Thursday, October 30, 2014

FUN-MAZA-MASTI छोटी बहन के साथ--20

 FUN-MAZA-MASTI
 छोटी बहन के साथ--20

 मैंने उसको पूरी तरह से उठने ना दिया और उसको जल्दी से पकड कर झुकाया तो वो अपने चारों हाथ-पैर के सहारे वहीं झुक गई और मैं अब उसके ऊपर चढ गया। पीछे से जब मैंने उसकी खुली हुई चूत में अपना लन्ड घुसाया तो वो सिसकार रोक न सकी। मैं अब मस्त हो कर रूमी को चोद रहा था। उसकी पीठ पर झुक कर मैं उसके बडे-बड़े गेन्दों को भी सहला रहा था। उसका पति संदीपन बगल में बैठ कर सब देख रहा था। विभा भी चुप-चाप हम दोनों की चुदाई देख रही थी। वो चरम-सुख पा कर अब थोडा शान्त होने लगी थी और मैं अभी भी जोश में था तो उसने अपने को मेरे नीचे से निकाल लिया और फ़िर मुझे लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गई। उसने अपने हाथ से मेरा लन्ड पकड कर अपनी चूत में घुसाया और फ़िर ऊछल-ऊछल कर मुझे चोदने लगी। इस तरह से मुझे उसके गेंदों का ऊछाल देखने का भरपूर मौका मिल रहा था। तभी संदीपन ने कहा, "रूमी लेट जाओ, मैं आता हूँ अब"। रूमी अपने चूत में मेरा लन्ड फ़ँसाए हुए हीं मेरे ऊपर लेट गई। उसकी चुचियाँ मेरे सीने से लगी थी। अब संदीपन फ़टाक से ्कमर के नीचे नंगा हो कर आया और उसकी गाँड़ चाटने लगा। हम दोनों को अब थोडा आराम करने का मौका मिल गया था सो हम जोर-जोर से साँस लेने लगे थे। जल्दी हीं संदीपन उठा और उसकी गाँड़ में अपना लन्ड डाल दिया फ़िर उसने ऊअप्र से धक्के लगाने शुरु किए। अब रूमी की चूत में मेरा लन्ड था और उसकी गाँड में उसके पति का। हम दोनों के लन्ड उसकी दोनों छेदों की चुदाई करने लगे थे। बेचारी अब कभी-कभी दर्द से कराह देती थी। मैं भी अपने लन्ड पर संदीपन के लन्ड का दबाव महसूस कर लेता था जब वो धक्का देता। हम दोनों के लन्ड के बीच रूमी के बदन की एक पतली झील्ली ही तो थी। संदीपन जल्द हीं उसकी गाँड में झड गया और हट गया। तब मैंने रूमी तो पलट कर सीधा लिटा दिया और उसके ऊपर से उसकी चुदाई करने लगा। मैं अब उसको चुमते हुए चोद रहा था। वो अब तक दो बार झड़ कर थक कर निढ़ाल हो गई थी और अपना बदन बिल्कुल ढीला छोड दिया था जैसे बेजान हो गई हो। मैंने उसके पैरों को अपने कंधों पर चढा लिया और फ़िर उसकी चूचियों को जोर-जोर से मसल्ते हुए तेज धक्के लगाने शुरु कर दिए। चुचियों के मसलने से वो दर्द से बिलबिला गई थी पर मैं अब झडने के कागार पर था सो रुकने का नाम नहीं ले रहा था... घच्च घच्च घच्च घच्च थप-थप-थप... और मैं झड गया। मेरा सारा माल उसकी चूत में भर गया था। मैं अब उसके ऊपर से हटा तो वो बेचारी दर्द से कराहते हुए पलट गई और एक-दो बार अपने जाँघ सिकोड कर थोड़ा तसल्ली की। फ़िर उसने अपने हाथों से आँसू पोंछते हुए कहा, "कितना जोर से दबा दिए थे मेरी छाती को, लगा कि प्राण निकल जाएगा... छीः"। मैंने उसको सौरी बोला, और अब जब होश में आकर सब तरफ़ देखा तो पाया कि एक और जोडा पास में खडा हो कर हम सब को देख रहा है। उस जोडे के लडके ने मेरे और संदीपन से हाथ मिलाया और लडकी रूमी और विभा से गला मिली। फ़िर वो लोग चले गए। उस समय अब सिर्फ़ हम सब ही बचे थे। मैंने घड़ी देखी तो पौने आठ बज गया था। विभा को अब यहाँ चोदने का समय नहीं था और मैं भी थक गया था। रूमी अपना कपडा पहन चुकी थी। सो हम सब एक-दूसरे से विदा ले कर अपने-अपने रास्ते निकल गए।


 बाहर ही खाना खा कर हम होटल आ गए। विभा कपडे बदलते हुए रूमी के बारे में बात कर रही थी कि कैसी गंदी थी वो। मैंने कहा, "मस्त थी... गंदी मत कहो उसको"। वो मुझे देख कर मुँह बिचकाई और चुप हो गई। आज मैं भी थक गया था और विभा भी सो तय हुआ कि आज का कसर कल निकालेंगे। वो समझ गयी कि अब कल तक के लिए वोह बच गयी है। सो थोडा निश्चिन्त हुई और बिस्तर पर सोने के लिए आई और मेरी गोदी में सिमट गई। मैंने प्यार से जब उसका माथा चूमा तब वो बोली, "भैया, आप भी बहुत गन्दे हैं... कैसे आप रूमा को चोद रहे थे? क्या सोच कर उसको ऐसे खुले में हम सब के सामने चोदे?" मैंने भी उसको प्यार से सहलाते हुए कहा, "देखो बहना... यह लन्ड और चूत के रिश्ते में कोई चीज नहीं होती है। जब उसका पति खुद बोला उसको चोदने के लिए तो मैं क्यों न कहता। वैसे भी रूमा जवान थी... माल थी... और चुदाने को तैयार भी थी"। अब वो बोली, "मतलब... अगर कल को कोई आया और बोला कि वो मेरे साथ ... करेगा, तब आप उसको भी हाँ कह देंगे?" मैं उसका इरादा समझ गया और बोला, "अरे नहीं मेरी रानी बहना..., तू तो स्पेशल है मेरे लिए। कोई साला आँख भी उठाया तो उसका आँख निकाल देंगे..." मैंने उसको पुचकारा तो उसको तसल्ली हुई और फ़िर वो अपना चेहरा मेरे सीने से चिपका दी। मैंने अब उसको चिढाने के लिए कहा, "तुम्हारी प्यारी चूत तो सिर्फ़ मेरे लिए है बहना रानी... अभी तो उसको कम से कम साल भर चोदुँगा फ़िर एक साला हस्बैंड ला दुँगा जिससे फ़िर खुले-आम चुदाना"। वो सब समझी और बोली, "जैसे आप तो अभी सब छुप के कर रहे हैं... जब से किशनगंज से निकले हैं तब से लगातार मुझे बीवी बनाए हुए हैं... आपको शर्म नहीं आती, कैसे सब को कह देते हैं कि मैं आपकी बीवी हूँ और कितायदारे के यहाँ कैसे बोल दिए कि आप बिना शादी किए मुझे साथ लाए हैं और मेरे घरवाले साथ भेजे हैं... छी:"। मैंने हँसते हुए कहा, "अरे तो मजा आया ना... कैसे सब तुमको मौड समझ कर बीहेव कर रहे थे"। वो मुंह बनाते हुए बोली, "सब मुझे बेशर्म समझ रहे होंगे... कैसी लडकी है बिना शादी किए एक लडके के साथ घुम रही है और इसके घर वाले भी वैसे हीं बेशर्म है जो इसको ऐसे भेज देते हैं"। मैंने कहा, "अरे तो फ़िर इसमें गलत क्या है... बेशर्म तो तुम हो ही... अपने भैया से चुदाती हो, और तुम्हारे घर वाले ही सब साले ठरकी हैं हीं, तुम्हारी बहन ट्रेन में अपने भैया से चुदाती है और तुम दो महीना भाई का लन्ड चुसके मजा लेने के बाद एक होटल में भाई से चुदवाने में मजा लेती हो... अब तो सिर्फ़ तुम्हारा रंडी बनना बाकी है... बोल न मेरी बहना, बनेगी एक टौप की रंडी"। वो मेरा आशय समझ गई, और फ़िर मेरी नजर से नजर मिलाकर बोली, "अब क्या बचा है, इतना दिन से अपना इज्जत बचा कर रखे हुए थे, पर आप न मुझे फ़ँसा हीं लिए", और मेरे होठ चूम ली। मैंने भी उसको चूमा और कहा, "अभी रंडी कहाँ बनी हो मेरी जान... उसके लिए तुमको बेशर्म हो कर सब के सामने चुदाना होगा... तब जा कर रंडी की डीग्री मिलेगी मेरी बहना को... बोल न विभा, कब रंडी बनेगी?" वो चुप रही तो मैंने कहा, "कल से शुरुआत कर दो तो किशनगन्ज लौटने से पहले रंडी की डीग्री मिल जाएगी तुमको, अभी कुछ समय तो हमलोग पुरी में हैं हीं, और यहाँ मौका भी है"। वो करवट बदलते हुए बोली, "अब सोइए, आप अपनी मनमानी किए बिना छोडिएगा थोडे न... कल मेरा काँन्ख का बाल साफ़ कर दीजिएगा, स्लीवलेस पहनने में कैसा गन्दा लगता है, कल अंकल की नजर बार-बार मेरे काँख की तरफ़ जाती थी, जब मैं अपना हाथ उठा कर बाल चेहरे से हटाती थी, अब कल नाश्ते में सुबह उनके घर ही जाना है और और आप सब कपड़ा हीं मेरा स्लीवलेस रखवा दिए हैं।" मैंने भी उसकी पीटः से चिपकते हुए कहा, "अरे तो बढीया है न उस बुढे की लाईफ़ में थोडा रंग तो आया"। फ़िर हम वैसे ही चिपक कर सो गए।

 अब बस हम दोनों भाई-बहन और अंकल घर पर थे। मैंने मौका ठीक समझा तो कहा, "अंकल अगर आप बूरा न माने तो एक बात कहूँ..."। मैं और विभा अंकल के सामने एक ही सोफ़ा पर बैठे हुए थे। जब अंकल ने मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो मैंने बेशर्म की तरह कह दिया, "रात में तो हम लोग थक कर सो गए थे, फ़िर सुबह मौका मिला नहीं और कुछ दिन में हम लौट भी जाएंगे... तो क्या करीब आधा घन्टा हम दोनों अकेले एक कमरे में जा सकते हैं"... कहते हुए मैंने विभा की कमर के गिर्द अपने हाथ लपेट दिया। अंकल समझ कर मुस्कुराए और फ़िर कहा, "ठीक है, पर आंटी के आने के पहले बाहर आ जाना..."। मैंने कहा, "बस घडी देख कर आधा घन्टा से ज्यादा नहीं लगेगा"। वो मुस्कुराते हुए हमे अपने बेडरूम में ले गए और बोला, "इस कमरे से बाथरूम अटैच है तो सुविधा होगी बाद के लिए"। मैंने थैन्क-यू कहा और फ़िर विभा को कमरे में खींच लिया। मैंने दरवाजा वैसे हीं छोड दिया, पर अंकल थोडा सज्जन थे, वो टीवी खोल कर बैठ गए। विभा ने दरवाजे की तरफ़ इशारा किया तो मैंने कहा, "चल आ जल्दी से ऐसी ही न रंडी-गिरी की डीग्री मिलेगा तुमको", और फ़टाफ़ट उसके कपडे उतार दिए। मेरा लन्ड तो कमरे में घुसते समय हीं लहराने लगा था सो मैंने उसको अंकल की बिस्तर पर लिटा कर उसकी झाँटों वाले चूत चाटने लगा, जल्दी हीं उसके मुँह से सिसकी निकलने लगी थी। मैंने फ़िर उसको सीधा लिटा कर चोदना शुरु कर दिया। थप्प-थप्प की आवाज होने लगी थी और मेरे धक्कों पर कभी-कभी विभा के मुँह से कराह निकल जाती... मुझे पक्का भरोसा था कि अंकल को हमारी चुदाई की आवाज सुनाई दे रही होगी। करीब ८ मिनट की धक्कमपेल चुदाई के बाद मैं उसकी चूत के भीतर हीं झड गया और मेरा सब माल उसकी बूर से बह निकला। मैंने अब अपने रुमाल से उसकी चूत पोछी, पर कुछ माल उसकी बूर में भीत्र ही रह गया। फ़िर जब हम कपडे पहनने लगे तो मैंने कहा, "ऐसे हीं बिना पैन्टी के ही जीन्स पहन लो, पैन्टी गन्दा हो जाएगा... अभी जब खडा हो कर चलोगी तो मेरा कुछ पानी तो तुम्हारे बूर से रिसेगा हीं बाहर"। विभा भी मेरा बात मान ली और फ़िर जीन्स सीधे पहन कर अपने पैन्टी को अपने जीन्स की जेब में ठुँस लिया। जब वो उठी तो मैंने देखा कि उसकी बूर का रज और मेरा वीर्य उस बिस्तर पर थोड़ा स लग गया था और करीब एक ईंच व्यास का गीला दाग बना दिया था। फ़िर हम बाहर आ गए, कुल करीब ३८ मिनट हमने लिया था।

 अंकल हमे देख कर मुस्कुराए और कहा, "तुम दोनों का चेहरा देख कर लगता है बहुत मेहनत करना हुआ है जल्दी के चक्कर में", फ़िर विभा को देखते हुए बोले, "इसका तो चेहरा लाल भभूका हो गया है जल्दी से पाने से चेहरा धो लो, वर्ना आंटी को सब समझ में आ जाएगा ऐसा चेहरा देख कर"। विभा तुरंत डायनिंग टेबूल के पास के वाश-बेसीन पर चली गई। हम दोनों मर्द एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराए। अंकल ने मुझे देख कर कहा, "बधाई हो.... मेरे बिस्तर पर लाल दाग तो नहीं लगा दिया"। मैंने कहा, "अरे नहीं अंकल, पहले से भी मेरे साथ सो रही है, ऐसी नहीं है... नहीं तो ऐसे शान्ति से सब होता कि रोना-चीखना भी होता"। मेरी बात सुनकर वो बुढा ठहाका लगा कर हँस पडा। विभा की कमर पर नजर गडाए हुए वो कहा, "इसकी पैन्ट कहाँ गई गुड्डू जी, कहीं बिना पैन्ट उतारे भीतर तो नहीं उसको ठेल दिए...", अब फ़िर से हम दोनों का जोरदार ठहाका लगा। मैंने कहा, "नहीं, उसकी जेब में है.... अभी पहनती तो गन्दा हो जाता न, सब भीतर ही था जब हम हटे थे"। वो समझ गया और बोला, "बहुत गजब का है वो पैन्ट भी"। तभी विभा अपना चेहरा तौलिया से पोछती हुई वहाँ आई तो मैंने उसको कहा, "डार्लिंग डीयर... जरा अपना पैन्टी अंकल को दिखाओ न, बेचारे के टाईम में ऐसा तो होता नहीं था"। विभा तो शर्म से लाल हो गई पर उसने बिना हिचके अपने जेब से उस छोटी सी लाल पैन्टी को जेब से निकाल कर अंकल के हाथ में दे दिया और उस ठरकी बुढे ने उस पन्टी को ऊलट-पुलट कर खुब प्यार से देखा और फ़िर कहा, "हमारी ऐसी किस्मत कहाँ थी कि ऐसी को लडकी की कमर से उतारते..., कभी फ़ोटो में भी किसी को ऐसी चीज में नहीं देखा"। मैंने तब कहा, "डार्लिंग एक बार अंकल को जल्दी से पहन कर दिखा ही दो, बेचारे को इतनी कीमत तो देनी ही चाहिए, आखिर हम उनका बिस्तर इस्तेमाल किए हैं"। विभा को अपना झाँट को ले कर कन्फ़्युजन था, पर मैंने अंकल को कह दिया, "अंकल असल में बेचारी अपना बाल साफ़ की नहीं है सो ऐसा खुले में पहनना चाह नहीं रही है, वो तो कमर पर ऐसी डोरी दिखाने के फ़ैशन के चक्कर में पहन ली थी"। अंकल को जब मौका मिल रहा था यह सब देखने का तो बोले, "अरे तो कोई बात नहीं है, मुझे तो यह पैन्ट देखना है कि कैसी लगती है बाकी चीज थोदे न देखना है"। उनकी मुस्कुराहट सब कह रही थी तो मैंने विभा को इशारा किया और वो अंकल के हाथ से पैन्टी ले कर फ़िर से कमरे की तरफ़ मुडी तो मैंने कहा, "इस पैन्टी को पहनने के लिए कहीं जाने की क्या जरुरत है, यही पहन लो... वैसे भी जैसे अंकल ने नोटीस किया ऐसे ही आंटी भी तुम्हें बिना पन्टी के देख कर बेचारे अंकल का जीना हराम कर देगी"। हम दोनों हँस पडे और विभा समझ गई कि मेरी इच्छा है कि वो वहीं हमारे सामने पैन्टी पहने। उसने फ़ट से अपने जीन्स की बट्न को खोल कर उसको उतार दिया और उसकी झांटों भरी चूत हम दोनों के सामने थी। मैं खुश था कि विभा मेरा कहा मान कर बेशर्म की तरह मेरा सहयोग कर रही थी। अंकल ने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर कहा, "पोछ कर साफ़ कर लो फ़िर पहनना...", विभा भी आराम से अंकल के रुमाल सफ़ेद रुमाल में अपनी चूत को पोछी और फ़िर अपने फ़ाँक को थोडा खोल कर भी साफ़ किया। रुमाल पर उसकी चूत का गीला पन अपना दाग बना दिया था। फ़िर उसने पैन्टी पहन ली। अंकल की नजर लगातार सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी बूर पर थी। विभा ने फ़िर जीन्स पहन लिया तब जा कर अंकल को होश आया। वो अब आराम से बैठे और कहा, "थैन्क यू", उनकी साँस गर्म हो गई थी और वो रुमाल को ले कर अपने जेब में रख लिए। मैंने कहा, "अब यह रुमाल तो शायद नहीं धुलेगा..."। अंकल ने भी हँसते हुए कहा, "सही कह रहे हैं गुड्डू जी आप, अब यह बिल्कुल नहीं धुलेगा... आज जो हुआ वह रोज थोडे न होता है जिन्दगी में। यह आज का यादगार रहेगा"। हम हम दोनों हँस पडे और विभा मुस्कुरा दी। फ़िर हम बातें करने लगे। करीब १० मिनट बाद आंटी आ गयी और हम सब नाशता-वाश्ता करके करीब ११.३० में अंकल के साथ हीं उनकी गाड़ी से निकले, वो हमें होटल में ड्रौप करते हुए औफ़िस चले गये। विभा रूम में पहुंच कर नकली नाराजगी दिखा रही थी कि मैंने क्यों ऐसा व्यवहार किया था अंकल के सामने। फ़िर उसने कहा कि अब वो सोएगी, तो मैंने भी उसको परेशान नही किया और सोने दिया। वो बेड पर सो गई और मैंने टीवी खोल लिया। फ़िर आधे घन्टे बाद मैं भी अलग बिस्तर पर सो गया।

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