Tuesday, January 11, 2011

हिंदी सेक्सी कहानियाँ सोनी को पहली बार

सोनी को पहली बार

प्रेषक : रेनबो गोदरेज़
दोस्तो, आपने मेरी पहली कहानी "दीदी के साथ कुंवारापन खोया" तो पढ़ी होगी।
आज मैं अपनी अगली कहानी आप लोगों के सामने रख रहा हूँ।
यह कहानी है मेरी गर्लफ्रेंड सोनी की !
आज से लगभग दो साल पहले की बात है जब मैं सोनी से पहली बार मिला था, तब
वो घर के बाहर खड़े होकर बाल बना रही थी। क्या फिगर था उसका ! गोरा रंग,
संतरे के जैसे उसके वक्ष और उसकी गांड भी कमाल की थी। ऊपर से लेकर नीचे
तक संगमरमर से तराशा हुआ बदन था उसका ! उसकी आँखें इतनी नशीली थी कि जो
भी उनमें देखे वो उन्हीं में डूब जाये ! क्या मासूम चेहरा था उसका ! उसने
अभी अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा था। मैं पहली नज़र में ही उसका दीवाना
हो गया था, उसी वक़्त मैंने फैसला किया चाहे कुछ भी हो इसे तो कैसे भी
पटाउंगा।
अब मैं उससे बात करने के बहाने खोजने लगा। मैं तो आप लोगों को यह बताना
भूल ही गया था कि उस वक़्त मैं कॉलेज के साथ पार्ट टाइम जॉब भी करता था
और सोनी का घर मेरे ऑफिस के पास ही था जहाँ से मैं रोज आता जाता था।
आखिर एक दिन मुझे मौका मिल ही गया। तब गणेशोत्सव चल रहा था और हमारे ऑफिस
में गणेश-स्थापना हुई थी( हमारे ऑफिस में हर साल गणेश स्थापना होती है)
मैंने हाल ही में ऑफिस ज्वाइन किया था, सो मुझे ये पता नहीं था। सोनी
मेरे ऑफिस में हर साल गणेशोत्सव में आरती करने के लिए आती थी, मुझे यह भी
मालूम नहीं था। मैं ऑफिस में ऊपर बैठ कर कंप्यूटर पर काम कर रहा था कि
अचानक मेरे बॉस ने कहा- सूरज नीचे आ जाओ ! आरती शुरू होने जा रही है !
मैं फटाफट काम बंद कर के नीचे आ गया, मैंने देखा कि सोनी अपनी छोटी बहन
के साथ आरती के लिए आई हुई है। वो एकदम सजधज कर आई थी, एकदम से कोई परी
लग रही थी, उसने गुलाबी रंग की सलवार कमीज पहनी थी, उसे देखकर मेरे दिल
की धड़कन बढ़ गई।
वह मुझे देखकर हल्के से मुस्काई, मैंने भी एक हल्की की मुस्कान दी। सोनी
सिर्फ तन से नहीं बल्कि मन से भी सुन्दर थी। उसने आरती शुरू की, मैं एक
मेज़ पर कोने में हाथ टिकाये खड़ा आरती सुन रहा था। मैं बार बार उसे ही देख
रहा था, उसने आरती पढ़ते हुए ही मुझे हाथ जोड़कर सीधे खड़े रहने का इशारा
किया, उसके इस मौन आदेश को मैं टाल नहीं पाया और हाथ जोड़कर सीधा खड़ा हो
गया। उसके आदेश का तुरंत पालन करता देख वो मुस्काने लगी। मैं भी उसे देख
कर मुस्कुरा दिया।
आरती ख़त्म होने के बाद मेरे बॉस ने मुझे सबको प्रसाद बांटने के लिए कहा।
मैं प्रसाद की थाली उठाकर सबको बांटने लगा, मैंने प्रसाद देने के बहाने
पहली बार छुआ था। मुझे बहुत ख़ुशी हो रही थी। फिर हम बैठ कर बातें करने
लगे, उसे यह जानकार बहुत ख़ुशी हुई कि मैं कॉलेज के साथ साथ पार्ट टाइम
जॉब करता हूँ। उस वक़्त मुझे अपने आप पर बड़ा गर्व हुआ। गणपति हमारे ऑफिस
में सात दिन तक रहे, इन सात दिनों में हम काफी घुलमिल गए थे। सोनी मुझे
जब भी ऑफिस आते या जाते वक़्त मिलती, मुझे देख कर मुस्कुराते हुए हाय
करती। मैं भी बदले में उसे मुस्कुराते हुए हाय करता।
गणेश विसर्जन के दिन हम शाम से रात तक साथ रहे, इस बीच उसने मेरा परिचय
अपनी माँ से कराया, वो भी काफी खुले विचारे वाली थी। इन सात दिनों में
हमने एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जान लिया, हम काफी अच्छे दोस्त बन गए
थे।
अब मैं रोज ऑफिस समय से जल्दी जाता और रास्ते में रूककर सोनी से बातें
करता, ऑफिस से निकलने के बाद शाम के वक़्त हम घंटों साथ बैठकर बातें
करते। सोनी की माँ काफी खुले विचारों वाली थी सो उन्हें भी कोई आपत्ति
नहीं होती थी। अब हम रोज एक दूसरे को कॉल किया करते और फ़ोन पर भी घंटों
बातें करते, हम एक दूसरे को प्यार भरे, दोस्ती के एस ऍम एस भी किया करते
थे। हम जब भी साथ बैठ कर बातें करते, सोनी कभी मेरे हाथ में, तो कभी गाल
पर तो कभी कमर पर चिमटी काटती, मैं हंसकर रह जाता। अब हम एक साथ बाहर
घूमने भी जाते थे, शॉपिंग करते थे। धीरे धीरे जनवरी आ गई, फिर फरवरी।
14 फरवरी को वेलेंनटाईन डे होता है यह तो आप सभी जानते हैं। 14 फरवरी से
कुछ दिन पहले से ही सोनी मुझसे कहने लगी- सूरज, तुम भी किसी को 14 फरवरी
को गुलाब दे देना !
मैंने मजाक में कहा- हाँ, मैं भी सोच रहा हूँ कि तुमको रोज दे ही दूँ !
उसने कहा- मैं तुमसे रोज नहीं लूँगी !
मैंने मुँह बना कर कहा- तुझे देना ही कौन चाहता है !
मैं सोनी के इशारे को समझ चुका था, मुझे पता था कि वो झूठ का नाटक कर रही
है, आखिर वो भी मुझसे प्यार करती है।
14 फरवरी को मैं जानबूझ कर ऑफिस नहीं गया, सोनी ने मुझे कॉल भी किया, मगर
मैंने अपना फ़ोन स्विच ऑफ रखा था। उसने मेरे ऑफिस के दोस्तों से भी पूछा
कि आज सूरज आया क्यों नहीं। मुझे पता था कि वो मेरे बिन नहीं रह सकती, पर
मैं तो यों ही उसे परेशान कर रहा था।
रात के आठ बजे मैं सोनी के घर गया, मुझे देख कर सोनी की आँखों में चमक आ
गई। मैंने सोनी को एक तरफ कोने में अँधेरे में बुलाया। सोनी तुरंत चली
आई।
मैंने उसके हाथ पकड़ कर कहा- सोनी आई लव यू !
और उसे एक गुलाब दिया।
उसकी आँखों में आँसू भर आये, उसने रोते हुए कहा- आई लव यु टू !
मैंने उसके आँसू पौंछते हुए कहा- लेकिन तुम रो क्यों रही हो?
उसने कहा- मुझे लगा कि तुम उस दिन की बात से मुझसे नाराज हो गए हो।
मैंने कहा- मैं तुमसे कैसे नाराज हो सकता हूँ?
और उसे अपनी बाहों में भर लिया, और उसके होटों पे अपने होंठ रख दिए। अब
मैं उसके होंठों को चूसने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी। उसके होंठ इतने
नर्म थे, जैसे कि गुलाब की पंखुड़ियाँ ! लगभग 5 मिनट के बाद हम अलग हुए
और फिर उसके घर में चले गए और बैठ कर बातें करने लगे। रात दस बजे मैं
वापस अपने घर चला गया।
अगले दिन जब हम सुबह मिले तो हमें एक दूसरे को देखने का नजरिया रोज से अलग था।
अब हमें रोज की तरह बैठ कर बातें करने में अजीब लगने लगा, अब हमें लगता
कि कोई हमें बात करते हुए देख न ले, हम अब हमेशा सोचते कि अकेले में
मिलें।
दो तीन दिन बाद सोनी ने बताया कि उसकी परीक्षा शुरू होने वाली है।
उसकी मां ने मुझसे कहा- बेटा रोज थोड़ा समय निकाल कर जरा इसको पढ़ा दिया कर !
मैंने भी हाँ कर दी।
अब रोज मैं ऑफिस से निकलने के बाद सोनी को उसके घर में पढ़ाया करता। सोनी
के छोटे भाई-बहन काफी शोर करते थे, जिसमें उसको पढ़ना काफी मुश्किल होता
था। यह देखकर सोनी की माँ ने उसके घर के बगल में एक स्कूल था, उसके
चौकीदार से बात कर के हमें वहाँ पढ़ने को कहा। अब मैं रोज सोनी को 1-2
घंटे पढ़ाता था और थोड़ा समय प्यार भरी बातें करते थे।
एक शाम मैं जब ऑफिस से सोनी को पढ़ाने के लिया उसके घर उसको लेने गया तो
सोनी ने मुझे बताया उसकी माँ, गिरीश, नीतू और मुकेश (उसके भाई -बहन) को
लेकर नानी के यहाँ गई है और तुम्हें मुझे पढ़ाने के लिए कहा है, वो रात को
दस बजे तक आएँगी।
मैं उसके पलंग पर बैठ कर उसको गणित के सवाल कराने लगा। आज सोनी कुछ
ज्यादा ही चुलबुली लग रही थी। वो बार बार मुझे आँख मार रही थी, चिमटी ले
रही थी, गुदगुदी कर रही थी। मैं बार-बार उसे पढ़ने के लिए कह रहा था। वो
आज किसी और ही मूड में थी, उसने दाँतों से मेरे कान काट लिए और मुझे चूम
भी लिया।
अब मेरे अन्दर का शैतान जाग गया था, मेरे सब्र का पुल टूट गया। मैंने
सोनी को पलंग पर पटक दिया और उसके ऊपर लेट कर उसके होंठ चूसने लगा। वो
मेरा पूरा साथ दे रही थी, मैं कभी उसके गले पर कभी उसके कंधे पर कभी कान
पर चूम रहा था। उसकी उंगलियाँ मेरे सीने पर फिसल रही थी, हम दोनों की
धड़कन तेज हो चुकी थी।
अब मैं उसका टॉप उतारने लगा, वो भी मेरे शर्ट के बटन खोलने लगी। उसने
अन्दर सफ़ेद रंग की ब्रा पहन रखी थी, मैं ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तन
चूसने लगा, वो सिसकारियाँ लेने लगी। अब मैंने उसकी सलवार भी उतार दी, अब
वो मेरे सामने सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में थी, मैं उसको पैर से लेकर सर तक
चूमने लगा और अपने सारे कपड़े भी निकाल दिए, मैं सिर्फ अन्डरवियर में था।
उसकी सिसकारियाँ अब तेज हो चली थी, उसकी पैंटी गीली हो गई थी। अब मैंने
उसकी ब्रा का हुक खोल दिया, उसके स्तन ऐसे लग रहे थे कि जैसे दो संतरे
हों, मैं एक एक करके उनको दबाने लगा और चूसने लगा। कई बार मैंने उसके
चुचूक को अपने दाँतों से काट दिया, वो चिल्लाने लगी। हम दोनों का जिस्म
आग की भट्टी की तरह जल रहा था।
अब मैंने उसकी पैंटी भी उतार दी, उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था, सिर्फ
रोये थे। उसकी चूत भीगी हुई और एकदम गुलाबी थी, मैंने उसकी चूत पर चूम
लिया।
सोनी कहने लगी - सूरज मुझे कुछ हो रहा है ! जल्दी कुछ करो !
मौके की नजाकत को समझते हुए मैंने अपने लंड को अन्डरवीयर से बाहर निकाला
और उसकी चूत के छेद पर रख दिया।
अब मैंने धीरे से धक्का लगाया, मेरा लंड काफी हद तक उसकी चूत की गहराई
में घुस गया। सोनी जोर से चिल्लाने लगी, मैंने उसके होठों पे अपने होंठ
रख दिए, उसकी आँखों से आँसू निकल आये। मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया, जब
उसका दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने फ़िर से धक्के लगाना शुरू किया, अब वो मेरा
साथ देने लगी।
पूरा कमरा हमारी गर्म सांसों और सिसिकारियों से भर गया, थोड़ी देर बाद
मेरा शरीर ऐंठने लगा और मैंने अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाला, मेरा
लंड खून से सना हुआ था। फिर थोड़ी देर में मेरा वीर्य गिर गया, और वो भी
झड़ गई।
हमने एक दूसरे को साफ़ किया। सोनी लड़खड़ाते हुए उठी और कपड़े पहनने लगी,
मैंने भी अपने कपड़े पहने और बेडशीट को उठा कर दाग वाले स्थान से धो दिया।
धोने पर भी दाग पूरी तरह साफ़ नहीं हुआ तो मैंने सोनी से चाय बनाने को कहा
और थोड़ी सी चाय दाग वाले स्थान पर गिरा दी।
फिर हम पढ़ाई में लग गए।
रात को साढ़े दस बजे उसकी माँ उसके भाई-बहनों के साथ आई और मैं अपने घर चला गया।
दोस्तो, यह मेरे पहले प्यार की सच्ची कहानी है। आप को कैसी लगी, मुझे मेल करें !

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