Wednesday, April 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--9

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--9
 स्टेशन पहुँच के वो अचानक बोले कि अरे मैं एक जरुरी चीज लगता है भूल गया हूँ| ये साला तो है हीं| मैं अगली गाड़ी से या बाई रोड सुबह पहुँच जाऊँगा|


मैं क्या बोलती| ट्रेन छूटने का समय हो रहा था| हम लोगों का रिजर्वेशन एक फर्स्ट क्लास के केबिन में था| मुझे खराब तो बहुत लगा लेकिन क्या बोलती| मेरी हालत जान के मेरे भाई के सामने मुझे कस के चूम के वो बोले,

“अरे मैं जल्द हीं तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा और तब तक तो ये सल्ला है हीं तुम्हारा ख्याल रखने ले लिए|”


और उससे बोले,

“साले अपनी बहन का ख्याल रखना| किसी हाल में मेरी कमी महसूस मत होने देना, वरना लौट के तेरी गांड़ मार लूंगा|”

वो हँस के बोला,

“नहीं जीजा, जैसा आपने कहा है एकदम वैसा हीं करूँगा|”

तब तक ट्रेन ने सीटी दे दी और वो उतर गये|

टीटी ने टिकट चेक करने के बाद कहा कि आज ट्रेन खाली हीं है और अब इस केबिन में और कोई नहीं आयेगा, इसलिए हमलोग दरवाजा अंदर से बंद लें|

फर्स्ट क्लास की चौड़ी सीट...वो बैठ गया और मैं थोड़ी देर में, मैं दिन की थकी, उसके जाँघों पे सिर रख के लेट गई| खिड़की खुली थी| होली के पूनो का चाँद अंदर झांक रहा था, मेरे गदराए रसीले जिस्म को सहलाता...फगुनाई हवा मन में, तन में मस्ती भर रही थी| मेरी कजरारी आँखें अपने आप बंद हो गईं|


आंचल मेरा लुढ़क गया था...कसे ब्लाउज में उभरे जोबन छलक रहे थे| मैंने एक दो हुक खोल दिये| आँखें बंद थी, लेकिन मन की आँखें खुली थीं और दिन भर का सीन चल रहा था|

मैंने सोचा होली हो ली, लेकिन ननद की बात याद आई...ये तो अभी शुरुआत है|



कल घर पे जम के होली होगी| 

अब हम लोगों के बदला लेने का मौका होगा, मेरी बहनें, सहेलियां, भाभियाँ और जैसा मैं इनको समझ गई थी ये भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले थे| आगे पीछे हर ओर से...और भाभी ने बोला था कि वो मुझे भी... सोच सोच के सिहरन हो रही थी|

फिर लौट के... ससुराल में ...

ननद जिस तरह से शेरू के बारे में बात कर रही थीं और नंदोई ने भी कहा था कि...तब तक जैसे अंजाने में उसका (मेरे भाई) हाथ पड़ गया हो...मेरे ब्लाउज के ऊपर उसने हाथ रख दिया|

मैंने भी नींद में जैसे उसका हाथ खींच के खुले ब्लाउज के अंदर सीधे उरोज पे रख दिया| मस्ती से मेरी चूचियाँ पत्थर हो रही थी| उसका असर उसके ऊपर भी...मेरे होंठ सीधे उसके अकड़ते तन्नाते शिश्न पे...


सुबह जब मैंने पहले पहल 'उसका' देखा था...जब वो नंदोई और 'उनके' साथ...मेरा मन कर रहा था, उसका गप्प से मुँह में ले लूं|


अब फिर वही बात, मेरे होंठ गीले हो रहे थे|  


मैं हल्के हल्के नेकर के ऊपर से हीं उसे रगड़ रही थी|मुलायम और कड़ा दोनों हीं लग रहा था, मेरे लंबे नाख़ून उसके साइड से सहला रहे थे| हल्के से मैंने उसका बटन भी खोल दिया, उधर उसने भी मेरे ब्लाउज के बचे हुए हुक खोल दिये और कचाक से मेरा जोबन ब्रा के ऊपर से...  

 सुबह जो काम मैंने नहीं किया था , बस सोच के रह गयी थी , वो काम अब किया। गप्प से उसका लीची ऐसा सुपाड़ा मुंह में ले लिया और चूसने चुभलाने लगी।

क्या स्वाद था। खूब रसीला। और वो भी मेरे गदराये जोबन को चूस रहा था , दबा रहा था। एकदम पागल हो गया था मृ चूंचियों को पा के।

मैं कुछ देर चूसती चुभलाता रही , फिर उसे तंग करते प्यार से मैं उसके बॉल्स सहलाने लगी , उनसे खेलने लगी। उसका जोश बढ़ता जा रहा था। वो हलके हल्के धक्के मेरे मुंह में मारने लगा , और साथ ही उसके होंठो मेरे निपल्स चूस रहे थे और एक हाथ मेरे निचले होंठों को सहला रहा था।

बस मन कर रहा था , कर दे वो ,

गाडी तेजी से मेरे मायके की और चली जा रही थी


तब तक खट-खट की आवाज हुई| कौन हो सकता है,मैंने सोचा, टीटी ने टिकट तो चेक कर लिया है और बोल के गया था कि कोई नहीं आयेगा| आंचल से खुला हुआ ब्लाउज मैंने बिना बंद किये ढक लिया और उससे बोली, “हे देखो, कौन है?”

मैं दंग रह गई|
वही थे|


“अरे तुम सोचती थी, इत्ते मस्त माल को छोड़ के मैं होली की रात बेकार करूँगा| मैं ट्रेन चलने के साथ हीं चढ़ गया था और झांक के सब देख रहा था|”

वो बोले और उसके सामने हीं मुझे कस-कस के चूम लिया, फिर उसके पीछे जा के खड़े हो गये और उसका नेकरसरकाते बोले,

“लगे रहो साल्ले, होली में...”

और फिर रात भर हम लोगों की होली होती रही|

तो आप बताएं कैसी लगी ये दास्तान और लौट के मैं बताउंगी क्या हुआ रंग पंचमी में
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