Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--52

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--52

अब आगे...

 मैंने उठ के छत से नीचे आँगन में झाँका तो देखा भाभी उठ के चाय बनाने जा चुकीं थी| मैं उठा और नीचे आके ब्रश किया, कपडे बदले...अब नहा तो मैं रात को ही चूका था और ऊपर से ठण्ड इतनी लग रही थी की पानी छूने का मन नहीं कर रहा था| मैं रसोई के पास आया तो बड़के दादा नाश्ता कर रहे थे| उन्होंने मुझे भी नाश्ता करने को कहा पर मैं भला भाभी के हाथ का बना कुछ भी कैसे खा सकता था? मैंने ये कह के बात ताल दी की आज मैं फ़ाक़ा करूँगा| मैं बिना कुछ और बोले खेत चला गया| करीब आधे घंटे बाद बड़के दादा भी आ गए| आज मैं खुश था...क्योंकि आज मेरा प्यार जो वापस लौटने वाला था| मैं दो बस हसीन सपने सजोने में लगा था| और आज पूरी ताकत से काम करना चाहता था...मतलब जितनी भी बची थी| भौजी से मिलने की ख़ुशी इतनी थी की कल रात का सारा वाक्य भूल गया..ना भूख लग रही थी ना ही प्यास! इस मिलने के एक एहसास ने मेरे अंदर एक नै ताकत सँजो दी थी और मन कर रहा था की अकेला सारा खेत काट डालूँ| दोपहर तक मैं बिना रुके...पूरे जोश से लगा हुआ था और बड़के दादा तक मेरा जोश देख के हैरान थे और खुश भी थे| इधर रसिका भाभी भी कुछ देर बाद आ गईं और वो भी हाथ बताने लगीं| मैंने उनि जरा भी ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा| एक अलग ही मनुस्कान मेरे मुख पे तैर रही थी| इतना खुश तो मैं तब भी नहीं हुआ था जब मैं भौजी से मिलने गाँव आया था| रसिका भाभी भी हैरान दिख रहीं थी की आज मैं इतना खुश क्यों हूँ? खेर दोपहर के भोजन का समय हुआ तो हम वापस घर लौटे| मैं तो ख़ुशी से इधर से उधर चक्कर लगा रहा था| सड़क पे नजरें बिछाये बेसब्री से भौजी के आने का रास्ता देख रहा था| बड़के दादा ने भोजन के लिए कहा पर मैंने अनसुना कर दिया| कल रात को जो मैं ठन्डे पानी से नहाया था अब वो भी असर दिखाने लगा था| गाला भारी हो गया था और नाक बंद हो गई थी| बदन भी दर्द करने लगा था... पर दिल जिस्म की शिकायतों को अनसुना कर रहा था| जब घडी में तीन बजे और बड़के दादा पुनः खेत में जाने के लिए कहने लगे तब एक पल के लिए लगा की भौजी आज आएँगी ही नहीं| शायद सासु जी और ससुर जी ने उन्हीं रोक लिया होगा| मन थोड़ा मायूस हुआ पर दिल कह रहा था की थोड़ा सब्र कर वो शाम तक जर्रूर आ जाएँगी| दिमाग ने तैयारी कर ली थी की जैसे ही वो आएँगी मैं उन्हें कस के गले लगा लूँगा| खेर मैं बेमन से खेत में काम करने छाला गया|

बड़के दादा: अरे मुन्ना आज क्या बात है, तुम सुबह तो बड़े जोश से काम कर रहे थे| मुझे तो लग रहा था की तुम अकेले सारा खेत काट डालोगे, पर अब तुम ढीले पड़ गए| क्या हुआ?

मैं: जी सुबह-सुबह फूर्ति ज्यादा होती है और अभी थोड़ा थकावट लग रही है|

बड़के दादा: तो जाके थोड़ा आराम कर लो|

मैं: जी ठीक है|

मैं उठ के जाने लगा तभी बड़के दादा के फ़ोन की घंटी बज उठी| ये फ़ोन पिताजी ने किया था| बात होने के बाद बड़के दादा ने बताया की माँ, पिताजी और बड़की अम्मा कुछ दिन और रुकेंगे| पर हो सकता है की बड़की अम्मा कल लौट आएं| खेर मैं बहुत थक चूका था और कल रात से तो मानसिक और शारीरिक से पीड़ित था!


 मैं खेत से घर आ रहा था तो रास्ते में मुझे माधुरी खड़ी दिखी, ऐसा लगा जैसे वो मेरा ही इन्तेजार कर रही हो| उसे देख के मेरा मन फिर से दुखी हो गया| मैं वहीँ खड़ा हो गया ... और दो सेकंड बाद वो ही चल के मेरे पास आई;

माधुरी: मानु जी....

मैं: बोल.... (मैंने मन में सोचा की एक तू ही बची थी ... तू भी ले ले मुझसे मजे|)

माधुरी: आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही|

मैं: वो सब छोड़.... तू बता क्या चाइये तुझे?

माधुरी: आप बड़े रूखे तरीके से बात कर रहे हो|

मैं: देख मुझ में इतनी ताकत नहीं है की मैं तुझसे यहाँ खड़े रह के बात करूँ| तू साफ़-साफ़ ये बता की तुझे क्या चाहिए?

माधुरी: वो.... मेरे पिताजी ने जो लड़का पसंद किया है वो "अम्बाले" का है... लड़के वाले इस गाँव तक बरात लेके नहीं आ सकते क्योंकि..... यहाँ की हलात तो आप जानते ही हो| तो पिताजी ने ये तय किया है की शादी अम्बाला में मेरे मामा के घर पर ही होगी|

मैं: तो?

माधुरी: हमें कल ही निकलना है....और जाने से पहले मिअन चाहती हूँ की एक बार आप अगर....

मैं: अगर क्या?

माधुरी: मेरे साथ सेक्स कर लें तो.....


मैं: तेरा दिमाग ख़राब है क्या? तेरी शादी होने वाली है और तेरे अंदर अब भी वो कीड़ा कुलबुला रहा है? तुझ जैसी गिरी हुई लड़की मैंने अब तक नहीं देखि|

माधुरी: उस दिन आपने बड़े rough तरीके से किया था... तो इस बार....

मैं: मैं तुझसे प्यार नहीं करता ...जो तेरे साथ प्यार से वो सब करता| और वैसे भी वो सब करने के लिए तूने मुझे मजबूर किया था| तब मैं नहीं जानता था की तेरी असलियत क्या है... गर मैं जानता तो मरते मर जाता पर तुझे कभी हाथ नहीं लगता| भले ही तू मर जाती पर....मैं तेरा कहा कभी नहीं करता!

माधुरी: कैसी असलियत? (उसने अनजान बनते हुए कहा)

मैं: तू पुराने मास्टर साहब के लड़के को अपने साथ भगा कर ले गई थी ना?

माधुरी: नहीं...वो मुझे भगा के ....

मैं: चुप कर... मैं जानता हूँ कौन किसे भगा के ले गया|

माधुरी: नहीं...नहीं... आप मुझे गलत समझ रहे हैं!

मैं: मुझे ये बात तेरी ही सहेली ने बताई है...रसिका भाभी ने! अब कह दे की वो झूठ कह रहीं थी!

माधुरी का सर शर्म से झुक गया|

मैं: उस दिन जब मैं बीमार था और तू मुझसे मिलने आई थी... तब तूने जो कुछ कहा.... उसे सुन के एक पल के लिए मुझे विश्वास हो गया था की तू मुझसे सच में प्यार करती है| पर जब मुझे तेरी सारी असलियत पता चली तो मुझे एहसास हुआ की तू मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती| तुझे तो बस शहरी लड़कों का चस्का है|

माधुरी: (आँखों में आँसूं भरे) पर मैंने आपको अपना कुंवारापन सौंपा था!

मैं: वो इसलिए की तू उस लड़के के साथ उसी के किसी दोस्त के यहाँ ठहरी थी| वहां वो तेरे साथ तो कुछ कर नहीं सकता था...या शायद वो लड़का साफ़ दिल का होगा| जो आग उस लड़के से नहीं बुझी उसे बुझाने के लिए तू मेरे पास आ गई| और मैं भी बेवकूफ निकला जो तेरी बातों में आ गया! इस बात का मुझे ताउम्र गिला रहेगा की मैंने तेरे जैसी लड़की की बात में आके ये दुष्कर्म किया|

......और इतने से भी तेरा दिल नहीं भरा तो तूने उस बिचारे लड़के और उसके बाप को ही फँसा दिया और बेइज्जत करके गाँव से निकलवा दिया| अगर इतनी ही दया भाव था तो तू ने उसी लड़के से शादी क्यों नहीं की?

माधुरी: आप मुझे गलत समझ रहे हो... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ|

मैं: हुंह....प्यार? तेरे प्यार की हद्द सिर्फ जिस्म तक है| खेर मुझे अब तुझसे कोई बात नहीं करनी.... और ना ही मैं तुझसे दुबारा मिलूंगा| GOODBYE !!!

मैं इतना कहके वहाँ से चला आया| मैं घर आके चारपाई पे पड़ गया और चादर ओढ़ ली|



 पेट में चूहे दौड़ रहे थे ... बुखार लग रहा था... बदन टूट रहा था और खांसीजुखाम तो पहले से ही तंग कर रहे थे| मैंने सुना था की खाली पेट दवाई नहीं लेनी चाहिए पर क्या करता ...शहर होता तो मैं खुद किचन में घुस के कुछ बना लेता पर गाँव में तो तो नियम कानों इतने हैं की पूछो मत! मैं जैसे तैसे उठा और बड़े घर जाके अपने कमरे से क्रोसिन निकाली और खाली पेट खाली! मन में सोच जो होगा देखा जायेगा! पेट को समझाया की "यार शांत हो जा...शाम को भौजी आ जाएँगी तो वो कुछ बनाएंगी तब तेरी बूख मिटेगी|" पेट ने तो जैसे-तैसे समझौता कर लिया पर बिमारी थी की तंग करने से बाज नहीं आ रही थी| कुछ समय में मेरी आंख लग गई... और जब उठा तो रात के आठ बज रहे थे| अभी तक भौजी नहीं आईं? हाय अब मेरा क्या होगा? सारी उम्मीद खत्म हो गई थी| दिल टूट के टुकड़े-टुकड़े हो गया... खुद पे गुस्सा भी आया की बड़ा आया तीसमारखां ... लोग अपने पाँव पे कुल्हाड़ी मारते हैं मैंने तो पाँव ही कुल्हाड़ी पे दे मारा|

रसिका भाभी मुझे उठाने आईं पर मैं तो पहले ही जाग चूका था;

रसिका भाभी: चलो मानु जी... खाना खा लो?

मैं: (अकड़ते हुए) आपको मेरा जवाब मालूम है ना? फिर क्यों पूछ रहे हो?

रसिका भाभी: नहीं आने वाली आपकी भौजी! अब कम से कम पंद्रह दिन बाद आएँगी तो तब तक यूँ ही भूखे बैठे रहोगे?

मैं: आपको इससे क्या?

रसिका भाभी: दीदी आके मुझे डाटेंगी की मैंने तुम्हारा ख़याल नहीं रखा!

मैं: आपने तो हद्द से ज्यादा ही ख्याल रखा है... इतना ख्याल रखा की मेरी हालत ख़राब कर दी| आप जाओ और मुझे सोने दो|

रसिका भाभी: मानु जी ... मान जाओ पिछले तीन दिनों से आप्पने कुछ नहीं खाया और आज भी सारा दिन हो गया कुछ नहीं खाया| मेरा गुस्सा खाने पे मत निकालो और कृपा करके कुछ खा लो|

मैं: मुझे नहीं खाना!!

मैं वापस लेट गया, और चादर सर पे डाल ली| रसिका भाभी पिनाक के चली गईं अब मुझे चिंता हुई की मैं आज सोऊंगा कहाँ? आँगन में सोया तो यी फिर काल रात वाला सीन दोहरायेेंगी और आज तो मुझ में इतनी ताकत भी नहीं की मैं इनका सामना कर सकूँ| मैंने एक आईडिया निकला, मैं अपने कमरे में सोने के लिए चल दिया| अब दिक्कत ये थी की कमरे के दरवाजे में अंदर से चिटकनी नहीं थी जिससे मैं दरवाजा लॉक कर सकूँ! फिर उसका भी रास्ता धुंध लिया मैंने| कमरे में एक चारपाई पड़ी थी मैंने उसे दरवाजे के सामने इस तरह से बिछा दिया की दरवाजा खुले ही ना| जब मैं चारपाई पे लेट गया तो वजन से दरवाजा बहुत थोड़ा ही खुल पाता था .. उतने Gap से केवल एक हाथ ही अंदर आ सकता था| मेरे लेटने के करीब घण्टे भर बाद भाभी आ गईं और मुझे घर के अंदर ना पाके आवाज मारने लगी| मैं कुछ नहीं बोला... कुछ देर बाद उन्होंने कमरे की खिड़की जो दरवाजे के बगल में लगी थी उसमें से झाँका तो देखा अंदर मैं सो रहा था;

रसिका भाभी: हाय राम.... बहुत उस्ताद हो? दरवाजा बंद करके सो रहे हो? डर रहे हो की मैं कल वाली हरकत फिर दोहराऊंगी?

मैं कुछ नहीं बोला बस ऐसा जताया जैसे मैं गहरी नींद में हूँ|

रसिका भाभी: अच्छा बाबा मैं कुछ नहीं करुँगी... अब तो बहार आ जाओ| मैं यहाँ अकेले कैसे सोउंगी?

मैं कुछ नहीं बोला और आखिर में भाभी हार मान के आँगन में अपनी चारपाई पे लेट गईं| सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह मुझे बड़के दादा ने जगाया| उन्होंने दरवाजे पे दस्तक दी तब जाके मैं उठा और मैंने दरवाजा खोला| घडी सुबह के साढ़े नौ बजा चुकी थी| शरीर बिलकुल जवाब दे चूका था... जरा सी भी ताकत नहीं बची थी| बड़के दादा मेरे पास बैठे और मेरे सर पे हाथ फेरा तब उन्हें पता चला की मुझे बुखार है| उन्होंने मुझे आराम करने की हिदायत दी और खेत पे चले गए| मैं वापस लेट गया, कुछ देर बाद वरुण मेरे पास आया| मैंने उसे ये कहके खुद से दूर कर दिया की "मुझे जुखाम-खांसी है... और अगर आप मेरे पास रहोगे तो आपको भी हो जायेगा|" वो बिचारा बच्चा चुप-चाप बाहर चला गया| ऐसा नहीं है की मैं उससे नफरत करता था, पर मैं नहीं चाहता था की वो मेरी वजह से बीमार पड़ जाए|


 अभी मैंने चैन की सांस ली ही थी की इतने में भाभी आ गईं;

रसिका भाभी: मानु जी... ये गर्म-गर्म काली मिर्च वाली चाय पी लो, जुखाम-खांसी ठीक हो जायेगा|

मैं: No Thank You !

मैं और कुछ नहीं बोला और अपने दाहिने हाथ से आँखों को ढका और सोने लगा| घड़ी में करीब डेढ़ बजा होगा जब किसी ने मुझे जगाया| ये कोई और नहीं बड़की अम्मा थीं|

बड़की अम्मा: मुन्ना तुम्हें तो बुखार है?

मैं: अम्मा.... आप कब आए?

बड़की अम्मा: कुछ देर हुई बेटा| पर तुम ये बताओ की ये क्या हाल बना रखा है? तुम्हारे बड़के दादा तो कह रहे थे मुन्ना ने बहुत काम किया खेत में| आधा खेत तो उसने ही काटा है! लगता है बेटा कुछ ज्यादा ही म्हणत कर ली तुमने?

मैं: अरे नहीं अम्मा...वो तो बस...... खेर एक बात कहूँ अम्मा आज आपके हाथ की अदरक वाली चाय पीने का मन कर रहा है|

बड़की अम्मा: पर बेटा ये तो खाने का समय है?

मैं: अम्मा आप तो देख ही रहे हो की गाला भारी है... अदरक वाली चाय पियूँगा तो गले को आराम मिलेगा और ताकत भी आएगी| अभी आधा खेत भी तो बाकी है!

बड़की अम्मा: नहीं बेटा तुम आराम करो.....काम होता रहेगा|

मैं: नहीं अम्मा....आप देख ही रहे हो मौसम अचानक से ठंडा हो गया है| अगर बारिश हो गई तो बहुत नुक्सान होगा|

बड़की अम्मा: पर बेटा....

मैं: नहीं अम्मा ... प्लीज!!!

बड़की अम्मा: ठीक है बेटा ... पहले मैं चाय लाती हूँ|

मैं उठा और बड़की अम्मा के पीछे-पीछे जा पहुंचा| दरअसल मैं ये पक्का करना चाहता था की चाय अम्मा ही बनाएं| मैं छप्पर के नीचे तख़्त पे पसर गया| मेरी नजर रसोई पे थी... अम्मा ने हाथ-मुंह धोया और चाय बनाने घुस गईं| बड़के दादा ने मुझे खाने के लिए कहा पर मैंने ये बहन कर दिया की खाना खाने से सुस्ती आएगी और मुझे खेतों में काम करना है| रसिका भाभी ने मेरी शिाकायत करनी चाही;

बड़के दादा: मुन्ना कुछ तो खा लो?

मैं: नहीं दादा... अभी मन सिर्फ अम्मा के हाथ की चाय पीने का है| शहर में तो पेपरों के दिनों में मैं सिर्फ माँ की हाथ की चाय ही पीटा हूँ| ताकि दिन में नींद ना आये|

रसिका भाभी: पिताजी...मानु जी ने चार दिनों से.....

मैं: (बीच में बात काटते हुए) अम्मा... माँ और पिताजी कब आ रहे हैं?

बड़की अम्मा: बेटा वो परसों आएंगे|

मैं: तो आप अकेले आए हो?

बड़की अम्मा: नहीं बेटा ... तुम्हारे मामा का लड़का छोड़ गया था|

मैंने इसी तरह बातों का सील-सिला जारी रखा ताकि भाभी को बोलने का मौका ही ना मिले| मैंने अम्मा और दादा को बातों में असा उलझाया की रसिका भाभी को बात शुरू करने का कोई मौका ही नहीं मिला| बातें करते-करते हम खेत चले गए और मैंने अपनी पूरी ताकत कटाई में झौंक दी| शाम को वापस आए तो मेरी हालत नहीं थी की मैं कुछ कर सकूँ| मैं बस अपने कमरे में गया और वहां चारपाई पे पसर गया| सारा दिन मैंने खुद को बहुत सजा दी थी... बीमार होते हुए भी कटाई जारी रखी.... हाँ एक बात थी की अम्मा के हाथ की बानी चाय ने मुझ में कुछ तो जान फूंकी थी!!! करीब दो घंटे ककी कटाई रह गई थी बाकी सब मैंने और बड़के दादा ने मिलके काट डाला था| चारपाई पे लेटते ही मैं बेसुध होके सो गया| बस सुबह आँख खुली और अब मेरी तबियत बहुत खराब थी| बुखार से बदन तप रहा था .. गले से आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि खांसी और बलगम ने गला चोक कर दिया था| मैं बस एक चादर ओढ़े पड़ा था| दिमाग ने तो भौजी के आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी पर दिल था जो अब भी कह रहा था की नहीं तेरा प्यार जर्रूर आएगा|



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