Sunday, August 24, 2014

FUN-MAZA-MASTI सीता --एक गाँव की लड़की--29

FUN-MAZA-MASTI

 सीता --एक गाँव की लड़की--29

हम चारों अस्त-व्यस्त खुद को ठीक करते हुए आंटी के पास पहुँच गए...आंटी हम सब की तरफ देख मुस्कुरा रही थी...उसने उस काले की तरफ देख बोली,"कैसी थी टेस्ट? दिल खुश हुआ कि नहीं..."

"पूछो मत आंटी, सीधा स्वर्ग में पहुंच गया था...एक ही बार में पस्त हो गया..."काले आदमी ने अपनी व्यथा कहते हुए कुर्सी पर बैठ गया...मैं और पूजा कपड़े चेंज करने चेंजिगरूम की तरफ जाने से पहले इनाम के पैसे आंटी की कर दी...

आंटी: "अरे वाह..तोहफा भी मिल गई..बहुत ज्यादा खुश कर दी क्या रे छोरी.." आंटी की बात का कोई जवाब सिर्फ मुस्कुरा कर दी और वापस चेंजिग रूम की तरफ बढ़ गई...कुछ ही पलों में हम दोनों अपने कपड़े पहन चलने के लिए आंटी के पास खड़ी थी...

आंटी: "ऐ, तू मेरे यहाँ काम करेगी...तेरे बंगाल से ज्यादा पैसे दिलवाउंगी दोनों को...यहां सब गोरी चमड़ी के दिवाने होते हैं..." मेरी तरफ देख आंटी पूछी...मैं उनकी बात सुन पूजा की तरफ देखने लगी...

"नहीं आंटी, मैं यहां नहीं रह सकती...काफी दिनों से इनके दोस्त कह रहे थे तो बड़ी मुश्किल से शादी का बहाना बना आई हूँ...सुबह तक यहाँ से निकल लूंगी नहीं तो मेरे शकमिजाजी पति हम दोनों की खैर नहीं छोड़ेंगे..."श्याम की तरफ देख मुस्काती हुई मैंने सरासर इस नाटक में भागीदरी कर ली...जिससे श्याम मंद मंद कुटिल हंसी हंस रहे थे...

आंटी:" ओह...मतलब पति प्यास नहीं बुझाता तो चोरी से करती है...अच्छा है...प्यास भी बुझ जाती और पैसे भी..." आंटी कहते हुए पैसे की बंडल मेरी तरफ बढ़ा दी जो काले आदमी ने दिए थे...मैंने पैसे लिए और उनमें से इनाम की राशि निकाल बेंच पर बैठी दोनों लड़की की तरफ बढ़ा दी...

सब अचानक मेरी इस हरकत से भौचक्के हो देख रहे थे..उन दोनों को भी विश्वास नहीं हो रही थी..वे बस मेरी तरफ टकटकी लगाए घूरे जा रही थी...वो लेने के हाथ ही नहीं खोल रही थी तो मैंने खुद आगे बढ़ वो रूपए उसकी चोली में घुसेड़ती हुई बोली...

"जब काम नहीं मिली तो भूखी थोड़े ही रहेगी..., मदद के तौर पर रह ही रख लो...अपनी बिरादरी की है तो ऐसे नहीं देख पाई...चलती हूँ अब..अपना ख्याल रखना..."कहती हुई मैं वापस मुड़ी और श्याम से चलने बोली...

पर सब तो बस घूरे ही जा रहे थे...बिना कोई जवाब दिए श्याम उठ गए...और वो काला आदमी सबसे पहले ही निकल गया...आंटी भी पता नहीं क्यों पहली बार बेड से उतरी और बोली,"रूको,गाड़ी मंगवाए देती हूँ...स्टेशन तक छोड़ देगा..."

मैं मना की पर वो नहीं मानी...कुछ ही देर में गाड़ी में बैठ हम तीनों आंटी से विदा ले स्टेशन पर आ गए...गाड़ी के वापस जाते ही श्याम ने एक गाड़ी की और एक घंटे में हम घर पहुंच गए...घर पहुँचते ही हम सब ने खूब हंसी आज की यादगार मूवी को याद कर....फिर हम तीनों एक ही बेडरूम में घुस पसर गए...

सुबह में घंटी की तेज आवाजों ने मेरी नींद तोड़ ती..मैं उठी तो ये क्या...श्याम पूजा पर चढ़े अपना लंड उसकी बुर में पेले जा रहे थे और पूजा भी मस्ती में चिल्लाए जा रही थी...मैं तो गुस्से से भर गई कि बेल कब से बज रही है और ये दोनों चुदाई में लगे हैं...

मैंने श्याम की पीठ पर एक मुक्का जमाती हुई बोली,"बेल सुनाई नहीं दे रहा क्या? दूध लेने चले जाते तो ये भाग जाती क्या..?" श्याम मुक्के की चोट से आह भर हंसते हुए बोले,"भाग तो नहीं जाती पर अगर लंड शांत हो जाता तो...."

मैं उनकी बातों से हल्की मुस्काती हुई बेड से उतरती हुई बोली,"हाँ तो कोई बात नहीं...वो दूधवाला देखेगा कि रोज सुबह मैं ही आती हूँ और तुम दोनों सोते ही रहते हो तो किसी दिन मौका पा कर आपकी बीवी चोद देगा तो बाद में दोष दूधवाले का मत देना.."

श्याम मेरी बात सुन पूजा को जोरदार धक्के लगाते हुए बोला,"कोई बात नहीं...हम दोनों तो फायदे में ही रहूंगा...मेरे दूध के भी पैसे बचेंगे और तुम्हें नए लंड मिल जाएंगे...जाओ जल्दी चुदवा के ही आना..."

श्याम अपनी बात कह हंस पड़े जिससे पूजा भी आहहहह कहती हुई हंस पड़ी...मैं उन दोनों के कान एक साथ पकड़ती हुई बोली,"तुम दोनों को हंसी आ रही है..अब तो सच में चुदवा के ही आऊंगी..." और फिर उनके कान मरोड़ कर छोड़ दी जिससे दोनों की एक साथ ईससससऽ निकल पड़ी...

मैं फिर बाहर निकल किचन से बर्तन लेती चाभी ली और चल दी बाहर...मेन गेट खुलते ही दूधवाले से नजर मिली तो हम दोनों की अनायास मुस्कान निकल गई...फिर दूधवाले ने दूध माप के दे दिया...मैं दूध ले उसकी तरफ देखी और अंदर ही अंदर मुस्काती हुई वापस मुड़ गई बिना कुछ कहे...

दूधवाला: "आज क्रीम नहीं लोगी मैडम..? आज भी एकदम ताजा है..सोचा आपको दे दूँ फिर किसी और को दूँगा..." दूध वाले मुझे जाते देख बोला...जिससे मैं हल्की रूकी और सड़क पर दोनों तरफ देखी...रूम मालिक को देख रही थी वरना फिर कहीं वो बात करते भी देख लेता बेवजह तो परेशानी में डाल देता...

पर वो कहीं नहीं दिखा तो उसके धोती में फड़फड़ा रहे लंड को देखती बोली,"अब नहीं लेनी, कल रूम मालिक को शक हो गया था...अब कहीं दुबारा शक हुआ तो मुसीबत हो जाएगी...वैसे आपकी क्रीम बेस्ट थी...लेकिन क्या कर सकती...सो अब बस काम से काम रखिएगा..." और मैं वापस मुड़ गई...

बेचारा उस दूधवाले के सपने तो चूरचूर हो गए...रोज सपने देखता होगा कि मेरी बूर में अपना लंड डाल रहा है...वह कुछ कह भी नहीं सका...बस मुझे जाते हुए देखता रह गया...मैं बिना मुड़े अंदर चली गई...

अंदर किचन में दूध रखी और बेडरूम में गई दोनों को देखने...हम्म्म..चुदाई खत्म हो चुकी थी...अब पूजा बेड पर पसरे श्याम के मुरझाए लंड को जीभ से साफ करने में लगी थी...मेरी आहट पाते ही पूजा एक नजर मेरी तरफ देखी, फिर मुस्काती हुई अपने काम में लग गई....

"छोड़ने का मन नहीं है क्या...चलो हटो,अब मैं करूंगी..."कहती हुई मैं पूजा के बगल में बैठ गई...श्याम मेरी बात सुन मुस्काते हुए बोले,"अभी कहाँ रानी...अब एक राउंड और करूंगा अपनी कमसिन शाली की...फिर छोड़ेंगे...वैसे तुम तो दूधवाले से चुदने गई थी ना..."

"उफ्फ्फ, घर की गेट खुली ही छोड़ दी..आती हूँ बंद कर..."मैं दूधवाले के बारे में सोचते-2 गेट बंद भी नहीं की...मैं गेट के पहुंच आधी गेट ही लगाई थी कि सीढ़ी पर किसी की आहट सुनाई दी...

थोड़ी गौर से सुनी तो आहट ऊपर छत की तरफ जाती लग रही थी...इस वक्त सुबह-2 कौन छत पर जा रहा है...नीचे की फ्लैट से तो कोई कभी सुबह जल्दी उठता तक नहीं तो फिर कौन है...और नीचे से अभी आई ही हूँ, रूममालिक भी तो कहीं नहीं दिखे थे...

कौन हो सकता है? यही जानने मेरे कदम बाहर निकल छत की तरफ बढ़ गई...अंतिम सीढ़ी से छत पर देखी तो सामने कोई नजर नहीं आया...अब हल्की डर भी होने लगी कि पता नहीं कौन है जो छत पर आया और गायब हो गया...

एक बार मन हुई वापस हो जाऊं...फिर सोची सुबह हो ही गई तो दूसरी अप्राकृतिक चीजें तो हो ही नहीं सकती...छत पर घूम कर ही देखती हूँ शायद पानी टंकी के दूसरी तरफ हो....और मैं आगे बढ़ छत पर चारों तरफ देखती मुआयना करने लगी...

पानी टंकी के उस तरफ जैसे ही पहुँची सामने रूम मालिक पर नजर पड़ी...मैं राहत की सांस ली पर अब इस मुसीबत से पीछा छुटकारा पाने की सोच में पड़ गई...अगर वो नहीं देखते तो चुपके से रिटर्न हो जाती पर....

रूम मालिक: "आइए..आइए...मैडम...सुबह की ताजी हवा काफी फायदेमंद होती है...ऱोज लेनी चाहिए सबको..." मैं उसकी बात से बेवजह मुस्कुरा पड़ी और ना चाहते हुए भी उनकी तरफ बढ़ गई...

मैं आगे जा रेलिंग के सहारे उनसे काफी हट कर खड़ी हो गई और सामने उगती हुई सूरज की तरफ मुंह कर दी...वो हम दोनों के फासले को कम करने मेरी तरफ खिसक गए और लगभग एक फीट की दूरी पर खड़े हो गए...

मैं उनके करीब आने की आहट महसूस कर सनसना गई...शरीर के रोंगटे खड़े हो गए...वो मेरे बगल में आ मुझे गौर से निहारने लगे जिससे मैं काफी असहज महसूस करने लगी...मेरे हाथ छत की रेलिंग पर कस गई...

"आती हूँ कुछ देर में...गेट खुला ही है कोई आ गया तो..."मैं अब यहां से हटने की सोच बहाने बनाई और जाने के लिए पीछे मुड़ी कि तभी उनके हाथ रेलिंग पर पड़े मेरे हाथों को जकड़ के दबा दिया...मैं अचानक से हुई उनकी हरकत से एकटक आश्चर्य से उनकी आँखों में देखने लगी...

"अरी मैडम, इतनी जल्दी क्यों भागने की कोशिश कर रही हो..मैं कोई बाघ थोड़े ही हूँ जो गिल जाऊंगा..."रूम मालिक ने मुझे अपनी तरफ देख बोला...जिससे मैं अब और मुश्किल में पड़ गई...कल की वारदात से तो हाथ छुड़ाने की भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी...

रूम मालिक: "पता है आज मैं आपसे काफी खुश हूँ...कल मैं आप पर जितना गुस्सा था आपने आज सब खत्म कर दिया...मैं वहीं सामने वाले कैम्पस में छुप के बैठा सुन रहा था...आज अगर कोई हरकत करती तो सच बहुत बुरा होता..."

मैं बिना कोई हरकत किए बस उनका चेहरा हैरानी से निहारने लगी...मैं खुद को आज लकी समझ रही थी...अपनी तरफ यूँ ऐसे घूरते पा उसने मुस्कुराते हुए अपनी एक आँख दबा दी,जिससे मैं झेंप सी गई और नजरें घुमा ली...

रूम मालिक: "एक बात तो है आप दिल की बुरी नहीं है...कोई कुछ कहे तो आप उस पर गलत सही सोचने के बाद कोई फैसले लेती हो...यही आप में अच्छी बात है...हाँ कुछ गलत भी करते हैं पर इसमें आपकी गलती नहीं है..."

मैं एक बार दुविधा में पड़ गई कि अब क्या कहेंगे ये..मैं पुनः उनकी तरफ मुंह घुमा दी...सूरज की लालिमा फट चुकी थी जिससे उसकी किरण सीधी हमारी गाल पर पड़ कर और सुर्ख बना रही थी...तभी वो मेरे चेहरे के बिल्कुल निकट आते हुए बोले...

रूम मालिक: "अब आप हो ही इतनी हॉट और सेक्सी कि आप लाख चाहो,खुद को रोक नहीं पाओगी ज्यादा देर...इसी वजह से आप कभी कभार बहक जाती हो..." वो इतना कह चुप हो गए...

पर उनका चेहरा अभी भी ज्यों के त्यों थी..मेरी तेज हो चुकी साँसें उनकी साँसों से टकरा रही थी...और मेरी वासना में बदल चुकी नजरें सीधी उनकी आँखों में झाँक रही थी...

कुछ देर तक यूँ ही खड़े रहे हम दोनों बिना कोई सवाल जवाब के...उनका एक हाथ तो रेलिंग पर मेरी एक हाथ दबाए ही था...अब उन्होंने अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ा मेरी दूसरी हाथ पकड़ अपनी अंगलियां मेरी अँगुली में फंसा पकड़ लिए...

मैं चाह कर भी उन्हें नहीं रोक पा रही थी...अगर रोकती तो वे कहीं सवाल कर देते कि दूधवाले से भी बुरा हूँ क्या..? तो मैं क्या जवाब देती...या फिर चाहते तो मेरी इज्जत सरेआम लुटा देते तो क्या करती..आखिर मेरी दुखती नस जो उनकी पकड़ में आ गई थी...

तभी उन्होंने रेलिंग पर से अपना हाथ पीछे खींच मेरी कमर के पास रख दिए और दबाब बनाने लगे अपनी तरफ...मैं होशोहवाश खोती उनके शरीर में सटती चली गई और रेलिंग पर से हाथ उठ के अपने आप उनके कंधों पर पड़ गई...बिल्कुल प्रेमी जोड़ो की तरह चिपक गए थे..


मैं पसीने से तरबतर हो गई थी...और सुबह की उगती सूर्य की किरण से मेरी शरीर दमक रही थी...मेरी साँसें सीधी उनके सीने में घुस रही थी...और तेज साँसों में मेरी चुची उफ्फ्फ...उनके सीने से टच करती हुई एक बार पीछे हटती तो एक बार पूरी धंस जाती....

"दोस्ती करोगी हमसे...अच्छी वाली दोस्ती..." फिर वो हौले स्वर के साथ गर्म साँसे मेरी गालों पर डिम्पल की तरह धँसाते हुए बोले...साँसों की तेजी ने मेरे अंदर गुदगुदी सी कर दी...मैं ईससससऽ की आवाजें करती हुई मुंह फेर ली...

रूम मालिक: "अरे, ऐसे क्यों मुंह फेर रही हो...जो बात तुम सोच रही हो वैसा मैं अब कुछ नहीं करने वाला...कल वाली बात बिल्कुल भूल जाओ...ब्लैकमेल,झाँसा में फँसाना आदि सब चीजों का मैं सख्त विरोधी हूँ...दोस्ती की कह रहा हूँ तो सिर्फ दोस्ती..."

थैंक्स गॉड...जिस बात से डर रही थी इनसे वैसी बात नहीं थी...गलत देखे तो शायद ज्यादा गुस्सा कर गए कल जिससे धमकी दे रहे थे...पर अब जो ये कर रहे हैं ऐसे मुझे चिपका कर वो क्या है...ये फायदा ही तो उठा रहे हैं मेरी बेबसी का...

"मैं समझ सकता हूँ कि आपके मन में क्या चल रहा है इस वक्त...तो मैं बता दूँ कि आप ही के जैसी सुंदर मेरी भी बीवी है, पर वो कुछ अलग किस्म की है...मतलब बीवी तो है मेरी पर बीवी बनना नहीं जानती..."उन्होंने अपनी बात से मेरी अंदर चल रही सवालों का जवाब देते हुए बोले...

काफी तेज दिमाग है इनका तो..बिना सवाल पूछे ही जवाब देने लग गए...

"मैं अपनी बीवी में हर रोज एक दोस्त खोजता रहता हूँ...पर कभी मिली नहीं..वो तो बस बीवी का मतलब सिर्फ सेक्स ही जानती है...सेक्स के बाद कभी मेरे दिल की आवाज सुनने की कोशिश नहीं की और ना ही कभी सुनाई...इसलिए मैं तुम्हारी जैसी हसीन बला से दोस्ती करना चाहता हूँ ताकि हम अपनी दिल की बात कह-सुन सकें..." वो अपने दिल की बयान अपने साफ लफ्जों से सुनाने लगे...

मैं उनके इस दर्द को सुन पिघलने लग गई...अब उनसे हटने की बजाय आराम से खड़ी उनकी बाते सुनने लगी...

"...मेरे और भी कई लेडिज फ्रेंड हैं पर सब सिर्फ फ्रेंड ही हैं...कोई ऐसी नहीं मिली जिससे अपना हाल-ए-दिल सुना सकूँ...पर आज अगर तुम दोस्त बन जाओगी तो मेरी जिंदगी में ये कमी शायद पूरी हो सकती है..क्योंकि तुम सबसे अलग हो...हर रिश्ते को निभाना जानती हो..अब ये मत कहना कि सोचूँगी...दोस्ती लोग सोच कर नहीं करते...वो तो प्यार से भी तेज होता है और इसमें कोई रिस्क भी नहीं..." वे अपनी बात खत्म कर मेरी जवाब का इंतजार करने लगे...

मैं उनकी आखिरी बात पर थोड़ी सी शर्मा के हंस पड़ी..जिससे वे भी हंस पड़े...अब तो मेरे अंदर की सारी डर इनके प्रति जो थी ऱफ्फूचक्कर हो चली थी...इनके अकेलेपन पर तरस आ गई थी...शायद इसी वजह से ये कभी-कभार ज्यादा गुस्से में आ जाते हैं...

"...तो ये कौन सा तरीका है दोस्ती प्रपोज करने की." मैंने अपनी झिझक समाप्त करते हुए उनसे बोली...जिससे वो खिखिलाकर हंस पड़े...फिर वो बोले,"अपना तरीका है...मैं ऐसे ही सब के साथ रहता हूँ...बोरिंग वाली दोस्ती मुझे नहीं पसंद...दोस्ती में रोमांस,प्यार,शरारत,गुस्सा सब होना चाहिए पर लिमिट तक ही...ऐसा नहीं कि तुम अगर ऐसे मेरे बांहों में हो मैं गलत हरकत कर दूँ..."

"अगर कभी आपको दोस्तों के संग ऐसी हालत में आपकी बीवी देख ले तो..."मैं भी कुछ नॉर्मल हो कुछ अंदर की बात जाननी चाही इनसे...जिसे सुन वो नाक-भौं सिकुड़ाते हुए बोले...

"मोहतर्मा,मुझे इस बात की कोई डर नहीं..बीवी के डर से मैं अपने दोस्तों से मिल रही जिंदगी को कैसे छोड़ सकता भला...वैसे कल सुबह मेरे साथ वॉक पे चलना पसंद करेंगी...4 बजे..."उन्होंने बस शार्ट कट में ही अपनी हिम्मत-ए-दिल बयां कर दी...

"इतनी सुबह तो जगती भी नहीं..5 बजे के बाद नींद...."मैं अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई कि वो पड़े,"अं.हं....जगने की चिंता छोड़ दो...नींद ठीक 4 बजे खुद खुल जाएगी...मैं इंतजार करूँगा...अब चलता हूँ..बॉय.."

और फिर अलग होने से पहले मेरे माथे को हल्के से चूम लिए...फिर हम दोनों एक साथ मुस्कुराते हुए नीचे चल दिए...मैं नीचे अपने घर के दरवाजे से अंदर हुई और अंदर देखी तो अभी भी दोनों बाहर नहीं निकले थे...

अचानक मैं मुड़ी और और नीचे की तरफ बढ़ रहे रूम मालिक को सीसी की आवाज से बुलाई...वो आश्चर्य से मुड़ते हुए वापस ऊपर की तरफ आया...पास आते ही इशारे से पूछा क्या बात है..

मैं उनके गर्दन पकड़ उनके शरीर पर लद सी गई और कान के समीप अपने लब ले जाती बोली,"थैंक्स फॉर फ्रेंडशिप...." और पीछे हटने से पहले उनके गाल पर एक गहरी चुंबन जड़ दी दोस्ती वाला...फिर मुस्कुराते हुए तेजी से अंदर आ गेट लॉक कर ली...वो भी मेरी इस शरारत पर मुस्कुराते हुए नीचे चले गए....
_____[.....क्रमशः]_____







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