Friday, July 25, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरे पति और उनका परिवार-3

FUN-MAZA-MASTI

 मेरे पति और उनका परिवार-3

 मजा तो आना ही था...मेरा भाई मुझे साबुन लगा कर मुझे बुरी तरह गर्म चूका था,वह मेरी योनी को चाट ही रहा था की तुम्हारी बहाब कॉल बेल बजा दी, हम दोनों का मुड ऑफ़ हो गया, मैं उसे प्यासा छोड़ बाथरूम से निकली और जल्दी जल्दी साडी ब्लाउज पहन कर दरवाजे पर पहुंची, दरवाजा खोला तो पाया कि सामने गहरे गले के टॉप और घुटनों तक कि चुस्त स्कर्ट में अपनी उफनती जवानी लिये शिल्पा कड़ी थी,


मेरे इतना कहते कहते मेरे पति ने मुझे बाथरूम में ले जाकर मुझे फर्श पर उतार दिया और मुझे दीवार के सहारे खडा कर दिया, फिर मेरे होंठों को चूमने के बाद मेरे स्तनों को चूम कर बोले....

फिर...फिर क्या हुआ.....कहती रहो और मुझे इन झरनों से अपनी प्यास बुझाने दो, इतना कह कर उन्होंने फिर मेरे स्तन पर मुंह लगा दिया, मेरे शरीर में आग भरती जा रही थी,

मेरे हांथों ने उनकी टाई निकालने के बाद उनके कोट को भी उतार दिया था, अब शर्ट के बटन खुल रहे थे, शर्ट के बटन खोलते खोलते मैं बोली. उफ....उफ...शिल्पा ने भीतर आते ही रंगीन मजाक आरंभ कर दिये, मेरे महकते रूप की तारीफ़ करने लगी, मैं समझ गई की लड़की प्यासी है, मेरी बातों को....उफ...उफ...आहिस्ता आहिस्ता चूसिये इन्हें.... आप तो पागल हुवे जा रहे हैं...उफ... मेरे पति पागलों की भांति ही मेरे स्तनों का दोहन सा कर रहे थे, मेरे होंठों से सिसकारियां फूटने लगी थी, ऐसा लग रहा था जैसे नाभि में कोई तूफ़ान अंगडाई लेने लगा है, मैनें उत्तेजना से उत्तपन होने वाली सिसकारियों को अपने दांतों तले दबा कर एक लंबी सांस छोड़ी फिर कहना शुरू किया, शिल्पा को मैं चाय बनाने के लिए अपने साथ रसोई में ले गई तो उसने.....उफ.....ऑफ...ओफ्फो...
क्या कर रहे हैं आप....?क्या कोई ट्रेनिंग लेकर आये हैं कहीं से स्तनों के साथ इस तरह पेश आने की.......आज तो आप मेरे स्तनों को झिंझोडे डाल रहे हैं आज....मेरे इस तरह कहने से उन्होंने स्तन से मुंह हटा कर मेरे होंठ चूम कर मनमोहक ढंग से कहा- क्या तुम्हे मजा नहीं आ रहा, अगर मजा नहीं आ रहा है तो मैं इन्हें आहिस्ता आहिस्ता चूसता हूँ,

मजा तो बहुत आ रहा है, इतना आ रहा है की ऐसा लगता है जैसे मैं आज कण कण होकर बिखर रही हूँ.......ठीक है तुम ऐसे ही चुसो, मैनें उनकी शर्ट को उनकी बाजुओं से निकाल कर कहा,
तुम शिल्पा वाली बात तो बताओ...उन्होंने यह कह कर स्तन के निप्पल को फिर मुंह में ले लिया और अपने हांथों को मेरे नितंबों पर ले जाकर नितंबों की मालिश सी करने लगे,

मैं उनके पेंट की बेल्ट खोलते हुवे बोली...फिर एक ओह्ह..उफ...ऊई...फिर हाँ मैं..उफ....मैं कह रही थी की शिल्पा को मैं रसोई में ले गई तो उसने वहां पहुँचते पहुँचते ही मेरे ब्लाउज में हाँथ डाल दिया था और मेरे स्तनों को चूसने की इच्छा जाहिर की और यह भी बताया की अपनी सहेली के साथ लेस्वियन लव का आनंद लेती है, मेरी....उफ......ओह...अपने पति के द्वारा अपनी योनी में मौजूद भंगाकुर को मसले जाने से मेरे कंठ से कराह निकाल दी, उफ...ये शावर तो खोल लो....नहाना भी साथ साथ हो जायेगा, मैं इतना कह कर पुनः विषय पर आई...मेरे शरीर में मेरे भाई ने पहले ही कामाग्नि भड़का डाली थी, शिल्पा द्वारा स्तनों को पकड़ने मसलने और उसकी स्तन पान की इच्छा ने मुझे और उत्तेजित कर डाला था, उसे तबतक पता नहीं था...उफ...ओह...ओफ....मेरे पति अब मेरे स्तनों को छोड़ कर निचे पहुँच गए थे, उन्होंने मेरी योनी पर मुख लगा दिया था, अब वो मेरे भंगाकुर को चूसने लगे थे, मैं उनके बालों में अंगुलियाँ फंसा कर मुट्ठियाँ भींचने लगी, उनकी इस क्रिया ने मेरी नस नस में बहते रक्त को उबाल सा दिया था, मुझे अपनी उत्तेजना ज्वालामुखी का सा रूप लेती महसूस हुई, मुझे रोम रोम में फूटते कामानन्द के कई घूंट भरने पड़े,


सुनाओ न आगे क्या हुआ...मेरे पति ने अपना मुख मेरी योनी से पल भर के लिए हटा कर कहा,
तुम शावर खोलो मैं आगे बताती हूँ...मैं बोली और अपनी साँसों को संयत करने का असफल प्रयास करती हुई बोली

ओफ...फिर शिल्पा के सामने मेरा भाई आ गया, वह रसोई के बाहर खड़ा होकर पहले से हम दोनों को देख भी रहा था और हमारी बातें भी सुन रहा था, मेरा भाई सिर्फ अंडरवीयर में था,वह भी पहले से उत्तेजित था इसलिए उसका विस्तृत आकर में फैला लिंग अंडरवीयर में से भी उभरा उभरा दिखाई दे रहा था,शिल्पा की दृष्टि उसके अंडरवीयर पर टिक गई, मैं समझ गई की उसने अभी तक लिंग का दर्शन नहीं किया है, ओह...उफ आउच...ओह...इतनी कहानी सुनते सुनते ही मेरे पति ने अपने लिंग का मुंड मेरी योनी में प्रविष्ट करा दिया, वे शावर वह खोल चुके थे,



मैं उनके द्वारा हुवे लिंग प्रवेश से आवेशित होने लगी थी, मेरे हाँथ उनके कन्धों से पीठ तक बारी बारी से कस रहे थे, मेरी साँसें तीब्र हो रही थी, मादक सिसकियों की अस्फुट ध्वनियाँ रह रह कर मेरे कंठ से उभर रही थी,


मेरे पति ने लिंग का योनी में घर्षण करते हुए कहा....स्टोरी का क्या बना....आगे क्या तुमने अपने भाई से शिल्पा की प्यास बुझवा दी...ओह...कितना मजा आ रहा है शावर के निचे मैथुन करने में....उफ....वह लिंग को आगे तक ठोक कर बोले, उनके हांथों में मेरी पतली कमर थी, उनकी जांघें मेरी जाँघों से टकरा कर विचित्र सी आवाज पैदा कर रही थी,


हाँ...उफ....ओह.......ऊई मां....तुम क्या मोटा कर लाये हो अपने लिंग को...इससे आज ज्यादा ही आनंद मिल रहा है...., मुझे वाकई पहले से ज्यादा मजा आ रहा था, मैं फिर स्टोरी पर आई....बड़ा मजा आया था....शिल्पा को मेरे भाई ने पूरा मजा दिया था...खूब जोर जोर के धक्के मारे थे...मैंने बताया और लिंग प्रहार से उत्त्पन्न आनन्दित कर देने वाली पीड़ा से मेरे शरीर के रोयें रोयें में पुलकन थी, कंठ खुश्क हो गया था, मेरी जीभ बार बार मेरे होठों पर फिर रही थी,


थोडी देर में मेरे पति ने मेरी मुद्रा बदलवाई अब मेरी पीठ उनकी ओर हो गई ऑर मैनें जरा झुक कर दीवार में लगी नल को पकड़ ली, वह मेरी योनी से लिंग निकाल चुके थे ऑर अब मेरी गुदा(गांड) में प्रवेश करा रहे थे, गुदा में लिंग पहले ही प्रहार में प्रवेश हो गया, उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर खूब शक्ति के साथ धक्के मारे ऑर गुदा में ही स्खलित हो गए, मैं भी स्खलित हो चुकी थी, फिर हम दोनों एक दुसरे से लिपट कर देर तक नहाते रहे,


मेरे पति को अब तीस पैंतीस दिन तक किसी टूर पर नहीं जाना था, उन्होंने शिल्पा वाली स्टोरी कई दिनों तक मुझसे बड़ी बारीकी से सुनी थी ऑर फिर हसरत जाहिर की थी की काश इस बार शिल्पा जब घर आये तो वो भी मौजूद हों, इस बात पर अफ़सोस भी जताया था की जब शिल्पा वाली घटना घटी तब वह वहाँ क्यों नहीं थे,


वे इस बार टूर से सिर्फ सौन्दर्य प्रसाधन नहीं लाये थे बल्कि कई इंग्लिश मैगजीन भी लाये थे जिनका विषय एक ही था सेक्स, उन मैगजीनों में अनेक भरी सेक्स अपील वाली मोडल्स के उत्तेजक नग्न व अर्धनग्न चित्र थे , कुछ कामोत्तेजक कहानियां व उदाहरण आदि थे तथा दुनिया के सेक्स से संबंधित कुछ मुख्य समाचार थे,


मै कई दिनों तक खाली समय में उन मैगजींस को देखती व पढ़ती रही थी,
दरअसल मेरी ससुराल इस शहर से चालीस किलोमीटर दूर एक कस्बे में है, जहां से कभी किसी काम से मेरी ससुराल के अन्य लोग आते रहते हैं, कभी मेरे ब्रिद्ध ससुर तो कभी ननद शिल्पा कभी मेरा एक मात्र देवर जो शिल्पा से चार वर्ष बड़ा है, अगर शहर में उनमे से किसी को शाम हो जाती है तो वे हमारे घर में ही ठहरते हैं,


एक दिन फिर मेरी ससुराल से एक शक्श आया, वह मेरा देवर था, शाम के पांच बजे वह हमारे घर आया था, मेरे पति घर पर नहीं थे, ऑफिस से साढे पांच या छः बजे तक ही आते थे,
मैं सोफे पर बैठी इंग्लिश मैगजीन पढ़ रही थी, तभी कॉल-बेल बजी, मैनें मैगजीन को सेंटर टेबल पर डाला ऑर यह सोचते हुवे दरवाजा खोला की शायद मेरे पति आज ऑफिस से जल्दी आ गए हैं, लेकिन दरवाजा खोला तो पाया की मेरा देवर जतिन सामने खडा है, उसने कुर्ता पायजामा पहन रखा था, वह कुर्ता पायजामा में काफी जाँच रहा था,


भाभी जी नमस्ते....उसने कहा ऑर अन्दर आ गया,


कहो जतिन आज कैसे रास्ता भूल गये, यम तो अपनी भाभी को पसंद ही नहीं करते

शायद.....मैनें दरवाजे को लोक्ड करके उसकी ओर मुड़ कर कहा,

ऐसा किसने कहा आपसे...वह सोफे पर बैठ कर बोला,

वह टेबल से उस मैगजीन को उठा चूका था जिसे मैं देख रही थी,

मेरे दिल में धड़का हुआ, मैगजीन तो कामोत्तेजक सामग्री से भरी पड़ी थी, कहीं जतिन उसे पढ़ न ले, मैनें सोचा लेकिन फिर इस विचार ने मेरे मन को ठंडक पहुंचा दी की अगर यह मैगजीन पढ़ ले तब हो सकता है उसकी मर्दानगी का आज टेस्ट मिल जाए, इसमें भी तो जोश एकदम फ्रेश होगा, मैं निश्चिंत हो गई,

कौन कहेगा...मैं जानती हूँ....अगर मैं तुम्हे पसंद होती......तो क्या तुम यहाँ छः छः महीने में आते....आज कितने दिनों बाद शक्ल दिखा रहे हो....पुरे साढे पांच महीने बाद आये हो , तब भी सिर्फ एक घंटे के लिए आये थे, मैं उसके सामने सोफे पर बैठ कर बोली,

मैनें ब्रेजियर्स और पेंटी पहन कर सिर्फ एक सूती मैक्सी पहन राखी थी, जिसके गहरे गले के दो बटन खुले हुए भी थे, वहां से मेरे गोरे गोरे सिने का रंग प्रकट हो रहा था,

मैनें देखा की जतिन ने चोर नजरों से उस स्थान को देखा था फिर नजर झुका कर कहा - ये तो बेकार की बात है....आओ जानती ही हैं की मैं कितना बीजी रहता हूँ, कंप्यूटर कोर्स, पढ़ाई और फिर घर का काम.....चक्की सी बनी रहती है, आज थोडा टाइम मिला तो इधर चला आया, वो भी शिल्पा ने भेज दिया...क्योंकि भाई साहब ने फोन किया था, उन्होंने शिल्पा को बुलाया था कहा था की उसे कुछ कपडे दिलवाने हैं, शिल्पा को तो आज अपनी एक सहेली की शादी में जाना था सो उसने मुझे भेज दिया...जतिन बोला,


मैं समझ गई की मेरे पति ने शिल्पा को किसलिए फोन किया होगा, कपडे दिलवाने का तो एक बहाना है, असल बात तो वही है जिसकी उन्होंने तमन्ना जाहिर की थी,

आज ही बुलाया था तुम्हारे भैया ने शिल्पा को....मैनें जतिन से पूछा,

हाँ...कहा था की आज या कल सुबह आ जाना...जतिन बोला,

अच्छा तुम बैठो मैं पानी वानी लाती हूँ.....मैनें ये कहा और सोफे से उठ कर रसोई की ओर चली गई, फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल कर एक ग्लास में पानी डाला और ग्लास अपने देवर जतिन के सम्मुख जरा झुक कर ग्लास उसकी और बाधा कर बोली--लो पानी पीयो...मैं चाय बनाती हूँ,


जतिन ने सकपका कर मैगजीन से नजर हटाई, मैनें देख लिया था वह एक मोडल का उत्तेजक फोटो बड़ी तल्लीनता से देख रहा था, उसके चेहरे पर ऐसे भाव आ गए जैसे चोरी पकडी गई हो, उसने कांपते हाँथ से ग्लास ले लिया, मेरी ओर देखने पर उसकी पैनी नजर मेरे खुले सिने पर अन्दर ब्रेजरी तक होकर वापस लौट आई, वह नजर झुका कर पानी पिने लगा तो मैं मन ही मन मुस्कुराती हुई रसोई में चली गई,


मैनें चाय पांच मिनट में ही बना ली, चाय लेकर मैं वापस ड्राइंग रूम पहुंची तो देखा की जतिन तपते चेहरे से मैगजीन को पढ़ रहा है, मेरी आहट पाते ही उसने मैगजीन टेबल पर उलट कर रख दी,

लो चाय....चाय का एक कप ट्रे में से उठा कर मैनें उसकी ओर बढ़ाया, उसने कंपकंपाते हाँथ से कप पकड़ लिया और नजर चुरा कर कप में फूंक मारने लगा, मैनें भी एक कप उठा लिया,
मैनें महसूस कर लिया की जतिन सेक्स के प्रति अभी संकोची भी है और अज्ञानी भी, ऐसे युवक से संबंध स्थापित करने का एक अलग ही मजा होता है, मैं सोचने लगी की जतिन से कैसे सेक्स संबंध विकसित किया जाये ताकि मेरी यौन पिपासा में शांति पड़े,


उसके गोल चेहरे और अकसर शांत रहने वाली आँखों में मैं यह देख चकी थी की कामोत्तेजक मैगजीन ने शांत झील में पत्थर मार दिया है और अब उसके मन में काम-भावना से संबंधित भंवर बनने लगे हैं, वह खामोशी से चाय पि रहा था, मेरी ओर यदा कदा देख लेता था,


तभी फोन की घंटी बज उठी, मैनें सोफे से उठ कर फोन का रिसीवर उठाया ओर उसे कान में लगा कर बोली....हेलो ...आप ..कौन बोल रहे हैं....?

जानेमन हम तुम्हारे पति बोल रहे हैं.....उधर से मेरे पति का स्वर आया....हम थोड़ी देर में आयेंगे....तुम परेशान मत होना....ओ.के....इतना कह कर उन्होंने संबंध विच्छेद भी कर दिया,

किसका फोन था.....?जतिन ने प्रश्न किया,

तुम्हारे भाई साहब का....मेरी कुछ सुनी भी नहीं और थोड़ी देर से आयेंगे ये कह कर रिसीवर भी रख दिया....मैनें दोबारा उसके सामने बैठते हुवे कहा,

अब तक उनकी आदत ऐसी ही है....कमाल है....जतिन बोला,

वह चाय ख़त्म कर चूका था, खली कप उसने टेबल पर रख दिया, मैं भी चाय पि चुकी थी,


चलो टी. वी देखते हैं....मैं सोफे से उठती हुई बोली, मैनें एक शरीर तोड़ अंगड़ाई ली, मेरी मेक्सी में से मेरा शरीर बाहर निकलने को हुआ, जतिन के होंठों पर उसकी जीभ ने गीलापन बिखेरा और आँखें अपनी कटोरियों से बाहर आने को हुई,


मैनें टेबल से मैगजीन उठा ली और बेडरूम की ओर चल दी, जतिन मेरे पीछे पीछे था,
मैनें बेडरूम में पहुँच कर टी. वी. ऑन करके केबल पर सेट किया एक अंग्रेजी चैनल लगाया ओर बेड पर अधलेटी मुद्रा में बेड की पुश्त से पीठ लगा कर बैठ गई ओर मैगजीन खोल कर देखने लगी, जतिन भी बेड पर बैठ गया लेकिन मुझसे फासला बना कर,


मुझमें कांटे लगे हैं क्या...? मैनें उससे कहा


जी...जी....क्या मतलब....जतिन हडबडा कर बोला,


तुम मुझसे इतनी दूर जो बैठे हो........मैनें मैगजीन को बंद करके पुश्त पर रख कर कहा,


ओह्ह...लो नजदीक बैठ जाता हूँ... कह कर वह मेरे निकट आ गया,

उसके ओर मेरे शरीर में मुश्किल से चार छः अंगुल का फासला रह गया,


तबियत ठीक नहीं है तुम्हारी....? कान कैसे लाल हो रहे हैं....मैनें उसके चेहरे को देख कर कहा ओर उसके माथे पर हाँथ लगा कर बोली-- ओहो....माथा तो तप रहा है....ऐसा लगता है की तुम्हे बुखार है....दर्द वर्ड तो नहीं हो रहा सीर में...हो रहा हो तो सीर दबा दूँ, मैनें कहा,


हो तो रहा है भाभी जी....दोपहर से ही सर दर्द है....अगर दबा दोगी तो बढ़ियां ही है ...जतिन बोला

लाओ...गोद में रख लो सीर...मैनें उसके सीर को अपनी ओर झुकाते हुवे कहा

उसने ऐतराज नहीं किया और मेरी जाँघों के जोड़ पर सीर रख कर लेट गया, मैं उसके माथे को हल्के हल्के दबाने लगी और मेरे मस्तिस्क में काम-विषयक अनार से छूटने शुरू हो गये थे,


भाभी...आप बुरा न मनो तो एक बात पूछूं....जतिन बोला,


पूछो...एक क्यों दस पूछो.....मैं टी... वी. से नजर हटा कर उसकी बड़ी बड़ी आँखों में झांक कर बोली,


ये जो मैगजीन ही इसे आप पढ़ती हैं या भाई साहब...? जतिन ने प्रश्न किया,


हम दोनों ही पढ़ते हैं क्यों....? मैनें कहा,


दोनों ही....आपको क्या जरुरत है ऐसी मैगजीन पढने की.....वह बोला,


क्यों....? हम दोनों क्यों नहीं पढ़ सकते....हमें जरुरत नहीं पड़नी चाहिए....? मैं बोली


और क्या....आप तो शादी शुदा हो...इसकी या ऐसी मैगजीनों की जरुरत तो मेरे जैसे कुंवारों के लिए ठीक रहती है.... जतिन बोला,


क्यों....जो आनंद इस मैगजीन से कुंवारे ले सकते हैं.....उस पर हमारा अधिकार नहीं है क्या...? कैसी बातें करते हो तुम.....मैं उसकी कनपटियाँ सहला कर बोली,


अरे वाह.....आपको आनन्द के लिये मैगजीन की क्या जरुरत...? आपके पास तो जीवित आनन्द देने वाली मशीन है....मेरे कहने का मतलब है की आप भैया से आनन्द ले सकती हो और वे आपसे....परेशानी तो हम जैसों की है.....जो अपनी आँखों की प्यास बुझाने के लिये ऐसी मैगजीनों पर आश्रित हैं....जतिन ने बात को गंभीर मोड़ दिया,


ओहो...तो मेरे देवर की आँखें प्यासी रहती हैं तभी ऐसी बातें कर रहे हो....मैनें मुस्कुराते हुवे कहा, फीर बोली....तो क्या तुमने अभी तक अपनी आँखों की प्यास नहीं बुझाई....मेरे कहने का मतलब ये है की....क्या इन बड़ी बड़ी आँखों को देवी दर्शन नहीं हुवे,

देवी दर्शन....... वह इस शब्द पर उलझ गया,

यानी की किसी युवती को बिना कपडों के नहीं देखा, मैनें देवी दर्शन का मतलब समझाया,

इसे कहते हो आप देवी दर्शन...वाकई आप तो जीनियस हो भाभी जी....वैसे कह ठीक रही हो आप, अपनी किश्मत में ऐसा कोई मौका अभी तक नहीं आया है, आगे भी शायद ही आये....वह सोचता हुवा सा बोला फीर टी.वी पर आते एक दृश्य में दो मिनी स्कर्ट वाली लड़कियों को देख कर बोला....टी.वी. या किताबों में ही देख कर संतोष करना पड़ता है....


तुम सचमुच ही बद-किस्मत हो लेकिन एक बात बताओ....जब तुम ऐसी मैगजीन देख लेते होगे तब तो और प्यास भड़क उठती होगी और शरीर में उत्तेजना भी फ़ैल जाती होगी...उस उत्तेजना को तुम कैसे शांत करते हो फीर...? मैं बोली.

क्या भाभी जी आप भी कैसी बातें करती हो...? क्यों मेरे जख्म पर नमक छिड़क रही हो...कैसे शांत करता हूँ....अपना हाँथ जगरनाथ....वह बोला,


यानी अपने हाँथ से ही अपने को संतुष्ट कर लेते हो और अगर मैं तुम्हारी ये मुश्किल दूर कर दूँ तो....मैनें उसके गालों को सहला कर भेद भरे स्वर में कहा, मेरी आँखें रंगीन हो चुकी थी,


क्या....आप कैसे मेरी मुश्किल दूर कर सकती हैं...? वह जिज्ञासु हो कर बोला,


इस बात को छोडो....ये बताओ की अगर मैं तुम्हे ये छुट दे दूँ की तुम मेरे कठोर और सुन्दर स्तनों को कपडे हटा कर देख सकते हो तो बताओ तुम क्या करोगे....? मैनें अब उससे एकदम साफ़ कहा,

जी...जी...वह सकपका गया, उसे मेरी बात पर यकीन नहीं हुवा और बोला...आप तो मजाक कर रही हो भाभी...


चलो मजाक में ही सही अगर कह दूँ तो क्या.....कह ही रही हूँ.......जतिन देवर जी....अगर तुम चाहो तो मेरे गाउन के चारों बटन खोल कर मेरी ब्रा में कैद मेरे स्तनों को ब्रा को हटा कर देख सकते हो....मैनें उसके कुरते के गले में हाँथ डाल कर उसके मजबूत सिने को सहला कर कहा,


लगता है आप मुझ पर मेहरबान हैं या फीर मजाक कर रहीं हैं..... उसे अभी भी यकीन नहीं आया,


ओहो...बड़े शक्की आदमी हो....चलो मैं ही तुम्हारे स्तनों को दर्ख भी लेती हूँ और मसल भी देती हूँ....मैनें झल्ला कर उसके सिने पर मौजूद उसके दोनों छोटे छोटे निप्पलों को मसलना शुरू कर दिया,


उफ...ये क्या कर रही हो भाभी....मुझे परेशानी होगी....वह मचल कर बोला,

अब तुम तो कुछ करने को तैयार नहीं हो....तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ना....मैनें कहा,


अब जतिन से पीछे नहीं रहा गया, उसने अपने के ऊपर मुझे लेते हुवे मेरे स्तनों को मेक्सी के ऊपर से ही सहलाना सुरु कर दिया और बोला.....

आज तो आप मुझे कत्ल कर के ही छोडेंगी....ये दोनों पर्वत कब से मुझे परेशान कर रहे हैं....अब मुझे मौका मिला है.....इन्हें परेशान करने का.....वह मेक्सी के बटन खोलने लगा था, उसकी क्रिया में बेताबी थी, मैं उसके कुर्ते के बटन खोल कर उसके सिने को सहला रही थी, उसने कांपते हांथों से मेक्सी के दोनों पल्लों को स्तनों से हटा कर ब्रेजरी के कप को निचे कर दिया और स्तब्ध निगाहों से पहले मेरे गुलाबी रंग के कठोर स्तनों को देखता रहा फीर मैनें ही स्तन के निप्पल को उसके होठों में देकर कहा

...लो...बुझाओ प्यास...मैं जानती हूँ.....जबसे तुमने मैगजीन देखी है....तब से ही तुम्हारी प्यास भड़क उठी है,

उसने निप्पल मुंह में ले लिया और उसे चूसते हुवे दुसरे स्तन को भी ब्रेजरी के कप में से निकालने की कोशिश करने लगा, उसकी कोशिश देख कर मैनें हांथों को पीछे ले जा कर ब्रेजरी के हुक को खोल दिया तो उसने दुसरे स्तन को भी उसके कप से निकाल कर हाँथ में ले लिया और उसके निप्पल को जोर जोर से मसलने लगा,


मैं तरंगित होती जा रही थी, मैगजीन के पन्नों ने मेरी नसों का लहू गर्म कर दिया था, जिसको शीतल करने के लिये मुझे भी एक पुरुषीय वर्षा की जरुरत थी, मैं उसके बालों को सहला रही थी,










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