Sunday, July 13, 2014

FUN-MAZA-MASTI जरुरत मन्द--6

FUN-MAZA-MASTI
 जरुरत मन्द--6

 थोड़ी देर बाद वो मेरी तरफ़ मुड़ गयी। अब उसका चेहरा भी मेरे पैरों की ओर था। उसने मेरे पैरों को ज़ोर से पकड़ का
अपने बूब्स से रब करना शुरु कर दिया। फिर मैने भी उसके पैरों को सहलाते हुए जांघ तक जा पहुंचा और जब मैं उसकी
चूत पर हाथ रखा तो ऐसा लगा मेरा हाथ जल गया।

उसकी चूत भट्टी की तरह गरम हो रही थी और गरम गरम चूत बिल्कुल गीली हो रही थी। मैने उसकी चूत में अपनी उंगलियां
डालनी शुरु कर दी, उसकी चूत पर छोटे छोटे बाल थे जिनको मैं अपनी उंगलियों से सहला रहा था। फिर धीरे धीरे कम्बल के
अन्दर ही मैं अपना मुंह उसके चूत तक लेकर गया और उसकी चूत को पीने की कोशिश करने लगा। उसने अपने एक पैर को
उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया।

अब उसकी बुर बिल्कुल मेरे मुंह में थी मैं अपनी जीभ को उसके बुर के चारों तरफ़ घुमाना शुरु कर दिया वो भी अपनी कमर धीरे
धीरे हिलाना शुरु कर दी। मैने भी अपने पैर को उठा कर अपना लंड उसकी तरफ़ बढ़ा दिया। वो बड़े प्यार से लंड को चूसने लगी।
हम अब बिल्कुल ६९ की पोजिशन में थे लेकिन ऊपर नीचे नहीं थे बल्कि साइड बाइ साइड थे और हम जो भी कर रहे थे धीरे धीरे
कर रहे थे क्यों कि ट्रेन में किसी को पता न चले।

वो अब कुछ ज्यादा ही ज़ोर से अपने कमर को उठा का अपने बुर को मेरे मुंह में रगड़वा रही थी। अचानक उसने मेरे सर को अपने हाथ
से अपनी बुर में ज़ोर से दबा दिया और कमर को मेरे मुंह में दबा दिया और ढीली पर गयी। मैं उसके बुर की गरमी धीरे धीरे अपने
मुंह से चाट चाट कर साफ़ किया। वो अब भी मेरे लंड को चूस रही थी। मैं भी अब जोर जोर से अपने लंड को उसके मुंह में घुसा रहा।
मेरे लंड का पानी भी अब बाहर निकलने वाला था मैं ने ज़ोर से उसके बुर में अपना मुंह घुसा दिया और मेरे लंड से पानी निकलना शुरु
हुआ तो ८-१० झटके तक निकलता ही रहा। उसने मेरे लंड के पानी को पूरा अपनी मुंह में लेकर पी गयी।

थोड़ी देर के बाद मैं उठा और टोइलेट गया। मैने अपनी पैंट उतार दी फिर अपनी चड्ढी भी उतार दी। अपने लंड को अच्छी तरह से साफ़
किया और पैंट पहन ली। वापस आकर मैने अपनी चड्ढी बैग में डाल दी। फिर वो भी टोइलेट जाकर आयी। और मेरी तरफ़ मुंह करके
सो गयी और कम्बल ढक ली। अब उसके बूब्स मेरी छाती से लग रहे थे। मैने उसके ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। वो ब्रा नहीं पहनी थी।
ब्रा को शायद टोइलेट में ही उतार कर आयी थी।

मैं उसके गोल गोल बूब्स को अपने हाथ से दबाने लगा और उसके निप्पल को मुंह में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। उसने अपने एक हाथ
से अपनी साड़ी को उठा कर कमर के ऊपर रख लिया। अब उसकी कमर के नीचे कुछ भी नहीं था मेरा हाथ उसके मक्खन जैसी जांघों को तो
कभी उसके बुर को प्यार से सहला रहा था और हेमा अपने हाथों से मेरे लंड को सहला रही थी। ऐसा काफ़ी देर तक चलता रहा।

मेरा लंड एक बार फिर से उसकी बुर की गहराई को नापने के लिये मचलने लगा था। मैने धीरे से हेमा से पलट कर सोने को कहा। हेमा
धीरे से पलट गयी। अब उसकी नंगी गांड की दरार मेरे लंड से चिपकी हुई थी। मैने धीरे से अपने लंड को हाथ से पकड़ कर पीछे से उसकी
गांड के छेद में रखा और एक हल्का सा धक्का मारा। मेरा लंड उसकी गांड में आधा घुस गया लेकिन वो दर्द से कराह उठी। लेकिन वो चीखी
नहीं। वो जानती थी कि ट्रेन में सब सो रहे लोगों को शक न हो जाये।

मैने धीरे से एक और धक्का मारा और लंड पूरा का पूरा अन्दर घुस गया। फिर मैं एक हाथ से उसकी चूचियों को मसलने लगा। हेमा की
चिकनी चिकनी गांड मेरे पेट से रगड़ खा रही थी। और मैं उसे चोदे जा रहा था। फिर चार पांच मिनट के बाद मैने अपनी चुदाई की स्पीड
बढ़ा दी। और जोर जोर से हेमा को चोदने लगा। हेमा भी अपनी गांड हिला हिला कर चुदवा रही थी।

अचानक हेमा अपनी गांड को मेरे लंड पे जोर से दबा कर रुक गयी। मेरा लंड भी पिचकारी की तरह पानी छोड़ना शुरु कर दिया। लंड और
बुर दोनो का पानी गिर जाने के बाद दोनो शान्त हो गये। लेकिन हमारी चुदाई सुबह तक चलती रही। हमने रात भर में सात बार चुदाई
की। और किसी को पता भी नहीं चला।

फिर सुबह मेरा स्टेशन आ गया। और मैं उतर गया। उसे आगे जाना था तो वो चली गयी और जाते जाते अपना फोन नम्बर भी दे गयी।



 मैं भी आटो पकड कर अपने रूम पर आ गया । और आते ही बिस्तर पर गिरकर सो गया । सुबह 11 बजे का सोया सोया
मैं शाम को 7 बजे उठा जब मेरे साथ में ही काम करने वाले एक दोस्त अनिल का फ़ोन आया तो मेरी आंख खुली और उससे
बात करके मै होटल पर खाना खाने के लिये चल दिया ।

तभी मेरे मकान से जिसमे कि मैं किराये पर रहता हूं उसके 2 मकान आगे वाली एक आन्टी ने मुझे आवाज लगायी जय बेटा जरा
इधर आओ । मैं उनके पास गया और उनको नमस्ते किया। और फ़िर उनसे औपचारिक सी बात की फ़िर उनसे पुछा बतओ आन्टी
जी आपने मुझे क्यूं बुलाया है तो उन्होने कहा बेटा तुम्हारी हिंदी तो काफी अच्छी होगी, मैने कहा जी मेरी हिन्दी ठीक ठाक ही है मैने
अपनी ग्रेजुएशन हिन्दी से ही की है इतना सुनते ही उनकी आखो में चमक आ गयी और बोली तुम मेरी बेटी नेहा को हिंदी पढ़ा दिया
करो। तुम तो जानते ही हो कि वो हिंदी माध्यम की छात्रा है। गणित, विज्ञान तो कोचिंग में पढ़ लेती है हिंदी पढ़ाने वाला कोई नहीं
मिलता। हिंदी में उसके नंबर भी बहुत कम आते हैं।

मैंने कहा- आन्टी, मेरे पास खुद ही इतने सारे काम है करने के लिये कि समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मैं कैसे उसे
समय दे सकूँगा। और वेसे भी दिल्ली में हिन्दी कोई कठिन विषय नही है तो वो बोली बेटा मेरी बेटी पढने में थोडी सी कमजोर है तो
उसे अपनी मौसी के यहा से फ़ार्म भरवाया हुआ है उत्तर प्रदेश से।

आन्टी फ़िर से बोली- बेटा, रोज मत पढ़ाना, कभी सप्ताह में एक दिन रख लो। वैसे भी हिंदी ऐसा विषय है कि सप्ताह में एक दिन भी
किसी से मार्गदर्शन मिल जाए तो विद्यार्थी स्वयं ही तैयारी कर लेता है। मैं बोला- ठीक है आन्टी, रविवार को मैं उसे एक घण्टा पढ़ा दिया
करूँगा।

आन्टी खुश हो गई, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि बेटा खूब तरक्की पाओ अपनी जिन्दगी में।
उसके बाद मैं खाना खाकर घर वापस आया और फ़िर से सो गया



 और सुबह उठ्कर जल्दी से तैयार होकर आफ़िस पहुंच गया। जाते ही मुझे बाँस ने अपने केबिन में बुलाया और बोले
की तुम्हे आज से ही मार्केट का काम छोड कर आफ़िस का काम सम्भालना है तो मैने कहा ठीक है सर तो वो बोले काम
काफ़ी ज्यादा है तो तुम रात को रूककर भी काम करना तो मैने कहा सर रात को तो मुझे घर जाने के लिये कोई सवारी
नही मिलेगी तो मै घर कैसे जा पाउंगा तो वो बोले ठीक है अभी जाकर काम करो शाम का शाम को बताउगा तो मै भी ठीक है
सर कहकर अपनी सीट पर आ गया और काम करना सुरु कर दिया।

शाम को करीब 5 बजे सर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और कहा कि जय रात को तुम आफ़िस मे तो रुक नही
सकते लेकिन क्या घर पर भी कुछ नही कर सकते हो तो मैने कहा सर मेरे पास घर पर कोई कम्प्यूटर नही है तो वो
बोले मुझे पता है अगर में तुम्हे एक लैपटाप दे दू तो तुम्हे काम करने से कोई दिक्कत तो नही होगी मैने कहा सर
कोई दिक्कत नही होगी तो फ़िर सर ने कहा की ये लैपटाप साईड में रखे एक लैपटाप की तरफ़ इशारा करते हुए
कहा कि आज से तुम्हारा है और एक प्रिन्टर स्टोर से निकलवा लो और अपने घर ले जाओ मै बहुत खुश हुआ .

मैने कहा सर लेकिन मै अकेला इन्हे लेकर कैसे जाउन्गा तब उन्होने अनिल को बुलवाया और उससे ये सामान मेरे घर तक
छुडवाने को कहा तो अनिल ने कहा ठीक है सर। और मै और अनिल सामान लेकर घर आ गये मुझे घर छोड कर अनिल
अपने घर चला गया। ऐसे ही बिना चूत के दिन कटते रहे ट्रेन में चुदाई के बाद रविवार तक मुझे कोई भी चूत नसीब नही हुई तो

रविवार को मैं "मुक्तिबोध" की लंबी कविता "अँधेरे में" पढ़कर समझने की कोशिश कर रहा था जब दरवाजे पर दस्तक हुई।
'यहाँ कौन आ गया?' सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। सामने स्कर्ट और टॉप पहने नेहा खड़ी थी। इसके पहले मेरी दो तीन बार उससे
औपचारिक बातचीत भर हुई थी।

वो बोली- भैय्या, मैं हिंदी पढ़ने के लिए आई हूँ। मम्मी ने कहा है रविवार को मैं आपसे हिंदी पढ़ लिया करूँ।

मैं बोला- आओ बैठो, किताब लाई हो क्या?

उसने अपने हाथ में थमी किताब मुझे थमा दी। किताब पर उसने अखबार चढ़ाया हुआ था, किताब थी काव्यांजलि, जो उन दिनों
उत्तर प्रदेश में विज्ञान संकाय के छात्रों को सामान्य हिंदी विषय में पढ़ाई जाने वाली किताबों में से एक थी।

परीक्षा में इसका एक पूरा पैंतीस अंकों का पर्चा होता था। मैंने उसे हिंदी में ज्यादा नंबर पाने के कुछ तरीके बताए, सुनकर वो खुश
हो गई। फिर मैंने कबीर के कुछ दोहों की व्याख्या की और उसके बाद मैं बोला- आज के लिए इतना ही काफी है।

बाकी अगले सप्ताह।




रविवार की शाम को अनिल का मेरे पास फोन आया कि यार तुझे तो पता है की मेरी वाइफ़ रानी टीचर है। उस दिन
अनिल ने बताया की उसका प्रिंटर और यु पी एस खराब हो गया है और रानी को स्कूल के कुछ पेपर सेट करके स्कूल
में जमा करने हैं।

इसलिये वो मेरी मदद चाहता था, मेरे पास प्रिंटर और लैपटाप दोनो हैं। और वो मेरे रूम पर आ रहा है वह जब शाम को करीब
८:०० बजे आया तो मैं थोड़ा घबरा गया था कि दोनो कैसे आ गये मैने तो सोचा था कि अनिल अकेला ही आयेगा । अनिल को
थोड़ा ड्रिंक लेने की आदत है और उस दिन रविवार था तो उस समय वह थोड़ा ड्रिंक किये हुये था।

उससे मैने कहा कोई बात नहीं मैं टाइप कर देता हूं और तुम बोलो, तो रानी ने कहा कोई बात नहीं मैं बोल देती हूं, ये मैने ही बनाया
है तो गलतियां नही होंगी, क्योंकि उसको अच्छी टाइपिंग नही आती तो वह टाइप नहीं कर पायेगी। रानी मेरे बगल में कुरसी लगाकर बैठ गयी
वह इतना नज़दीक थी कि मैं उसकी सांसें महसूस कर सकता था।

कई बार उसके बाँडी से मेरी बाँडी छू रही थी और उसके लिप्स बिल्कुल मेरे करीब थे उसके गोरा रंग और स्लिम फिगर मुझे डिस्टर्ब कर
रहा था। अनिल भी पीछे बैठा था और मैं अपने पर किसी तरह कंट्रोल किये हुये था। पर रानी एकदम नोर्मल थी, उसे शायद ही मेरे बुरे
इरादों का अहसास हो रहा हो।

मैं थोड़ा नर्वस सा भी हो रहा था। मन तो कर रहा था कि उसकी एक पप्पी ले लूं और उसकी थाईस पर हाथ फ़ेरूं। उसके मीडियम साइज़
के टाइट बूब्स पर अपने लिप्स से चूमूं। पर ये सब उस समय सम्भव नहीं था, इस चक्कर में, मैं एक दो बार टाइपिंग करना ही भूल
गया। कभी कभी मैं उसके पूरे बदन को ही देखते रह जाता।





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