Sunday, April 13, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--116

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--116
गतांक से आगे ...........



 सुबह उठा तो अपने कमरे में था। दिन के १० बज रहे थे।

और मंजू जगा रही थीं।

" अरे देवर जी उठो , शीला भाभी जा रही है , रिक्शा आ गया है। तुम्हारे भैया जा रहे हैं बस स्टेशन छोड़ने "

जैसे मैं पलंग से उठा मंजू ने टोका , लाला पजामा तो सीधा कर लो , रात किसके साथ थे।
मैं थोडा सरमाया , थोडा सकपकाया। पाजामा सीधा करने के लिए उतारना तो पड़ेगा , और मंजू ,…

मंजू ने मेरी झिझक भांप ली और मेरे कुछ ,करने कहने के पहले ही पाजामे का नाडा खोल के , घुटने तक सरका दिया और , आधे सोये आधे जागे जंगबहादुर बाहर।

मंजू ने उसे मुट्ठी में दबोच लिया और सहलाते , दबाते , बोली, " क्यों लाला , एही के लिए सरमा रहे थे। का हम इसको देखे नहीं है की पकड़े नहीं है , बस एक मौका मिले तो अंदरों लै लुंगी , समझते का हो। "
जंगबहादुर फिर से खड़े हो रहे थे। मंजू ने एक झटके से चमड़ा खीच के सुपाड़ा खोल दिया और बोली ,
" अरे पजामा उतार तो हम दिहे हैं , अब पहिन लो की ऐसे चलोगे " और अपने भारी चूतड़ मटकाते मुझे ललचाते बाहर चली गयी।

शीला भाभी का सामान बाहर चला गया था। भाभी उके लिए किचेन से कुछ पैक कर रही थीं. मुझे देखते ही शीला भाभी ने मुझे बांहो में भींच लिया और दबाते हुए बोलीं , " देवर जी , तुम्हारा अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी। "

उनके आँखों में ख़ुशी के आंसू थे।

उनका गाल सहलाते , मैंने कहा , " भाभी , देवर भी बोलती हैं और अहसान भी। अहसान तो आपका है की आपने गुड्डी को दिलवा दिया। "
तब तक भाभी भी निकल आयी थी और बोली , एकदम सही कह रहे हो , ये भाभी की दें थी की चट मंगनी पट ब्याह हो रहा है। "

शीला भाभी और चिढ़ाये नहीं , बोली , " अभी तो गुड्डी को दिलवाया है फिर गुड्डी की सारी ससुराल वालियों की भी दिलवाउंगी , बहुत चींटे काटते है उनकी बिल में क्यों। "
और भाभी ने तुरंत हामी भरी , " एकदम भाभी। "

चलते समय शीला भाभी बोलीं , आना जरूर गाँव। शादी के बाद भी।

मेरी ओर से भाभी ने हामी भरी। और मैंने आँखों ही आँखों में।

बाहर रिक्शा वाला चिल्ला रहा था , भैया बुला रहे थे बस छूट जायेगी।

शीला भाभी को छोड़ के मैं वापस आया।

इधर मेरा मोबाइल चिल्ला रहा था , कंप्यूटर पे मेसेज पे मेसेज

रीत , मीनल , गुड्डी , मेरे हैकर फ्रेंडस और एंटी टेरर स्क्वाड मुम्बई के चीफ , मारिया।




सबके मेसेज थे ,गुड्डी के , रंजी के , रीत के , मेरे हैकर दोस्तों के।

सबसे पहले मैंने गुड्डी का खोला। खूब बिंदास मस्त , लेकिन थोड़ी उदासी भी। बनारस से आने के पह्ली रात थी , जब हम अलग थे।

उसने लिखा ,

"रात भर तेरे माल का ख्याल रखा। मन बहुत कर रहा था लेकिन तेरा ख्याल कर के ऊँगली भी नहीं की। एकदम मक्खन है , देख ले।"

और फिर एक निचले गुलाबी होंठों की फ़ोटो अटैच थी। पता नहीं इंटरनेट की थी या असली लेकिन थी बहुत मस्त , एकदम गुलाबी और चिपके हुए।

और साथ में रंजी का मेसेज , "भैया , ये गुड्डी बहुत बदमाश है। फ़ोटो कैसी लगी। शाम को जरूर आना। "

इसका मतलब होंठ रंजी के ही थे , भीगे होंठ तेरे ,सोच के खडा होगया।

अगला मेसेज रीत का था वो लोग सेफली बाम्बे पहुँच गए थे ऐ टी एस( ऐंटी टेरर स्क्वाड) के आफिस में थे और अब नेवल हेडक्वॉर्टस जा रहे थे। उसने ये भी बोला की करन ने एक डिटेल्ड मेल किया है। शाम को रीत नेवल हेडक्वार्टर में ही रहेगी। वहाँ पुलिस और आर्मी के लोग भी रहेंगे और रा और आई बी के भी।

लेकिन सबसे ज्यादा मेरा दिल खुश किया वो था मीनल का।

" मैं खूब सो रही हूँ। कुछ करने का है नहीं। और वैसे भी मैंने रीत को बोल दिया है , जब वो औऱ जीजू आयेंगे न , तो न खुद सोउंगी न उनको सोने दूंगी। "


तब तक मैं कमरे में पहुँच गया था।

एक अर्जेंट मेसेज बार बार फ्लैश कर रहा था , मेरे हैकर दोस्तों का था। मुझे सिक्योर क्लाउड पे पहुंचना था।


मैंने डेस्क टॉप और लैप टॉप दोनों एक साथ खोले , उन्हें सिक्योर किया और एक पे मैप लगाया। फिर अपने हैकर दोस्त की रिपोर्ट खोली।


मैंने जैसे जैसे रिपोर्ट पढ़ी , मेरे चेहरे का रंग बदलता गया।

कल जब मैं शीला भाभी के साथ हिंदुस्तान का भविष्य बना रहा था ( और अपना भी , आखिर भाभी ही चाभी है ) और करन रीत भी ट्रेन में , इतने दिनों के बियोग का हिसाब सूद ब्याज के साथ चुकता कर रहे थे ,

पड़ोस के देश के एक शहर में पहली बार मेरे हैकर दोस्तों ने और रा के लोगों ने एक जबरदस्त कवर्ट आपरेशन किया। उसकी रिपोर्ट थी और जो कुछ माल मत्ता मिला था ,

थोड़ी क्रेडिट तो मैं रीत और करन ले सकते थे।


ऐज यूजुअल आइडिया रीत का था , हैकर्स से मैंने रिक्वेस्ट की और करन रा में तो था ही और उस देश में अन्डर कवर आपरेशन भी किया था उसने , और उसके कई भरोसे के लोग थे वहाँ तो कल हम लोगों ने प्लान किया था ,

चलिए शुरू से बताता हूँ।

आपरेशन में कुछ इस्सू शुरु से अटके थे

दुश्मन के कमांड और कंट्रोल सेण्टर के बारे में.

सबसे पहले रीत ने कार्लोस के साथ बनारस सेट फोन का पता लगाया और फिर मैंने पडोसी देश में जहाँ से वो बात होती थी , उस सेट फोन का पता लगाया।

और उसी सेट फोन से ट्रेस कर बड़ोदा के सेट फोन का पता चला। उन सेट फोन की बातचीत को मेरे हैकर्स दोस्तों ने सिर्फ ट्रैक ही नहीं किया , बल्कि डिकोड भी किया।

परेशानी लेकिन दो थीं , बल्कि कई थीं।

एक तो मुम्बई में कोई सेटलाइट कम्युनिकेशन नहीं ट्रेस हो पा रहा था , न तो मेरे हैकर फ्रेंड्स कर पा रहे थे और न सिक्योरिटी एजेंसीज।

तो फिर मुम्बई के आपरेशन को कैसे कंट्रोल करेंगे ये ?

दूसरी बात ये थी की जहाँ से सेट फोन से बात होती थी , अंदाजा ये लगा की वो सिर्फ कम्युनिकेशन सेंटर था। क्योंकि , अगर सेट फोन से कोई सवाल इधर से पुछा जाता था , उस का जवाब तुरंत नहीं मिलता था।

सेट लाइट इमेजरी से ये पता चला की बात होने के बाद कोई आदमी उस जगह से बाइक से कहीं जाता था। इसका मतलब वो कमांड ऐंड कंट्रोल सेंटर पे कम्युनिकेशन का तरीका था।

एक बार अमेरिका ने ओसामा के सेट फोन को ट्रैक कर के टोरा बोरा की पहाड़ियों में क्रूज मिसाइल्स से हमला किया था। और उस के बाद से उसने मेसेज भेजने का कुरियर का तरीका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया , और इतने दिन बचा रहा।

लगता है यही सेफ्टी यहाँ पे भी कमांड और कंट्रोल सेंटर कर रहा था।

लेकिन उसमें सेंध लगाना जरुरी था , मुम्बई के आपरेशन के लिए। 


किले में सेंध


लगता है यही सेफ्टी यहाँ पे भी कमांड और कंट्रोल सेंटर कर रहा था।

लेकिन उसमें सेंध लगाना जरुरी था , मुम्बई के आपरेशन के लिए।

मुम्बई में मुझे लग रहा था कि काफी आपरेशन के डिटेल्स शायद ' बॉम्बर ' के पास हों , लेकिन उसको भी लास्ट माइल्स डिटेल्स वो नहीं देंगे की अगर वो पकड़ा गया तो सब खुल जाएगा।

एक और बात लग रही थी की उनके दो आपरेशन फेल हो चुके थे , इसलिए अबकी वो सारे या कम से कम तीन चार स्लीपर सेल्स खोलेंगे और सबको जिन्दा पकड़ना जरुरी है , इस सबूत के साथ की ' चाभी है पड़ोस में '

और सबसे ज्यादा झगड़े वाली बात थी , वो 'मिस्टीरियस शिप ' जिसमें सी एन जी लदा हुआ था और जिसकी दो बार जांच हो चुकी थी। मेरा और रीत का सिक्स्थ सेन्स कह रहा था की कुछ पेंच है , आज रात उसे भी पोर्ट पे पहुंचना था।

कल एक नया आइडिया आया था सुबह सुबह , रीत का ही था। और उसे मेरे हैकर दोस्तों ने दिन ने चेक किया और उस शहर में रा के एजेंट्स ने भी , और रहस्य और गहरा गया।

सेट लाइट से उस कम्युनिकेशन सेंटर से २० किलोमीटर तक के एरिया की जबरदस्त काम्बिंग हुयी।


और एक मकान ऐसा मिला जहाँ से कोई भी सिग्नल इमिट नहीं हो रहा था।


आज कल कोई घर ऐसा हो नहीं सकता , चाहे मोबाइल फ़ोन हो , टीवी का सिग्नल हो , इंटरेनट हो लेकिन वहाँ १२ घंटे तक सन्नाटा था। इसका मतलब कुछ गड़बड़ था।


जब रा के लोगों ने रेकी की तो पता चला की वो कम्युनिकेशन सेण्टर , जहाँ से बनारस और बड़ौदा से सेट फोन से बात होती थी , उससे मुश्किल से एक किलोमीटर के अंदर ही था।


मकान क्या , एक बड़ी सी कोठी थी। उसके चारो ओर खूब ऊँची दीवाले और फिर उन पे कंटीले तार। और कोठी के चारो और इतने दरख़्त थे की सेटलाइट से भी कुछ दिखना ना मुमकिन था। और इससे शक और गहरा हो रहा था। रा के एजेंट एक फेरीवाला बन के गया था। दिन भर उस घर के न कोई अंदर गया न बाहर आया।

उसने एक पल के लिए अपनी पीठ उस कोठी की दीवाल से टिकाई और २-३ मिनट के अंदर एक आदमी आ गया। इसका मतल्ब की सी सी टीवी के साथ मोशन सेंसर भी लगे हैं और उस घर के अंदर घुसना , मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

उसने घर के चारो और चक्कर लगाया , हर १० फिट के बाद सी सी टीवी। वो भी बहुत छुपा के। पीछे एक छोटा सा दरवाजा था , वो भी कैमोफ्लाज और उसके बाहर दो चार लोग गश्त लगा रहे थे।

लेकिन रात को उस में सेंध लग गयी।

जब मैं शीला भाभी में सेंध लगा रहा था और रीत के अगवाड़े , पिछवाड़े करन। उसी समय।

मेरे एक हैकर फ्रेंड वहाँ के म्युनिसिपल कार्पोरेशन के कंप्यूटर को हैक कर के उस मकान का प्लान और अासपास की सीवर लाइन का प्लान निकाल लिया था। सीवर लाइन उस कोठी के बगीचे के नीचे से निकलती थी और वहीँ पे उस मकान का सीवर आ के मिलता था।

मैंने रात में शीला भाभी के कमरे में जाने से पहले उन्हें सजेस्ट किया था की अगर वहाँ से कोई कम्युनिकेशन केबल निकलता होगा तो सीवर के रास्ते शायद हो।

और मेरा गेस सही निकला। उन्हें बोनस भी मिल गया।

रात को सीवर के जरिये रा के दो ऐजेंट घुसे। मेरे दो हैकर दोस्त उनके साथ आन लाइन थे। और एक दोस्त जोअमेरिका में एन आई ए ( नेशनल इंटेलिजेंस एजेन्सी , वो एजेंसी जो सिग्निट , सिग्नल इंटेलिजेंस का काम देखती है ) में काम करता था दो सेटलाइट के जरिये उस इलाके पे नजर रख रहा था।

मैंने एक सजेशन ये दिया था की वो अपने साथ केबल लोकेटर ले जाएँ।

और वो काम दे गया।

जैसे ही सीवर उस कोठी की दीवार के अंदर गया , केबल की लोकेशन पता चल गयी।


वो सीवर के ऊपरी हिस्से में दाखिल हुआ था। उस केबल को ट्रेस करते हुए जब वो मकान के एकदम नजदीक पहुँच गए तो एक और पतला तार दिखा। वो सी सी टीवी के कंट्रोल रूम का था। अब सारा काम हो गया।

वो केबल कम्युनिकेशन केबल था। मेरे दोस्त ने रा के ऐजेंट को बोला की पहले वो केबल के दो प्वाइंट के बीच में एक शंट केबल लगा दे , जिससे केबल की कंटीन्यूटी बनी रहे। उसने वही किया , फिर एक डिवाइस लगा के सेटलाइट फोन से जोड़ दिया। अब मेरे हैकर दोस्तका उस केबल से सीधे कनेक्शन होगया।

उसने पहले तो दो चार स्ट्रांग ट्रॉजन वेयर उस केबल के जरिये भेजे। और उस ने पता कर लिया।

वो केबल एक मेन फ्रेम कंप्यूटर से जुड़ा था।

और उन सबने चैन की सांस ली।

यह कंप्यूटर नेटवर्क लगभग अभेद्य था।  

कम्प्यूटर नेटवर्क में घुसने के दो ही रास्ते होते हैं , या तो इंटरनेट के जरिये या सीधे जो भी इनपुट डिवाइस हो , सीडी या कोई ड्राइव। जिसके जरिये पासवर्ड को तोड़ कर डाटा आर्किटेक्चर में कोई घुस सके।

इस कम्पुटर का न सिर्फ इंटरनेट से कोई सम्बद्ध नहीं था , बल्कि और और किसी भी नेटवर्क से वायरलेस टेक्नोलॉजी से सम्बद्ध नहीं था। यह एक बहुत ही स्ट्रांग इंट्रा नेट था जिसमें पेरिफेरल कंप्यूटर भी इंटरनेट से अलग थे।

और जिस तरह की सिक्योरटी थी , उसमें किसी के लिए बिना पता चले उस सेंटर के अंदर घुसना ही सम्भव नहीं था।


उसके अलावा कंप्यूटर एक्सेस करने के लिए कम्प्यूटर उस आदमी के दसो उँगलियों के निशान , आँख की पुतली और आवाज को चेक करता था। उसके अलावा अलग अलग लेवल के डाटा के लिए पासवर्ड थे , जो रोज बदले जाते थे।

उसकी फायरवाल भी जबरदस्त थी। लेकिन सिक्योरिटी डिजाइन करनेवालों ने ये सोचा नहीं था की कोई डेटा केबल के जरिये ही मेनफ्रेम में घुसने की कोशिश कर सकता है।

डेटा केबल के लिए भी सिक्योरटी थी कि अगर वो ४५ सेकेण्ड से ज्यादा के लिए ब्रेक होगा तो सिस्टम को अलर्ट भेजेगा। लेकिन मेरे हैकर फ्रेंड ने इसलिए एक पैरेलल शंट लगा दिया था , जिससे केबल की कंटीन्यूटी ब्रेक न हो।

और सबसे बड़ी बात ये थी के केबल सीधे सिस्टम के मेन सेंटर से जुड़ा था , मतलब की फायरवाल का इससे कोई मतलब नहीं था। फायरवाल सिर्फ डाटा इंट्री के इलाकों को कंट्रोल करता था आउटपुट को नहीं।

पेरीफेरल नेटवर्क को ये सिर्फ कमांड देता था , उन्हें एक्सेस कर सकता था , लेकिन वो पेरीफेरल कंप्यूटर इसे एक्सेस नहीं कर सकते थे। ये सिक्योरिटी के लिए किया गया था

और पांच मिनट के अंदर ये ट्रॉजन न केबल सिर्फ कंप्यूटर के अंदरूनी हिस्से में पहुँच गए बल्कि उन्होंने इंक्रिप्शन प्रोग्राम भी पढ़ लिया। और क्योंकि केबल के जरिये डाटा भेजना सिस्टम डिजाइन का पार्ट था इसलिए जब ट्रॉजन डाटा भेज रहे थे तो कोई अलर्ट नहीं जारी हो रहा था।


शंट में लगी डिवाइस के जरिये ट्रॉजन का डेटा और कम्प्यूटर का बाकी डेटा सीधे सेटलाइट फोन से मेरे हैकर दोस्तों के पास पहुँच रहा था।इस डेटा ब्रीच से मेरे दोस्त ने बोला था की तीन बहुत बड़े फायदे होंगे।

एक तो अभी इस आपरेशन के बारे में जो मौजूद डेटा है वो सब हमें मिल जाएगा

दूसरे हम कमांड और कंट्रोल सिस्टम को १२ घण्टे के लिए ब्लाक कर सकते हैं।

और तीसरे हमें एक परमानेंट सोर्स मिल गया उनके नेटवर्क में घुसाने का जिसके बारे में उन्हें पता नहीं चलेगा।
कमांड और कंट्रोल सिस्टम को ब्लाक करना बहुत जरुरी था।

२६/११ कि घटना में भारतीय कमांडो को इतना समय इसलिए भी लगा की , आतंकवादियों ने वी ओ आई पी ( वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल ) सिस्टम के जरिये वो लगातार अपने कंट्रोल रूम के संपर्क में थे। और कंट्रोल रूम , टीवी के जरिये और उनके जो अन्य सूत्र रहे हो , फोर्सेज के मूवमेंट का डिटेल बता रहे थे और गाइड भी कर रहे थे। सेन्ट्रल एजेंसी से कांटैक्ट एक मोटिवेटिंग फैक्टर भी होता है।


कल बड़ौदा में मेरे हैकर दोस्तों ने शाम चार बजे से आठ बजे तक टोटल सेटफोन का ब्रेकडाउन कर के रखा था और साथ ही वी ओ आई पी का भी।

इससे बड़ोदा में उनके गुर्गे के पकड़े जाने की खबर उन्हें टाइम पे नहीं मिल पायी और उन का स्लीपर जिन्दा पकड़ा गया।

रीत और मीनल की चालाकी से उस उन दोनों ने बेहोश भी कर दिया। और होश में आने के पहले सायनाइड कैप्स्यूल से भरा , दांत निकाल भी लिया। जिससे वो जिन्दा पकड़ा जा सके और सुर में गा सके।

आज मुम्बई में पूरी रात कम्युनकेशन ब्रेकडाउन करना जरुरी था और अगर समुद्र के रास्ते कोई हमला होना था तो उसके लिए कमांड ऐंड कंट्रोल सिस्टम को ही ब्लाक करना होगा।

और अब ट्रॉजन के जरिये उन्हें ये काम करना बहुत मुश्किल नहीं था।

रा के एजेंट , आधे घंटे में ही सीवर से बाहर निकल आये और उन्होंने दो ट्रांसड्यूसर , बाहर पोल्स पे फिर कर दिए , छुपा के। सीवर के अंदर की डिवाइस यहाँ तक इन्फोर्मेशन भेजती और ये सीधे सेटलाइट के जरिये , मेरे हैकर्स दोस्तों के पास। वो उसे प्रॉसेस कर फिर पास आन करते।

अब मैंने डिटेल रिपोर्ट पढना शुरू किया।

मुम्बई के बारे में कुछ डिटेल्स थे , लेकिन टारगेट के नाम नहीं थे , सिर्फ कुछ नंबर थे। उसे वो डिकोड नहीं कर पाये थे। मैं बहुत देर तक सर खुजाता रहा फिर मेरी चमकी।

उसे मैंने दूसरे कंप्यूटर पे मुम्बई के मैप पे प्लेस किया और समस्या हल हो गयी।

वो कोड में थे ही नहीं। वो लांगीट्यूड और लैटिट्यूड थे।

६ टारगेट थे लेकिन उसमे कुछ प्रायरटाइज भी किया था। वो शायद उन्होंने लोकल ऑपरेटिव्स के ऊपर छोड़ दिया था।

लेकिन समुद्र से हमले के बारे में कुछ नहीं मिला।

अब मैं आपरेटर के नाम तलाश रहा था , लेकिन वो कोड में थे और सिरफ इन्शियल दिए थे।

हाँ दो फोन के डिटेल मिले और दो वी ओ आई पी के।

मैंने अपने हैकर दोस्तों से फोन पे बात की। शाम के बारे में कुछ तय किया उनके पास कुछ और इन्फो थी और उसे वो प्रॉसेस कर रह थे।
वो डिवाइस लगाये करीब १० घंटे हो गए थे और रेगुलर डाटा आ रहा था।

मैंने उन्हें 'बॉम्बर' का जो स्केच मीनल ने बनाया था , और उसके बारे में जो भी डिटेल था वो भी मेल कर दिया।

शायद उसके बारे में कुछ और पता चल सके।

फिर मैंने एन पी की दी हुयी रिपोर्टें निकाली , मुम्बई का मैप जिसमें सस्पेंकेटेड साइट थी और सारा डाटा निकाल के एक साथ पढना शुरू किया , अब हालत कुछ समझ में आ रही थी।

मुझे मुम्बई ऐ टी एस चीफ से भी बात करनी थी। उनके कई एस म एस भी आ चुके थे और दो मेल भी।

मैंने पहले उन्हे बताने वाले प्वाइंट्स बनाये फिर उनका सबसे पुराना एस एम् एस खोला , और उसे पढ़ते ही सांप सूंघ गया।




दो मिनट मैं ऐसे ही बैठा रहा। कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ। लग रहा था सब कुछ ख़तम।

कल शाम का ही एस एम् एस था और मेरी गलती मैंने देखा नहीं था।

कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
 



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