Friday, August 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--12

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--12
अब आगे....


जैसे ही मेरा लंड बहार आया भाभी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई:

"पाच... " ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भाभी के रसों का मिश्रण था| भाभी निढाल होक मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पे चुम्बन किया और उन्हें दिवार दे सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकल के उनके बुर को पोंछा और फिर अपने लें को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पे मक्खियाँ भीं-भिङने लगीं थी|

भाभी अब होश में आ गई थीं और वो स्वयं छलके चारपाई पे बैठ गईं| मैंने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया... भाभी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी .. पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|


 

मेरी मनो दशा मुझे अंदर से झिंझोड़ रही थी... मुझे अपने ऊपर घिन्न आ रही थी... अपने द्वारा हुए इस पाप से मन भारी हो चूका था| मैं भाभी से माफ़ी मांगना चाहता था.. परन्तु इससे पहले मैं कुछ कह पाता, नेहा भाभी को ढूंढती हुई आ गई... जब उसने भाभी से पूछा की वो कहाँ थीं तो उन्होंने मेरी ओर देखते हुए झूठ बोल दिया:

"बेटा मैं ठकुराइन चाची के पास गई थी वहां से अभी- अभी तुम्हारे चाचा के पास आई तो उन्होंने बताया की उनके सर में दर्द हो रहा है.. तो मैं तेल लगाने वाली थी| (भाभी ने तेल की शीशी की ओर इशारा करते हुए कहा)

मैं: नहीं भाभी रहने दो.. मैं थोड़ी देर सो जाता हूँ... आप जाओ खाना खा लो|

भाभी उठीं और चल दी... मैं उन्हें जाते हुए पीछे से देखता रहा| मैं आँगन पमें पड़ी चारपाई पे लेट गया और सोचने लगा...

क्या अभी जो कुछ हुआ वो पाप था?

यदि भाभी गर्भवती हो गई तो? उनका क्या होगा ? और उस बच्चे का क्या होगा?

ये सब सोचते-सोचते सर दर्द करने लगा... मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था की मैं क्या करूँ? सर दर्द और पेट भरा होने के कारन आँखें कब बोझिल हो गईं और कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो शाम के सात बज रहे थे, मैं उठा और स्नान घर में जा के स्नान किया... स्नान करते हुए जब ध्यान अपने तने हुए लंड पे गया तो दोपहर की घटना फिर याद आ गई और अपने ऊपर शर्म आने लगी की कैसे देवर हूँ मैं जिसने अपनी ही भाभी को.... छी ..छी..छी... मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए| यही कारण था की मैं नहाने के बाद रसोई के आस पास भी नहीं जा रहा था... मैं छत पे आ गया और टहलने लगा... अंदर ही अंदर खुद को कोसते हुए.... मैं छत के एक किनारे खड़ा हो गया और चन्दर भैया के घर की ओर देखते हु सोचने लगा की क्या मुझे भाभी से माफ़ी मांगनी चाहिए?

अभी मैं अपनी इस असमंजस की स्थिति से बहार भी नहीं आया था की नेहा ने मुझे नीचे से आवाज दी:

"चाचू...माँ आपको बुला रही है|"

नेहा की बात सुन के मेरे कान लाल हो गए.. ह्रदय की गति बढ़ गई और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| मन कह रहा था की कहीं भाभी नाराज तो नहीं? या किसी ने भाभी और मुझे वो सब करते देख तो नहीं लिया? या भाभी ने खुद ही ये बात तो सब को नहीं बता दी? इन सवालों ने मेरे क़दमों को जकड लिया की तभी नेहा ने फिर से मुझे पुकारा:

"चाचू..."

मैं: हाँ... मैं आ रहा हूँ|


लड़खड़ाते हुए मैं सीढ़ियों से नीचे उतरा और रसोई की ओर चल पड़ा... मन में घबराहट थी ओर चेहरा साफ़ बयां कर रहा था की मेरी फ़ट चुकी है| रसोई के पास एक छप्पर था जहाँ घर की औरतें और कभी-कभी मर्द बैठ के बातें वगैरह किया करते थे| जैसे ही मैं छप्पर के नजदीक पहुंचा तो मुझे किसी के खिल-खिला के हंसने की आवाज आई.. ये तो नहीं पता था की वो कौन है पर इस हंसी के कारन मेरे बेकाबू दिल को थोड़ी सांत्वना मिली| बाल-बाल बचे !!!

मैं छप्पर में दाखिल हुआ तो एक चारपाई पर रसिका भाभी और हमारे गाँव का अकड़ू ठाकुर जिस के बारे में मैंने आपको बताया था उसकी बेटी (माधुरी) बैठी थीं और दूसरी चारपाई पर भाभी और नेहा बैठे थे| माहोल देख के लगा जैसे वे सब आपस में कुछ खेल रहे थे और हसीं ठिठोली कर रहे थे... भाभी ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया .. और मैं उनके पास बैठ गया| दरअसल वे सब एक दूसरे से टीम बना के पहेली पूछने का खेल रहे थे... अब चूँकि भाभी अकेली पड़ रहीं थी इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया था|

मैं काफी हैरान था की भाभी के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं और कहाँ मैं शर्म के मारे गड़ा जा रहा था| अब भी मैं भाभी से कोई बात नहीं कर पा रहा था... भाभी ने सब से आँख बचा के मुझे इशारे से पूछा की क्या बात है? पर मैंने इशारे से कहा की कुछ नहीं.... भाभी मुझे सवालिया नजरों से देख रही थी और मैं उनसे नजरें चुरा रहा था| भाभी ने माहोल को थोड़ा हल्का करने के लिए मुझसे साधारण बात शुरू की :

भाभी: मानु.. अब सर दर्द कैसा है?

मैं: जी.. अब ठीक है|

(मेरे इस फॉर्मल तरीके से भाभी कुछ परेशान दिखी उहें लगा की मैं उनसे नाराज हूँ|)

भाभी: अच्छा मानु हम यहाँ पहेली बुझने वाला खेल खेल रहे हैं और तुम मेरे पक्ष में हो|

मैं: पर भाभी आपतो जानते ही हो की मुझे भोजपुरी नहीं आती .. तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाउँगा|
मेरे मुख से "भाभी" सुन भाभी ने मुझे अपना झूठा गुस्सा दिखाया क्योंकि भाभी को हमेशा "भौजी" ही कहता था और सिवाय उनके मैंने "भौजी" शब्द किसी और के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं किया था किसका उनको गर्व था|

भाभी: तो क्या हुआ??? तुम मेरे पास तो बैठ ही सकते हो ?

मैं: ठीक है...

दरअसल उत्तर प्रदेश का होने के बावजूद मुझे अभी तक भोजपुरी भाषा नहीं आती... मैंने आज तक किसी से भी भोजपुरी में बात नहीं की.. या तो अंग्रेजी अथवा हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया| अब जब भोजपुरी ही नहीं आती तो भोजपुरी की पहेलियाँ कैसे बुझूंगा|
उनका खेल चल रहा था ... परन्तु मैंने एक बात गौर की... माधुरी मुझे देख के कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी... और ये बात भाभी ने भी गौर की परन्तु मुझसे अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा| खेल जल्द ही समाप्त हो गया और भाभी हार गईं... उनकी हार का अफ़सोस तो मुझे था ही पर साथ-साथ उनकी मदद न कर पाने का दुःख भी| जाते-जाते माधुरी मुझे "गुड नाईट" कह गई और मैंने भी उसकी बात का जवाब "गुड नाईट" से दिया... भाभी तो जैसे जल भून गई होगी... खेर उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा और इस कड़वी बात को पी के रह गई|


तकरीबन एक घंटे बाद बच्चे खाना खा के उठ चुके थे और अब घर के बड़े खाना खाने जा रहे थे... मैं भी खाना खाने जा ही रहा था की भाभी ने मुझे इशारे से रोक दिया, और कहा:

"मानु .. जरा मेरी मदद कर दो .. ये भूसा बैलों को डालने में ..."

चन्दर भैया: तू खुद नहीं दाल सकती.. मानु भैया को खाना खाने दे..

मैं: अरे कोई बात नहीं भैया... आज पहली बार तो भाभी ने मुझे कुछ काम बोला है...

मेरी बात सुन सब हंस पड़े और मैं भी झूठी हंसी हंस दिया…
भाभी और मैं भूसा रखने के कमरे की और चल दिए... अंदर पहुँच के भाभी ने मुझे कास के गले लगा लिया... उनकी इस प्रतिक्रिया से मैं पिघल गया और आखिर कार अपने चुप्पी तोड़ डाली:

मैं: आज दोपहर जो भी हुआ उसके लिए....आप मुझे माफ़ कर दो| साड़ी गलती मेरी है.. मुझे आपसे वो सब नहीं करना चाहिए था.. दरअसल मैं आपसे कुछ और कहना चाहता था.... मैं आपसे आई लव यू कहना चाहता था पर बोल नहीं पाया और आप मेरी चुप्पी का गलत मतलब समझ रहे थे... प्लीज मुझे माफ़ कर दो !!!

भाभी: अब मैं समझी की तुम मुझसे नजरें क्यों चुरा रहे थे.... पर तुम माफ़ी किस लिए मांग रहे हो.. जो कुछ भी हुआ उसमें मेरी रजामंदी भी शामिल थी... अगर कोई कसूरवार है तो वो मेरी हैं... मैं तुम्हें बता नहीं सकती की तुम ने जो आज मुझे शारीरिक सुख दिया है उसके लिए मैं कितने सालों से तड़प रही थी| तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया...

उनकी बात सुन के मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई...मुझे उनसे इस जवाब की उम्मीद कतई नहीं थी| मेरी आँखें आस्चर्य से फ़ट गई ...

मैं: सच भौजी ....

भाभी: तुम्हारी कसम मानु... मैंने तुम्हारे भैया को भी खुद को छूने का अधिकार नहीं दिया और न ही कभी दूँगी| तुम ही मेरे पति हो !!!

मैं: पर भौजी आप ऐसा क्यों कह रही हो? चन्दर भैया... नेहा .. ये ही आपका परिवार है| मुझ दुःख इस बात का था की मैं आपके पारिवारिक जिंदगी में दखलंदाजी कर रहा हूँ .... और न केवल दखलंदाजी बल्कि मैं आपकी पारिवारिक जिंदगी तबाह कर रहा हूँ| इसी बात पे मुझे शर्म आ रही थी... और मैं आपसे नज़र चुरा रहा था|

भाभी: मानु तुम अभी बहुत सी बातें नहीं जानते... अगर जानते तो मेरी बात समझ सकते|

मैं: तो बताओ मुझे?

भाभी: अभी नहीं ....

मैंने गोर किया की भाभी की आँखें नाम हो चलीं थी... इसलिए मैंने उन्हें अपने पास खींचा और उन्हें जोर से गले लगा लिया| जैसे मैं भाभी को अपने अंदर समां लेना चाहता था मेरी छाती स्पर्श पाते ही भाभी के अंदर उठा तूफान शांत हुआ|
हम दोनों शाहरुख़ खान की फिल्म के किसी सीने की तरह खड़े हुए थे | भाभी मेरी और देख रही थी.. और मैं उनकों सांत्वना देना चाहता था.. इसलिए मैंने भाभी के होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया परन्तु इस बार मन में वासना नहीं थी.. मैं उनका दुःख कम करना चाहता था|

दिमाग ने मन को संदेसा भेजा की अब यहाँ ज्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं! इसलिए मैंने भाभी से आखरी शब्द कहे:

मैं: भौजी अब हमें चलना चाहिए .. नहीं तो लोग शक करेंगे की ये दोनों इतनी देर से भूसे के कमरे में क्या कर रहे हैं?

भाभी ने बस हाँ में गर्दन हिला दी| मुझे कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था की भाभी मुझ से नाराज है इसलिए मैंने अपने मन की तसल्ली के लिए उनसे पूछा:

मैं: भौजी आप मुझसे नाराज तो नहीं ?

भाभी: नहीं तो .. तुम्हें ऐसा क्यों लगा?
भाभी ने पास ही पड़ी भूसे से भरी टोकरी उठाने झुकीं... परन्तु मैंने उनके हाथ से टोकरी छीन ली|

मैं: क्योंकि आप एक डैम से चुप हो गए...

मेरी इस बात का जवाब उन्होंने अपने ही अंदाज में दिया जिसने मेरे लंड में तनाव पैदा कर दिया| भाभी मेरी ओर बढ़ीं और मेरे गलों को अपने होंठों में भर लिया और उन्हें धीरे-धीरे दांत से काटने लगीं| मेरे शरीर में जैसे करंट दौड़ गया पर करता क्या.. सर पे टोकरी थी जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था| भाभी ने मेरी इस हालत का भरपूर फायदा उठाया और दो मिनट बाद जब उनका मन भर गया तब वो हटीं और उनके मादक रास को मेरे गलों से पोंछने लगीं|

मैं: भाभी बहुत सही फायदा उठाया आपने मेरी इस हालत का?

भाभी: ही.. ही.. ही...

मैं वो टोकरी उठा के बैलों के पास आया और उन्हें चारा डाल दिया| अब मन पहले से शांत था पर लंड में तनाव था जिसे छुपाना मुश्किल हो रहा था इसलिए मैंने सोचा की क्यों न स्नान कर लिया जाए|


गर्मियों के दिनों में, चांदनी रात में ठन्डे पानी से खुले आसमान के तले नहाने में क्या मजा आता है, ये मैं आपको नहीं बता सकता| इस स्नान ने मेरे अंदर की वासना की ज्वाला को बुझा दिया था परन्तु मन ही मन भाभी की बातें मुझे तड़पाने लगीं थी| आखिर उन्होंने मुझे अपने पति का दर्ज क्यों दिया? कोई भी स्त्री यूँ ही किसी को अपने पति का दर्जा नहीं देती! कहीं ये उनका मेरे प्रति आकर्षण तो नहीं? क्या बात है जो भाभी मुझसे छुपा रही हैं? मैं इन सभी बातों का जवाब भाभी से चाहता था...

खेर मैं स्नान करके कुरता पजामा पहन के तैयार हो गया .. और रसोई की और चल दिया| अब तक घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे केवल स्त्रियां ही रह गईं थी| जैसे ही भाभी ने मुझे देखा उन्होंने मुझे छापर में ही बैठने को कहा, उनकी बात भला मैं कैसे टाल सकता था| मैं छापर में बिछे तखत पे आलथी-पालथी मार के भोजन के लिए बैठ गया उस समय छप्पर में कोई नहीं था... बड़की अम्मा (बड़ी चाची), माँ और रसिका भाभी सब बहार हाथ-मुँह धो रहे थे| भाभी एक थाली में भोजन ले के आई:

भाभी: मानु तुम भोजन शुरू करो मैं अभी आती हूँ|

मैं: आप मेरे साथ ही भोजन करोगी?

भाभी: क्यों? मैं तुम्हारे हिस्से का भी खा जाती हूँ इसलिए पूछ रहे हो?

मैं: नहीं दरअसल अभी बड़की अम्मा (बड़ी चाची) और रसिका भाभी भी तो भोजन खाएंगे.. और उनके सामने आप मेरे साथ कैसे भोजन कर सकते हो?

भाभी: अरे वाह... बड़ी चिंता होने लगी तुम्हें मेरी? चिंता मत करो... फंसऊँगी तो मैं तुम्हे ही !!!

मैं: ठीक है भौजी आप आ जाओ फिर दोनों एक साथ शुरू करेंगे|

तभी माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी आ गए और अपनी-अपनी जगह भोजन के लिए बैठ गए| भाभी ने सब को भोजन परोसा और फिर मेरे पास आके तखत पे बैठ गईं और हम दोनों ने भोजन आरम्भ किया| ना जाने क्यों पर रसिका भाभी से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने हमें टोका:

रसिका भाभी: क्या बात है देवर-भाभी एक साथ, एक ही थाली में भोजन कर रहे हैं?

मैं: भाभी आपके आने से पहले जब मैं छोटा था तब भी हम एक साथ ही खाना खाते थे आप बड़की अम्मा से पूछ लो|

रसिका भाभी: तब तो तुम छोटे थे, अब शादी लायक हो गए हो| अब तो भाभी का पल्लू छोडो... ही ही ही ही

रसिका भाभी की जलन साफ़ दिख रही थी| मं कुछ बोलने वाला था की भाभी ने मुझे रोक दिया और खुद बीच-बचाव के लिए कूद पड़ीं|


भाभी: अभी मानु की उम्र ही क्या है, अभी ये पढ़ रहा है.. और जब तक ये अपने पाँव पे खड़ा नहीं होता ये शादी नहीं करेगा, है ना चाची?

माँ: बिलकुल सही कहा बहु| ये यहाँ के बच्चों की तरह थोड़े ही है जो मूँछ के बाल आये नहीं और शादी कर दी! और जहाँ तक इन दोनों के साथ खाना खाने की बात है तो बहु तुम इन दोनों को नहीं जानती, इसने तो अपनी भाभी का दूध भी पिया है| तुम्हें आये तो अभी कुछ समय हुआ है पर इनकी ओस्टि तो बहुत पुरानी है|

माँ की बात सुन रसिका भाभी का मुँह खुला का खुला रह गया| माँ ने जब दूध पीने की बात की तब मैंने अपना मुख शर्म के मारे दूसरी तरफ घुमा लिया था ताकि किसी को शक ना हो|

माँ की बात सुन बड़की अम्मा (बड़ी चाची) ने भी हाँ में हाँ मिलायी और अपनी थाली ले कर उठ खड़ी हुईं और साथ ही साथ रसिका भाभी भी खड़ी हो के थाली रखने चल दीं| मैं और भाभी चुप-चाप, धीरे-धीरे भोजन कर रहे थे.... जब माँ अपनी थाली लेके उठीं तब मैंने भाभी से कहा:

मैं: भौजी मुझे आप से कुछ बात करनी है?

भाभी: हाँ बोलो?

मैं: यहाँ नहीं... अकेले में...

भाभी: ठीक है तुम हाथ-मुँह धोके अपनी चारपाई पर लेटो मैं अभी थाली रख के आती हूँ|

मैं: नहीं भाभी ... उसमें थोड़ा खतरा है| चन्दर भैया कहाँ सोये हैं?

भाभी: वो आज चाचा (मेरे पिताजी) के साथ छत पे सोये हैं और तुम्हें भी वहीँ सोने को कहा है|

मैं: पर मैं वहां नहीं सोनेवाला .. आप ऐसा करो की हाथ-मुँह धो के अपने कमरे में जाओ| जब आपको लगे की सब सो गए हैं तब मुझे उठाना|
 








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