Friday, July 11, 2014

FUN-MAZA-MASTI अजनबी

FUN-MAZA-MASTI


अजनबी


 मैं शुभ रोहतक हरियाणा से एक बार फिर हाजिर हूँ एक सच्ची और पागल चुदाई की कहानी लेकर। /> ये कहानी मैं मेरे एक   मित्र की प्रार्थना पर लिख रहा हूँ। आगे उसी की जुबानी।
दोस्तो, मेरा नाम अर्जुन है, मैं सोनीपत हरियाणा से हूँ। यह बात कोई एक साल पहले की है, मुझे अपने दोस्त की शादी में जाना था तो सोनीपत बस स्टैंड पर काफी देर से बस की प्रतीक्षा कर रहा था।
काफी भीड़ थी, वहाँ सभी बस की प्रतीक्षा में थे। वहीं पर एक हसीन औरत मुझे बार बार देख कर मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी।
पहले तो मैंने अपनी नजर का धोखा समझा लेकिन मेरी ही तरफ़ मुस्कुरा रही थी।
तभी बस आ गई और सभी बस की तरफ भाग लिए। काफी भीड़ हो गई बस में भी, मैंने भी एक सीट पर अपना कब्ज़ा बना लिया और बस चल पड़ी।
तभी मैंने देखा कि वो औरत खड़ी थी, उसे सीट नहीं मिली लेकिन उसके साथ एक बूढी औरत थी उसको किसी ने अपनी सीट पर बैठा लिया था।
मैंने उसकी ओर इशारा किया और अपनी सीट पर थोड़ी जगह बना कर बैठा लिया।
मैंने उससे बात करना चालू कर दिया, बातो। से पता चला कि उसका नाम सोनिया है।
दोस्तो, मैं आपको बता दूँ कि जैसा उसका नाम प्यारा था उतनी सुन्दर भी थी।
वह अपनी मौसी के साथ उनके घर जा रही थी बहादुरगढ़।
मैंने उसको कहा- मुझसे दोस्ती करोगी?
तो वो हंस कर कहने लगी- मैं शादीशुदा हूँ।
मैंने उसको कहा- क्या शादीशुदा औरत या मर्द को दोस्ती करने का हक नहीं होता?
इस पर उसने कहा- ऐसा भी मैंने नहीं कहा।
बातों बातों में पता ही नहीं चला कि कब उसका स्टॉप आ गया। मैंने एक पर्ची पर अपना नंबर लिख कर उसे दे दिया और वो हंस कर चली गई।
एक बार तो मेरा भी दिल किया कि उसके साथ ही बस से उतर जाऊँ लेकिन मुझे अपने दोस्त की शादी में भी जाना था।
मैंने शादी अटेंड की ओर घर वापिस आ गया।
तीन दिन के बाद मेरे पास एक कॉल आया, वह सोनिया ही थी।
हमारी काफी बातें होने लगी। उसने बताया कि उसके 2 बच्चे हैं और उसका पति दारु पीकर उसे मारता है।
उसने यह भी बताया कि उसके मौसा-मौसी सरकारी कर्मचारी हैं, वो सुबह नौकरी पर चले जाते है और वो अकेली रहती है।
मैंने उससे पूछा- फिर तो हम मिल भी सकते हैं?
लेकिन उसने मना कर दिया मिलने से पर मैंने दो-तीन दिन में उसे मना लिया।
उसने कहा- तुम 12 बजे के आस पास आ जाओ, तब दिन की गर्मी में कोई बाहर नहीं निकलता, किसी को शक भी नहीं होगा।
मैं उसके बताए हुए पते पर समय अनुसार पहुँच गया और उसको फ़ोन किया।
वो बाहर दरवाजे पर मेरा इंतजार कर रही थी।
उसने काला सूट पहना हुआ था। काले सूट में उसका पूरा बदन हीरे की तरह चमक रहा था। उसका बदन भी भगवान् ने फुर्सत से ही बनाया होगा।
और एक वो चूतिया इसका पति जिसको इसकी कदर ही नहीं।
एकदम काम की देवी सी लग रही थी वो, दिल तो कर रहा था कि बस लिपट जाऊँ और खूब प्यार करूँ लेकिन मैंने थोड़ा रुकना सही समझा।
उसने मुझे सोफे पर बैठाया और पानी ले आई।
वो चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई।
मुझसे अकेले रहा नहीं गया और मैं भी रसोई में ही उसके पास चला गया। वो चाय बना रही थी, मैं उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया और पीछे से ही उसको बाहों में भर लिया।
वो इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, मुझे कहने लगी- थोड़ा रुक जाओ, इतनी भी क्या जल्दी है।
पर मैं कहाँ रुकने वाला था, उसकी गर्दन पर चुम्बन करने लगा और आगे हाथ ले जाकर उसकी मस्त चूचियों को मसलने लगा।
वो भी आहें भरने लगी और मैं भी गर्म होने लगा..
वो चाय को छोड़ मेरी तरफ घूमी और मेरे होंठों को चबाने लगी। मैं तो चाहता ही यही था कि वो मेरा पूरा साथ दे बिना शरमाए।
हम एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे जैसे बरसों के प्यासे हों..
चुम्बन करते करते वो मुझसे नागिन की तरह लिपट गई और मैं उसको कस के बाहों में भर के पूरे बदन को कस के सहलाने लगा।
उसकी आँखें बंद होने लगी थी।
मैंने समय की नजाकत को समझा और सोचा कि सब्र का फल मीठा होता है, क्यों ना थोडा सब्र रखा जाए।
मैं उसको अपने से अलग करके बोला- पहले चाय बना लो, फिर बेडरूम में चलते हैं।
उसने बात मानते हुए चाय बनाई और बेडरूम में ले आई।
हमने चाय पीते हुई काफी सारी बातें की। उसने अपने बारे में बताया की उसका पति कैसे उसे पीटता और तंग करता है।
कुछ मैंने भी अपने बारे में बताया।
इन सब बातों में हम एक दूसरे के और करीब आ गए।
मैंने भी अब समय ख़राब न करते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसने भी मुझे अपने बाहुपाश में कस लिया।
बाहों में कसते ही उसकी चूची मुझे चुभने लगी जैसे कोई कोई सख्त चीज हम दोनों के बीच आ रही है।
मैं भी होंठों में होंठ भर के होंठों का सारा का सारा रस चूसता चला गया और वो भी ज़ालिम मेरे होंठों को खाने पर तुली हुई थी जैसे कोई मन की मुराद पूरी हो रही हो।
मैंने चुम्बन करते हुए उसके उभारों को दबाने लगा जो तन कर सख्त हो गये थे। मेरे कस कर दबाने पर उसके मुख से काम पीड़ा की मनमोहक आवाजें निकल रही थी जिनको शब्दों में बयाँ कर पाना नामुमकिन है। आप समझ सकते हो उस समय कैसा हाल होता है।
एक हाथ से मैं उसकी चूचियो को दबा रहा था और एक हाथ उसके पूरे बदन को सहला रहा था।
अब रुक पाना मुश्किल था, उसकी साँसें भी ट्रेन के इंजन से भी ज्यादा तेज़ चल रही थी।
मैंने देर न करते हुए उसके कपड़े उतारने शुरु कर दिए और उसने मेरे।
अब हम दोनों अपने प्राकृतिक रूप में आ चुके थे, जैसे एक शिशु जन्म के समय होता है बिल्कुल नंगा निर्वस्त्र।
हम दोनों का सब्र का बाँध टूट गया और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे, दोनों इतने गर्म हो चुके थे कि अब अपने आप पर काबू रख पाना मुश्किल था।
मेरा भी मन था कि बस उसको चोद दूँ लेकिन कह नहीं पाया।
इससे पहले उसी का सब्र टूट गया और मेरा लौड़ा पकड़ कर अपनी चूत के मुख पर रख दिया। मैंने भी थोड़ा और तड़पाने के लिए उसकी चूत के उपर से ही कई बार रगड़ लगाई।
उसके मुँह से काम की सीत्कारें निकलने लगी पर वो कह कुछ ना पाई पर मैं समझ चुका था।
मैंने देर न करते हुए अपने लंड महाराज को आदेश दिया और वो उसकी चूत में घुसता चला गया। आनन्द से मेरी भी आँखें बंद हो रही थी और मैं अंदर डालता चला गया और उसने भी आआह्ह्ह्ह आआह्ह्ह करते हुए मेरे पूरे लंड को अपनी योनि में समां लिया।
बस फिर क्या था, 2-4 धक्कों में ही वो अपने चूतड़ उठा उठा कर मेरा पूरा साथ दे रही थी, जैसी मुझे उम्मीद थी वो बिल्कुल ऐसा ही कर रही थी।
मैं धक्कों पे धक्के लगाता चला गया और वो मेरा साथ देती चली गई।
उसने अपने आप को मुझे समर्पित कर दिया था पूरी तरह, इतना आनन्द आ रहा था कि बता भी नहीं सकता। उसके मुख से काम भरी आवाजें निकल रही थी ‘आआआअ  आआह्ह आआन्न’ वो मुझे और भी जोशीला बना रही थी।
मैंने भी धक्के लगाने में और जोर लगाया, इन धक्कों के दौरान वो मुझे पागलों की तरह प्यार कर रही थी और मैं भी धक्के लगाने के साथ साथ उसके मम्मों को  चूस रहा था जो सेक्स को और भी रंगीन बना रहे थे।
कभी उसके होंठों का रसपान करता कभी उसके चूचों का मैं, मदहोशी का आलम हम दोनों पर छाया हुआ था और इस दौरान वो चिल्ला पड़ी- …आआ… आआहआ…
मैं गैईईई… आअह्ह और वो झड़ गई।
और 5-7 धक्कों के बाद मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया और मैंने अपने माल से उसकी चूत को तृप्त कर दिया।
हम दोनों के चेहरों पर तृप्ति और थकान के भाव साफ़ दिख रहे थे।
हम दोनों ने आपस में कोई बात नहीं की और एक दूसरे को बाहों में ले कर साथ लेट गये। पता ही नहीं चला कि आँख कब लग गई और हम दोनों सो गए।
शाम को आँख खुली और हमने समय देखा और जल्दी जल्दी में उठे क्योंकि उसकी मौसी के आने का समय हो चला था।
हम दोनों ने कपड़े पहने और एक बार फिर से हमने प्यार से एक दूसरे को कस कर बाहों में लिया और एक लम्बी चुम्मी ली।
मैंने ‘लव यू यार !’ कह के उससे अलविदा ली और फिर मिलने का वायदा किया।
उसका मन नहीं था मुझे अपने से दूर करने का, पर क्या करे।
उसके थोड़े समय बाद भी हमारी बातें हुई लेकिन फिर उसने अपना नंबर बदल लिया क्योंकि उसका पति उसे अपने साथ ले जा चुका था।
उस अजनबी हसीना और उसके प्यार को कभी भी नहीं भूला सकता।
तो दोस्तो, कैसी लगी मेरे प्यार की एक छोटी सी दास्ताँ?




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