Tuesday, June 11, 2013

हिंदी सेक्सी कहानियाँ पलक की चाची-5

  

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

पलक की चाची-5

प्रेषक : सन्दीप शर्मा
वो आकर मेरे बगल में बैठ गई और जब उसने मेरे हाथ देखे तो चीखते हुए आंटी से बोली- यह क्या है?
आंटी के बजाय मैंने ही जवाब दिया- कुछ नहीं रे, आंटी का प्यार है।
मेरी बात सुन कर उसने मेरे दोनों हाथों को टी शर्ट की बाहें ऊपर करके देखा, फिर मुझे खड़ा करके मेरी टीशर्ट ऊपर करके मेरी पीठ और पेट को देखा, मेरे पैरों को देखा और फिर जब मैंने उसे देखा तो पाया कि उसकी आँखें भरी हुई थी।
मैंने कहा- क्या हुआ पागल रो क्यों रही है चल खाना खा !
तो मुझसे बोली- आय एम् सॉरी यार मेरे कारण तुझे इतनी तकलीफ हुई।
मैंने उसे गले लगाते हुए कहा- अब चुपचाप खाना खा और कोई तकलीफ नहीं हुई है मुझे !
तो वो मेरे साथ खाना खाने बैठ तो गई पर उसके गले से तब भी कोई निवाला नहीं उतर रहा था, मैंने और आंटी दोनों ने ही बहुत बोला, आंटी ने उसे कई बार सॉरी बोला फिर भी उसका मूड ठीक नहीं हुआ फिर अचानक बोली- हाँ, यह ठीक रहेगा।
और फिर उसने ठीक से खाना खाना शुरू कर दिया। न मुझे समझ में आया की क्या ठीक रहेगा न ही आंटी को, पर हम दोनों यह समझ गये थे कि इस शैतान की नानी ने अपने दिमाग में कोई न कोई बात जरूर सोच ली है।
फिर खाने के बाद पलक बोली- मैं शाम को तेरे लिए पूरी बाजू वाली कमीज़ और बन्द गले की इनर ले आऊँगी, तब तक यू बोथ एन्जॉय ( तुम दोनों मजे करो )।
तो आंटी बोली- तू भी रुक जा, तीनों साथ में मजे करेंगे।
मैं जानता था कि पलक इस बात के लिए तो राजी होने वाली नहीं है किसी भी हालत में, पलक बोली- नहीं जब ये और मैं होंगे तो कोई और नहीं हो सकता, कोई भी नहीं, और मैं रुक भी जाती पर अब तो बिल्कुल नहीं !
जाते जाते पलक मुझसे कान में बोली- आज शनिवार ही है तुझे आज कहीं जाने की जरूरत नहीं है और कल जब मैं वापस आऊँ तो मुझे यही हालत आंटी की दिखनी चाहिए, नहीं तो तेरी खैर नहीं है।
मैं पलक की बात समझ गया था और यह भी समझ गया था कि वो शाम को वापस नहीं आने वाली है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
पलक के जाने के बाद आंटी ने दरवाजा बंद किया, मैंने आंटी को बाँहों में जकड़ लिया और उनकी गर्दन पर चूमना शुरू कर दिया।
आंटी बोली- थोड़ी देर पहले मुझे जाने दो की रट लगा रखी थी और अब मुझे ऐसे चूम रहे हो जैसे मैं तुम्हारा माल हूँ, शैतान हो बहुत तुम।
मैंने अपने शायराना अंदाज में उन्हें जवाब दिया-
. "हमें करते हो मजबूर शरारतों के लिए, खुद ही हमारी शरारतों को बुरा बताते हो !!
अगर इतना ही डरते हो तुम आग से, तो बताओ तुम आग क्यों भड़काते हो?
. मेरी बात सुन कर आंटी वाह वाह करने लगी, पलट कर मुझे भी बाँहों में भर लिया, मेरे होंठों को चूम लिया और मैं आंटी को लेकर हाल में पड़े हुए सोफे पर ही बैठ गया, आंटी को चूमने लगा और आंटी मुझे !
इसी बीच कब हम दोनों के कपड़े उतरे पता ही नहीं चला, कब आंटी मेरे ऊपर आई और कब कपड़े उतरने के बाद मैं आंटी के स्तनों को काटने और चूसने लगा, पता ही नहीं चला।
मैं आंटी के स्तनों को चूस रहा था और स्तनों के नीचे की तरफ थोड़े थोड़े निशान भी बना रहा था दांतों से, जिससे आंटी को बड़ा मजा आ रहा था, मेरे हर काटने पर ओह संदीप, आह्हह्ह ...नहीं, मत काटो ...जैसे शब्द आंटी के होंठों से निकल रहे थे पर उनकी ना में एक भी बार ना नहीं था।
मेरा साढ़े पांच इंच का लण्ड पूरी तरह से खड़ा हुआ था और आंटी मेरी जांघों पर कैंची बना कर बैठी हुई थी सोफे पर दोनों घुटने टिका कर उन्होंने मेरा लण्ड अपने एक हाथ से पकड़ा उसे अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत में पहुंच गया।
यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मेरे मुँह से भी एक आह निकल गई और आंटी उसी हालत में आकर उचक उचक कर चुदवाने लगी। हम दोनों ही अब तक पसीने पसीने हो चुके थे।
उनके मुँह से इस वक्त आह आह उह्ह्ह उह्हह्हह्हह्ह ... मजा आ गया जैसे शब्द निकल रहे थे और मैं एक हाथ से उनकी कमर पकड़ कर कभी उनके स्तनों को काट रहा था और कभी उनके होंठों को चूम रहा था।
हम दोनों इसी तरह वासना के आवेग में बहते जा रहे थे, तभी आंटी का झरना फूट पड़ा, आंटी का पूरा बदन अकड़ गया, उन्होंने मेरे सर को अपने गीले हो चुके स्तनों पर कस कर दबा लिया और झड़ती रही। मैं भी झड़ने की कगार पर ही था तो आंटी के झड़ते ही मैंने उन्हें नीचे बिछे कालीन पर लिटाया और उनके एक स्तन को मुँह में ले कर दूसरे स्तन को हाथ से मसलते हुए उन्हे जोर जोर से चोदने लगा।
आंटी जैसे मेरी हर बात समझ गई थी तो उन्होंने भी मेरा पूरा साथ दिया और मैं कुछ झटके मार कर उनकी चूत में ही झड़ने लगा और झड़ कर एक बार फिर उनके ऊपर ही लेट गया।
थोड़ी देर बाद मैं आंटी के ऊपर से उठा और बगल में लेट गया, आंटी भी लेटी रही। उसके बाद आंटी ने अपना गाऊन उठा कर पहले मेरे बदन का पसीना पौंछा और फिर खुद के बदन का, और मुझसे बोली- तुम थोड़ा आराम कर लो, मैं तब तक घर का काम कर लूं !
पर मैंने कहा- मुझे भूख लगी है, पहले खाना खा लूँ फिर सोने जाऊँगा।
मैंने अंडरवियर पहना और खाना खाने लगा। भूख आंटी को भी लग चुकी थी तो उन्होंने भी एक दूसरा गाऊन पहना और मेरे साथ खाना खाने लगी।
खाना खाने के बाद मैंने अपने कपड़े उठाये और कहा- मैं सोने जा रहा हूँ !
तो आंटी बोली- तुम मेरे कमरे में सो जाओ, वो कमरा साफ़ नहीं है।
मुझे क्या फर्क पड़ना था, मैं आंटी के कमरे में सोने के लिए चला गया, कपड़े पहने और बिस्तर पर लेट गया, लेटते ही मुझे नींद आ गई और जब नींद खुली तो शाम के साढ़े सात बज चुके थे, आंटी मेरे बगल में चिपक कर सोई हुई थी वो भी बिना कपड़ों के।
मैंने इस मौके का फायदा उठाने की सोची, मैं जाकर सुबह वाले कमरे से रस्सियाँ ले आया और आकर बड़ी ही सावधानी से आंटी को बाँध दिया।
उसके बाद मैंने अपने पसंदीदा रेस्तरां से खाने का ऑर्डर दिया और उसे कहा- रात को साढ़े नौ बजे तक खाना पहुँचा दे।
जब मैं वापस आया तब तक आंटी की नींद भी खुल चुकी थी और वो भी समझ चुकी थी कि उन्हें मैंने ही बाँधा था।
मुझे देख कर बोली- मुझे बांधने की कोई जरूरत नहीं है, जो चाहो कर लो, मैं तो तैयार हूँ तो खोल दो रस्सी।
मैंने कोई जवाब देने के बजाय अपनी टीशर्ट उतार दी और आंटी के बगल में आकर आंटी के स्तनों पर सीना रख दिया और दांतों से आंटी को बांये कंधे पर काट लिया।
आंटी बोली- अरे काटो मत ! निशान हो जायेगा।
और जवाब मैं मैंने फिर से उनके कंधे पर बगल में ही काट दिया।
आंटी ने कहा- अरे, क्या कर रहे हो??
और जवाब मैंने एक बार और काट कर दिया और इस बार आंटी का सुर बदल चुका था, इस बार आंटी ने बड़ी ही याचना के स्वर में कहा- प्लीज मत काटो ना संदीप ! निशान जायेंगे नहीं !
और मैंने थोड़ा ऊपर उठ कर आंटी को उतनी ही प्यार से जवाब दिया- अगर आपको निशान ना दिए तो मैं तकलीफ में आ जाऊँगा और अब आपको समझ में आया कि आपको बांधना क्यों जरूरी था।
मेरे जवाब को सुन कर आंटी ने विरोध करने का इरादा ही छोड़ दिया और एक ठंडी सी साँस छोड़ कर खुद को समर्पित कर दिया मानो वो इस दर्द भरे आनन्द को अनुभव करना चाहती थी, मैंने भी तय कर लिया था कि उन्हें निशान तो देता रहूँगा पर पूरा आनन्द भी दूंगा।
मैं फिर से आंटी के कंधे पर आया और उनके दांये कंधे को मेरे मुँह में भरा दांतों से निशान बनाया और उसे चूसते हुए मुँह को वहाँ से हटाया।
मेरे ऐसा करने से आंटी के मुँह से एक मीठी सी सिसकारी निकल गई, उनके पूरे बदन में हलचल मच गई।
उनकी वो सिसकारी पूरी होती उससे पहले ही मैंने उस निशान के बगल में ही एक निशान बनाते हुए उसी तरह से फिर चूस लिया और फिर सिसकारी और हलचल की एक लहर उठ गई।
मैंने आंटी के चेहरे की तरफ देखा उनके चेहरे पर असीम आनन्द दिख रहा था, उनकी दोनों आँखे बंद थी और वो जैसे अगले बाईट का इन्तजार ही कर रही थी।
मैंने इस बार उनके दांये गाल को मुँह में लिया और गाल को चूसने लगा और मेरे इस चूसने का आंटी भरपूर आनन्द ले रही थी।
फिर मैं नीचे खसका और मैंने आंटी के स्तनों को काटना और चूसना शुरू किया और इस पूरे कार्यक्रम के दौरान मेरा एक पैर या घुटना आंटी की चूत को रगड़ ही रहा था जिससे आंटी को मजा दुगुना मिल रहा था और उनके मुँह से लगातार सिसकारियाँ और आह्ह उह्ह जैसी आवाजें निकल रही थी। नीचे मैं आंटी की चूत को पैर से रगड़ रहा था और ऊपर उनके शरीर को कभी स्तनों पर कभी पेट कर कभी कांख पर और कभी कंधों पर काट रहा था।
इसी बीच मुझे लगा कि आंटी झड़ने वाली हैं, और जैसे ही मुझे इसका आभास हुआ मैं रुक गया।
आंटी मुझसे बोली- प्लीज, करता रह ना ! मत रुक !
पर मैं कहाँ उनकी बात मानने वाला था मैंने उन्हें अपने ही अंदाज में कहा-
. तब तुम्हारी तैयारी थी, अब ये हमारी तैयारी है
तब तुमने तड़पाया था, अब तड़पाने की हमारी बारी है !
. और इस बीच मैं बार बार रुक कर उनके स्तनों को चूम लेता था या उनके माथे और होंठों को जिससे उनका जोश बना रहता था।
मैं कुछ देर रुका और मैंने फिर से वही काम शुरू कर दिया और इस बार मैं उनके निचले भागों को चूम रहा था, चूस रहा था और काट रहा था। मैंने उनकी जांघों से शुरु किया और फिर नीचे की तरफ उनके घुटनों और तलवों तक भी चला गया।
उनके तलवे बहुत ही नाजुक थे उतने ही मुलायम जितने मेरे हाथ की हथेलियाँ या शायद ऐसा कहूँ कि मेरे हाथों की हथेलियाँ भी कड़क ही होंगी तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मैंने उनके पैरों पर निशान दिये और फिर से उनके ऊपरी भाग की तरफ बढ़ने लगा, बढ़ते हुए मैं उनके पेडू पर पहुँचा, मैंने वहाँ काटना और चूसना शुरू कर दिया और एक हाथ से आंटी की चूत को भी सहलाना शुरू कर दिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि आंटी फिर से चरमसीमा पर पहुँच गई और तड़पने लगी।
और जैसे ही आंटी इस स्थिति में पहुँची, मैंने उन्हें सहलाना, काटना और चूसना बंद कर दिया। इससे आंटी की तड़प और बढ़ गई और मैं वापस जब आंटी के माथे को चूमने लगा तो मैंने देखा उनकी आँखों से कुछ बूंदें गिर रही थी जी कुछ सेकंड पहले ही आई थी।
आंटी की यह हालत देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने एक हाथ आंटी की चूत पर रखा, दूसरा हाथ आंटी के सर के नीचे रखा और उनके होंठों को अपने होंठों में भर कर आंटी के होंठों को चूसते हुए उनकी चूत को रगड़ने लगा, आंटी भी मेरे चुम्बन का जवाब चुम्बन से ही दे रही थी।इस सबका नतीजा यह हुआ कि आंटी लगभग तुरंत ही झड़ गई और उनकी चूत के रस से मेरे हाथ की उंगलियाँ भीग गईं।
जब मैं आंटी के होंठों से अलग हुआ तो मैंने देखा कि उनके चहेरे पर एक अलग ही सुकून था।
कहानी अभी बाकी है !
तब तक आप अपनी राय मुझे भेजिए और अगले भाग का इन्तजार कीजिए।
indore.sandeep13@gmail.com







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हिंदी सेक्सी कहानियाँ पलक की चाची-4

  
हिंदी सेक्सी कहानियाँ

पलक की चाची-4

प्रेषक : सन्दीप शर्मा
आंटी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, कभी मेरे बाल सहलाती और कभी मेरी पीठ।
मैंने ऐसे ही कुछ 30-40 धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने लगा ! और जब मैं झड़ा तो मेरे मुंह से एक चीख ही निकल गई और एक बड़े झटके के बाद मैं 10-12 छोटे छोटे झटके मारता रहा और उसके बाद थक कर आंटी के ऊपर ही लेट गया।
जब मैं झड़ा तो उसके बाद ही आंटी भी अपने आप ही झड़ गई और फिर ना मेरी हिम्मत हुई तुरंत कुछ करने की ना ही आंटी की।
थोड़ी देर के बाद मैं आंटी के ऊपर से अलग हट कर बगल में लेट गया बिल्कुल निढाल सा होकर, और आंटी की भी हालत वही थी।
थोड़ी देर बाद आंटी को थोड़ी हिम्मत आई तो वो मेरे पास खिसक कर बोली- आय ऍम सॉरी संदीप ! मैंने ये सब तुम्हारे साथ किया, पर क्या करती, मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी।"
मैंने कहा- जो हो चुका है, वो तो हो चुका है उस पर पछतावा करने से कोई फायदा नहीं है, बस मैं अंकल के सामने शर्मिन्दा हो जाऊँगा अगर उन्हें पता चला तो ! क्यूँकि वो मुझ पर इतना भरोसा करते हैं और मैंने उनका भरोसा तोड़ दिया।"
आंटी ने कहा- पहली बात, भरोसा तुमने नहीं मैंने तोड़ा है, तुम तो क्या उस स्थिति में कोई भी होता वही करता जो तुमने किया है, बल्कि तुमने तो बहुत ज्यादा रोका खुद को और दूसरा यह कि हरीश को इस बात से कोई तकलीफ नहीं होगी। वो खुद भी करते हैं जब बाहर जाते हैं, मैंने आज तक शिकायत नहीं की उनसे, अगर मैंने एक बार कर ही लिया वो भी तुम्हारे साथ तो क्या हुआ?"
मैंने कहा- जो भी हो, प्लीज आप उनको मत पता चलने दीजियेगा।
आंटी ने कहा- ठीक है।
इस सारे उपक्रम में मुझे भूख लग आई थी तो मैंने कहा- कुछ खाने के लिये है भी या नहीं? या भूखे ही रखने का विचार है?
आंटी ने शरारत से कहा- सिर्फ खाने के लिए चाहिए, पीने के लिए नहीं?
मैंने कहा- नहीं, आपने कल रात में पिलाया था, अभी मेरी हालत कैसी है, दिख रहा है और पीने के लिए तो आप आओगी तो सब मिल ही जायेगा। तो आप बस खाने का इन्तजाम करो, भूख लग रही है।
आंटी ने कहा- खाना तैयार है, तुम नहा लो, फिर साथ में खाते हैं।
अब तक मेरा मन फिर से आंटी के साथ प्यार करने का होने लगा था तो मैंने कहा- अगर साथ में ही खाना और खाने के लिए सिर्फ नहाना ही है तो चलो, साथ में नहाते हैं।
और जब तक आंटी कुछ बोलती, मैं उन्हें उठा कर बाथरूम में लेकर चला गया और उन्हें एक हाथ से पकड़ कर शावर चालू कर दिया।
नहाते हुए मैं कभी उनके होठों को चूम रहा था तो कभी उनके गालों को और कभी उनकी गर्दन को काट रहा था। उसके बाद मैंने आंटी के बदन पर साबुन लगाया और आंटी ने मेरे बदन पर ! और फिर हम दोनों ही एक दूसरे के बदन का साबुन धोने लगे और साबुन धोते हुए मैं आंटी की चूत और स्तनों को मसल रहा था और आंटी मेरे लण्ड को मसल रही थी।
अद्भुत था वो मजा भी ! और ऐसे में ही आंटी मुझे लेकर वही बड़े से बाथरूम के फर्श पर लेट गई, वो नीचे और मैं उनके ऊपर था, ऊपर से फव्वारे की बौछारें आ रही थी और नीचे आंटी ने मेरा पूरा सख्त हो चुका लण्ड अपने हाथों में लेकर उनकी चूत पर रख लिया और मैंने एक झटके में मेरा पूरा लण्ड आंटी की चूत में अंदर तक घुसा दिया।
आंटी के मुह से एक हल्की सी सिसकारी निकली और मेरे अंतर में एक अलग आनंद ! और फिर मैंने धक्के लगाने शुरू किए पर उन धक्कों का मजा ना ही आंटी को आ रहा था ना मुझे क्योंकि नीचे सख्त फर्श था और मेरे हाथ पैर के घुटने काफी दर्द करने लगे थे।
थोड़ी ही देर में तो मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला और बाथरूम के बाहर ही बिछे हुए नर्म कालीन पर आ गया और वहीं पर ही आंटी की चूत के साथ कुश्ती शुरू कर दी।
नीचे चूत लण्ड से टकरा रही थी और ऊपर होंठ होठों से, मेरे हाथ आंटी के गीले बालों और सख्त हो चुके स्तनों के बीच घूम रहे थे।
हम दोनों ही वासना के ज्वार में ऊपर-नीचे हो रहे थे और मेरे हर धक्के का जवाब आंटी अपने धक्कों से ही देती थी।
यह धक्कम पेल चुदाई काफी देर तक चलती रही और फिर आंटी ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, मेरे होठों पर उनके होठों की पकड़ ढीली हो गई और अपने पैरों से नीचे से धक्का लगा कर उनकी चूत को बस उठा ही रहने दिया और एक झटके में ही वो झड़ गई।
अब आंटी पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी और मेरी भी हालत ज्यादा देर टिकने की नहीं थी तो मैंने भी धक्के लगाने शुरू कर दिये।
आंटी इतना पस्त होने के बाद भी मेरा पूरा साथ दे रही थी जो मुझे बहुत अच्छा लगा और फिर मुझे लगा कि मैं भी झड़ जाऊँगा तो मैंने आंटी से कहा- आंटी मैं भी झड़ने वाला हूँ।
मेरी बात सुन कर उन्होंने मेरी कमर पर अपनी टाँगें लपेट ली और मेरे हाथ अपने दोनों स्तनों पर रखते हुए बोली- अंदर ही झड़ जाना, एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने देना।
और आंटी की इतनी बात सुननी थी कि मैंने आंटी के दोनों स्तनों को दबाते हुए धक्के लगाना शुरू किए और कुछ ही धक्कों में मेरा सारा वीर्य आंटी की चूत के अंदर था।
झड़ने के बाद मैं एक बार फिर आंटी पर ही पसर गया, मेरे पसरने पर आंटी ने मुझे अपनी बाँहों में लपेट लिया और मेरी कमर को बंधे बंधे ही मेरे बालों को सहलाने लगी, साथ ही साथ मेरे कानों और कंधों को चूमने लगी जो बहुत अच्छा लग रहा था।
कुछ मिनट बाद मैं आंटी के ऊपर से उतर कर नीचे बगल में ही लेट गया तो आंटी बाथरूम में गई, उन्होंने अपनी चूत साफ़ की, हाथ धोए और तौलिए से हाथों और चूत को पौंछते हुए बोली- तुम नहा कर आ जाओ, मैं भी नहा कर खाना गर्म करती हूँ।
अलमारी से दूसरा तौलिया निकाल कर मुझे दिया और दरवाजे पर जा कर बोली- अलमारी में तुम्हारे एक जोड़ी कपड़े रखे हुए हैं तो कपड़ों की चिंता मत करना, वही पहन लेना।
आंटी की बात सुन कर मैं फिर से नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।
मैंने नहा कर जब बदन पौंछना शुरू किया तो मैंने ध्यान दिया किक मेरे शरीर पर हर जगह आंटी के लव बाइट्स के निशान थे, मैं सोच रहा था कि आखिर मैं इन निशानों को सब से छुपाऊँगा कैसे।
फिर मैंने तौलिया लपेटा अलमारी में से कपड़े निकालने गया तो देखा कि ये भी मेरे ही कपड़े थे जिसमें अंडरवियर और बनियान नई थी और लोअर और टीशर्ट मेरे ही थे।
मैं घनचक्कर बन गया कि यार, यह लड़की कितनी लम्बी प्लानिंग करके रखती है, जहाँ उस गधी को दिमाग लगाना होता है वहाँ इतनी दूर तक की बात सोच लेती है कि उसके आगे पीछे की सौ बातें भी सोच लेगी, नहीं तो अपना दिमाग छोटी छोटी बातों में भी नहीं लगायेगी।
मैंने कपड़े पहने और जब खाने के मेज पर आया तो आंटी नहा चुकी थी, और खाना भी चुकी थी, उन्होंने बालों को तौलिए से बंधा हुआ था और एक गाउन पहन रखा था।
तभी दरवाजे की घंटी बजी, मैंने सोचा- जाने कौन होगा।
तो मैंने कहा- आंटी, मैं अंदर जाता हूँ।
पर शायद आंटी को पहले ही पता था तो उन्होंने कहा- चिंता मत कर, कोई दिक्कत नहीं है।
सामान्य स्थिति में मुझे कोई दिक्कत नहीं होती पर उस दिन मेरे पूरे शरीर पर जगह जगह निशान बने हुए थे इसलिए मुझे थोड़ा डर लग रहा था।
पर दरवाजे पर पलक थी और आते ही पीछे से मेरे कंधों पर झूमते हुए बोली- क्यूँ गधे, मजा किया या नहीं?
मैंने उसके बाल पकड़ते हुए कहा- हाँ, खूब मजा किया इडियट, चल बैठ खाना खा ले।
वो आकर मेरे बगल में बैठ गई और जब उसने मेरे हाथ देखे तो चीखते हुए आंटी से बोली- यह क्या है?
आंटी के बजाय मैंने ही जवाब दिया- कुछ नहीं रे, आंटी का प्यार है।
मेरी बात सुन कर उसने मेरे दोनों हाथों को टी शर्ट की बाहें ऊपर करके देखा, फिर मुझे खड़ा करके मेरी टीशर्ट ऊपर करके मेरी पीठ और पेट को देखा, मेरे पैरों को देखा और फिर जब मैंने उसे देखा तो पाया कि उसकी आँखें भरी हुई थी।
कहानी अभी बाकी है पर वो अगले भाग में !
तब तक आप अपनी राय मुझे भेजिए और अगले भाग का इन्तजार करिये।
अपनी राय मुझे भेजे indore.sandeep13@gmail.com
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हिंदी सेक्सी कहानियाँ पलक की चाची-3

  


हिंदी सेक्सी कहानियाँ

पलक की चाची-3

प्रेषक : सन्दीप शर्मा
फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।
मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।
मेरी बात सुन कर आंटी ने मुझे कान पर काट हल्के से काटा और दांतों को बड़े प्यार से कान पर चलाने लगी मानो दांत पीस रही हो, एक अद्भुत ही अनुभूति थी वो, और फिर वो धीरे से मेरे ऊपर आ गई और फिर मेरे दूसरे कान को भी इसी तरह से चूम कर काटने लगी।
मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ,
उसके बाद उन्होंने मेरे बायें कान को छोड़ा और उसके थोड़ा नीचे एक बार काट कर दांतों से निशान बना दिया, मुझे मजा भी बहुत आया और दर्द भी हुआ पर मैं आह करने के अलावा कुछ और कर नहीं सकता था तब, उसके बाद आंटी ने मेरी ठोड़ी और कान के बीच एक बार हल्के से काट लिया और मैं बोल ही पड़ा- क्या कर रही हो यार तुम ?
तो जवाब मिला- तुझे जिंदगी भर ना भूल सकने वाली याद दे रही हूँ !
उसके बाद आंटी थोड़ा नीचे खिसकी और मुझे फिर कंधों पर काट कर निशान बना दिया फिर एक निशान, दूसरा निशान, तीसरा निशान इस तरह से उन्होंने एक एक कर के मेरे शरीर पर जाने कितने लव बाइट्स देना शुरू करे और रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं उन लव् बाइट्स से तड़प भी रहा था और मजा भी ले रहा था।
जब आंटी मुझे ये निशान दे रही थी तो खुद को, अपनी चूत को भी मेरे शरीर के जिस हिस्से पर हो सकता था वहाँ टिका कर रगड़ते भी जा रही थी। उन्होंने कुछ और निशान बनाए होंगे कि वो झड़ने लगी, झड़ने के बाद वो कुछ देर रुकी और फिर से उन्होंने मुझे काटना शुरू कर दिया।
पहले कंधा फिर दूसरा कंधा बाजू दूसरा बाजू सीना, पेट कांख कमर जांघे, पैरों की पिंडलियाँ तो अलग उन्होंने तलवों तक को नहीं छोड़ा। मेरे शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ उन्होंने काट कर निशान न बनाए हों।
बाद में उन निशानों की गिनती में कुल संख्या 197 निकली थी।
उस वक्त मेरी हालत ऐसी थी कि मजा तो बहुत मिल रहा था पर दर्द भी उतना ही होता जा रहा था।
और इस सब में आंटी को जाने कितना मजा आ रहा था कि वो दो बार झड़ भी गई।
जब वो मेरे पूरे शरीर पर निशान बना चुकी तो मुझे बोली- अब बता? तू भूल पायेगा इस दिन को?
और मेरा जवाब था- नहीं भूल पाऊँगा।
मैंने फिर आंटी से कहा- अब तो खोल दो !
तो आंटी बोली- अभी तो और बाकी है न ! वो भी हो जाने दे, फिर खोल दूँगी !
यह कह कर वो मेरे सामने आकर बैठ गई और उन्होंने मेरा लण्ड मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। उनके लण्ड चूसने का अंदाज भी निराला ही था पहले लण्ड को मुंह में लेती और फिर कुल्फी की तरह धीरे धीरे बाहर की तरफ चूस कर होंठ बाहर ले आती, और फिर हाथों से लण्ड को पकड़ कर सुपारे की चमड़ी फिर से पीछे खींच देती थी। उन्होंने थोड़ी देर ही ऐसे किया होगा, मुझे लगा मैं झड़ने वाला हूँ और जैसे ही उन्हें लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ आंटी ने चूसना बंद कर दिया।
मैंने कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गई?
तो बोली- अभी तुझे झड़ने थोड़े ही देना है।
और फिर आंटी ने लण्ड को छोड़ कर मेरे बालों को सहलाना शुरू कर दिया, उस वक्त मैं चाहता तो यह था कि आंटी को अभी पटक कर चोद दूँ और सारा वीर्य उनकी चूत में ही भर दूं। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, हाथ पैर दोनों बंधे हुए थे।
जब आंटी को लगा कि मैं फिर से सहन करने की हालत में आ गया हूँ तो उन्होंने अपनी पैंटी उतारी और अपनी चूत मेरे मुंह पर रख दी और मुझे फिर से चूसने लगी।
अब वो मुझे चूस रही थी और मैं उनको और जब भी उन्हें लगता कि मैं झड़ने की कगार पर हूँ, वो मुझे चूसना बंद कर देती और अपनी चूत को मेरे मुँह पर और जोर से रगड़ना शुरु कर देती थी।
हम दोनों ने इसी तरह एक दूसरे को थोड़ी देर चूसा था कि आंटी अपनी चूत का नमकीन सा रस मेरे मुंह पर छोड़ते एक बार और झड़ गई। जब आंटी झड़ चुकी तो उठ कर मेरे बगल में तकिये पर लेट गई और चादर उठा कर खुद भी ओढ़ ली और मुझे भी ढक लिया।
मुझे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि खुद तो जाने कितनी बार झड़ चुकी हैं और मुझे अभी भी बाँध कर पटक रखा है, मैंने कहा- आंटी उठो !
पर वो तो थक कर सो चुकी थी और मुझे नींद कहाँ आनी थी। पर मैं कुछ कर सकने की हालत में नहीं था तो मैंने आंटी को जगाने की कोशिश नहीं की और थोड़ी देर में मुझे भी नींद लग गई।
जब मेरी नींद खुली तो आंटी जग चुकी थी और मेरे बगल में ही लेटी हुई मेरे सीने पर हाथ फेर रही थी।
जब उन्होंने देखा कि मैं भी जाग गया हूँ तो उन्होंने मेरे होंठों को चूम लिया और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब चुम्बन से ही दिया।
उनके चुम्बन और सीने पर उनकी नाजुक उँगलियों ने फिर से मेरे सोये हुए लण्ड को खड़ा कर दिया और बचा हुआ काम आंटी ने अपने हाथ को नीचे ले जाकर कर दिया।
अब मेरा लण्ड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था तो आंटी ने तकिये के नीचे से कंडोम निकाल कर उसे मेरे लण्ड पर चढ़ाया और फिर मेरे होंठों को चूमने लगी और चूमते चूमते ही मेरे ऊपर आ गईं।
मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था पर मैं अभी भी यही मान कर चल रहा था कि यह खुद चरम सुख पायेगी और फिर से मुझे छोड़ कर चली जायेगी तो मैंने कुछ ज्यादा उम्मीद भी नहीं रखी, हालात से भी मैं समझौता कर चुका था। पर इस सबके बाद भी आंटी जैसे ही मुझे चूमती थी मेरा लण्ड सलामी देने लगता था।
आंटी ने मुझे चूमते हुए ही एक हाथ से मेरा लण्ड उनकी चूत पर रखा और एक झटके में अंदर डाल दिया और हम दोनों के ही होंठों से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी।
उसके बाद आंटी ने फिर से चुदाई शुरू कर दी वो मेरे ऊपर रह कर उनकी कभी उनकी चूत को रगड़ती और कभी अंदर-बाहर करती रही, बीच बीच में मुझे कभी होंठों पर तो कभी सीने पर चूम ले रही थी।
उन्होंने थोड़ी देर इस तरह से चुदाई की होगी और वो झड़ने लगी। और झड़ कर फिर से पहले की ही तरह चूत में लण्ड को रखे रखे मेरे ऊपर लेट गई।
मुझे लगा अभी यह फिर से चली जाएगी। लेकिन दो मिनट के बाद आंटी ने मेरे दाएँ हाथ की रस्सी खोल दी, और फिर से मेरे ऊपर ही लेट गई।
मैंने जल्दी से मेरे दायें हाथ से बाएं हाथ की रस्सी खोली और आंटी को लिए लिए मैं उठ कर बैठ गया और फिर मैंने अपने पैरों की रस्सी भी खोल दी।
अब मैं पूरी तरह से आजाद था, और आंटी की चूत में मेरा लण्ड घुसा हुआ ही था।
उसके बाद मैंने आंटी की ब्रा खोल कर उनके दोनों कबूतरों को आजाद करने की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया और आंटी को पीछे लेटाया और मैं उनके ऊपर आ गया।
आंटी ने मुझे उनकी बाहों में जकड़ रखा था तो मैं उनकी ब्रा नहीं उतार सकता था लेकिन इस हालत में मेरा मन आंटी की ब्रा उतारने के बजाय उनको चोदने का था तो मैंने आंटी को चोदने शुरु कर दिया और आंटी ने मुझे थोड़ी देर में ढीला छोड़ दिया और फिर मैंने उनकी ब्रा को उनके बदन से अलग करने में जरा भी देर नहीं की।
यह पहला मौका था जब मैं आंटी के स्तनों को बिना ब्रा के देख रहा था तो मैंने आंटी के स्तनों को चूमना शुरू कर दिया और नीचे से धक्के लगा ही रहा था।
मैं काफी देर से रुका हुआ था अपने अंदर एक सैलाब लेकर, मुझे लगा कि मैं अब झड़ जाऊँगा तो मैंने आंटी के एक स्तन को मुंह में लिया दूसरे को हाथ में पकड़ा और रफ़्तार तेज कर दी, तेज तेज धक्के मारने लगा।
आंटी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, कभी मेरे बाल सहलाती और कभी मेरी पीठ।
मैंने ऐसे ही कुछ 30-40 धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने लगा ! और जब मैं झड़ा तो मेरे मुंह से एक चीख ही निकल गई और एक बड़े झटके के बाद मैं 10-12 छोटे छोटे झटके मारता रहा और उसके बाद थक कर आंटी के ऊपर ही लेट गया।
आगे की कहानी अभी बाकी है पर वो अगले भाग में !
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हिंदी सेक्सी कहानियाँ पलक की चाची-2


 

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

पलक की चाची-2

प्रेषक : सन्दीप शर्मा

मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।

"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।

मैंने कहा- ऐसे मजाक अच्छे नहीं होते आंटी, खोलो मुझे जल्दी से !

तो मेरी बात सुन कर आंटी वहाँ से उठ कर चली गई जब वो वापस आई तो उनके हाथों एक बड़ा सा पानी का जग था।

मैंने कहा- अब मुझे बिस्तर पर ही नहलाने वाली हो क्या?

तो बोली- नहीं ब्रश करवाने वाली हूँ !

और वो वापस चली गई।

फिर वो वापस आई तो उनके एक हाथ में टूथपेस्ट लगा हुआ ब्रश था और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा प्लास्टिक का टब था।

आने के बाद उन्होंने मेरे पैरों के तरफ की रस्सी को थोड़ा ढीला करके मुझे बैठाया और कहा- मुँह खोलो !

और मेरा चेहरा एक हाथ से पकड़ कर मुझे अपने हाथ से ब्रश करवाने लगी, ब्रश करवाने के बाद टब में कुल्ला करवाया और सामान ले कर चली गई।

वापस आई तो हाथ में ट्रे में ब्रेड थी और साथ चाय भी !

अपने ही हाथों से मुझे उन्होंने मक्खन लगी ब्रेड खिलाई और चाय भी पिलाई पर मेरे लाख मिन्नत करने के बाद भी मेरा हाथ नहीं खोला।

मैंने कहा- मुझे बाथरूम जाना है !

तो बोली- थोड़ी देर रोक कर रख लो, कुछ नहीं होगा थोड़ी देर में खोल दूँगी।

मैंने कहा- अगर थोड़ी देर में छोड़ने वाली ही हो तो फिर बाँध कर क्यों रखा है तुमने?

आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया और मुझे नाश्ता करा कर सामान लिया और वापस चली गई।

वो थोड़ी देर बाद जब वापस आईं तो उनका पूरा रंग ढंग बदला हुआ था।

इस बार उन्होंने एक बढ़िया सी नाइटी पहन रखी थी जो काफी मादक लग रही थी, परफ्यूम की महक दूर से ही मुझे महसूस हो रही थी, मैं समझ चुका था कि जो आंटी ने कहा है वो मजाक में नहीं कहा उन्होंने, वो सच में इस बात के लिए मूड बना कर बैठी हुई थी कि आज मेरे साथ कुछ न कुछ करना ही है।

मैं इस सब को अभी तक भी स्वीकार नहीं कर पा रहा था क्योंकि चाहे मैं कितना भी बड़ा कमीना रहा हूँ पर आंटी को मैंने कभी इस नजर से देखा नहीं था।

आंटी जब कमर मटकाती हुई मेरे पास आई तो मैंने कहा- प्लीज आंटी, खोल दो और मुझे जाने दो ! अंकल मुझ पर बहुत भरोसा करते हैं, मैं उनके भरोसे को नहीं तोड़ सकता।

तो आंटी बोली- पर भरोसा तुम नहीं, मैं तोड़ रही हूँ ना !

और मुझे खोलने के बजाय मेरे पैरों को उन्होंने वापस से खींच कर कस दिया।

मैं तब चुप हो गया और आंटी पलंग पर चढ़ गईं। उनके पलंग पर आने के बाद मेरे हाथ पैर भी कांपने लगे थे, ऐसा अनुभव मुझे उसके पहले के 6 सालों में कभी नहीं हुआ था, एक अजीब सा डर लग रहा था, मैं छूटने की पूरी कोशिश कर रहा था और हर बार असफल हो रहा था।

"आंटी प्लीज मान जाओ और छोड़ दो मुझे !" मैंने फिर से प्रार्थना की तो आंटी मेरे ऊपर आकर मेरी कमर के थोड़ा नीचे दोनों तरफ पैर रख कर बैठ गई, अपने ऊपर के शरीर का वजन उनके दोनों हाथों पर रखा और मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर मुझ से बोली- बोलो, क्या बोल रहे हो?

अगर उनकी जगह कोई और होती तो मैं तो कभी का खुशी खुशी राजी हो जाता पर बात यहाँ आंटी की थी और मुझे आंटी से ज्यादा अंकल के विश्वास की चिंता थी जो मेरे लिए अंकल कम और दोस्त ज्यादा हैं, और दोस्ती में धोखेबाजी की आदत मुझे कभी भी नहीं रही।

लेकिन उस वक्त तक मेरी हालत खराब हो चुकी थी, एक मन कर रहा था कि कर लूं, क्या फर्क पड़ता है, और दूसरा मन अंकल की वजह से इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था कि मैं आंटी के साथ शारीरिक संबंध बनाऊँ।

और मेरी इस सोच से परे आंटी अभी भी मुझ पर ही छाई हुई थी, आंटी की गर्म सांसों को मैं तब मेरे चेहरे पर महसूस कर सकता था और उनका रेशमी नाइटी में लिपटा हुआ बदन मेरे शरीर को जगह जगह से छू रहा था।

फिर आंटी ने अपना पूरा वजन मुझ पर छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे सर को नीचे से पकड़ा दूसरा हाथ मेरे चेहरे पर रखा और मेरे होंठों पर उन्होंने अपने होंठ रख दिए, होंठ क्या थे अंगारे थे मानो ! और उन्होंने धीरे धीरे मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया, उनके होंठ चूमने का अंदाज बिल्कुल ही निराला था।

एक हाथ उन्होंने मेरे गाल पर रखा था और दूसरे हाथ से सर को सहारा दे रखा था और साथ ही इस तरह से पकड़ रखा था कि मैं चाह कर भी मेरे चेहरे को इधर उधर ना कर सकूं।

आंटी मेरे होंठों को पूरा अपने मुंह में लेती और फिर धीरे धीरे होंठ चूसते हुए बहार निकाल लेती, इसी तरह से वो काफी देर तक मुझे चूसती रही, और अपने शरीर का पूरा वजह मेरे शरीर पर डाल कर अपने स्तनों को मेरे सीने पर और चूत को मेरे सख्त हो चुके लण्ड पर रगड़ती रही।

मैं चाहे लाख ना कर रहा हूँ पर एक 35 साल की औरत जो गजब की सुंदर हो, शरीर सांचे में ढला हुआ, 34 इन्च के स्तन हों, कमर पर कोई चर्बी नहीं, चेहरे पर कोई दाग नहीं, काले खूबसूरत रेशमी बाल हों और कहीं कोई कमी नहीं और वो मेरे सीने पर अपने स्तन रगड़ रही हो, लण्ड पर चूत रगड़ रही हो और होंठों को होंठों से चूस रही हो तो भला मेरा

लण्ड खड़ा कैसे नहीं होता।

थोड़ी देर तक वो ऐसे ही होंठ चूसती रही, स्तन और चूत रगड़ती रही, फिर हट कर मेरे लण्ड पर हाथ लगाया और बोली- देखो, यह भी वही चाहता है जो मैं चाहती हूँ।

मैंने कहा- आंटी, आपके जैसी सुन्दर और सेक्सी औरत अगर इस तरह का काम करेगी तो किसी भी मर्द लण्ड तो खड़ा होगा ही ना ! पर मैं आपके साथ नहीं करना चाहता, मैं अभी भी आपसे कह रहा हूँ प्लीज मुझे खोल दो और जाने दो।

मेरी बात का उन पर उल्टा ही असर हो गया उन्होंने मेरे लोअर में हाथ डाल कर मेरे लण्ड को पकड़ लिया और बोली- हरीश से छोटा तो बिल्कुल नहीं है !

और फिर अपनी नर्म उंगलियों से मेरे लण्ड को रगड़ने लगी, मैं मचलने लगा और मेरा मन पूरी तरह से बहक चुका था पर मैंने सिर्फ कहा नहीं उन्हें।

उन्होंने कुछ सेकंड मसला होगा और फिर बोली- देख, तू भी यही चाहता है, पर अब मैं तुझ से पूछूंगी भी नहीं, अब सिर्फ मैं करूँगी और तू जब चाहे तब साथ देना शुरू कर देना।

मैंने आंटी को कोई जवाब नहीं दिया और आंटी ने मेरे होंठों को फिर से चूमना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे लण्ड को सहलाती रही, इस बार उनके चूमने में मैं भी उनका साथ दे रहा था।

इसके बाद आंटी ने मेरे लोअर को अंडरवियर समेत नीचे कर दिया और फिर उन्होंने मेरे ही तकिये के नीचे से हाथ डाल कर कंडोम का एक पैकेट निकाला उसे फाड़ कर मेरे खड़े लण्ड पर लगाया और मैं कुछ समझता उसके पहले ही खुद की नाइटी ऊपर करके चूत को मेरे लण्ड पर टिकाया और एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत के अंदर था।

उस झटके में हम दोनों के ही मुंह से एक आह निकल गई थी।

उसके बाद आंटी ने मुझसे कहा- अब भी तेरी ना ही है क्या?

मैंने कहा- नहीं !

मेरी नहीं का मतलब समर्पण ही था पर आंटी ने तब उसे मेरा इनकार समझा था।

उसके बाद आंटी अपने कूल्हों को जोर जोर से उछाल कर लण्ड अंदर-बाहर करके चुदवाने लगी और उन्होंने अपने होंठों को मेरे होंठों पर जमा दिया था। वो कभी मेरे होंठों को चूम रही थी, कभी मेरे गालों को और कभी मेरी गर्दन को चूम रही थी साथ ही उनके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे।

मैं आंटी के स्तन दबाना चाहता था, उनके बालों को पकड़ कर उनके होंठों को चूमना चाहता था, उनकी कमर को मेरी बाहों में लपेटना चाहता था पर मैं कुछ भी नहीं कर सकता था क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए थे।

आंटी अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रख कर खुद को चुदवा रही थी और मुझे चूमे जा रही थी कि अचानक आंटी ने मुझे चूमना बंद कर दिया और मेरे सीने पर दोनों हाथ रख कर मेरे लण्ड पर बैठ गई, उनके शरीर में ऐंठन होने लगी, उनकी आँखे बंद होने लगी और आंटी झड़ने लगी।

आंटी पूरी ताकत से झड़ी और झड़ कर मेरे ऊपर ही लेट गई, मैं तो अभी भी पूरा भरा हुआ था तो आंटी का हल्का फुल्का शरीर मुझे फूल जैसा ही लग रहा था पर मैं अब नीचे से झटके मार रहा था।

थोड़ी देर बाद जब आंटी सामान्य हुई तो मुझसे बोली- क्या हुआ विश्वामित्र जी? आपका तप तो टूट गया? यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने कहा- आंटी, तप तो कभी का टूट गया है अब तो बस इच्छा बची है अब तो खोल दो।

तो बोली- जब तप टूट गया था तो फिर नहीं क्यों कहा था।

मैंने कहा- वो नहीं तो समर्पण वाला नहीं था, उस नहीं का मतलब था कि अब मेरी कोई ना नहीं है, पर आप ही नहीं समझी थी। मुझे अब तो खोलो !

तो आंटी बोली- खोल दूँगी पर अभी तो मैंने शुरूआत की है, और वैसे भी तूने तो हाँ कर ही दी है तो अब मुझे मेरे सारे अरमान पूरे तो करने दे।

मैंने कहा- ऐसे क्या अरमान हैं जो मुझे बाँध कर ही पूरे कर सकती हो? और आप का तो हो गया, मुझे भी तो मेरा करने दो अब।

तो बोली- अभी थोड़ा इन्तजार तो कर, हो जायेगा तेरा भी, और जो अरमान हैं वो भी पता ही चल जायेंगे।

वो उठी, मेरे लण्ड से कंडोम निकाला और मुझे वैसे ही छोड़ कर चली गई वो करीब दस मिनट बाद वापस आई। इस बार जब वो वापस आई तो एक नए ही गाऊन में थी।

आंटी कमर मटकाते हुए फिर से मेरे पास आई और मेरी टी शर्ट और उतारने की कोशिश करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी क्योंकि मेरे हाथ जिस तरह से बंधे हुए थे उस हालात में टीशर्ट ऊपर तो हो सकती थी पर उतर नहीं सकती थी।

मैंने कहा- अब क्या करोगी? अब तो खोलना ही पड़ेगा ना !

तो आंटी ने कहा- खोलूंगी तो नहीं तुझे ! और इसका इन्तजाम मेरे पास है।

वो उठ कर पास में रखी अलमारी से कैंची उठा लाई और बिना कुछ कहे मेरी टी शर्ट के चीथड़े कर दिए।

चीथड़े करने के बाद बड़े ही गुरुर से बोली- अब बता? अभी भी खोलना पड़ेगा क्या कपड़े उतारने के लिए?

इतना कहते हुए उन्होंने मेरी उतरी हुई लोअर और अंडरवियर को भी टुकड़े टुकड़े कर के नीचे फैंक दिया।

अब मैं आंटी के सामने पूरी तरह से प्राक्रतिक अवस्था में पड़ा हुआ था, मजबूर बेबस और बंधा हुआ।

आंटी ने मुझे देखा, फिर मुस्कुराने लगी और मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था।

मैंने गुस्से में कहा- क्या कर दिया है यह आपने?

और मेरी बात का जवाब देने के बजाय उन्होंने अपना गाऊन उतार दिया। उन्होंने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी जो बहुत ही खूबसूरत और मादक लग रही थी। उनकी इस हरकत से मैं सारा गुस्सा भूल गया और मेरा लण्ड फिर से सलामी देने लगा जो दस मिनट के आराम से थोड़ा सा ढीला हो गया था।

गाऊन उतारने के बाद मेरी तरफ देख कर वो बोली- तुम कुछ कह रहे थे?

मैंने कहा- हाँ !!! नही !!

और मेरे सारे शब्द मेरे हलक में ही अटक कर रह गए।

फिर वो मेरे पास आ कर बगल में लेट गई, मेरे बाल सहलाने लगी और मेरे होंठ चूमने लगी, इस तरफ वो बाल सहला रही थी और दूसरी तरफ मेरा कड़क होते चला जा रहा था।

फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।

मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।

कहानी चलती रहेगी।

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हिंदी सेक्सी कहानियाँ पलक की चाची-1

  

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

 पलक की चाची-1

प्रेषक : सन्दीप शर्मा

आप सभी को नमस्कार आप सभी ने मेरी पहले भेजी हुई कहानियाँ पढ़ी और उन्हें पसंद किया इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

जैसा कि शीर्षक पढ़ कर ही आप समझ गए होंगे, यह कहानी पलक की मुँह बोली चाची, जिन्हें हम आंटी कहते थे, और मेरे बीच की है। यह घटना भी सरिता और मेरी कहानी के तुरंत बाद की ही है। कुछ लोगों को यह कहानी पढ़ कर लग सकता है कि ऐसा होना असम्भव है। तो आप इस बात को मानने के लिए स्वतंत्र हैं पर कृपया इस कहानी की सच्चाई के बारे में मुझ से कोई सवाल ना करें।

यह कहानी भी मैंने पलक वाली श्रृंखला में जोड़ कर ही लिखी है क्योंकि इस कहानी की शुरुआत भी पलक के कारण ही हुई थी।

पलक और मेरे बीच की कहानियों की श्रृंखला में एक हिस्सा और भी है जो अभी तक अनकहा है। उसे लिखूंगा या नहीं वो पता नहीं पर फिलहाल इस श्रृंखला के अंतिम पायदान पर खड़े होकर मैं आप को यह अनुभव सुनाने जा रहा हूँ जो मेरे जीवन के अब तक के सबसे हाहाकारी और प्रलयंकारी अनुभवों में से एक है।

अब मैं कहानी पर आता हूँ।

एक दिन मैं दफ्तर में था कि मेरे पास हरीश अंकल का फोन आया, वो मुझसे बोले- तू है कहाँ यार? इतने दिन से दिखा नहीं, यह बता कि घर कब आने वाला है?

मेरे पास उस समय बहुत काम था तो मैंने कहा- अभी तो जान निकली पड़ी है अंकल, आज और कल तो बिल्कुल फुर्सत नहीं है, पर आप कहिये न, क्या हुआ?

तो वो बोले- यार, मेरा लैपटॉप काम नहीं कर रहा है, आकर उसे देख ले, और इतने दिन हो गए हमने साथ में खाना नहीं खाया तो डिनर भी साथ में करेंगे।

मैंने कहा- ठीक है अंकल ! मैं शुक्रवार को आ जाऊँगा, खायेंगे भी, पियेंगे भी !

वो बोले- बहुत अच्छे !

और हमारी बात खत्म हो गई।

हरीश अंकल जिंदादिल इंसान हैं, हमेशा उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होती ही है, दुःख करना तो जैसे उनको आता ही नहीं था। उनके साथ रहो तो लगता है कि जिंदगी सच में पूरी तरह से जीने के लिए होती है और नंदिनी आंटी भी बिल्कुल वैसे ही खुशमिजाज और आज में जीने वाली महिला हैं।

शुक्रवार को मैं सारा काम जल्दी निपटा कर अंकल के घर जाने की तैयारी में था, तभी अंकल का फोन आया, बोले- सॉरी यार, आज मिलना नहीं हो सकता, मैं अभी न्यूयॉर्क के लिए निकल रहा हूँ, फिलहाल दिल्ली हवाई अड्डे पर हूँ।

मैंने पूछा- हुआ क्या है?

तो बोले- स्क्रैप के माल में एक लाट जले हुए लोहे का आ गया है, उसके चक्कर में जाना है, नहीं गया तो काफी नुकसान हो जायेगा।

अंकल का भंगार आयात करने का काम है।

मैंने कहा- ठीक है अंकल, आप जाओ, वो जरूरी है, कोई कागजात रह गए हों तो मुझे बता दीजियेगा, मैं आप को मेल कर दूँगा।

अंकल बोले- वो तो ठीक है लेकिन तू घर चले जाना यार ! नंदिनी तुम दोनों को बहुत मिस करती है, तुम दोनों चले जाते हो तो उसे भी अच्छा लगता है।

मैंने कहा- आप बेकिफ्र जाओ, अंकल मैं और पलक दोनों चले जायेंगे।

उनसे बात करने के बाद मैंने पलक को फोन किया और कहा- आज हरीश अंकल के यहाँ चलना है नंदिनी आंटी से मिलने ! अंकल घर पर नहीं हैं।

तो वो बोली- आना तुझे है गधे ! मैं तो यही पर हूँ।

मैंने कहा- ठीक है, मैं भी आता हूँ !

और मैं काम खत्म करके उनके यहाँ जाने के लिए निकल गया। रास्ते में मैंने एक पीला गुलाब भी खरीद लिया था जो आंटी को बहुत पसंद है।

मैं एक हफ्ते से घर गया ही नहीं था तो काम के चक्कर में तो घर पर बताना कोई जरूरी ही नहीं था कि आज देर से आऊँगा।

जब मैं उनके घर पहुँचा तो करीब आठ बज चुके थे, मैंने वहाँ जाकर आंटी को हमेशा की तरह "हे गोर्जियस ए रोज फॉर यू !(आप के लिए गुलाब) कहते हुए उनको पीला गुलाब दिया और उन्होंने हमेशा की तरह खुशी खुशी लिया।

फिर आंटी ने मुझ से कहा- तुम बैठो, मैं खाना लगाती हूँ, तीनों साथ में खा लेंगे !

तो पलक बीच में ही बोल पड़ी- अभी बैठो नहीं ! यह पहले तो जाकर नहायेगा और शेव भी करेगा, कैसा जानवर बना पड़ा है।

और सच भी यही था कि मैं पिछले 6 दिनों से घर नहीं गया था, ना ठीक से सोया था ना ही मैंने शेव की थी और ना ही खाना ठीक से खाया था, नहाने की बात तो दूर की है।

मैंने कहा- ठीक है मेरी माँ, पहले नहा ही लेता हूँ मैं।

और मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाने लगा तो पलक ने मुझे लोवर और टीशर्ट दिए और बोली- नहाने के बाद यही पहन लेना, हल्का लगेगा ! एक हफ्ते से एक ही जींस में घूम रहा है। जाने कैसे रह रहा होगा गधा !

और साथ में शेविंग किट भी दे दी। मैं अंकल के यहाँ कई बार रुका था तो वहाँ पर नहाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी और मैं नंदिनी आंटी और अंकल दोनों से ही खुला हुआ था तो यह मेरे लिए सामान्य ही था।

जब मैं नहा कर आया तो बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था और खाने की मेज देखी तो मन और खुश हो गया क्योंकि आंटी ने मेरे पसंद का ही खाना बनाया हुआ था।

खाना खाते हुए एक बार आंटी ने मुझ से पलक और मेरे रिश्ते के बारे में पूछ लिया कि हम दोनो के रिश्ते में कोई और बात भी है क्या अब?

तब तो मेरे गले में निवाला अटक ही गया था, सच मैं बोल नहीं सकता था और झूठ बोलना मुझे पसंद नहीं था तो मैंने बात को अनसुना ही कर दिया और आंटी ने भी दोबारा सवाल नहीं किया।

उसके बाद हम तीनों ही पीने के लिए बैठ गए। पलक और मैं तो पीते ही थे और आंटी भी हमारे साथ कभी कभी पी लेती थी। उस वक्त आंटी ने बताया कि उन्हें मेरे और पलक के बारे में सब पता है, पलक ने ही उन्हें बताया था।

मेरे पास बोलने को कुछ था नहीं तो मैं चुप ही रहा।

पीने के बाद एक तो मुझे थकान थी, दूसरा नींद पूरी नहीं हुई, खाना ज्यादा खा लिया ऊपर से थोड़ी ज्यादा भी पी ली तो मेरी हालत खराब हो चुकी थी, मैंने पलक से कहा- मुझे मेरे कमरे में छोड़ दे यार ! मैं घर जाऊँगा नहीं और गाड़ी चलाने जैसे हालात मेरे है नहीं !

तो आंटी बोली- आज तू यही सो जा ! सुबह चले जाना, पलक को भी घर जाना है उसके।

मैंने कहा- ठीक है !

और उसके बाद मुझे कब नींद लगी, कब सुबह हुई, पता भी नहीं चला। रात में अगर मैं उठा भी तो सिर्फ लघु शंका के लिए और फिर सो गया।

सुबह सुबह सात बजे के आस पास उठ कर सारी (लघु तथा दीर्घ) शंकाओं का समाधान करा और फिर से सो गया।

फिर मेरी नींद करीब 11 बजे खुली लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश की तो उठ नहीं पाया।

वजह थी मेरे हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, पलंग के दोनो किनारों की तरफ और मेरे पैरों का भी वही हाल था।

मुझे लगा कि यह पलक की ही शरारत है, वो घर पर भी ऐसे ही परेशान करती रहती थी मुझे हर बार नई शरारतों से तो मैंने पलक को आवाज देना शुरू कर दिया।

मेरी आवाज सुन कर पलक तो नहीं आई पर आंटी आ गई।

मैंने उनसे कहा- "कहाँ है वो गधी, आज उसे नहीं छोडूंगा।

तो आंटी बोली- वो अभी तक आई नहीं है।

मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।

"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।

कहानी अभी शुरु ही हो रही है।








































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हिंदी सेक्सी कहानियाँ] प्यासी मकान मालिक की बेटी --2

 

प्यासी मकान मालिक की बेटी --2

पिछ्ली कहानी का दुसरा भाग-----

फ़िर नेहा जब निचे जाने लगि तो मैने उसका हाथ पकड कर अप्ने रूम मे खींच लिया और नेहा से लिपट गया और उस्के दोनो बूब्स को पकड कर दबाने
लग गया। फ़िर नेहा ने कहा कि अभि मुझ्को छोडो मैन्न आज तुम्को फोने करुन्गी तो तुम आ जाना ।मैन आज अप्ने आफ़िस का सारा काम निपटा कर नेहा
के फ़ोन का इन्तजार करने लग गाया। फ़िर् कुछ देर क बाद नेहा का फ़ोन आया कि आज मैन घर मे अकेली हून तो तुम जल्द्दी से आ जाओ क्युन कि पापा
आज शादी मे जाने वाले है फ़िर मैने अप्ने बोस्स से छुटटी ली और घर नीकल आया।घर आते ही मैन सिधे नेहा से मिला तो नेहा ने कहा कि पहले तुम फ़्रेश
हो जओ तब तक मैन तुमरे कमरे मे आती हून फ़िर नेहा ने अप्ने घर क मेन गेट मे लाँक लगा कर अन्दर वाले गेट से मेरे कमरे मे आ गैई। मैन जिस
कमरे मे रेह्ता हू उस्मे एक और गेट था जो नेहा के घर क अन्दर हि खुल्ता था। फ़िर हुम दोनो ने कुच देर बात्चीत कि और हुम दोनो हि एक दुस्रे के करीब
आ कर बैठ गयेए। मैने धिरे से नेहा का हाथ पकड लिया और उस्को दबाने लगा तो नेहा कि कुछ कुछ होने लगा। नेहा उस दिन सारी पहेन कर मेरे पास
आई थी नेहा बहुत हि कम सारी पहेन्ती थी ,और मैने नेहा कि अप्नि बाहो मे भर क उस्के होठो पर अप्ने होठ रेख दिये और हुम दोनो कम से कम 10-15
मिनट तक एक दुस्रे को किस्स करते रहे इसि बिच मेरे हात नेहा क बूब्स और उस्के हिप्प्स पर चले गये। अब मैन नेहा क कान को किस्स करने लगा जिस
से नेहा बहुत हि गरम होने लग गई थी फ़िर मैने देर ना करते हुए उस्कि सारी निकल दी, नेहा मना कर रहि थि पर प्यार से लेकिन अब मैन कन्हाँ मानने
वाला था फ़िर जैसे हि मैने अपना हाथ नेहा क ब्लोउस मे डाला तो नेहा ने शरम के कारन अप्ने हाथ अप्ने चेहरे पर रख लिये। फ़िर मैने नेहा के दोनो बूब्स
को बारी बारी से अपने मुह मे ले कर उसका दुध पिने लगा तो नेहा कुछ कुछ गरम होने लगी थी और उस्ने भि मेरा साथ देना सुरु कर दिया फ़िर मैने नेहा के
कान को किस्स करने लगा क्युन कि यदि किसि लड्की को अप्ने वस मे करना हो तो उस्के कानो को किस्स जरुरु करना चाहिये जिस से नेहा तडप उठी
और मैने धिरे से नेहा क ब्लाउज भी निकाल दिया अब वो लाल रन्ग की ब्रा मे बहुत हि क्यामत कि लग रही थि ऐसा लगा कि अभि मेरा लन्ड पैन्ट को
फ़ाड के बाहर आ जायेगा।अब मैने देर ना कर्ते हुए नेहा से कहा कि अब वो ब मेरे कपडे निकाल दे,क्युन कि यदि सेकस का असली मज़ा लेना हो तो दोनो को
एक दुसरे का साथ जरुरु देना चहिये, क्युन की इस्स से दोनो क बिच पयार बढ्ता है अब मैने नेहा कि चुत पर जब अपना एक हाथ लगया तो नेहा कि मुह
से सीईईईई कि आवाज निकल गऐइ नेहा बहुत ही प्यसि लडकी थि और आज तक वो कभी किसि से चुदि भि न्हि थि नेहा क ये पहला सेकस अनुभव था
पर मैने तो पहले भि कइ लड्कियोन के साथ सेक्स कर चुका था पर ये बात नेह को नहि मालूम थि अब ,मैने नेहा क बदन पर से सारे कपडे निकाल के फ़ेक
दिये अब नेहा बिन कप्दो के मेरे समने थि नेहा के बूब्स बहुत हि मस्त लग रहे थे और उस्कि चुत से एक अजीब सि महेक आ रही थि जो मुझ्को एक दम
मधोश कर रहि थी अब हुम दोनो 69 कि पोसितिओन मे आ ग्ये मैन उस्कि चुत का रस्पान कर्ने लग ग्य और वो मेरा लुन्द का।जब मैन उस्कि चुत का रस्पान
कर रहा था वो इस बिच दो बार झड गै थी पर नेहा कओ अभि तक शन्ति न्हि मिलि थि और मेर लुन्द तो अभि भि शेष नाग कि तरह फ़न निकाल कर बैथ हुआ
था, हुम दोनो एक दुस्रे से एक दुम लिपत कर किस्स कर्ने लग गये किस्स कर्ते हुए मैन अप्न एएक हात से नेह कि चुत को भि सह्लाला रहआ था फ़िर नेहा को मैने
अप्न लुन्द चुस्न एको कह तो वो पहले ना नुकर करने के बाद वो मान गैइ, अब हम दोनो एक दुसरे का पानि निकाल्ने लग गये,अब हुम दोनोको बर्दस्त नहि हो
रहा था तो मैने एक क्रीम कि बोट्ल ले कर आया और उस्मे से खूब सारा क्रीम निकाल कर नेहा कि चुत पर लगा दिया तकी नेहा को कुछ कम्म दर्द हो और नेहा
मेरा लन्ड आसनी से अप्नेए अन्दर ले सके।फ़िर मैने अप्ने लन्ड का सुपाडा नेहा कि चुत पर लगाया और एक जोर का धक्का लगया तो नेहा ने इतनी जोर से
चिल्लाई कि जैसे किसि ने गर्म लोहेए कि सलाखे उस्के चुत मे डाल दि हो,अब मैन कुछ देर के लियेए रुक गया तकी नेहा को कुछ आरम मिल सकेए जब नेहा
का दर्द कुच कम हुम तो नेहा ने कहा कि अब सुरु करू तो मैने धिरे धिरे धक्के लगने लगा और उस्केए बूब्स्स को भि दबाते रहा इसी बिच नेहा दो - तीन बार
झर गैइ। कुच देर तक धक्क्के लगने क बाद मैने नेहा से कहा कि नेहा अब मैन भी छुट्ने वाला हु तो नेहा ने कहा कि मेरेए अन्दर हि छुट्ना, फ़िर मैने अप्ना
ढेर सारा माल नेहा कि चुत मे भर दिया और नेहा क उपर हि कुच देर तक पडा रहा,फ़िर कुछ देर क बाद हम दोनो ने एक्क साथ नहाया।

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हिंदी सेक्सी कहानियाँ] प्यासी मकान मालिक की बेटी --1


 

प्यासी मकान मालिक की बेटी --1
मेरा नाम किरन मल्होत्रा है और मै भोपाल के एक प्राईवेट कालेज से एम बी ए कर रहा हू ।
यह कहानी बिल्कुल सत्य घट्नाओ पर आधारित हैं और मैन इस कहानी को कुछ सन्क्षेप में लिख रहा हूँ। यह बात सन 2010 कि है, जब मैन भोपाल के
मन्दीदीप मे एक निजी कम्पनी मे काम करता था, मैने अरेरा कालोनी मे एक कमरा किराये पर ले रखा था। वहाँ मैं कंपनी मे इंजिनीयर था। और मैने
अपना कमरा दुसरी मंजिल पर ले रखा था। ताकी मुझको कोइ ड़िस्ट्र्ब ना कर सके। मेरे मकान मालिक कि बेटी 20 साल कि हैं, और उसका नाम नेहा हैं।
नेहा का फ़िगर 34-28-36 के लगभग हैं, और उसका कद 5'6'' हैं। उसका भरा हुआ बदन देख कर के मेरे लन्ड़ में आग सी लग जाती हैं। वो बिल्कुल
चिंकनी चमेली जैसी हैं। मकान मालीक का अपना खुद का बिजनेस् हैं, और वो अपने काम मे इतना बिजी रह्ता हैं कि अपने बिवी को भी समय नहि दे
पाता हैं, वो कुछ अधेड़ उम्र का लगता हैं जैसे की वो बिल्कुल ही झड़ गया हो। क्युकी मेरि नौकरी ही ऐसी थी की मुझको सवेरे सवेरे जाना पड़ता था और
शाम को ही आता था।इसलिए मैं उन लोगो से ज्यादा बातचीत नही हो पाती थी, कभी कभी बस हाय हेलो ही हो जाति थी। पर नेहा हमेशा मुझशे हमेशा
बातचीत करने के बहाने खोजती रहती थी, क्युकी मैं भी कुछ कम नही दिखता हूँ।मेरा कद 6 फ़िट हैं। और शरीर भी कफ़ी अच्छा हैं। जिस कारण वो मुझ
पर फ़िदा हो गई हैं। एक दिन मै घर पर जल्दी आ गया था, और शायद नेहा उस्स दिन कालेज नहि गेइ थी,तो नेह ने मुझको चाय पर बुलाया, नेहा कि
माँ कुछ दिनो के लिये अपनी माँ के घर गई हुई थी, उस दिन नेहा ने एक पतली सी नाईटी पहेन रखी थी,जिसके अन्दर नेहाने एक रेड कलर का ब्रा और
पेन्टी पहेन रेखी थी, जिसमे वो काफ़ी सेक्शी लग रहि थी, नेहा को इस कपडे मे देख कर मेरा लन्ड अपने आकार मे आने लगा था, और शायद नेहा ने
इस्स बात को भाफ़ लिया था,तो वो मुस्कराते हुए चाय बनाने चली गई, कुछ देर मे नेहा ने चाय के साथ कुछ नम्कीन भी लेते हुए आई। मेरी नज़र नेहा के
बूब्स से हट ही नही रही थीं। नेहा मेरी इस हर्कत को देख कर मन्द मन्द मुस्करा रही थी, फ़िर हम दोनो में बातचीत शुरु हो गई, नेहा ने पुछा कि आपने
अभि तक शादी क्युं नहि कि तो मैने कहा कि पहले मैन अपनी लाइफ़ मे कुछ बन जाऊ फ़िर शादि करुन्गा। फ़िल्हाल तो मैन अप्ने कैरियर पर धयन दे
रहा हूँ नेहा ने कहा कि ऐसे मे तो आपकी उमर हि निकल जयेगी तो फ़िर्र कोइ भी अच्छी लड्की नहि मिलेगी तो फ़िर्र मैने कह कि यदि मेरि लाईफ़ मे
कोइ भि अच्छी लड्की होगी तो वो मुझको जरुर मिलेगी । फ़िर्र नेहा बोली कि आपको अपने शरीर का भी खयाल तो आपको हि रखना है।यह सुन कर् मैन
खुश हो गया और बोला कि अपने शरीर की जरुरत का तो मैन खुद हि पुरी कर लेता हूँ नेहा कि बात सुन कर मैन एक दम से चोक गाया और सोचा कि
लगता है कि आज काम बन हि जयेगा। फ़िर नेहा ने पुछा कि आपकी कोइ गर्ल फ़्रेन्ड नही है क्या तो मैने कह कि इतना समय नही है की कोइ गर्ल फ़्रेन्ड
बनाया जाय्। फ़िर मैने पुछा की तुम्हारा कोइ बोय फ़्रेन्ड है कि नहि तो नेहा ने कह कि मैन भी बस आपकी तरह हि हून, मैन ये बोय फ़्रेन्ड बानाने पर
बिशवास नही करती हून फ़िर मैने थोडी सी हिम्मत कर के कहा कि क्यु न हम दोनो हि एक दुसरे का हि खयाल रखा करे तो नेहा राजी हो गई । मैने
कहा कि नेहा तुम बहुत हि सुन्दर हो और मैन बस तुम्हारी हि वजह से इस घर मे रह रहा हूँ। इत्ने दिनो से मैन अप्ने दिल कि बात ब्स अप्ने दिल मे
हि रेख कर हि घुम रहा था कि कभि न कभि तो मैन अप्ने दिल्ल कि बात तुम्से जरुरु कहुन्गा। नेहा मेरि इस बात को सुन कर खुश हो गई और कहा कि
अब पापा क आने का समय हो गया है तुम अब जाओ हुम कल बात करते है। मैने अपनी चाय खतम की और नेहा को थैन्क्स बोल कर अपने रूम मै आ
गया। अगली सुबह पान्च बजे हि नेहा ने मेरे दरवाजे कि घन्टी बजाई और मैने दरwअजा खोला तो देख कि नेहा खडी है । वो मुझ्को देख कर हस्ने लगी
और गुड माँनिर्ग बोल कर छत पर चली गई मुझ्को कुछ समझ मे न्ही आया कि वो हसने क्यु लगी थी, फ़िर मैने देखा तो मेरा लन्ड तम्बू तने हुए खडा
था।


शेष भाग अगले कहानी में--

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Monday, June 3, 2013

raj sharma stories वासना की खुमारी



raj sharma stories

वासना की खुमारी

प्रेषक : अरशद

हेलो दोस्तो ! मैं अरशद, एक बार फिर से आपका हिंदी सेक्सी कहानियाँ में स्वागत करता हूँ। सभी पढ़ने वालों को नमस्कार ! आप सभी का धन्यवाद कि आपने मेरी कहानी "मेरा पहला अनुभव" को काफी सराहा।

बात करीब तीन से चार महीने पहले की है। मेरे घर के बगल वाले घर में एक महिला कल्याण का कार्यालय खुला है। उसमें 3 परिवार रहते हैं, 2 परिवार नीचे और एक ऊपर। बात यूँ हुई कि उस दिन दोपहर को मेरी गर्लफ्रेंड का फ़ोन आया और मैं छत पर टहल कर बात करने लगा।

बातों-बातों में उसने मुझसे पूछा- क्या कर रहे हो?

तो मैंने कहा- नहाने जा रहा हूँ।

वासना की खुमारी में वो मुझसे सेक्सी बातें करने लगी, तब उसका फ़ोन कट गया और मैं जोश में यह सोच कर नीचे आया कि मूठ मारूँगा और फिर नहाऊँगा। मगर जब मैंने कपड़े उतारे तो देखा कि मेरी झांटें काफी बड़ी हो गई हैं तो मैंने सोचा कि पहले इसे बना लूं फिर मूठ मारूँगा।

मैं जैसे ही रेज़र उठाने के लिए नीचे झुका तो मेरी निगाह बाहर की तरफ गई। क्योंकि घर में कोई था नहीं, तो मैंने बाथरूम का दरवाज़ा नहीं बंद किया था। मैंने देखा कि ऊपर वाले माले पहने वाली एक औरत मुझे झाँक रही थी। देखने में थोड़ी साँवली थी, मगर फिगर मस्त थी, बड़ी गांड, मस्त चूची फिगर 30-34-32 तो मेरे बदन में अजब सी गुदगुदी दौड़ गई।

फिर मैं पूरा नंगा हुआ और धीरे धीरे अपनी झांटें बनाने लगा और बीच बीच में झांक भी लेता था।

वो औरत मुझे चुपके चुपके देख रही थी। फिर मैंने देखा कि वो अपनी चूची एक हाथ से दबाने लगी, कुछ देर बाद वो अपनी चूत सहलाने लगी और फिर चली गई।

मैंने भी अपना काम ख़त्म किया और नहा कर बाहर आ गया।

फिर अगले दिन मैं अपने एक दोस्त से बात करते हुए छत पर गया तो देखा वो बैठी थी और फिर जब भी वो देखती तो अजीब कातिल अदा से मुस्कुराती।

फिर दो दिन बाद मैं फिर से छत पर गया तो वो किसी रिश्तेदार से बातें कर रही थी और फिर फ़ोन पर बोली कि लोग बिना कपड़ों के ज्यादा अच्छे लगते हैं।

और जब मैंने उसे देखा तो हँसने लगी।

करीब 3-4 दिन बाद मेरे घर में फिर कोई नहीं था तो मैं ऐसे ही छत पर गया, देखा कि वो बैठी है तो नीचे आ कर नहाने के लिए जाने लगा।

इतने में बाथरूम की खिड़की से देखता हूँ कि वो मेरी तरफ मुँह करके बैठ गई है।

मैंने आराम से कपड़े उतारे, काफी देर तक मूठ मारी, इतनी देर में उसकी पलक एक बार भी नहीं झपकी। थोड़ी देर बाद जब मैं मोबाइल पर बात करता हुआ छत पर गया तो वो मुस्कुराती हुई बोली- ऐसे करते रहेंगे तो हाथ में दर्द हो जाएगा, कभी हमारे होंठों को भी आइसक्रीम खिलाइए !

और मुस्कुराते हुए अन्दर चली गई।

फिर अगले दिन मैं जब ऊपर गया तो मैंने उससे पूछा- आप कल क्या कह रही थीं?

तो उसने कहा- रात में घर पर आइये, सब समझा दूँगी।

मेरे तो मन में लड्डू फूटने लगे, लेकिन मैंने ऊपर से कहा- रात में आपके पति नहीं रहेंगे क्या?

उसने कहा- नहीं, वो गाँव गए हैं, दो दिन बाद आयेंगे।

फिर मैं करीब सात बजे छत पर गया। हमारी छत मिली हुई है बस बीच में एक दीवार है, मैं उसे कूद गया। सामने जन्नत की हूर सी खड़ी थी वो !

उसने मुझे वो जगह दिखाई जहाँ से उसे मेरा सब कुछ दिखता था जैसे कि मुझे पता ही नहीं था, लेकिन कुछ राजों को राज ही रहने देते हैं।

अगला सवाल जैसे ही उसने पूछा, मुझे लग गया कि आज तो आग दोनों तरफ लगी है प्यारे।

उसने सीधे पूछा- कितने दिनों पर साफ़ होता है आपका जंगल? दूर से तो बस यही लगता है कि झाड़ियों के बीच कोई छोटी सी टहनी है, जरा हमें नजदीक से तो दिखाइए आपके पास क्या है, नारियल का पेड़, या केले का तना, या दोनों।

मैंने कहा- देख लो लेकिन हमें भी तो अपने अंगूरों के दर्शन कराओ।

उसने ऊपर वाले मन से कहा- कोई आ जायेगा !

तो मैंने कहा- खुले दरवाजे से आएगा न, दरवाजा बंद करके आ जाओ।

जब दरवाजा बंद कर के लौटी तो बोली- यहाँ तो सोनू (उसका लड़का) सो रहा है कहीं हमारी कुश्ती से उठ न जाये।

मैंने कहा- ठीक है आओ छत पर चलते हैं, वहाँ बैटिंग करने में कोई असुविधा नहीं होगी।

हम ऊपर गए और फिर कुछ देर खड़े रहे, दोनों यही सोच रहे थे कि पहल कौन करेगा, लेकिन, भला नारी के सामने कौन पुरुष जीता है? उसने सीधा पूछा- अगर खड़े होने के लिए आये हैं तो आइये नीचे चलते हैं, हाँ अगर चादर बिछाने का काम शुरू करना है तो अब तक खड़े क्यों हैं?

मैं तो दंग रह गया, लेकिन अब तो खुला खेल फरक्काबादी।

मैंने उसके मोम्मों को धीरे धीरे मसलते हुए, उसके मक्खन जैसे होठों का रस पीना शुरू किया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी और उसके मोम्मे धीरे धीरे सख्त होकर जैसे मेरी छाती में छेद करने लगे। नीचे मेरा पप्पू भी ऊपर उड़ने को तैयार हो रहा था, उसे जैसे ही लगा कि ये लोहा अब तैयार होना चाहिए, लोअर के ऊपर से उसने मेरे लंड से खेलना चालू किया।

मैं धीरे धीरे उसके होठों को किस करने लगा और फिर उसकी गर्दन पर भी चुम्मों की बौछार कर दी, साथ के साथ उसकी पीठ सहलाने लगा।

फिर मैंने उसकी नाईटी उतारने को कहा तो उसने उतार दी और सिर्फ पैंटी में आ गई। मैंने फिर उसकी पैंटी के ऊपर से ही सहलाना शुरू किया और वो पागल हुई जा रही थी और मेरा लंड सहलाये जा रही थी।

उसकी पैंटी गीली होने लगी तो मैं जहाँ पैंटी की एलास्टिक होती है उसे नीचे करके सहलाने लगा उसे मज़ा भी आ रहा था और गुदगुदी भी हो रही थी। फिर मैं उसे सहलाता रहा और अपना हाथ धीरे धीरे पैंटी में ले जाने लगा।

उसने झांटे एकदम साफ़ कर रखी थीं।

मैं उसकी चूत सहलाने लगा, तो वो सिहर गई, मैंने उससे कहा- सब मैं ही करूँगा या तुम भी कुछ?

तो उसने मुझे किस किया, मेरे होंठ चूसने लगी और फिर उसने अपना हाथ मेरे लोअर में डाल दिया और बोली- हे भगवान् ! इतना मोटा?!? मेरा क्या होगा?

मैंने कहा- कुछ नहीं होगा, बस मज़ा आएगा !

फिर उसने मेरा लोअर उतार दिया और आगे पीछे करके खेलने लगी मेरे लंड से, मुझसे बोली- क्या मैं इसे किस कर सकती हूँ?

मैंने कहा- तुम्हारा है, जो करना है करो !

पहले उसने किस किया, 2-3 बार फिर मेरा टोपा अपने मुँह में ले लिया और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।

मैं अपने पैर के अंगूठे से उसकी चूत सहला रहा था और हाथ से चूची।

फिर वो तेज़ तेज़ से मेरा लंड चूसने लगी। फिर मैंने उसकी नाइटी बिछाई और उसे लिटा दिया, फिर उसकी पैंटी उतार कर उसकी पूरी काया पर चुम्बन करने और चाटने लगा।

वो उत्तेजना से पागल हुई जा रही थी। फिर मैंने उसकी चूत पर चूमा तो वो सिहर उठी।

फिर मैं उसकी चूत चाटने लगा और एक हाथ से उसकी चूची दबा रहा था। हम 69 की पोज़ीशन में आ गए। करीब पाँच मिनट बाद वो झड़ने लगी और थोड़ी देर में मैं भी उसके मुँह में झर गया।

वो मेरे लंड के साथ फिर से खेलने लगी और करीब दस मिनट बाद मेरा सोया साँप फिर से खड़ा हुआ। इस बार मैं लंड को उसकी टाँगों पर रगड़ने लगा। वो एक हाथ से मेरे लंड को सहला रही थी और और मैं उसकी चूची को और हम एक दूसरे को लिप किस कर रहे थे। वो बार बार मेरा लंड अपनी चूत में घुसाने के लिए खींच रही थी।

फिर बोली- अब और कितना इंतज़ार करवाओगे?

मैं उठा और उससे पैर फैलाने को कहा।

फिर मैंने उसकी चूत पर लंड रख कर एक झटका मारा तो उसकी चीख निकल गई। मैंने जल्दी से लंड बाहर निकला तो वो बोली- नहीं ! डालो, मगर आराम से !

मैं धीरे धीरे डालने लगा और पूरा लंड आहिस्ता आहिस्ता उसकी चूत में उतार दिया। वो सी सी करने लगी फिर मैं धक्के लगाने लगा। कभी मैं उसकी चूची सहलाता तो कभी उसका पेट। वो भी पूरे जोश में मेरा साथ दे रही थी और एक हाथ से मेरे गोटे से खेल रही थी।

फिर करीब 15 मिनट बाद वो झड़ गई और मैं भी जल्दी झड़ गया। वो मेरे साथ करीब आधे घंटे तक ऐसे ही लेटी रही और मेरे लंड से खेलती रही।

तब से जब भी वो अकेली होती है तो हमारा प्रोग्राम शुरू हो जाता है।

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raj sharma stories समीरा के कारनामे-2

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समीरा के कारनामे-2

लेखक - रोहित दिल्ली वाले

कैसे हो दोस्तो ! मैं हाज़िर हूँ अपनी कहानी 'समीरा के कारनामे-1 का अगला हिस्सा लेकर !

उस दिन दीदी को उस दर्ज़ी से चुदते देख कर मैं यह तो समझ ही गया था कि मेरी यह सीधी और बहुत शरीफ बनने वाली बहन अंदर से बहुत बड़ी छीनाल है।

घर आने के बाद मैंने कई बार मुठ मारी लेकिन मेरा लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था, मैं बहुत बेचैन हो गया था, मेरे आने के करीब 2 घंटे बाद दीदी वापिस आई ! यह देख मुझे लगा कि लगता है दीदी कई बार चुदी है आज !

दीदी की शक्ल पर आज अलग ही खुशी छलक रही थी।

खैर तीन दिनों बाद दीदी अपने घर चली गई और क्यूंकि मेरे पास कोई इंपॉर्टेंट काम नहीं था तो मैं कुछ और दिन के लिए गाँव में रुकने का फ़ैसला किया। और तभी मैंने कुछ सोचा और अपनी दीदी के घर (शहर में) जाने का फ़ैसला किया..

अब तक मैं यह तो समझ गया था कि मेरी दीदी यहाँ 5 दिन बिना चुदे नहीं रह पाई तो अपनी ससुराल में भी कई लंड पटा रखे होंगे।

तो मैं चल दिया अपनी रंडी बहन के राज खोलने..

अपने लंड पकड़ लो दोस्तो इस बार जो सुनने वाला हूँ उससे आपकी चूत से नदियाँ बहेंगी और लंड फट पड़ेंगे..

अगली सुबह 11 बजे मैं दीदी के घर पहुँच गया। दीदी मुझसे देखते ही कुछ चौंकी और अचानक मेरे आने के बारे में पूछा तो मैंने बोला कि शादी में आपसे मिल ही नहीं पाया अच्छे से तो सोचा कुछ समय आपके घर पर बिता कर वापिस घर जाऊँ।

दीदी के चेहरा थोड़ा सा उतरा मेरी बात सुनकर, लेकिन वो खुशी जाहिर कर रही थी ऊपर से।

अरे मैं तो यह बताना ही भूल गया कि जब मैं घर में घुसा तो दीदी को देखकर मेरा पप्पू पैंट के अंदर ही कूदने लगा.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी मेरी दीदी !

दीदी गुलाबी रंग की साड़ी में थी, पेट के काफ़ी नीचे बाँधी हुई थी साड़ी ! ओह ! हल्का भूरा...एकदम पतला सा पेट, मुलायम, उस पर दीदी का कसा हुआ ब्लाऊज, बहुत सेक्सी लग रहा था..

जब दीदी ने मेरे लिए पानी लाकर रखा तो क्या साइड का नज़ारा देखा..

मेरा अपना ही लंड अपनी बहन के कामुक शरीर को भोगने की चाहत पालने लगा था।

उसका चाय रखना, घर में इधर उधर चलना, पूरी काम की देवी लग रही थी !

आज दीदी बहुत ज़्यादा सजी संवरी लग रही थी। मुझे कुछ हैरानी तो हुई कि क्या दीदी हर दिन इतनी चिकनी चमेली बनी रहती हैं?

या आज कुछ स्पेशल होने वाला है !

मेरे मन में लड्डू फूटने लगे.. ऐसा लगा कि आते ही लॉटरी लग गई।

अब थोड़ा घर के बारे में बता दूँ.. दीदी एक शहर में किराए की मकान में रहती थी, 2 कमरों का घर था। जीजाजी दूर एक फ़ैक्टरी में सुपरवाइज़र थे, तो सुबह 7 बजे निकलना और रात में देर 10 बजे तक आते थे। यह मुझे वहाँ रहने के बाद पता चला।

मैं अब आराम करने के लिए बगल वाले कमरे में चला गया और यही सोचता रहा कि मेरी बहन आज इतना सजी संवरी क्यूँ है.. कहीं आज कुछ होने वाला है क्या ! अजीब अजीब ख्याल आ रहे थे..

और ख्यालों में मेरी बहन एक बड़े शरीर वाले आदमी के नीचे मचल मचल कर चुद रही थी.. और चुदते वक़्त उसके चेहरे के भाव ! ओह ! कितने कामुक भाव दिखा रही थी.. मैं तो ये सब सोच कर ही झड़ने को हो रहा था..

तभी घर की घंटी बजी.. और मेरे दिल का घंटा बजा.. कौन आया होगा.. कहीं दीदी का कोई यार तो नहीं?

क्या करूँ? कमरे से बाहर निकलूँ या नहीं... फिर सोचा.. अब मैं घर में हूँ तो दीदी वैसे भी कुछ करने वाली तो है नहीं, तो बाहर निकल कर ही देख लूँ कि कौन आया है।

जैसे ही मैंने अपने कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर देखा कि एक बड़ा ही खूबसूरत रईस दिखने वाला आदमी खड़ा है.. उमर होगी तकरीबन 30 साल के आस-पास.. गले में सोने की चैन, हाथ में कार की चाभी.. देखते ही लगा मानो बड़ा पैसे वाला है..

मैंने सोचा इतना पैसा वाला आदमी दीदी के घर में क्या कर रहा है !

मुझे देखते ही दीदी बोली- नमस्कार भाई साहब, आप अचानक? कैसे आना हुआ? ओह, किराया लेने आए होंगे महीने पर.. अरे भाई साहब ! यह मेरे छोटा भाई है विकी ! मुझसे मिलने आया है.. और कुछ दिन यहीं रहेगा,

दीदी ने इतना सब एक साँस में बोल दिया..

मुझे क्या निप्पल चूसता बच्चा समझा था जो मैं यह ना समझ पाया कि दीदी उस आदमी को क्यों बता रही थी कि मैं कौन हूँ और कब तक रहूँगा..

मुझे अब पूरा यकीन हो चला था कि ज़रूर यहाँ भी कुछ चल रहा है..

तभी दीदी बोली- अरे विकी, नमस्ते करो भाई साहब को !

मैंने नमस्ते की और उस आदमी को शक भरी नज़र से देखने लगा.. वो मुझसे नज़र नहीं मिला रहा था..

तभी दीदी फिर से बोली- अरे विकी, ये हमारे मकान मलिक हैं.. बहुत अच्छे आदमी हैं.. तुम्हारे जीजा तो पूरे दिन नौकरी पर रहते हैं.. तो ज़रूर काम होता है तो इनको फोन कर देती हूँ ! आज भी ये शायद किराया लेने आए हैं.. है ना भाईसाहब..?

वो आदमी तुरंत दीदी की हाँ में हाँ मिला रहा था...

खैर मैं अभी इस खेल का मज़ा ले रहा था...

दीदी फिर बोली- भाई साहब आज तो पैसे है नहीं, शाम को ये आएँगे तो किराया माँग कर कल आपके घर देने आ जाऊँगी..

जैसे ही मैंने यह सुना, मेरा तो दिमाग़ खराब हो गया.. यह क्या? कल दीदी इसके घर जाएगी.. पक्का चुदेगी और मुझे देखने को भी नहीं मिलेगा.. इससे अच्छा तो यही होगा कि इसी घर में चुदे, शायद कोई उम्मीद बन जाए देखने की..

मैं तपाक से बोला- अरे दीदी, आप जाओगी तो घर पर मैं अकेले बोर हो जाऊँगा.. मैं भी चलूँगा साथ !

दीदी और उस आदमी की शक्ल देखने लायक थी.. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे बात सुनते ही दोनों की छाती पर साँप रेंगने लग गये..

तभी भाई साहब बोले- आप दोनों क्यूँ परेशान होते हो.. किराया ही तो है.. कभी भी ले लूँगा आकर मैं ! क्यूँ समीरा..!

दीदी बोली- हाँ भाई साहब.. आपका ही घर है. कभी भी आ जाओ !

मुझे थोड़ी राहत की साँस आई.. चलो एक काम तो हुआ.. अब आगे का काम बाकी था

मैंने रात भर पूरे घर का जायज़ा लिया लेकिन मुझे ऐसे कोई जगह नहीं मिली जहाँ से मैं उन दोनों को देख सकूँ। यह सब मैंने कहानियों में पढ़ा था.. दरवाज़ों में छेद होता है.. खिड़की बंद नहीं होती ! लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं था..

मैं निराश हुआ लेकिन तभी एक आइडिया आया.. मैंने अपना आई-पॉड निकाला.. और उसको दीदी के कमरे में फिट करने का प्लान बनाया.. रात भर मैं उसकी टेस्टिंग करता रहा.. और यह पता लगा की यह लगातार 90 मिनट तक रेकॉर्डिंग कर सकता है.. फिर बैटरी भी ख़त्म और मेमरी भी !

अगली सुबह जब मैं उठा तो दीदी रसोई में काम कर रही थी नाइटी पहन कर.. कसम बनाने वाले की.. दिल कर रहा था कि वहीं रसोई में नाइटी उठाकर दीदी को चोद दूँ।

खैर मैंने अपनी योजना पर कम करना शुरू किया..

मैं बोला- दीदी, इसी शहर में मेरा एक दोस्त पढ़ता है.. कल मैं उससे मिलने जाऊँगा.. 2 घंटे में आ जाऊँगा.. यही रहता है 10 किलोमीटर दूर..

दीदी ने बोला- ठीक है लेकिन ध्यान से आना-जाना !

मैं बोला- ठीक है दीदी ! और आपको अगर जाना हो तो आप भी किराया दे आना उनके घर जाकर !

दीदी ने अचानक से मेरी तरफ घूर कर देखा... मैंने बड़ा मासूम सा चेहरा बनाया...

फिर वो भी बोली- वो भाई साहब खुद आ जाएँगे लेने जब लेना होगा उन्हें किराया !

मैंने मन में बोला- मेरी बहना, मैंने तो तेरे दिमाग़ में अपना प्लान डाल दिया.. अब तू खुद बुलाएगी अपने यार को कल चुदने के लिए...

अगली सुबह हुई और ठीक उस दिन की तरह दीदी आज बड़ी सज रही थी, मैंने पूछा तो बोली- पड़ोस में जाना है, कुछ काम है..

खैर जैसे ही मौका मिला मैंने आई-पोड चालू किया और तुरंत दीदी को बोल कर घर से निकल गया..

और घर से दूर मैं रोड के पास एक चाय वाले की दुकान पर बैठ गया.. 5-10 मिनट बीत गए, वो कार नहीं दिखी आती हुई... मुझे अब अपना प्लान डूबता नज़र आ रहा था.. तभी वही कार वहा से निकली.. मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा..

अब किसी तरह मैंने 3 घंटे बाहर बिताए.. फिर घर चला गया.. घंटी बजाई तो दीदी ने दरवाजा खोला..

वो इस वक़्त नाइटी में थी.. मैंने दीदी से मज़े लेते हुए पूछा- अरे दीदी, सुबह साड़ी में थी.. अब नाइटी..? आप दिन में तो नाइटी नहीं पहनती?

दीदी का चहरा सफेद पड़ गया 2 सेकेंड के लिए.. और मैं मन ही मन खुश हो रहा था..

खैर मुझे अब वो वीडियो देखनी थी.. मैंने दीदी के कमरे से वो आइपोड उठाया और अपने कमरे में आकर देखने लगा..

आगे का किस्सा दीदी और मकान मलिक के बीच का..

वीडियो जब शुरु हुई तो उस वक़्त कमरे में कोई नहीं था.. करीब 15 मिनट बाद घंटी की आवाज़ हुई.. और फिर दीदी और उस आदमी की बातें सुनाई देने लगी।

दीदी- आ गये आप भाई साहब ! आइए, अंदर आइए ना.. आईई, ये कर कर रहे हो ! आहह ! कुछ तो शरम करो ! दरवाजा अभी खुला हुआ है.. ओइइ माआआआ ! दर्द होता है..

ये आवाज़ें सुनते ही मेरे लंड फड़फड़ाने लगा और ख्यालों में दीदी को उस जानवर के हाथों मसलते देख रहा था..

तभी उस मकान मालिक की आवाज़ आई..

इतने दिन से तड़पा रखा है तूने डार्लिंग.. अब आई औययईई कर रही है...

दीदी- अम्म ! अर्रे, ममम !!!

ऐसा लगा कि दीदी कुछ बोलना चाह रही थी लेकिन उसने दीदी को बोलने नहीं दिया और दीदी के गद्देदार लाल लिपस्टिक वाले होंठ चूस रहा होगा..

दीदी के गूँ गूँ करने की आवाज़ आ रही थी और चूड़ियाँ भी बहुत जोरो से खनक रही थी.. और यहाँ मैं यह सुन कर मदहोश होता जा रहा था..

दीदी- आहह ! बहुत बदमाश हो गये आप भाई साहब... थोड़ा तो इंतज़ार करो ! चेंज तो करने दो...

मकान मालिक- आज तो ये कपड़े फट कर ही अलग होंगे जानेमन...

दीदी- अरे पागल हो गये हो क्या तुम.. उफफ्फ़ साड़ी छोड़ो मेरी.. नाईए... औहह..

दोनों के हंसने की आवाज़ आती.. और तभी दीदी भागती हुई कमरे में आती दिखी..

कसम बनाने वाले की.. बस पेटीकोट ब्लाउज में थी मेरी बहन.. खुले हुए बाल.. होंठों के आसपास लिपस्टिक फैली हुई नज़र आ रही थी.. और तभी पीछे से मकान मलिक भी भागता हुआ अंदर आया.. और अंदर आते ही दीदी को दबोच लिया और दीदी को दीवार के सहारे लगा कर मसलने लगा..

दीदी बहुत कामुक आवाज़ें निकाल रही थी.. आआअहह ! भागी नहीं जा रही मैं.. आराम से करो मेरी जान.. उफफ्फ़... म्‍म्म्मम..

दीदी अपने होंठ अपने दातों से काट रही थी.. और उसके सिर पर हाथ फिरा रही थी..

तभी उसने दीदी को बेड पर झुका दिया और पीछे से दीदी की नंगी पीठ को चाटने लगा.. और अचानक से दीदी के ब्लाउज को ज़ोर से खींचा.. ब्लाउज के हुक टूट गए ! यूँ उसने दीदी की ब्रा भी उतार कर उन्हें नंगा कर दिया..

कुछ ज़्यादा ही गर्म आदमी था वो..

दीदी की कराहने की आवाज़ मेरा लंड झड़ने के लिए काफ़ी थी...

अहह ! और मैं एक बार पैंट में ही झड़ गया..

इधर उसने दीदी का पेटिकोट ऊपर करके अपने मुँह को दीदी की गाण्ड में घुसा दिया था और पीछे से उनकी गाण्ड का छेद और चूत चाट रहा था... और मेरी बहन एक गरम कुतिया की तरह रंभा रही थी.. आ आआ आआआ आअहह... ऑश माआ आआआअ

अपने होंठ दांतों से काट रही थी.. तभी दीदी का शरीर अकड़ा और फिर वो ढीली पड़ गई.. और खुद ही बेड पर लेट गई..

उस आदमी ने खड़े होकर अपने कपड़े उतार दिए.. 6-7 इंच का लंड लगा उसका ! ज़्यादा मोटा भी नहीं.. लेकिन एकदम डण्डे की तरह खड़ा था... वो दीदी की टाँगों के बीच आया और अपना लंड दीदी की चूत पर लगा कर अंदर घुसा दिया।

दोनों के मुँह से कामुक कराह निकली- आआहह !

उसके बाद उसने जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया, थोड़ी देर में दीदी फिर से गरम होकर चीखने लगी- अहह ! आय माआ आ.. ज़ोर से और ज़ोर से... ओह... बहुत अच्छा लग रहा है... अम्‍म्म्म..

कुछ देर तक ज़ोरदार चुदाई करने के बाद वो आदमी जोर से गुर्राया- आआहह... झड़ रहा हूँ...

और दीदी की कोख में अपना सारा बीज डाल दिया।

कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने बाद दीदी उसे फिर से चूमने लगी और बड़ी इठला कर बोली- देखो ना.. तुमने मेरा यह ब्लाउज भी फाड़ दिया.. अब मैं नई साड़ी कहाँ से लूँगी..

आदमी बोला- क्यूँ परेशान होती हो मेरी जान.. कैसी साड़ी चाहिए, बोलो.. चलो तुम्हें दो साड़ियाँ लाकर दूँगा..

इतना सुनते ही मेरी दीदी खुश हो जाती है और एक हाथ से उसका लंड सहलाने लगती है.. उसकी आँखें बंद होने लगती हैं..

दीदी फिर बड़े कामुक अंदाज में इठला कर बोली- आप मुझे प्यार नहीं करते, बस जब ठरक होती है तो चोदने आ जाते हो...

वो बोला- नहीं मेरी जान, तुम मेरी जान हो, ऐसा मत सोचो..

और वो दीदी को होंठों को चूमने के लिए आगे हुआ.. दीदी ने मुँह फेर लिया..

दीदी- अगर प्यार करते तो यह 500 रुपये की साड़ी देकर रंडी की तरह मुझे ना चोदते.. प्यार तो अनमोल होता है और तुमने मुझे आज तक कुछ नहीं दिया.. कैसा प्यार करते हो..

वो- क्या चाहिए तुम्हें? बोलो..

दीदी- कुछ नहीं चाहिए !

और दीदी मुँह लटका कर उदास बैठ गई..

वो पास आकर दीदी नंगी चूचियाँ दबाते हुए बोला- बोलो ना जानू ! क्या दिक्कत है.. मैं हूँ ना.. बताओगी नहीं तो कैसे करूँगा मैं कुछ..

दीदी- कुछ नहीं.. बस इनकी सैलरी ही इतनी कम है कि ! मेरे सजने संवरने का सामान तक नहीं खरीद पाती..

और दीदी झूठ मूठ का रोने लगी..

यह देखते ही उस आदमी ने अपने पर्स में से एक एटीएम कार्ड निकाल कर दीदी को दे दिया और बोला- लो, आज से यह एटीएम तुम्हारा ! जो सामान खरीदना हो, खरीद लेना.. लेकिन मेरी जान ! अपने आशिक के सामने रोकर उसे दुखी ना करना !

एटीएम देखते ही दीदी की आँखें चमक गई.. और वो दोनों फिर एक जोरदार चुदाई में लग गये..



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