Sunday, August 31, 2014

FUN-MAZA-MASTI पुजारी हवस का --1

FUN-MAZA-MASTI

 पुजारी हवस का --1

मेरा नाम अमित हे और में आगरा का रहने वाला हु। मेरे परिवार में मेरी मम्मी ऋतू पापा अनिल और छोटी बहन रचना हे। मेरी और मेरी बहन की आयु में ६ साल का फर्क हे। मेरे पापा का एक डिपार्टमेंटल स्टोर हे। में शुरू से ही पढ़ने में तेज था इसलिए मेरा १२ वि क्लास के बाद ही इन्ज्नीरिंग में एड्मिसन हो गया और में बहार पढ़ने चला गया . मेरा तब घर छुट्टियों में ही आना होता। छुट्टियों में जब भी में घर आता तो ज्यादा तर समय सोने में ही गुजरता। तब रचना काफी छोटी थी तो वो मेरे चारो और भैय्या भैय्या कहकर दौड़ लगाती रहती ,कभी मेरी गोद में आकर बैठ जाती तो कभी मुझे बहार चलकर घुमाने की ज़िद करती ,और में उसे अक्सर बहार ले जाता तो वो खुश हो जाती। बीटेक करते करते में भी कॉलेज के लड़को के रंग में रंगने लगा था ,आये दिन हम अपने लैपटॉप पर पोर्न मूवी देखते या सेक्स साइट पर जाकर नंगी लड़कियों और ओरतो की तस्वीरें देखते ,कभी अश्लील कहानिया भी पढ़ते। कुछ लड़के जो ज्यादा उत्तेजित हो जाते वो वंही मूठ भी मार लेते पर न जाने क्यू मुझमे एक संकोच हमेशा बना रहता था। सही कहु तो तब तक मेने किसी भी लड़की को नंगी तक नही देखा था मुझे ये तक पता नही था की असल में चूत केसी होती हे या गांड केसी होती हे या बूब्स कैसे होते हे। मेरा मन तो बहुत करता था पर मुझे डर भी बहुत लगता था। में मूठ मारने से भी डरता था की कंही ऐसा कुछ न हो जाये जिसके कारन में आगे परेशानी में फंस ना जाऊं। मेरे कई दोस्त अक्सर कहा करते थे की सेक्स की शुरुआत घर से ही होती हे ,घर पर माँ बहन भाभी चाची मामी सेक्स की शुरआत करने में सबसे ज्यादा मददगार होती हे पर मेरी समझ में नही आता था की ये कैसे संभव हो सकता हे ? पर उनमे से कोई कहता यार इस बार तो भाभी की गांड खूब दबाई कोई कहता दीदी की चूत को खूब सहलाया कोई तो और आगे बड़ जाता वो कहता की रात भर मॉम से चिपट कर सोया।तो में सोचता की क्या में मॉम या रचना के साथ ऐसा कुछ कर सकता हु तो मेरा दिल मुझे धिक्कारने लगता की में ऐसा कैसे सोच भी सकता हु। कॉलेज में भी लड़के किसी लड़की को देखते तो उसकी खूब कुछ इस अंदाज़ में कहते,उफ़ क्या माल हे,या क्या गांड हे,,क्या मस्त फूली चूत हे या क्या बोबे हे वगेरा वगेरा। कुछ लड़के तो लेडीज टॉयलेट के बाहर खड़े होकर लड़कियों के पेशाब करने की आवाज सुनकर ही खुश हो जाते। फिर से मेरे दिमाग में वो सब चलने लगता की आखिर ऐसा करके क्या मिलता हे। मेरा एक दोस्त अनुराग तो मुझे अक्सर ये समझाता रहता की आजकल ये सब बाते आम हे और घर से बड़ा चुदाई का कोई सुख नही हे ,उसने ये भी कहा की अगर इस बार घर जाने पर में इसके बारे में सोचु और अपनी मॉम या बहन को देख मेरा लिंग खड़ा हो जाये तो में समझ लू की इसमे कुछ भी गलत नही हे। अनुराग ने तो यहाँ तक कहा की दोस्ती में आजकल अपने निकट तम रिश्तेदारो की अदला बदली भी चलती हे अगर वो मेरे किसी घर की फीमेल के साथ चुदाई करे या में उसके घर की किसी फीमेल के साथ चुदाई करू तो इसमे गलत कुछ नही होगा बल्कि दोस्ती और मजबूत होती हे। और घर की बात घर में रहती हे। मेरी समझ में फिर भी ये सब गलत ही लगता था।


खेर इस बार जब में घर आया तो मेरे दिमाग में कई उलझने थी और सेक्स को लेकर कई सवाल थे। घर में घुसते ही मॉम मिली ,उन्होंने मुझे देखते ही गले लगाया ,उन्होंने मुझे गले कुछ ही सेकण्ड्स के लिए लगाया था लेकिन मुझे उनके बूब्स का दवाब मेरी छाती पर महसूस हो गया। पहली बार मुझे अजीब सा लगा ,मॉम के शरीर से एक भीनी भीनी खुशबु आ रही थी और में उनसे चिपक कर खड़ा हुआ था,उस थोड़े से समय में ही मेरे लंड में हरकत होने लगी और उसमे तनाव आ गया। में जल्दी ही मॉम से अलग हो गया। तभी रचना वंहा भागती हुई आई और भैया आ गए भैया आ गए कहते हुए मेरे गले लग गयी। पहली बार मेने रचना को धयान से देखा। उफ़ मेरी बहन तो क़यामत बन चुकी थी। उसने ब्लैक कलर की केप्री और ब्लैक कलर का टॉप पहन रखा था ,जिसमे उसकी सफ़ेद रंग की ब्रा की लाइन स्पष्ट दिख रही थी ,उस ब्रा के कप ऐसे थे की रचना के दोनों बूब्स ऐसे लग रहे थे जैसे वो दो अलग अलग विभक्त हो ,केप्री के निचे उसकी टांगे बिलकुल चिकनी दिख रही थी। मेरी बहन गोरी चिट्ठी तो थी ही पर उसके शरीर के कटाव और बनावट भी बहुत सेक्सी थी। घर में घुसते ही मॉम और रचना से इस तरह की मुलाकात ने मुझे भौचक कर दिया था ,मेने कभी सोचा भी नही था की मेरे घर में ही दो इतनी सेक्सी फीमेल हे। मुझे मेरे दोस्तों की सब बाते याद आने लगी थी और मेरे दिमाग में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा की जब तक में घर पर हु तब तक ज्यादा से ज्यादा समय इन दोनों के साथ गुजारूँगा। मॉम ने कहा की में अपने रूम में जाकर रेस्ट कर लू फिर सब टी टाइम पर जाकर मिलते हे। में अपने रूम में आ गया और मेने अपनी ड्रेस चेंज कर ली और बेड पर लेट गया पर पता नही इतना थका होने के बाद भी मुझे नींद नही आई और मेरे दिमाग में केवल मॉम और रचना ही घूमती रही।


 शाम को में उठकर डाइनिंग टेबल पर आया तो मॉम और रचना वंहा पहले से ही बैठी हुई थी। मॉम ने चाय बना रखी थी और कुछ स्नेक्स वगेरा भी टेबल पर रखे हुए थे। हम तीनो के बीच चाय की चुस्कियो के साथ पढ़ाई को लेकर हलकी फुलकी बाते होती रही।में आपको बता दू आगरा में हम जिस फ्लैट में रहते हे वो ३ बैडरूम का हे १ बैडरूम मेरे पेरेंट्स का हे १ बैडरूम में ,में और रचना रहते हे और १ बैडरूम मेहमानो के लिए हे। जब कोई मेहमान नही होता तो रचना उस बैडरूम में सोती हे। सभी बैडरूम एक बड़े डाइनिंग हॉल में खुलते हे। केवल हमारे पेरेंट्स के रूम में अटैच लेट बाथ हे ,बाकि एक डाइनिंग हॉल के कोने में हे जिसे बाकि हम शेयर करते हे। मेरी मॉम ऋतू बहुत ही आकर्षक महिला हे जो अपने शरीर का पूरा धयान रखती हे। सुबह उठते ही वो योग और प्राणायाम करती हे ,४० साल की उम्र होने के बाद भी कोई उन्हें देखता हे तो वो उन्हें हमारी मॉम कम दीदी ज्यादा समझता हे। यही नही मॉम घर में हमेशा साड़ी या सूट में ही रहती हे ,मेने उन्हें कभी गाउन वगेरा में कभी हमारे सामने आते नही देखा चाहे वो बैडरूम में कैसे भी रहती हो। अभी भी मॉम ने एक शानदार सूट पहन रखा था जो उनपे बहुत फब रहा था। न जाने आज क्यू मेरा मन बार बार मॉम को देखने को कर रहा था।बहुत देर तक हम बाते करते रहे तब तक पापा भी घर आ गए। मेरे पापा को रोज ड्रिंक करने की आदत हे ,इसलिए वो थोड़ी देर ही हमारे पास बैठकर अपने बेड रूम में चले गए। मॉम ने मुझे और रचना को खाना खिलाया और फिर वो अपना और पापा का खाना लेकर अपने बेड रूम में चली गयी में और रचना भी अपने अपने रूम में चले गए। रात को मुझे देर तक जागने की आदत थी तो में अपने लैप टॉप पर बैठ कर
काम करता रहा ,थोड़ी देर बाद मुझे पेशाब करने की इच्छा हुई तो में उठकर बाहर के टॉयलेट में गया,जब में वंहा से लोट रहा था तो मुझे पापा मॉम के रूम से सिस्करिओ की आवाज आई,में ठिठक कर वंही रुक गया। इतने में फिर मॉम की मादक भरी आवाज आई ,बस अनिल बस अब डाल भी दो ,मॉम के ये मादक भरे शब्द सुन कर में उत्तेजित होकर कप कापने लगा,न जाने क्यू मेरा मन किया की अंदर क्या हो रहा हे मुझे किसी तरह देखना चाहिए। मेने बेड रूम के दरवाजे पर निगाहे दौड़ाई तो मुझे की होल दिख गया। मेने की होल से अंदर की और झाँका तो में और चोंक गया ,मेरी मॉम और पापा एक दूसरे से चिपटे हुए थे,की होल के इस साइड पापा थे तो मुझे केवल उनका नंगा बदन दिखाई दिया,मॉम दूसरी साइड थी तो मुझे वो पापा की वजह से दिखाई नही दे रही थी


 मेरे पांव कांपने लगे ,पहले तो मेरे मन ने कहा की में ये क्या कर रहा हु ,ये गलत हे,अपने मॉम डैड को सेक्स करते देखना क्या सही होगा,ऐसे कई विचारो के बाद अंत में हवस ने मन पर काबू पा लिया और मेने की होल पर वापस नजरे लगा दी। इस बार मॉम डैड पोजीशन बदल कर सामने की और आ गए थे। वो दोनों एक दूसरे की आलिंगन किये हुए थे। डैड मॉम के लिप्स को जबरदस्त तरीके से चूस रहे थे ,और उनके हाथ मॉम की नंगी पीठ पर थे। मझे यकीं नही हो रहा था की जो मॉम दिन के उजालो में हमारे सामने कपड़ो में लिपटी सिमटी रहती हे वो बिलकुल नग्न अवस्था में मेरे सामने लेती हे। थोड़ी देर तक किस करने के बाद वे दोनों अलग हो गए,अब ओनो मेरे सामने बिलकुल नग्न अवस्था में थे,ऑफ़ मेरी मॉम नंगी होने के बाद इतनी खूबसूरत दिखेगी ये मेने सोचा भी नही थी,मॉम के दोनों बूब्स किसी पहाड़ की तरह तने हुए थे उन पर गुलाबी रंग के निप्पल क़यामत ढा रहे थे,उनकी कमर के निचे उनके चूत हलके हलके बालो से ढंकी हुई नजर आ रही थी। इधर डैड का लन्ड भी अच्छा खासा बड़ा था और वो तना हुआ मॉम की चूत को सलामी दे रहा था। अब डैड मॉम के बूब्स को अपने दोनों हाथो में जकड चुके थे और उन्हें बीच बीच में मसल रहे थे ,जैसे ही वो मॉम के बूब्स को मसलते माँ चिहुंक उठती पर डैड को कोई फर्क नही पड़ रहा था ,उन्होंने मॉम के बूब्स को मसलना जारी रखा ,इधर मॉम ने डैड के लोडे को अपने हाथ में पकड़ लिया था और वो कभी उसको सहला रही थी तो कभी उसको हिला रही थी। मॉम बार बार डैड से कह रही थी,ओह अनिल धीरे.... धीरे दबाओ ओह आह ओह ओह पर डैड थे की बूब्स को मसलना जारी रखे हुए थे। अचानक डैड ने मॉम के बूब्स को दबाना छोड़ दिया और उन्हें मुंह में भर लिया ,बांया बूब्स अब उनके मुंह में था और दांये बूब्स को उन्होंने अपने हाथ में जकड लिया और उसे मसलने लगे। सारा नजारा किसी को भी पागल कर सकता था ,और में जिसने पहली बार चूत देखि थी उसका तो और भी बुरा हाल था।
अचानक मुझे ख्याल आया की ऐसा न हो की रचना जग गयी हो और वो मुझे यहाँ ऐसे देख लेगी तो वो क्या सोचेगी ,ऐसा हे की में एक बार उसके कमरे में जाकर उसे चेक कर लेता हु की वो सो रही हे या जाग रही हे। में उसके कमरे की और गया और जैसे ही बत्ती जलाई मेरा दिल धक से रह गया। थकी होने के कारण रचना घोड़े बेचकर सो
रही थी। इतनी गर्मी में कुछ ओढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था। ऊपर से पंखा भी भगवान
भरोसे ही चल रहा था। उसकी स्कर्ट उसकी जाँघों के ऊपर उठी हुई थी। अभी एक महीने पहले
ही वो अठारह साल की हुई थी। उसकी हल्की साँवली जाँघें ट्यूबलाइट की रोशनी में ऐसी
लग रही थीं जैसे चाँद की रोशनी में केले का तना


अचानक मुझे लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूँ? यह लड़की मुझे भैया कहती है और
मैं इसके बारे में ऐसा सोच रहा हूँ। मुझे बड़ी आत्मग्लानि महसूस हुई ,और मेने सोचा की मुझे बाहर ही चला जाना चाहिए


बाहर आकर मैंने सोचा कि इसकी स्कर्ट तो ठीक कर दूँ फिर अंदर जाते जाते रुक गया फिर मुझे लगा कि अगर यह जग गई तो कहीं कुछ गलत न सोचने लग जाए ऐसा लग रहा था जैसे मेरे भीतर एक युद्ध चल रहा हो। कामदेव ने मौका देखकर
अपने सबसे घातक दिव्यास्त्र मेरे सीने पर छोड़े। मैं कब तक बचता। आखिर मैं अंदर गया और
मैंने कमरे की बत्ती जला दी। रचना की स्कर्ट और ऊपर उठ गई थी और अब उसकी नीले
रंग की पैंटी थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ रही थी। उसकी जाँघें बहुत मोटी नहीं थीं और उरोज
भी संतरे से थोड़ा छोटे ही थे। मैं थोड़ी देर तक उस रमणीय दृष्य को देखता रहा। मेरा लंड खड़ा हो चूका था। अगर इस वक्त रचना जग जाती तो पता नहीं
क्या सोचती।

फिर मेरे दिमाग में एक विचार आया और मैंने
बत्ती बुझा दी। थोड़ी देर तक मैं वैसे ही खड़ा रहा धीरे धीरे मेरी आँखें अँधेरे की
अभ्यस्त हो गईं। फिर मैं बेड के पास गया और बहुत ही धीरे धीरे उसकी स्कर्ट को पकड़कर
ऊपर उठाने लगा। जब मुझे लगा कि स्कर्ट और ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकती तो मैंने स्कर्ट
छोड़कर थोड़ी देर इंतजार किया और कमरे की बत्ती जला दी। जो दिखा उसे देखकर मैं दंग रह
गया। ऐसा लग रहा था जैसे पैंटी के नीचे रचना ने डबल रोटी छुपा रक्खी हो या नीचे
आसमान के नीचे गर्म रेत का एक टीला बना हुआ हो। मैं थोड़ी देर तक उसे देखता
रहा।फिर मैंने बत्ती बुझाई और बेड के पास आकर उसकी
जाँघों पर अपनी एक उँगली रक्खी। मैंने थोड़ी देर तक इंतजार किया लेकिन कहीं कोई हरकत
नहीं हुई। मेरा दिल रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहा था और मेरे लंड में आवश्यकता से
अधिक रक्त पहुँचा रहा था। फिर मैंने दो उँगलियाँ उसकी जाँघों पर रखीं और फिर भी कोई
हरकत न होते देखकर मैंने अपना पूरा हाथ उसकी जाँघों पर रख
दिया।

धीरे धीरे मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया मगर
फिर भी कोई हरकत नहीं हुई। रचना वाकई घोड़े बेचकर सो रही थी।

धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। फिर मैंने अपना हाथ उसकी जाँघों से
हटाकर उसकी पैंटी के ऊपर रखा। मेरी हिम्मत और बढ़ी। मैंने अपने हाथों का दबाव बढ़ाया।




अचानक मुझे लगा कि उसके जिस्म में हरकत होने वाली है। मैंने तुरंत अपना हाथ हटा लिया।

में वापस बाहर आ गया और फिर से मॉम डैड के बैडरूम के की होल में जाकर अपनी नजरे गड़ा दी,ओह माय गॉड क्या नजारा था,अंदर का सीन फिर से बदल चूका था,मॉम बेड के उप्पर अपने दोनों घुटने चोदे कर के बैठी हुई थी और डैड बेड के निचे भेटे हुए माँ की चूत को चूस रहे थे,मॉम बहुत उत्तेजित लग रही थी और वो डैड के बालो में हाथ फिरती हुई सिस्कारिया भर रही थी। मॉम कुछ ज्यादा ही जोश में थी वो जोर जोर से चिल्ला सी रही थी ,ओह अनिल जोर से जोर से जोर से चूस। ....... ओह भाडू ओह भोसड़ी के ,…। ओह मादर चोद चूस जोर से चूस निकल दे मेरी चूत का पानी,,में बहुत हतप्रभ था की मॉम ऐसी किसी आवारा भाषा का यूज़ कर रही हे ,मॉम की ये बाते सुन मेरा दिमाग पूरी तरह सुन्न हो चूका था ,लौड़ा तम्बू की तरह तना और होठ मेरे सुख चुके थे।






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