Monday, February 25, 2013

सेक्सी कहानियाँ शालू की गुदाई-4

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

शालू की गुदाई-4

लेखक : लीलाधर

मुझे दरार के नीचे गुदा की गुलाबी कली की लुका छिपी बार-बार आकर्षित कर
रही थी। योनि से निकलते रसों से भीगकर वह भी चमक रही थी। मुझे सुबह वहाँ
पर हेयर रिमूवर लगाते वक्त का ख्याल याद आया, ''आज इसका भी बेड़ा पार
होगा क्या?'' मैं जानता था अंग्रेज लोग पृष्ठभाग के बड़े प्रेमी होते
हैं। मैं इसका प्रेमी नहीं पर शालू पर इसकी आजमाइश का इच्छुक जरूर था।

योनि से लिंग के आलाप के क्रम में गुदा भी भिंच–खुल रही थी। मैंने उसकी
ओर रॉबर्ट का ध्यान खींचा। रॉबर्ट ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया।

अब और सम्हालना मेरे लिए मुश्किल था। इतनी देर से पैंट को ताने-ताने वह
दर्द करने लगा था। उसे मुक्ति दिए बिना आगे जारी रख सकना मुश्किल था। जब
एक अपिरचित मेरे सामने शालू के साथ कर ही रहा था तो मेरे लिए क्या रुकावट
थी। मैंने चेन खींचकर लिंग को आजाद किया, कैमरे को ऑटो रिकॉर्डिंग मोड
में डालकर घूमकर कुर्सी के सिरहाने चला आया था। जिस कोण पर कुर्सी झुकी
हुई थी उससे शालू का सिर ठीक मेरे लिंग के बराबर में आ गया। मैंने लिंग
को थोड़ा ऊपर नीचे सहलाया और उसके होंठों की ओर बढ़ा दिया। शालू की आनन्द
में डूबी नजर एक बार मुझ पर पड़ी और उसने जीभ निकालकर उस पर फिरा दी। फिर
उसे मुँह के अंदर खींचकर तीव्रता से चूसने लगी।

मैं आनंदातिरेक में डूब गया। पाँव कमजोर पड़ने लगे। मैं आगे-पीछे करने
लगा। रॉबर्ट के धक्कों के साथ शालू का मुँह स्वयं मेरे लिंग पर सरक रहा
था। पहले से ही संचित उत्तेजना इतनी थी कि मैं ज्यादा ठहर नहीं पाया।
मेरे गले से गुर्राहट निकली और लिंग उसके मुँह में जोर से तन गया। शालू
ने मेरा पतन जानकर चेहरा घुमाना चाहा लेकिन मैंने उसका सिर पकड़ लिया।
उसे वीर्य का स्वाद अच्छा नहीं लगता था पर उसने मेरा विरोध नहीं किया और
मुँह में छूटते रस को गटक गई। मुझे खुद पर हीनता का एहसास हुआ।

एक तरफ मैं उसके साथ जबर्दस्ती कर रहा था दूसरी तरफ वह मुझ पर प्यार
दिखाती हुई मुझे पी गई थी। मुझे उसकी उस अपमानित, परपुरूष के आनंद में
डूबी अवस्था में भी उसके प्रति कृतज्ञता महसूस हुई। मैंने तौलिये से उसके
मुँह से बाहर गिरे वीर्य को होंठों, गालों, गले पर से पौंछा और प्यार से
उसके मुँह पर एक चुंबन देकर कैमरे के पास चला आया। जिस समय उसे चुंबन
दिया उस समय भी उसके होंठ रॉबर्ट के धक्कों से ऊपर-नीचे हो रहे थे।

रॉबर्ट धक्के लगाते हुए अंगूठे से गुदा की छेद सहला रहा था। वहाँ पर उसकी
उंगली महसूस करके शालू चौंकी पर आनन्द की लहरों के सामने उस पर ध्यान
नहीं दे पाई। वह सिसकारियाँ भर रही थी।

रॉबर्ट ने अंगूठे को उसके रसों में अच्छी तरह भिंगोया और अचानक छिद्र के
अंदर घुसा दिया। यही नहीं, शालू उस घुसपैठ को महसूस कर सके इसके लिए ठहर
भी गया।

आनंद की लहरें हठात रूक गईं और पुराने भय ने सिर उठा लिया। 'अब यह क्या
करेगा?' वह उसे देखती रही।

"अब मैं तुम्हें वो मजा देने जा रहा हूँ कि एक हफ्ते तक बैठ नहीं पाओगी।"

रॉबर्ट ने उसके पाँव बंधे पांवदानों को और फैला दिया, होंठ और खुल गए।
रॉबर्ट ने उसके चूतड़ों को खींचकर फैलाकर जायजा लिया। शालू को आभास हो
गया था कि उसके साथ क्या होने वाला है।वह चुपचाप छत की ओर देखती रही। जिस
तरह जकड़कर बंधी हुई थी उसमें चुपचाप होने देने का इंतजार करने के सिवा
कुछ कर भी नहीं सकती थी।

रॉबर्ट ने उसके चूतड़ों को यथासंभव फैलाकर अपने लिंग का माथा उसकी गुदा
पर लगा दिया, हल्के से ठेला, इसमें जाना आसान नहीं था। यद्यपि योनि का रस
रिस-रिसकर गुदाद्वार को अत्यंत चिकना बना चुका था पर वह बेहद तंग थी और
डर से सिकुड़ भी गई थी। शालू साँस रोके सह रही थी, पहले की तरह देख भी
नहीं पा रही थी कि वहाँ पर कैसे क्या हो रहा है। उसे सिर्फ रॉबर्ट का
पेड़ू नजर आ रहा था।

रॉबर्ट ने उसे चेताया- Loosen up, otherwise there will be much pain
(ढीला छोड़ो, नहीं तो बहुत दर्द होगा।)

उसने फिर उसकी योनि में लिंग घुसाकर कुछ धक्के दिए ताकि आनन्दित होकर वह
ढीली पड़ सके और लिंग फिर से उसके रस में अच्छी तरह भीग जाए।

जैसे ही शालू की पहली आनन्दित 'आह' निकली उसने लिंग निकालकर फिर से गुदा
पर लगा दिया। शालू की चिल्लाहटों के बावजूद उसने इस बार दया नहीं दिखाई।
कुर्सी के हत्थों को पकड़कर उस पर झुका और जोर लगा लगाकर किसी तरह लिंग
की थूथन को अंदर दाखिल करा ही दिया। मगर इतनी देर के मैथुन और अभी के
संघर्ष और गुदा के आत्यंदतिक कसाव के कारण ठहर नहीं सका और हांफता हुआ
उतने ही अंदर में झड़ने लगा।

शालू भी हाँफ रही थी। उसकी गुदा के अंदर मोटा लिंग माथा घुसाए हिचकोले खा
रहा था। मुझे आश्यर्च हुआ कैसी लग रही होंगी शालू को वे हिचकोले ! रॉबर्ट
पूरा स्खलित होकर भी अंदर रुका रहा और अंदर के कसाव का आनंद लेता रहा। जब
उसका लिंग ढीला पड़ गया तभी निकाला। तब भी वह उसे खींचकर ही निकाल पाया।

शालू निढाल पड़ी हुई थी और दर्द और कुंठा में कराह रही थी। उसे अब तक
चरमसुख नहीं मिला था। हर बार जब वह उसके करीब पहुंची थी, उससे छीन लिया
गया था। उसकी योनि अभी भी आकांक्षा में गीली और फैली हुई थी। मैंने उस पर
कैमरे को जूम किया- अंदर गहरे तक दिख रहा था। गुदा लाल पड़ गई थी और
वीर्य का सफेद द्रव उससे रिस रहा था। रॉबर्ट ने उसे बुरी तरह खींच दिया
था।

रॉबर्ट ने पैंट ऊपर खींची और कैमरे में देखकर कनखी मारा। भीगा तौलिया
लाकर उसे अच्छी तरह पोंछा। गुदा के छेद से द्रव के रिसाव को बार-बार
पोंछना हास्यास्पद लग रहा था। जब जब उसको पोंछता, शालू गुदा को सिकोड़
लेती और सिकोड़ने से कुछ द्रव बाहर निकल जाता।

पता नहीं शालू को कैसा लग रहा होगा। एक अपरिचित पुरुष बच्ची की तरह उसकी
गुदा को ध्यान से देखते हुए पोंछ रहा था। अब कौन सी शर्म रह गई थी ! उस
नितांत प्राइवेट, पति से भी अनछुई रही चीज को एक अजनबी ने उसके पति के
सामने ही रौंदा था।

भगांकुर पर तौलिये के मुलायम रोयों का स्पर्श निश्चय ही उसको दर्द और
कुंठा से निकालकर उत्तेजना की दुनिया में प्रविष्ट होने के लिए प्रेरित
कर रहा था। रॉबर्ट जानबूझ कर उस पर बार बार तौलिया फिरा रहा था। उसने
झुककर पुन: चूत को चूमा और जीभ से उसमें गुदगुदी की। अगली अंतिम दर्दनाक
क्रिया से पहले फिर शालू को उत्तेजित करना चाह रहा था। शालू का पूरा उभार
ही अब तक के घर्षण से काफी संवेदनशील हो चुका था। रॉबर्ट उसके मोटे होठों
को चूमता, उनके बीच खुल गए गुलाबी मांस को हल्के हल्के जीभ से कुरेदता,
गुदगुदाता उसे फिर से आनन्द के घोड़े पर बिठा रहा था।

अब शालू को कोई शर्म भी नहीं थी। वह जल्दा ही आनन्द के घोड़े की सवारी
करने लगी। उसे लग रहा था रॉबर्ट उसे जिह्वा से ही अंतिम सुख दिला देगा।
वह नितम्बों को रॉबर्ट के मुँह पर ठेलते मानों उससे इस सुख के लिए
प्रार्थना कर रही थी। रॉबर्ट उसे कोन में खत्म होते आइसक्रीम की तरह जीभ
घुसाघुसाकर चाट और चूस रहा था।

पर जैसे ही लगा वह कगार पर पहुँच रही है वह फिर रुक गया।

शालू लाल आँखें खोलकर उसे देखती रह गई। वह फिर वंचित कर दी गई थी। क्षोभ
से उसके आँसू निकल गए, कुछ नहीं बोली।

आज उसे मुक्ति का सुख नसीब नहीं होगा....

रॉबर्ट ने उंगली से उसके भगांकुर पर कैरम का स्ट्राइकर मारने के अंदाज
में चोट की, ''अब इस कुमारी को नथ पहना दिया जाए।''

चोट की थरथराहटों के बीच शालू के कानों मे उसके शब्द पड़े।

रॉबर्ट छिदाई का सेट लेकर आया और उसकी टांगों के बीच स्टूल खींचकर बैठ
गया। उसने रुई को स्पिरिट से भिगोकर उसकी भगनासा को और चारों तरफ पोंछा।
वहाँ पर वह अत्यंत संवेदनशील हो गई थी और हर छुअन पर फड़क जाती थी।
यद्यपि स्पिरिट की ठंडक उसका दर्द कम करने के लिए थी। रॉबर्ट ने चिमटी से
भगनासा के दाने को पकड़ा और सुई से उसमें दाएँ से बाएँ आर-पार छेद कर
दिया। खून की एक छोटी-सी बूंद बनने लगी। रॉबर्ट ने सोने का रिंग निकाला
और उसको उस छेद में इस पार से उस पार पहना दिया। शालू दाँत पर दाँत दबाए
सी सी करती अपनी चीखें दबाने की कोशिश कर रही थी। रॉबर्ट ने रिंग के खुले
छोरों को सँड़सी से दबाकर सटाया और मांस को बचाते हुए सोल्डिंग रॉड से
रिंग के सिरों को वेल्ड कर दिया।

मैंने रॉबर्ट से पूछा- सोल्डरिंग से तो रिंग गर्म हो गई होगी और शालू को
जल रहा होगा?

वह बोला- हल्का-सा, ज्यादा नहीं। This pain is not more than the
piercing pain. Everything will be ok ! (यह दर्द छिदाई के दर्द से
ज्यादा नहीं है, सब ठीक हो जाएगा।)

उसने रुई से पोंछकर मरहम लगा दिया, बोला- दो दिन में घाव ठीक हो जाएगा।
बस पेशाब उसे बचाकर करना होगा नहीं तो क्षार से जलन होगी। बेहतर होगा ऊपर
से पानी की धार डालती हुई पेशाब करे।

गुलाबी कली में छिदी सुनहली अंगूठी सुंदर लग रही थी। उसके ठीक ऊपर पंख
फड़फड़ाता एक किंगफिशर पक्षी- नुकीली चोंच नीचे रिंग पर लक्ष्य किए, जैसे
झपट्टा मारकर उसे ले उड़ेगा। सुनहला रिंग किसी कीड़े की तरह कली में घुसा
हुआ था और किंगफिशर उसे चोंच मारकर पकड़ लेने को उद्यत। बहुत सु्ंदर
उकेरा था उसने। पक्षी की झपटने की गति को जीवंत कर दिया था। चोंच के नीचे
रिंग बड़ी चुलबुली लग रही थी। गुदाई और छिदाई की बेहतरीन जुगलबन्दी थी।
रॉबर्ट कलाकार था।

हमने शालू के फीते खोल दिए, वह निस्पंद पड़ी रही। मैं उसे दम लेने के लिए
छोड़कर रॉबर्ट के साथ बाहर चला आया।

हॉल में मैंने रॉबर्ट को पैसे दिए और उसके काम की तारीफ की। उसने बहुत
सुंदर गुदाई और छिदाई की थी। मैंने उसे वीडियो की एक कॉपी देने का वादा
किया।

घर लौटते समय वह कार में ही सो गई। इतनी थकी और परास्त थी कि मैं उसे
उठाकर घर के अंदर ले गया और बिस्तर पर डाला। किसी तरह साड़ी मैंने उसके
बदन में लपेट दी थी। साया खुला ही था। वह अगले दिन तक सोती ही रही।
बच्चों को मैंने समझा दिया मम्मी की तबियत ठीक नहीं है।

सुबह उठा तो वह बाथरूम में थी। दरवाजे से देखा वह बाथटब के किनारे पर
बैठी थी और एक छोटा आइना लेकर पैरों के बीच देख रही थी। मुझे देखकर लगा
वह मुझे डाँटेगी पर वह मुस्कुराई और बोली- उस रॉबर्ट ने तो अच्छा काम
किया है।

मैं चकित रह गया। मैंने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया।

उपसंहार :

उस दिन के बाद से हमारे यौन जीवन में जैसे एकदम से परिवर्तन आ गया। मैं
उसके गुदने और छल्ले को देखने छूने के लिए रोमांचित रहता।

शालू तो जैसे बदल गई। उसमें उत्साह का झरना खुल गया। भगनासा पर उसे हमेशा
छल्ला महसूस होता और उसकी इच्छा होती रहती। अक्सर पैंटी से छल्ला रगड़
खाकर उसकी उत्तेजना बढ़ा देता, वह मुझे ऑफिस में फोन करती- मन हो रहा है,
चले आओ ना !

वगैरह।

सेक्‍स करते समय भगनासा पर रिंग की वजह से जल्दी ही स्खलित हो जाती। मुझे
मुँह से करने में ज्यादा आनन्द आने लगा। जल्दी ही उसके चरमसुख और योनि के
रसों का प्रसाद मिल जाता। उसके रस में शराब का नशा बढ़ गया। वह सदा तैयार
और गीली मिलती। मेरी सक्रियता बहुत बढ़ गई। एक बार मैंने सुबह उसके रिंग
में एक मोती का झुमका पहना दिया। हिदायत दे दी कि दिन भर उसे हाथ से
हरगिज नहीं छुए। मैंने उसे पैंटी पहनने से भी मना कर दिया। शाम को जब घर
लौटा तो वो बेकरार थी। बड़ी मुश्किल से खुद को छूने से रोक पाई थी। उस
रात हमने हमारे बीच क्या लहालोट मची कहने की बात नहीं।

पर अब उसे हर समय की उत्तेजना परेशान करने लगी है। कहती है 'रिंग की वजह
से हर समय मन होता रहता है। हाथ अपने-आप उधर चला जाता है। किसी और चीज
में ध्यान नहीं जमता।'

मैं उसे धैर्य रखने की सलाह देता हूँ, कहता हूँ- कुछ दिन में उसकी
अभ्यस्त हो जाओगी।

पर वह कहती है न होगा तो रिंग निकलवा देंगे।

मैं अपने अनुभवी पाठकों से पूछना चाहता हूँ कि क्या वह रिंग निकलवा दूँ?












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