपने अपने मंजिल की तरफ रूख कर लिया....




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