Tuesday, April 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI जवान रात--2

FUN-MAZA-MASTI

 जवान रात--2
gataank se aage.................
गांव में जाने का एक थोड़ा निकट का रास्ता था, लेकिन वह पलाश और कुश के छोटे से जंगल में से जाता था। मैंने वही रास्ता पकड़ा तो वह रुक गई।


क्योंकि उसे पता था कि एक सड़क भी है, लेकिन मेरे समझाने और डर समाप्त करने के बाद ही वह जाने को तैयार हुई। पगडंडियां तमाम थीं। मैंने जानबूझकर अलग पगडंडी पकड़ी। चूंकि बचपन से मैं इतनी बार इधर से गया था कि मुझे रास्ते का चप्पा चप्पा पता था। मेरे कंधे पर छोटा सा बैग था। जिसमे मेरे कपड़े थे। उसका सामान तो रख दिया था।


उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ लिया था। थोड़ी दूर जाकर मैंने कहा, '' हाथ छोड़ो, मैं जरा मूत लूं !''


वह बोली, '' नहीं मुझे डर लग रहा है, यहीं मूतो !''


तब तक चांदनी के प्रकाश का प्रभाव वातावरण में उभर गया था। मैं उत्तेजित होने लगा। मुतास के कारण मेरा लंड पहले से ही खड़ा था मैंने उसी के सामने लंड को पैंट से निकाला और छल छल मूतने लगा। मूतने के बाद जब लंड हिलाकर बूंदें गिराने लगा तो वह बोली, '' बीज गिरा रहे हो मामा?''


मैंने कहा, '' बीज तो तुम्हारी बुर में गिराऊंगा।''


'' कैसे?''


'' तुम्हें चोदकर और कैसे?'' इतना कह कर मैं लंड को यूं ही बाहर लटकाये चल पड़ा। और हाथ उसके कंधे पर रखकर बगल से उसकी चूचियों को सहलाने लगा। वह कड़ी होने लगीं तो और तेज मलने लगा। वह उत्तेजित होकर मुझसे चिपकने लगी। चूचियां बड़े लम्बे आम का रूप धारण करने लगीं। मैंने रुककर मुंह में सटाकर अपनी जीभ उसके मुंह में डालकर जो चूसा तो बोली, '' मामा लगता है कि आज तुम मुझे खराब करके ही छोड़ोगे !''


" मतलब?''


'' मतलब न पूछो!'' कहकर वह बोली, मुझे भी मूतना है !'' कहकर वह वहीं सलवार खोलकर बै� गई। जानवरों को चारा खिलाने वाली नाद की तरह उसके चूतड़ सामने आ गये। वह सीटी बजाती शर-शर मूतने लगी। मैं अपने खड़े लन्ड को उसकी कनपटियों से रगड़ने लगा।


मूत कर उ� ी तो सलवार बांधने से पहले ही मैंने उसकी झांटों से भरी चूत को मुट्� ी में पकड़ लिया वह मूत से गीली हो रही थी। उसने हल्का सा प्रतिरोध किया, '' छोड़ो न!''


अब तक चांदनी खिल चुकी थी। चारों तरफ सन्नाटा था। मुझे याद आया कि थोड़ा अन्दर एक छोटी सी पोखर है। मैं उसी तरफ उसे लिपटाये चला गया।


पोखर में पानी तो कम था, लेकिन उसके किनारे साफ स्थान था। पास में सफेद पुष्प खिले थे। वातावरण मादक था। उसने मस्ती भरे स्वर में कहा, ''यहां क्यों आये?''


मैंने कहा, '' तुम्हें लेने के लिए।'' फिर उससे खड़े ही खड़े ही लिपट गया।


वह मेरे ही बराबर थी। उसके बाल खुल गये थे। उसकी कड़ी होकर पत्थर चूचियां मेरे सीने से टकराकर मेरे अन्दर आग भर रही थीं। मैंने हाथ को पीछे ले जाकर उसके उभरे चूतड़ों को पकड़ लिया और मुंह को उसके मुंह से लगाकर उसके चेहरे और हों� ों को चूसने लगा। उसने भी मुझे जकड़ लिया। मेरा लंड खड़ा होकर सलवार के ऊपर से उसकी चूत को चूमने लगा।


वह थोड़ी देर बाद अलग होकर बोली, '' अब चलो मुझे डर लग रहा है।''


मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए बैग खोल कर अपनी लुंगी निकाल कर बिछा दी और कहा, '' अब न तो मैं बिना चोदे रह सकता हूं और नहीं तुम बिना चुदाये !''


फिर मैंने उसे भूमि पर लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़कर उससे लिपट गया। उसने भी मुझे कस लिया। पांच मिनट की लिपटा-लिपटी के बाद मैं उ� ा और उसे उ� ाकर उसकी कुरती को शमीज़ सहित ऊपर खींच कर उतार दिया। वह ऊपर से नंगी हो गई। दोनों छातियां ऐसी गोरी चिकनी और फूलकर खड़ी हो गई थीं मानो उन्हें अलग से चिपका दिया गया हो। उन्हें नीचे से ऊपर मींजते सहलाते हुए कहा, '' सच बताओ सोनम मेरे अतिरिक्त तुम्हारे दो पपीतों को किसी और मींजा है?''


'' भगवान कसम नहीं। जब मैं गांव में थी तो संध्या भाभी जरूर मींजती और कभी कभी चूसतीं भी थीं, लेकिन तब यह छोटी थीं। कामता भैया कलकत्ता रहते थे। वह अपनी चूचियां चुसाती भी थीं। यहां किसी ने कभी नहीं कुछ किया।''


" तो आज मैं सब कुछ करूंगा !'' कहते हुए मैंने उसकी चूचियों को चूसना आरम्भ कर दिया। उसका सीना मेरे थूक भीग गया। वह वहीं लेट गई और अकड़ने लगी।


तब मैं उ� ा और अपनी पैंट और चड्ढी साथ उतार दी। बल्ल से मेरा लंड सामने आ गया। वह उसे ही देखने लगीं। मेरी झांटे काफी बड़ी हो गईं थीं। नसें तनकर अकड़ गई थीं। मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। वह वैसे ही पकड़े रही। उसकी खड़ी चूचियां मेरे हों� ों के सामने तनी थीं। तब मैंने कहा, '' सहलाओ।''


वह बोली, '' शरम आती है।''
'' लो अभी मैं शरम मिटाता हूं।'' कहकर मैंने उसके सलवार का नाड़ा पकड़कर खींच दिया। सलवार खुल गई। नीचे से पकड़कर खींचा तो उतर गई। वह शरमाने लगी। उसकी भी झांटे काफी बड़ी थीं। उसकी बुर उसी में छुपी थी।


'' कभी-कभी इसे साफ कर लिया करो।'' कहकर मैं हथेली से उसकी बुर सहलाने लगा।


सोनम सिसियाते हुए बोली, '' तुम्हारी भी तो बड़ी है।'' और फिर मेरे लंड पर अपनी हथेलियां चलाने लगी।


मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई, लगा कि अब मैं कही झड़ न जाऊं। उसकी बुर भी गीली हो गई थी। उसकी बुर का दाना उभर आया था। यद्यपि मैंने तो रास्ते में सोचा तो बहुत कुछ करने के लिए था, लेकिन लगा कि अब मैं कहीं बिना अन्दर डाले ही न झड़ जाऊं तो उससे कहा, '' टांगें फैलाकर लेटो।''


वह लेटते हुए बोली, '' छोड़ दो न मामा!''


'' पागल हूं मैं !'' कहकर मैंने अपनी शर्ट उतार दी ओर उसके पूरे शरीर को सहलाया और फिर उसकी टांगों के बीच में जाकर उसकी बुर के छेद को हाथों से टटोलकर उसपर अपने लंड का सुपाड़ा रखकर औंधे मुंह उसपर लेट गया और कमर पर दबाव डाला तो भीग चुकी उसकी बुर में मेरा लंड सक से चला गया।


'' हाय राम मैं मरी!'' उसने कहा।


मैंने कहा, '' झिल्ली फट गई?''


'' पता नहीं!''


मैं एक पल के लिए रुका फिर कुहनियों को भूमि पर टिका कर उसकी चूचियों को मलते हुए कमर चलाते हुए सोनम को हचर-हचर चोदने लगा। सात आ� धक्के के बाद वह भी कमर चलाने लगी और अपने हाथों से मुझे कस लिया। मैं उसे चोदे ही जा रहा था। उसका शरीर महकने लगा। उसके मुंह से हों-हों का स्वर निकलने लगा।


मेरी कमर और तेज चलने लगी। उसने किचकिचाकर मुझे दबोच लिया। अन्त में मैं भल्ल से उसकी चूत में झड़ गया। मैं कुछ देर बाद उसके ऊपर से उ� ा। मेरा लंड बीज से सना था। उसकी चूत भी वैसे ही बीज से भरी थी। वह लम्बी लम्बी सांसे भर रही थी। मैंने पास पड़ी पैंट से रुमाल निकालकर पहले अपने गीले लंड को पौंछा फिर उसकी बुर को। अब वह स्थिर हो गई थी। बोली, '' मामा अगर कहीं बच्चा � हर गया तो?''


'' पागल एक बार में बच्चा नहीं � हरता है। उ� ो ! बै� कर मूत दो ! बीज नीचे गिर जायेगा।''


मूत कर वह उ� ी तो मैंने उसे अपनी टांगों को सीधे फैला लिया और उसकी टांगों को अपनी कमर के दोनो तरफ करवा कर बै� ा लिया। उसकी चूत से मेरा सिकुड़ा लंड स्पर्श कर रहा था। मांसल चूचियां मेरे सीने से पिस रही थीं। उसके खुले बाल उसकी पी� पर फैलकर वातावरण को मादक बना रहे थे। वह बोली, '' अब चलो। अपनी तो कर ही ली। देर हो जायेगी।''


'' देर तो हो गई। थोड़ी और सही। ऐसा सुनहरा अवसर अब तो कभी नहीं मिलेगा।''


उसने कोई उत्तर नहीं दिया इसका मतलब था कि उसकी भी मौन स्वीकृति थी। मेरे हाथ उसकी पी� से लेकर उसके नाद जैसे भारी चूतड़ों की दरार तक चल रहे थे।


वह भी मेरे बालों में अंगुलियाँ चला रही थी। कभी कभी मेरी कनपटियो को भी सहलाने लगती। मैंने यूं ही पूछा, ''सोनम कभी सोचा था कि तुम्हारी चुदाई ऐसे रोमांटिक वातावरण में होगी?''


उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने उसे खड़ा किया तो वह रोबोट की भांति खड़ी हो गई। बिल्कुल नंगी ! मैं भी मनुष्य के आदिम रूप में था। हम नंगे पोखर के किनारो पर टहलने लगे। उसके चूतड़ चलते में हिल रहे थे। चिकने थे। एक भी रोयां नहीं था। जांघं और पिंडलियां भी चिकनी थी। झांटें जरूर पेड़ू तक फैली थीं। चूची हिल नहीं केवल थरथरा रही थी।


मैंने टहलते हुए बुर पर हथेली रखते हुए कहा, '' सोनम झांट हेयर रिमूवर से बना लिया करो। अभी लगता है एक बार नहीं किया?''


'' नहीं साफ तो किया है, लेकिन मुझे शरम आती है। जब चाची को याद आता है तब लाकर देती हैं तो करती हैं, स्वयं तो एकदम चिकना किए रहती हैं।''


फिर दोनों हाथों की अंगुली और अंगू� े को मिलाकर चूत का आकार देते हुए कहा, '' भोंसड़ा हो गई है, फिर भी !''


मैंने कहा, '' उन्हें चुदना जो होता है, जब तुम लगातार चुदोगी तो अपने आप साफ रखोगी।''


'' तुम तो चोदते हो तब भी जंगल उगा लिया है।'' कहकर वह मेरे लंड को पकड़ कर खेलने लगी और पेलड़ की गोलियों से खेलने लगी।


मुझे न जाने क्या सूझी कि मैंने उसे उ� ाकर सामने से उसे अपने कंधे पर बै� ा लिया। उसकी टांगें पी� की तरफ हो गईं। उसकी चूत मेरे मुंह के सामने आ गई और मन में आया कि लाओ चूम लूं, लेकिन सोचा पता नहीं क्या सोचे तो अपनी � ुड्डी उसकी बुर से रगड़ने लगा। उसकी झांट के बालों का स्पर्श चेहरे को अजब आनन्द दे रहा था।


इसी के साथ मैंने अपने हाथों को ऊपर उ� ाकर उसके दोनों दूधों को मसलने लगा। बुर चूत की बातें होती रहीं और हम फिर उत्तेजित हो गये। मेरा लंड दुबारा कील की तरह खड़ा होकर ऊपर उ� गया। इसी तरह पोखर का तीन चक्कर लगाते-लगाते वह उत्तेजित हो गई । तो बोली, '' मामा चलो फिर चोदो मगर दूसरी तरह से।''


मैं उसके इस खुले आमन्त्रण से हिल गया। कंधे से उतार कर ले जाकर लुंगी पर उसे झुका दिया और हथेली पर अपने और उसके मुंह से थूक लेकर अपने लण्ड पर मला और चूत को ढके झांटों को इधर-उधर करके छेद पर रखकर कसा तो एकदम अन्दर चला गया। फिर कमर हिलाहिलाकर उसे चोदने लगा।


कुछ पल बाद लंड निकाला तो देख कि उसकी बुर का छेद खुल चुका था। उसका चना भी फूल गया था। फिर मैं भूमि पर लेट गया। मेरा लंड हवा में तना था। मैंने उससे कहा, '' सोनम आओ ! इसपर टांगें फैलाकर बै� ो।''


वह बोली, '' नहीं ! पूरा अन्दर चला जायेगा ! दर्द होगा !!''


'' यह सब कहने की बात है, और मजा आयेगा। बै� कर तो देखो !''


वह दानों टांगों को इधर उधर करके बुर के छेद को लंड के निशाने पर लेकर बै� ी तो एकाएक कमर को पकड़कर दबा दिया। वह घप्प से गिर गई। सट से लंड अन्दर पूरा उसकी बुर की जड़ तक चला गया। पहले मैंने नीचे से अपनी कमर को हिलाया फिर वह भी हचर-हचर अपनी कमर चलाने लगी। मैं सामने उसकी स्तूप की तरह हिल रही चूचियों को सहलाने लगा। बढ़ती उत्तेजना के साथ मेरी और उसकी गति तेज हो गई। अन्त में मैं फल्ल-फल्ल झड़ने लगा। वह अजब अजब स्वर निकालने लगी और औंधे मुंह मेरे ऊपर गिर पड़ी।

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