Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--43

 FUN-MAZA-MASTI
 बदलाव के बीज--43

अब आगे...

घर भरा-भरा लग रहा था ... चन्दर भैया और अजय भैया दोनों वापस आ गए थे| पिताजी और बड़के दादा कुऐं के पास बैठे बात कर रहे थे और बड़की अम्मा और माँ आचार के लिए आम इकठ्ठा कर रहे थे| रसिका भाभी घूँघट काढ़े जानवरों को पानी पिला रही थीं| मतलब सब के सब अांगन में ही मौजूद थे और हमें देखते ही सबसे पहले पिताजी ने सवाल दागा;

पिताजी: क्यों भई कहाँ से आरहे हैं तीनों, देवर-भाभी और भतीजी?

जैसे ही भौजी की नजर घूँघट के अंदर से पिताजी और बड़के दादा पे पड़ी तो वो अपने घर में घुस गईं|

मैं: जी वो... पिक्चर देखने गए थे?

पिताजी: तो नालायक घर में बताना जर्रुरी नहीं था?

मैं: जी पूछ के गया था|

पिताजी: हम से तो नहीं पूछा?

मैं: जी आप खेत पे थे|

पिताजी: सभी सवालों के जवाब रट के आया है! अगर पिक्चर देखने जाना ही था तो सारे चलते? तुम तीनों ही क्यों गए?

मैं: जी मैंने प्लान बनाया था अम्मा, माँ, भाभी, भौजी और नेहा को एक साथ ले जाने का| परन्तु अम्मा ने मना कर दिया की वो और माँ नहीं जायेंगे| अब बचे मैं, नेहा, भाभी और भौजी| तो भाभी की तबियत सुबह से खराब थी और ये बात उन्होंने ही मुझे बताई थी| उन्होंने कहा था की मैं आज सारा दिन सोना चाहती हूँ| तो मैंने अम्मा से कहा की क्यों न मैं, नेहा और भौजी ही पिक्चर देख आएं| अम्मा ने इज्जाजत दी तभी हम गए वार्ना हम नहीं जाते| वैसे भी आप सभी के कहने के अनुसार, भौजी मेरी वजह से ही शादी में नहीं गई तो मैंने सोचा इसी बहाने इनका दिल बहाल जायेगा|

पिताजी: ठीक है, अगर भाभी (बड़की अम्मा) से पूछ के गए थे तो ठीक है|

मैं: पिताजी मैं आप सभी के लिए खाने के लिए कुछ लाया हूँ|

पिताजी: ये की न अकल मंदी वाली बात! शाबाश! ये खाने पीने का सामान अपनी माँ को दे दे|


मैं अपने कपडे बदल के आया पर भौजी मुझे ना तो प्रमुख आँगन में मिली और ना ही रसोई में| आखिर मैं उनके घर में पहुँचा तो भौजी मुझे दरवाजे की ओर पीठ कर के खड़ी दिखाई दी| मैंने भौजी को पीछे से बाँहों में भर लिया और उनकी गर्दन पे अपने होंठ रख दिए| भौजी के मुख से सिसकारी फूट पड़ी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स" मैंने उनका मुख तो नहीं देखा था पर ये एहसास हो गया था की माधुरी की वजह से उनका मूड खराब है|

मैं: जानता हूँ आपका मूड खराब है ... पर प्लीज मेरे लिए अपना मूड ठीक कर लो| अभी तो आखरी सरप्राइज बाकी है!

भौजी: उस माधुरी ने.....
(भौजी के कुछ कहने से पहले ही मैंने उनके होठों पे ऊँगली रख के उन्हें चुप होने का इशारा किया|)

मैं: shhhhhhhhh बस अब मूड मत ख़राब करो|
(भौजी मेरी ओर पलटीं ओर मेरी आँखों में देखने लगीं....)

भौजी: तो अगला सरप्राइज क्या है?

मैं: जल्दी पता चल जायेगा, पर पहले आप को मेरी एक इच्छा पूरी करनी होगी|

भौजी: हाँ बोलिए... आपका हुक्म सर आँखों पे|

मैं: मैं आज रात आपको, आपके शादी के जोड़े में देखना चाहता हूँ|

भौजी: बस? इतनी सी बात| ठीक है और कुछ हुक्म करिये?

मैं: नहीं... मैं रात को साढ़े ग्यारह बजे आऊँगा|

भौजी: और मेरा सरप्राइज का क्या?

मैं: वो कल मिलेगा|

भौजी: कल? इतना इन्तेजार करवाओगे मुझसे?

मैं: हाँ.... इन्तेजार करने में जो मजा है वो किसी और किसी बात में नहीं|

भौजी: आप भी न सच्ची बहुत तड़पाते हो!

मैं: अच्छा ये तो बात हुई सरप्राइज की, अब मैं कुछ और बात भी करना चाहता हूँ?

भौजी: हाँ बोलो?

मैं: नहीं अभी नहीं... बाद में!

भौजी: नहीं कहिये ना?

मैं: नहीं... बड़ी मुश्किल से आपका मूड ठीक हुआ है, और मैं उसे दुबारा ख़राब नहीं करूँगा|



ये कहके मैंने उनके होठों को अपने होठों से छुआ और हलकी सी Kiss देके बहार निकल आया| बहार नेहा बहुत खुश दिख रही थी और आज मुझसे कुछ ज्यादा ही दुलार कर रही थी| जब से मैं आया था tab से मैंने नेहा को चन्दर भैया के साथ बहुत कम ही देखा था| और जब से वो बेल्ट से पिटाई वाला हादसा हुआ तबसे तो नेहा चन्दर भैया से एक दम कट गई थी| मुझे तो लगता था की वो उन्हें अपना बाप ही नहीं मानती... खेर ये मेरी सोच थी पर मैंने कभी भी नेहा से इस बारे मैं बात नहीं की| रात को भोजन खाके मैं अपनी चारपाई पे लेटा था और तभ कूदती हुई नेहा भी मेरे पास आके लेट गई| मैंने नेहा को हमेशा की तरह कहानी सुनाई और वो सुनते-सुनते वो सो गई|

जैसे ही घडी में रात के साढ़े ग्यारह बजे मैं मूतने के लिए उठा और चेक करने लगा की सब सो रहे है ना| फिर मैं वापसी में सीधा भौजी के घर की ओर बढ़ गया| दरवाजा खुला था और मैंने अंदर जा के दरवाजा बंद किया| जैसे ही मैं पलटा तो देखा भौजी आँगन में अपनी शादी का लाल जोड़ा पहने, घूँघट काढ़े मेरे सामने कड़ी हैं| मैं हाथ बंधे उन्हें देखता ही रहा.... करीब पांच मिनट तक मैं बस उन्हें निहारता रहा और भौजी भी कुछ नहीं बोलीं| मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या कहूँ| फिर मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ा और उनके सामने खड़ा हो गया| मैंने उनका घूँघट उठाया तो उनके हुस्न ने मेरा क़त्ल कर दिया| चाँद की रौशनी में ऐसा लग रहा था जैसे चाँद का एक टुकड़ा कट के मेरी झोली में आ गिरा हो! भौजी की आँखें झुकी हुई थीं... पर मेरी आँखें उनके चेहरे पे टिकी हुई थी| मैंने भौजी की ठुड्डी को अपनी उँगलियों से ऊपर उठाया और तब हमारी आँखें चार हुई!

मैं: प्लीज अपनी आँखें बंद करो|

भौजी ने बड़ी नजाकत से अपनी आँखें बंद की| मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और ट्रैक पेंट से मंगलसूत्र का CASE निकला| उसे खोला... और CASE को चारपाई पे रख दिया| मंगलसूत्र हाथ में लेके मैंने भौजी के गले में हाथ डालके गर्दन के पीछे उसे लॉक किया| अब भौजी को कुछ तो समझ आ गया था, क्योंकि जैसे ही मैंने मंगलसूत्र को लॉक किया और अपने हाथ वापस खींचे तो भौजी ने अपनी आँखें उसी नजाकत से खोलीं जिस नजाकत से बंद की थी|

भौजी: ये... आपके पास....
(मैंने आगे उन्हें कुछ भी बोलने नहीं दिया और उनके होठों पे अपनी ऊँगली रख दी|)

मैं: shhhhh ये आपके लिए है| मैंने कहीं से चुराया नहीं है.... कल जब मैं आपसे माँ का मंगलसूत्र वापस लेने आया था तब मुझे बड़ा बुरा लगा| मेरे दिल में एक ख्वाइश हुई की क्यों न मैं आपको एक मंगलसूत्र पहनाऊँ, जो मैंने खरीदा हो| इसलिए आज जब आप खाना खा रहे थे तब मैं दुकाने से बहार निकल के सुनार से खरीद लाया था| मुझे स्कूल जाते समय पिताजी जेब खर्ची के लिए पैसे देते हैं उन्ही पैसों से मैंने आपके लिए ये लिया|

भौजी ने मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुनी और बातें सुन के उनकी आँखों में आंसूं छलक आये और वो कुछ ना बोलीं बस मेरे गले लग गईं| रोने से उनके गले से आवाज भी नहीं निकल रही थी, बस इतना ही बोल पाईं; "आज आपने मुझे पूर्ण कर दिया!!!" और मुझे से लिपट के सुबकने लगी|

“बस..बस... चुप हो जाओ| मैंने आपको ये तौफा आपको रुलाने के लिए नहीं दिया था!"
तब जाके भौजी चुप हुईं, अब मैंने उनके कंधे पे हाथ रख के उन्हें अपने से थोड़ा दूर किया और फिर उनके आँसूं पोछे|

मैं: अब कभी मत रोना?

भौजी ने हाँ में अपना सर हिलाया| मैं पलट के जाने लगा तो भौजी बोलीं;

भौजी: आप कहाँ जा रहे हो?

मैं: सोने

भौजी: क्या? पर अभी? आजतो हमारी सुहागरात है!

मैं: क्या? सुहागरात तो उस दिन थी ना?

भौजी: पर मंगलसूत्र तो आपने आज पहनाया है ना? एक तरफ तो आप मुझे रोने के लिए मन करते हो और दूसरी तरफ मुझे यूँ अकेला छोड़के जारहे हो?

मैं: मैं आपको छोड़के कहीं नहीं जा रहा, मेरा मकसद आज आपको सिर्फ मंगलसूत्र पहनाने का था बस और कुछ नहीं|

भौजी: वाह जी वाह, आपने तो कहा था की तीसरा सरप्राइज आप कल दोगे?

मैं: घडी देख लो, बारह बजके एक मिनट हो चूका है! मैं कभी झूठ नहीं बोलता!

भौजी: ठीक है बाबा, आप जीते पर मैं आज आपको नहीं जाने दूँगी|


इतना कहके भौजी तेजी से मेरी ओर चलती हुई आई और मुझसे कस के लिपट गई|

भौजी: आपको पता भी है की मेरा हाल क्या है? मैं कितना अकेला महसूस करती हूँ.... आपको नेहा का अकेलापन दीखता है पर मेरा नहीं! पिछले 5 - 6 दिनों से आपने मुझे छुआ भी नहीं? कल भी सारा दिन आप मेरे साथ खेल खेलते रहे और ऐसे जताया की जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं| आप जब खाना ले के आये तो मुझे लगा की आपका गुस्सा शांत हो गया है और आप रात में आओगे पर नहीं.....मेरा कितना मन है आप के साथ ... पर आप हैं की ....

मैं: Awwwww !!! O.K. बाबा नहीं जाऊँगा! बस खुश!!!

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस अपने नीचे वाले होंठ को अपने दाँतों तले दबाया और मुस्कुरा दीं| पता नहीं क्या हुआ, वो मुझे एक टक देखने लगीं..... और फिर एक कदम पीछे गईं और नीचे घुटनों के बल बैठ गईं| पर मुझे बहुत ही अजीब लगा... एक अलग सी फीलिंग हुई और इधर भौजी का हाथ मेरे पजामे के ऊपर था| इसे पहले की भौजी मेरे पजामे को नीचे खींचे मैंने उन्हें कंधे से पकड़ा और वापस खड़ा किया| भौजी अपनी दोनों भौएं सिकोड़ के सवालिया नजरों से देखने लगीं| मैंने कुछ नहीं कहा और बस ना में सर हिला के उन्हें रोका| भौजी ने अपने हाथ आगे बढ़ा के मेरी टी-शर्ट उतारी और इस बार मैंने उनका जरा भी विरोध नहीं किया| भौजी ने अपने सीधे हाथ को मेरी नंगी छाती पे फिराया ...मेरा शरीर गर्म था! उन्होंने आगे बढ़ के मेरे दिल के ऊपर अपने होठों से चुम्बन किया| मानो ये जता रहीं हों की ये मेरा है! फिर धीरे से वो एक कदम पीछे हो गईं| मैं धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगा ओर वो पीछे होती गई... आखिर हम चारपाई तक पहुंचे| मैंने उनको बिठाया .... और फिर धीरे-धीरे उन्हें लेटा दिया| मैं अब उनके ऊपर चढ़ गया और उनके होठों पे अपने होंठ टिका दिया| मैंने अपना पूरा वजन उनपे नहीं डाला था मैं बिलकुल Push Ups मारने वाली स्थिति में था|

मैंने सीधा अपने जीभ उनके मुंह में प्रवेश कर दी और भौजी ने बड़ी गर्म जोशी से उसका स्वागत किया| मेरी जीभ उनके मुंह में भ्रमण कर रही थी और इधर भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द अपनी गिरफ्त बना ली थी| वो अब भी मुझे अपने ऊपर खींच रहीं थी... पर मैं उनके निचले होंठ को चूसने में व्यस्त था| वो मधुर सुगंध मुझे फिर से पागल किये जा रही थी| मैं उन्हें बेतहाशा चूमे जा रहा था| पर अब बारी थी भौजी की,,, जैसे ही मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में दुबारा प्रवेश कराई उन्होंने अपने मोती से सफ़ेद दाँतों से मेरी जीभ को पकड़ लिया| अब मेरी जीभ उनके मुंह के अंदर छटपटाने लगी जैसे किसी छिपकली की पूँछ काट देने पे उसकी पूँछ कुछ देर के लिए छटपटाने लग जाती है| ये तो साफ़ था की दोनों जिस्म वासना और प्यार की मिलीजुली अग्नि में झुलस रहे हैं! अब भौजी ने मेरी जीभ को दाँतों से दबाये हुए ही चूसना शुरू कर दिया था| इधर मेरा लंड पाजामा फाड़ के बहार आने को तैयार था| मैंने धीरे से अपने लंड को उनकी योनि पे दबाना शुरू कर दिया था| पर भौजी मेरी जीभ को अपने दाँतों की गिरफ्त से छोड़ना ही नहीं चाहती थीं| मैं चूँकि Push Ups मारने वाली स्थिति में उनके ऊपर लेटा था इसलिए मैं धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगा जिससे की मेरी जीभ बहार निकलने को तड़पने लगी| पर भौजी कहाँ मानने वाली थीं... उन्होंने मेरी जीभ को तो आजाद किया पर मेरे निचले होंठ को अपने होठों में भर लिया और लगीं उसे चूसने| अब मैंने भी सोचा की चलो जो ये चाहें वही सही और मैंने भी उनका पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया| मैं भी उनके ऊपर के होठ को चूसने लगा और ये सिलसिला करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा| ना तो उनका मन था मेरे होंट छोड़ने का और ना ही मेरा मन था उनके होठों को छोड़ने का!

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