Sunday, August 31, 2014

FUN-MAZA-MASTI सौतेला बाप--31

FUN-MAZA-MASTI

 सौतेला बाप--31

अब आगे
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 दोनो एक दूसरे को ऐसे चूम चाट रहे थे जैसे आजकल के प्रेमी प्रेमिका हो..हालाँकि दोनो की उम्र मे काफ़ी अंतर था, पर विक्की को उसको चूमते हुए एक पल के लिए भी ऐसा नही लगा की वो किसी आंटी को चूम रहा है, इतना जोश और उत्तेजना तो आजकल की लड़कियों मे होती ही नही है...उसकी चुदाई करने मे सच मे उसको बहुत मज़ा आने वाला था.

रश्मि के हाथ सीधा उसके टावल पर जा पहुँचे और उसने एक ही झटके मे उसे उतार फेंका और अब विक्की उसकी नज़रों के सामने पूरा नंगा खड़ा था..अपने खड़े हुए लंड को लिए...जो उसकी उम्मीदों के अनुसार काफ़ी लंबा और मोटा था..

रश्मि एक दम से उसके सामने बैठ गयी और उसके भुट्टे जैसे लंड को पकड़ कर प्यासी नज़रों से देखने लगी...और जैसे ही वो अपना मुँह खोलकर उसको निगलने लगी, विक्की ने कुछ ऐसा बोल दिया की उसकी झाँटे सुलग उठी..

विक्की : "आंटी....काव्या कैसी है....मुझे याद करती है या नही..''

उसकी ये बात सुनकर रश्मि यथार्थ के धरातल पर आ गिरी...उसे तो याद भी नही रहा था की वो उसकी बेटी का बॉयफ्रेंड है...और उसको अपनी बेटी से दूर रहने की हिदायत देने के लिए ही वो उसके पास आई थी कल...पर कल और आज के बीच जो कुछ भी हुआ था, उसके बाद तो रश्मि के दिमाग़ से ये बात निकल ही चुकी थी की विक्की तो उसकी बेटी के पीछे पड़ा है....कब और कैसे वो खुद विक्की के जाल मे फँस कर उसके लंड की दीवानी हो गयी थी ये वो खुद भी नही जानती थी..

उसके हाथ मे विक्की का लंड था...पूरा खड़ा हुआ...और उसकी चूत बुरी तरह से गीली होकर बह रही थी...ऐसी हालत मे विक्की ने ये बात बोलकर उसको एहसास करवाया था की वो असल मे है कौन...और किसलिए वहाँ आई है...

पर अपनी चूत की हालत वो अच्छी तरह से जानती थी..उसके अंदर उठ रही खुजली के आगे उसको अपनी बेटी और उसका बॉयफ्रेंड नही बल्कि अपनी चूत की खुजली मिटाने वाला एक मोटा लंड ही दिखाई दे रहा था...उसने बिना कुछ कहे उसके लंड को एक ही झटके मे अपने मुँह के अंदर डाल लिया...और ज़ोर-2 से चूसने लगी..

विक्की को मज़ा तो बहुत आया, पर उससे भी ज़्यादा मज़ा वो रश्मि को लज्जित करके लेना चाहता था..वो फिर से बोला : "काव्या भी ऐसे ही चूसती है मेरा लंड .....''

उसकी ये बात तो रश्मि को दिल के अंदर तक चुभ गयी...


 पर उसको ये बात एक माँ की तरह नही बल्कि एक प्रेमिका की तरह चुबी....एक ही दिन मे वो तो विक्की पर खुद का कब्जा समझ बैठी थी...पर ऐसी हालत मे आकर भी विक्की उसके सामने उसकी बेटी का नाम ले रहा है, उसकी तारीफ कर रहा है, ये उसको बिल्कुल भी पसंद नही आया..वो जलन के मारे गुस्से मे भर गयी और एकदम से उठकर उसने अपने शरीर पर पहने पेटीकोत को उतार फेंका और विक्की के सामने पूरी नंगी होकर खड़ी हो गयी..


और पूरे गुस्से मे भरकर वो विक्की से बोली : "तू अपने आप को ज़्यादा चालू समझ रहा है...मैं अपनी जवानी खुद तेरे सामने लेकर खड़ी हू और तू काव्या को बीच मे ला रहा है...वो तो बच्ची है अभी...देख, इसे कहते हैं असली जवानी...ये देख, मेरी ब्रेस्ट, कभी देखी है तूने इतनी बड़ी छातियाँ,कभी चूसा है तूने ऐसे बूब्स को...और ये देख..मेरी चूत ....अभी भी दो उंगलियाँ एक साथ अंदर जाने मे दर्द होता है...तेरा लंड जब इसमे जाएगा तो सोच कितना मज़ा मिलेगा तुझे, और तू है की काव्या की बातें कर रहा है अभी तक...''

रश्मि तो शराब और ईर्ष्या के नशे मे आकर अपने आप को पूरी तरह से खोलकर खड़ी हो गयी थी विक्की के सामने, और अपने शरीर के हर अंग की तारीफ खुद ही करके वो अपनी बेटी के मुक़ाबले ज़्यादा अंक लेने की कोशिश कर रही थी विक्की से..

और वो ठीक भी था, वो जो कुछ भी कह रही थी,विक्की उसकी बात से पूरी तरह से सहमत भी था..काव्या तो उसके भरे शरीर के सामने आधी भी नही थी...उसके छोटे-2 नींबू और रश्मि के मोटे-2 रसीले खरबूजे, काव्या का पतला सा पेट और रश्मि का गूदे से भरा हुआ , काव्या की पतली सी कमर, और रश्मि की कमर पर जो कटाव था उसका तो कोई मुकाबला ही नही था, और तो और काव्या की चौड़ी गांद भी उसकी माँ की गुदाज गांद के सामने कुछ भी नही थी...

विक्की से भी रहा नही गया, उसने अपने हाथ आगे किए और रश्मि के मोटे-2 मुम्मे अपनी उंगलियों से दबाने लगा...वो सच ही कह रही थी, ऐसी छातियाँ तो उसने आज तक नही पकड़ी थी.



पर एक बात थी जो रश्मि को काव्या से अलग करती थी...वो थी काव्या की कुँवारी चूत ...

चूत एक ऐसी चीज़ होती है जो एक बार चुद जाए तो उसमे वो बात नही रहती जो कुँवारी मे होती है...दुनिया की कोई भी ताक़त उसको पहले जैसा नही कर सकती..

पर इस वक़्त तो रश्मि को अपना ही पलड़ा भारी लग रहा था...क्योंकि उसकी बात सुनकर विक्की का लंड बुरी तरह से फुफ्कार रहा था...कारण था उसका उफान मार रहा यौवन जो अब विक्की की भूखी नज़रों के सामने पूरा नंगा था.

पर फिर भी विक्की अपनी तरफ से कोई पहल नही कर रहा था, वरना ऐसी हालत मे देखकर कोई भी इंसान अपने आप पर सब्र नही रख सकता..वो समझ गयी की ये आजकल के जवान लड़के-लड़कियों पर जो सच्चे प्यार का भूत सवार होता है, वही इस वक़्त विक्की के सर पर भी सवार है...और शायद इसलिए वो अपनी प्रेमिका की माँ के साथ कुछ भी करने से कतरा रहा है..उसने ऐसी सीचुएशन को दूसरी तरह से निपटने की सोची..

रश्मि धीरे से आगे आई और विक्की के गले से लिपट गयी...और उसके हाथों को पकड़ कर उसने अपनी कमर पर रख दिया..

रश्मि : "मैं जानती हूँ की तुम मेरी बेटी से प्यार करते हो...और जो कुछ भी मैं कर रही हू वो सही नही है..पर मेरा यकीन मानो, ये जो कुछ भी हम कर रहे हैं, इसका काव्या या किसी और को कुछ भी पता नही चलेगा...''


 विक्की भी उसकी चालाकी भरी बात सुनकर दंग रह गया, वो सोच भी नही सकता था की ऐसी मासूम सी दिखने वाली औरत अपनी चुदाई के लिए इतनी गिर सकती है की अपनी ही बेटी के प्रेमी से चुदने के लिए तैयार हो गयी और उपर से वो बात छुपाने के लिए भी कह रही है...भले ही वो उसकी बेटी का असली प्रेमी नही है, पर अगर होता भी तो ऐसे लुभावने ऑफर से कोई भी बच कर नही निकल सकता था..

पर विक्की का शातिर दिमाग़ भी अपनी चाल चल रहा था.

विक्की : "मैं समझता हू आंटी...पर आप भी समझने की कोशिश करिए...मैने काव्या को वचन दिया है...वही मेरी जिंदगी की पहली लड़की होगी , जिसके साथ मैं फकिंग करूँगा...आप फकिंग के अलावा मेरे साथ कुछ भी कर सकती है, मुझे कोई प्राब्लम नही है...पर इस काम के लिए आपको तब तक वेट करना होगा , जब तक मैं उसकी सील नही तोड़ देता..और अपनी वर्जीनीटी भी मैं उसके साथ नही गँवा देता...''

उसकी सपाट सी बात सुनकर रश्मि दंग रह गयी, वो कितनी आसानी से उसकी ही बेटी को चोदने की बात कर रहा था उसके सामने...और वो किसी भी तरह का गुस्सा भी नही कर सकती थी...अभी तक की बातों से वो इतना तो जान ही गयी थी की दोनो के बीच शारीरिक संबंध ज़रूर है, पर उन्होने चुदाई अभी तक नही की है...ये सोचकर ही रश्मि को काफ़ी सकून सा मिला..

पर उसी पल मे रश्मि अपनी बेटी के ना चुदने से मायूस भी हो गयी, काश वो अब तक चुद चुकी होती विक्की से, तो आज वो भी विक्की के लंड को अपनी चूत मे पिलवा रही होती..

एक ही पल मे उसके मन मे हज़ारों तरह के विचार आ रहे थे..जिन्हे पड़ने की कोशिश विक्की कर रहा था, पर उसकी समझ मे कुछ भी नही आ रहा था..

रश्मि तो अपना पूरा मूड बना चुकी थी विक्की के लंड को अंदर लेने का, वो बोली : "तो...तुम दोनो....कब ...वो सब करने वाले हो.....''

यानी वो विक्की से पूछना चाह रही थी की कब वो उसकी बेटी की चुदाई करेगा, ताकि बाद मे वो उसकी भी मार सके...

विक्की : "अभी तक तो मैने उसको सही से प्रोपोस भी नही किया....इसलिए तो उससे मिलने के लिए मैने उसको लवर पॉइंट पर बुलाया है संडे को...''

ये बात उसने उसी बात को सुनकर कही थी जो रश्मि ने आते ही उससे पूछी थी, वरना उसको क्या पता था की काव्या ने ऐसा झूठ क्यो बोला है, उससे मिलने का, लवर पॉइंट पर,संडे को..

रश्मि : "लेकिन वहाँ तो कुछ भी नही हो पाएगा तुम दोनो के बीच...''

फिर कुछ देर सोचने के बाद वो बोली : "तुम एक काम करो, सैटरडे को मेरे घर आ जाओ, मेरे पति तो ऑफीस जाते हैं, पर काव्या की छुट्टी होती है, तुम उससे वहीं मिल लेना...उसके बेडरूम मे...''

इतना कहकर वो नज़रें झुका कर बैठ गयी....शायद आगे की बात बोलने की हिम्मत नही थी उसमे...वो खुद अपनी बेटी की चुदाई का इंतज़ाम जो कर रही थी..

विक्की : "अरे वाव आंटी....ये तो बहुत बढ़िया तरीका है...ठीक है...मैं आ जाऊंगा ..''

पर अभी के लिए तो रश्मि कुछ ना कुछ करना ही चाहती थी...भागते भूत की लंगोटी ही सही...ये सोचकर वो फिर से विक्की से लिपट गयी और उसको ज़ोर-2 से चूमने लगी...जैसे उसकी ज़िदगी की सबसे बड़ी प्रॉब्लम दूर कर दी हो उसने.

विक्की ने बोलना चाहा : "पर आंटी...मैने बोला ना....ये सब...''

रश्मि ने बीच मे ही उसकी बात काट दी : "वो सब नही..पर कुछ और तो कर ही सकते है ना...''

रश्मि उसके सामने बैठ गयी और बोली : "प्लीज , मुझे ये सक करने दो ''



विक्की की समझ से परे थी ये औरत...वो अपनी चुदाई के लिए हर हद पार कर देना चाहती थी..

पर अभी के मज़े लेने मे उसको भी कोई प्राब्लम नही थी..वो अपने मोटे-2 मुम्मों को अपने ही हाथों से पिचकाती हुई उसके लंड को चूस रही थी...


अपनी थूक से उसने विक्की के लंड को पूरी तरह से नहला दिया..फिर उसे अपने मुम्मो के बीच लेकर उसको टिट मसाज देने लगी...विक्की ने उपर उठकर उसके होंठों को चूम लिया...और फिर उसके सेक्सी से चेहरे को देखते हुए उसने खुद ही अपने लंड को मसलना शुरू कर दिया...वो उसकी टाँगो के बीच बैठी थी...प्यासी सी...सेक्स मे नहाई हुई सी...







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FUN-MAZA-MASTI सौतेला बाप--30

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 सौतेला बाप--30

अब आगे
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 देवी लाल को ऐसा मज़ा आज से पहले कभी नही आया था..उसने बोतल अपने हाथ मे ली और कुछ और बूंदे टपका दी..उन्हे भी वो भूखी बिल्ली चट कर गयी...अब वो देवी लाल को ऐसे देख रही थी जैसे कुत्ता देखता है अपने मालिक को की कब वो रोटी का टुकड़ा उसके पास फेंके जिसे वो खा जाए..ऐसी ही चमक दिख रही थी रश्मि की प्यासी आँखों मे..

देवी लाल ने बोतल अपने मुँह से लगा ली...और एक तगड़ा सा घूंठ भरकर शराब को अपने मुँह मे इकट्ठा कर लिया..और फिर उसने रश्मि को इशारे से उठने के लिए कहा..वो समझ गयी की वो क्या चाहता है...वो वफ़ादार कुतिया की तरह उपर उठी और उसके चेहरे के बिल्कुल पास आ गयी..और अगले ही पल खुद ही अपने रसीले होंठों को उसके होंठों से लगाकर उसके मुँह मे इकट्ठी शराब को अपने अंदर ले लिया और एक ही घूंठ मे पी गयी..

रश्मि को ऐसा लगा की उसने अमृत पी लिया है...उसका शरीर हवा मे उड़ता हुआ महसूस हुआ उसको..नशे का एक झटका सा लगा उसके शरीर को...उसकी आँखे बोझिल सी होने लगी और वो लड़खड़ा सी गयी..

देवी लाल ने उसको अपनी बाहों मे लेकर संभाल लिया...दूसरे हाथ मे पकड़ी बोतल से उसने फिर से एक और घूंठ भरा..रश्मि फिर से चुंबक की तरह उसके चेहरे की तरफ खींचती चली गयी..पर इस बार देवी लाल ने कुछ और ही सोचा हुआ था..उसने रश्मि के ब्लाउस के हुक खोलने शुरू कर दिए..

रश्मि भी उन कपड़ों की घुटन से बाहर निकलना चाहती थी..आज़ाद परिंदे की तरह नंगी होकर नशे के बादलों मे उड़ना चाहती थी..उसने झट से अपने सारे हुक खोलकर अपना ब्लाउस निकाल फेंका और फिर अपनी ब्रा भी...

उसके कठोर मुम्मे देखकर एक पल के लिए तो देवी लाल का नशा भी काफूर सा हो गया..उसके होंठों के किनारों से शराब बहकर बाहर गिरने लगी..पर जो उसने सोचा था, वो करना भी ज़रूरी था..

वो अपने शराब से भरे होंठों के गुब्बारे उसके स्तनों पर लेकर गया और अपना मुँह ठीक उसके निप्पल्स के उपर खोलकर उसके मुम्मे को निगल गया..मुँह खुलते ही उसके अंदर भरी शराब रश्मि के सफेद पर्वत पर फैल गयी और उसकी जलन को महसूस करते ही रश्मि तड़प सी उठी..

देवी लाल ने अपना गीला मुँह दूसरे मुम्मे पर भी फेराया और वहाँ भी शराब को पूरी तरह से लगाकर उसके दोनो मुम्मों को पूरी तरह से शराबी कबाब बना दिया..

फिर आराम से वो एक-2 करते हुए उन्हे चाटने लगा..उसकी जीभ की हर चटाई से वो ज़ोर से सिसक उठती..उसके चेहरे को ज़ोर से अपने मुम्मे पर दबा देती...और ज़ोर -2 से चिल्लाती ...


''अहह......... ओह .....कितना मज़ा आ रहा है...............चाट ले इसको......चूस ले.....खा जा इन्हे.......नोच ले मेरे मुममे......आहह''

देवी लाल की हर बाईट से वो खूंखार सी होती चली जा रही थी...और साथ ही साथ शराब का नशा भी उसपर असर करने लगा था..एक अजीब सी खुमारी छा रही थी...उसका सिर हवा मे घूम रहा था..अब वो जल्द से जल्द उसके लंबे लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती थी...

वो बिस्तर पर चादर की तरह बिछ गयी...अपनी साड़ी और ब्लाउस को घुटने से उपर उठा कर एक ही बार मे उसने अपनी चिकनी चूत देवी लाल के सामने परोस दी..और उसे अपनी टाँगों से पकड़कर अंदर की तरफ खींचने लगी..

देवी लाल भी पूरी तरह से मूड मे आ चुका था...आज तो उसने ऐसी चुदाई करनी थी की अपनी पिछले सालों की सारी कसर निकाल सके..

उसने शराब की बोतल उठाई और बची हुई शराब को अपने मुँह मे भरकर नीचे झुका और रश्मि उसपर ऐसे झपटी जैसे उसने कोई बोटी दिखा दी हो अपने पालतू जानवर को..और एक ही झटके मे उसके होंठ रश्मि के कब्ज़े मे थे..और देवी लाल का लंड उसकी चूत मे.


''उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म। ............... स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ,,,,,,,,,,,,अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह''

रश्मि नशे मे थी, इसलिए वो महसूस नही कर पाई की इतना मोटा लंड उसकी चूत मे कैसे गया..अगर होश में होती तो पूरे मोहल्ले को अपने सिर पर उठा लेती..

एक लंबी स्मूच करने के बाद देवी लाल उपर उठा और उसके दोनो मुम्मों को पकड़कर अपनी पकड़ बनाई और अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा..जिसपर रश्मि की चूत का रस लग जाने की वजह से वो चमक रहा था

और जैसे ही धक्का देकर फिर से अंदर जाने लगा..बाहर का दरवाजा खड़का..और आवाज़ आई..

''बापू.......ओ......बापू...... आज फिर से पीकर सो गया है क्या..''

विक्की बाहर खड़ा होकर ज़ोर-2 से दरवाजा पीट रहा था.

देवी लाल ने घबराकर रश्मि की तरफ देखा..वो नशे की हालत मे जाकर बेहोश हो चुकी थी..

ये देखकर देवी लाल की फट कर हाथ मे आ गयी..उसकी समझ मे नही आ रहा था की क्या करे और क्या नही.


 बाहर खड़ा विक्की लगातार दरवाजा पीट रहा था..देवी लाल की हालत खराब थी, उसका सारा नशा उतर चुका था, उसकी अपने बेटे से काफ़ी फटती थी, क्योंकि वही उसके लिए पैसों का इंतज़ाम करता था,खाने पीने का,दारू का..

अचानक देवी लाल को पिछले दरवाजे की याद आई,जो पीछे वाली तंग गली मे खुलता था..उसने जल्दी -2 रश्मि के सारे कपड़े ठीक किए और अपनी सारी शक्ति समेत कर किसी तरह से रश्मि को उठाया और पिछले दरवाजे से लेजाकर एक खड़ी हुई रेहड़ी के उपर लिटा दिया

फिर दरवाजा बंद करके वापिस अंदर आया और भागकर बाहर का दरवाजा खोला.

विक्की दनदनाता हुआ सा अंदर आ घुसा : "इतनी देर से बाहर खड़ा हू,क्या कर रहे थे आप,कितनी बार बोला है की दिन के समय ना तो पिया करो और ना ही सोया करो...''

फिर वो पैर पटकता हुआ अंदर आ गया, वो पूरी तरहासे भीग गया था..

देवी लाल ने बाहर निकल कर देखा तो काफ़ी तेज बारिश शुरू हो गयी थी..उसने तो ये देखा भी नही और रश्मि को उठा कर बाहर छोड़ आया था वो..पता नही क्या हाल हो रहा होगा उसका..

अगर वो होश मे आ गयी तो वापिस अंदर आ जाएगी..और फिर उसका क्या हश्र होगा ये तो वही जानता था..

उसने जल्दी से बहाना बनाया की अपने दोस्त के घर कुछ काम है और वो बाहर निकल आया..और अपने एक दोस्त के घर की तरफ निकल गया,जो वहाँ से काफ़ी दूर था.

दूसरी तरफ, अपने चेहरे पर गिरते पानी से एकदम से रश्मि को होश आ गया, उसने आस पास देखा और सोचने लगी की वो वहाँ कैसे आ गयी..उसके दिमाग़ मे एक पल मे ही सारा वाक़या गुजर गया, पर शराब पीने से वो कब लुड़क गयी ये उसको याद नही था..वो पूरी भीग चुकी थी...और सोचने लगी की वो वहाँ कैसे आई..

उसने गली से बाहर निकल कर देखा तो उसकी समझ मे आया की वो कहाँ है...आख़िर वो भी तो उसी मोहल्ले मे रही थी..

वो मुड़ कर वापिस विक्की के घर तक पहुँची,नशे की वजह से वो अभी भी लड़खड़ा रही थी पर आज वो किसी भी हालत मे विक्की से मिलना चाहती थी, चाहे उसके लिए उसके बाप से ही क्यो ना चूदना पड़े

उसने फिर से दरवाजा खड़काया...विक्की बाथरूम मे था और अपने गीले कपड़े उतार कर नहा रहा था..

वो झल्लाता हुआ सा टावल लपेट कर बाहर निकला और दरवाजा खोल दिया, उसने तो सोचा था की उसका बाप वापिस आ गया होगा..पर बाहर रश्मि को भीगा हुआ खड़ा देखकर उसकी आँखे आश्चर्य से फैल गयी..

रश्मि को भी समझ नही आया की इतनी जल्दी विक्की कैसे वापिस आ गया..और फिर उसकी समझ मे आया की वो क्यो पिछली गली मे पहुचा दी गयी थी..उसकी नज़रें देवी लाल को ढूढ़ने लगी..

विक्की : "अरे आंटी आप....इस समय...और वो भी मेरे घर...''

रश्मि (इधर उधर देखते हुए ) : "वो तुम्हारे पापा नही है क्या ..."

विक्की : "जी ...वो तो अभी शायद अपने दोस्त के घर गये हैं...दो घंटे मे ही आएँगे वहाँ से.....''

उसकी बात सुनकर जैसे उसने राहत की साँस ली और जल्दी से अंदर आ गयी..

विक्की हैरान सा खड़ा होकर उसे अंदर आते हुए देखता रहा...फिर उसने जल्दी से दरवाजा बंद कर लिया..टावल मे उसके लंड ने खड़े होकर बवाल मचाना शुरु कर दिया था ..रश्मि के मोटे-2 मुम्मे पानी मे भीगकर पानी भरे गुब्बारों की तरहा थिरक रहे थे..उसके दिमाग़ मे तो कल की बातें ही घूम रही थी..वो समझ गया था की वो वहाँ किसलिए आई है...उसके लंड से चुदने के लिए..पर वो भी पूरा कमीना था, वो जानता था की ये मछली तो उसके जाल मे पूरी फँस ही चुकी है, उसका असली निशाना तो उसके बेटी काव्या थी, जिसने उसकी कई बार बेइजत्ती की थी..वो चाहता तो रश्मि को अभी के अभी चोद कर मज़े ले सकता था, पर वो उसको अच्छी तरह तड़पाना चाहता था, ताकि वो खुद उसकी मदद करे काव्या को चोदने मे..पर वो बिदक ना जाए इसके लिए उसको ललचाना भी ज़रूरी था..और सही मौके पर ही उसे अपनी योजना को अंजाम देना था.

विक्की : "अरे आंटी, आप तो पूरी भीग गयी हैं....आप अंदर जाओ उस कमरे मे, वहाँ मेरी मों के कपड़े पड़े हैं कुछ, वो पहन लो..''

एक तो शराब का नशा, उपर से आधी चुदकर उसकी बुर भी जल रही थी...वो किसी भी तरह से आज विक्की का लंड लेना चाहती थी..वैसे भी चुदाई के लिए उसको कपड़े उतारने ही थे, वो अंदर गयी और अलमारी खोलकर देखने लगी..काफ़ी पुराने कपड़े थे वो, और छोटे भी थे..शायद उसकी माँ थोड़ी दुबली पतली सी थी..उसने एक पेटीकोट उठाया और अपने पूरे कपड़े उतारकर सिर्फ़ वही पहन लिया, उसने अपने मोटे-2 मुम्मे उस पेटीकोट के नीचे छुपा लिए ,नीचे से वो पेटीकोट उसकी जाँघो तक ही आ रहा था..और उसमे वो काफ़ी सेक्सी लग रही थी..वो जानती थी की उसको ऐसी हालत मे देखकर विक्की सब समझ जाएगा और उसपर टूट पड़ेगा..


एक भले घर की औरत एक रंडी जैसा बिहेव कर रही थी..पर इस वक़्त उसके दिमाग़ मे ये सब बाते नही आ रही थी, उसे तो बस चिंता थी अपनी दोनो टाँगो के बीच हो रही खुजली की.

वो धीरे-2 चलती हुई बाहर आई..विक्की वहीं खड़ा था अपने टॉवल मे..एक पल के लिए तो उसका भी ईमान डोल गया रश्मि को ऐसी हालत मे देखकर..उसके बदन से टपक रही पानी की बूंदे देखकर उसके मुँह मे भी पानी आ गया..वो जानता था की रश्मि उसको ललचा रही है..पर आज उसकी परीक्षा की घड़ी थी..उसे किसी भी तरह से अपने आप पर कंट्रोल रखना था..

रश्मि : "वो सब कपड़े तो छोटे लग रहे थे...इसलिए यही पहन लिया बस...''

विक्की : "अच्छी ...लग रही हो आप इसमे भी...''

उसकी नज़रें रश्मि के मुम्मों के उपर लगे किशमिश के दानों पर टिकी थी, जो गीले कपड़े से झाँककर चमक रहे थे.


 फिर रश्मि बोली : "मैं तो तुम्हारा थेंक्स करने के लिए आई थी....कल तो सही से बोल भी सकी,तुमने जिस तरह से कल मेरी इज़्ज़त बचाई.....मैं तुम्हारी काफ़ी एहसानमंद हू....थेंक्स ..''

विक्की कुछ नही बोला, वो सुनता रहा..

कुछ देर बाद रश्मि बोली : "तुमने तो बोला था की मुझे फोन करोगे...पर तुम्हारा फोन आया ही नही, इसलिए मैं खुद आ गयी..''

वो बचकानी सी बातें कर रही थी, जिसका विक्की पूरी तरह से स्वाद ले रहा था..वो मुस्कुरा रहा था.

विक्की : "मैं घर आकर आप ही को फोन करने वाला था...अच्छा हुआ आप आ ही गयी यहाँ..लेकिन थेंक्स बोलने का आपका तरीका कल तो कुछ और था..आज इतनी दूर से खड़े होकर क्यो थेंक्स बोल रही है..''

उसकी बात सुनते ही रश्मि के पूरे शरीर मे झुरजुरी फैल गयी...वो समझ गयी की विक्की क्या कहना चाहता है..और वैसे भी, वो खुद भी तो यही चाहती थी..

वो धड़कते दिल के साथ आगे आई और विक्की के बिल्कुल करीब पहुँचकर उसने उसकी तरफ देखा..और फिर एकदम से उसपर झपटकर उसके चेहरे को अपने हाथों मे दबोच कर उसके होंठों को किसी पिशाचिनी की तरह चूसने लगी..उसकी फुटबॉल जैसी छातियाँ विक्की के चौड़े सीने से पीसकर पिचक कर रह गयी..विक्की ने भी अपने दाँतों और होंठों को काम पर लगा दिया और रश्मि के योवन से भरे होंठों का शहद इकट्ठा करने लगा.

उसके मुँह से आ रही शराब की महक सूँघकर विक्की समझ गया की वो पीकर आई है...पर ये सोचकर वो कुछ नही बोला की शायद ये उसका रोज का काम होगा...उँचे लोगो की उँची बातें....





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FUN-MAZA-MASTI सौतेला बाप--29

FUN-MAZA-MASTI

 सौतेला बाप--29

अब आगे
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 हर झटके मे समीर अपनी मंज़िल के करीब पहुँच रहा था..और फिर जब वो समय निकट आया जब वो समझ गया की अब और नही रोक पाएगा तो उसने रश्मि की टाँग छोड़ दी और उसके दोनो हाथों पर हाथ रखकर ज़ोर-2 से झटके मारने लगा..


और उसके हिलते स्तनों और लरजते होंठों को देखते हुए उसने अपना लंड एकदम से बाहर निकाला और उसके चेहरे से लेकर उसकी नाभि तक हिस्से को बर्फीली चादर से ढक दिया

''आआआआआआआअहह ............. रश्मि .........मैं तो गया.......''

और वो उसके उपर गिरकर ज़ोर-2 से हाफने लगा.

दोनो के मन मे सिर्फ़ एक ही बात चल रही थी की आज किसी और के बारे मे सोचकर चुदाई करने मे कितना मज़ा मिला है.

जब उसके साथ असली की चुदाई होगी तो कैसा लगेगा.

दोनो अलग हुए और एक-2 करके दोनो बाथरूम मे गये और अपने अंगों को सॉफ किया..

फिर रश्मि नंगी ही आकर समीर के बदन से लिपटकर लेट गयी.

रश्मि : "कैसी रही शॉपिंग...क्या -2 लिया आज काव्या के लिए ..''

काव्या का नाम सुनते ही समीर के लंड ने एक हरकत सी की, जिसे रश्मि ने भी महसूस किया..पर वो कुछ समझ नही पाई, उसे लगा की शायद ऐसे नंगे लेटने की वजह से समीर फिर से उत्तेजित हो रहा है.

समीर : "सही थी...काफ़ी कुछ लिया काव्या ने आज....बाकी कल देख लेना की क्या-2 उसने , बहुत खुश भी थी आज ''

रश्मि : "हाँ , वो तो मैने भी देखा, और मुझे खुशी हुई की वो आपसे घुल मिल रही है..''

दोनों कुछ देर चुप रहे

समीर : "और तुम तो बताओ...तुम मिली थी क्या उस लड़के से आज...विक्की से...''

और इस बार विक्की का नाम सुनते ही रश्मि का शरीर झनझना उठा...और उसकी सूख चुकी चूत मे फिर से गीलापन आने लगा..

रश्मि : "हाँ ...मिली तो थी...पर कुछ ढंग से बात नही हो पाई...वो कही गया हुआ था, और उसके बाद उसने दोस्तों के साथ कहीं जाना था, सिर्फ़ एक मिनट के लिए ही बात हो पाई...कल मिलना है दोबारा..कल उसके कॉलेज की छुट्टी है..''

समीर : "ह्म्*म्म्म....देखो, जो भी करना , सोच समझ कर करना, कोई प्राब्लम हो तो मुझे बता देना, मैं उसको सीधा कर दूँगा..''

रश्मि : "पता है जी...पर आप फ़िक्र ना करो...मैं संभाल लूँगी उसको...''

रश्मि ने बड़ी सफाई से झूट बोलकर आज का सारा किस्सा छुपा लिया, वैसे भी ऐसी बात अपने पति को बताई नही जाती..और साथ ही साथ उसने अगले दिन भी विक्की से मिलने का रास्ता सॉफ कर लिया..और कल उसको विक्की से कहा मिलना है और क्या-2 करना है, ये सोच सोचकर उसको सारी रात नींद ही नही आई..

उसको तो बस इंतजार था कल का, की कब सुबह हो और समीर ऑफीस जाए..काव्या कॉलेज जाए..और वो विक्की से मिलने..

और ये बात विक्की भी नही जानता था की उसका जादू इस कदर रश्मि को फिर से उसके पास ले आएगा, वो भी अगले ही दिन.
समीर और काव्या के जाते ही रश्मि पार्लर मे पहुँची और अपने शरीर के सारे अन्दरूनी बाल निकलवा दिए...वो ऐसे सज संवर रही थी मानो उसकी सुहागरात होने वाली हो..उसके मन मे आज वही रोमांच था जो उसकी पहली शादी के समय था..घर आते-आते 12 बज गये..उसने लंच किया और फिर झटपट तैयार होकर बाहर निकल गयी...भले ही वो जल्दबाज़ी मे तैयार हुई थी पर वो आज काफ़ी सेक्सी लग रही थी...वजह थी उसकी साड़ी का डिज़ाइन..शिफोन के कपड़े की हल्के गुलाबी रंग की साड़ी जो उसने नाभि से काफ़ी नीचे करके बाँधी थी और ब्लाउस का गला भी काफ़ी गहरा था..जिसमे उसके किलो-2 के मुम्मे संभाले नही संभल रहे थे.


उसने ड्राइवर को ले जाना सही नही समझा और मेन रोड से ऑटो करके अपने पुराने मोहल्ले की तरफ चल दी..अभी सिर्फ़ 4 ही बजे थे..आधा घंटा लगना था उसको वहाँ पहुँचने मे और विक्की का कॉलेज से आने का समय 5 बजे का था..

वो बाहर ही उतर गयी और धीरे-2 चलती हुई विक्की के घर के बाहर पहुँच गयी..वो उसी की गली का आख़िरी मकान था, उसके घर वो पहले कभी भी नही आई थी..पहली वजह थी विक्की का आवारापन और दूसरी था की उस घर मे कोई औरत नही थी...सिर्फ़ विक्की और उसका बाप ही रहते थे..उसका बाप भी हर वक़्त शराब के नशे मे डूबा रहता था..

रश्मि ने दरवाजा खड़काया..एक दो बार खड़काने के बाद दरवाजा खुल गया..विक्की का बाप पायज़ामे और बनियान मे बाहर निकला..उसकी बोझिल आँखे बता रही थी की वो या तो सोकर उठा है या फिर शराब पीकर..

उसके बाप का नाम था देवी लाल उमर करीब 48 के आसपास थी...बिल्कुल मरियल सा ...जैसे उसके अंदर की हवा निकाल दी गयी हो..और चेहरे पर हल्की सफेद दाढ़ी भी थी.

रश्मि : "जी ...नमस्ते ...वो विक्की से मिलना था..''

देवी लाल ने उसको उपर से नीचे तक ऐसे देखा जैसे उसको चोद ही देगा अपनी आँखो से...फिर वो बोला : "वो नही है.....''

इतना कहकर उसने बड़ी ही बेरूख़ी से दरवाजा बंद कर दिया..

बेचारी रश्मि को बड़ी बेइजत्ती महसूस हुई...वो आ तो गयी थी पर अब उसके अंदर जो विक्की से मिलने की ललक थी वो बड़ चुकी थी,इसलिए वापिस जाने का तो सवाल ही नही था..बाहर खड़ी रहकर वो उसका वेट नही करना चाहती थी,क्योंकि कोई भी उसको पहचान सकता था,आख़िर बरसों रही थी वो उस गली मे..

उसने निश्चय कर लिया की वो अंदर बैठकर विक्की का इंतजार करेगी..पर ये निर्णय कितना ख़तरनाक हो सकता था वो नही जानती थी..

उसने दरवाजा फिर से खड़काया.

देवी लाल फिर से बाहर निकला, वो अब थोड़ा गुस्से मे लग रहा था..वो कुछ बोलता, इससे पहले ही रश्मि ने बड़ा मासूम सा चेहरा बनाया और सेक्सी से अंदाज मे बोली : "जब तक विक्की नही आता, क्या मैं अंदर बैठकर उसका इंतजार कर सकती हू...''

देवी लाल ने कुछ देर सोचा फिर बोला : "आ जाओ अंदर...''

और वो पलटकर अंदर की तरफ चल दिया..

रश्मि धड़कते दिल से अंदर आ गयी..

देवी लाल : "दरवाजा बंद कर दो...''

उसकी रोबिली आवाज़ सुनकर एक पल के लिए तो वो सहम सी गयी...उसने दरवाजा बंद कर दिया और उसके पीछे-2 अंदर आ गयी.

अंदर काफ़ी घुटन सी थी...देवी लाल सीधा चलता हुआ अपने छोटे से कमरे मे पहुँचा, जहाँ एक बड़ा सा बिस्तर अस्त-व्यस्त था और पास ही एक टेबल था, जिसपर शराब की बोतल और ग्लास रखा हुआ था..

उसने ग्लास मे बची हुई शराब का एक घूँट लिया ..रश्मि का अंदाज़ा सही निकला, वो शराब ही पी रहा था..

रश्मि ने हकलाते हुए पूछा : "जी वो ....विक्की कब तक आएगा...''

देवी लाल : "इतनी क्यो मचल रही है विक्की से मिलने के लिए....चुदाई करवानी है क्या उससे...''

उसके मुँह से एकदम से ऐसी बेबाकी भारी बात सुनकर एक पल के लिए तो रश्मि सहम सी गयी...और अगले ही पल गुस्से से तमतमा उठी..पर वो कुछ बोलने ही वाली थी की देवी लाल अपनी जगह से उठा और उसकी तरफ मुँह करके खड़ा हो गया...और अगले ही पल वो हुआ जिसकी उसने आशा भी नही की थी..

देवी लाल ने अपनी लूँगी खोल दी, उसने अंदर कुछ भी नही पहना हुआ था..उसकी मरियल से टाँगो के बीच लटका लंड देखकर रश्मि की आँखे फैल सी गयी..

वो इसलिए की एक तो उसने आशा भी नही की थी की विक्की का बाप इतनी बेशर्मी से एकदम से अपने कपड़े उतार कर उसे अपना लंड दिखाएगा...और लंड क्या वो तो एक घिया था..इतना मोटा और लंबा लंड तो उसने आज तक नही देखा था..और अभी तो वो बैठा हुआ था, जब खड़ा होगा तो कैसा लगेगा..उसका शरीर काँपने लगा..

देवी लाल : "तेरी चूत मे जो आग लगी है वो मैं भी बुझा सकता हू...विक्की का इंतजार करने से क्या होगा..चल इधर आ..मैं तुझे बताता हू की असली चुदाई किसे कहते हैं...''

पता नही क्या सम्मोहन था उसकी बातों मे...या ये कह लो उसके लंड मे की रश्मि अपनी पलकें झपकना भी भूल गयी...और मंत्रमुग्ध सी चलती हुई उसके पास तक पहुँची..

देवी लाल ने भी शायद नही सोचा था की इतनी आसानी से ये अंजान औरत उसके लंड को देखते ही उसके जाल में फँस जाएगी..

रश्मि चलती हुई आगे आ रही थी..उसके हाथ से उसका पर्स फिसलकर नीचे गिर गया...उसकी साड़ी का सिल्की पल्लू भी खिसककर नीचे आ गया...और वो अपनी बड़ी-2 छातियाँ आगे की तरफ निकाले देवी लाल के सामने पहुँच गयी..

उसके मुँह से एक तेज दुर्गंध आ रही थी शराब की...वैसे एक विशेष बात थी रश्मि के साथ..उसे शराब की महक बहुत पसंद थी...वैसे तो उसने आज तक शराब पी नही थी..और ना ही उसका पहला पति पीता था..पर समीर के मुँह से आती महंगी शराब की गंध उसको पागल सा कर देती थी..वो उसके होंठों को उस दिन ऐसे चूसती थी जैसे उसपर कोई शहद लगा हो...उसकी साँसों को अपने चेहरे पर महसूस करके वो खुद नशीली हो जाती थी..

और आज वही सब वो देवी लाल के सामने भी फील कर रही थी...भले ही उसकी शराब काफ़ी सस्ती थी और ज़्यादा दुर्गंध वाली थी पर उसका असर उसके उपर उतना ही हो रहा था जितना समीर की शराब का होता था..बल्कि आज ऐसी परिस्थिति मे तो वो नशा और भी ज़्यादा चढ़ रहा था उसके उपर....

देवी लाल ने उसका हाथ पकड़ा और सीधा अपने उठ रहे लंड के उपर रख दिया..रश्मि के शरीर के सारे तार झनझना उठे..देवी लाल की आँखों मे एक अजीब सी कशिश थी..उसके सूखे हुए होंठो से निकल रही शराब की दुर्गंध उसको पागल सा कर रही थी..शायद ये बात देवी लाल नही जानता था की उसको शराब की गंध पसंद है, वो सोच रहा था की इतनी सभ्य सी दिखने वाली औरत को शायद उसके मुँह से आ रही दुर्गंध पसंद नही आ रही हो और ऐसा ना हो की वो सूँघकर वो बिफर जाए और भाग जाए..और वो ऐसा हरगिज़ नही चाहता था, क्योंकि आज काफ़ी सालो के बाद उसके सामने इतनी सेक्सी औरत आई थी जिसकी वो चुदाई करने के बारे मे सोचने लगा था.

इसलिए देवी लाल अपना मुँह इधर उधर करते हुए अपनी साँस को उसके सामने निकालने से कतरा रहा था..और यही बात रश्मि को उत्तेजित कर रही थी..वो उसके मुँह से निकल रही गंध की दीवानी हो चुकी थी..वो ये भी भूल चुकी थी की वो वहाँ किसलिए आई है,और किसके लिए आई है..

वो उत्तेजित तो पहले से ही थी, देवी लाल ने तो बस अपना लंबा लंड दिखाकर उसकी अंदर की आग को और ज़्यादा भड़का दिया था और शराब ने तो उस उत्तेजना की आग पर घी का काम किया और वो अब बिफरने सी लगी थी..और इससे पहले की देवी लाल कुछ समझ पाता , उसने उसके मरियल से शरीर को अपनी बाहों मे भरा और उसके शराब से भीगे होंठों पर टूट पड़ी..और उन्हे ज़ोर-2 से चूसने लगी.

वो बेचारा देवी लाल ये सोचने की कोशिश कर रहा था की आख़िर उसके अंदर ऐसा क्या देख लिया इसने जो इस तरह से उसपर टूट पड़ी है..उसने तो ये सोचकर की उसके बेटे से मिलने आई ये औरत केरेक्टर की ढीली होगी, इसलिए ट्राइ करने की सोची थी और बेशरम होकर अपनी लूँगी भी खोल दी थी..

पर जब सामने वाली ही इतनी उत्तेजना से भरकर उसका साथ दे रही है तो वो क्यो पीछे हटे, उसने भी अपनी मरियल उंगलियों से उसके मोटे-2 स्तन दबाने शुरू कर दिए..

और अब तक उसका लंड पूरे आकार मे आ चुका था..जिसे रश्मि ने जैसे ही चुभता हुआ महसूस किया , वो उसे देखने लगी और वो नज़ारा देखकर उसका रही सही समझ भी जाती रही की वो किसके साथ क्या कर रही है..

वो झट से नीचे बैठ गयी और पलक झपकते ही उसके खंबे को अपने मुँह मे लेकर चूसने लगी..

देवी लाल के लिए ये नया था, आज तक उसके लंड को किसी ने नही चूसा था, वो सिसक उठा...अपने पंजों पर खड़ा होकर मचल उठा..उसके बालों को पकड़कर उसे धक्का देने लगा, क्योंकि रश्मि के दाँत उसके लंड पर चुभ रहे थे..पर वो भूखी शेरनी की तरह उसके लंड के माँस को नोचने मे लगी थी..ऐसी उत्तेजना का बुखार उसपर आज तक नही चड़ा था..अचानक रश्मि ने पास पड़ी बोतल को उठाया और उसे उल्टा करते हुए उसने देवी लाल के लंड पर शराब की कुछ बूंदे टपका दी...

ये काम वो काफ़ी समय से समीर के साथ भी करना चाहती थी..पर अपनी घरेलू औरत वाली इमेज के चलते वो कर नही पा रही थी...पर आज जैसे उसको सब कुछ करने की छूट सी मिल गयी थी..

देवी लाल उसकी हरकत देखकर एक ही पल मे समझ गया की असल मे माजरा क्या है, क्यो वो उसके शराब से तर होंठों को चूसने मे लगी थी..उसको शराब का नशा पसंद था..

लंड पर शराब की बूंदे फिसल कर उसकी बॉल्स तक आई और जैसे ही वो नीचे गिरने को हुई, रश्मि ने अपनी जीभ फैलाकर उसके टटटे चाट लिए...और वही नशीला स्वाद उसे अपने मुँह मे महसूस हुआ जो देवी लाल के मुँह से आ रहा था, ये भले ही रश्मि का पहला मौका था शराब चखने का, पर उसे ऐसा लग रहा था की वो बरसों से पीती आई है..

कुछ ही देर मे रश्मि ने उसके लंड और टट्टों को चाटकर चमका दिया..











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FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--27

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--27
अब आगे....

 बड़के दादा: बैठो मुन्ना
(मैं चुप-चाप बैठ गया, मेरे तेवर देख के कोई भी कह सकता था कि अगर उन्होंने मेरी शादी कि बात कि तो मैं बगावत कर दूँगा|)

पिताजी: देखो बेटा, बात थोड़ी सी गंभीर है| लड़की मानने को तैयार नहीं है... वो जिद्द पे अड़ी है कि वो शादी तुम से ही करेगी| इसलिए हमने उनसे थोड़ा समय माँगा है ...

मैं: समय किस लिए? आपको जवाब तो मालुम है|
(मेरे तेवर गर्म हो चुके थे .. तभी भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रख के मुझे शांत होने का इशारा किया|)

पिताजी: देखो बेटा हम कल शादी नहीं कर रहे... हमने केवल सोचने के लिए समय माँगा है|

मैं: पिताजी आप मेरा जवाब जानते हो, मैं उससे शादी कभी नहीं करूँगा!!! आप मेरे एक सवाल का जवाब दो, कल को शादी के बाद भी वो इसी तरह कि जिद्द करेगी तो मैं क्या करूँगा? हर बार उसकी जिद्द के आगे झुकता रहूँ? आप लोगों का क्या? मैं और आप तो काम धंधे में लगे रहेंगे और वो घर में माँ को तंग करेगी?
ऐसी जिद्दी लड़की तो मुझे आपसे भी अलग कर देगी और तब बात तलाक पे आएगी? क्या ये ठीक है? आप यही चाहते हो? मैं ये नहीं कह रहा कि लड़की मेरी पसंद कि हो, परन्तु वो काम से काम आप लोगों को तो खुश रख सके| माँ-बाप अपने बच्चों को इतने प्यार से पालते हैं और जब वही बचे बड़े हो के गलत फैसले लें या उनके माँ-बाप उनके लिए गलत फैसले लें तो सब कुछ तबाह हो जाता है|

मेरे दिमाग में जितने भी बहाने आये मैंने सब पिताजी के सामने रख दिए|अब मैं उनका जवाब सुनने को बेचैन था|

पिताजी: बेटा तू इतना जल्दी बड़ा हो गया? हमारे बारे में इतना सोचता है? हमें और क्या चाहिए?

बड़के दादा: भैया तुमने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं अपने लड़के को| मुझे तुम पे गर्व है!!! तुम चिंता मत करो मुन्ना, कल हम जाके ठाकुर साहब को समझा देंगे| अगर फिर भी नहीं माना तो पंचायत इक्कट्ठा कर लेंगे|बहु चलो खाना बनाओ अब सब कुछ ठीक हो गया है, चिंता कि कोई बात नहीं है|

मैं उठ के खड़ा हुआ तो बड़की अम्मा ने मेरा माथा चूमा और माँ ने भी थोड़ा दुलार किया| अगर किसी का मुँह देखने लायक था तो वो था अजय भैया और चन्दर भैया का| दोनों के दोनों हैरान थे और मुझे शाबाशी दे रहे थे|मैं मन ही मन सोच रहा था कि बेटा तू राजनीति में जा ..अच्छा भविष्य है तेरा| क्या स्पीच दी है.. सबके सब खुश होगये!!! मैं मन ही मन अपने आपको शाबाशी देने लगा| भोजन का समय था, सभी पुरुष सदस्य एक कतार में बैठे थे और मेरा नंबर आखरी था| भौजी एक-एक कर के सब को भोजन परोस रही थी| नेहा खाना खा चुकी थी और आँगन में खेल रही थी, सब लोग अब भी शाम को हुई घटना के बारे में बात कर रहे थे| भौजी अभी खामोश थीं... मैं भी चुप-चाप अपना भोजन कर रहा था| तभी नेहा भागते-भागते गिर गई और रोने लगी.. मैंने सोचा कि शायद चन्दर भैया उसे उठाने जायंगे पर उन्होंने तो बैठ-बैठे ही भौजी को हुक्म दे दिया; "जरा देखो, नेहा गिर गई है|" मुझे बड़ा गुस्सा आया उनपर, इसलिए मं खुद भागता हुआ गया और नेहा को गोद में उठाया|

चन्दर भैया: अरे मानु भइया, पहले भोजन तो कर लो; तुम्हारी भाभी देख लेगी उसे|

मैं: अभी आता हूँ| अव्व ले ले मेरे बेटा.. चोट लग गई आपको?

मैं नेहा को हैंडपंप के पास ले गया, अपने हाथ धोये फिर उसके हाथ-पाँव धोये| अपने रुमाल से उसके चोट वाली जगह को धीरे-धीरे पोंछा, इतने में भौजी भी वहाँ भागती हुई आ गईं;

भौजी: लाओ मानु मैं देखती हूँ मेरी लाड़ली को क्या होगया?

मैं: नहीं आप अभी इसे छू नहीं सकते... आपने बाकियों को भोजन परोसना है| मैं नेहा को दवाई लगा के अभी लाता हूँ|


 मैं नेहा को पुचकारते हुए अपने साथ बड़े घर लेग्या और उसके चोट ओ डेटोल से साफ़ किया फिर दवाई लगाई| ज्यादा गंभीर चोट नहीं थी पर बच्चे तो आखिर बच्चे होते है ना| करीब पंद्रह मिनट बाद वापस आया तो देखा सब खाना खा के उठ चुके थे| मैंने नेहा को गोद से उतरा और अपनी चारपाई पे बैठा दिया|
:आप यहीं बैठो.. मैं खाना खा के आता हूँ, फिर आपको क नै कहानी सुनाउंगा|"

मैंने भौजी से पूछा कि मेरी थाली कहाँ है तो उन्होंने उसमें और भोजन परोस के दे दिया| मैं उनकी ओर हैरानी से देखने लगा; तभी वो बोलीं "सभी बर्तन जूठे हैं इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ ही खाऊँगी|"
मैंने एक रोटी खाई और उठने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ के बैठा दिया ओर कहा; "एक रोटी मेरी ओर से|" मैंने ना में सर हिलाया तो वो बनावटी गुस्से में बोलीं; "ठीक है तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|" अब मैंने जबरदस्ती एक और रोटी खा ली और हाथ-मुँह धो के नेहा के पास आ गया| नेहा मेरा इन्तेजार करते हुए अब भी जाग रही थी... नेहा को अपनी गोद में लिए मैं टहलने लगा और कहानी सुनाता रहा और उसकी पीठ सहलाता रहा ताकि वो सो जाए| इधर सभी अपने-अपने बिस्तर में घुस चुके थे... मैं जब टहलते हुए पिताजी के पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने को कहा; तभी भौजी वहाँ बड़के दादा के लिए लोटे में पानी ले के आ गईं ताकि अगर उन्हें रात में प्यास लगे तो पानी पी सकें|

पिताजी: क्या हुआ चक्कर क्यों काट रहा है?

मैं: अपनी लाड़ली को कहनी सुना रहा हूँ|
(मेरे मुँह से "मेरी लाड़ली" सुनते ही भौजी के मुख पे छत्तीस इंच कि मुस्कराहट फ़ैल गई|)

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं:

भौजी: कभी हमें भी कहानी सुना दिया करो... जब देखो "अपनी लाड़ली" को गोद में लिए घूमते रहते हो|

मैं: सुना देता पर नेहा तो आधी कहनी सुनते ही सो जाती है, पर आपको सुलाने के लिए काम से काम तीन कहनियाँ लगेंगी| तीन कहनी सुनते-सुनते आधी रात हो जाएगी और आप तो सो जाओगे अपने बिस्तर पे, और मुझे आँखें मलते हुए अपने बिस्तर पे आके सोना होगा|

मेरी बात सुनके सब हँस पड़े| खेर मैं करीब आधे घंटे तक नेहा को अपनी गॉड में लिए घूमता रहा और कहनी सुनाता रहा| जब मुझे लगा की नेहा सो गई है तब मैं उसे लेके भौजी की घर की ओर चल दिया| हंसेः कि तरह, आँगन में दो चारपाइयाँ लगीं थी.. एक पे भौजी लेटी थी और दूसरी नेहा के लिए खाली थी| मैंने नेहा को चारपाई पे लेटाया;

भौजी: सो गई नेहा?

मैं: हाँ बड़ी मुश्किल से!

भौजी: आओ मेरे पास बैठो|
(मैं भौजी के पास बैठ गया|)

मैं: (गहरी सांस लेते हुए|) बताओ क्या हुक्म है मेरे लिए?

भौजी: तुम जब मेरे पास होते हो तो मुझे नींद बहुत अच्छी आती है|

मैं: आप तो सो जाते हो पर मुझे आधी रात को अपने बिस्तर पे जाना पड़ता है|

भौजी: अच्छा जी! खेर मैं "आपको" एक बात बताना चाहती थी, कल मेरा व्रत है|

मैं: व्रत, किस लिए?

भौजी: कल XXXXXX का व्रत है जो हर पत्नी अपने पति की खुशाली के लिए व्रत रखती है| तो मैं भी ये व्रत आपके लिए रखूंगी|

मैं: ठीक है.... तो इसका मतलब कल मैं आपको नहीं छू सकता!

भौजी: सिर्फ शाम तक.. शाम को पूजा के बाद मैं आपके पास आऊँगी|

मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ|

भौजी: मेरे पास बैठने के लिए तो तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है?

मैं: दरवाजा खुला है, घर के सभी लोग अभी जगे हैं... अब किसी ने मुझे आपके साथ देख लिया तो???

भौजी: ठीक है जाओ!!! सोने!!! मैं अकेले यहाँ जागती रहूंगी!!!

मैं बिना कुछ कहे उठ के अपने बिस्तर पे आके लेट गया| अभी दस मिनट ही हुए होंगे की भौजी नेहा को गोद में ले के आइन और मेरे पास लिटाते हुए बोलीं: "लो सम्भालो अपनी लाड़ली को!" मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो चलीं गई... मैं करवट लेके लेट गया और नेहा की छाती थपथपाने लगा| कुछ ही देर में नेहा भी मुझसे लिपट के सो गई|











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FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--26

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 बदलाव के बीज--26
अब आगे....

 मैं: ARE YOU HAPPY NOW ?

भौजी: मतलब???

मैं: मतलब आप खुश तो हो ना?

मैं: हाँ... बहुत खुश!!!

ये कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को चूम लिया, और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब उनके होंठों को आखरी बार चूस के दिया| मैं उठ के खड़ा हुआ और स्नान घर की ओर जाने लगा, ताकि अपने हाथ-मुँह ओर लंड धो सकूँ| भौजी ने मुझे पीछे से पुकारा:

"मानु, इधर आना ..."
मैं उनके पास आया तो उन्होंने मेरे लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ा और हिलाते हुए अपने मुँह में भर लिया|

"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ....."

उन्होंने अपनी जीभ से मेरे लंड को चूसना और रगड़ना शुरू कर दिया| मानो वो हमारे रास को पोंछ के साफ़ कर यहीं हो| जब उन्होंने मेरे लंड को अच्छे से चूस लिया तब मैंने उनसे कहा: "आप बड़े शरारती हो?"

भौजी कुछ नहीं बोलीं और बस मुस्कुराके लेटी रहीं| मैं हाथ-मुँह धो के उनके पास आया:

मैं: अब आप जल्दी से नहा लो... घर के सब लोग अभी खेत से लौटते होंगे|

भौजी: ठीक है, तुम बहार ही बैठना|

मैं बहार चारपाई पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा... तभ भौजी नहा के बहार आईं, उनके बाल भीगे हुए थे और चमक रहे थे| उनके बदन से खुशबूदार गुलाबी LUX साबुन की महक आ रही थी| बालों से शैम्पू की महक.... "ह्म्म्म्म्म"

भौजी सीधा मेरे पास आके बैठ गईं... और मेरा हाथ पकड़ लिया| तभी नेहा भागती हुई आई, भौजी छिटक के उठ खड़ी हुई| ये देख के मेरी हंसी छूट गई... "हा हा हा हा हा " भौजी भी हंस पड़ी और रसोई की ओर चल दीं| नेहा मेरी गोद में आके बैठ गई... तभी बाकी के घर वाले भी एक-एक कर आने लगे| सभी हैंडपंप पे हाथ-मुँह धोने लगे ओर चाय के लिए बैठ गए| माँ ने मेरे पाँव में पट्टी बंधी देखि:

माँ: हाय राम! अब क्या मार लिया तूने?

मैं: कुछ नहीं.. वो पैर ऊँचा-नीचा पद गया तो थोड़ी मोच आ गई|

माँ: बेटा देख के चला कर, ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?

मैं: नहीं..

इतने में भौजी चाय ले के आ गईं|

भौजी: चाची मैंने तेल से मालिश करके पट्टी बांध दी थी| कल सुबह तक ठीक हो "जायेंगे"|

माँ: अच्छा किया बहु, एक तू ही है जो इसका इतना ध्यान रखती है वरना शहर में तो ये खुद ही कुछ न कुछ कर लेता था, मुझे बताता भी नहीं था|


 माँ चाय का कप लिए खड़ी थी की तभी वहाँ बड़की अम्मा भी आ गईं और वो भी मेरे पाँव में पट्टी देख के हैरान थी| भौजी ने आगे बढ़ कर खुद उन्हें सारी बात बताई|

बड़की अम्मा: मानु की अम्मा, देख रही हो देवर-भाभी का प्यार? चोट मानु को लगती है तो दर्द बहु को होता है| बीमार बहु होती है तो दवा-दारु मानु करता है| बिलकुल ऐसा ही इसके पिताजी थे जब वो छोटे थे| हमेशा किसी न किसी काम में मेरी मदद करते रहते थे... जब भी चोट लगती तो भागे-भागे मेरे पास आते थे|

माँ कुछ नहीं बोलीं और मुस्कुरा दीं... भौजी भी मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी| अँधेरा हो रहा था... और एक मुसीबत अभी बाकी थी|गाँव का ठाकुर (माधुरी का बाप) बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और मेरे पिताजी के पास आके बैठ गया और पिताजी से बोला:

ठाकुर: बाबूजी, आज मैं आपके पास एक शिकायत लेके आया हूँ|

पिताजी: शिकायत? क्यों क्या हुआ?

ठाकुर: आपके घर की बहु ने मेरी बेटी को बहुत बुरी तरह झाड़ा है!

पिताजी: बड़ी बहु ने?

ठाकुर: हाँ और जानते हैं क्यों?

पिताजी: क्यों?

ठाकुर: क्यों की वो आपके लड़के से मिलने आती है| ऐसा कौन सा पाप कर दिया उसने? सिर्फ बात ही तो करती है ना?

पिताजी ने भौजी को आवाज लगाईं, और भौजी के साथ मैं भी आया| माँ और बड़की अम्मा तो पहले ही वहाँ खड़े थे|

पिताजी: बहु क्या ये सच है, तुमने ठाकुर साहब की बेटी को डाँटा?

ठाकुर: बाबूजी, डाँटा नहीं झाड़ा !!! और ऐसा झाड़ा की रो-रो कर उसका बुरा हाल है|

भौजी: जी...

मैं: मेरे कहने पे!

भौजी और सभी लोग मेरी तरफ देखने लगी...

मैं: जी मैंने ही भौजी से कहा था की माधुरी बार-बार मुझसे बात करने की कोशिश करती है| जबकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं.... मैं उससे जितना दूर भागता हूँ वो उतना ही मेरे पास आने की कोशिश करती है| यहाँ तक की उसने तो मुझसे शादी के बारे में भी पूछा था| उस दीं जब हम वाराणसी के लिए निकल रहे थे तो शाम को मुझसे कह रही थी की "अब आप दुबारा कब आओगे?" और जब मैंने कहा की एक साल बाद तो कहने लगी "हाय राम!!! इतने देर लगाओगे?" अब आप ही बताइये पिताजी मैं और क्या करता? इसलिए मैंने भौजी से शिकायत की कि आप उसे समझा दो| पर आज दोपहर में जब मैं आप सबके साथ खेत पे था तब माधुरी घर आई और दरवाजा पीटने लगी.. बड़ी मुश्किल से भौजी कि आँख लगी थी उन्होंने गुस्से में उसे सुना दिया|

ठाकुर: मैं अपनी बेटी को अच्छी तरह से जानता हूँ, वो ऐसी बिलकुल भी नहीं है जैसा तुम कह रहे हो?

मैं: आप उसे यहाँ बुला क्यों नहीं लेते? दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा|

पिताजी ने अजय भैया को माधुरी को बुलाने को भेजा... और इधर घरवाले सब मेरी तरफ हो गए थे| सब का मानना था कि मैं झूठ नहीं बोलूंगा| कुछ ही देर में माधुरी भी आ गई और गर्दन झुकाये खड़ी हो गई| पिताजी अब मुखिया कि तरह बात सुलझाने लग गए|


 पिताजी: बेटा मानु का कहना है कि तुम जबरदस्ती उसे बातें करने कि कोशिश करती हो| और तुमने उससे शादी के लिए भी पूछा था?

माधुरी: जी.. पूछा था|

पिताजी: क्यों?

माधुरी: क्योंकि मैं "उनसे" प्यार करती हूँ!!!

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए!!! भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया|

मैं: ARE YOU MAD !!! दिमाग ख़राब तो नहीं हो गया?

ठाकुर: ये तू क्या कह रही है बेटी?

पिताजी: मानु, तू शांत हो जा!!! बेटी ये कब से चल रहा है?

माधुरी: जी जब मैं पहली बार "इनसे" मिली थी| मैं इन्ही से शादी करना चाहती हूँ|

पिताजी: ये नहीं हो सकता बेटी, लड़का अभी पढ़ रहा है और...

माधुरी: मैं इन्तेजार करने के लिए तैयार हूँ!!!

मैं: YOU'RE OUT OF YOUR MIND !!! मैं तुम से प्यार नहीं करता, तो शादी कैसे ??? ठाकुर साहब आप अपनी बेटी को समझाओ या इसे डॉक्टर के पास ले जाओ|

भौजी कि आँखें भर आईं थी और वो मुँह फेर के चली गईं|

पिताजी: मैंने कहा ना तू चुप रह!!! मैं बात कर रहा हूँ ना???

माँ: तू जा यहाँ से... यहाँ सब बड़े बात कर रहे हैं|

मैं: पिताजी, आपको जो भी फैसला लेना है लो पर मैं इससे शादी नहीं करने वाला|

अजय भैया मुझे अपने साथ खींच के ले गए और दूर चारपाई पे बैठा दिया|मेरा दिमाग गरम हो गया था... आस पास नजर दौड़ाई पर भौजी कहीं नजर नहीं आई| मैं खुद तो उन्हें ढूंढने नहीं जा सकता था इसलिए मैंने नेहा को ढूंढने के लिए भेजा|नेहा भी जब नहीं लौटी तो मुझे खुद ही उन्हें ढूंढने जाना पड़ा... मेरे मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे थे| कहीं भौजी ने कुछ गलत कदम न उठा लिया है... यही सोचता हुआ मैं उनके घर कि ओर चल दिया|

भौजी नेहा से लिपटी हुई रो रही थी... मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रखा और उन्हें अपनी ओर घुमाया| भौजी मेरे सीने से लग के रोने लगी...

मैं: आप क्यों रो रहे हो? मैं उस से शादी थोड़े ही करने वाला हूँ| मैंने सबके सामने साफ़-साफ़ कह दिया कि मैं उससे शादी नहीं करूँगा| कभी नहीं करूँगा!!!

भौजी: ये सब मेरी वजह से हुआ...

मैं: किसने कहा आपसे, इसमें आपकी कोई गलती नहीं|

भौजी: पर चाचा नहीं मानेंगे ... वो तुम्हारी उसके साथ तय कर देंगे| मुझे इस बात कि चिंता है कि वो लड़की तुम्हारे लिए सही नहीं है|

मैं: पिताजी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, और शादी तय कर भी दी तो करनी तो मुझे है| और जब मैं ही नहीं मानूंगा तो शादी कैसी? आप बस चुप हो जाओ, देखो किसी ने आपको मुझसे ऐसे लिपटे देख लिया तो क्या सोचेगा? मैं बहार जा रहा हूँ आप भी मुँह धो लो और बहार आ जाओ!!!

ये कहके मैं बहार आ गया और नेहा को साथ ले आया| मेरी नजर अब भी दूर हो रही बैठक पे थी... मन में सवाल उठ रहे थे कि पता नहीं क्या होगा? अगर पिताजी ने वाकई में मेरी शादी तय कर दी तो?
भौजी भी कुछ देर बाद बहार आ गईं और पास ही खड़ी हो गई .. उनका ध्यान भी बैठक कि ओर था| कुछ समय बाद बैठक खत्म हुई ओर ठाकुर, माधुरी और उसकी माँ अपने घर कि ओर चल दिए| मन में उत्सुकता बढ़ रही थी कि पता नहीं सब ने क्या फैसला किया है? मैं उठा और जहाँ बैठक हो रही थी वहाँ जाके हाथ मोड़के खड़ा हो गया| भौजी भी मेरे साथ वहीँ खड़ी हो गई|






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FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--25

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--25
अब आगे....

भौजी: मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!!!

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए...मैंने अपना सर पकड़ लिया|

भौजी: तुम्हारे जाने के बाद वही मेरे जीने का सहारा होगा| उस बच्चे में मैं तुम्हारा प्यार ढूंढ़ लुंगी और उसे वही प्यार दूंगी जो मैं तुम्हें देना चाहती थी| तुम्हारी कमी अब सिर्फ वही पूरी कर सकता है!!!

मैं: आप ये क्या कह रहे हो? चन्दर भैया क्या कहेंगे? उन्होंने तो इतने सालों से आपको हाथ भी नहीं लगाया ... घर के सब लोग बातें करेंगे| एक तरफ तो आपको अपनी और मेरी इज्जत की चिंता है और दूसरी तरफ आप ऐसी बात कर रही हो| अगर भैया ने आप से पूछा की ये बच्चा किसका है तो आप क्या कहोगे? इसीलिए मैं आपको भगा के ले जाना चाहता था, अब भी देर नहीं हुई है.. सोच लो!!!

भौजी: मैं तुम्हारे साथ भाग के चाचा-चाची को दुःख नहीं देना चाहती, इसमें उनकी क्या गलती है? चाहे कुछ भी हो मुझे ये बच्चा चाहिए मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ| नहीं तो मेरे पास सिवाए जान देने के और कोई रास्ता नहीं है|

मैं: आप को हो क्या गया है? अच्छा आप बताओ की आप भैया से क्या कहोगी की ये किसका बच्चा है?

भौजी: वो सब मैं संभाल लुंगी और मैं तुम्हें ये यकीन दिलाती हूँ की तुम्हारे ऊपर कोई लांछन नहीं लगने दूंगी|

मैं: लांछन?? वो मेरा भी नच्छा है.. तो लांछन किस बात का? और आप कैसे ये सब संभाल लगी? घर में सब जानते हैं की मैं और आप कितने नजदीक हैं, यहाँ तक की डॉक्टर को भी शक है हमारे रिश्ते पे! घर वालों की नजर में हम अच्छे दोस्त हैं पर जब उन्हें पता चलेगा की आप गर्भवती हो तो सबसे पहले मेरा ही नाम आएगा| जो गलत भी नहीं है!!! कहीं आप चन्दर भैया के साथ सम....

भौजी: छी-छी मानु तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में ऐसा सोचते हुए भी शर्म नहीं आई| भले ही मेरी शादी उनसे हुई हो पर मैंने तुम्हें अपना पति माना है| सिर्फ तुम ही हो जिसे मैंने अपन तन-मन सौंपा है| मेरी आत्मा पे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अधिकार है और तुम ऐसा सोचते हो?

मैं: I'M SORRY !!! मैं आपको कभी भी किसी चीज के लिए मना नहीं कर सकता| पर जब तक आपके पीठ के जख्म नहीं भर जाते तब तक कुछ नहीं|

भौजी: नहीं मानु, आज रात .. मैं अब और इन्तेजार नहीं कर सकती|

मैं: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूं?

भौजी: हाँ पूछो|

मैं: प्लीज मुझे गलत मत समझना पर आप कहीं लड़के की चाहत तो नहीं रखते?

भौजी: मतलब?

मैं: मतलब की आपको सिर्फ लड़का ही चाहिए?

भौजी: नहीं मानु ऐसा नहीं है| लड़का हो या लड़की मेरे लिए जर्रुरी ये है की मैं उस बच्चे में तुम्हारा अक्स चाहती हूँ|

मैं: देखो आप तो सीधा लेट भी नहीं पाते तो उस समय आपको बहुत पीड़ा होगी और मैं इस हालत में आपको प्यार नहीं कर सकता| आपको तड़पता देख के मैं टूट जाऊँगा, बस केवल दो दिन और फिर आपके जख्म भर जायेंगे और मैं आपकी साड़ी इच्छा पूरी कर दूँगा|

भौजी: ठीक है पर तुम ये सिर्फ मेरी इच्छा पूरी करने के लिए कर रहे हो या दिल से?

मैं: मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ!!! अब चलो मुस्कुराओ...


 भौजी मुस्कुरा दीं.. पर मुझे अब चिंता होने लगी थी| क्या होगा अगर ये बात सामने आ गई की भौजी की कोख में पल रहा बच्चा मेरा है| घरवाले अपनी इज्जत बचाने के लिए उस बच्चे को पैदा होने से पहले ही मार देंगे!!! पर मेरे पास इस समय कोई और चारा नहीं था, अगर मैं भौजी की बात नहीं मानता तो वो मेरी जुदाई का दुःख नहीं बर्दाश्त कर पातीं और खुद-ख़ुशी कर लेतीं और तब नेहा का क्या होता?

अब तो मैं जैसे हंसना ही भूल गया था... भौजी को भी मेरे अंदर आये इस बदलाव की भनक थी| मैं उनके आस-पास तो होता पर कुछ ना कुछ सोचता रहता| अचानक मेरे दिमाग ने काम करना क्यों बंद कर दिया था? दो दीं कैसे बीते पता ही नहीं चला, अब मेरे जिस्मानी घाव काफी हद तक भर चुके थे| उनपे एक पपड़ी बन चुकी थी, दर्द नहीं था| उधर भौजी के घाव बिलकुल भर चुके थे| दोपहर का समय था, घर के सभी लोग खेत में थे और आज तो माँ-पिताजी भी खेत में हाथ बंटा रहे थे मैं भी खेत में था परन्तु अकेले टहल रहा था| घर पे केवल भौजी अकेली थी उन्होंने मुझे बुलाने के लिए नेहा को भेजा था| नेहा मेरे पास भागती हुई आई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा और मेरे कान में खुस-फुसाई:
"चाचू मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्होंने आपको जल्दी बुलाया है|"

ये सुनते ही मैं भागता हुआ घर पहुँचा... आँगन, रसोई, बड़े घर में भी कोई नहीं था| मैं उनके घर घर में दाखिल हुआ और उनके कमरे में झाँका तो वहां भी कोई नहीं था तभी भौजी ने मुझे पीछे से आके जकड़ लिया| उनकी गर्म सांसें मेरी पीठ पे पड़ीं तो मैं सिंहर उठा|

मैं: आप की तो तबियत ख़राब थी ना?

भौजी: वो तो तुम्हें यहाँ बुलाने का बहाना था|

मैं: अब तक तो नेहा ने सबको बता दिया होगा, और सभी यहीं आते होंगे|

भौजी: मैंने उसे कहा था की मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और तुम्हें बुलाने के लिए झूठ बोलने के लिए मैंने ही कहा था| वो ये बात किसी को नहीं कहेगी और मजे से चिप्स खा रही होगी|

मैं: आप बड़े शैतान हो!!! पर प्लीज आगे से नेहा को इस सब में मत डाला करो| मुझे अच्छा नहीं लगता, वो बिचारी अबोध बच्ची क्या जाने|

भौजी: ठीक है मैं उसे इस सब से पर रखूंगी पर पहले बताओ की आखिर ऐसी क्या बात है जो पिछले दो दिन से तुम कुछ अलग लग रहे हो? मेरे पास हो के भी मुझसे दूर हो? कौन सी बात है जो तुम्हें खाय जा रही हो?

मैं: नहीं तो .... कुछ भी तो नहीं|

भौजी: झूठ मत बोलो, अगर तुम्हारा मन नहीं है तो मत बताओ| पर मैं जानती हूँ की तुम क्यों परेशान हो? तुम मेरी उस बात से परेशान हो|

मैं: नहीं.... आपकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है|वैसे क्या बात है आज तो बहुत सजे-सँवरे हो? ओह!!! याद आया ... तो इसलिए आपने मुझे बुलाया था|

मैंने भौजी को अपनी बाँहों में जकड लिया और उनके माथे को चूमा| भौजी ने आज लाल रंग की साडी पहनी थी| बालों का गोल जुड़ा, होठों पे लाली, माँग में सिन्दूर और पाँव में पायल| नाखूनों पे नेल पोलिश ... हाय आज तो सच में मेरा क़त्ल होने वाला था| मैंने जब भौजी को अपने आलिंगन से आजद किया तो वो गोल घूम के मुझे अपनी सुंदरता का दीदार कराने लगी| उनके शरीर से भीनी-भीनी इत्र की खुशबु आ रही थी जो मुझे उनकी और आकर्षित कर रही थी|मैं बहार की ओर जाने लगा...


 भौजी: कहाँ जा रहे हो? मुझसे कोई गलती हो गई?

मैं: दरवाजा तो बंद कर दूँ|

भौजी अपने दाँतों टेल ऊँगली दबा के हंस दी| मैंने जल्दी से दरवाजा बंद किया और उनके पास आ गया|मैं बिना रुके उनके मुख को चूमता रहा, कभी माथे पे, कभी आँखों पे, कभी गाल पे कभी उनकी नाक पे और अंत में उनके होंठों को!!! वो नहीं चाहती थीं की मैं रुकूँ ... मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोलने चाहे परन्तु खोल नहीं पाया.. उन्होंने स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोले| आग दोनों ओर लग चुकी थी... दोनों के जिस्म देहक रहे थे| जैसे ही भौजी के स्तन ब्लाउज की कैद से आजाद हुए मैंने उन्हें कास के गले लगा लिया| हालाँकि मैंने टी-शर्ट पहनी हुई थी पर फिर भी उनके निप्पल मुझे अपनी छाती पे महसूस हो रहे थे| इससे पहले की हम आगे बढ़ते दरवाजे पे दस्तक हुई| भौजी कस्मा के मुझसे लिपटी रहीं परन्तु बहार से दस्तक चालु थी| मैंने भौजी को अपने से अलग किया ओर उन्हें होश में लाने की कोशिश की| उन्हें झिंझोड़ा तब जाके वो होश में आईं| उनके मुख पे गुस्से के भाव थे... ऐसे भाव जो मैंने कभी नहीं देखे| अगर उनके हाथ में पिस्तौल होती तो आज दस्तक देने वाले का मारना तय था| भौजी ने ब्लाउज के बटन बंद किये ओर मुझे इशारे से रुकने को कहा और वो चिल्लाती हुई दरवाजा खोलने गईं| मुझे दर था की अगर किसी ने मुझे यहाँ देख लिया तो आफत हो जाएगी इसलिए मैं आँगन की ओर भागा, चारपाई खींच के खड़ी की और उसपे चढ़ गया. लपक के मैंने दिवार फांदी और बहार कूद गया| कूदते समय थोड़ा पाँव ऊँचा-नीचे होने के कारन मोच आ गई|

मैं लंगड़ाते हुए किसी तरह घूम के मुख्य द्वार पे आया, देखा वहां कोई नहीं था| जब मैं भौजी के घर में दाखिल हुआ तो देखा भौजी माधुरी पे बड़े जोर से चिल्ला रहीं है|

भौजी: क्या चाहिए तुझे? जब देखो मानु...मानु उसके पीछे क्यों पड़ी है?... क्या चाहिए तुझे उससे? वो तुझे पसंद नहीं करता क्यों उसके आगे-पीछे घूमती रहती है| वो वैसा लड़का नहीं है जैसा तू सोच रही| उससे दूर रह वार्ना मैं तेरे माँ-पिताजी से तेरी शिकायत कर दूँगी|

माधुरी: मैं तो....

भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ घुस आने की? बड़ी मुश्किल से आँख लगी थी और तूने मेरी नींद उड़ा दी|

आज तो भौजी का गुस्सा चरम पर था... मैंने सच में उन्हें इतना गुस्से में कभी नहीं देखा था| मैं लंगड़ाते हुए अंदर गया...

मैं: क्या हो रहा है?

मुझे लंगड़ाते हुए देख के दोनों एक आवाज में बोलीं:

"तुम्हें क्या हुआ?"

कोरस में दोनों की आवाज सुन के मैं हैरान हो गया...

मैं: कुछ नहीं पाँव-ऊँचा नीचे पद गया इसलिए मोच आ गई|

भौजी: हाय राम! इधर आओ देखूं तो|

माधुरी भी देखने के लिए नजदीक आई...

भौजी: तू क्या देख रही है| निकल यहाँ से और खबरदार जो "इनके" आस-पास भी भटकी| "ये" तुझे कुछ नहीं कहते तो तू सर पे चढ़ी जा रही है|

माधुरी बेचारी रोती-बिलखती बहार चली गई|

भौजी: मानु, मैं तेल लगा देती हूँ| तुम मेरी वजह से खुद को कितनी मुसीबत में डालते हो|

मैं: क्यों आपने उस "बेचारी" की क्लास लगा दी| वैसे मैंने आपको आज से पहले कभी भी इतना गुस्से में नहीं देखा|

भौजी: गुस्से वाली बात ही है, जब देखो तुम्हारे पास आने की कोशिश करती है| मैंने इसे अपना पति छीनने नहीं दे सकती| सोचो मुझे कैसा लगता होगा जब ये तुम से हंस-हंस के बातें करती है? मेरे दिल पे तो लाखों छुरियाँ चल जाती है| और आज कितने दिनों बाद तुम मुझे प्यार कर रहे थे और ये बीच में आ गई|मैं: देखो आप अपना गुस्सा शांत करो वार्ना इस आग में मैं जल जाऊँगा|

भौजी थोड़ा शांत हुईं.. उन्होंने मेरी एड़ी पर तेल की मालिश की और पट्टी बांद दी और मैं बहार आ गया और आँगन में चारपाई पे बैठ गया|| हमारे घर का एक नियम है जिसे रसोइये को हर हालत में मानना पड़ता है| वो नियम ये है की, रसोइया नह-धो के भोजन बनाने बैठता है| और एक बार वो रसोई में घुस गया तो वो बहुजन बना के सब को खिलाने के बाद ही बहार निकलता है| इस दौरान अगर उसे बाथरूम जाना पड़ा तो वो बिना नहाये-धोये रसोई में नहीं घुस सकता| ये नियम इतना कड़ा है की इसे हर हालत में इसका पालन जर्रुरी है, वरना घर के बड़े उस भोजन को हाथ तक नहीं लगाते|

अब मेरे और भौजी के बीच में जो शुरू हुआ था वो हालाँकि बीच में ही रह गया था परन्तु उनकी आत्मा अशुद्ध थी! अब रसोई में घुसने के लिए उन्हें नहाना आवश्यक था| तभी भौजी की घर के अंदर से आवाज आई:

"मानु... जरा सुनो तो?"

मैं: हाँ बोलो?

अंदर का दृश्य देख के मैं दंग रह गया| भौजी को आज मैं पहली बार सिर्फ ब्रा और पैंटी में देख रहा था| उनके होंठों की लाली और माँग का सिन्दूर उनकी सुंदरता पे चार चाँद लगा रहा था| मैंने भाग के दरवाजा बंद किया|

मैं: हाय!!!! आज तो आप गजब ढा रहे हो| अब अगर मेरा ईमान डोल गया तो इसमें क्या कसूर!!!

भौजी: अब ये औपचारिकता छोडो! अपनी "पत्नी" के पास आने के लिए तुम्हें बहाने की जर्रूरत नहीं|

मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके होठों पे अपने होंठ रख दिए| उनकी लिपस्टिक का मधुर स्वाद मुझे अपने मुँह में आने लगा था|मैं उनके होठों को बारी-बारी चूस रहा था, कभी-कभी भौजी अपनी जीभ मेरे मुख में प्रवेश करा देती और मेरी जीभ के साथ खेलती| मैं धीरे-धीरे भौजी को चारपाई तक ले गया और उन्हें लेटा दिया| सफ़ेद ब्रा और पैंटी में भौजी आज कयामत लग रही थी| उन्हें ऐसा देखने की मैंने कल्पना भी नहीं की थी|मैं उनके ऊपर आ गया और फिर उन्हें बेतहाशा चूमने लगा| भौजी मेरे हर एक चुम्बन का जवाब देने लगी थी| साफ़ था की वासना हम दोनों पे सवार थी.... मैंने अपने हाथ उनकी ब्रा का हुक खोलने के लिए उनकी पीठ के नीचे ले गया| तो भौजी ने अपनी पीठ उठा की सहयोग दिया| उनकी ब्रा का हुक खोल के मैंने उनकी ब्रा खींच के निकाली और सिराहने रख दी|मैं जानता था की मेरे पास FOREPLAY के लिए समय नहीं है, इसलिए मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा और भौजी की पैंटी निकाल दी| उनके योनि के पटल बंद थे और मुझे भीनी-भीनी सी मढोह करने वाली महक आने लगी थी| मैंने झुक के जैसे ही भौजी की योनि को अपनी जीभ की नोक से छुआ तो भौजी तड़प उठी| मैंने अपनी एक ऊँगली भौजी की योनि के अंदर डाली तो पता चल की उनकी योनि अंदर से गीली है| मैंने अपना पाजामा नीचे किया और लंड निकाल के तैयार हो गया| मैं उनके ऊपर पुनः झुक गया और अपनी लंड को उनकी योनि के ऊपर रख धीरे से उसे अंदर प्रवेश करा दिया|

अपने दोनों हाथों से मैंने भौजी के दोनों हाथ पकड़ लिए, इधर भौजी ने अपनी टांगों से मेरी कमर को लॉक कर लिया था| मैंने शुरुआत धीरे-धीरे की, घर्षण काम होने के कारन मुझे अपनी गति बढ़ानी पड़ी| समय बीतता जा रहा था और अगर इस समय हमें कोई डिस्टर्ब करता तो आज खून-खराबा तय था| मेरे हर धक्के के साथ भौजी के स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे और भौजी के मुख के भावों ओ देख के लग रहा था की किसी भी समय वो स्खलित हो जाएँगी| उनके होठों की लाली फ़ैल चुकी थी और मुझे उन्हें इस तरह देख के बहुत आनंद आ रहा था| करीब बीस मिनट तक मैं बिना रुके लय बद्ध तरीके से धक्के देता रहा| मेरा पूरा शरीर पसीने से तरबातर हो चूका था.... चेहरे पे पसीना बह के भौजी के मुख पे गिरने लगा था| तब भौजी ने अपनी ब्रा से मेरे मुँह पोछा| अंदर से भौजी की योनि पनिया गई थी….. शायद इस बार भौजी ज्यादा ही उत्साहित थी.... पिछली बार जब हमने सम्भोग किया था तब उनकी योनि ने मेरे लंड को जकड रखा था| परन्तु इस बार तो लंड आसानी से फिसल रहा था.... अब समय आ चूका था जब मैं चरम पे पहुँचने वाला था| भौजी को ना जाने क्या हुआ उन्होंने अपने हाथ छुड़ाए और मेरे सर को अपने मुख पे झुकाया और मेरे होठों को चूसने लगीं| मैंने निर्णय कर लिया था की आज तो मैं भौजी की इच्छा पूरी कर के रहूँगा|

मैंने उनकी इस प्रतिक्रिया का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे से अपना पूरा जोर लगता रहा| आखिर मैं स्खलित होने वाला था... आखिर के चार धक्के कुछ इस प्रकार थे की जैसे ही मैं अपने लंड को अंदर की ओर धकेलता उसमें से रस की धार निकल के भौजी की योनि में गिरती, फिर जैसे ही मैं उसे बहार खींचता वो चुप हो जाता| फिर दूसरे धक्के में जब मैं उसे अंदर धकेलता तो फिर उसमें से रस की लम्बी धार निकलती औरइसी प्रकार आखरी के चार धक्कों में मैंने उनकी योनि को अपने रस से भर दिया और हाँफते हुए उनके ऊपर गिर गया|





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FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--24

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--24
अब आगे....
 
मैं: क्या हुआ आप इस तरह गुम-सुम क्यों हो गए?

भौजी: कुछ नहीं, बस ऐसे ही|

मैं: तो अब आप....

आगे पूरी बात होने से पहले ही माधुरी आ गई:

माधुरी: अरे मानु जी अब आप की तबियत कैसी है?

मैं: ठीक है|

भौजी: अच्छा हुआ तुम आ गई, अभी तुम्हारी ही बात हो रही थी|

माधुरी: सच? क्या बात हो रही थी?

मैं: मैं पूछ रहा था की आखिर आप कल क्यों नहीं दिखाई दीं?

माधुरी: वो दरअसल कल रसिका भाभी अपने मायके जाने वाली थीं तो मैंने सोचा क्यों न मैं कहीं घूम आऊँ| आज दोपहर को जब घर आई तब मुझे पता चला की कल क्या-क्या हुआ? वैसे आप दोस्ती बहुत अच्छी निभाते हो, दोस्त की खातिर अपनी जान की भी परवाह भी नहीं की?

मैं: दोस्तों के लिए तो अपनी जान हाजिर है!!! वैसे ये बात क्या पूरे गाँव को पता है?

माधुरी: अरे इस गाँव में कोई बात छुपी है क्या? ये ही नहीं आस पास के गाँव वाले भी आपका सम्मान करने लगे हैं|

बस इसी तरह माधुरी सवाल पूछती रही और मैं जवाब देता रहा| हमारी बातें सुन नेहा उठ गई| आँख मलते-मलते बैठी और फिर मेरे पास आई और मुझे पप्पी दी और फिर अपनी मम्मी को पप्पी दी| फिर बाहर खेलने चली गई, माधुरी का मुँह देखने लायक था| जैसे उसे भौजी से जलन होने लगी थी|

माधुरी: क्या बात है मानु जी, इन कुछ दिनों में ही आपका इतना लगाव हो गया नेहा से?

मैं कुछ नहीं बोला बस मुस्कुरा दिया और इससे पहले की वो और सवाल पूछती मैं उठ के बाहर निकलने लगा|

माधुरी: कहाँ चल दिए?

मैं: नेहा के साथ खेलने, आप बैठो और भौजी को कंपनी दो|

मैं बाहर आके नेहा को ढूंढने लगा, वो छापर के नीचे गुड़ियों के साथ खेल रही थी| मैं भी वहीँ उसके पास बैठ गया, और उसके साथ खेलने लगा| मेरे पीछे-पीछे माधुरी भी आ गई:

मैं: क्या हुआ भौजी के साथ मन नहीं लगा?

माधुरी: वो तो सो रहीं हैं|

अब वो भी हमारे साथ खेलने लगी, हंसी मजाक चल रहा था| वो बार-बार मेरे बारे में जानने की कोशिश करती और सवाल पूछती| मैं भी उसे जवाब देता और बदले में वो प्यार से मुस्कुरा देती| करीब दो घंटे बीत गए, समय हुआ था चार बज के बीस मिनट| मैं उठ के खड़ा हुआ और अंगड़ाई लेने लगा.. तभी मुझे भौजी के चीखने की आवाज आई|

भौजी रोती-बिलखती हुई, भागती हुई मेरी तरफ आ रही थी| मैं बड़ा हैरान था और उनकी ओर बढ़ने लगा| भौजी मुझसे कास के लिपट गई और रोती रही| मैं उन्हें चुप कराने की भर- पुर कोशिश करता रहा परन्तु भौजी चुप ही नहीं हो रही थी, बस फुट-फुट के रो रहीं थी| मैं उनके सर पे हाथ फेरते हुए उन्हें चुप कराने लगा, छप्पर के नीचे बिछी चारपाई पे नेहा के पास बैठाया| नेहा उनके आंसूं पोछने लगी पर उनका रोना बंद ही नहीं हो रहा था|माधुरी भी उनकी बगल में बैठ गई और पीठ सहलाने लगी|

मैं: क्या हुआ ये बताओ ?

भौजी कुछ नहीं बोल रही थी बस मेरा सीधा हाथ थामे हुए थी| मैंने माधुरी से पानी लाने को कहा:

मैं: प्लीज मत रोओ, आपको मेरी कसम!!!

मैं जानता था की उन्हें चुप कराने के यही तरीका है, अब ये सब मैं माधुरी के सामने तो नहीं कह सकता था| इतने में माधुरी पानी ले के आ गई, उसने गौर किया की भौजी ने रोना बंद कर दिया है और अब वे बस सुबक रहीं थी|

मैं: ये लो पानी पीओ| अब शांत हो जाओ...

भौजी ने सुबकते हुए पानी पिया.. उन्हें खांसी भी आई| माधुरी उनके पास ही बैठी थी, तो उसने उनकी पीठ को सहलाया| अब भौजी कुछ काबू में लग रहीं थी| उनका सुबकना बंद तो नहीं पर काम हो चूका था|

मैं: अच्छा अब बताओ की हुआ क्या? आपने कुछ डरावना देख लिया: भूत, प्रेत ?

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस ना में गर्दन हिला दी|

मैं: तो क्या हुआ? आप तो सो रहे थे ना.... कोई सपना देखा आपने?

इस्पे भौजी की आँखों में फिर से आंसूं छलक आये| मैं इस बात को और न बढ़ाते हुए उन्हें चुप कराने लगा:

मैं: अच्छा आप से कोई बात नहीं पूछेगा| बस शांत हो जाओ!

देखने वाली बात ये थी की भौजी ने अब भी मेरा हाथ थामा हुआ था| नेहा भी परेशान हो गई थी और लग रहा था की उसका साईरन कभी भी बज जायेगा, तो मैंने बात बदलते हुए भौजी को चारपाई पे लेटने का परामर्श दिया और मैं उनके पास ही बैठ गया ताकि उन्हें संतुष्टि रहे| ये तो साफ़ था की भौजी ने मेरे बारे में ही कोई सपना देखा था, पर क्या? ये नहीं मालूम था|अब घर के सभी लोग काम से लौट आये थे, माँ पिताजी भी फ्रेश हो के आगये थे| माँ ने मुझे भौजी के साथ बैठे हुए देखा:

माँ: क्या हुआ बहु? अब क्या कर दिया इस नालायक ने?

भौजी: कुछ नहीं चाची|

माधुरी: जी इन्होने कोई डरावना सपना देखा था, इसलिए डर गईं|

उसकी बात पे मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं कह कुछ नहीं पाया| ये सुनने के बाद भौजी ने मेरा हाथ छोड़ा और उठ के मुंह धोने चलीं गई| मैं उनके पीछे जाना चाहता था परन्तु मेरा ऐसा करना उचित नहीं होता इसलिए मैं वहीँ बैठ रहा| कुछ समय बाद माधुरी भी चली गई|


रात के सात बजे होंगे, साईकिल की घंटी की आवाज आई| ये और कोई नहीं बल्कि चन्दर भैया और मामा थे|पिताजी और बड़के दादा (बड़े चाचा) गुस्से से लाल हो गए थे|

बड़के दादा: यहाँ क्या लेने आया है? निकल जा यहाँ से !!

उन्होंने चन्दर भैया को झिड़कते हुए कहा|

बड़की अम्मा (बड़ी चाची): तुझे जनम देके मैंने जीवन की सबसे बड़ी गलती की|

अब बड़के दादा ने मारने के लिए लट्ठ उठा लिया और चन्दर भैया की ओर दौड़े| ये नजारा मैं पीछे खड़ा देख रहा था| भौजी रसोई से निकली और मेरी बगल में आके खड़ी हो गईं| मुझे लगा की शायद डर से वो मेरा हाथ थामेंगी पर अचानक ही वो नेहा जो मेरे साथ मेरी ऊँगली पकड़ के खड़ी थी उसे ले के रसोई की ओर चल दीं| मैं पलट के उनके इस व्यवहार के लिए उन्हें आस्चर्यचकित नज़रों से देख रहा था|

बड़के दादा: तेरी हिम्मत कैसे हुई अपने छोटे भाई पे हाथ उठाने की| वो मुझे तुझसे ज्यादा प्यारा है..

उन्होंने चन्दर भैया को मारने के लिए लट्ठ उठाया.... मामा ने बीच बचाव करने की कोशिश की परन्तु बड़के दादा काबू में नहीं आ रहे थे| अंत में पिताजी ने उनको थामा और उनके हाथ से लट्ठ छीन के फेंक दिया|

पिताजी : भैया आप ये क्या कर रहे हो? अपने बेटे को मार डालोगे? वो नशे में था... होश नहीं था| सजा देनी है तो ऐसी दो की अगली बार शराब को हाथ लगाने से पहले दस बार सोचे|

चन्दर भैया रट हुए बड़के दादा के पैरों में गिर गए|

चन्दर भैया: पिताजी मुझे माफ़ कर दो, मैं नशे में था| मुझसे गलती हो गई, मैं आइन्दा कभी शराब को हाथ नहीं लगाउँगा|

बड़के दादा: माफ़ी मांगनी है तो अपने चाचा से मांग, मुझे तेरी सूरत भी नहीं देखनी|

ये कहते हुए बड़के दादा ने उन्हें झिड़क दिया|

चन्दर भैया: चाचा मुझे माफ़ कर दो| मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी!!!

पिताजी: ठीक है परन्तु कसम खाओ की आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाओगे|

चन्दर भैया: मैं अपनी माँ की कसम खाता हूँ की आज के बाद शराब को कभी हाथ नहीं लगाउँगा|

अब चन्दर भैया मेरी ओर बढ़ने लगे, उन्हें देखते ही कल सुबह हुए दृश्य आँखों के सामने आ गए| खून खौलने लगा, मन तो किया की लट्ठ से उनकी हड्डियां तोड़ दूँ|

चन्दर भैया: मानु भैया, मुझे माफ़ करदो!!! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई| आप जो सजा दो उसके लिए मैं तैयार हूँ|

ये कहते हुए वो मेरे पाँव छूने लगे| मैंने उन्हें रोक और कहा: "भैया चाहता तो मैं भी आप पर हाथ उठा सकता था| परन्तु सिर्फ भौजी की वजह से मैंने कुछ नहीं करा और चुप-चाप सहता रहा| मैं आपको केवल एक ही शर्त पे माफ़ करूँगा, अगर आप कसम खाओ को आगे से कभी भी आप नेहा या भौजी पर हाथ नहीं उठाओगे|"

मेरी बात सुनके सब स्तब्ध थे, पर फिर सबने इस बात का समर्थन किया|

चन्दर भैया: मैं अपनी माँ की कसम खता हूँ की आज के बाद कभी भी मैं अपनी पत्नी और बच्ची पर हाथ नहीं उठाऊँगा|

मामा: मुन्ना जरा देखें तो तुम्हारे घाव कैसे हैं?

मैं: जी अब काफी बेहतर हैं|

भौजी अब भी सहमी सी कड़ी थीं और नेहा तो बिलकुल भौजी के पीछे ही दुबक गई थी| भोजन का समय था इसलिए मामा, चन्दर भैया, अजय भैया, पिताजी और बड़के दादा सब हाथ-मुँह धो के भोजन के लिए बैठ गए| मैं कुऐं के पास घूम रहा था, तभी नेहा भागी-भागी मेरे पास आई:
"चाचू चलो खाना खा लो?"

मैं: अभी नहीं मैं बाद में खाऊँगा| तुम जाओ खाना खाओ और जल्दी सो जाओ|

नेहा: नहीं चाचू मम्मी ने कहा है की आप को साथ ले कर आऊँ|

मैंने सोचा की शायद भौजी को मुझ से कोई बात करनी होगी| इसलिए मैं नेहा के साथ चल दिया|
मैंने भौजी से खुसफुसा के कहा की मैं आपके साथ ही भोजन करूँगा तो उन्होंने ना में सर हिला दिया| अब मैं बहुत परेशान हो चूका था, पहले तो स्नानघर में भौजी का निराश होना और अब उनका मेरे साथ भोजन करने से मन कर देना| ये चिंता मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी| मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा परन्तु ये तो स्पष्ट था की मेरे चेहरे के भावों से वो समझ ही चुकीं थी की मेरा मूड ख़राब है|बेमन से खाना खाया और अपने बिस्तर पे लेता आसमान में तारे देखने लगा| शाम को जो भी हुआ उसका एक सुखद पहलु भी था, की भैया को मेरे और भौजी के रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चला| क्योंकि अगर पता होता तो वो सब कुछ सच कह देते और फिर मेरी जो तोड़ाई होती उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती| मैं भौजी का इन्तेजार करता रहा..... और नींद कब आ गई पता ही नहीं चला|


उमीदों वाली सुबह हुई, मैंने सोच लिया था की मैं किसी भी हालत में भौजी से पूछ के रहूँगा की आपने मुझसे बोल-चाल क्यों बंद कर रखी है| परन्तु मौका मिले तब ना, सुबह-सुबह का समय था तो सब घरवाले रॉयस के आस-पास ही मंडरा रहे थे| मैं नहा-धो के तैयार हो गया और चाय पीने आ गया,

मैं: भौजी चाय देना?

भौजी: ये लो .. नेहा बेटा सुनो तुम भी चाय पी लो|

इतना कह के भौजी चलीं गईं, मुझे ऐसा लग रहा था की वो मुझसे नजर चुरा रहीं है| नौ बजे तक सभी खेत चले गए, अब घर पे केवल भौजी, मैं, नेहा, माँ और पिताजी थे| अब माँ-पिताजी को कैसे बीजी करूँ? मैं अकेला ही कुऐं के आस-पास घूमने लगा, अब माँ-पिताजी को तो बिजी करने का कोई उपाय सूझ नहीं रहा था| उधर बड़े घर में, माँ कपडे समेट रही थी और पिताजी बाहर किसी से बात कर रहे थे| भौजी मुझे रसोई से अकेला टहलता हुआ देख रही थीं और उहोने नेहा को मुझे बुलाने भेजा| मैं बहुत खुश हुआ की चलो कम से कम मुझे बुलाया तो सही|

भौजी: मानु.... नाराज हो?

मैं: नाराज होने का हक़ है मुझे?

भौजी: प्लीज ऐसा मत कहो?

मैं: तो बताओ की आपको कल क्या हो गया था? पहले स्नान घर में आप एक डैम से उदास हो गए| फिर कुश देर बाद आपने कोई भयानक सपना देखा, मुझसे लिपट के इतनी बुरी तरह रोये| और फिर आपका मेरे से ऐसे सलूक करना जैसे मैं कोई अजनबी हूँ?

भौजी: दरअसल मैं कोशिश कर रही थी की तुम से दूर रह सकूँ| कुछ घंटों के लिए ही सही परन्तु मैं तुम्हें बता नहीं सकती कल रात मैं कितना तड़पी हूँ, कितना रोइ हूँ!!!

मैं: मुझसे दूर रहने की कोशिश? ठीक है मैं खुद ही आपसे दूर चला जाता हूँ|

मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ थामा और मुझे रोका और रोने लगी|

भौजी: मानु प्लीज मुझे छोड़ के मत जाओ, कुछ घंटे तुम्हारे बिना .... मेरा बुरा हाल हो गया| मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती.. मैं मर जाऊँगी|

मैं: आपको पता है कल मुझे कैसा लगा? ऐसा लगा मानो मैं कोई अजनबी हूँ जिससे से बात करने से भी आप कतरा रहे हो|

भौजी: मानु कल मैंने एक बहुत ही भयानक सपना देखा|

मैं: कैसा सपना?

भौजी: की तुम मुझे छोड़के शहर चले गए और अब वापस कभी नहीं आओगे|

मैं: वो तो सिर्फ एक सपना था| मैंने आपसे अलग कैसे रह सकता हूँ, साल में एक बार ही सही पर आऊँगा जर्रूर|

भौजी: तुम नहीं आओगे!

मैं: आपको कैसे पता?

भौजी: तुम अब बड़ी क्लास में हो कल को तुम बोर्ड की परीक्षा दोगे| फिर तुम्हें कॉलेज में एडमिशन मिलेगा, अब कॉलेज में तो दो महीने की गर्मियों की छुटियाँ नहीं होती जिनमें तुम मुझे मिलने आओगे| और चलो आ भी गए तो कितने दिन? दो दिन या हद से हद तीन दिन रुकोगे और फिर पूरे एक साल बाद आओगे वो भी शायद!!! तुम्हारे नए दोस्त बनेंगे, नई लड़कियाँ मिलेंगी जो तुम्हें पसंद करेंगी और शायद तुम्हें उनसे प्यार भी हो जायेगा और तुम मुझे भूल जाओगे| फिर तुम्हारी शादी, बच्चे और धीरे-धीरे ये यादें तुम्हारे मन से भी मिट जाएँगी| पर मेरा क्या होगा? मैंने तुम्हें अपना पति माना है? अपने आप को तुम्हें समर्पित कर चुकी हूँ| मैं ये पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे काटूंगी?

मैं: नहीं भौजी ऐसा नहीं हो सकता, मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| आपको मेरे प्यार पे विश्वास नहीं?

भौजी: विश्वास है परन्तु चाचा-चाची कभी न कभी टी तुम्हारी शादी कराएँगे, तब क्या?

मैं: अगर मेरे बस में होता तो मैं कभी शादी नहीं करता| परन्तु मुझे दुःख है की माँ-पिताजी के ख़ुशी के लिए मुझे कभी न कभी शादी तो करनी पड़ेगी| पर आप यकीन मानो मैं अपनी पत्नी को कभी भी वो प्यार नहीं दे पाउँगा जो मैं आपको देना चाहता हूँ| वो कभी भी आपकी जगह नहीं ले सकती!!! इस समस्या का कोई उपाय नहीं है!!!

भौजी: उपाय तो है|

मैं: क्या?

भौजी: अगर मैं तुम से कुछ माँगू तो तुम मुझे दोगे?

मैं: हाँ बोलो?


कहानी जारी रहेगी....



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