Sunday, April 20, 2014

FUN-MAZA-MASTI शराफ़त--1

FUN-MAZA-MASTI

 शराफ़त--1
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिज़र्वेशन काउंटर संख्या १२ की लाइन लगा हुआ मैं अपने चारो तरफ नज़र दौड़ा रहा था हर इंसान यहाँ रिज़र्वेशन के लिए ही आया लग रहा था. पास मे ही लॅडीस ओर बुजुर्गों की लाइन लगी हुई थी जो अपेक्षाकृत थोड़ी छोटी थी. लॅडीस इस लाइन मे इस लिए लगी हुई थी की उन्हे रिज़र्वेशन के लिए छोटी लाइन मे आसानी से रिज़र्वेशन मिल जाता है ओर बुजुर्ग भी ज़्यादातर इसी इरादे से लगे हुए थे पर उनमे ही कुच्छ बुजुर्ग अलग ही इरादे से आए लग रहे थे वो ज़्यादा भीड़ ना होते हुए भी अपने आगे लगी हुई लॅडीस से एकदम चिपके हुए थे ओर पूरी कॉसिश मे थे की किसी तरह वो अपना खास अंग उनके पिछले भाग से सटा सकें ओर कई बार वो इसमे कामयाब भी हो जाते थे गर्मी अपनी सिद्दत से थी ओर हर शक्श पसीने मे नहाया हुआ था. रिज़र्वेशन की लाइन मेरे लिए एकदम अलग एक्सपीरियन्स था आज तक मैने खुद रिज़र्वेशन नही करवाया था मैं अपने किसी ना किसी चेले को भेज देता था पर आज कारण ही कुछ ऐसा हो गया था की मैने चेले को भेजना मुनासिब ना समझा. आज मुझे फिर एक सेमिनार मे जाने के लिए रिज़र्वेशन करवाना था. मैं अक्सर सेमिनार अटेंड करने जाता रहता था.
अभी भी मेरे आगे ५ लोग लाइन मे लगे हुए थे. मैने अपने दाए तरफ नज़र घुमाई तो देखा की लाइन के बीच के हिस्से मे एक गाव की ओरत फर्श पर पालथी मारे बैठी हुई है वो सयद बच्चे को दूध पिला रही थी पर बच्चा तो सो चुका था ओर उसका ध्यान नही गया था उसके उन्नत दूध से भरे हुए मदमस्त चुचे एकदम खुले हुए थे ओर मेरी आँखों के लिए दावत का काम कर रहे थे. मैं उसे ही देख रहा था की अचानक उसका पति टिकेट ले कर आ गया ओर वो उसने झट से अपने दोनो चुचे ब्लाउस मे बंद किए ओर खड़ी हो गई ओर उसके पीछे पीछे चल पड़ी. मेरे आगे अभी भी दो लोग बाकी थे. दूर दरवाजे के पास एक दलाल टिकेट बेचने की कोशिश मे लगा हुआ था ओर ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले के लिए मैने नज़र दौड़ाई पर वो कही भी नज़र नही आया. तभी मुझे मेरे पीछे वाले ने आवाज़ दी "भाई साहब टिकेट लो".
मेरी तंद्रा अचानक भंग हो गई ओर मैने आगे बढ़ते हुए टिकेट विंडो से २ टिकेट के लिए पैसे ओर फॉर्म आयेज बढ़ाया ओर टिकेट ले कर वापस मुड़ा.
पिच्चे मुड़ते ही मैने सबसे पहले नीरजा को फोन लगाया. 
 
सामने से हेलो की आवाज़ आते ही मैने कहा " हेलो नीरजा मैने तुम्हारे ओर मेरे लिए बॅंगलॉर की टिकेट बुक करवा ली है परसो रात ९:३० की ट्रेन है तू वक़्त पर स्टेशन पहुँच जाना.
क्या कह रहे हो तुम मेरी तो कुच्छ समझ नही आ रहा है क्यू जाना है बॅग्लोर यार तुम बड़े अजीब हो. मुझे कुछ बताते ही नही हो ओर अपने लेवल पर फ़ैसले ले लेते हो.
परसो रात की ट्रेन से हम जा रहे है १५ तारीख को सेमिनार है ओर मैने तुम्हारा भी नाम उसमे जुड़वा दिया है ओर हम दोनो साथ मे वहाँ जा रहे है.
यार मैं नही जा पाऊँगी मुझे ओर दूसरी अपायंट्मेंट्स देखनी है
मैं कुच्छ नही जानता तुम आ रही हो मेरे साथ. ये कहते हुए मैने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.
रात मे खाना खाते हुए मैने संध्या से कहा की मैं परसो सेमिनार मे जा रहा हू मेरा बॅग तय्यार कर देना ये ना हो की वक़्त पर मेरे ड्रेसस तय्यार ना हो. मुझे ये सब बिल्कुल पसंद नही है.
कहाँ जा रहे हो सेमिनार मे?
बॅंगलॉर
ठीक है मुझे भी तुम्हारे साथ चलना है बहुत दिन हो गये है तुम्हारे साथ घूमे हुए ओर बंगलोरे मेरा घूमा हुआ भी नही है.
दिमाग़ खराब है क्या तुम्हारा? मैं क्या वहाँ घूमने जा रहा हूँ सेमिनार अटेंड करने जा रहा हू. तुम क्या जानो सेमिनार क्या होता है गँवार ओरत. मेरे मामलों से तुम दूर ही रहा करो. मैने संध्या को झिड़कते हुए कहा.
अच्छा समझ गई वहाँ तुम्हारे साथ नीरजा जा रही है ना.
तुम आजकल कुच्छ ज़्यादा नही बोलने लगी हो क्या? अपनी हद मे रहा करो. अगर जा भी रही है तो वो सेमिनार अटेंड करने जा रही है. तुम अपनी ज़ुबान को काबू मे रखा करो. इस तरह मैने संध्या को चुप कर दिया. ओर बेडरूम मे चला गया. बेड तय्यार था बीवी मेरा हर तरह से ख़याल रखती थी पर इंटेलेक्चुयल लेवल पर कहीं मुझे बहुत बड़ा अंतर नज़र आता था तो कुच्छ ईंच्छा भी नही होती थी.
मैं बेड पर सो गया ओर कुच्छ देर बाद बीवी भी आ कर पास मे ही सो गई.
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन मैं मेरे चेलों के साथ खड़ा हू बीवी को मैने घर पर ही रहने को कह दिया है.

नरेश: सर, आप इस बार किस टॉपिक पर सेमिनार मे बोलने जा रहे है?
मैं: रिमोट सेनसिंग पर.
प्रियंका: सर, ये तो आपका फेवोवरिट टॉपिक है ना.
मैं:हन मुझे फज़्ज़ी लॉजिक बहुत पसंद है ना तो ये टॉपिक तो आएगा ही. वैसे तो मेरे ज़्यादा सेमिनार तो रडार टेक्नालजी पर हुए है पर रीसेंट्ली मेरा इंटेरेस्ट इस टॉपिक मे ज़्यादा जागा है.
सुरेश: सर, क्या इसका कारण नीरजा जी है?
मैं सुरेश को घूर कर देखा तो सुरेश चुप हो गया पर नरेश जो मेरे साइड मे खड़ा था उसे मेरे एक्शप्रेसिओन्स दिखाई नही दिए ओर वो सवाल कर बैठा.
सुरेश: नीरजा मेडम भी आ रही है ना सिर सेमिनार मे.
मैं: तुम लोग अगर पढ़ाई मे इन बातों के मुक़ाबले ज़्यादा ध्यान दो तो बहुत अच्छी पढ़ाई कर सकते हो ओर सुरेश तुम्हारी थीसिस कब की कंप्लीट हो चुकी होती ओर तुम भी मेरी तरह सेमिनार मे अपने टॉपिक प्रेज़ेंट कर रहे होते. पढ़ाई मे ज़्यादा ध्यान दिया करो ओर इन बातो मे दिमाग़ मत खपाया करो. अच्छा मीयन चलता हू तुम लोग जाओ.
प्रियंका: पर सर अभी तो ट्रेन आने मे टाइम है हम आपको सी ऑफ करने आए है तो सी ऑफ करके चले जाएँगे ना.
मैं: प्रियंका तुम गर्ल्स हॉस्टिल मे रहती हो इतनी देर बाहर रहने पर ओज्बेक्टिओं नही करते है क्या तुम्हारे वॉर्डन. ओर वैसे भी आजकल दिल्ली सेफ नही है. तुम लोग जाओ वापस.
सब: थेक है सर. बाइ सी यू
मैं: बाइ
उन सब को भगा कर मैं प्लॅटफॉर्म पर आ गया. अभी ट्रेन प्लॅटफॉर्म पर नही आई थी. गाड़ी देखी तो समय हुआ है ९:१०. काफ़ी टाइम है क्या किया जाए. सामने प्लतेफोर्म पर बैठी एक जवान लड़की के स्कर्ट मे मेरी नज़र अटक गई वो कुच्छ इस तरह बैठी थी की उसकी जांघें काफ़ी उपर तक दिखाई दे रही थि. मैं उसके कुछ नज़दीक आ गया ओर पास मे बेंच पर बैठ गया कुछ दूरी बना कर जिससे मैं उसकी जांघों को देख सकूँ मेरी पंत मे कुछ कुलबुलाहट होने लगी थी मैने अपने हाथ को जैसे ही पंत ऑर अड्जस्टमेंट के लिए रखा उस लड़की ने मेरी तरफ देखा ओर फिर मेरे हाथ को ओर घृणा से मेरी तरफ देखते हुए वहाँ से उठ गई. यार एक ही तो एंटरटेनमेंट का साधन था वो भी छीन गया. तभी मेरे पीछे से आवाज़ आई "तुम्हारी आदत गई नही अभी तक लड़कियों के स्कर्ट मे झाँकने की" आवाज़ जानी पहचानी थी मैने मूड कर देखा तो नीरजा थी.

मैं: ये टाइम है तुम्हारे आने का, ९:१५ हो गये है, मैं तो समझ रहा था की तुम आओगी ही नही. तुम थोड़ा पहले नही आ सकती थी.
नीरजा: आ तो सकती थी पर मेरे भी घर बार है तुम तो ये बात समझते नही हो, जब दिल किया सेमिनार मे नाम डलवा दिया ओर बुला लिया. वैसे मैं आधे घंटे से आई हुई हू पर मेरे पति ओर बच्चे मेरे साथ थे जो मुझे सी ऑफ करने आए थे तो उनके साथ थी उन्हे किसी तरह विदा करके आई हू.
मैं: पता है हम लोग कितने दीनो के बाद सेमिनार मे एक साथ जा रहे है १० महीने बाद. तुम्हे नही लगता ये काफ़ी लंबा अरसा हैं
नीरजा: हो सकता है पर मेरी टोंहरी शादी शुदा जिंदगी पर इन सब का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है.
सामने जनर गई तो देखा ट्रेन तो आ चुकी है ओर जनरल डब्बे मे घुसने के लिए लोग लड़ाई कर रहे हैं मैने नीरजा को साथ मे लिए ओर अपने कॉमपार्टमेंट की तरफ चल पड़ा. मेरे कॉमपार्टमेंट मे देखा तो दो लोग ओर थे यानी हमे बहुत शराफ़त से रहना था..
 









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