Sunday, September 7, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--19

FUN-MAZA-MASTI 

 होली का असली मजा--19


 दिन बस चढ़ना शुरू ही हुआ था। लेकिन आज काम भी काफी था। थोड़ी देर में आज भी होली का हंगामा शुरू होने वाला था। घंटे भर में मैंने चाय, नाश्ते का काम पूरा किया , और खाने की तैयारी कर ली।

मम्मी और वो अभी भी सो रहे थे , उसी तरह लिपटे।

आज होली बजाय आंगन के , पीछे बगीचे में होनी थी।


आंगन से सटा , आँगन का दरवाजा उसी बगीचे में खुलता था।



खूब घना, ४०-५० पेड़ रहे होंगे और पीछे की और दीवाल भी थी। बाहर से कुछ नहीं दिखता था। उसीमें एक चहबच्चा था , कच्चा गढ़ा , ज्यादा गहरा नहीं , लेकिन इनके कमर से थोडा ऊपर और हम लोगों के सीने तक। बस उसी में पानी भर के , और वहाँ एक नल भी था , मोटे होज के साथ , पेड़ों की सिंचाई के काम आता था ,…


तब तक छुटकी और रीतू भाभी आये।

छुटकी अपनी चाय ले के , बगीचे में चली गयी , होली का इंतजाम देखने।

और मैंने रीतू भाभी को दिखाया खिड़की से मम्मी और वो कैसे लिपटे चिपटे।

बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी हंसी रोकी और वो उन दोनों लोगों के लिए बेड टी ले के गयीं , लेकिन तब तक वो उठ गए थे और उन्होंने बोला की वो मेरे और रीतू भाभी के साथ किचेन में ही चाय पियेंगे।

मैं , रीतू भाभी और वो किचेन में चाय पि रहे थे की रीतू भाभी ने छुटकी के 'उद्द्घाटन ' की बात छेड़ दी।


और बातों बातों में उन्होंने ये बात मान ली की , कल जब उन्होंने छुटकी के साथ ट्राई किया था तो एकदम सूखे , सिर्फ थूक लगा के।

फिर तो मैं चढ़ गयी उन के ऊपर अपनी छोटी बहन की ओर से ,




" अरे यार क्लास ९ में पढने वाली लड़की है , एकदम कच्ची कली। ढंग से उंगली भी नहीं गयी है अच्छी तरह से वैसलीन लगा के ट्राई करते दर्द तो हुआ ही होगा , और ऊपर से तुम्हारा मूसल भी , धमधूसर है। "


मैंने बोला।


लेकिन रीतू भाभी भी अपनी नंदोई की ओर से " अरे जब तक पहली चुदायी में चरपराय नहीं , गोरे गोरे गाल पे टप टप आंसू न टपकें , तीन दिन तक लौंडिया , टाँगे फैला के न चले तो चुदाई क्या। "

बहुत बहस हुयी। फिर ये तय हुआ की आज तिजहरिया को , खाने के एक दो घंटे बाद , नंबर लगेगा।

मैंने लाख मना किया लेकिन उनकी और रीतू भाभी की जिद , मैं भी वहाँ रहूँ। और मुझे मानना पड़ा।

हाँ बस रीतू भाभी इतना मान गयीं की उनके सुपाड़े पे , लेकिन सिर्फ सुपाड़े पे वैसलीन लगेगी और वो रीतू भाभी अपने हाथ से लगाएंगी , जिससे ज्यादा न लगे।

रीतू भाभी का मानना था , बस एक बार सुपाड़ा घुस जाय , फिर वो लाख चूतड़ पटके लंड तो पूरा घोटना ही होगा साल्ली को।

लेकिन उसके बदले उन्होंने दो शर्तें और रख दी , आगे से नो वैसलीन। आज रात जब छुटकी हमारे साथ जायेगी ट्रेन में तो बस ज्यादा से ज्यादा थूक ,

और जब पिछवाडे का बाजा बजेगा उस किशोरी का तो बस एकदम सूखे।





फिर वो तैयार होने चले गए , घंटे भर में उनकी सालियाँ जो आने वाली थी , छुटकी की सहेलियां , होली खेलने।


और रीतू भाभी अपनी छोटी ननद की सहायता करने चली गयीं पिछवाड़े बगीचे में , होली की तैयारी करने के लिए।

मम्मी तैयार हो के किचेन में आ गयी थीं और हम दोनों ने मिल के घण्टे भर में खाने का काम निपटा लिया।


मम्मी तैयार हो के किचेन में आ गयी थीं और हम दोनों ने मिल के घण्टे भर में खाने का काम निपटा लिया।

दस बज गए थे। 
और हंसती खिलखिलाती , धड़ धढ़ाती दो उठती जवानियाँ , किशोरिया आ गयीं

अबीर और गुलाल की तरह , रंगो की छरछराती पिचकारी की तरह ,

छुटकी की सहेलियां ,

'उनकी ' सालियाँ

रीमा और लाली।

दोनों के जोबन के उभार बस आना शुरू ही हुए थे।


एक टॉप और जींस में थी तो दूसरी टॉप और स्कर्ट में।

रीमा टॉप और जींस में थी और उसकी फिगर छुटकी सी थी।

बस थोड़े थोड़े बड़े बड़े टिकोरे, सलोने कचकचा के काटने लायक गाल और छोटे छोटे लौंडो मार्का चूतड़ , लेकिन थी वो एकदम हरी मिर्च , देखने से चुदवासी लग रही थी।

और लीला , टॉप और स्कर्ट में , वो थी तो छुटकी के क्लास की ही लेकिन शायद उम्र में उससे थोड़ी बड़ी थी और फिगर में तो एकदम। उसकी चुन्चिया , टॉप फाडू और चूतड़ भी भारी।

वो दोनों आयीं और होली शुरू हो गयी।

लेकिन जैसा उन्होंने सोचा था , वैसा हुआ नहीं। पहली बाजी सालियों के हाथ में रही।


और सिर्फ इसलिए की जैसे हर भाभी छिनार होती हैं , रीतू भाभी भी छिनार थीं , बल्कि जब्बर छिनार।

और उन्होंने बड़े से बड़े दलबदलू को मात कर दिया , सीधे पाला बदलकर , अपनी छोटी चुलबुली ननदों के साथ हो गयीं।

तीन ननदें और एक वो , सबके हिस्से में एक एक हाथ , एक एक पैर आया , और चारों ने गंगा डोली कर के सीधे उसी रंग से भरे चहबच्चे में ,




लेकिन वो डूबे तो साथ में सालियों को भी खींच ले गए , बस रीतू भाभी बचीं और वो मेरे साथ गड्ढे के किनारे बैठ के कभी पक्ष की हौसला अफजायी करतीं तो कभी दूसरे की।



और वो ,उन्होंने रीमा कोलेकिन दबोच लिया था पीछे से।


उनके हाथ उसके पानी के अंदर छिपे , ढके बड़े बड़े टिकोरों का मजा पहले ले रहे थे , लेकिन होली हो , साली हो और जीजा और साली की मस्त उभरती चूंची के बीच कोई टॉप रहे , सख्त नाइंसाफी है।

और वो नाइंसाफी कतई नहीं बर्दाश्त कर सकते थे।





कुछ ही देर में , रीमा का छोटा सा टॉप चहबच्चे के बाहर , उनका जबरदस्त हेलीकाप्टर शाट , और बाउंड्री के बाहर , बैठी रीतू भाभी ने तुरंत कैच किया। ननदों का वस्त्र हरण में हर भाभी की तरह उन्हें भी मजा आ रहा था।



वो और रीमा छिछले हिस्से में आ गए थे। और रीमा के उनके हाथ के नीचे , दबे कुचले उरोज साफ दिख रहे थे।

रीमा की छोटी छोटी चूंची दबाने के साथ मटर के दाने के बराबर निपल को भी वो कभी पुल करते , कभी पिंच करते।

 
हमला उन पे भी हो रहा था। दो दो सालियाँ , छुटकी और लीला उनके पीछे पड़े थे। दोनों के हाथ में रंग और पेंट की कॉकटेल , छुटकी का हाथ उनके गाल पे डबल कोट काही , बैंगनी , लाल रंग पोतने में लगा था तो लीला और आगे , उस का एक हाथ 'इनकी' शार्ट में था , पिछवाड़े और एक टी शर्ट के अंदर।

मैंने अपनी छोटी बहनो का साथ देने का फ़ैसला किया।

मैंने वहीँ से छुटकी और लीला इशारा किया और अगले पल रीमा की तरह वो भी टॉपलेस थे थे।

और तीनो सालियों के शोर के बीच , चहबच्चे के बाहर उनकी टी शर्ट मैंने कैच की।



लेकिन उनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा।



वो उसी तरह अपनी प्यारी साली की , रीमा की , चूंचिया जोर जोर रगड़ते रहे , रंग पोतते रहे।

हाँ अब एक हाथ सरक के सीधे , उसकी जींस के ऊपर , पहले बटन , फिर जिपर , और उनका हाथ अंदर ,

अगले पल रीमा की सिसकारियाँ चालु ,

हम सब समझ गए थे की , भरतपुर पे , उसके जीजा की हथेली ने कब्ज़ा जमा लिया है।


लेकिन रीतू भाभी , पक्की छिनार उन्हें इतने से सन्तोष थोड़े ही था।

जब तक ननद पूरी नंगी , निसुती न हो जाय तब तक क्या होली ,

वहीँ से उन्होंने ललकारा , अरे ननदोई जी जींस , इधर , मेरे पास

लोग जोरू के गुलाम होते है , मेरे वो अपनी सलहज के गुलाम थे।

अगले ही पल रीमा की जींस , उन्होंने चहबच्चे के बाहर फेंकी और रीतू भाभी ने उछल के एक हाथ से मिड विकेट पे कैच कर लिया। और उसके बाद पैंटी भी।

अब वो लोग आलमोस्ट किनारे पे आ गए थे।


और जिस तरह से रीमा सिसक रही थी , उचक रही थी साफ था की कम से कम एक ऊँगली जड़ तक धंस चुकी थी और दूसरी , उनकी कुँवारी , कच्ची कली साली के जादुई बटन को को क्लिट को जोर जोर से रगड़ दबा रही थी।

वहाँ पर पानी रीमा की कमर के बराबर था।

मैंने मुस्करा के छुटकी और लाली इशारा किया , और दोनों ने मिल के उनके शार्ट के साथ वही सलूक किया , जो उन्होंने रीमा की जींस के साथ किया था।

अबकी पकड़ने की जिम्मेदारी मेरी थी।

शेर पिंजड़े से बाहर आ गया था , लेकिन कब तक।

 
दो नटखट , नवल नवेली , नए आ रहे जोबन के जोर से मदमाती , दो सालियाँ छुटकी और लाली थी न उसे फिर से गिरफ्तार करने को। दोनों मिल के उसे मुठिया रहीं थीं , रंग पोत रही थीं।



उन्होंने रीमा के कान में कुछ कहा और रीमा , चहबच्चे का किनारा पकड़ के झुक गयी ,

मैं और रीतू भाभी , साँस थामे , देख रहे थे।


हमारी दिल कि धड़कने बढ़ रही थी। हमें मालूम था की असली होली तो अब शुरू होने वाली है।

मैंने छुटकी और उसकी सहेली लीला को इशारा किया , और वो धीमे से दूसरेकिनारे से निकल आयीं और हम दोनों के पास बैठ के देखने लगीं।

वो और रीमा ऐसी जगह थे थे जहाँ पानी काफी छिछला था और 'बहुत कुछ' दिख रहा था।

कुछ देर उन्होेंने रीमा के उभरते उभारों को जोर जोर से मसला , अपनी टांगों को उसकी टांगों के बीच में डाल के अच्छी तरह फैलाया , और अपना हथियार , उसकी गुलाबी परी के सेंटर पे सेट किया।

भाभी ने छेड़ते हुए अपनी दोनों कुँवारी ननदों से कहा , " ठीक से देख , अभी तुम दोनों की भी ऐसे फटेगी ".

उनकी उँगलियों की बदमाशी और उनके खूंटे की गुलाबी परी पे रगड़ , मस्ती के मारे रीमा की हालत ख़राब हो रही थी।

" करो न जीजू " उसके होंठों से सिस्कियों के बीच निकल रहा था।

बस , उनसे ज्यादा कौन जानता था लोहा गरम करना , और ,… ठीक समय पर हथोड़ा मारना।

और उन्होंने हथोड़ा मार दिया।


रीमा बहुत जोर से चीखी।

लेकिन न वो रुके न उन्होंने होंठ बंद किये उसके।

बस एक धक्का और मारा फिर दूसरा , तीसरा , और हर धक्का पहले से दूना जोर से,…


और कली फूल बन गयी।


आज होली जान बूझ के इसलिए बगीचे में थी , किन इन पेड़ों के बीच न तो सालियों की चीखें सुनायी देंगी न मस्ती की आवाज।

उन्होंने अब रीमा को पुचकारना , चूमना शुरू कर दिया। उनके हाथ उसके टिकोरों को प्य्रार से दबा रहे थे , सहला रहे थे।

कुछ ही देर में दर्द भरी चीख , मजे की सिस्कारियों में बदल गयी।

रीमा भी अपने छोटे छोटे नितम्ब पीछे की ओर पुश करने लगी।




और अब उनके धक्को की रफ्तार दूनी हो गयी।

मैंने कनखियों से छुटकी और लीला की और देखा , हम दोनों से ज्यादा मजा उन दोनों को आ रहा था।


भाभी हों , और ननद ननदोइ हों और गालियां न हों ,


रीतू भाभी चालू हो गयीं

चोदा , चोदा , अरे हमरी नन्दी क बुर चोदा ,
चोदा , चोदा।

कुछ आज चोदा , कुछ कालह चोदा, कुछ होली के बाद चोदा।

चोदा , चोदा।

रीमा के चोदा , लीला के चोदा , अरे छुटकी को सारी रात चोदा।
चोदा , चोदा।





जीजा साली रंगों में डूबे , नहाये , 'असली होली ' का मजा ले रहे थे।

और जब उनकी पिचकारी ने रंग छोड़ा , अपनी प्यारी साली की कच्ची चूत में वो दो बार किनारे लग चुकी थी।

थोड़ी देर तक वो दोनों ऐसे ही चहबच्चे में पड़े रहे , खड़े।




और फिर जब वो निकले , उनकी सालियों , छुटकी और लीला ने उन्हें घेर लिया।

रीतू भाभी ने दोनों हाथों से, पकड़ कर अपनी छोटी ननद रीमा को निकाला। उसमें जरा भी ताकत नहीं बची थी। निकलते ही वहीँ वो आम के पेड़ के नीचे घास पे धम्म से लेट गयी।


रीतू भाभी , अभी अभी 'कली से फूल बनी ' अपनी ननद का प्यार से सर सहलाती तो कभी छेड़ते हुए उसके टिकोरे।


मैं खाने पीने के इंतजाम में लग गयी।






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