Friday, September 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI पापा' उसे बहूत प्यार करते हैं

FUN-MAZA-MASTI


पापा' उसे बहूत प्यार करते हैं

 मैं मैसूर का रहनेवाली  हूँ | इस लिए मेरा हिंदी उतना अच्छा नहीं है जितना रहना है | और इसके लिए मैं माफ़ी चाहती हूँ | यह मेरा कहानी है और सच है | किसीको बताओ मगर मेरे पति को नहीं बताना | उसे मालूम होगा तो प्रलय होगा |
मैं आनंद से शादी करके मैसूर आई | मेरा गाँव मैसूर से १०० कम दूर है | आनंद अच्छा आदमी है | मेरा बहूत खादर करता है | प्यार भी उसका कमी नहीं है | उसने मुझे सब कुछ दी है मगर बच्चे ना दे सखा | ऐ ताकत उसमे नहीं था और एह उसे पता भी नहीं है |
एक दिन उसके भाई गिरीश हमारे घर आया | वह काम खोज ने आया था और काम मिलने तक उसे  हमारे सात रहना ही था | पहले एह बात मैं मान ने के लिए इंकार की | हमारे बीच दुसरे कोई भी आना मैं ना पसंद करती थी | मगर बेचारा गिरीश को जाने के लिए कोई भी जगा नहीं था और आनंद ने मुझे बहूत मुश्किल से संजय और मैं मेरे मर्ज़ी के खिलाफ मानली |
धीरे धीरे मुझे मालूम पड़ा की गिरीश अब बच्चा नहीं है | मैं कही भी जावून उसका नज़र मेरे ऊपर हरगीज़ रहता था | मेरे सात बात करने का उत्साह कभी भी जताता था | बाबी काफी दो, बाबी मैं बाहर जा रहा हूँ  कुछ चाहिए | बाबी अप्सरा मेरे अब एक बेहतरीन फिल्म चल रहा है टिकेट खरीदूं क्या ..... आनंद उसके ऑफिस में बहूत बड़ा ऑफिसर था और घर से भी ज्यादा ऑफिस में ही रहता था | कही घूमने जावून, या पिकचार जावून थो मैं अकेले या किसी सहेलिओं के सात | तो आनंद का जगह धीरे धीरे गिरीश ने लिया | उसके सात बात करते करते मैं उसको चाहने लगी | गिरीश बहूत होशियार लड़का था, बात करने में, समझाने में , कुछ काम करने में और बस यूं ही समय बिताने में | दिन बा दिन में उसके खरीब आने लगी | बात करते करते हम जोर से चिल्लाते, में उसे मारती और वोह मेरा हात पकड़ता .... नाटक चलता रहा |
एक दिन, हर दिन की तरह आनंद आफिस गया हुआ था और मैं दोपहर  के खाने का तय्यारी कर रही थी | घर में कोथमीर नहीं थी और मैं गिरीश को कोथमीर लाने कहा | गिरीश दूकान जानेके  के बदला सीदा किचन के अन्दर घुसा और मेरे पाँव नीचे रहा अलमारी से कोथमीर निकल के मुझे दे दिया | उसी समय मेरा पाँव उसके हात लगा और ४४० वोल्ट मेरे बदन में | 
पता नहीं क्या कुआ ? क्या मैं  मेरा तन का संतुलन खो बैटी या मनका ! जब मेरा ऑंखें खुली मैं गिरीश के गोद में थी |
शायद गिरीश को इसी फल का इंतज़ार था और वोह इस समय का बर्पूर फायेदा उठाया | मैं कुछ भी कर नहीं सखी या कर नहीं छाती थी ? 
खैर, कुछ भी हो, गिरीश ने मुझे अपने बाहों में लेली और मेरे जिस्म को चुम्मा से भर दी | मेरे दोनों चुचुक को मेरे ब्लौस से आज़ादी करदी और उसके सात खेलने लगा | इसके सात सात मेरे चूत को भी पूरा ध्यान दिया | मैं आसमान में सफ़र करने लगी | एसा ज़िन्दगी में पहले बार मुझे हो रहा था | आनंद एस कभी भी नहीं किया था | सब काम गिरीश ने ही करता रहा और मैं बस उसके सात देती रही | आहिस्ता आहिस्ता वोह मेरा चूत को अपना लिंग से भर दिया | उसका लिंग इतना बड़ा था मैं सोचा की मेरा चूत फट जायेगा और चिल्लाने का मेरा उम्मीद को गिरीश मेरे मूह अपने मूह से बांध कर के टुकरा दिया | मेरे सफ़र स्वर्ग पहुंची और वहीँ पर टिक गयी | गिरीश ने अब मेरे योनी को अपने वीर्य से भर दिया था |

एह ५ साल की पहले की बात है | एह घटना होने के बाद हम ८-१० बार थो फिर मिले. गिरीश को बन्गलोर में काम मिला और वोह चला गया | मैं गर्भवती हो गयी और सुषमा मेरे गोद में फली | 

उसके 'पापा' उसको बहूत प्यार करते हैं |



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