Friday, August 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--13

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--13
अब आगे....

 भाभी: सिर्फ बात ही करोगे ना ???

भाभी की इस बात में छिपी शरारत को मैं भांप गया था!!!

मैं: मुझे सिर्फ आपसे बात करनी है और कुछ नहीं ....

माँ ने मुझे छत पे सोने के लिए कहा पर मैंने मन कर दिया की मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है| उन्हें संतुष्टि दिलाने के लिए आज मैंने भोजन के उपरांत टहला भी नहीं और सीधे चारपाई पे गिरते ही सो गया|
सभी औरतें छापर के तले लेट गईं और अब मैं बेसब्री से इन्तेजार करने लगा की कब भाभी मुझे उठाने आएँगी|
सच कहूँ तो मन में अजीब सी फीलिंग्स जाग रही थी.. एक अजब सी बेचैनी... मैं बस करवटें बदल रहा था और ये नहीं जानता था की भाभी मुझे अपने घर के दरवाजे पे खड़ी करवटें बदलते देख रही थी| वो मेरे सिराहने आईं और नीचे बैठ के मेरे कानों में खुस-फुसाई:

भाभी: मानु चलो.... बात करते हैं|

मैं चौंकते हुए उन्हें देखने लगा और उनके पीछे-पीछे घर की और चल पड़ा| अंदर पहुँच भाभी दरवाजा बंद काने लगीं तो मैंने उन्हें रोक दिया:

मैं: भौजी प्लीज दरवाजा बंद मत करो.... मैं आपसे सिर्फ और सिर्फ बात करने आया हूँ|

भाभी: मानु मैं तुम्हारी बैचनी समझ सकती हूँ… पूछो क्या पूछना है?

अंदर दो चारपाइयां बिछी थीं, एक पे नेहा सो रही थी और दूसरी भाभी की चारपाई थी| मैं भाभी वाली चारपाई पे बैठ गया और भाभी नेहा की चारपाई पे|

मैं: मुझे जानना है की आखिर क्यों आपने मुझे अपने पति होने का दर्जा दिया? ऐसी कौन सी बात है जो आप मुझसे छुपा रहे हो?

भाभी: मानु आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी सुनाती हूँ :

"हमारी शादी होने के बाद से ही तुम्हारे भैया और मेरे बीच में कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था| सुहागरात में तो उन्होंने इतनी पी हुई थी की उन्हें होश ही नहीं था की उनके सामने कौन है? उस रात मुझे पता चला की तुम्हारे भैया की नियत मेरी छोटी बहन पर पहले से ही बिगड़ी हुई थी... उन्होंने मेरी बहन के साथ सम्भोग भी किया है!"


मैं: ये आप क्या कह रहे हो?

भाभी: सुहागरात को वो नशे में धुत थे की जब वो मेरे साथ वो सब कर रहे थे तब उनके मुख से मेरी बहन सोनी का नाम निकल रहा था| अपनी बहन का नाम सुनके मेरे तो पाँव टेल जमीन ही सरक गई| मैं तुम्हारे भैया को इस अपराध के लिए कभी माफ़ नहीं कर सकती.. उन्होंने मेरे साथ जो धोका किया...

इतना कहते हुए भाभी फूट-फूट के रोने लगीं| मुझसे भाभी का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं उठ के उनके पास जाके बैठ गया और उन्हें चुप करने लगा| भाभी ने सुबकते हुए अपनी बात जारी रखी....

भाभी: मानु तुम्हारे भैया ना मुझसे और ना ही नेहा से प्यार करते हैं| उन्हें तो लड़का चाहिए था और जब नेहा पैदा हुई तो उन्होंने अपना सर पीट लिया था| और सिर्फ वो ही नहीं .. घर का हर कोई मुझसे उम्मीद करता है की मैं लड़का पैदा करूँ| तुम ही बताओ इसमें मेरा क्या कसूर है?

मैंने भाभी को अपनी बाँहों में भर लिया... मुझे उनकी दुखभरी कहानी सुन अंदर ही अंदर हमारे इस सामाजिक मानसिकता पे क्रोध आने लगा| पर मैंने भाभी के समक्ष अपना क्रोध जाहिर नहीं किया ... बस धीरे-धीरे उनके कंधे को रगड़ने लगा ताकि भाभी शांत हो जाये|


भाभी को सांत्वना देते-देते मैं उनकी तरफ खींचता जा रहा था .. भाभी ने अपना मुख मेरे सीने में छुपा लिया और उनकी गरम-गरमा सांसें मेरे तन-बदन में आग लगा चुकी थीं| पर अब भी मेरा शरीर मेरे काबू में था और मैं कोई पहल नहीं करना चाहता था, क्योंकि मेरी पहल ऐसे होती जैसे मैं उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा हूँ| मैं बस उन्हें सांत्वना देना चाहता था.. और कुछ नहीं| भाभी की पकड़ मेरे शरीर में तेज होने लगी.. जैसे वो मुझसे पहल की उम्मीद रख रही थी... उन्होंने मेरी और देखा ... उनकी आँखों में मुझे अपने लिए प्यार साफ़ दिखाई दे रहा था| उनके बिना बोले ही उनकी आँखें सब बयान कर रही थी.... मैं उनकी उपेक्षा समझ चूका था पर मेरा मन मुझे पहल नहीं करने दे रहा था... शायद ये मेरे मन में उनके प्रति प्यार था|

मुझे पता था की यदि मैं और थोड़ी देर वहां रुका तो मुझसे वो पाप दुबारा अवश्य हो जायेगा| इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ और दरवाजे के ओर बढ़ा ... परन्तु भाभी ने मेरे हाथ थाम के मुझे रोक लिया... मैंने पलट के उनकी ओर देखा तो उनकी आँखें फिर नम हो चलीं थी| मैं भाभी के नजदीक आया ओर अपने घटनों पे बैठ गया...

मैं: भौजी ... प्लीज !!!

प्लीज सुनते ही भाभी की आँखों से आंसूं छलक आये....

भाभी: मानु .. तुम भी मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो?

ये सुनते ही मेरे सब्र का बांध टूट गया… मैंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया|

मैं: नहीं भौजी... मैं आपके बिना नहीं जी सकता| बस मैं अपने आप को ये सब करने से रोकना चाहता था| पर अगर आपको इस सब से ही ख़ुशी मिलती है तो मैं आपकी ख़ुशी के लिए सब कुछ करूँगा|

मैं फिर से खड़ा हुआ और जल्दी से दरवाजा बंद किया और कड़ी लगा दी| मैं भाभी के पास लौटा और उन्हें उठा के उनकी चारपाई पर लेटा दिया| भाभी ने अपनी बाहें मेरे गले में दाल दी थीं और मुझे छोड़ ही नहीं रही थी.. उन्हें लगा की कहीं मैं फिर से उन्हें छोड़ के चला ना जाऊँ|
 


 मुझे डर था की अगर मैंने कुछ शुरू किया और किसी ने फिर से रंग में भांग दाल दिया तो हम दोनों का मन ख़राब हो जायेगा इसलिए मैंने भाभी से स्वयं पूछा :

मैं: भाभी आज तो कोई नहीं पानी डालेगा ना?

भाभी: नहीं मानु... तुम्हारे अजय भैया भी छत पे सोये हैं|

मैं: आपका मतलब.. छत पे आज पिताजी, अशोक भैया और अजय भैया सो रहे हैं| आज तो किस्मत बहुत मेहरबान है!!!

भाभी: मेरी किस्मत को नजर मत लगाओ !!!

ये बात तो तय थी की आज अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा नहीं होगा... मतलब आज सब कुछ अचानक मेरे पक्ष में था| मेरे मन में एक ख्याल आया ... क्यों न मैं भाभी को वो सुख दूँ जिसके लिए वो तड़प रही हैं| मैंने भाभी से कहा कुछ नहीं बस उनके होंठों को धीरे से चुम लिया... और मैंने दूर हटना चाहा पर भाभी की बाहें जो मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द थीं उन्होंने मुझे दूर नहीं जाने दिया| मैं भाभी के ऊपर फिर से झुक गया और उनके होंठों को अपने होंटों की गिरफ्त में ले लिया... सबसे पहला आक्रमण भाभी ने किया... उन्होंने मेरे होंठों का रास पान करना शुरू कर दिया और मेरी गर्दन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी| भाभी का ये आक्रमण करीब पांच मिनट चला... अब मुझे भी अपनी प्रतिक्रिया देनी थी.. की कहीं भाभी को बुरा न लगे| मैंने भाभी के गुलाबी होंठों को अपने दांतों टेल दबा लिया और उन्होंने चूसने लगा... मैंने अपनी जीभ भाभी के मुख में दाखिल करा दी और उनके मुख की गहराई को नापने लगा| रात की रानी की खुशबु कमरे को महका रही थी... और भाभी और मैं दोनों बहक ने लगे थे पर मेरे मन में आये उस ख्याल ने मुझे रोक लिया|

अब मुझे असहज (अनकम्फ़ोर्टब्ले) महसूस हो रहा था... क्योंकि इतनी देर झुके रहने से पीठ में दर्द होने लगा था|मैंने अपनी कमर सीढ़ी की और भाभी के ऊपर आ गया .. उनके माथे को चूमा .... फिर उनकी नाक से अपनी नाक रगड़ी.... उनके दायें गाल को अपने मुख में भर के चूसा और अपने दाँतों के निशान छोड़े.. फिर उनके बाएं गाल को चूसा और उसपे भी अपने दांतों के निशान छोड़े... और धीरे-धीरे नीचे बढ़ने लगा|

उनकी योनि के पास आके रुक गया... और फिर धीरे-धीरे उनकी साडी ऊपर करने लगा| मुझे इस बात की तसल्ली थी की आज हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा …मुझे ये जान के बिलकुल भी आस्चर्य नहीं हुआ की आज भी भाभी ने पैंटी नहीं पहनी थी| मैंने भाभी के योनि द्वार को चूमा... फिर उन्हें धीरे से अपने होंठों से रगड़ ने लगा| भाभी किसी मछली की तरह मचलने लगीं... मैंने उन पतले-पतले द्वारा को अपने मुख में भर लिया और चूसने लगा... अभी तक मैंने अपनी जीभ उनकी योनि में प्रवेश नहीं कराई थी और भाभी की सिस्कारियां शुरू हो चुकी थीं...

स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ... स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स माआआआआउउउउउउउ उम्म्म्म्म्म्म्म ....

जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से भाभी के भगनसे को छेड़ा... भाभी मस्ती में उछाल पड़ीं और अपने सर को तकिये पे इधर-उधर पटकने लगी| भाभी की प्रतिक्रिया ने मुझे चौंका दिया और मैं रूक गया... भाभी ने अपनी उखड़ी हुई सांसें थामते हुए कहा:

"मानु रुको मत.... प्लीज !!!"

मैंने रहत की सांस ली और अपने काम में जुट गया| अब मैंने अपनी जीभ भाभी के गुलाबी योनि में प्रवेश करा दी| अंदर से भाभी की योनि धा-धक रही थी.. एक बार को तो मन हुआ की जल्दी से अपना पजामा उतारूँ और अपने लंड को भाभी की योनि में प्रवेश करा दूँ ! पर फिर वाही ख्याल मन में आया और मैंने अपने आप को जैसे-तैसे कर के रोक लिया| मैंने भाभी की योनि में अपनी जीभ लपलपानी शुरू कर दी... उनकी योनि से आ रही महक मुझे मदहोश कर रही थी और साथ ही साथ प्रोत्साहन भी दे रही थी| मैंने भाभी की योनि की खुदाई शुरू कर दी थी और भाभी की सीत्कारियां तेज होने लगीं थी....


स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ह्ह्ह्ह ... अन्न्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह माआआंउ....

भाभी के अंदर का लावा बहार आने को उबाल चूका था| और एक तेज चीख से भाभी झड़ गईं...

आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .....मानु.......

भाभी का रस ऐसे बहार आया जैसे किसी ने नदी पे बना बाँध तोड़ दिया हो.... कमरे में तो पहले से ही रात रानी के फूल की खुशबु फैली हुई थी उसपे भाभी के योनि की सुगंध ने कमरे को मादक खुशबु से भर दिया और उस मादक खुशभु ने मुझे इतना बहका दिया की मैंने भाभी के रस को चाटना शुरू कर दिया| उसका स्वाद आज भी मुझे याद है... जैसे किसी ने गुलाब के फूल की पंखुड़ियों को शहद में भिगो दिया हो...

मैं सारा रस तो नहीं पी पाया पर अब भी मैं भाभी की योनि को बहार-बहार से चाट के साफ़ कर रहा था... भाभी की सांसें समान्य हो गई और उनके चेहरे पे संतुष्टि के भाव थे.. उन्हें संतुष्ट देख के मेरे मन को शान्ति प्राप्त हुई| भाभी ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया.... मैं भाभी के ऊपर था और मेरा लंड ठीक भाभी की योनि के ऊपर| बस फर्क ये था की मैंने अपने पजामे का नाड़ा नहीं खोला था इसलिए मेरा लंड तन चूका था परन्तु कैद में था|

मैं ठीक भाभी के ऊपर था ... भाभी की सांसें आगे होने वाले हमले के कारन तेज हो रहीं थीं... भाभी ने अपना हाथ मेरे लंड पे रख दिया... ये सोच के की मैं उनके साथ सम्भोग करूँगा| परन्तु वे मेरे मन में उठ रहे विचार के बारे में नहीं जानती थी| जैसे ही भाभी के हाथ ने मेरे लंड को छुआ मैंने भाभी की आँखों में देखते हुए ना में गर्दन हिला दी| भाभी मेरी इस प्रतिक्रिया से हैरान थी.. मित्रों जब कोई सामने से आपको सम्भोग के लिए प्रेरित करे तो ना करना बहुत मुश्किल होता है... परन्तु यदि आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति आदर भाव व प्रेम है और उसकी ख़ुशी के लिए आप कुछ भी करने से पीछे नहीं हटोगे, ऐसी आपकी मानसिकता हो तो आप अपने आप पर काबू प् सकते हो अन्यथा आप सिर्फ और सिर्फ एक वासना के प्यासे जानवर हो!!! ऐसा जानवर जो अपनी वासना की तृप्ति के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है|

मैं: नहीं भाभी... आज नहीं

भाभी: क्यों?

मैं: भाभी मैंने कुछ सोचा है....

भाभी: क्या?

मैं: आपके जीवन में दुखों का आरम्भ आपकी सुहागरात से ही शुरू हुआ था ना? तो क्यों ना वाही रात आप और मैं फिर से मनाएं?

भाभी: मानु तुम मेरे लिए इतना सोचते हो... ?

मैं: हाँ क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ... और हमारी सुहागरात कल होगी| तब तक आपको और मुझे हम दोनों को सब्र करना होगा|

भाभी: परन्तु मानु .... तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा होगा!

भाभी ने मेरे लंड की ओर इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप उसकी चिंता मत करो... वो थोड़ी देर में शांत हो जायेगा| आप दिन भर के काम के बाद ओर अभी आई बाढ़ के बाढ़ तो थक गए होगे... तो आप आराम करो|

इतना कह के मैं चल दिया .. पर भाभी की आवाज सुन के मैं वहीँ रुक गया|

भाभी: मानु.. तुम सोने जा रहे हो?

मैं: हाँ

भाभी: मेरी एक बात मानोगे?

मैं: हुक्म करो!

भाभी: तुम मेरे पास कुछ और देर नहीं बैठ सकते... मुझे तुम से बातें करना अच्छा लगता है| दिन में तो हम बातें कर नहीं सकते|

मैं: ठीक है....

और मैं नेहा की चारपाई पर बैठ गया|

भाभी: वहाँ क्यों बैठे हो मेरे पास यहाँ बैठो...  


सच कहूँ मित्रों तो मैं भाभी से दूर इसलिए बैठा था की कहीं मैं अपना आपा फिर से ना खो दूँ| पर भाभी के इस प्यार भरे आग्रह ने मुझे उनके पास जाने के लिए विवश कर दिया|
मैं उठा और भाभी की चारपाई पर लेट गया... कुछ इस प्रकार की मेरी पीठ दिवार से लगी थी और टांगें सीधी थी| भाभी ठीक मेरे बगल में लेटी हुई थीं.. उन्होंने मेरी कमर में झप्पी डाल ली और बोलने लगीं:

भाभी: मानु ... तुम पूछ रहे थे ना की क्यों मैंने तुम्हें अपने पति का दर्जा दिया? क्योंकि तुम मुझे कितना प्यार करते हो... तुमने अभी जो मेरे लिए किया .. तुम्हारे भैया ने कभी मेरे साथ नहीं किया| तुम मेरी ख़ुशी के लिए कितना सोचते हो.. और मुझे यकीन है की मेरी ख़ुशी के लिए तुम कुछ भी करोगे... पर "उन्हें" तो केवल अपनी वासना मिटानी होती थी| तुम नेहा से भी कितना प्रेम करते हो... जब मैं शहर आई थी तब तुमने नेहा का कितना ख्याल रखा और उस दिन जब नेहा ने तुम्हारी चाय गिरा दी तब भी तुम उसी का पक्ष ले रहे थे| तुम्हारे मन में स्त्रियों के लिए जो स्नेह है वो आजकल कहाँ देखने को मिलता है.. तुम्हारी इन्ही अच्छाइयों ने मुझे सम्मोहित कर दिया... जब तुम छोटे थे तब हमेशा मेरे साथ खेलते थे और मैं खाना बना रही होती थी और तुम मेरी गोद में आके बैठ जाते थे और मेरा दूध पीते थे| सच कहूँ मानु तो तुम मेरी जिंदगी हो... मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती|
तुम ये कभी मत सोचना की तुमने कोई पाप किया है .... क्योंकि आज जो भी कुछ हुआ हमारे बीच में वो पाप नहीं था... बल्कि तुमने एक अतृप्त आत्मा को सुख के कुछ पल दान किये हैं|

ये कहते-कहते भाभी का हाथ मेरे लंड पे आ गया ....वो अब भी सख्त था| मैं मन के आगे विवश था और मेरा सब्र टूट रहा था... मैंने अपना हाथ भाभी के हाथ पे रख दिया और उन्हें रोकने लगा.. दरअसल मैं कल रात के बारे में सोच रहा था और नहीं चाहता था की मैं भाभी के लिए जो सरप्राइज मैंने प्लान किया है उसे मैं ही ख़राब करूँ!

भाभी: मानु.... तुम मेरे लिए इतना कुछ सोच रहे हो.. मुझे खुश करने के लिए तुम जो प्लान कर रहे हो... मेरा भी तो फर्ज बनता है की मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूँ| प्लीज मुझे मत रोको....

अब मेरे सब्र ने भी जवाब दे दिया और मैंने अपना हाथ भाभी के हाथ से हटा लिया.... भाभी ने मेरे पजामे का नाड़ा खोला और मेरे कच्छे में बने टेंट जो देखा .... फिर उन्होंने अपने हाथ से मेरे लंड को आजाद किया... अब समां कुछ इस प्रकार था की रात रानी की खुशबु में मेरे लंड की भीनी-भीनी सुगंध घुल-निल गई| भाभी ने पहले तो मेरे लंड को अपने होंठों से छुआ .. उनकी इस प्रतिक्रिया से मेरे शरीर में जहर-झूरी छूट गई और मैं काँप सा गया| भाभी ने आव देखा न ताव और झट से मेरे लंड को अपने होठों में भर लिया| भाभी ने अभी तक अपनी जीभ का प्रयोग नहीं किया था ... मेरे लंड को अंदर ले के भाभी ने उसे अपने थूक से नहला दिया और जैसे ही उन्होंने मेरे लंड से अपनी जीभ का संपर्क किया मुझे जैसे बिजली का झटका लगा... और ये तो केवल शुरुआत थी.. भाभी ने मेरे लंड को अपने मुख में भर के अंदर निगलना शुरू किया जिससे मेरे लंड के ऊपर की चमड़ी खुल गई और छिद्र सीधा भाभी के गले के अंत में लटके हुए उस मांस के टुकड़े से टकराया| मैं सहम के रह गया और भाभी को उबकाई आ गई.. उनकी आँखों में पानी था जैसा की उबकाई आने पर आ जाता है| परन्तु भाभी ने फिर भी मेरे लंड को नहीं छोड़ा और उसे धीरे-धीरे चूसने लगीं|

बीच-बीच में भाभी अपनी जीभ मेरे लंड के छिद्र पे रगड़ देती तो मैं तड़प उठता और मेरे मुख से मादक सिस्कारियां फुट पड़तीं|

"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ....

मुझे इतना मजा कभी नहीं आय जितना उस पल आ रहा था... भाभी मेरे लंड को किसी टॉफी की भाँती चूस रही थी.. मजे को और दुगना करने के लिए मैंने भाभी से कहा:

"भौजी ...अपने दांत से धीरे-धीरे काटो!"

भाभी ने अपने दांत मेरे लंड पे गड़ाना शुरू कर दिया... और मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगा.. मेरी आँखें बंद हो चुकी थी और भाभी का मुख इतना गीला प्रतीत हो रहा था की पूछो मत! भाभी ने अब मेरे लंड को आगे पीछे कर के चूसना शुरू कर दिया ... जब वो लंड को अंदर तक लेटिन तो सुपाड़ा खुल जाता और जब भाभी लंड बहार निकलती तो लंड की चमड़ी बिल्कुक बंद हो जाती... ये सब भाभी बिना किसी चिंता और दर के कर रही थी.. उनकी चूसने की गति इतनी धीमे थी की एक पल के लिए लगा जैसे ये कोई सुखदाई सपना हो... और मैं इस सपने को पूरा जीना चाहता था|

मैं अब चार्म पे पहुँच चूका था और अब बर्दाश्त करना मुश्किल था... मैंने भाभी से दबी हुई आवाज में अनुरोध किया:

मैं: भाभी ... प्लीज छोड़ दो ... मेरा निकलने वाला है... वार्ना सारे कपडे गंदे हो जायेंगे!!!

भाभी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने आक्रमण को जारी रखा.... मुझसे अब और कंट्रोल नहीं हुआ... और अंदर की वासना कुछ इस तरह बहार आई जैसे किसी ने कोका कोला की बोतल का मुंह बंद करके जोर से हिलाया हो और जब दबाव बढ़ गया तो बोतल का मुख खोल दिया... सारा वीर्य रस भाभी के मुख में भर गया... मुझे तो लगा की भाभी सब का सब मेरे ही पजामे के ऊपर उगल देंगी... परन्तु उन्होंने सारा का सारा रस पी लिया... मेरी सांसें कुछ सामान्य हुईं| और मैंने अपने लंड की और देखा वो बिलकुल चमक रहा था ... भाभी के मुख में रहने से उनके रस में लिप्त!!! मैंने भाभी की ओर देखा तो उनके चेहरे पे अनमोल सुख के भाव थे... मैंने उनके माथे पे चुम्बन किया और खड़ा होके अपना पजामा बंधा|

मैं: भौजी आपने तो जान ही निकाल दी थी....

भाभी: क्यों?

मैं: मुझे लगा था की आज तो मेरे नए कुर्ते-पजामे का बुरा हाल होना है पर आपने तो ... कमाल ही कर दिया|

बहभी: मुझसे काबू नहीं हुआ ... मैंने आजतक ऐसा कभी नहीं किया... बल्कि मुझे तो इससे घिन्न आती थी... पर तुमने आज ....

मैं: मैं आज क्या ?

भाभी: तुमने आज मेरी साड़ी जिझक निकाल दी .... पर ये सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए था... पर ये तो बताओ की तुम शुरू-शुरू में मुझे रोक क्यों रहे थे|

अब मैं अपना पजामे का नाड़ा बांध चूका था|

मैं: क्योंकि मैं ये सब कल के लिए बचाना चाहता था|

भाभी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया.... उनके और मेरे मुख से हमारे काम-रस की सुगंध आ रही थी| हम दोनों ही मन्त्र मुग्ध थे... और फिर से भाभी और मैंने एक गहरा चुम्बन किया ... भाभी ने मुझे इशारे से कहा की लोटे में पानी है.. कुल्ला कर के सोना|
मैंने भाभी का हाथ पकड़ के उठाया और हम दोनों स्नान घर तक गए और साथ-साथ कुल्ला किया| करीबन ढाई बजे थे.. अब समय था सोने का... भाभी का तो पता नहीं पर मैं थका हुआ महसूस कर रहा था और नींद भी आ रही थी| मैं बिस्तर पे पड़ा और घोड़े बेच के सो गया|
 









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