Sunday, July 13, 2014

FUN-MAZA-MASTI भोग-वासना की लज़ीज़ चाशनी--1

FUN-MAZA-MASTI

 भोग-वासना की लज़ीज़ चाशनी--1

 मैं, कन्हैया , ग्वालियर के प्रसंसाधित खाद्य-निर्यात कम्पनी में कार्यरत एक चौंतीस-वर्षीय, कसरती बदन वाला स्वस्थ पुरुष हूँ। अंजलि, मुझसे लगभग दस वर्ष छोटी, मेरे अपने ही छोटे भाई की नव-विवाहिता युवा धर्म-पत्नी है, जो एक अति सुन्दर, चौबीस वर्षीय, उन्मुक्त काम-भावना का स्वत: संचार करने वाली, निहायत-गोरी और कसे बदन की मालकिन, असाधारण यौनाकर्षण से परिपूर्ण, बिल्कुल ताज़ा, जवान, चुस्त-दुरूस्त और तन्दुरुस्त सुहासिनी नारी है।

हम दोनों भाईयों का परिवार सँयुक्त-परिवार के तहत अपने दक्षिण ग्वालियर-स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहता है। इत्तेफ़ाकन, अंजलि मेरे उत्तर ग्वालियर-स्थित एक्सपोर्ट-कॉरपोरेट कार्यालय में मेरे ही अन्तर्गत बतौर कनिष्ठ ऑफ़िसर के पद पर कार्यरत है। मेरी नैनो गाड़ी में ही बैठ वो रोज़ मेरे साथ साढ़े नौ बजे ऑफ़िस जाती है और साढ़े पाँच बजे वापिस आती है।

इस वर्णन में कोई भी अतिशयोक्ति नहीं कि अंजलि का व्यक्तित्व, अनमोल खूबसूरत नारीत्व तथा बेहद कटारी यौवन उभारों वाले बेदाग और चमकदार भरे-पूरे सन्गेमरमरी बदन का एक ऐसा अविस्मरणीय उदाहरण है कि उसके सर्वदा प्रस्फ़ुटित यौवन और खौलते गदराए बदन के दर्शन मात्र से ही किसी अस्सी साल के बूढ़े की नसों में भी स्वत: कामोत्तेजना की बाढ़, लिंग-उत्थान और रोंगटे खड़े करने वाली असीम गुदगुदी पैदा हो जाए।

और कोई यदि एक मिनट तक भी अंजलि के उफ़नाते यौवन और जीवन्त-ज्वलन्त फ़िगर की ओर लगातार दृष्टि डाल दे तो वो अपने फुदुए में एक सनसनी भरी जादूई गुदगुदी महसूस करते हुए कम से कम सौ मिली लीटर गर्म वीर्य के साथ स्वत: स्खलित हो जाए। बदक़िस्मती से अंजलि का पति यानि मेरा छोटा भाई ग्वालियर म्यूनिसिपल कार्पोरेशन में एक मामूली सा ताईद है। यह तो मुझे मालूम था कि मेरा छोटा भाई बचपन से ही नशे का पुज़ारी है, पर मैं हाल तक यह नहीं जानता था कि उसने नशे की पुरानी गन्दी आदत की वज़ह से अपना पुरुषत्व लगभग खो सा दिया है। यह बात अपनी शादी के तीन वर्ष बीतने के बाद अंजलि ने मुझे हाल ही में विलाप करते हुए तब बताई जब मैंने एक दिन ऑफ़िस के लन्च अन्तराल में साथ खाना खाने के उपरान्त आराम के क्षणों में एक मज़ाकिया सुझाव दिया कि अब घर में नये बच्चे होने चाहिये।

मेरा इशारा सिर्फ़ इतना ही था कि मेरे छोटे भाई से अंजलि की शादी हुए तीन वर्ष से ज़्यादा हो गये हैं, लिहाज़ा अब बच्चा होना चाहिए पर अंजलि के जवाब में संलग्न अज़ीबो-गरीब मज़बूरी सुन कर मैं अवाक़ और अचम्भित रह गया।

अंजलि आँसुओं के साथ बिलखती हुई पहली बार मेरे समक्ष अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से सम्बन्धित उपरोक्त दुर्भाग्यपूर्ण खुलासा करते हुए मुझसे लिपट गई। यह सच्चाई इससे पहले अंजलि ने किसी से भी अपने मायके या ससुराल में अब तक नहीं बताई थी कि दुनिया की नज़र में शादीशुदा होते हुए भी अब तक वो अक्षतयौवना है और न तो अपने पति के मुर्झाए और बुझे यौनान्ग के द्वारा, न ही किसी अन्य मानव-लिंग के द्वारा उसका कभी भी शील भंग हो पाया है, तथा जीवन जीने की खातिर वो अपनी योनि की सन्तुष्टि मात्र खुद की उंगलियों से या बैंगन, केले, गाज़र, मूली, करेले, खीरे, इत्यादि फुदुएनुमे फल-कन्द-मूल के द्वारा करती है।

सुनकर दु:ख तो काफ़ी हुआ, पर इस अप्रत्याशित परिस्थिति में अचानक अपने जिस्म से अपनी आइटम-गर्ल जैसी अति हसीन भरपूर जवान भाभो को लिपटा पाकर मैं किंकर्तव्यविमूढ़ और विस्मित सा हो गया।

वैसे तो मैं अंजलि के पति का अपना बड़ा भाई था, पर अपनी चाँद सी भाभो के शादीशुदा होते हुए भी अभी-अभी संज्ञान में आए उसके पूर्ण परिपक्व कुँवारे नारी शरीर और अनभोगे, सुडौल, बेहद कड़े और भरपूर उभरे आसमान छूती गर्म चूचियों के सानिध्य से मेरा दिल विषय-वासना के ज़्वार-भाटे में डगमगा उठा, मेरा लिंग बेहद कड़ा होकर गदहलन्ड का विशाल रूप लेते हुए और काफ़ी यौन-रस रिसाते हुए मेरे जांघिया और मेरी पैन्ट की ढीली चेन को चीर कर छुटे स्प्रिंग की तरह कूद कर बाहर आ गया।


वैसे तो मैं अंजलि के पति का बड़ा भाई हूँ पर अपनी चाँद सी भाभो के शादीशुदा होते हुए भी अभी-अभी संज्ञान में आए उसके पूर्ण परिपक्व कुँवारे नारी शरीर और अनभोगे, सुडौल, बेहद कड़े और भरपूर उभरे आसमान छूती गर्म चूचियों के सानिध्य से मेरा दिल विषय-वासना के ज़्वार-भाटे में डगमगा उठा, मेरा लिंग बेहद कड़ा होकर गदहलन्ड का विशाल रूप लेते हुए और काफ़ी यौन-रस रिसाते हुए मेरे जांघिया और मेरी पैन्ट की ढीली चेन को चीर कर छुटे स्प्रिंग की तरह कूद कर बाहर आ गया।

अंजलि मेरे विशालकाय लौड़े को अपने हाथों में लेकर खुशी से पागल जैसी हो गई। विवाहिता होते हुए भी अब तक कुंवारी रही अपनी हसीन भाभो की उम्मीद से परे इस सुखद और यौन-उत्प्रेरक अदा पर मैं भी एक तरह से कमज़ोर पड़ गया और न चाहते हुए भी अपनी हसीन भाभो अंजलि का सिर चूमते हुए उसके उन्नत उरोज़ों को हल्के से दबाया, कामातुर होते हुए दोनों भरी चूचियों के बीच के निमन्त्रण देते कसे गहरे गड्ढे को चूमा, फ़िर उसके गहरे गले के ब्लाउज़ के पीछे हाथ डाल उसकी बेहद गोरी सिलकन पीठ और कमर सहलाते-दबाते हुए उसके दोनों स्तनों के बीच से अपना सिर नीचे लाकर उसकी रमणीय नाभि को चूमा।

तब तक अंजलि बिल्कुल ही मदहोश हो चुकी थी, और उस वक़्त मैं वस्तुत: कुछ भी कर गुज़र सकता था। पर तभी खयाल आया कि यह ऑफ़िस है, कभी भी कोई भी आ सकता है। यदि एक मिनट और हम दोनों हवस के साये में बन्धे रह जाते तो शायद वहीं दफ़्तर के मेज पर ही सम्भोगरत हो चरमोत्कर्ष प्राप्त कर चुके होते। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

तत्काल किसी के देख लेने और बदनामी के डर से खुद को और अंजलि को जज़्बात की रौ में बहने से रोका। मैंने झट अपना चन्चल, बेहया और बदमाश बड़ा फुदुआ अन्डरवीयर के अन्दर वापस डाल कर पैन्ट का ज़िप क़ायदे से बन्द किया और तुरन्त बाथरूम जाकर अंजलि के नग्न माँसल शरीर की कल्पना करते हुए तेज़ गति हस्त-मैथुन द्वारा ज़बर्दस्त वीर्य-स्खलन किया।

दफ़्तर से लौटते वक्त अंजलि को कुछ इशारों, कुछ शब्दों के द्वारा रविवार की सुबह घर की छत पर मेरे शान्त पढ़ाई वाले कमरे में अकेले बुलाया। हमारे घर की छत पर बस एक ही कमरा था जिसे मैंने खुद की पढ़ाई-लिखाई हेतु सुरक्षित रखा था। विरले ही इस कमरे में किसी और का आना-जाना होता था। वैसे अन्दर की बात यह है कि अंजलि का जेठ होने के बावज़ूद, तीन वर्ष पूर्व से ही, एक प्राकृतिक यौनेच्छा रखने वाले स्वस्थ मर्द होने के नाते अपनी भाभो का विशेष रूप से अत्याकर्षक शरीर देख मेरे मुँह से भी अक्सर लार टपक जाया करती थी और मेरे बड़े फुदुए से अनायास ही काफ़ी लसलसा यौन-स्राव रिसने लगता था। अत: अंजलि के निर्वस्त्र शरीर की कल्पना मात्र से ही मैं सदा उसे मन ही मन चोदने-चोदने हो जाया करता था। पर चूंकि भारतीय सामाजिक ढाँचे के अन्तर्गत एक जेठ अपनी भाभो से ऐसी बातें नहीं कर सकता, लिहाज़ा मैं मन मसोस कर रह जाया करता था।

वैसे यदि मैं एक राज़ की बात बताऊँ तो मेरे स्टडी-रूम से एक अतिरिक्त पुरानी सँकरी सीढ़ी नीचे की ओर उतरती थी जो सामान्यत: इस्तेमाल में ना के बराबर थी। जहाँ बीचो-बीच यह सीढ़ी भूतल के लिए मुड़ती थी वहाँ मेरी भाभो (अंजलि) के बाथरूम का एक पुराना बन्द रौशनदान पड़ता था, जो अपनी भाभो को अन्दर ही अन्दर जी-जान से मूक प्यार करने वाले इस अति कामुक जेठ के लिए ईश्वर का दिया हुआ एक अज़ूबा वरदान था।


वस्तुत: अन्दरूनी कौतूहलवश, अब तक ध्यान से परे रहे इस पुराने रौशनदान में मैंने चुपके से एक कैमरे के लेन्स जितना गोल छिद्र बना डाला था, जिसमें से मैंने पहले से ही, अंजलि की शादी के बाद से ही आज तक लगातार, अपनी भाभो का भरपूर नंगा, अति मनमोहक ताज़े गोश्त से भरा चिकना बदन पूर्ण नग्न स्नान करते हुए पूरी कामुकता के साथ अनेकों बार देखा था, और अपने गुप्त डिजिटल कैमरे से चोरी-चोरी उसकी तमाम अति-स्पष्ट यौन-उत्प्रेरक रंगीन नग्न तस्वीरें और वीडियो भी उतारी थीं।

फ़ुर्सत के क्षणो में अंजलि की ये अति-स्पष्ट पूर्ण नग्न जान-लेवा रंगीन तस्वीरें और वीडियो मैं बड़े पर्दे पर कैमरा-प्रोजेक्टर के द्वारा बड़े आकार में छाया-चित्रण कर घन्टों अकेले देखा करता था, तथा कामोत्तेज़ना-वश अपने यौन-रस से ओत-प्रोत खड़े लण्ड पर अपने मुख से स्रावित अतिरिक्त लार को थूकते हुए अपना फुदुआ-क़बाब की तरह मसलता रहता था।

अंजलि के अति आकर्षक, सफ़ेद और शबनमी चिकने मांसल कन्धों, भरे-भरे बड़े-बड़े कड़े-कड़े आसमान छूते स्तनों के भारी गोश्त, बुलेट आकार की अत्यन्त उभरे हुए चुचूक, अति गदराए मांसल बाहुओं, कूल्हों और जान्घों के गोश्त तथा घने काले गद्देदार झांटों वाली चूत और भगोष्ठ के गुलाबी उभरे गोश्त का बाथरूम के छिद्र से स्पष्ट दर्शन करते हुए या उसके सख्त उभारों की स्पष्ट क्लोज़-अप की हुईं रंगीन नंगी तस्वीरें और अत्यधिक यौनोत्तेज़क वीडियो अपने कैमरे से प्रोजेक्टर पर ललचाई दृष्टि से देखते हुए न जाने कितनी बार मैंने अपने पिलरनुमा खड़े मोटे लौड़े को नारियल के तेल में सराबोर कर और अपना थूक डाल कर प्रगाढ़ मूठ मारा था।

वस्तुत: मेरे स्टडी-रूम की ज़मीन की टाईल्स, मेरी भाभो अंजलि की मेरे लौड़े द्वारा नग्न चुदाई की कल्पना में हज़ारों-हज़ार बार मूठ मारे हुए अनवरत प्रगाढ़ स्खलित वीर्य स्राव से भरी पड़ी थी। इसमें भी कोई शक़ नहीं कि बीते तीन वर्षों में मैंने जब भी अपनी पत्नी (या पत्नी की गैर-मौज़ूदगी में नौकरानी या किसी अन्य महिला सहकर्मी) के साथ सम्भोग किया तो सामान्यत: अपनी बन्द आँखों में अपने पूर्ण नन्गे शरीर को अंजलि के पूर्ण नन्गे भरपूर परिपक्व जवान शरीर से लिपटा-चिपटा, एवं अपने साँड जैसे विशाल लौड़े को अंजलि के चुस्त अनचुदे बूर के अन्दर गतिशीलता के साथ चुदते होने की कल्पना की। और आज पलक झपकते ही अंजलि जैसे बिरले यौवन की आग के साथ नग्न चुदाई का मेरा सारा सपना जैसे खुद-ब-खुद साकार होने जा रहा था।

मुझे तो जैसे इस बात का यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि अंजलि ने दफ़तर में मेरे अक़स्मात लिन्ग स्पर्श पर अपने मदहोश नयनों की भाषा के द्वारा अपनी ज़बर्दस्त आन्तरिक खुशी जताई थी, और सम्भोग का मूक निमन्त्रण दे डाला था।

रविवार की सुबह होते ही जल्दी ही अंजलि मेरे कमरे में आ गई। अभी मुश्किल से शायद सुबह के साढ़े पाँच बजे थे। उसका पति (मेरा छोटा भाई) रविवार को दिन में दस बजे से पहले सोकर नहीं उठता था। मेरी पत्नी (अंजलि की जेठानी) हर शनिवार की शाम अपने बूढ़े बीमार पिता से मिलने गाँव चली जाती थी और सोमवार की सुबह वापस आती थी।


लिहाज़ा मैं अपनी प्यारी सेक्सी भाभो के इन्तज़ार में अकेला बैठा था। आते ही अंजलि ने बताया कि विगत तीन वर्ष पूर्व, उसने अपनी शादी के बाद से ही अपने पति की नामर्दी की वज़ह से अपनी ज़िन्दगी बर्बाद देख आत्महत्या करनी चाही थी। जैसा कि अंजलि ने बताया, बहुत क़ोशिशों के बावज़ूद भी यौन-क्रिया सम्पन्न करने हेतु उसके पति (मेरे छोटे भाई) का लिन्गोत्थान बिल्कुल ना के बराबर था। अत: वो कच्चे कड़े सिन्गापुरी केले छील कर ज़बर्दस्ती पत्नी की योनि में ठूँस दिया करता था और कुछ देर तक बड़ी ही बेरहमी और निर्दयता से कच्चे केले द्वारा चूत पेलने के बाद उसे निकाल कर खा जाया करता था। अंजलि मारे दर्द के कराहती रहती थी पर वो एक नहीं सुनता था। नई-नवेली दुल्हन होने के नाते शुरू-शुरू में अंजलि ने किसी तरह खून का घूंट पी कर बिना किसी और को बताए यह त्रासदी बर्दाश्त कर ली, फ़िर आत्महत्या की धमकी देने पर उसके पति ने यह अत्याचार बन्द किया।

तभी अंजलि ने मेरे दफ़्तर में नौकरी शुरू की, और ज्यों ही उसने क़रीब से अपने जेठ का गठा हुआ मर्दाना वर्ज़िशी शरीर देखा तभी से उसके यौनान्गों में एक सुखद एहसास महसूस होने लगा था और वो मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिये बेचैन रहने लगी थी। लिहाज़ा अपनी पूरी दुखद कहानी ईमानदारी से बयान करने के बाद और खुद को अब तक बिल्कुल अनचुदी बताने के बाद अंजलि ने मुझसे हाथ जोड़ कर पति की तरह प्यार करने, सानिध्य में लेने, नग्न-यौन अठ्खेलियां करने और अपने सम्पूर्ण नग्न लौड़े को बेझिझक ठूंस-ठूंस कर उसकी चूत चोदने की विनती की। मैंने शर्माते हुये कहा कि मैं तो तुम्हारा जेठ हूं, वैसे निश्चित ही तुम्हें दिल की गहराइयों से बहुत-बहुत प्यार भी करता हूँ, तुम्हें वर्षों से कुत्ते की तरह बार-बार चूसने, चाटने और अपने पूर्णत: खड़े लौड़े से चोदने की भी बेपनाह तमन्ना रखता हूँ, पर हक़ीक़त में जेठ-भाभो के बीच पति-पत्नी जैसा नग्न शारीरिक सम्भोग को अन्ज़ाम देना क्या पाप नहीं?

पर अंजलि ने मेरी एक न मानी, अपनी जंग लगती बेशुमार जवानी की दुहाई देते हुए उसे तत्काल न कर लेने और भरपूर चोद लेने का खुला निमन्त्रण दिया। अंजलि ने बार-बार दुहराया कि आज हम दोनों एक-दूसरे को सिर्फ़ एक मर्द और औरत समझे और पूर्ण वस्त्रहीन होकर बिना किसी लज़्ज़ा और सन्कोच के जी भर कर एक-दूसरे की प्यास और यौनाग्नि बुझायें।

उसकी क़राह सुन, मेरे मन का द्वंद्व कुछ कम हुआ। दिल ही दिल मैं तो, न सिर्फ़ अंजलि को चोदने के लिये बेताब था, बल्कि अपनी बड़ी ही प्यारी जवान और गदराई भाभो को वस्त्रहीन कर आत्मसात कर लेने की खातिर गज़ब रूप से बेक़रार हो चुका था। बस मैंने आव देखा न ताव, ऊपर से नीचे तक अंजलि को अपने वर्ज़िशी-बदन के साथ ज़ोर से जकड़ कर लिपटाया और भींच लिया।कोई पन्द्रह मिनट तक हम दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, चूसते रहे फ़िर दोनों पूर्ण-रूप से निर्वस्त्र हो गये।

अंजलि ने जयों ही अपने बेहद कसे हुये नारंगी रंग के विशाल कड़े ब्रेसियर का हूक खोला, उसके दोनों प्रचन्ड रूप से फूले हुये पहाड़ की तरह सख्त राक्षसी स्तन कूद कर आज़ाद होते हुए मेरी लौह छाती पर जैसे बल प्रहार करते हुए आ गिरे। अपने भाभो के उन विशाल नग्न वक्षों से चोट खाकर मेरी नंगी छाती भरपूर गुदगुदा गई और मेरा लौड़ा सनसनाते हुए भक से दस इन्च लम्बा, कड़ा, मोटा और पथरीला हो गया।

मैंने अपने ही छोटे भाई के पत्नी की मालदार चूचियाँ ज़ोर-ज़ोर से मसलना, भकोसना और निप्पल चूसना व काटना शुरू कर दिया, उसके गदराये कन्धों और नितम्बों में दाँत गड़ाना प्रारम्भ किया।

अंजलि खुशी से बेहाल थी। उसने अपने दोनों स्तनों को हाथ में लेकर चूची-चोदन और मुख-चोदन की इच्छा ज़ाहिर की। मैंने भी बेहाल होते हुये झट अपना फुदुआ जो अब काफ़ी मोटे, पिलरनुमा लम्बे और कड़े लण्ड में परिवर्तित हो चुका था, अंजलि के दोनो स्तनों के बीच डाल कर पेलना शुरू कर दिया। जब भी मैं अपना लम्बा लौड़ा अंजलि के दोनों मोटे स्तनों के मांस के बीच गाड़ता वो लौड़े के मूठ को मुँह में लेकर आत्मविभोर हो उसका यौन-रस चूस लेती।


मेरा लण्ड भरपूर गुदगुदा उठा। तुरन्त मैंने भी नीचे आकर अंजलि की योनि को चूसना शुरू किया। उसके भगोष्ठ का बाहरी भाग अत्यन्त मांसल था जिसे मैं देर तक चूसता रहा और दाँतों से भगोष्ठ-द्वार का गोश्त काटता-चबाता रहा, साथ ही परम स्वादिष्ट खट्टे चूतरस का आनन्दातिरेक के साथ नैसर्गिक सेवन करता रहा। अंजलि के योनि-स्राव का स्वाद किसी निरामिश पकवान के चटकार शोरबे से भी कहीं ज़्यादा उत्तेजक और असीम कामोत्तेजक था।

उसकी चूत के चारों ओर फैले बेहद घने, काले, घुंघराले और मोटे-मोटे बड़े-बड़े कड़े-कड़े गद्देदार झांटों के बाल मेरी भाभो के अति-कामोत्तेजक योनि-स्राव से पूरी तौर पर सिन्चित थे और उसकी गाढ़ी खुशबू अंजलि की समुचित यौन-परिपक़्वता दर्शा रहे थे। पुरुष-लौड़े से अनछुए और अछूते इस अज़ूबे परिपक्व चूत और झाँटों का मैं देर तक जिह्वा-चोदन करता रहा, उसके बेहद घने, काले, घुंघराले और मोटे-मोटे बड़े-बड़े झांटों के बालों से खेलता रहा, योनि के अन्दर बार-बार उंगलियाँ डालता-निकालता और चूसता रहा।

अंजलि अब बिल्कुल चुदने-चुदने हो चुकी थी। मेरा बलिष्ठ लण्ड भी बिल्कुल ताड़ के पेड़ की तरह ऊपर उठ चोदने-चोदने हो चुका था। मैंने अंजलि की योनि को अपने थूक से भर दिया और खड़े मोटे सरिये जैसे लौह-लण्ड को पूरा ज़ोर लगा कर भोंकना शुरू किया। अंजलि मारे खुशी और कुँवारेपन के शील-भन्ग के दर्द से चीत्कार कर उठी।

मेरी भाभो अपनी फटती हुए योनि के दर्द पर कराहती रही और मैंने धीरे-धीरे धकेलते हुए अपना समूचा लण्ड अपनी भाभो की बेहद सँकुचित चूत नली के अन्दर ठूँस दिया और ज़ोर-ज़ोर से पेलना शुरू कर दिया। ज़ल्द ही अंजलि को चूत दर्द का एहसास कम और मस्त चुदाई का नशा कहीं ज़्यादा होना प्रारम्भ हो गया। वो नीचे से अपनी चूत उछाल-उछाल कर पूरी रफ़्तार में चूत सिकोड़ती-ढील देती मेरे लण्ड को गपागप निगलती रही, मेरी इज़्ज़त लूटती रही।

शायद मेरे छोटे भाई ने आज तक उसे ऐसी यौन खुशी नहीं दी थी। मैं घपाघप धक्के मारता गया और अंजलि कोई एक घन्टे तक जन्म-जन्म की प्यासी मछली की तरह छटपटा-छटपटा कर मेरे लौह-लण्ड से आँखें बन्द कर धकाधक-धकाधक चुदती-चुदवाती रही।

वास्तव में मेरी कल्पना से भी परे, अंजलि एक बड़ी ही कसी हुई चूत की मालकिन प्रतीत हुई। मेरा लण्ड तो जैसे लेथ मशीन में पूरी तौर पर जाम होकर कसमसाता हुआ मस्त चूत की गहरी खाई के अन्दर ज़ोर-ज़ोर से भका-भक किसी रेती जैसी चूत-नली-दीवार द्वारा ताबड़तोड़ रगड़ाता जा रहा था। मोटर-पिस्टन जैसे इस तेज़-गति चुदाई के दौरान हम दोनों के अनवरत यौन-स्राव से मेरे स्टडी-रूम में अति-कामोत्तेज़क यौन-पूर्ण खुशबू फैल चुकी थी, तथा फचाफच चुदाई की घनघोर वासनोत्तेज़क आवाज़ हम दोनों की यौन-क्रिया उत्प्रेणनऔर काम-शक्ति बढ़ोत्तरी में अति-सहायक सिद्ध हो रही थी।

हम दोनों पाशविक हविश के गुलाम बने वहशी जानवर की तरह कामाग्नि में लगातार जले जा रहे थे। मैं बड़ी ही तन्मयता से पागल कुत्ते की तरह अपने ही खास छोटे भाई की जवान विवाहिता पत्नी की कड़ी चूत को लण्ड धकेल-धकेल भचा-भच पेलता जा रहा था, उसके मोटे मान्सल स्तनों के गोश्त को नोचता जा रहा था, अपने दोनो हाथों से एक-एक स्तन को भचोड़ते हुये अपने मुँह में भकोसता जा रहा था, और अंजलि उतनी ही तन्मयता से पागल कुत्ती की तरह लगातार अपने भैसुर के लौह-लण्ड से चुदी जा रही थी, मेरे कड़े लौंड़े को अपनी चूत-नली के अन्दर निगली जा रही थी, मेरे जिह्वा में जिह्वा डाल मेरा मुख-स्राव चूसी जा रही थी।

आश्चर्य हो रहा था कि ना तो हम दोनों का दिल या मन भर रहा था, ना ही भोग-वासना की लज़ीज़ चाशनी में डूबा हुआ शरीर थक पा रहा था।
 
 
 





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