Saturday, October 11, 2014

FUN-MAZA-MASTI आय्याश बाप और बेटी--5

FUN-MAZA-MASTI

 आय्याश बाप और बेटी--5



रणजीत- क्यों नहीं.. इसे तो मैं पूरे प्यार से चोदूँगा.. पर अभी नहीं.. अभी तुम फिल्म देखो.. तुम्हारा ट्रेलर बाद में करूँगा.. आज नहीं।
रानी कुछ नहीं बोली, तभी उसे कुछ याद आया।
रानी- अरे बाप रे.. ललिता हमें चलना होगा।
ललिता- पर कहाँ?
रानी- अरे यार.. तुम्हें याद नहीं है 9 बजे मेरे मामा जी आने वाले हैं।
ललिता- हाँ यार.. ये तो मैं भूल ही गई।
रानी- तुम मजे करो.. मैं चलती हूँ।
रणजीत- अरे डार्लिंग ऐसे कैसे जाओगी कुछ तो खा लो।
रानी- नहीं जीजाजी.. मेरे मामा जी आने वाले हैं शायद घर से कुछ पैसे लाए होंगे। मैं अभी जा रही हूँ नहीं तो वो गुड़गाँव चले जाएँगे
सो प्लीज़।
रणजीत- ओके मैं तुम्हें नीचे तक छोड़ दूँगा चलो।
रानी- नहीं इस रूप में आप कहीं नहीं जाएँगे।
रणजीत- नहीं यार.. कपड़े पहन लूँगा।
रानी- नहीं प्लीज़.. आप अपनी मस्ती करें और वैसे भी मैं कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती।
रणजीत- पर तुम्हें एक वादा करना होगा।
अब रणजीत रानी के काफ़ी करीब गया था। उसके एक हाथ को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से रानी की कमर को पकड़ा और उसे
काफ़ी करीब कर लिया।
रानी भी उससे चिपक गई।
अब रणजीत का दांयाँ हाथ रानी को नापने लगा।
उसकी गाण्ड का दबाब काफ़ी मस्त लग रहा था।
रणजीत ने उसके चूतड़ों को खूब दबाया और वो अब चुम्बन भी करने लगा, उसके बदन की खुशबू से रणजीत का लंड और भी बड़ा हो
गया।
रणजीत ने उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया और चूसने लगा और एक हाथ से उसकी चूचियों को दबाने लगा।
उसकी चूचियों को इतना दबाया कि उसके टॉप के फटने की स्थिति गई।
रानी- अरे अरे.. क्या कर रहे हो.. मेरा टॉप फट गया, तो मैं हॉस्टल कैसे जाऊँगी, लोग मेरी छातियों को ही देखते रहेंगेसो प्लीज़
छोड़िए, मुझे अब मैं चलती हूँ।
रणजीत- अरे यार इस लंड पर तो थोड़ा तरस खा..!
रणजीत हाथ आई मछली को जाने नहीं देना चाहता था। वो जानता था कि अगर ट्रेलर दिखाया जाए तो लड़की खुद उसके नीचे सोएगी..
सो वो इतना ही बोला- यार इस लंड पर एक पप्पी तो दे दो.. उसके बाद चली जाना।
रानी- ठीक है.. ये तो बड़ा प्यारा लग रहा है और मुझे डरा भी रहा है।
उसने झुक कर रणजीत के लंड को अपने हाथों में ले लिया और पहले थोड़ा सूँघा उसकी गन्ध उसे बहुत प्यारी लग रही थी। उसके बाद
एक हल्की सी चुम्मी ले ली और छोड़ दिया।
रानी- अब खुश..!
रणजीत- अरे ऐसे कैसे.. चुम्मी ऐसे थोड़े ही ली जाती है.. इस प्यार से चूमो, हिलाओ.. जरा स्वाद तो लो।
रानी- ये लास्ट होगा.. नहीं तो मैं लेट हो जाऊँगी।
वो इस बार ज़मीन पर बैठ गई और उसके लंड को हाथ में ले कर पहलेकिसकिया फिर उसने सुपारे को हल्के से अपनी जीभ से
भिगोया।
उसे अजीब सा लगा, पर मज़ा आया और फिर अपने होंठ को गोल करके सुपारे को अपने होंठों के अन्दर ले लिया और चूसने लगी।
रणजीत को बहुत अच्छा लगा दो सेकन्ड के बाद उसने छोड़ दिया और कहा- अब मैं चलती हूँ ओके..!
रणजीत- ओके डार्लिंग.. थैंक्स फिर कब मिलोगी?
रानी ने उसे धकेलते हुए कहा- जल्दी ही।
वो हंसती हुई कमरे से निकल गई। ललिता और रणजीत दरवाजे तक उसे छोड़ने आए।
रणजीत- हाँ तो डियर तुम्हारा क्या प्लान है? शादी हो रही है तुम्हारी.. कुछ तो मुँह मीठा कर दो।
ललिता- उसी लिए तो आई हूँ.. ये लो और उसने आगे बढ़ कर अपनी एक चूची को रणजीत के मुँह के पास रख दिया।
रणजीत- अरे वाह क्या बात है आज तो तुम बड़ी रंगीन लग रही हो।
ललिता- सब संगत का असर है.. जो केला तुमने खिलाया है वो तो मैं भूल नहीं सकती ना.. और फिर मैं ही क्या जो भी खाएगी वो नहीं
भूलेगी।
रणजीत- वो तो है.. ये है ही इतना बड़ा और प्यारा औरतों की पहली पसंद।
ललिता- अच्छा डार्लिंग.. सच-सच बताओ अब तक कितनी औरतों या लड़कियों को चोद चुके हो?
रणजीत- गिनती करना मुश्किल है, फिर भी ग्यारह को तो चोद चुका हूँ।
ललिता- 11 को.. क्या कह रहे हो?
रणजीत- हाँ 11 कोमैं 18 वर्ष की उम्र से ही चोद रहा हूँ, सबसे पहले मैंने अपनी मौसी को चोदा.. वही मेरी गुरु है। तब मैं 12 वीं
क्लास में था। फिर मैं और भी कई भाभियों और बहनों को चोदा फिर तो ऐसा हो गया कि चूतें खुद ही मेरे पास चल कर आती थीं और
मेरे लंड के नीचे सोती थीं और मेरी भी ये आदत हो गई।
ललिता- तुम्हारी पत्नी कुछ नहीं कहती?
रणजीत- नहीं.. दरअसल उसकी भी एक कहानी है, उसे एक लड़के से प्यार हो गया था। जब वो माँ बन गई तो वो लड़का भाग गया।
उसके पिता मेरे पिताजी के दोस्त थे, सो मुझे ही उससे शादी करनी पड़ी। सुहागरात में ही मैंने एक वादा ले लिया कि तुम बेशक मेरी
बीवी रहो, पर मेरी व्यक्तिगत जिंदगी में दखल ना देना। वैसे भी वो बहुत सीधी और सुंदर है। मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूँ। डॉली
मेरी बेटी नहीं है, ये ममता की बेटी है, पर हम दोनों बाप-बेटी एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।
ललिता- तो क्या आप डॉली को भी..!
रणजीत- क्या बकती हो ?
ललिता- अरे यार मैं तो ऐसे ही कह रही थी।
रणजीत- चुप.. वो ऐसी नहीं है.. मैं ज़रूर बुरा आदमी हूँ पर मेरी बेटी ऐसी नहीं है। वो तो बहुत अच्छी लड़की है, पर भगवान ने उसकी
माँग सूनी कर दी है। मुझे उसके बहुत चिंता रहती है।
ललिता- वो तो है ही.. भरी जवानी में विधवा होना वाकयी बहुत दु: वाली बात है।
रणजीत- वो तो ठीक है.. पर क्या हम लोग बात करके ही रात गुजरेंगे क्या? कब प्रोग्राम शुरू करना है।
ललिता- मैं कब मना कर रही हूँ.. आओ मेरी जान।
फिर रणजीत अपना लंड लिए ललिता के ऊपर चढ़ गया और एक ही झटके में पूरा लंड ललिता की चूत में घुस गया और फिर जम कर
चुदाई की।
चुदाई इतनी जबरदस्त थी कि ललिता का रोम-रोम हिल गया।
करीब आधा घंटे की चुदाई के बाद दोनों नंगे ही लेट गए, फिर वेटर से खाना मंगाया और खाना खाया। फिर दो बार और चुदाई हुई,
सुबह तक ललिता और रणजीत दोनों की खूब चुदाई हुई।
आज सुबह से ही डॉली का मन भारी-भारी सा लग रहा था।
इसी वजह से वो आज अस्पताल नहीं गई। सुबह चाय पीने के बाद वो नहाने चली गई, उसके बाद वो अपने कमरे की सफाई और कुछ
बेकार पेपरों को कूड़ेदान में फेंका।
अपने कमरे की सफाई करने के बाद अपने पापा के कमरे में आई।
ममता कहीं बाहर गई हुई थी। वो घर के बिस्तर ठीक करने लगी और झाड़ू लेकर घर को साफ़ करने लगी।
अल्मारी में कपड़े सही किए और तभी उसे एक पैकेट दिखाई दी जिस पर लिखा थाफॉर ललिता’.. उसके कान खड़े हो गए, वो पैकेट
खोलने से पहले सोचने लगी कि ललिता कौन है?
यह तो नाम उसे कभी सुनाई नहीं दिया, पर फिर लिखावट पर ध्यान दिया तो पाया कि यह तो उसके पापा का ही लिखावट है।
फिर उसने डरते हुए पैकेट को खोला, एक पत्र था और दो फोटो थीं जिसे देखते ही डॉली का पूरा शरीर पसीने-पसीने हो गया।
वो पत्र पढ़ना भूल गई बार-बार वो फोटो ही देख रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इस फोटो में ललिता नाम की लड़की के साथ
उसके पापा भी हैं।
किसने भेजा यह पैकेट.. किसने भेजा या कहीं उसके पापा तो नहीं भेज रहे थे?
वो अभी सोच ही रही थी कि टेलीफोन की घंटी बज गई। उसने दौड़ कर फोन उठाया, नेहा का फोन था।
नेहा- अरे आज क्या हुआ.. तुम नहीं आईं?
डॉली- हाँ यार.. आज मन ठीक नहीं लग रहा है, सो छुट्टी कर ली। तुम्हारा फोन लगायापर बिज़ी बता रहा था सो मैंने दुबारा नहीं
किया।
नेहा- खैर छोड़ो.. क्या कर रही हो?
डॉली- अभी फ्री हुई हूँ तो सोचा कि थोड़ी सफाई ही कर लूँ.. सो लगी हुई हूँ, तुम बताओ कहाँ हो?
नेहा- हाँ.. यार मैं भी सुबह से लगी हुई हूँ पर ओपीडी में भीड़ कभी खत्म ही नहीं होती और फिर एचओडी ने तुम्हारे पेशेंट भी मुझे ही दे
दिए हैं.. देख लो बेटा इसका बदला ले लूँगी।
डॉली- कोई बात नहीं मैं तैयार हूँ और दोनों खिलखला कर हँस पड़ीं।
फिर नेहा ने कहा- कोई बात नहीं.. कल मिलते हैं।
डॉली- हाँ.. ठीक है।
रिसीवर रखने के बाद फिर उसने पैकेट को देखा दो फोटो थीं एक फोटो किसी लड़की की थी, जो बिल्कुल नंगी थी और दूसरी फोटो में
वो लड़की और रणजीत का फोटो था।
उस फोटो को इस तरह से खींचा गया हुआ था कि उस लड़की की चूत में ज़ोर से लंड घुसा दिया हो। ऐसा रोल वो लड़की कर रही थी
और रणजीत का पूरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था।
रणजीत की पीठ और गाण्ड दिखाई दे रही थी, पर चेहरे से वो रणजीत ही था जिसको किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं थी।
रिसीवर रखने के बाद फिर डॉली ने पैकेट को देखा, दो फोटो थीं एक फोटो किसी लड़की की थी, जो बिल्कुल नंगी थी और दूसरी फोटो में वो लड़की और रणजीत का फोटो था।
उस फोटो को इस तरह से खींचा गया हुआ था कि उस लड़की की चूत में ज़ोर से लंड घुसा दिया हो। ऐसा रोल वो लड़की कर रही थी और रणजीत का पूरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था।
रणजीत की पीठ और गाण्ड दिखाई दे रही थी, पर चेहरे से वो रणजीत ही था जिसको किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं थी।
फिर वो पत्र पढ़ने लगी। पत्र में सिर्फ़ इतना ही लिखा थाशादी मुबारकमेरी तरफ से एक छोटी सी गिफ्ट मुबारक हो।
दूसरे दिन सुबह 9 बजे जब रणजीत ड्यूटी पर था तो रानी का फोन आया।
शुरू में तो उसने काट दिया पर रानी की बार बार कॉल आने से उसने मोबाइल ऑन कर दिया।
रणजीत- हाँ.. बोलो?
रानी- मैं आपसे बात करना चाहती हूँ।
रणजीत- अभी नहीं.. एक घंटे के बाद फोन करना.. अभी डीआईजी सर का निरीक्षण है।
रणजीत ने फोन काट दिया, रानी ने घड़ी की ओर देखा, तो मुस्कुरा दी और फिर कैंटीन की ओर चल दी।







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