Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--49

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--49

अब आगे...


 मैं: भाभी मुझे गुस्सा मत दिलाओ... और हटो मुझ पर से| मैं आपके चक्कर में नहीं पड़ने वाला!

मैंने उन्हें धकेला और उनके चंगुल से निकल भागा .... जैसी ही मैं बड़े घर से निकल के बहार आय मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया| वो कोई और नहीं बल्कि रसिका भाभी का बेटा वरुण था जिसे छोड़ने कोई आदमी आया था| वो उसे मेरे पास छोड़के फटा-फट चला गया| साफ़ था की रसिका भाभी के घर और हमारे घरों के बीच सम्बन्ध भारत-पाकिस्तान जैसे थे| बस एक बात का फर्क था, रसिका भाभी के घर वाले जानते थे और मानते थे की खोट उनकी ही बेटी में है| पर इधर मेरा मिशन उल्टा पड़ चूका था| मेरा उनके विबाहित जीवन में सुख लाने का प्लान मेरी ही गांड में घुस गया था!!! मैं जानता हूँ की आप में से कई रीडर्स मुझे चु@@@ समझेंगे क्योंकि ऐसा मौका कोई हाथ से जाने नहीं देता! पर ये मेरा अपनी भौजी, जिन्हें मैं अपनी पत्नी मानता था उनके प्रति मेरा समर्पण था जो मुझे गिरने नहीं दे रहा था! अब वरुण से मैं इतना घुला-मिला नहीं था इसलिए वो मेरे साथ बिलकुल चुप-चाप खड़ा था| इतने में अंदर से रसिका भाभी निकलीं और वरुण को देख के खुश हो गई| मैं वहाँ से अपनी जान बचा के भागना चाहता था पर रसिका भाभी ने फिर मुझे पकड़ लिया;

रसिका भाभी: मानु जी... मुझे ना सही पर काम से काम अपने भतीजे को ही थोड़ा प्यार दे दो!

मैं: वरुण बेटा... चलो क्रिकेट खेलते हैं?

रसिका भाभी: हाय!!! जब आप बेटा बोलते हो तो मेरे दिल पे छुरियाँ चल जाती हैं! और उसके साथ क्रिकेट खलने को तैयार हो पर मेरे साथ नहीं, ऐसा भेद-भाव क्यों?

मैं: आपको जरा भी शर्म हया नहीं? अपने बेटे के सामने ऐसी बातें कर रहे हो!

रसिका भाभी बोलीं कुछ नहीं बस चोरों वाली हँसी हँस दी| मैं वरुण को अपने साथ ले के खेतों की ओर चल दिया क्योंकि अब वही सुरक्षित जगह बची थी मेरे लिए| मैं जानता था की मैं खुद पे सैयाम रख सकता हूँ पर अगर उन्होंने जबरदस्ती कुछ किया और किसी ने हमें देख लिया तो? रास्ते में मैं वरुण से बात करता रहा.. इससे एक तो मेरा ध्यान भाभी पे कम था और मैं वरुण को जानना भी चाहता था| जब हम खेत पहुंचे तो वरुण को देख के किसी के मुंख पे कोई ख़ुशी नहीं थी... अजय भैया का पारा तो चढ़ने लगा था| मैं किसी से कुछ नहीं बोला और वरुण को लेके घर वापस आ गया| मुझे बेचारे पे तरस आया और चूँकि अब नेहा नहीं थी तो मैंने सोचा की चलो कोई तो है मेरा दिल बहलाने के लिए! मैंने वरुण को लेके गाँव की छोटी सी दूकान की ओर चल दिया ओर वहाँ जाके उसे चॉकलेट दिलाई| वो बहुत खुश हो गया ओर मैंने प्यार से उसके सर पे हाथ फेरा| हम वापस घर आये तो खाने का समय हो चूका था| पर नाजाने क्यों आज मेरा खाने का मन बिलकुल नहीं था| जी बड़ा उचाट था! खाना रसियक भाभी ने पकाया था ओर सब बैठ के भोजन कर रहे थे ... मैंने अपना खाना भाभी से लिया और वरुण को अपने साथ लेके कुऐं की मुंडेर पे बैठ गया| वहाँ मैंने उसे अपने हाथ से खाना खिलाया और खाली थाली ले के धोने के लिए डाल दी| घरवालों के लिए मैंने खाना खा लिया था और खाना खाने के बाद सब खेत चले गए और मैं पेड़ के नीचे चारपाई डाले लेट गया| अब तक वरुण मेरे से थोड़ा खुल गया था और वो भी मेरे पास ही बैठ गया और अपने खिलौनों से खेलने लगा| मैं आँख बंद की और सोने लगा| पर नींद कहाँ... भौजी की बड़ी याद आ रही थी| अभी उन्हें गए कुछ घंटे ही हुए थे और मेरा ये हाल था! मन कर रहा था की उनके मायके धडधाता हुआ पहुँच जाऊँ और उन्हें गले लगा लूँ और सब के सामने उन्हें गोद में उठा के ले आऊँ| मेरा दायाँ हाथ सर के नीचे था और बायाँ हाथ मेरे सीने पे था और मैं आँख मूंदें सोने की कोशिश कर रहा था| इतने में मुझे रसिका भाभी के आने की आहात सुनाई दी| मैं झट से आँखें बंद कर ली और ऐसा दिखाया जैसे मैं सो रहा हूँ| भाभी मेरे पास आइन और वरुण को अपनी गोद में लेके चली गईं| मैं रहत की साँस ली पर ये रहत ज्यादा देर के लिए नहीं थी| भाभी फिर लौट के आईं, मैंने फिर से आँखें बंद कर ली| भाभी झुकी और मेरे लंड को सहलाने लगी| जैसे ही उनका हाथ मेरे लंड से स्पर्श हुआ मैं चौंक के उठ खड़ा हुआ;

मैं: आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की?

रसिका भाभी: हाय... तुम गुस्से में बहुत प्यारे लगते हो!

मैं: भाभी अब बहुत हो गया! मैं अब और बर्दाश्त नहीं करूँगा! अब अगर दुबारा आपने मेरे नजदीक आने की कोशिश की तो मैं भूल जाऊंगा की मेरे पिताजी ने मुझे संस्कार दिए हैं की अपने से बड़ों पे हाथ नहीं उठाते! (मैंने ऊँची आवाज में उन्हें साफ़ जता दिया की मैं ये सब आसानी से सहने वालों में से नहीं हूँ|)

रसिका भाभी: मुझे मार लो.. काट दो… चाहे मेरे टुकड़े-टुकड़े कर दो पर बस एक बार....एक बार मेरी प्यास बूझा दो!

मैं: कभी नहीं!!!

बस इतना कह के मैं वहाँ से चला आया और खेतों में सब के साथ काम करने लगा| करीब घंटे भर के अंदर सभी लोग खेत से वापस चल दिए, घर आये तो देखा वरुण रो रहा था! वो भागता हुआ आया और मुझसे लिपट गया| मैंने रसिका भाभी की ओर देखा तो वो गुस्से में तमतमा रहीं थी| लग रहा था जैसे मेरा सारा गुस्सा उस बेचारे पे निकाल दिया हो! मैंने वरुण को चुप कराया ओर उसे गोद में ले के बड़े घर गया ओर उसके कपडे जिन पर मिटटी लगी थी वो उतारने लगा| फिर मैं रसिका भाभी के कमरे में घुस ओर वरुण के कपडे निकाले औरजैसे ही मुड़ा पीछे भाभी खड़ी थीं|

मैं: (गरजते हुए) क्यों डाँटा उस बिचारे बच्चे को? मेरा गुस्सा उसी पे निकालना था?

रसिका भाभी: हाय! मेरे बेटे के लिए प्यार है... पर मेरे लिए नहीं? ऐसी बेरुखी मेरे साथ क्यों?

मैं: आप मेरे प्यार के लायक नहीं हो!

रसिका भाभी: तो किस लायक हूँ मैं?

मैं: नफरत के!!!

रसिका भाभी: तो नफरत ही कर लो मुझसे, मैं उसी को तुम्हारा प्यार समझ लूँगी|

मैं: अब बहुत हो गया... जाने दो मुझे|

रसिका भाभी ने दरवाजा अपने दोनों हाथों से रोक रखा था और मुझे जाने नहीं दे रहीं थी|

रसिका भाभी: एक शर्त पे जाने दूंगी...

मैं: कैसी शर्त?

रसिका भाभी: मुझे तुम्हारा वो (मेरे लैंड की ओर इशारा करते हुए) एक बार देखना है|

मैं: (गरजते हुए) क्या? मुझे मजबूर मत करो हाथ उठाने के लिए ...

रसिका भाभी: तो मैं नहीं हटने वाली|

मैं कुछ नहीं बोला और अपने आप को अंदर ही अंदर रोकता रहा की मैं उन पर हाथ न उठाउँ| इतने में किसी के आने की आहट हुई और रसिका भाभी एक दम से पीछे घूमीं ... उनका बयां हाथ दरवाजे की चौखट से हटा और मैंने सोचा की मैं इसी का फायदा उठा के निकला जाता हूँ| जैसे ही मैं उनके नजदीक पहुंचा उन्होंने अपना हाथ फिर चौखट पे रख दिया और बायीं और झुक गईं| मेरे और उनके होठों के बीच बहुत काम फासला था| ऊपर से मुझे इतने नजदीक से भाभी के स्तनों के बीच की घाटी दिखने लगी थी| उनके वो सफ़ेद-सफ़ेद स्तन देख के दिमाग चक्र गया पर फिर अपने आप को संभाला और मैं पीछे हुआ ... तभी भाभी ने अपने दायें हाथ से फिर मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ लिया और मैं छिटक के पीछे हुआ|



 मैं: बहुत हो गया अब...

रसिका भाभी: (मेरी बात काटते हुए) हाय! अभी बहुत हुआ कहाँ... अभी तो बहुत कुछ बाकी है!!!

अब मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने एक जोरदार तमाचा उनके बाएं गाल पे जड़ दिया| भाभी का बैलेंस बिगड़ा और वो चारपाई का सहारा ले के नीचे बैठ गईं| आज पहली बार मैंने किसी औरत पे हाथ उठाया था... पर शायद वो उसी के लायक थी;

मैं: (झिड़कते हुए) खबरदार जो मेरे आस-पास भटके!

मैं हैरान था की उनके माथे पे एक शिकन तक नहीं पड़ी थीं बल्कि वो तो हँस रही थी| मैं वहाँ से गुस्से में तमतमाता हुआ बहार आ गया| वरुण को मैंने बहार दरवाजे से पुकारा और उसे रसोई के पास छप्पर के नीचे बिठा के उसके कपडे बदले| इतने में अजय भैया आये और वरुण को देख के उनका गुस्सा और भड़क गया| वो पाँव पटकते हुए रसिका भाभी से लड़ने के इरादा लिए बड़े घर की ओर चल दिए| जहाँ शायद वो अब भी उसी तरह नीचे बैठी थीं| मेरा दिमाग कह रहा था की तुझे कोई जर्रूरत नहीं उनके बीच में पड़ने की औरभाभी को उनके किये की सजा तो मिलनी ही चाहिए! पर मन बेचैन हो रहा था और रह-रह के मन कर रहा था की मैं भैया को भाभी की पिटाई करने से रोकूँ| अंदर ही अंदर मेरा भाभी पे हाथ उठाना मुझे सही नहीं लग रहा था| मैं अंदर ही अंदर घुटने लगा था... अपने आप को कोस रहा था| कुछ ही देर में मुझे भैया-भाभी के जोर-जोर से लड़ने की आवाज आने लगी| मैं खुद को नहीं रोक पाया और जल्दी से बड़े घर की ओर भागा| अंदर का नजारा दर्दनाक था... अजय भैया के हाथ में बांस का डंडा था जिससे वो कम से कम एक बार तो भाभी की पीठ सेंक ही चुके होंगे क्योंकि भाभी फर्श पे पड़ी करहा रही थी ओर जल बिन मछली की तरह फड़-फड़ा रही थी| जब तक मैं भैया को रोकता उन्होंने एक और डंडा भाभी को दे मारा! मैंने लपक के भैया के हाथ से डंडा छुड़ाया और भैया को खींच के बहार ले गया| इतने में पिताजी भी दौड़े, अब चूँकि भाभी फर्श पे पड़ीं थी और ऐसा लग रहा था जैसे वो होश में नहीं हैं और ऊपर से उनके सर पे घूँघट नहीं था और उनका नंगा पेट साफ़ झलक रहा था इसलिए मैंने खुद को परदे की तरह उनके सामने कर दिया ताकि किसी को अंदर का हाल न दिखे| इतना अवश्य दिख रहा था की कोई फर्श पे पड़ा है ... पिताजी ने जब इतना दृश्य देखा तो वो अजय भैया को गुस्से में पकड़ के बहार ले गए| मुझे लगा की शायद माँ या बड़की अम्मा कोई तो आएंगे पर कोई नहीं आया|

जिस इंसान पे थोड़ी देर पहले मुझे गुस्सा आ रहा था अब उस पे दया आने लगी थी| मैंने आगे बढ़ के उन्हें सहारा दे कर चारपाई पर लेटाया और वो किसी लाश की तरह दिख रहीं थी| दिमाग कह रहा था की दो डंडे खाने से कोई नहीं मरता पर फिर भी अपने मन की तसल्ली के लिए मैंने उनकी नाक के आगे ऊँगली रख के सुनिश्चित किया की वो साँस ले रहीं है| मैंने उन्हें हिला के होश में लाने की कोशिश की पर वो नहीं उठी| फिर मैं स्नान घर से पानी ले कर आय और उनके मुँह पे छिड़का तब जाके वो हिलीं और होश में आते ही मुझसे लिपट गईं और मुझे अपने ऊपर खींच लिया| मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं सीधा उनके ऊपर जा गिरा| मेरा मुँह सीधा उनके स्तनों के ऊपर था और भाभी का दबाव मेरी गर्दन पे इतना ज्यादा था की एक पल के लिए लगा मैं साँस ही नहीं ले पाउँगा| मैंने अपने आप को उनसे छुड़ाया और छिटक के दूर दिवार से लग के खड़ा हुआ और अपनी सांसें ठीक की| अब उनका करहना और रोना-धोना शुरू हो गया| मेरा दिल फिर पिघल गया और मैं उनके लिए पेनकिलर ले आया और उनकी ओर दवाई का पत्ता बढ़ा दिया| वो बोलीं; "मेरी पीठ बहुत दुःख रही है... दवाई लगा दो ना?" जिस तरह से वो बोल रहीं थीं उससे लग रहा था की जैसे वो मुझे seduce कर रही हो| मैंने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाये और कहा; "अभ आता हूँ|" मैं बहार गया ओर अपने साथ वरुण को ले आया| अब वरुण को देख के भाभी के तोते उड़ गए! और मुझे बहुत हँसी आई ...

रसिका भाभी: मुझे इस तरह तड़पता देख के तुम्हें बहुत हँसी आ रही है|

मैं: हाँ... (बड़े गंभीर स्वर में)

रसिका भाभी: तुम ऊपर से चाहे कितना ही दिखाओ की तुम मुझसे बहुत नफरत करते हो पर अंदर से तुम मुझसे प्यार करते हो|

मैं: ये आपका वहम् है| मैं आपसे कटाई प्यार नहीं करता और न ही कभी करूँगा| आपको एक बात समझ नहीं आती... अजय भैया मेरे "भैया" हैं! और आप उनकी पत्नी आपके मन में ये गन्दा ख्याल आया ही कैसे?

रसिका भाभी: पहली बात तो ये की तुम उनके चचेरे भाई हो .. सगे नहीं और अगर होते भी तो मुझे क्या फर्क पड़ना था| और दूसरी बात ये की जब कामवासना की आग किसी के तन-बदन में लगी हो तो वो किसी भी रिश्ते की मर्यादा नहीं देखता|

मैं: छी..छी... आप बहुत गंदे हो! मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी|

मैं वहाँ से जाने लगा... तभी मुझे याद आया की ये घायल शेरनी है और ये मेरा गुस्सा फिर से अपने बच्चे पे ना निकाले इसलिए मैं जाते-जाते उन्हें हिदायत दे गया;

मैं: वरुण बेटा आप मम्मी को दवाई लगा के ये गोली खिला देना और फिर मेरे पास आ जाना| और हाँ आप (रसिका भाभी) अगर आपने वरुण पे हाथ उठाया तो .... सोच लेना!!!

मैंने उन्हें बिना सर-पैर की धमकी दे डाली थी पर मैं अब भी डर रहा था की कहीं ये शेरनी अपने ही बच्चे को पंजा मार के घायल ना कर दे| पर शुक्र है भगवान का की ऐसा कुछ नहीं हुआ|


 अंधेरा हो रहा था और इधर मुझे अपने ही शरीर से रसिका भाभी की बू आ रही थी! बार-बार उनका मेरे लंड को पकड़ना याद आने लगा था| ऐसा लग रहा था जैसे अभी भी मेरा लंड उनकी गिरफ्त में है| इस वहम् से बहार निकलने का एक ही तरीका था की मैं स्नान कर लूँ| पर इतनी रात को ...हैंडपंप के ठन्डे पानी से.... वो भी नंगा हो के? अब मैं बड़े घर में जाके नहीं नहा सकता था क्योंकी वहाँ रसिका भाभी जीभ निकाले मेरा लंड देखने को तैयार लेटी थीं| और अगर वो ये नजारा देख लेटी तो मुझ पे झपट पड़ती और मेरी मर्जी के खिलाफ वो सब करने की कोशिश करती| वो सफल तो नहीं होती पर पर उनका मेरे शरीर को छूना.... वो मुझे फिर से उसी मानसिक स्थिति में डाल देता जिससे भौजी ने मुझे बाहर निकला था| मैं पहले चन्दर भैया के पास गया;

मैं: भैया मुझे नहाना है तो क्या मैं आपके घर में नहा लूँ?

चन्दर भैया: मानु भैया, घर आपका है कहीं भी नहाओ पर इतनी रात को नहाना सही नहीं| ठण्ड लग जायेगी... वैसे भी ठंडी हवा तो चल रही है, क्या जर्रूरत है नहाने की?

मैं: भैया मन थोड़ा उदास है, नहाऊंगा तो थोड़ा तारो-ताजा महसूस करूँगा|

चन्दर भैया: अपनी भौजी को याद कर के उदास हो रहे हो?

मैं: नहीं... पर नेहा की बहुत याद आ रही है|

चन्दर भैया: मुझे तो लगा की आप अपनी भौजी को याद कर रहे होगे... पर ठीक है जैसी आप की मर्जी|

अब उनकी ये डबल मीनिंग बात का मतलब मैं समझ चूका था पर मैंने इस बात को कुरेदा नहीं| मैं बाल्टी में पानी लिए भौजी के घर में घुसा और स्नानघर मैं बाल्टी रख के अपने कपडे उतारने लगा| आँगन में राखी चारपाई को बार-बार देख के लगता था जैसे भौजी वहीँ बैठी हैं और अभी उठ के मेरे गले लग जाएँगी| जब मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी तो अपने निप्प्लेस को देखा जिन पर भौजी ने एक दिन पहले कटा था और चूस-चाट के उसे लाल कर दिया था| मैं आँखें बंद किये वही मंजर याद करने लगा और मेरे रोंगटे खड़े हो गए! हमेशा नहाने में मुझे दस मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता था पर आज मुझे आधा घंटा लगा, क्योंकी आज नहाते हुए मैं उन सभी हंसी लम्हों को याद करता रहा| साथ ही साथ मैंने खुद को इतना रगड़ के साफ़ किया जैसे मैं एक सदी से नहीं नहाया हूँ... क्योंकी मैं चाहता था की मेरे शरीर से रसिका भाभी की बू जल्द से जल्द निकल जाए| ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाने के बाद अब बारी थी कुछ खाने की क्योंकी सुबह से मैं कुछ नहीं खाया था ... पर हाय रे मेरी किस्मत जब मैं रसोई पहुँचा तो वहाँ रसिका भाभी बैठी रोटी सेंक रही थी| अब ना जाने क्यों मेरे अंदर गुस्से की आग फिर भड़की और मैं मुँह बना के वापस चारपाई पे लेट गया| पता नहीं क्यों पर मेरी इच्छा नहीं हो रही थी की उनके हाथ का बना हुआ खाना खाऊँ!



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