Sunday, November 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--28end

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--28




एक भी कदम उसका सीधे नहीं पड़ रहा था।

एक ओर से रीतू भाभी और दूसरे ओर से ये उसे कस कर पकड़े हुए थे।

हर कदम पर कहर रही थी।

उसके गालों पे दाँतों के निशान साफ दिख रहे थे।

टॉप के ऊपर के दो बटन दिख रहे थे , और किशोर जस्ट उभरती उठती गोलाइयाँ न सिर्फ झाँक रही थीं , बल्कि खुल कर दिख रहे थीं और उन पर लगे दांत और नाख़ून के निशान भी.
लेकिन यहाँ तो मिश्रायिन भौजी ऐसी खेली खायी , घाट घाट का पानी पी हुयी , अनुभवी महिला थीं।

उन्होंने ऊपर से नीचे तक अपनी छुटकी ननद को देखा , जो अब क्लास ९ में ही उनकी बिरादरी में आ गयी थी।

जिसकी सोन चिरैया फुर्र फुर्र कर उड़ चुकी थी ,

बुलबुल ने चारा गटक लिया था।

और उनकी निगाह ने जैसे सहला दुलरा दिया हो , अपनी प्यारी दुलारी कुँवारी छोटी ननद को।

छुटकी शर्मा गयी।

उसके गुलाबी लाजवन्ती गाल पे मिश्रायिन भाभी ने जोर से चिकोटी काटी , और पुछा ,

" क्यों जा रही हो आज , अपने जीजा के साथ। '

वो और शरमा गयी , जैसे वो समझ गयी हो उसकी दी की ससुराल में क्या होना है , लेकिन जवाब भौजी के नंदोई ने दिया , वो भीउदास स्वर में,

" अरे क्या भाभी , जा रही है लेकिन १५ -२० दिन के बाद वापस आ जाएगी। "

" जबकि उसके दो हफ्ते बाद , गर्मी की दो महीने की छुट्टियां शुरू हो जाएँगी। "छुटकी ने भी अपना दुःख जाहिर किया।

" अरे गरमी छुट्टी का मजा तो गाँव में ही , हमारी अपनी इतनी बड़ी आम की बाग़ है , खूब गझिन , जहाँ दिन में रात हो जाय , लंगड़ा , दसहरी , सब कुछ , लेकिन अब इसको तो लौटना ही है। " भौजी के नंदोई का उदास स्वर चालू था।


'लेकिन काहें को लौटोगी , नंदोई जी सही तो कह रहे हैं अबकी गर्मी छुट्टी का मजा दीदी ससुराल में ही लो न , दी का भी तुम्हारे मन लगा रहेगा "

मिश्रायिन भाभी ने पुछा।

" मन तो मेरा भी यही कर रहा है , लेकिन , " छुटकी उदास मन से बोली।

और बात पूरी की , मम्मी ने।

" अरे आना तो पड़ेगा ही बिचारी को , आखिर सालाना इम्तहान है। '


मिश्रायिन भाभी मुस्कराईं और फिर , प्यार से छुटकी का गाल सहला के पूछीं ,

" तेरा क्या मन कर रहा है , जीजू के साथ गर्मी छुट्टी बिताने का , या फिर लौट के आने का। "

छुटकी को तो अभी इतना मस्त जो नया नया मजा मिला था , वो यहाँ लौट कर आने पर कहाँ मिलने वाला था , उसके मुंह से दिल कीबात निकल ही गयी।

" वहीँ गर्मी की छूटी बिताने का। "

" तो रहो न , क्यों लौट रही है १० दिन के लिए। " मुस्कराहट रोकती हुयी , मिश्रायिन भाभी बोलीं।

" अरे तो इम्तहान कौन देगा मेरा , " झुंझलाते हुए छुटकी बोली।

" तो मत देना ना , " मिश्रायिन भाभी बोलीं। फिर हंस कर उसे गले लगाते बोली ,

" अरे बुद्धू , मैं किस दिन काम आउंगी। तेरे छमाही में बहुत अच्छे नंबर थे , मुझे मालूम हैं , बस उसी के बेसिस पर , सप्लीमेंट्री आ जायेगी। और वैसे भी नौवें के नंबर कहाँ जुड़ते हैं। मेरी गारंटी। "

मिश्रायिन भाभी छुटकी के स्कूल की वाइस प्रिंसिपल थी और उन के 'वो ' मैनेजिंग कमेटी के सेक्रेटरी भी थे , किस की हिम्मत थी उन की बात टालती।

मारे ख़ुशी छुटकी उनसे चिपक गयी।

और उससे भी ज्यादा खुश हो रहे थे , 'वो ' , उसके जीजू।

और साथ में मैं , जिसमें उनकी ख़ुशी , उसमें मेरी ख़ुशी। 



और तभी मंझली भी आगयी।

उसका हाईस्कूल के बोर्ड का इम्तहान कल ही था।

तय ये हुआ की बोर्ड का इम्तहान खत्म हो कर के , वो भी मेरे पास आ जायेगी , और फिर पूरी गर्मी की छुट्टी , दोनों बहने वहीँ गाँव में बिताएंगी , मेरे साथ।

मैं मम्मी के साथ किचेन में लग गयी। बस दो घंटे बचे थे , हमें निकलने में।


आधे पौन घंटे में हम लोगों ने खाने का काम आलमोस्ट कर लिया।


मिश्रायिन भाभी और रीतू भाभी , नयी बछेड़ी , छुटकी को कबड्डी के दांव पेंच सीखा रही थीं। आखिर भाभियाँ थीं।

" नाम डुबोना हमारा " रीतू भाभी उसके टिकोरे मसलते बोलीं।

" अरे भाभी निचोड़ के रख दूंगी , "हँसते हुए छुटकी बोली।

और फिर मिश्रायिन भाभी पिछवाड़े के दरवाजे के गुर सिखाने में जुट गयीं।

मम्मी मुझसे बोलीं , जरा मैं छुटकी के कपडे सामान चेक कर लूँ।

और मैं ऊपर छुटकी के कमरे की ओर चल दी।

उसके कपड़ों में से मैंने उसकी ब्रा और पैंटी निकाल के वापस बाहर कर दी। सिवाय एक सेट के।


ये उन्ही का इंस्ट्रकशन था की , मैं उसकी ब्रा पैंटी निकाल दूँ। बात सही थी , गाँव में ये सब कौन पहनता है।

फिर उनका और ननदोई जी का फायदा , जब चाहा , पकड़ा , निहुराया , सटाया और चोद दिया।


कुछ शरारत और की मैंने , उसके टॉप की ऊपर की दो बटने मैंने तोड़ दी , अरे जब तक बहन के खुले खुले जोबन , पूरे गाँव में आग न लगाएं , तो मजा क्या।

बहुत देर से वो और मंझली नहीं दिख रहे थे।
दुछत्ती से कुछ बहुत हलकी हलकी आवाजें आ रही थी , वही जगह , जहाँ कल उन्होंने होली के मौके पे अपनी साली का भरतपुर लूट कर ससुराल में होली की शुरूआत की थी।

और मैंने ध्यान लगा कर देखा ,

वही दोनों थे , मंझली निहुरी हुयी , उसकी फ्राक उन्होंने कमर तक मोड़ रखी थी , और उसके छोटे छोटे लौंडा मार्क चूतड़ , हवा में उठे हुए थे।

" जीजू , इधर नहीं , प्लीज इधर बहुत दर्द करेगा। ' वो रिरिया रही थी।

लेकिन हाईस्कूल वाली साली की गांड मारनी हो तो कौन सुनता है। उन्होंने कमर पकड़ी और जोर का धक्का मार दिया।

दो चार धक्को में गांड का छल्ला पार था।

मंझली भी थोड़ा रोई धोई लेकिन , ८-१० धक्को के बाद ही , मजे से पीछे चूतड़ मटका मटका कर गांड मरवाने का मजा लेने लगी।


कोई मुझे ढूंढते हुए उपर न आ जाय , इसलिए दबे पाँव छुटकी का सामान लेकर मैं नीचे उत्तर गयी।

मिश्रायिन भाभी चली गयी थीं और रीतू भाभी , मम्मी के साथ मिलकर टेबल लगा रही थीं। 




छुटकी तैयार हो रही थी , ट्रेन के टाइम में एक घण्टा बचा था।

मंझली और रीतू भाभी हम लोगो स्टेशन तक छोड़ने आये।

और हम सब जब ट्रेन में बैठ गए , उन दोनों ने आँख नचाकर , मुस्कराकर पुछा
" क्यों जीजू , मजा आया ससुराल में पहली होली का ".

गाडी चलने के पहले टीटी आया , वही जो परसों रात में ट्रेन में था , और उसने वही बात बोली ,

" फर्स्ट क्लास में आज कोई और पैसेंजर नहीं है , आप लोगों के सिवाय। आप डिब्बे का ही दरवाजा अंदर से बंद कर लीजिये , मुझे और डिब्बे भी चेक करने हैं। "

मुस्कराते हुए उन्होंने हामी भरी। कनखियों से मैंने देखा , १०० के दो नोट इनके हाथ से उनके हाथ पास हुए , आते हुए दुगुने ,…

और क्यों नहीं माल भी तो दुगुने थे।

कच्चे टिकोरों वाली साली , रात भर रेल गाडी में सटासट सटासट , गपागप गपागप।


 बस , यह थी 'इनके ' ससुराल में पहली होली के दो दिनों की कहानी।

साथ के लिए धन्यवाद देकर आपके साथ बिताये गए पलों की मधुरिमा को कम नहीं करुँगी








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