Saturday, July 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI चिन्गारी चाची की-1

FUN-MAZA-MASTI




  चिन्गारी चाची की-1

 प्रिय दोस्तो, मेरा नाम मनोहर है, मैं 23 वर्ष का हूँ, मुझे मेरे घर वाले मनु कह कर बुलाते हैं।
मैं एक हट्टा-कट्टा मर्द हूँ, मेरा कद छह फुट एक इंच है और मैं रेलवे में इंजिनियर हूँ।
मुझे राजस्थान के एक छोटे से शहर में रेलवे का क्वार्टर मिला हुआ है जिसमें मैं अपनी चाची के साथ रहता हूँ।
मेरी चाची एक विधवा है, मेरे चाचा जी भी रेलवे में नौकरी करते थे, कुछ साल एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु कार्य-स्थल पर हो गई थी। इसलिए रेल विभाग ने मेरी चाची को एवज में पेंशन तथा रेलवे में नौकरी भी दे दी थी।
क्योंकि मेरी मम्मी-पिताजी और चाचाजी का निधन एक रेल दुर्घटना में तब हो गया था जब मैं सिर्फ दस वर्ष का था। उस दुर्घटना के बाद मेरी चाची ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया।
मेरी चाची बहुत सुंदर है और उसका रंग तो बहुत साफ़ है तथा वह अभी भी वह एकदम जवान दिखती है।
उसको देख कर कोई भी नहीं कह सकता कि वह 38 वर्ष की विधवा है।
मेरी चाची के मादक शरीर के पैमाने 36-30-38 है और वह अब भी कई जवान लड़कियों को शर्मिंदा कर देता है।
उसके सुडौल, सख्त और मस्त गोल गोल चूचियाँ में अभी तक कोई ढलकाव भी नहीं आया है। वह अभी भी 23-24 वर्ष की किसी भी लड़की की मस्त चूचियों के साथ मुकाबला करके उन्हें मात दे सकती हैं।
उसके नितम्ब देखने में एक अजूबे से कम नहीं हैं क्योंकि जब वह चलती है तो चूतड़ ऐसे लहराते हैं कि किसी भी देखने वाले की जान निकल जाए।
वह सीना तान कर चलती है और उसके नितम्ब तो ऐसा नृत्य करते हैं कि जिसका आनन्द लेते हुए कोई भी अपना रास्ता खो जाए।
जब हम बाजार जात हैं तो हमें कई छिछोरों की सीटियाँ आम सुनने को मिलती हैं।
मेरे को तो बहुत गुस्सा आता है पर चाची मुझे उन्हें कुछ कहने से हमेशा रोक देती है।
अब आपका अधिक समय व्यर्थ नहीं करते हुए मैं आपको उस घटना का विवरण बताता हूँ जो मेरे साथ लगभग दो वर्ष पहले घटित हुई थी।
यह बात दिनों की है जब मैं 21 वर्ष का था और उस समय मेरी चाची 36 वर्ष की थी।
मैं पास के बड़े शहर के एक कॉलेज इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ता था और मेरी चाची की नौकरी वहीं पास के एक छोटे शहर के रेलवे स्टेशन में लगी थी।
रेल से चाची के उस छोटे शहर की दूरी मेरे शहर से सिर्फ 35 मिनट की ही थी।
मुझे भी इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए रेलवे की ओर से वृत्तिका तो मिलती थी पर हॉस्टल के लिए खर्चा नहीं मिलता था इसलिए मैंने उस शहर में अपने पिताजी के एक जान पहचान वाले से उसके घर में ऊपर वाला एक कमरा, रसोई और बाथरूम किराये पर लेकर उसमें रहने लगा था।
मैं अधिकतर हर सप्ताह के शनिवार और इतवार को चाची के पास चला जाता था, लेकिन जब कभी कॉलेज में एक्स्ट्रा क्लास होती थी तब नहीं जा पाता था।
उस इतवार को चाची सुबह की गाड़ी से मेरे पास आती थी और दिन भर मेरे साथ रह कर शाम की गाड़ी से वापिस चली जाती थी।
दिन में वह चौका-बर्तन करती, मेरे कपड़े आदि धो देती और कमरे की सफाई आदि भी कर देती थी।
एक बार चाची इतवार की सुबह आई और हर बार की तरह जब शाम को सात बजे वापिस जाने के लिए रेलवे स्टेशन गई तो उन्हें पता चला की गुर्जर आन्दोलन के कारण उस मार्ग की सभी गाड़ियाँ रद्द कर दी गई थीं।
मैं उस समय उनके साथ ही था और क्योंकि बस से जाने से उसके शहर पहुँचने में दो घंटे लग जाते हैं इसलिए मैंने चाची को रात में वहीं रुकने के लिया मना लिया।
वापसी में हम दोनों बाज़ार से रात के लिए खाने और अन्य आवश्यक सामान ले कर कमरे पर आ गए।
कमरे में पहुँच कर चाची ने रात के लिए खाना बनाया और हम दोनों ने खाया। फिर मैं पढ़ाई करने बैठ गया और चाची बर्तन साफ़ कर और रसोई का काम निपटा कर बिस्तर के एक कोने में बैठ कर कुछ सोचने लगी।
जब मैंने चाची से पूछा कि वह क्या सोच रही है तो उसने कहा कि उसके पास तो रात के पहनने के लिए कोई कपड़े नहीं हैं इसलिए वह क्या पहन कर सोयेगी।
तब मैंने उसे कहा कि रात के लिये वह मेरी लुंगी और बाजू वाली बनियान पहन ले तथा मैंने वह सब उसे निकाल कर दे दीं।
चाची ने अपनी साड़ी उतार कर अलमारी में रख कर, लुंगी और बनियान ले कर बदलने के लिए बाथरूम में चली गई।
जब वह बाथरूम से बाहर आई तो मैं उसका यह रूप देख कर दंग रह गया।
चाची ने पेटीकोट, ब्लाउज, ब्रा और पैन्टी उतार कर सिर्फ लुंगी और बनियान ही पहन रखे थे। उनके मादक शरीर की झलक उन कपड़ों में से साफ़ दिख रही थी और वह उन दो कपड़ों में वह बहुत सुंदर तथा कामुक लग रही थी।
उन कपड़ों में उन्हें देख कर कोई भी उनकी उम्र का अंदाज़ नहीं लगा सकता था और सभी उन्हें 25-26 वर्ष की लड़की ही समझता।
इस से पहले भी मैंने चाची को पेटीकोट और ब्लाउज में तो कई बार देखा था पर आज का नज़ारा कुछ और ही था।
इन कपड़ों में चाची की चूचियाँ बनियान से बाहर निकलने को बेताब थीं और उनके चुचूकों का गहरा रंग बनियान में से साफ़ साफ़ झलक रहा था।
उसकी छत्तीस इन्च की चूचियाँ इतनी बड़ी होंगी मुझे इसका अंदेशा नहीं था।
मेरे मन में कई विचार उठने लगे, मेरा मन करने लगा कि मैं भाग कर चाची की चूचियाँ पकड़ लूँ और उनको चूस कर सारा रस पी जाऊँ।
इससे पहले कि मेरे मन कुछ और ऐसे वैसे विचार आते, मैं अपने मन को पढ़ाई में लगाने की चेष्टा करने लगा था।
क्योंकि मेरे कमरे में सिर्फ एक ही बेड था इसलिए चाची ज़मीन पर चटाई बिछा कर सोने की तैयारी करने लगी।
यह देख कर मेरे से रहा नहीं गया और मैंने चाची को कहा कि वह चारपाई पर सो जाये और मैं चटाई पर सो जाऊँगा।
लेकिन चाची नहीं मानी और कहने लगी कि या तो दोनों चारपाई पर सोयेंगे या सिर्फ वह ही चटाई पर ही सोएगी।
काफी बहस के बाद जब चाची ने जब यह कहा कि पन्द्रह वर्ष की उम्र तक मैं उनके साथ एक ही बेड पर सोता था तब मुझे झुकना पड़ा और उनका कहना मानना पड़ा कि हम दोनों एक साथ चारपाई पर सोयेंगे।
कुछ देर बाद चाची मेरी ओर पीठ करके सो गई और मैं अपनी पढ़ाई करता रहा।
रात को करीब 11 बजे मुझे नींद आने लगी, तब मैं टेबल-लैम्प बंद करके चाची की बगल में उसकी ओर पीठ करके सो गया।
मुझे सोये हुए शायद कुछ घंटे ही हुए होंगे कि मेरी नींद खुली और मैंने पाया कि मैंने करवट ले ली थी और मैं चाची की ओर मुख कर के सो रहा था।
मेरा दाहिना हाथ चाची के कमर के ऊपर था और मेरी जांघें चाची की जांघों से सटी हुई थी।
मैं करवट बदलने की सोच रहा था और अपना हाथ उठाने वाला ही था कि चाची ने मेरा हाथ खींच कर अपनी छाती पर रख दिया।
मैं उनकी इस हरकत से सन्न रह गया और चाची जाग न जाये इसलिए मैं उसी हालत में उनकी एक चूची को पकड़ कर लेटा रहा।
मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी और मेरा लंड खड़ा हो गया था और वह चाची के नितंबों के बीच कि दरार में घुसने कि कोशिश कर रहा था।
मुझे डर लग रहा था कि अगर चाची जाग गई तो मेरे बारे में क्या सोचेगी और मेरी इस हरकत पर क्या कहेगी।
तभी मैंने महसूस किया कि चाची ने चूची पर रखे हुए मेरे हाथ को दबाया और अपनी टांग उठा कर मेरे लंड को दरार में घुसने के लिए जगहें बना दी।
इस आज़ादी मिलने से मेरा लंड फनफनाने लगा और चाची की जाँघों के अंदर की ओर सरकने लगा।
तभी मैंने एक और चीज़ महसूस की कि मेरा लंड मेरी लुंगी के बाहर था और चाची की लुंगी भी उनके ऊपर नहीं थी।
यानि मेरा नंगा लण्ड चाची की नंगी जांघों के बीच की जगह में घुस रहा था और मैं अपने लंड को रोकने पर भी नहीं रोक पा रहा था।
मैंने जो हो रहा था उसे रोकने की कोशिश छोड़ दी और इंतज़ार करने लगा कि आगे क्या होता है।
कुछ देर के बाद मैंने महसूस किया कि मेरा लंड चाची की टांगों के बीच में चूत की फांकों के मुँह के पास पहुँच कर रुक गया था।
तभी चाची की टांग हिली और मैंने पाया कि मेरा लंड झट से चाची की चूत के होटों से चिपक गया था।
मेरे पसीने छुटने लगे थे क्योंकि चाची की चूत के पास की गर्मी से मेरा लंड फ़ैल कर पूरा सात इंच लंबा और ढाई इंच मोटा तथा लोहे की छड़ की तरह सख्त भी हो गया था।
उस स्थिति में मैं क्या करूँ, मुझे समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने सब कुछ चाची पर छोड़ दिया और इंतज़ार करने लगा।
कहते हैं कि इंतज़ार का फल मीठा होता है और मुझे जल्द ही महसूस होने लगा कि चाची भी गर्म हो चुकी थी क्योंकि उसकी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से मेरा लंड भी गीला होने लगा था।
तभी चाची ने एक और हरकत की और अपने हाथ से मेरे लंड का सुपारा अपनी चूत के मुँह के आगे करके थोड़ा नीचे सरक गई।
बस फिर क्या था, मेरा गर्म लंड चाची की चूत के अंदर जाने को लपक पड़ा और देखते ही देखते मेरा लंड चाची कि चूत में दो इन्च तक अंदर घुस गया था।
तभी चाची का हाथ मेरे नितम्ब पर पड़ा और उन्होंने मुझे आगे सरकने के लिए दबा कर इशारा किया।
फिर क्या था, मुझे तो खुली इजाजत मिल गई थी और मेरा सारा डर भाग गया था।
मैं आहिस्ते से हिला और आगे की ओर सरका, जिससे मेरा लंड भी चाची की चूत में और आगे घुसने लगा था।
कुछ ही देर में मेरे कुछ हल्के और दो जोरदार धक्कों कि वजह से मेरा लंड पूरा का पूरा चूत के अंदर घुस गया था।
चाची शायद इतना लंबा और मोटा लंड लेने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए उसके मुख से जोर से हाएईईई….. निकल गई।
मैं घबरा गया और झट से पूछ बैठा- चाची, सब ठीक है न?
तब उन्होंने कहा- हाँ मनु, सब ठीक है, तुम चुदाई चालू रखो।
फिर क्या था, चाची के मुख से ये शब्द सुनते ही मैं पूरे जोश से चुदाई में पिल गया और तेज तेज धक्के मारने लगा।
चूत गीली होने के कारण लंड बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था।
चाची की चूत भी तंग होने लगी थी और उसकी पकड़ लंड पर मज़बूत होती जा रही थी जिससे मेरे लंड को रगड़ भी ज्यादा लग रही थी।
चाची की आह्ह… ह्ह्ह्ह… और उंहह्ह… उंहह ह्ह्ह… की आवाजें भी तेज होने लगी थी लेकिन मैंने इसकी परवाह किये बिना उनकी चुदाई चालू रखी।
एक समय आया जब चाची चूत एकदम सिकुड़ गई और मुझे लंड अंदर बाहर करने में मुश्किल होने लगी।
तभी चाची एकदम अकड़ गई और उन्होंने अपनी दोनों टांगें सिकोड़ ली तथा जोर से चिल्ला भी पड़ी- आईईई… ईईईईईईईईईए…..
मैं समझ गया कि चाची का पानी छूट गया था। मैंने उनकी चुदाई थोड़ी और तेज कर दी और तब चाची ने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया तथा अपने शरीर को मेरे धक्कों के साथ साथ हिलाने लगी।
वह जोर जोर से आह्ह्ह… आह्ह्ह्ह… उंहह्ह ह्ह्ह…. उम्हह्ह… की आवाजें भी निकालने लगी।
अब चुदाई का आनन्द चार गुना हो गया था और मैं इस इंतज़ार में था कि कब मेरा छूटता है।
अगले दस मिनट तक मैं चाची को उसी तरह चोदता रहा और इस बीच में चाची ने आह… आह्ह… उह्ह… उहह.. की आवाजें की तथा उनकी चूत तीन बार सिकुड़ कर अपना रस छोड़ा था।
जब मुझे लगा कि मेरा भी रस छूटने वाला था, तब मैंने चाची से पूछा- चाची, क्या मैं अपना रस चूत के अंदर छोड़ूँ या बाहर निकालूँ? चाची ने जवाब दिया- मनु बेटे, अंदर ही छोड़ देना।
बस फिर क्या था, मैंने भी चाची की चुदाई फुल स्पीड से करनी शुरू कर दी और जैसे ही चाची अकड़ कर आईईई…ईईईईए… आईईईए… करती हुई छूटी, मैंने भी चाची की प्यारी सी चूत के अंदर अपनी पिचकारी चला दी।
वह पिचकारी इतनी चली और चलती ही गई कि मैं खुद हैरान हो गया था कि मेरे अंदर इंतना रस कहाँ से आ गया था जो मैं आज तक भी समझ पाया।
हम दोनों के छूटने का समय ने बहुत ही मेल खाया था और उस समय मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा आनन्द महसूस किया था।
मैं इस आनन्द की अनुभूति चाची के मुख पर भी देखना चाहता था इसलिए मैंने टेबल लेम्प को ऑन कर दिया।
मुझे चाची के चेहरे पर एक अजीब सा संतोष नज़र आया जो मैंने पिछले दस वर्ष से नहीं देखा था।
चाची रोशनी में मुझे देख कर मुस्करा दी, मेरे होंटों पर होंट रख एक चुम्बन दे दिया और फिर बोली- अब अपना लंड बाहर निकाल दो ताकि मैं शौचालय तो जा सकूँ।
मैं एकदम से अपने होश में आ गया और थोड़ा शरमा भी गया, मैंने अपने लंड को आहिस्ता आहिस्ता बाहर खींचा चाहा, लेकिन वह अभी तक अंदर फंसा हुआ था, चाची की चूत बहुत तंग हो गई थी और लंड को छोड़ ही नहीं रही थी।
मैंने चाची को चूमते हुए धीरे से कहा- आपकी चूत मेरे लंड को छोड़ ही नहीं रही तो बताइये कि मैं उसे बाहर कैसे निकालूँ।
इस पर वह हंस पड़ी और कहा कि अगर वह अभी थोड़ी सी भी ढीली हुई तो सारा रस बाहर आ जायेगा।
तब मैंने कहा- तो फिर ऐसे ही बीच में डाले डाले ही शौचालय में चलते हैं।
चाची खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी चूत ढीली करने के लिए मान गई।
चाची ने अपनी चूत थोड़ी जैसे ही ढीली की, मैंने अपने लंड को बाहर निकाला लेकिन उसके साथ ही चूत में पड़े हुए मेरे और चाची के रस का एक फव्वारा छुट गया।
चाची ने एकदम से अपनी चूत को सिकोड़ लिया और मैंने अपना हाथ उनकी चूत के ऊपर दबा दिया जिससे सब कुछ नियंत्रण में आ गया।
मैं उसी तरह चूत पर हाथ रख कर चाची को बाथरूम तक ले गया और यह देखता रहा कि आगे क्या होता है।
मेरे मन में चाची की चूत में से निकलते हुए रस को देखने की बहुत लालसा हो रही थी और जब चाची ने अपनी चूत को ढीला किया और उस में से फव्वारा छुटा तो मेरी वह हसरत भी पूरी हो गई।
जब चूत के अंदर से खूब रस निकला तो चाची भी बहुत चकित हो गई और बोली- बेटे, यह माल कितने सालों से जमा किया हुआ है? क्या तुमने पहली बार चुदाई की है?
तब मैंने कहा- हाँ चाची, चुदाई तो मैंने पहली बार की है, पर हस्तमैथुन कई बार किया है और यह माल तो सिर्फ एक दिन का है, तो चाची से नहीं रहा गया और बोल पड़ी- अगर इतना रस एक दिन का है तो फिर एक हफ्ते में तो तू इतना तैयार कर देगा कि मैं उसमें डुबकी लगा लूँगी।
चाची की इस बात पर मेरी हसीं निकल गई।
जब चाची की चूत में से सारा रस बाहर निकल गया तब चाची ने चूत को अच्छी तरह से साफ़ की और खड़ी हो गई।
वह इस समय सिर्फ बनियान में थी क्योंकि मेरी और उसकी लुंगी तो चुदाई के समय खुल गई थी और बिस्तर पर पड़ी थी।
चाची अब आगे बढ़ी और बिल्कुल मेरे सामने आकर, नीचे बैठ कर, मेरे लंड को पकड़ कर चूमने लगी।
मुझे यह बहुत अच्छा लगा और मैंने भी लपक कर चाची को गोद में उठा लिया और उसके जिस्म पर चुम्बनों की बौछार कर दी। इसके बाद मैंने चाची की और अपनी बनियान भी उतारी और बिल्कुल नंगे होकर बिस्तर पर एक दूसरे कि साथ लिपट कर सो गए।
कहानी जारी रहेगी।





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