Saturday, July 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI हाय मेरी सिल्क स्मिता-2

FUN-MAZA-MASTI

 हाय मेरी सिल्क स्मिता-2



 रविड़ काया मछली जैसी चिकनी फिसलती स्निग्ध श्यामल चमकीली त्वचा मेंगलौर के बादामी फुल साइज़ कड़क आम उन पर कैरम के बड़े से स्ट्राइकर के बराबर भुने हुए ब्रितानिया के डायजेस्टीव बिस्किट जैसा एरोला उस पर इमली के बीज के बराबर कत्थई निप्पल जो तन कर कड़क हो रहे थे। मैंने जैसे ही जुबान से गीला कर के होंठों से दबाया और मुंह से चूसकर दांतों से हल्का सा काटते हुवे अन्दर चूसते हुए खींचा तो आंटी बेदम हो कर कटे तने की तरह मुझ पर गिरती चली गई।
अब मेरे हाथ सरक कर चूतड़ों की दरार पर पहुँचे तो आंटी ने लपक कर मेरे होंटों पर अपने जलते हुए भारी होंठ रख दिए और जो चूसना शुरू किया, बीच बीच में ज़बान पूरी की पूरी अपने मुँह में खींच लेती, कभी निचला होंठ, कभी ऊपरी, कभी जीभ को दांतों से टकरा देती, कभी दांतों और गालों के बीच ज़बान लपलपा देती। इस सब से मैं भी पिघलने लगा, लगने लगा कि इतना सुरीला चूस रही है, कहीं बाहर ही न ढुल जाऊँ।
मैंने फिर ध्यान हटाया और आंटी को धकाते हुए कहा- आंटी ! दरवाज़ा तो बंद कर दो !
तो जैसे उन्हें होश आया, जल्दी से उठ कर दरवाज़ा बोल्ट किया, खिड़कियों के परदे ठीक किये, लाइट आफ की और मेरे पास दीवान पर ही ढुलक गई- सन्नी बाबा, यह तुमने क्या कर डाला !
कह कर मेरी टाँगें थोड़ी सी चौड़ी करते हुए पास में सट कर बैठते हुए लौड़ा सहलाने लगी, फिर मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसने लगी। मैंने भी धीरे धीरे पेटीकोट जैसा जो साउथ में पहनते हैं, धीरे धीरे हाथ से ऊपर सरकाना शुरू किया और उनके चूतड़ों के गोल गोल खरबूजों पर पर हाथ फेरना शुरू किया तो आंटी ने सरक कर अपने कूल्हे मेरी तरफ कर लिए।
हाथ फेरते फेरते मैंने अंगूठे और तर्जनी से हल्की सी क्लिटोरियस/भगनासा/मदन मणि जो चाहे कह लो, मज़ा कम नहीं होगा, उस पर चुटकी ली तो आंटी का मुंह लण्ड पर दांत गड़ाने लगा, धीरे से उस गीली रस से झरती चूत में मैंने धीरे से उंगली को घुमाते हुए जी स्पॉट टटोलते हुए अन्दर अंगूठा डाल दिया और उसके अन्दर वाले हिस्से को ऊपर की तरफ वाले हिस्से में रगड़ने लगा।
आंटी ने जांघें सिकोड़ ली, कभी कभी जब थोड़ा अन्दर होकर नाख़ून उनके गर्भाशय के मुँह से टकराता तो आंटी मेरा हाथ टांगों से इतनी जोर से दबाती तो लगता कि हाथ टूट जाएगा।
गर्भाशय के मुंह की सरसराहट और लपलपाहट अंगूठे पर महसूस हो रही थी। फिर आंटी सीधी होकर मुझे लेते हुए बिस्तर पर सीधी हो गई। मैंने पेटीकोट का नाड़ा खींचा तो काटन का पेटीकोट नीचे खींचता चला गया। अन्दर पैंटी नहीं थी, यानि आंटी पहले से तैयार थी ! आंटी सीधी मुझ पर आ गई, मैंने धीरे से नीचे हाथ डालकर लौड़े का सुपारा चूत पर टिका कर हल्का सा धक्का दिया, आंटी ने सांस बाहर छोड़ कर फुरेरी ली और तमिल में न जाने क्या बड़बड़ाती हुई धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी।
अभी वह पूरा लौड़ा अपनी चूत की गहराई में नहीं ले रही थी और लगता था कि काफी दिनों से अंकल ने चुदाई नहीं की थी, आधी तिरछी होकर धक्के लगाती रही, फिर मुझे जोर से जकड़ लिया, चूत से मुझे कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ जो जांघों से होता हुआ आँडूओं पर आया। सामने ही पंखा चल रहा था, मुझे ठंडी सी फुरेरी आयी।
तभी आंटी ने भारी भारी साँसें लेते हुए दो चार झटके जोर जोर से दिए और मुझको कस कर पकड़ा जिससे मेरे कंधे पर उनके नाख़ून गड़ते से मालूम हुए और गहरी सांस लेकर मुझ पर बेजान सी लुढ़क गई।
‘आई लव यू सन्नी बाबा ! माय डार्लिंग !’ कह कर उतरने लगी। मैं उसी समय उन्हें लेकर पलट गया। अब आंटी मेरे नीचे थी, अब मैंने आंटी के निप्पल जोर जोर से चूसने शुरू किये तो आंटी बिन पानी की मछली की तरह मचलने लगी। मैंने उन्हें थोड़ा सा ऊपर करके उनकी गांड के नीचे तकिया लगा दिया और टाँगें चौड़ी करके एक ही धक्के में पूरा आठ इंच का हथियार, जो उन्हें देखने की तमन्ना थी, सोचा महसूस करा दूँ, पूरा का पूरा झटके से चूत में पेल दिया।
आंटी दर्द से ऊपर उठने लगी, मैंने उन्हें दबा कर होंठों पर होठों को रखकर जुबान मुंह में डाल दी। उनके नथुने फुले और बेचैन हो गई और उन्हें सांस लेने का मौका देकर लंड थोडा पीछे खींचा तो आंटी ने खुद ही मुझ आगे खींच लिया लिया। अब आंटी भी मेरे हर धक्के के साथ गांड उठा उठा कर पूरा साथ लेने लग गई, आंटी की चूत से लसलसे फव्वारे छुट रहे थे, उनके सर के कपड़े से पौंछ कर सुखा सुपारा टिकाया और जोर का झटका दिया तो आंटी तड़प उठी- वांट टू किल मी (क्या मुझे मारेगा)?
और तमिल में कोई गाली दी।
मैंने फिर थोड़ा थूक लंड पर लगा कर दुबारा पेल दिया आंटी के पैर कभी मेरे कंधे पर कभी हवा में ! थोड़ी देर के घमासान के बाद में कहने लगी…- बाबा मेरे पैर दुःख गए !
मैंने डबल बेड जो किसी इम्पोर्टेड मशीन के पेकिंग बाक्स की लकड़ी से बनाया गया था, आम बेड से काफी बड़ा था, उसका भरपूर फायदा उठाते हुए उन्हें साइड की करवट दिलाकर 45 का एंगल बना कर फिर पीछे से पेलने लगा। अपने सर के नीचे तकिया लगा और थोड़ा दीवार का टेक लेकर अब मैं दायाँ हाथ उनके नीचे से निकाल कर उनका दायाँ उभार सहलाता जा रहा था। बीच बीच में निप्पल उंगली और अंगूठे से दबा देता तो आंटी के मुंह से न चाहते हुए भी सिसकारी निकल जाती।
बाएं हाथ को ऊपर से लाकर उससे मैं उनका भगनासा अंगूठे से रगड़ता और सहलाता जा रहा था। आंटी ने फिर हुंकार भरी, जैसे भागती गाय नथुने फुलाती है तो नाक से आवाज़ और पानी के छींटे झटके से निकलने लगते हैं, इसी दशा में आंटी फिर ढेर हो गई।
मैंने अपना बाहर निकाला तो आंटी की चूत का माल लंड पर पंखे की हवा से सूख कर पतला कवर जैसा हो गया जैसे उँगलियों पर वार्निश चिपक जाता है।
वो मेरी तरफ देख कर बोली- एक मिनट सीधा हो जाने दे !
मैंने प्यार से उनकी तरफ देखा तो वो मेरे लौड़े को तिरछी नज़रों से देख रहीं थी। मुस्कुराते हुए मैंने उनकी बाहों में बाहें डाल कर अपने ऊपर ले लिया फिर उन्हें अपनी टांगों पर बैठा कर उनकी टाँगें अपने दोनों तरफ डाल ली अब उनके उरोज मेरे सीने पर टकरा रहे थे। उन्होंने अपनी गर्दन मेरे कन्धों पर टिका दी, उनकी सांसों का सीलापन मेरी नाक में समां कर कामवासना और भड़का रहा था, चूत की चिकनाई से मेरे लौड़े का सुपारा अपने आप ही जैसे उनकी चूत में जाने लगा।
आंटी बोली- बस यार, मारेगा क्या !
इस पर मैंने उन्हें अपने ऊपर से उतारा तो उन्होंने सोचा अब ब्रेक लेकिन मैंने उन्हें उन्हें लेटने से पहले ही हवा में पकड़ लिया और उन्हें घोड़ी बनाकर दोनों तकियों पर उनकी कोहनी टिकवा दी और पीछे खड़े होकर उनकी पीठ सहलाने लगा फिर धीरे से घुटनों के बल बैठकर पीछे से आगे उनकी चूत में लौड़ा पेल डाला तो इस स्टाईल में चूत इतनी टाईट हो गई कि मुझे लगा ‘अब गया !’
दस बारह लगातार झटकों के बाद जब लंड बाहर निकाला तो परर की आवाज़ के साथ चूत से हवा निकल पड़ी। दोनों को हंसी आ गई। मैंने फिर चूत को पौंछा और जोर से झटका दिया तो आंटी फिर अनाप शनाप गाली बकने लगी। मैंने बाहर निकाल कर लौड़े पर थोड़ा थूक लगाकर फिर पेलना शुरू किया। अब मेरे थूक से गीला अंगूठा आंटी की गांड पर खेल रहा था, धीरे से पोर अन्दर किया तो आंटी तड़प उठी !
वाओ ! यह तो कुंवारी गांड है ! इसके बाद में मज़े लूँगा ! इसके बाद झुककर आंटी के बूब पकड़ कर मसलने लगा, अब आंटी खुद ही चूतड़ पीछे धकलने लगी और हर धक्के पर पट पट की आवाज से मेरे आँडू आंटी के चूतड़ों के गाल और जांघ के संधिस्थल से टकराने लगे।
दस बारह धक्कों में मैं भी झड़ते हुए मुंह से हुंकार भरती सी आवाज़ निकालते हुए वहीं आंटी पर ढेर हो गया, आंटी पता नहीं क्या तमिल में बड़बड़ाती रही। फिर इंग्लिश में कुछ पूछा जो मुझे याद नहीं, मुझ पर नशा सा छाता गया और मैं बिल्कुल बेहोशी की नींद में सो गया। दो ढाई घंटे बाद लंड पर नर्म गर्म गर्म से अहसास से नीद खुली।
आंटी मेरे लंड को चूस रही थी, जो आज की धक्कम पेल में सूजा सूजा सा लग रहा था और बैठे होने के बाद भी बड़ा बड़ा सा लग रहा था।
इसके बाद भी कई साऊथ वालियों से पाला पड़ा लेकिन सबकी चूत में जहाँ अन्दर चूत की नाल समाप्त होकर गर्भाशय शुरू ही होता है वहाँ माँस या नर्म हड्डी सा कुछ उभार होता है, लंड जब भी उससे रगड़ खाता है तो चुदाई का अलग ही मज़ा आता है, ऐसा लगता है कि आप के लंड को कोई अन्दर दबा रहा है। यह यौनशास्त्रियों और एनाटामी फिजियोलाजी शरीर विज्ञानियों के लिए यह शोध का विषय हो सकता है।
उसके बाद पूरे हफ्ते आंटी ने मुझे नहीं छोड़ा, कई कई स्टाइलों में रात में, दिन में मेरे घर में, उनके घर में बाथरूम, रसोईघर, कबाड़ रखने वाली जगह, बाद में कई बार उनके नए घर पर काम की प्रगति देखने के बहाने भी उसका शुभारंभ किया।
उस दिन मोबाइल में आंटी की बेटी को देखा था, रूपवती बिल्कुल रेवती और अमला का मिलन लग रही थी।
देखें अब होलकर का ड्रिल कहाँ चलता है !
आपके प्रोत्साहन शब्द, पसंद, नापसंद, आलोचनाओं का खुले मन से स्वागत है। अपने विचारों से इस पते पर अवगत कराएँ !




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