FUN-MAZA-MASTI
कोमल की कहानी --5
मैंने बाँहों में भर कोमल को पलट नीचे दबाया और ऊपर चढ़ लिंग को उसकी योनी पर दबा अन्दर घुसेड़ा पहले धीरे से और ..योनी बिलकुल सरोबार थी रस से.... फिर भी लिंग को अन्दर जाने में जैसे कोई रुकावट लगी, कोमल की योनी टाईट थी, वो फुसफसाने लगी "धीरे कर.. धीरे धीरे ..."..... लेकिन मुझे चैन कहाँ ...भरपूर प्रहार से लिंग अन्दर जा घुसा ." उई उई..आ आ आ.... करती हुए उसकी कराहने की आवाज़ निकली, मैंने उसके मुहं को हाथों से दबाया डर लग रहा था कहीं जोरों से चिल्ला नहीं बैठे और लिंग के धक्के जारी रक्खे, " आह ...आह....आआ..." वो अब कराह रही थी और मुझे कभी अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी..और कभी मेरी कमर पकड़ मेरे धक्को के साथ जैसे लय मिलाते हुए नितम्ब उठाकर धक्के दे रही थी....कुछ ही देर में सिसकारी की आवाज़ धीमी हो गयी और उसने मुझे चूमते हुए जोरों से पकड़ साथ देना शुरू कर दिया.... अब उसकी आवाज़ में एक आनंद था...उसकी योनी रस से भरपूर मेरे लिंग को पूरा निगल रही थी. यूं तो योनी टाईट थी लेकिन उसने फ़ैल कर लिंग को अन्दर समा लिया और अब लिंग योनी रस के कारण स्वाभाविक रूप से योनी को घर्षण करता हुआ धक्के लगा रहा था, कोमल भी उन धक्कों का जवाब देने लगी... उसने जांघें उठा मेरे चूतड़ों को लपेट लिया और हाथों को पीठ पर दबा अपने अपने नितम्ब उठाते हुए हौले हौले मेरे हर धक्के का जवाब दे रही थी.. बहार अभी भी अँधेरा था.. हम एक दुसरे में गुंथे पड़े थे, कोमल अत्यंत गर्म हो गयी थी, उसने मुझे गालों पर काट लिया और पीठ को नाखूनों से खरोंच डाला, उसकी सांसें जैसे थक कर भारी हो गयीं , मेरी हालत भी ऐसी ही थी, हमें होश नहीं था, कोमल के स्तनों को चूस डाला और घुंडियों को खींच कई बार काट डाला, वो कराहने लगती लेकिन मुझे रोकती नहीं और मेरी पीठ और चूतड़ों को दबा और धक्के लगाने का इशारा करती, कोमल बहुत ही कामुक थी ये तो मैं पहले ही समझ गया था लेकिन सम्भोग में भी इतना ही खुल कर मजे से साथ देगी मैने नहीं सोचा था, हम पसीने पसीने थे और पूरी तरह नग्न, कुछ ही क्षणों में जैसे लिंग से लावा फूट कर बहने लगा, मैं कोमल पर निढाल सा पड़ गया, उसने भी मुझे जोरों से बाँहों में दबा लिया, शरीर के रोम रोम में रोमांच था, जैसे नसों से कुछ बहता हुआ एक जोर की उत्तेजना के साथ लिंग से निकल पड़ा हो, ऐसा आनदं कभी पहले महसूस नहीं किया था, किसीने जैसे शरीर को तोड़ दिया हो, जैसे की सारी थकावट दूर हो गयी और शरीर हल्का हो कर उड़ने लगा हो, हम कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे, सांसें धीमें हुईं और लिंग सिकुड़ ठंडा हो गया मैंने योनी से बाहर खींचा, कोमल आँखें बंद किये निढ़ाल पडी थी, मैंने ध्यान से देखा कोंडोम वीर्य से भरा था, ऐसा लगा जैसे कोमल की जांघों पर कुछ धब्बे लगे हुए थे, मुझे लगा कौमार्य का स्राव होगा मैंने सावधानी बरती थी की सोफे पर तौलिया बिछा दिया था, कोमल ने पूछा " खून है क्या ....? दर्द हो रहा है ..." मैंने इशारे से हाँ कहा, वो बोली "तुम्हारा कहाँ है... अन्दर तो नहीं गया न.." मैंने कहा "डर मत.. कुछ नहीं होगा, ....मैं आता हूँ..." कह कर मैं बाथरूम में गया और कोंडोम को फ्लश कर दिया, कोंडोम पर खून के धब्बे थे जिन्हें देख मुझे एक अजीब एहसास हुआ, लगा की मैं क्या कर बैठा, अनायास ही कोमल के लिए मन में प्यार और एक सुरक्षा की भावना आयी जैसे वो मेरी हो, मैं कुछ देर यूं ही सोचता रहा, बाहर आया तो देखा कोमल ने कपड़े पहन लिए थे और सोफे पर बैठी थी, मैंने पैंट पहना और उसके पास बैठ गया, वो उदास थी, चेहरा उतरा हुआ बिलकुल रोने जैसा, "क्या हुआ..." मैंने पुछा , वो बिना कुछ जवाब दिए उठी और मुझे कंधे पर धक्का देते हुए अपने कमरे में चली गयी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्या हुआ, अभी तो बिलकुल ठीक थी और इतनी देर तक तो मस्ती से सम्भोग में लिप्त थी और अब क्या हुआ अचानक. मैंने सोफे को ठीक ठाक किया, तौलिया उठाया और कमरे में आकर सोने की कोशिश कर रहा था. अब तक दिन निकलने लगा था, हल्का उजाला हो गया था, मैं सोच रहा था ये अचानक कोमल को क्या हो गया, कुछ देर पहले मेरे उसके बीच जो हुआ उसपर विश्वास नहीं हो रहा था, ये तो किस्मत थी की कोई भी घर में इस दौरान जगा नहीं, हम दोनों ही कुछ ऐसा खो गए थे की होश नहीं था किसीने देखा लिया होता तो हम दोनों ही मारे जाते और कोमल का क्या होता, यही सब सोचते सोचते नींद लग गयी.
सुबह उठा तो बहुत देर हो गयी थी, बाबूजी और कोमल के पिताजी बाहर जा चुके थे, माँ और कोमल की मम्मी बाहर के आहाते में थे , कोमल कहीं दिखी नहीं, अपने कमरे में भी नहीं, किसीसे पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई, मैं बाथरूम में गया, रात को जो तौलिया इस्तेमाल किया था उसपर कुछ हल्के लाल धब्बे लगे थे उनको गर्म पानी से धो कर बाकी कपड़ों के साथ धोने में डाल दिया, बहुत डर भी लग रहा था की किसी को कुछ भनक न लग जाए. मैं स्नान कर आया तो माँ किचेन में थी, पुछा " क्या बात है.. आज इतनी देर सोते रहे , नाश्ता कर ले" , मुझसे रहा नहीं गया ' कोमल कहाँ है... " मैंने पुछा, " उसकी तबियत ठीक नहीं... शायद बुखार है... बाबूजी के साथ डाक्टर के यहाँ गयी है." यह सुन मुझे काटो तो खून नहीं... ये क्या हुआ... उसकी तबियत ज्यादा ख़राब तो नहीं... कहीं डॉ को पता चल गया तो... लेकिन ऐअसा कुछ हुआ नहीं... कुछ देर में कोमल वापस आयी, वो काफी कमजोर और उदास लग रही थी, डॉ ने बताया कुछ नहीं है और सिर्फ थोड़ी थकावट है ... आराम करो तीन दिन सब ठीक हो जाएगा...कोमल बिना मुझसे नजरें मिलाये अपने कमरे में चली गयी, माँ और उसकी मम्मी भी गयीं और उसे आराम करने की हिदायत दी..." तुम कोमल के पास बैठो.. उसका मन लगेगा...उसे दवा दे देना और बातें करना" कहती हुई उसकी मम्मी ने मुझे उसके पास भेज दिया, मैं कोमल के बिस्तर पर उसके नजदीक बैठ उसके हाथों को सहला रहा था की कोमल बोल पड़ी
" मैंने बहुत गलत किया कल रात, किसी लड़की को शादी से पहले ऐसा नहीं करना चाहिए..."
"कोई गलती नहीं हुई... हमने जो भी किया सच्चे मन से किया.. कोई पाप नहीं था" मैंने कहा, मैं उसे काफी देर तक समझाता रहा, "जो हो गया उसमे में दुखी न हो कर जिन्दगी जीने का सुख लेना चाहिए .." इस प्रकार की कई बातें कर के किसी तरह उसके मन को हल्का किया, मैंने देखा बातें करते करते उसने अपना मुहं मेरी गोद में छिपा लिया था और सुबक रही थी, थोड़ी देर में उसका रोना बंद हो गया, " किसी से कभी बताओगे तो नहीं..." कोमल ने कहा, "तुम पागल हो क्या..., मैं क्यूं बताऊँगा...मैंने दिल से तुमको प्यार किया है..." मैंने कहा, कोमल को कुछ सांत्वना हुई, "चलो, उठो और तैयार हो जाओ.. हमलोग बाहर बगीचे में बैठते हैं.. माँ और आंटी किचेन में थे, हम बहार आ गए.... " मुझे वहां दर्द हो रहा है... कुछ हो तो नहीं जाएगा " कोमल ने पुछा उसकी आँखों में चिंता थी, " कुछ नहीं... थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा... दर्द ज्यादा है क्या.." मैंने पुछा तो उसके चेहरे पर इतनी देर बाद पहली बार मुस्कराहट देखी
" नहीं.. हल्का हल्का... जैसे कोई दाँतों से काट रहा हो....."
" कौन काट रहा है..." मैंने पुछा तो कोमल ने मुस्कुराकर दिया पर कुछ कहा नहीं. उसे काफी समझाया और सांत्वना दी. मुझे लगा की अब उसके मन की अवस्था ठीक हो रही थी और मुझसे शिकायत करके उसने अपने मन का बोझ हल्का कर लिया था... मैं उसका ध्यान रात की बातों से हटाकर उसकी उदासी को दूर करना चाहता था. कोमल की तबियत शाम तक कुछ ठीक लगने लगी, बुखार अब नहीं था, उनको २ दिन और रुकना था और फिर पुरी के लिए जाने वाले थे, वहां १ हफ्ते रुक कर सीधा अलीगढ़ वापस लौटने का कार्यक्रम था. शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी घर आये तो किसी ठेके के बारे में बातें कर रहे थे जो कलकत्ते से २ घंटे पर था बिजली के नए बन रहे कारखाने में. कोमल के पिताजी उसमे इच्छुक थे और सुबह कम्पनी ऑफिस में किसीसे मिलने गए थे. बातों ये मालूम हुआ की पुरी से लौटते हुए वो पुनः हमारे घर पर रुकेंगे, शायद एक या दो दिन. मुझे सुन कर खुशी का अंदाजा नहीं रहा, लगा जैसे भगवान मेरी बातें सुन रहा था और मुझ पर मेहेरबान था. रात तक कोमल का मूड कुछ कुछ ठीक हो गया था, मैं उससे ज्यादा बातें नहीं कर रहा था और सोच रहा था की उसे खुद ही महसूस हो की जो कुछ हुआ उसमे किसीकी गलती नहीं थी और ये सब स्वाभाविक था, उसके मन से किसी तरह की गलती करने की भावना दूर हो जाये. रात मैंने पुछा तो उसने बताया की अब दर्द नहीं के बराबर है. सच पुछा जाये तो मुझे लगा वाकई दर्द कभी इतना था ही नहीं बल्की उसके मन में गलती किये जाने की भावना ज्यादा थी. खैर जो भी हो, उसका मूड ठीक हो रहा था ये खुशी की बात थी. उस रात मैं उसके बगल में बैठा था ड्राइंग हॉल में और सबसे नजरें बचा कर उसके हाथों पर हाथ रक्खा तो उसने भी धीरे से मेरे हाथों को दबा दिया और मेरी और देखा. मैं अपने कमरे में सोने गया लेकिन नींद नहीं थी आँखों में. बार बार कोमल का मासूम चेहरा और उसके मादक बदन की याद आ रही थी. रहा नहीं गया तो कोमल के कमरे की तरफ गया, वो अपने माता-पिता के कमरे में सो रही थी. जगाने की हिम्मत नहीं हुई. उसने नाईट ड्रेस पहनी हुई थी, पैजामा और बिना बाँहों की ढ़ीली और खुली हुई सी कमीज़. मैं देखता रह गया. फिर से शरीर गर्म हो गया इस नज़ारे को देख. मैं खिड़की के पीछे से देख रहा था, अन्दर स्याह अँधेरा तो नहीं था लेकिन रोशनी काफी कम थी और सिर्फ कोमल के अंगों का प्रतिरूप ही मालूम पड़ रहा था, उसके वक्षस्थल के उभारों का आभाष हो रहा था, मैं कितनी देर खड़ा रहा मालूम नहीं, मैं अनायास ही अपने लिंग को सहलाने लगा और कल रात के अनुभव को याद करते हुए लिंग तन कर टाईट हो गया , कुछ देर बाद रहा नहीं गया और बेचैनी में कभी बैठक में जाता कभी कोमल के कमरे की खिड़की पर आ खड़ा उसे निहारता. रहा नहीं गया तो अपना पैंट खोल
अर्धनग्न अवस्था में लिंग से खेलने लगा उसे शांत करने के लिए. इसी बीच देखा कोमल अपने बिस्तर पर नहीं थी, किसी समय जब में बैठक में था वो बाथरूम गयी होगी और उसने अँधेरे में मुझे देखा नहीं होगा, मैं बैठक में सोफे पर नग्न बैठा उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था, मेरा लिंग तनी अवस्था में विकराल खड़ा था जो मैं उसे दिखाना चाहता था, दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी और अँधेरे में कोमल की छाया दालान में आती दिखी , उसे बताने के लिए मैंने क्षणिक रोशनी बैठक के बल्ब को जलाया, मुझे वहां देख मेरी और आकर उसने फुसफुसाते हुए पुछा
"क्या कर रहे हो यहाँ इतनी रात..?"
"नींद नहीं आ रही" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ सोफे पर नजदीक बैठाया और उसके गालों को चूम लिया. वो थोड़ा सकपकाई और अपने को छुड़ाती हुई बोली
" मेरा मन नहीं है..."
"बस एक बार...यह रह नहीं पा रहा.. " कहते हुए अपने लिंग को उसके हाथों में पकड़ा दिया.
"एक बार इसको प्यार करले..." मैंने कोमल से कहा..उसके दोनो हाथों को पकड़ मैंने अपने लिंग और अंडकोष पर रख दिए, वो सर झुकाकर उनको मालिश करने लगी, उसके कंधे पकड़ उसे नजदीक खींचा और उसके गालों पर होठ रख चूमने लगा,
"छोड़ दो.. मन नहीं है.. तू मानेगा नहीं जबतक तेरा कुछ हो नहीं जाता ... मैं जानती हूँ .." कोमल बोली
"तो फिर कर दे न ..तू जानती है तो...' मैं कहा, कोमल ने लिंग को अपनी मुट्ठी में थाम ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और दुसरे हाथ से अंडकोष को सहलाती रही, उसे मालूम था मुझे किन चीज़ों से उत्तेजना बढ़ती है, मैं रोक नहीं पा रहा था अपने को, मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए,
मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए, स्तनों को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी जांघों को महसूस कर रहा था, गुदाज़ और मांसल, मेरे हाथ कभी उसकी जांघों को सहला रहे थे कभी उसकी कमर को, कब हाथ कोमल की योनी के पास पहुँच गया अनायास मालूम नहीं, मैंने सोचा कोमल विरोध करेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और अपनी मुट्ठी में मेरे लिंग को घेर अपने हाथों से मैथुन करती रही बिना कुछ कहे चुपचाप. बिलकुल अँधेरा था सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ आ रही थी, कोमल के नर्म स्पर्श से शरीर में बिजली सी दौड़ रही थी, लिंग से पानी बाहर आने को तैयार, मेरे मुहं से सिस्कारियां निकलने लगी "आह्ह्ह..आःह्ह्ह...धीरे धीरे खींच इसे..बहुत मस्ती आ रही है.... मत छोड़.. करती रह..निकलनेवाला है बस ...." मैं बडबडा रहा था और साथ ही कोमल की चूचियों के बीच मुहं को डाल उसकी बदन की खुशबु में होश खो रहा था, इसी बीच जैसे शरीर में कोई तीव्र झुरझुराहट सी हुई और लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी, " आह ...आः......aaaaahhhhhh" करता हुआ मैं निढ़ाल सा कोमल पर पड़ गया, कोमल ने लिंग को सहलाना जारी रक्खा और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए लंड से पूरा वीर्य निकाल दिया, उसकी मुट्ठी लसलसे वीर्य से सरोबर हो गयी, मैंने चेहरा उठा कर देखा , कोमल जैसे बिना किसी भावना के मुझे देखते हुए मेरे पैंट पर अपने हाथों को पोंछा और अपनी कमीज़ के बटन बंद करते हुए उठकर चली गयी कमरे में...उत्तेजना का ज्वर उतर गया अब तक, मैं भी कमरे मैं आकर सो गया, जब वासना पूर्ती से मन शांत होता है तो नींद भी अच्छी आती है, सुबह उठा, आज कोमल और उसका परिवार पुरी जाने वाले थे, शाम को ट्रेन थी, दिन भर उसने मुझे ठीक से देखा भी नहीं, एक दो बार रोक कर उससे बात करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ, समझ में नहीं आ रहा था ऐसा अजीब व्यवहार वो क्यों कर रही थी, शाम को हमलोग उनको छोड़ने स्टेशन गए, फर्स्ट क्लास का डब्बा था, कोमल का परिवार नीचे प्लेटफोर्म पर पिताजी और मां के साथ खड़ा था, मौका देख मैं कोमल के पास अन्दर गया, उसने
मुझे बिना भाव के देखा, मुझसे रहा नहीं गया और उसके चेहरे को पकड़ जोरों से चूम लिया
" ऐसा व्यवहार करोगी तो मर जाऊँगा.... फिर मेरा मुहं भी नहीं देखोगी..." मैं कुछ गुस्से और कुछ अपनी मन की बेचैनी में बोल पड़ा....कोमल उसी तरह चुप सी देखती रही, " तुम जा रही हो... तुम्हारे अलावा कुछ सोच नहीं सकता... " कहता हुआ उसे बाँहों में भर लिया, "नीचे जाओ... कोई देख लेगा..." इतनी देर बाद कोमल के मुहं से कुछ सुना... उसकी आँखों में एक फिर एक बार प्यार दिखा और करुणा के भाव भी...मैं डब्बे से बाहर निकलने लगा तो उसने मेरी बाँहों को पकड़ लिया और एक क्षण के लिए अपना सर मेरे सीने से लगा दिया ... लगा जैसे अभी भी उसके मन में मेरे लिया कुछ था .. ट्रेन के जाने का समय हुआ...कोमल दरवाज़े पर नहीं आयी.... मैंने खिड़की से देख उसे हाथ हिलाया, उसने भी धीरे
से हाथ उठा कर जवाब दिया......कोमल के जाने के बाद मुझे सब कुछ इतना उदास लगने लगा, माँ और पिताजी को भी उनका कुछ दिनों रहना अच्छा लगा सब का मन लगा हुआ था. कोमल के पिताजी का फ़ोन आया वो सब ठीक पुरी पहुँच गए थे. मैं याद कर रहा था की कब वो वापस आयें की तीन दिन बाद दोपहर को फ़ोन की घंटी बजी, मैंने फ़ोन उठा कर पुछा तो उस तरफ कोमल थी, मेरे आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं, "कैसी हो..." मैंने पुछा तो कोमल ने कहा " तुमसे ही बात करनी थी.... तुम इस समय मिलोगे इसलिए फ़ोन किया.." "क्या बात है..." मैंने कुछ चिंता से पूछा तो वो धीमे से हंसती हुई बोली " घबराओ मत...तुम्हें बताना था..मैं मेंस में हूँ...." " हे भगवन...क्या तुम इसलिए इतनी चिंतित थी... मैं तो घबरा रहा था तुम्हें क्या हो गया है... तुमने दो दिन मुझे ठीक से देखा भी नहीं.." मैं बोले जा रहा था मैंने फ़ोन पर फुसफुसाते हुए कहा "मुझे मालूम था कुछ नहीं होगा... मैंने सब सावधानी रक्खी थीं ... तुमने बताया क्यूँ नहीं की इसलिए तुम इतनी परेशां हो...." मेरे दिल का बोझ हल्का हुआ, कोमल बहुत खुश थी और उसने बहुत कुछ कहा जैसे " मुझे बहुत डर लग रहा था...अब सब ठीक है....हमलोग यहाँ बहुत मजे कर रहे हैं... मैंने कल समुद्र में नहाया ... बाबूजी मंदिर में हैं.....मेंस में हूँ....तुमको ये बताना था इसलिए फ़ोन किया...तुम्हारी याद आ रही है.... .हम फिर आ रहे हैं... जल्दी मिलेंगे ...." वगैरह वगैरह....फ़ोन पर उसकी खुशी का अंदाजा मैं लगा सकता था और वो इतनी उदास क्यूँ थी ये भी समझ में आया..लड़की थी उसे गर्भ ठहर जाने का डर था जो उसे चिंतित कर रहा था, वो डर अब दूर हो गया...इसलिए इतना चहक रही थी फ़ोन पर.... उसकी याद मुझे सता रही थी.. तीन दिनों से उसका बदन मेरी आँखों के सामने आ आ कर मुझे जैसे झिझकोर जाता था.. इन तीन दिनों में रोज ही हस्तमैथुन कर बैठता.. ऐसा पहले नहीं था, .. रात
को बिस्तर पर उलट पुलट होता रहता.. बेचैनी इतनी बढ़ गयी की देर रात उठ कर बाहर बैठक में आकर अँधेरे में बैठा रहता और कोमल के बारे में ही सोचता रहता... उसकी गज़ब की जवानी और शरीर की याद बदन में खून गरम कर देती तो वहीं हाथों से अपने आप को शांत करता.... उसकी फ़ोन पर मीठी चहकती आवाज़ ने पागल बना दिया था, इतनी दीवानगी तो जब वो सामने थी तब भी नहीं थी, अब आँखों से ओझल होने पर उसकी हर अदा और उसके शरीर का एक एक पोर जैसे मुझे याद आ रहा था, उसके स्पर्श को महसूस कर रहा था हर वक्त उसकी गैरमौजूदगी में, ....उस रात बिस्तर पर उसे याद करते हुए दो बार वीर्यस्खलन कर बैठा अपने हाथों से, जब रहा नहीं गया तो गद्दे पर उल्टा लेटे पैंट को नीचे सरका लंड का घर्षण करते हुए इतना वीर्य निकल पड़ा की शरीर एक बार लगा जैसे तनाव मुक्त हो गया, छोटा भाई सो रहा था लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था और लगभग नंगा होकर ठंडी हवा से शांती प्राप्त करने की कोशिश करता हुआ कोमल के नजदीक होने की तमन्ना करता रहा,
दो तीन दिन बाद ही अलीगढ से दो तकनीकी लोग आये जो कोमल के पिताजी के यहाँ काम करते थे और नए ठेके की जानकारी करने आये थे... उनको पिताजी ने होटल में ठहराया ... घर में एक हलचल का वातावरण सा था, पिताजी भी शायद इस मिलनेवाले ठेके में शामिल थे .. ...इस बीच कोमल से बात नहीं हो सकी लेकिन माँ पिताजी की बात होती थी.. एक दिन पिताजी ने कहा कल वो लोग आयेंगे और मुझे लेने उन्हें स्टेशन जाना था .. गाडी सुबह सुबह ५-६ बजे आती थी ...ड्राईवर और मैं स्टेशन गए ...कोमल से मिलने को मन व्याकुल था....उसे ट्रेन से उतरते देख दिल की धड़कन तेज हो गयी जैसे पहली बार देख रहा होऊँ. उनींदी आँखें...चेहरे पर सुबह की अलसाई सी निस्फिक्रता और शांती, अभी भी याद है सफ़ेद ढीली कमीज़ और पैजामा, लेकिन वक्ष का लुभावना उभार स्पष्ट उस ढीली कमीज़ में भी दिख रहा था,....कोमल ने आँखें मिलाई एक हल्की मुस्कराहट आयी उसके चेहरे पर जो सिर्फ मैं ही देख पाया....घर आये तो माँ और पिताजी सभी इंतज़ार कर रहे थे... सब अपने अपने काम में लग गए.. मैं बार बार कोमल से बात करने की फ़िराक में था लेकिन मौका ही नहीं मिला...मेरे छोटे भाई के तो उस दिन मजे हो गए...कोमल ने उसे कई बार चूमा और उसके साथ लिपट गयी मुझे दिखाते हुए....मैंने देखा वो और उसकी मम्मी माँ के साथ बातों में लग गए और पुरी से लाया सामान दिखा रहे थे ... जैसे मुझे चिढ़ा रही थी इशारा करने पर भी नहीं आयी...... वो तकनीकी लोग भी कुछ देर में आ गए और पिताजी और कोमल के पिताजी उनके साथ बातों में लग गए.. थोड़ी देर में सभी बिजली कारखाने के लिए रवाना हुए तो मालूम हुआ की रात देर तक लौटेंगे..कोमल के इस व्यवहार से मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मैं सोच में था की कैसे कोमल से मिलूँ...रहा नहीं गया और मौका तब मिला जब वो दोपहर में नहाने गयी...
"कौन.." दरवाज़े पर दस्तक करने पर कोमल ने पुछा..."खोलो...मैं हूँ..." मैंने कहा..
"पागल मत बनो... जाओ...कोई देख लेगा...."
"कोई नहीं है....मैं बात नहीं करूंगा..दरवाज़ा खोलो .. " मैंने जिद की तो कोमल ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोल बाहर झाँका इसी समय मैंने दरवाज़े पर दबाव डाला और अन्दर जा घुसा और सिटकनी बंद की...
"तुम को क्या हुआ है... कोईभी देख लेगा तुम्हें अन्दर .." कोमल ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा
"कोई नहीं है.... माँ और तुम्हारी मम्मी ऊपर कमरे में हैं...उन्हें कुछ मालूम नहीं...घर में कोई नहीं है..." मैंने कहा तो कोमल कुछ निश्चिंत सी हुई... फिर भी मैं अन्दर से डर तो रहा ही था लेकिन मन में जो तूफ़ान था मैं कोई भी रिस्क लेने को तैयार था...रहा नहीं गया तो बाँहों में उसके गदराये बदन को भर कर जी भर पहले तो चूमा और फिर उसकी ओर देखा, एक काली चोली और छोटी सी पैंटी में उसका बदन दमक रहा था पानी की बूंदों से , भरी जांघें, उन्नत वक्ष और लम्बे ऊंचे शरीर का उठान जैसे मतवाला कर गया, होश काबू में नहीं रहे, मैंने उसके गालों को काट खाया......" सी सीई ... आह......क्या करते हो..." कहते हुए कोमल जैसे कराह उठी ,
" बाहर जाओ... मैं आती हूँ.... शाम को मिलेंगे..टंकी के पीछे ..." कहते हुए कोमल ने दरवाज़ा खोल मुझे बाहर धकेल दिया.
Tags = Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | उत्तेजक | कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना मराठी जोक्स | कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी कहानियाँ | मराठी | .blogspot.com | जोक्स | चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी कहानी | पेलता | कहानियाँ | सच | स्टोरी | bhikaran ki | sexi haveli | haveli ka such | हवेली का सच | मराठी स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | की कहानियाँ | मराठी कथा | बकरी की | kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | kutiya | आँटी की | एक कहानी | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | | pehli bar merane ke khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | मारो | मराठी रसभरी कथा | | ढीली पड़ गयी | चुची | स्टोरीज | गंदी कहानी | शायरी | lagwana hai | payal ne apni | haweli | ritu ki hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | www. भिगा बदन | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कामरस कहानी | मराठी | मादक | कथा | नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | bua | bahan | maa | bhabhi ki chachi ki | mami ki | bahan ki | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना, aunty,stories,bhabhi, nangi,stories,desi,aunty,bhabhi,erotic stories, hindi stories,urdu stories,bhabi,desi stories,desi aunty,bhabhi ki,bhabhi maa ,desi bhabhi,desi ,hindi bhabhi,aunty ki,aunty story, kahaniyan,aunty ,bahan ,behan ,bhabhi ko,hindi story sali ,urdu , ladki, हिंदी कहानिया,ज़िप खोल,यौनोत्तेजना,मा बेटा,नगी,यौवन की प्या,एक फूल दो कलियां,घुसेड,ज़ोर ज़ोर,घुसाने की कोशिश,मौसी उसकी माँ,मस्ती कोठे की,पूनम कि रात,सहलाने लगे,लंबा और मोटा,भाई और बहन,अंकल की प्यास,अदला बदली काम,फाड़ देगा,कुवारी,देवर दीवाना,कमसीन,बहनों की अदला बदली,कोठे की मस्ती,raj sharma stories ,पेलने लगा ,चाचियाँ ,असली मजा ,तेल लगाया ,सहलाते हुए कहा ,पेन्टी ,तेरी बहन ,गन्दी कहानी,छोटी सी भूल,राज शर्मा ,चचेरी बहन ,आण्टी , kahaniya ,सिसकने लगी ,कामासूत्र ,नहा रही थी , ,raj-sharma-stories कामवाली ,लोवे स्टोरी याद आ रही है ,फूलने लगी ,रात की बाँहों ,बहू की कहानियों ,छोटी बहू ,बहनों की अदला ,चिकनी करवा दूँगा ,बाली उमर की प्यास ,काम वाली ,चूमा फिर,पेलता ,प्यास बुझाई ,झड़ गयी ,सहला रही थी ,mastani bhabhi,कसमसा रही थी ,सहलाने लग ,गन्दी गालियाँ ,कुंवारा बदन ,एक रात अचानक ,ममेरी बहन ,मराठी जोक्स ,ज़ोर लगाया ,मेरी प्यारी दीदी निशा ,पी गयी ,फाड़ दे ,मोटी थी ,मुठ मारने ,टाँगों के बीच ,कस के पकड़ ,भीगा बदन , ,लड़कियां आपस ,raj sharma blog ,हूक खोल ,कहानियाँ हिन्दी , ,जीजू , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,भोसडा ,मुठ मार ,sambhog ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी ,چوت , . bhatt_ank, xossip, exbii, कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की कहानियाँ , मराठी स्टोरीज , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी
कोमल की कहानी --5
मैंने बाँहों में भर कोमल को पलट नीचे दबाया और ऊपर चढ़ लिंग को उसकी योनी पर दबा अन्दर घुसेड़ा पहले धीरे से और ..योनी बिलकुल सरोबार थी रस से.... फिर भी लिंग को अन्दर जाने में जैसे कोई रुकावट लगी, कोमल की योनी टाईट थी, वो फुसफसाने लगी "धीरे कर.. धीरे धीरे ..."..... लेकिन मुझे चैन कहाँ ...भरपूर प्रहार से लिंग अन्दर जा घुसा ." उई उई..आ आ आ.... करती हुए उसकी कराहने की आवाज़ निकली, मैंने उसके मुहं को हाथों से दबाया डर लग रहा था कहीं जोरों से चिल्ला नहीं बैठे और लिंग के धक्के जारी रक्खे, " आह ...आह....आआ..." वो अब कराह रही थी और मुझे कभी अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी..और कभी मेरी कमर पकड़ मेरे धक्को के साथ जैसे लय मिलाते हुए नितम्ब उठाकर धक्के दे रही थी....कुछ ही देर में सिसकारी की आवाज़ धीमी हो गयी और उसने मुझे चूमते हुए जोरों से पकड़ साथ देना शुरू कर दिया.... अब उसकी आवाज़ में एक आनंद था...उसकी योनी रस से भरपूर मेरे लिंग को पूरा निगल रही थी. यूं तो योनी टाईट थी लेकिन उसने फ़ैल कर लिंग को अन्दर समा लिया और अब लिंग योनी रस के कारण स्वाभाविक रूप से योनी को घर्षण करता हुआ धक्के लगा रहा था, कोमल भी उन धक्कों का जवाब देने लगी... उसने जांघें उठा मेरे चूतड़ों को लपेट लिया और हाथों को पीठ पर दबा अपने अपने नितम्ब उठाते हुए हौले हौले मेरे हर धक्के का जवाब दे रही थी.. बहार अभी भी अँधेरा था.. हम एक दुसरे में गुंथे पड़े थे, कोमल अत्यंत गर्म हो गयी थी, उसने मुझे गालों पर काट लिया और पीठ को नाखूनों से खरोंच डाला, उसकी सांसें जैसे थक कर भारी हो गयीं , मेरी हालत भी ऐसी ही थी, हमें होश नहीं था, कोमल के स्तनों को चूस डाला और घुंडियों को खींच कई बार काट डाला, वो कराहने लगती लेकिन मुझे रोकती नहीं और मेरी पीठ और चूतड़ों को दबा और धक्के लगाने का इशारा करती, कोमल बहुत ही कामुक थी ये तो मैं पहले ही समझ गया था लेकिन सम्भोग में भी इतना ही खुल कर मजे से साथ देगी मैने नहीं सोचा था, हम पसीने पसीने थे और पूरी तरह नग्न, कुछ ही क्षणों में जैसे लिंग से लावा फूट कर बहने लगा, मैं कोमल पर निढाल सा पड़ गया, उसने भी मुझे जोरों से बाँहों में दबा लिया, शरीर के रोम रोम में रोमांच था, जैसे नसों से कुछ बहता हुआ एक जोर की उत्तेजना के साथ लिंग से निकल पड़ा हो, ऐसा आनदं कभी पहले महसूस नहीं किया था, किसीने जैसे शरीर को तोड़ दिया हो, जैसे की सारी थकावट दूर हो गयी और शरीर हल्का हो कर उड़ने लगा हो, हम कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे, सांसें धीमें हुईं और लिंग सिकुड़ ठंडा हो गया मैंने योनी से बाहर खींचा, कोमल आँखें बंद किये निढ़ाल पडी थी, मैंने ध्यान से देखा कोंडोम वीर्य से भरा था, ऐसा लगा जैसे कोमल की जांघों पर कुछ धब्बे लगे हुए थे, मुझे लगा कौमार्य का स्राव होगा मैंने सावधानी बरती थी की सोफे पर तौलिया बिछा दिया था, कोमल ने पूछा " खून है क्या ....? दर्द हो रहा है ..." मैंने इशारे से हाँ कहा, वो बोली "तुम्हारा कहाँ है... अन्दर तो नहीं गया न.." मैंने कहा "डर मत.. कुछ नहीं होगा, ....मैं आता हूँ..." कह कर मैं बाथरूम में गया और कोंडोम को फ्लश कर दिया, कोंडोम पर खून के धब्बे थे जिन्हें देख मुझे एक अजीब एहसास हुआ, लगा की मैं क्या कर बैठा, अनायास ही कोमल के लिए मन में प्यार और एक सुरक्षा की भावना आयी जैसे वो मेरी हो, मैं कुछ देर यूं ही सोचता रहा, बाहर आया तो देखा कोमल ने कपड़े पहन लिए थे और सोफे पर बैठी थी, मैंने पैंट पहना और उसके पास बैठ गया, वो उदास थी, चेहरा उतरा हुआ बिलकुल रोने जैसा, "क्या हुआ..." मैंने पुछा , वो बिना कुछ जवाब दिए उठी और मुझे कंधे पर धक्का देते हुए अपने कमरे में चली गयी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्या हुआ, अभी तो बिलकुल ठीक थी और इतनी देर तक तो मस्ती से सम्भोग में लिप्त थी और अब क्या हुआ अचानक. मैंने सोफे को ठीक ठाक किया, तौलिया उठाया और कमरे में आकर सोने की कोशिश कर रहा था. अब तक दिन निकलने लगा था, हल्का उजाला हो गया था, मैं सोच रहा था ये अचानक कोमल को क्या हो गया, कुछ देर पहले मेरे उसके बीच जो हुआ उसपर विश्वास नहीं हो रहा था, ये तो किस्मत थी की कोई भी घर में इस दौरान जगा नहीं, हम दोनों ही कुछ ऐसा खो गए थे की होश नहीं था किसीने देखा लिया होता तो हम दोनों ही मारे जाते और कोमल का क्या होता, यही सब सोचते सोचते नींद लग गयी.
सुबह उठा तो बहुत देर हो गयी थी, बाबूजी और कोमल के पिताजी बाहर जा चुके थे, माँ और कोमल की मम्मी बाहर के आहाते में थे , कोमल कहीं दिखी नहीं, अपने कमरे में भी नहीं, किसीसे पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई, मैं बाथरूम में गया, रात को जो तौलिया इस्तेमाल किया था उसपर कुछ हल्के लाल धब्बे लगे थे उनको गर्म पानी से धो कर बाकी कपड़ों के साथ धोने में डाल दिया, बहुत डर भी लग रहा था की किसी को कुछ भनक न लग जाए. मैं स्नान कर आया तो माँ किचेन में थी, पुछा " क्या बात है.. आज इतनी देर सोते रहे , नाश्ता कर ले" , मुझसे रहा नहीं गया ' कोमल कहाँ है... " मैंने पुछा, " उसकी तबियत ठीक नहीं... शायद बुखार है... बाबूजी के साथ डाक्टर के यहाँ गयी है." यह सुन मुझे काटो तो खून नहीं... ये क्या हुआ... उसकी तबियत ज्यादा ख़राब तो नहीं... कहीं डॉ को पता चल गया तो... लेकिन ऐअसा कुछ हुआ नहीं... कुछ देर में कोमल वापस आयी, वो काफी कमजोर और उदास लग रही थी, डॉ ने बताया कुछ नहीं है और सिर्फ थोड़ी थकावट है ... आराम करो तीन दिन सब ठीक हो जाएगा...कोमल बिना मुझसे नजरें मिलाये अपने कमरे में चली गयी, माँ और उसकी मम्मी भी गयीं और उसे आराम करने की हिदायत दी..." तुम कोमल के पास बैठो.. उसका मन लगेगा...उसे दवा दे देना और बातें करना" कहती हुई उसकी मम्मी ने मुझे उसके पास भेज दिया, मैं कोमल के बिस्तर पर उसके नजदीक बैठ उसके हाथों को सहला रहा था की कोमल बोल पड़ी
" मैंने बहुत गलत किया कल रात, किसी लड़की को शादी से पहले ऐसा नहीं करना चाहिए..."
"कोई गलती नहीं हुई... हमने जो भी किया सच्चे मन से किया.. कोई पाप नहीं था" मैंने कहा, मैं उसे काफी देर तक समझाता रहा, "जो हो गया उसमे में दुखी न हो कर जिन्दगी जीने का सुख लेना चाहिए .." इस प्रकार की कई बातें कर के किसी तरह उसके मन को हल्का किया, मैंने देखा बातें करते करते उसने अपना मुहं मेरी गोद में छिपा लिया था और सुबक रही थी, थोड़ी देर में उसका रोना बंद हो गया, " किसी से कभी बताओगे तो नहीं..." कोमल ने कहा, "तुम पागल हो क्या..., मैं क्यूं बताऊँगा...मैंने दिल से तुमको प्यार किया है..." मैंने कहा, कोमल को कुछ सांत्वना हुई, "चलो, उठो और तैयार हो जाओ.. हमलोग बाहर बगीचे में बैठते हैं.. माँ और आंटी किचेन में थे, हम बहार आ गए.... " मुझे वहां दर्द हो रहा है... कुछ हो तो नहीं जाएगा " कोमल ने पुछा उसकी आँखों में चिंता थी, " कुछ नहीं... थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा... दर्द ज्यादा है क्या.." मैंने पुछा तो उसके चेहरे पर इतनी देर बाद पहली बार मुस्कराहट देखी
" नहीं.. हल्का हल्का... जैसे कोई दाँतों से काट रहा हो....."
" कौन काट रहा है..." मैंने पुछा तो कोमल ने मुस्कुराकर दिया पर कुछ कहा नहीं. उसे काफी समझाया और सांत्वना दी. मुझे लगा की अब उसके मन की अवस्था ठीक हो रही थी और मुझसे शिकायत करके उसने अपने मन का बोझ हल्का कर लिया था... मैं उसका ध्यान रात की बातों से हटाकर उसकी उदासी को दूर करना चाहता था. कोमल की तबियत शाम तक कुछ ठीक लगने लगी, बुखार अब नहीं था, उनको २ दिन और रुकना था और फिर पुरी के लिए जाने वाले थे, वहां १ हफ्ते रुक कर सीधा अलीगढ़ वापस लौटने का कार्यक्रम था. शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी घर आये तो किसी ठेके के बारे में बातें कर रहे थे जो कलकत्ते से २ घंटे पर था बिजली के नए बन रहे कारखाने में. कोमल के पिताजी उसमे इच्छुक थे और सुबह कम्पनी ऑफिस में किसीसे मिलने गए थे. बातों ये मालूम हुआ की पुरी से लौटते हुए वो पुनः हमारे घर पर रुकेंगे, शायद एक या दो दिन. मुझे सुन कर खुशी का अंदाजा नहीं रहा, लगा जैसे भगवान मेरी बातें सुन रहा था और मुझ पर मेहेरबान था. रात तक कोमल का मूड कुछ कुछ ठीक हो गया था, मैं उससे ज्यादा बातें नहीं कर रहा था और सोच रहा था की उसे खुद ही महसूस हो की जो कुछ हुआ उसमे किसीकी गलती नहीं थी और ये सब स्वाभाविक था, उसके मन से किसी तरह की गलती करने की भावना दूर हो जाये. रात मैंने पुछा तो उसने बताया की अब दर्द नहीं के बराबर है. सच पुछा जाये तो मुझे लगा वाकई दर्द कभी इतना था ही नहीं बल्की उसके मन में गलती किये जाने की भावना ज्यादा थी. खैर जो भी हो, उसका मूड ठीक हो रहा था ये खुशी की बात थी. उस रात मैं उसके बगल में बैठा था ड्राइंग हॉल में और सबसे नजरें बचा कर उसके हाथों पर हाथ रक्खा तो उसने भी धीरे से मेरे हाथों को दबा दिया और मेरी और देखा. मैं अपने कमरे में सोने गया लेकिन नींद नहीं थी आँखों में. बार बार कोमल का मासूम चेहरा और उसके मादक बदन की याद आ रही थी. रहा नहीं गया तो कोमल के कमरे की तरफ गया, वो अपने माता-पिता के कमरे में सो रही थी. जगाने की हिम्मत नहीं हुई. उसने नाईट ड्रेस पहनी हुई थी, पैजामा और बिना बाँहों की ढ़ीली और खुली हुई सी कमीज़. मैं देखता रह गया. फिर से शरीर गर्म हो गया इस नज़ारे को देख. मैं खिड़की के पीछे से देख रहा था, अन्दर स्याह अँधेरा तो नहीं था लेकिन रोशनी काफी कम थी और सिर्फ कोमल के अंगों का प्रतिरूप ही मालूम पड़ रहा था, उसके वक्षस्थल के उभारों का आभाष हो रहा था, मैं कितनी देर खड़ा रहा मालूम नहीं, मैं अनायास ही अपने लिंग को सहलाने लगा और कल रात के अनुभव को याद करते हुए लिंग तन कर टाईट हो गया , कुछ देर बाद रहा नहीं गया और बेचैनी में कभी बैठक में जाता कभी कोमल के कमरे की खिड़की पर आ खड़ा उसे निहारता. रहा नहीं गया तो अपना पैंट खोल
अर्धनग्न अवस्था में लिंग से खेलने लगा उसे शांत करने के लिए. इसी बीच देखा कोमल अपने बिस्तर पर नहीं थी, किसी समय जब में बैठक में था वो बाथरूम गयी होगी और उसने अँधेरे में मुझे देखा नहीं होगा, मैं बैठक में सोफे पर नग्न बैठा उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था, मेरा लिंग तनी अवस्था में विकराल खड़ा था जो मैं उसे दिखाना चाहता था, दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी और अँधेरे में कोमल की छाया दालान में आती दिखी , उसे बताने के लिए मैंने क्षणिक रोशनी बैठक के बल्ब को जलाया, मुझे वहां देख मेरी और आकर उसने फुसफुसाते हुए पुछा
"क्या कर रहे हो यहाँ इतनी रात..?"
"नींद नहीं आ रही" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ सोफे पर नजदीक बैठाया और उसके गालों को चूम लिया. वो थोड़ा सकपकाई और अपने को छुड़ाती हुई बोली
" मेरा मन नहीं है..."
"बस एक बार...यह रह नहीं पा रहा.. " कहते हुए अपने लिंग को उसके हाथों में पकड़ा दिया.
"एक बार इसको प्यार करले..." मैंने कोमल से कहा..उसके दोनो हाथों को पकड़ मैंने अपने लिंग और अंडकोष पर रख दिए, वो सर झुकाकर उनको मालिश करने लगी, उसके कंधे पकड़ उसे नजदीक खींचा और उसके गालों पर होठ रख चूमने लगा,
"छोड़ दो.. मन नहीं है.. तू मानेगा नहीं जबतक तेरा कुछ हो नहीं जाता ... मैं जानती हूँ .." कोमल बोली
"तो फिर कर दे न ..तू जानती है तो...' मैं कहा, कोमल ने लिंग को अपनी मुट्ठी में थाम ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और दुसरे हाथ से अंडकोष को सहलाती रही, उसे मालूम था मुझे किन चीज़ों से उत्तेजना बढ़ती है, मैं रोक नहीं पा रहा था अपने को, मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए,
मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए, स्तनों को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी जांघों को महसूस कर रहा था, गुदाज़ और मांसल, मेरे हाथ कभी उसकी जांघों को सहला रहे थे कभी उसकी कमर को, कब हाथ कोमल की योनी के पास पहुँच गया अनायास मालूम नहीं, मैंने सोचा कोमल विरोध करेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और अपनी मुट्ठी में मेरे लिंग को घेर अपने हाथों से मैथुन करती रही बिना कुछ कहे चुपचाप. बिलकुल अँधेरा था सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ आ रही थी, कोमल के नर्म स्पर्श से शरीर में बिजली सी दौड़ रही थी, लिंग से पानी बाहर आने को तैयार, मेरे मुहं से सिस्कारियां निकलने लगी "आह्ह्ह..आःह्ह्ह...धीरे धीरे खींच इसे..बहुत मस्ती आ रही है.... मत छोड़.. करती रह..निकलनेवाला है बस ...." मैं बडबडा रहा था और साथ ही कोमल की चूचियों के बीच मुहं को डाल उसकी बदन की खुशबु में होश खो रहा था, इसी बीच जैसे शरीर में कोई तीव्र झुरझुराहट सी हुई और लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी, " आह ...आः......aaaaahhhhhh" करता हुआ मैं निढ़ाल सा कोमल पर पड़ गया, कोमल ने लिंग को सहलाना जारी रक्खा और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए लंड से पूरा वीर्य निकाल दिया, उसकी मुट्ठी लसलसे वीर्य से सरोबर हो गयी, मैंने चेहरा उठा कर देखा , कोमल जैसे बिना किसी भावना के मुझे देखते हुए मेरे पैंट पर अपने हाथों को पोंछा और अपनी कमीज़ के बटन बंद करते हुए उठकर चली गयी कमरे में...उत्तेजना का ज्वर उतर गया अब तक, मैं भी कमरे मैं आकर सो गया, जब वासना पूर्ती से मन शांत होता है तो नींद भी अच्छी आती है, सुबह उठा, आज कोमल और उसका परिवार पुरी जाने वाले थे, शाम को ट्रेन थी, दिन भर उसने मुझे ठीक से देखा भी नहीं, एक दो बार रोक कर उससे बात करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ, समझ में नहीं आ रहा था ऐसा अजीब व्यवहार वो क्यों कर रही थी, शाम को हमलोग उनको छोड़ने स्टेशन गए, फर्स्ट क्लास का डब्बा था, कोमल का परिवार नीचे प्लेटफोर्म पर पिताजी और मां के साथ खड़ा था, मौका देख मैं कोमल के पास अन्दर गया, उसने
मुझे बिना भाव के देखा, मुझसे रहा नहीं गया और उसके चेहरे को पकड़ जोरों से चूम लिया
" ऐसा व्यवहार करोगी तो मर जाऊँगा.... फिर मेरा मुहं भी नहीं देखोगी..." मैं कुछ गुस्से और कुछ अपनी मन की बेचैनी में बोल पड़ा....कोमल उसी तरह चुप सी देखती रही, " तुम जा रही हो... तुम्हारे अलावा कुछ सोच नहीं सकता... " कहता हुआ उसे बाँहों में भर लिया, "नीचे जाओ... कोई देख लेगा..." इतनी देर बाद कोमल के मुहं से कुछ सुना... उसकी आँखों में एक फिर एक बार प्यार दिखा और करुणा के भाव भी...मैं डब्बे से बाहर निकलने लगा तो उसने मेरी बाँहों को पकड़ लिया और एक क्षण के लिए अपना सर मेरे सीने से लगा दिया ... लगा जैसे अभी भी उसके मन में मेरे लिया कुछ था .. ट्रेन के जाने का समय हुआ...कोमल दरवाज़े पर नहीं आयी.... मैंने खिड़की से देख उसे हाथ हिलाया, उसने भी धीरे
से हाथ उठा कर जवाब दिया......कोमल के जाने के बाद मुझे सब कुछ इतना उदास लगने लगा, माँ और पिताजी को भी उनका कुछ दिनों रहना अच्छा लगा सब का मन लगा हुआ था. कोमल के पिताजी का फ़ोन आया वो सब ठीक पुरी पहुँच गए थे. मैं याद कर रहा था की कब वो वापस आयें की तीन दिन बाद दोपहर को फ़ोन की घंटी बजी, मैंने फ़ोन उठा कर पुछा तो उस तरफ कोमल थी, मेरे आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं, "कैसी हो..." मैंने पुछा तो कोमल ने कहा " तुमसे ही बात करनी थी.... तुम इस समय मिलोगे इसलिए फ़ोन किया.." "क्या बात है..." मैंने कुछ चिंता से पूछा तो वो धीमे से हंसती हुई बोली " घबराओ मत...तुम्हें बताना था..मैं मेंस में हूँ...." " हे भगवन...क्या तुम इसलिए इतनी चिंतित थी... मैं तो घबरा रहा था तुम्हें क्या हो गया है... तुमने दो दिन मुझे ठीक से देखा भी नहीं.." मैं बोले जा रहा था मैंने फ़ोन पर फुसफुसाते हुए कहा "मुझे मालूम था कुछ नहीं होगा... मैंने सब सावधानी रक्खी थीं ... तुमने बताया क्यूँ नहीं की इसलिए तुम इतनी परेशां हो...." मेरे दिल का बोझ हल्का हुआ, कोमल बहुत खुश थी और उसने बहुत कुछ कहा जैसे " मुझे बहुत डर लग रहा था...अब सब ठीक है....हमलोग यहाँ बहुत मजे कर रहे हैं... मैंने कल समुद्र में नहाया ... बाबूजी मंदिर में हैं.....मेंस में हूँ....तुमको ये बताना था इसलिए फ़ोन किया...तुम्हारी याद आ रही है.... .हम फिर आ रहे हैं... जल्दी मिलेंगे ...." वगैरह वगैरह....फ़ोन पर उसकी खुशी का अंदाजा मैं लगा सकता था और वो इतनी उदास क्यूँ थी ये भी समझ में आया..लड़की थी उसे गर्भ ठहर जाने का डर था जो उसे चिंतित कर रहा था, वो डर अब दूर हो गया...इसलिए इतना चहक रही थी फ़ोन पर.... उसकी याद मुझे सता रही थी.. तीन दिनों से उसका बदन मेरी आँखों के सामने आ आ कर मुझे जैसे झिझकोर जाता था.. इन तीन दिनों में रोज ही हस्तमैथुन कर बैठता.. ऐसा पहले नहीं था, .. रात
को बिस्तर पर उलट पुलट होता रहता.. बेचैनी इतनी बढ़ गयी की देर रात उठ कर बाहर बैठक में आकर अँधेरे में बैठा रहता और कोमल के बारे में ही सोचता रहता... उसकी गज़ब की जवानी और शरीर की याद बदन में खून गरम कर देती तो वहीं हाथों से अपने आप को शांत करता.... उसकी फ़ोन पर मीठी चहकती आवाज़ ने पागल बना दिया था, इतनी दीवानगी तो जब वो सामने थी तब भी नहीं थी, अब आँखों से ओझल होने पर उसकी हर अदा और उसके शरीर का एक एक पोर जैसे मुझे याद आ रहा था, उसके स्पर्श को महसूस कर रहा था हर वक्त उसकी गैरमौजूदगी में, ....उस रात बिस्तर पर उसे याद करते हुए दो बार वीर्यस्खलन कर बैठा अपने हाथों से, जब रहा नहीं गया तो गद्दे पर उल्टा लेटे पैंट को नीचे सरका लंड का घर्षण करते हुए इतना वीर्य निकल पड़ा की शरीर एक बार लगा जैसे तनाव मुक्त हो गया, छोटा भाई सो रहा था लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था और लगभग नंगा होकर ठंडी हवा से शांती प्राप्त करने की कोशिश करता हुआ कोमल के नजदीक होने की तमन्ना करता रहा,
दो तीन दिन बाद ही अलीगढ से दो तकनीकी लोग आये जो कोमल के पिताजी के यहाँ काम करते थे और नए ठेके की जानकारी करने आये थे... उनको पिताजी ने होटल में ठहराया ... घर में एक हलचल का वातावरण सा था, पिताजी भी शायद इस मिलनेवाले ठेके में शामिल थे .. ...इस बीच कोमल से बात नहीं हो सकी लेकिन माँ पिताजी की बात होती थी.. एक दिन पिताजी ने कहा कल वो लोग आयेंगे और मुझे लेने उन्हें स्टेशन जाना था .. गाडी सुबह सुबह ५-६ बजे आती थी ...ड्राईवर और मैं स्टेशन गए ...कोमल से मिलने को मन व्याकुल था....उसे ट्रेन से उतरते देख दिल की धड़कन तेज हो गयी जैसे पहली बार देख रहा होऊँ. उनींदी आँखें...चेहरे पर सुबह की अलसाई सी निस्फिक्रता और शांती, अभी भी याद है सफ़ेद ढीली कमीज़ और पैजामा, लेकिन वक्ष का लुभावना उभार स्पष्ट उस ढीली कमीज़ में भी दिख रहा था,....कोमल ने आँखें मिलाई एक हल्की मुस्कराहट आयी उसके चेहरे पर जो सिर्फ मैं ही देख पाया....घर आये तो माँ और पिताजी सभी इंतज़ार कर रहे थे... सब अपने अपने काम में लग गए.. मैं बार बार कोमल से बात करने की फ़िराक में था लेकिन मौका ही नहीं मिला...मेरे छोटे भाई के तो उस दिन मजे हो गए...कोमल ने उसे कई बार चूमा और उसके साथ लिपट गयी मुझे दिखाते हुए....मैंने देखा वो और उसकी मम्मी माँ के साथ बातों में लग गए और पुरी से लाया सामान दिखा रहे थे ... जैसे मुझे चिढ़ा रही थी इशारा करने पर भी नहीं आयी...... वो तकनीकी लोग भी कुछ देर में आ गए और पिताजी और कोमल के पिताजी उनके साथ बातों में लग गए.. थोड़ी देर में सभी बिजली कारखाने के लिए रवाना हुए तो मालूम हुआ की रात देर तक लौटेंगे..कोमल के इस व्यवहार से मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मैं सोच में था की कैसे कोमल से मिलूँ...रहा नहीं गया और मौका तब मिला जब वो दोपहर में नहाने गयी...
"कौन.." दरवाज़े पर दस्तक करने पर कोमल ने पुछा..."खोलो...मैं हूँ..." मैंने कहा..
"पागल मत बनो... जाओ...कोई देख लेगा...."
"कोई नहीं है....मैं बात नहीं करूंगा..दरवाज़ा खोलो .. " मैंने जिद की तो कोमल ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोल बाहर झाँका इसी समय मैंने दरवाज़े पर दबाव डाला और अन्दर जा घुसा और सिटकनी बंद की...
"तुम को क्या हुआ है... कोईभी देख लेगा तुम्हें अन्दर .." कोमल ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा
"कोई नहीं है.... माँ और तुम्हारी मम्मी ऊपर कमरे में हैं...उन्हें कुछ मालूम नहीं...घर में कोई नहीं है..." मैंने कहा तो कोमल कुछ निश्चिंत सी हुई... फिर भी मैं अन्दर से डर तो रहा ही था लेकिन मन में जो तूफ़ान था मैं कोई भी रिस्क लेने को तैयार था...रहा नहीं गया तो बाँहों में उसके गदराये बदन को भर कर जी भर पहले तो चूमा और फिर उसकी ओर देखा, एक काली चोली और छोटी सी पैंटी में उसका बदन दमक रहा था पानी की बूंदों से , भरी जांघें, उन्नत वक्ष और लम्बे ऊंचे शरीर का उठान जैसे मतवाला कर गया, होश काबू में नहीं रहे, मैंने उसके गालों को काट खाया......" सी सीई ... आह......क्या करते हो..." कहते हुए कोमल जैसे कराह उठी ,
" बाहर जाओ... मैं आती हूँ.... शाम को मिलेंगे..टंकी के पीछे ..." कहते हुए कोमल ने दरवाज़ा खोल मुझे बाहर धकेल दिया.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
No comments:
Post a Comment