Tuesday, April 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI लुच्चा मेरा मूँह बोला भाई--2

FUN-MAZA-MASTI

  लुच्चा मेरा मूँह बोला भाई--2 
गतान्क से आगे ............... 
उसने अपने हाथ में पकड़ी वो मोटी सी पाइप जो शायद उसके पिशाब वाली पाइप ही थी उसे मेरी बेहन की योनि के उपर टीकाया और मेरी बेहन ने अपनी कमर के बल से अपने चुटटर थोड़े हवा में उठाए और उसकी पाइप मेरी बेहन की योनि में समा गयी और वो मेरी बेहन के उपर लेट गया. फिर उसने अपने चुटटर उपर उठा उठा कर नीचे करना शुरू कर दिए जैसे वो अपनी पाइप मेरी बेहन की योनिके बार बार अंदर बाहर कर रहा हो. मेरी बेहन हल्की सिसकियाँ भरने लगी और कमरे में से अजीब सी आवाज़ आने लगी, जैसे कोई दूध से माखन निकाल रहा हो और साथ में हल्के पटाखे जैसे आवाज़ें आ रही थी जो शायद दोनो की जांघें आपस में भिड़ने की वजह से आ रही थी. मेरी लिए ये सब कुछ नया था. मैं बी.एससी. के फाइनल एअर मैं पोहुन्च चुकी हूँ पर आज तक किसी लड़के ने मुझे छुआ तक नही है और ना ही अभी तक मेरा कोई बाय्फ्रेंड हुआ है. मैने सेक्स के बारे में थोड़ा बहुत जो सुना वो ना चाहते हुए मेरी सहेलियों के मुँह से ही सुना है, क्यॉंके मैं बहुत ही शर्मिल्ली किस्म की लड़की हूँ और सेक्स का नाम आते ही मुझे शरम आ जाती है. और एक मेरी बेशरम बेहन है जो धड़ल्ले से बिना क़िस्सी ख़ौफ़ के अपने ही मुँह बोले भाई से, जिसे हर साल वो बड़े चाव से उसके घर जा कर रखी बाँध कर आती है, उससे आधी रात में चुद रही है. और नज़ाने ऐसा कब से हो रहा है. खेर कुछ देर बाद उनकी छाप छाप धीमी हो गयी और मेरी बेहन के मुँह से एक ठंडी आह निकली और मेरा प्यारा भाई भी जैसे थक कर उस पर गिर पड़ा. पता नहीं इतना भारी भरकम शरीर मेरी पतली से बेहन अपने उपर कैसे टिकाए पड़ी थी.कुछ पल के बाद उन्होने ने एक दूसरे को हल्का फूलका सा फिर से किस किया और फिर वो उठा और उसने फटा फॅट अपने कपड़े पहने और बोला, “अछा जान, मैं चलता हूँ! तेरे बाप के उठने का टाइम हो रहा है. पर तू वो गोली लेना तो याद रखती है ना जो मैं तेरे लिए केमिस्ट से लाया था. देखना कहीं तेरी एक भूल की वजह से मैं कुँवारा बाप बन जाउ.”" 

अरे हां बाबा! तुम घबराव मत! मैं गोली हर रोज टाइम से ले रही हूँ,” मेरी बेहन बोली.”और उन्हे छुपा के कहाँ रखा है जान?” उसने पूछा.”मुझे उन्हे छुपा कर रखने की एक अच्छी जगह मिल गयी है. हमारे स्टोर में एक पुरानी अलमारी है जिसके निचले हिस्से में पावं में एक छेद है, जिसमे मैं वाहा छुपा के रखती हूँ.” मेरी बेहन बोली.”ओके! बाइ डार्लिंग. कल फिर आउन्गा. म्‍मम्मूनः!” फ्लाइयिंग किस फेंकता हुआ वो लुचा मेरा मूँह बोला भाई मेरी बेहन से बोला.उसके जाने के बाद भी बहुत देर तक ड्रेसिंग रूम मे ही बैठी रही और सोचती रही के ये सब क्या हो गया है. हमारा भाई ऐसा कब से हो गया और मेरी बेहन इतना कब और क्यों बिगड़ गयी. सोचते सोचते पता नहीं कितनी बार मेरी आँखों से आँसू बहे.जबके मेरी बेहन मज़े से अपने कमरे में अब नंगी सो रही थी. उसके कमरे से एक अजीब सी स्मेल आ रही थी जैसे कोई पुरानी बिजली की तार जली हो. ऐसे स्मेल कभी कभी मैने मम्मी पापा के कमरे में से भी आती सूँघी थी. मैं उठ कर धीरे से अपने कमरे में चली गयी पर मुझे नींद नहीं आई. अगले कई दिन तक में उस रात के बारे में ही सोचती रही. पहले तो मुझे बहुत गुस्सा था और जब भी हमारा वो कुत्ता मुँह बोला भाई हमारे घर आता था तो उसकी शकल देख कर मेरा दिल करता था के मैं उसका चेहरा नोच डालू, पर एक अंजाने सी डर की वजह से ना तो मैं उसे कुछ बोल पाई, नही अपनी बेहन से कुछ पूछ पाई. बरसों के रिश्ते एक पल में इन दोनो बेवकूफो की ग़लती की वजह से टूट जाए और किसी की बदनामी ना हो इस बात के डर से ये बात मैं अपने घर वालों से भी ना कर पाई. मैने उससे बात करनी ही बंद करदी और अपनी बेहन से भी अब में कम की ही बात करती थी और वो भी बड़े रूखे स्वाभाव से. सभी मेरी इन हरकतों से हैरान थे पर सबको लगा के शायद में पेपर्स की वजह से 

टेन्षन में हूँ इसलिए ऐसा कर रही हूँ. पर आज तो पेपर भी ख़तम हो गये थे और में आखरी पेपर भी अच्छे से दे कर हल्के मन के साथ घर की तरफ जा रही थी.”अरे दीदी! आपका पेपर कैसा हुआ?” मेरा लुचा मुँह बोला भाई फिर जाने कहाँ से रास्ते में टकरा गया. और आज उसके साथ एक दोस्त भी था.”तुमसे मतलब!” मैने गुस्से से कहा और गुस्से से भरी साँसें छोड़ते हुए आगे बढ़ गयी.”लगता है आपका पेपर अच्छा नहीं हुआ! पर उसका गुस्सा आप मुझ पर तो ना उतारो दीदी. वैसे आप कुछ दिनों से मुझसे उखरी उखरी है, अच्छे से बात नहीं कर रहीं. क्या बात है? मुझसे कोई ग़लती हो गयी क्या?”वो बोला.”नहीं! और प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो!” मैने फिरे थोड़े उखरे से मूड में कहा.”लगता है आप क़िस्सी बात से मुझ से नाराज़ हैं. प्लीज़ दीदी मुझे बताओ तो सही आख़िर बात क्या है?,” उसने पूछा पर मैं चुप रही. ” अच्छा चलिए मैं आपको घर तक तो छोड़ दूं!” वो बोला.”नो थॅंक्स! मैं अपने आप चली जाउन्गि,” मैने कहा और मैं आगे चल पड़ी.”क्या बात क्या है?” उसके दोस्त ने उससे पूछा. ” क्या तुम लोगों में कोई प्राब्लम हो गयी है? तुम तो कहते थे के तुम्हारी फॅमिली के इनकी फॅमिली के साथ अच्छे रिलेशन्स हैं. फिर बात क्या है,” उसका दोस्त आगे बोला. पर वो थोड़ा ला जवाब सा हो गया था और मुझे लगा के कहीं बात बिगड़ ना जाए और कहीं हमारी फॅमिली के या मेरी बेहन की कोई बदनामी ना हो जाए. यह सोच कर मैं बोली, ” सॉरी भैया! मेरा मूड थोड़ा ऑफ है. मेरे पिछले कुछ पेपर पहले जैसे अच्छे नहीं हुए. मेरी बातों का आप बुरा मत मानना. आप प्लीज़ मुझे मेरे घर तक छोड़ दो.” मैं ये झूठ बोल कर उसके बाइक पर बैठ गयी.”मैं दीदी को 2 मिनिट में घर छोड़ कर आया. तू तब तक यहीं रुक,” मेरा लुच्चा भाई अपने दोस्त से बोला और उसने मोटरसाइकल मेरे घर की तरफ सरपट दबा दी. रास्ते में जहाँ जहाँ वो ब्रेक लगाता मेरी छातियाँ उसकी पीठ में धस जाती. ऐसा पहले भी होता था लेकिन तब मैने कभी ध्यान नहीं दिया था. मुझे लगता था के ये आज कल के छोकरे इतनी तेज़ बाइक चलाते हैं के पीछे वाला ब्रेक लगने पर आगे ही तो गिरेगा. 

पर आज जब जब उसने ब्रेक लगाए और मेरी छातियाँ उसकी पीठ में धस्सी मेरे तब तब गुस्से से शरीर के रोएँ खड़े हो गये. दिल करता था के अभी बाइक रुकवा के नीचे उतारू और इसे जम कर झप्पड़ लगाउ. पर मैने कुछ ना कहा. सारे रास्ते चुप रही और अब उसने भी कुछ नहीं पूछा. घर पहुँचते ही मैं चुप चाप उसकी बाइक से उतरी और घर के अंदर चली गयी और वो अपनी बाइक दौड़ाता अपने रास्ते चला गया. पेपर अछा होने की सारी बात मैं अब भूल चुकी थी और मेरी आँखों के सामने बार बार सिर्फ़ उसका और मेरी बेहन का उस रात का भद्दा, नंगा और घटिया कामुक दृश घूम रहा था. मुझे इस बात पर रह रह कर गुस्सा आ रहा था के एक छोटा सा प्यारा सा लड़का जिसे मैं और मेरी बेहन अपने सगे भाई से भी बढ़ कर मानते थे, वो कैसे इतना लुच्चा, कमीना और गिरा हुआ इंसान बन गया जिसे अपनी मुँह बोली बेहन के जिस्म का मज़ा उठाते हुए ज़रा भी शरम नहीं आई. कैसे उसने मेरी भोली भली बेहन को बहका कर उसे इतनी नीच और गिरी हुई बना दिया. और तो और मुझे घर छोड़ने के बहाने नज़ाने कितनी बार उसने मेरी छातियों को अपनी पीठ पर रगड़ा है. मैं गुस्से से तिलमिला उठी और मन ही मन उसे कोस्ती हुई घर में दाखिल हुई.”आ गयी बेटा पेपर ख़तम कर के,” यह मेरी मौसीजी की आवाज़ थी.”अरे मौसीजी, नमस्ते! आप कब आई?” मैं एक पल में सारा गुस्सा भूल गयी और मेरी मौसीजी के गले से लिपट गयी. बचपन से ही हम दोनो बहनों का हमारी मौसीजी से खूब गहरा प्यार रहा है.”बस आज ही मैके आई हूँ बेटी. तेरी नानी की तबीयत ठीक नहीं रहती तो सोचा उनके खबर ले आउ. अब तुम लोगों के शहर आई हूँ तो अपनी प्यारी भाँजियों से मिल बिना कैसे रह सकती हूँ?” वो बोली. फिर अगले एक घंटे तक हम बहने अपनी मा और मौसी के साथ खूब बातें करते रहे. अब शाम हो रही थी तो मौसीजी मेरी नानी के घर जाने के लिए उठी तो उन्होने कहा, “अरे तुम दोनों भी मेरे साथ तुम्हारी 

नानी के घर क्यों नहीं चलती. कल सुबह जब मैं वापिस जाने के लिए बस लूँगी तो तुम दोनो भी अपने घर वापिस आ जाना.”"नहीं मौसीजी, आज मैं बहुत थक चुकी हूँ. आज ही मेरे पेपर ख़तम हुए हैं. मैं कुछ दिन आराम करके खुद ही आपके शहर कुछ दिन के लिए आ जाउन्गि,” मैं बोली.”अरे छोटी तू तो मेरे साथ वहाँ आज की रात रुक सकती है. वैसे भी तो तू मुझे अपनी स्कूटी पे वहाँ छोड़ने जा ही रही है,” मौसीजी ने मेरी छोटी बेहन से कहा.”आआ! ठीक है मौसीजी मैं आज आपके साथ वहीं रह जाउन्गि क्यॉंके मेरी ट्यूशन शुरू होने वाली हैं, जिस वजह से मैं आपके पास आपके शहर नहीं आ पाउन्गि,” छोटी ने थोड़ा सोच कर कहा. ट्यूशन का तो सारा उसका बहाना था. असली बात तो मैं जानती थी, के अभी तो वो सिर्फ़ एक रात के लिए अपने यार, हमारे हरामी मुँह बोले भाई से बिछड़े गी पर अगर कहीं उसे मौसीजी के शहर जाना पड़ गया तो कई रातों की जुदाई बन जाएगी. मैं एक बार फिर गुस्से से भर गयी. और इस बार मुझे अपनी बेहन पर गुस्सा आ रहा था. उस रात की घटना के बाद मैने यह स्पेशल नोट किया था के पेपर्स के दोरान जैसे ही मैं रात को पढ़ने के बाद अपने कमरे की लाइट बंद करती थी उसके एक आध घंटे बाद वो लुच्चा लफंगा दीवार और छत फाँद कर मेरी बेहन का बिस्तर गरम करने उसके कमरे में पहुँच जाता था. हलाकी उस रात के बाद कभी मैं उन्हे दुबारा सब करते देख नहीं पाई क्यों के फिर कभी ड्रेसिंग रूम का दरवाजा खुला नहीं मिला, पर दरवाजे पर कान लगा कर मैं सब सुन लेती थी. उनकी गरम सरद आहें, सिसकियाँ और वो छाप छाप की आवाज़, और में समझ जाती थी के वो क्या कर रहें हैं. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था के मेरी बेहन जो इतनी भोली बनती है वो इतनी गिरी हुई हरकत कर सकती है. उसे अपने मा बाप की इज़्ज़त का ज़रा भी ख़याल नहीं आया. यह सब सोच कर मेरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया पर मैने अपने आप को संभाला.”अछा बेटा, अभी मैं चलती हूँ पर तुम कुछ दिन बाद ज़रूर हमारे वहाँ आना,” मेरी मौसीजी जाते जाते बोली.”जी मौसीजी ज़रूर,” मैं मुस्कुरा के बोली. और वो दोनो मेरी नानी के घर के लिए रवाना हो गये. 

खैर दिन ढला, शाम बीती और रात आई तो मैं टीवी देखने के लिए सोफे पर बैठी तो मुझे अपने नीचे कुछ पड़ा महसूस हुआ. मैने उठ कर देखा तो पाया के मेरी बेहन अपना मोबाइल घर में ही भूल गयी है. मैने मोबाइल उठाया और उसे टेबल पर रख दिया और टीवी देखने लगी. फिर अचानक मेरे दिमाग़ के विचार आया के क्यों ना मेरी बेहन के मोबाइल की तलाशी ली जाए. पता नहीं मैं क्या देखना चाहती थी पर मैने मोबाइल उठाया, टीवी बंद किया और अपने कमरे में चली गयी. रात के तकरीबन दस बज रहे थे और मेरे घरवाले सो रहे थे. मैं अपने कमरे में गयी और अपने बेड पर लेट कर मोबाइल का लॉक खोलने की कोशिश करने लगी. पर मैं ये पहले भी कयि बार ऐसे ही मज़ाक में मेरी बेहन के सामने कर चुकी हूँ पर मुझसे कभी लॉक खुल्ला नहीं था और उसने कभी मुझे अनलॉक कोड बताया नहीं था. मैं कुछ देर ट्राइ करती रही पर फिर मैं हार कर रुक गयी. यह आज मुझसे खुलने वाला नहीं था. फिर अचानक मेरे दिमाग़ में आइडिया आया और मैने अपने मुँह बोले भाई के नाम के अक्षरों वाले नंबर दबाए और तपाक से फोन खुल गया.येस्स्स! ” मेरे मुँह से जीत की खुशी की आवाज़ निकली. लॉक खुलते ही सबसे पहले मैं मोबाइल के इनबॉक्स में पहुँची और मेरी बेहन को आए मेसेज पढ़ने लगी. सबसे ज़्यादा मेसेज उस हरामी के ही थे, और मेसेज थे इतने लुच्चे के कुछ को पढ़ कर तो मैं भी शर्म से पानी पानी हो गयी. एक मेसेज जो बार बार आया था वो था, “सब सो गये क्या मेरी जान. मैं आजाउ क्या?” मैं मन ही मन उस आवारा, घटिया इंसान को कोसने से ना रह सकी. उसके बाद मैने मोबाइल का आउटबॉक्स देखा तो मेरी प्यारी भोली भली बेहन के लिखे हुए बद से भी बदतर घटिया चीप और लुच्चे मेसेज पढ़ कर मैं भी शरम से पानी पानी हो गयी. एक मेसेज था, “जल्दी से आजओ मेरी जान, मैं मारे प्यार के मरी जा रही हूँ. मैने ब्रा और पॅंटी भी नहीं पहनी है ता के तुम्हे ज़्यादा 

कपड़े ना उतारने पड़े. जल्दी आजओ अब अपनी . के पास. और कहो तो जो बाकी कपड़े पहने हैं वो भी उतार दू क्या. जल्दी आजओ वरना मैं दीवार फाँद कर मोहल्ले के चौकीदार से चुदवाने चली जाउन्गि………”. छी! इतना गंदा मेसेज. इससे आगे तो मैं भी ना पढ़ पाई. खैर, अभी मैं मेसेज पढ़ ही रही थी के अचानक उसके मोबाइल पर एक दम से एक मेसेज आया और मैं डर के मारे कांप गयी और मोबाइल मेरे हाथ से छूट कर नीचे गिर गया. मेरी साँस फूल गयी, मानो मुझे क़िस्सी ने चोरी करते पकड़ लिया हो. मेरे चेहरे का रंग उड़ गया. फिर कुछ पल बाद मैने अपने आप को संभाला और स्टडी टेबल पर पड़ा पानी पिया. थोड़ी साँस ठीक हुई तो कुछ हिमत कर के मैने वो मेसेज पढ़ा. “सब सो गये क्या जान? बोलो तो अभी आ जाउ!”, ये हमारे उस लफंगे मुँह बोले भाई का मेसेज था. शायद मेरी बेहन ने उसे बताया नहीं था के वो आज घर पर नहीं है. बताती भी कैसे, उसका मोबाइल घर पर है, मौसीजी के पास मोबाइल नहीं है और हमारी नानी के घर का फोन कल से डेड पड़ा था जो आज भी चालू नहीं हुआ था.मेरे दिमाग़ में एकदम से पता नहीं क्या आया और मैने तपाक से उसके आउटबॉक्स मे से एक मेसेज, ” अभी थोड़ा रुकना जान. दीदी अभी जाग रही हैं. थोड़ी देर में आना,” उस लफंगे को सेंड कर दिया. यह मैने क्या किया? मेसेज सेंड करते ही मैं घबरा गयी. मेरे होश उड़ गये. मैने ऐसा क्यों किया? पता नहीं कहाँ से मेरे मन में ये ख़याल आ गया था के आज इसे मैं घर में बुलाती हूँ और जैसे ही वो मेरी बेहन के कमरे मैं घुस्से गा मैं उसे तपाक से एक तमाचा मारूँगी और लाइट जला कर उसे बताउन्गि के ये मेरी बेहन नहीं मैं हूँ. और उसे खबरदार करूँगी के आइन्दा अगर उसने ऐसी कोई घटिया हरकत की तो मैं उसकी करतूतों की खबर हमारे और उसके घरवालों को दे दूँगी. यह सोच कर मैं कुछ संभली और मोबाइल साइड मे रखा और अपने आप को संभालने के लिए और कपड़े चेंज करने के लिए ड्रेसिंग रूम मे गयी. ड्रेसिंग रूम की लाइट ऑन कर के मैने अपने आप को शीसे मे देखा. 
क्रमशः............






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